पोर्ट्रेट ऑफ़ अ लेडी ऑन फ़ायर |
2019 की फ्रांसिसी फ़िल्म, “पोर्ट्रेट ऑफ़ अ लेडी ऑन फ़ायर”, सदी की उन चुनिन्दा फ़िल्मों में से एक है जिसका ज़िक्र ज़रूर किया जाना चाहिए. फ़िल्म की सबसे खूबसूरत बात यह है कि आप कोई भी ज़ाविया, कोई भी दृश्य, या कोई भी स्पॉट उठा लें, फ़िल्म ज़हन पर चित्रकारी-सा नक्श उभारती है. इस फ़िल्म को कान फ़िल्म समारोह में 2019 की सर्वश्रेष्ठ पटकथा के सम्मान से नावाज़ा गया. इसके साथ ही सेलीन सियम्मा को यूरोपीय फ़िल्म समारोह में 2019 की सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक का पुरस्कार दिया गया.
सेलीन सियम्मा (Celine Sciamma) के निर्देशन में बनी यह फ़िल्म अट्ठारवीं शताब्दी के फ्रांस को दर्शाती है. आम तौर पर समझा जाता है कि यह फ़िल्म समलैंगिक संबंधों का चित्रण है. लेकिन मेरा नज़रिया यह है कि इस फ़िल्म को केवल समलैंगिकता या लेस्बियन रोमांस के दायरे में बाँध देना ग़लत होगा. फ़िल्म प्रेम संबंध पर केन्द्रित है, जिसके तीन चरण हैं:
पहला: इस में दो लोगों की, वक़्त के साथ-साथ अपने ख़ुद के वजूद की तलाश और उस से उपजी उनकी, नज़दीकियों को चित्रित किया गया है; दूसरा: एक आर्टिस्ट और उसकी ‘म्यूज़’ के बीच के रिश्ते को उभारा गया है; और तीसरा: दो लड़कियों यानी हम-जिंस के बीच का पकीज़ा एहसास है.
फ़िल्म देखते हुए आपको महसूस होगा कि निर्देशिका की अधिकतर मेहनत दूसरे और तीसरे चरण के उभार के साथ जुड़ी हुई है. यहाँ निर्देशिका का फ़िल्मी कथानक पर गिरफ़्त का कमाल दिखता है. लेकिन इसके बावजूद, फ़िल्म का पहला चरण जिसका ज़िक्र मैंने ऊपर किया है, आपको एक अनोखी दुनिया में पहुँचा देता है. यूँ जब फ़िल्म पूर्ण रूप से आप पर खुलती है, तो आपको महसूस होता है कि प्रेम का यह पहला चरण बाक़ी दो चरणों से आला है.
प्रेम में समानता का होना इसके सबसे पवित्र फॉर्म की व्याख्या करता है. फ़िल्म के मध्यांतर में तीन किशोरियों, जो कि मुख्तलिफ़ सामाजिक वर्ग से आती हैं, का एक अलग उन्मर्ग और आज़ाद ख़याल रूप रौशन नज़र आता है. फ़िल्मी कथानक में उनका यह रूप तब उभर कर आता है, जब महल की कुलमाता (matriarch) कुछ दिनों के लिए बाहर चली जाती हैं.
फ़िल्म में दो नायिकाएँ हैं, एलोइस (एडील हेनल) और मरिआन (नौमी मरलेंट). मेरे ख़याल से ‘एलोइस’ नाम चुनने के पीछे भी फ़िल्म की लेखिका का ख़ास मकसद रहा होगा. एलोईस बारहवीं शताब्दी की फ़्रांसीसी नन थी जो एक नारीवादी (फेमिनिस्ट) लेखिका भी थीं. जहाँ वह शादी नाम के संस्थान को अनुबंधित वेश्यावृत्ति (contractual prostitution) मानती थी, वहीं दूसरी तरफ़ वह पीटर आबेलार्ड की मोहब्बत में गिरफ्तार भी थी. उन्होंने लिखा है कि प्रेम शादी से ऊपर की चीज़ है और आज़ादी बंधन से ऊपर. फ़िल्म की लेखिका का इस नाम को चुनने का ख़ास मकसद तब उजागर होता है जब हम जान जाते हैं कि फ़िल्म की नायिका, एलोइस, भी एक कान्वेंट में पली बढ़ी है जो शादी के ख़ासी खिलाफ़ भी है.
