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समालोचन

Home » फूल बहादुर : जयनाथ पति : अनुवादक : गोपाल शर्मा » Page 4

फूल बहादुर : जयनाथ पति : अनुवादक : गोपाल शर्मा

मागधी मध्य-पूर्व में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है. इस भाषा में जयनाथ पति (1880-1939) ने 1928 में एक उपन्यास लिखा था- ‘फूल बहादुर’ जिसका अभी हाल ही में इसी शीर्षक से अभय द्वारा अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ है. हिंदी में इसका अनुवाद अब तक नहीं हुआ था. गोपाल शर्मा के प्रस्तुत अनुवाद से यह ऐतिहासिक कार्य अब पूरा हो गया है. लगभग सौ साल पूर्व के इस उपन्यास को आज पढ़ना कई कारणों से दिलचस्प है. जिस समय जयनाथ पति यह उपन्यास लिख रहे थे प्रेमचंद हिंदी में उपन्यासकार के रूप में स्थापित हो गये थे. संयोग से ये दोनों उपन्यासकार कायस्थ हैं. हिंदी के दबाव का अनुभव दूसरी भाषाएँ कर रही थीं जिसकी तरफ जयनाथ पति ने भी इशारा किया है- ‘हमें एक डर है कि हिंदी (या खिचड़ी हिंदुस्तानी) मगही का लोप न कर दे.’ अनुवादक गोपाल शर्मा ने मूल मगही से इसका अनुवाद किया है और कोशिश की है की इसकी चटक बरक़रार रहे. तत्कालीन समय को समझने के लिए यह जहाँ मूल्यवान है वहीं प्रेमचंद के उपन्यासों से भी तुलनीय है. प्रसिद्ध भाषा विज्ञानी सुनीति कुमार चटर्जी द्वारा लिखित परिशिष्ट को भी शामिल कर लिया गया है. यह ख़ास अंक प्रस्तुत है.

by arun dev
February 12, 2025
in अनुवाद
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अनुवादक की ओर से

जयनाथ पति की रचना “फूल बहादुर” को हिंदी में उल्था करना मेरे लिए उतना जरूरी न था, जितना अभय जी के लिए इसका अंग्रेजी में अनुवाद करना. उन्होंने अनुवाद करके मातृ और मातृभाषा ऋण चुकाया. मैंने उनकी देखा देखी इसे हिंदी के उन पाठकों के लिए सुलभ बनाया जो मेरी तरह इस रचनाकार और उनकी इस रचना से अनभिज्ञ थे. अनुवाद को उल्था कहने का कारण यह है कि मैंने मूल भाषा में प्रयुक्त शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों और वाक्य विन्यास को यथा संभव ज्यों का त्यों रखा है. अपनी तरफ से कुछ जोड़ा नहीं, मूल का कुछ छोड़ा नहीं. कहीं भी व्याख्या या सरलीकरण का प्रयास नहीं किया. यह ध्यान रखते हुए अनुवाद किया कि अनुवाद में मगही की चाट और चटक बरक़रार रहे.

मैं खड़ी बोली क्षेत्र के उस शहर मेरठ में पला बढ़ा जिसमें हिंदी के प्रथम उपन्यास “देवरानी जेठानी की कहानी” (१८७०) का प्रणयन हुआ. अब जाकर प्रारब्ध को यह मंज़ूर हुआ कि जो श्रेय ‘कहानी’ को पुनः प्रकाशित और उपलब्ध कराकर पटना के प्रोफेसर डॉ. गोपाल राय ने दशकों पहले प्राप्त किया था, उसे मेरठ के इस बंदे को “फूल बहादुर” के अनुवाद से कमोबेश प्राप्त हो. इस तरह गुरु ऋण चुकाने का भी यह बानक बना.

मगही के बारे में एक कहावत प्रचलित है कि मगही में तीन टेढ़ होते हैं – राह टेढ़, आदमी टेढ़, और बोली टेढ़. इस कहावत के मर्म को समझने के लिए पाठक को थोड़ा बहुत टेढ़ा होना पड़ेगा. अनुवादक के रूप में जितना टेढ़ा मैं हो सकता हूँ, हुआ. अब आप.