रूसो (Rousseau) का पत्रकाव्यगत (epistolary) उपन्यास, “Julie, ou la nouvelle Heloise” (जूली, एक नई एलोइस), जूली के रोमांस पर आधारित है. यह 1761 में प्रकाशित हुआ था और पाठकों पर, ख़ासकर महिला पाठकों पर इसका अद्भुत प्रभाव पड़ा. यह किताब यूरोप में उस वक़्त प्रतिबंधित थी. एक तरफ़ यह औरतों के मध्य दोस्ती और अपनाइयत पर केन्द्रित है; दूसरी तरफ़ एक पत्नी के गुणों पर; और तीसरा, अपनी सहेलियों और पति की तरफ़ जिम्मेदारियों के बीच उपजे द्वंद्व पर आधारित है. ज्यूँ-ज्यूँ फ़िल्म आगे बढ़ती है, हमें जुनून के विकल्प के तौर पर इसमें एक आध्यात्मिक आवश्यकता की झलक मिलती है. जब एक आंतरिक निजता के बाद, एलोइस को एहसास होता है कि अब बिछड़ने का वक़्त आ गया है, तब वह मरिआन से कहती है कि उसे पछतावा है. इस पर मरिआन का जवाब होता है, “पछताओ मत, याद करना”.
यहाँ दर्शक को अपनी कल्पना की शक्ति पर छोड़ दिया जाता है कि आख़िर फ़िल्म की मरिआन रूसो के नावेल के सेंट प्रो (St. Preux), जो की जूली का माशूक था, के किरदार में है; क्लैर, जूली की कज़न, के किरदार में है; या फिर इन दोनों के बीच के कोई किरदार का हिस्सा है.
मेरियन मीड़ (Marion Meade) का ऐतिहासिक उपन्यास “स्टीलिंग हेवन” भी एलोइस और आबेलार्ड, जो कि बारहवीं शताब्दी के ऐतिहासिक किरदार हैं, की कहानी पर केन्द्रित है. उपन्यास और फ़िल्म के किरदारों में फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि इस उपन्यास में जो एलोइस के अंकल हैं, वो इस फ़िल्म में एलोइस की माँ के किरदार में बदल जाते हैं. मरिआन आबेलार्ड की जगह ले लेती है. और फ़िल्म में एक सोफ़ी नाम की मुलाज़्मा है, वो इस उपन्यास की वह किसान लड़की हो सकती है.
थोड़ा और पीछे जाएँ तो यह अंदाज़ा होता है कि फ़िल्म ऑफ़ीयस (Orpheus) और यूरिडसी (Eurydice) मिथक का एक श्रेष्ठ निरूपण है. अंतर-पाठ्यता (inter-textuality) के सन्दर्भ में यह मिथक के रिवायती अर्थों को परिवर्तित कर देती है. मिथक का ऑफ़ीयस इस फिल्म में एक औरत के रूप में तब्दील हो जाता है. यह औरत एक पेंटर है. दूसरी तरफ़ हम यह भी कह सकते हैं कि पेंटर या कोई आर्टिस्ट का जेंडर डिफ़ाइन नहीं किया जा सकता, वह पूर्ण रूप से सिर्फ़ कलाकार होते हैं. ऑफ़ीयस के किरदार को औरत दर्शाने में निर्देशिका का निज़ी ज़िंदगी में समलैंगिक होना भी हो सकता है क्योंकि उनकी ज़्यादातर फ़िल्में इसी विषय से सम्बन्ध रखती हैं.
एक और क़ाबिल-ए-ज़िक्र बात यहाँ यह है कि जब इस मिथक में हाईमन (hymen) को ऑफ़ीयस और यूरिडसी की शादी के मौक़े पर आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया जाता है, तब हाईमन बताता है कि यह शादी ज्यादा देर तक नहीं चलने वाली. हाईमन एक तरह से उनकी शादी का भविष्य तय करता है. इसी तर्ज़ पर हम कुछ हद तक कह सकते हैं कि हमारे या किसी भी मुआशरे में देखा जाए तो, एक हिसाब से, शादी में पूर्णता या परफेक्शन बच्चों के पैदा होने से होता है. इस फिल्म में यह मुमकिन नहीं था क्योंकि दोनों लड़कियों में हाईमन मौजूद था. दोनों में सिर्फ़ हाईमन का मौजूद होना, मतलब दोनों का औरत होना ही, उनको माँ बनाने में बाधक साबित होता है. मरिआन एलोइस को माँ तो नहीं बना पाती. इसलिए भी फ़िल्म में मरिआन का लड़की होना न्यायसंगत है.
यह फ़िल्म बिलाशुब्हा समलैंगिक रोमांस का एक अनूठा उदाहारण है. मगर उससे पहले यह दो लोगों के बीच का, जिन्होंने अपना वजूद इकट्ठे तलाश और विकसित किया है, उनका प्रणय है.
उपन्यासकार बालज़ाक (Balzac) का कहना है कि एक औरत की सबसे तीव्र भावना एक औरत के लिए ही रही है. इस से अठारहवीं सदी के हिन्दुस्तानी शायर, जुर्रत, का एक शेर अनायास ही याद आ जाता है, जहाँ वह कहते हैं,
“ऐसी लज्ज़त कहाँ है मर्दों में,
जैसे लज्ज़त दू-गुना चप्टी में”.