गोपाल शर्मा
एम्स्टर्डम (नीदरलैंड)

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Tags: 20252025 उपन्यासगोपाल शर्माजयनाथ पतिफूल  बहादुरमगहीमगही का प्रथम उपलब्ध उपन्यास
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Comments 3

  1. Arun Narayan says:
    5 months ago

    अरुण भाई
    वर्षों पहले इसे मगही में पढ़ा था, एक बार पुनः हिन्दी में भी पढ़ा। गोपाल जी ने बहुत अच्छा अनुवाद किया है।
    इस पेशकश के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।

    Reply
  2. Sachidanand Singh says:
    5 months ago

    मैं झारखण्ड के पलामू जिले का हूँ. हमारी तरफ मगही ही बोली जाती है. पर हमारी मगही उस मगही से कदाचित भिन्न है जो बिहार शरीफ, नवादा क्षेत्र में बोली जाती है. कोस कोस पर पानी बदले सवा कोस पर बानी इत्यादि. मगही शब्द निश्चित ही मागधी से बना होगा, और मागधी हुई मगध में बोली जाने वाली प्राकृत. मगध क्षेत्र आज छः जिलों में फैला हुआ है – पटना, नालंदा, गया, औरंगाबाद, जहानाबाद और नवादा. हमारा पलामू जिला इस मगध में नहीं है किन्तु बोली वही है जो औरंगाबाद की है.

    आपको मगही के सबसे पुराने उपलब्ध उपन्यास का हिंदी अनुवाद यहां मिलेगा.

    लेखक नवादा के हैं, उपन्यास का देश बिहार शरीफ है. आमुख में लेखक ने बताया है उनके पहले उपन्यास “सुनीता” (प्रकाशन 1928) को लेकर भूमिहार समाज उनसे कुछ रुष्ट हुआ था. लेखक कायस्थ हैं और इस उपन्यास में उन्होंने एक कायस्थ मुख्तार की खिल्ली उड़ाई है. सबडिवीज़नल शहर में एसडीओ और डिप्टी साहबों की चलती थी. एक शिकायत / तकलीफ थी कि कमाई सबसे अधिक पुलिस वालों की थी. हाकिम मुख्तारों के कस्बिनों से रिश्ते आम होते थे.

    समस्या उठ जाती थी जब किसी गणिका को कोई अपनी रक्षिता बना ले. इस उपन्यास के प्रतिनायक एक मुख्तार हैं, जो किसी सजातीय मुख्तार के घर कभी रसोइया होते थे और तीन बार अनुत्तीर्ण होने के बाद चौथी बार मुख्तारी पास कर पाए थे. ग्रन्थ-ज्ञान चाहे कितना भी कम रहे, व्यावहारिकता उनमे कूट कूट कर भरी थी. खूब पैसे कमाए, साहबों के बीच नाम कमाया, “किले जैसा घर” बनवाया और अब बस एक ख्वाहिश रह गयी – किसी तरह राय बहादुर बन जाएं.

    अवश्य पढ़िए, बहुत छोटा उपन्यास है. देश-काल का बहुत सच्चा वर्णन.

    Reply
  3. डॉ. लक्ष्मण प्रसाद says:
    5 months ago

    बहुत ही सार्थक प्रयास होल हे।
    “आधुनिक मगही साहित्य” विषय पर शोध औ “मगही साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास” लिखे खनि जयनाथपति के गाँव शादीपुर तक गेलूं हल। ऊ गाँव में कभी कायस्थ के समृद्ध टोला हलै। वैसे बाद में ऊ लोग नवादा औ दोसर जगह में समा गेलन।
    मगही साहित्य में जयनाथपति अनमोल धरोहर हथ।
    “फूलबहादुर” के अँग्रेजी अनुवाद जान के खुशी होल।
    अनुवादक के आभार सहित शुभकामना।
    नमस्कार।

    Reply

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