हमें फ़िल्म में एक बेहद कामुक दृश्य मिलता है, जब एलोइस मरिआन की बगल में एक हरे रंग का लेप अपनी उँगलियों से रगड़ रही होती है. सुसन बोर्डो का कहना है,
“किसी भी चलचित्र में ये बातें अहम् हैं:
१) औरत किस तरह अपने जिस्म को देखती है,
२) निर्देशकगण किस तरह उसके जिस्म को दर्शाते हैं,
३) नैरेटिव किस तरह उसके जिस्म का इस्तेमाल करती है और
४) ख़ुद औरत कैसे अपने जिस्म का इस्तेमाल करती है.
ज़ब्त करके जिस्म को क़ाबू में रखना या फिर सिडकशन (seduction) के ज़रिये उसका उल्लंघन करना, दोनों ही सूरत-ए-हाल में या तो एक रूढ़िवादी प्रथा (convention) को दृढ़ता प्रदान होगी या फिर एक काउंटर डिस्कोर्स तैयार होगा”.
यह काउंटर डिस्कोर्स इस फ़िल्म में लेस्बिअनिस्म या समलैंगिगता हो सकता है.
फ़िल्म की शुरुआत में मरिआन, जो कि एक चित्रकार है, अपनी शागिर्दों के सामने पोज़ देते हुए देखी जाती है. वह उनसे चित्रकला की परंपरा के बारे में विचार विमर्श करती है. कहानी तब फ्लैशबैक में चलने लगती है जब एक शिष्या अपनी उस्तानी के संग्रह में से एक चित्र निकाल कर कक्षा में रख देती है. इस चित्र का शीर्षक पूछे जाने पर मरिआन बताती है, “पोर्ट्रेट ऑफ़ अ लेडी ऑन फ़ायर”.
एलोइस की माँ की ख़्वाइश है कि उसकी शादी मिलान के किसी दौलतमंद ख़ानदान में हो जाए. एलोइस का चित्र बनवाने के लिए उसकी माँ ने चित्रकारों को कई बार आमंत्रित किया है मगर कोई भी चित्रकार एलोइस को पोज़ देने के लिए सहमत ना कर सका.

मरिआन को एलोइस की माँ ने एलोइस की तस्वीर बनाने के लिए नियुक्त किया है. मगर उन्होंने उसे यह ध्यान रखने के लिए कहा है कि इस बात की ख़बर एलोइस को न होने पाए. जब दोनों लडकियाँ एक दूसरे के साथ सहज होने लगती हैं, तब मरिआन उसे सच्चाई बताने का फ़ैसला करती है. वह उसे उसकी तस्वीर दिखाती है, जो उसने उसकी माँ के कहने पर चोरी छिपे बनाई थी. तस्वीर देख कर एलोइस कहती है, “क्या मुझे तुम ऐसे देखती हो?”
मरिआन जवाब में कहती है कि चित्र सिर्फ़ मैंने नहीं बल्कि मेरे साथ कुछ नियमों, परम्पराओं, और विचारों ने मिलकर बनाई है. मरिआन को तब एक ज़ोरदार धक्का लगता है, वह लगभग बिखर जाती है, जब एलोइस पूछती है कि “मौजूदगी कहाँ है? जिंदगी के रंग कहाँ हैं? उनका कोई महत्व नहीं?”
एलोइस का सवाल शहरयार के इस शेर से ठीक तरह से समझा जा सकता है,
दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंढे,
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यूँ है?
टॉलस्टॉय ने ‘वार एंड पीस’ में कहा है, “इंसान अपने विवेक से अपना निरीक्षण कर सकता है, मगर वह सिर्फ़ चेतना से ही अपने आपको जान सकता है. मरियान को अब समझ आता है की उसकी विषयवस्तु (subject) साँस भी लेती है, वह एक जीता जागता इंसान है. इतना समझना था कि मरिआन अपनी बनाई तस्वीर को नष्ट कर देती है. वह फिर नए सिरे से दूसरी तस्वीर बनाना शुरू करती है. एलोइस इस दफ़ा पोज़ भी देती है और तस्वीर मुकम्मल करने में मरिआन का पूरा सहयोग करती है.
एलोइस में मरिआन को एक आग नज़र आती है. यह आग एलोइस के उदासीन व्यक्तित्व का हिस्सा है, जो फ़िल्म में आगे कई दफ़ा देखने को मिलता है. फ़िल्म में ये भी दर्शाया गया है कि फ्रांस में औरतों को तस्वीर बनाने से क्यूँ वंचित रखा जाता रहा था. मरिआन भी अपनी कृति को अपने पिता के नाम से प्रदर्शित करती थी. सोफ़ी, एलोइस की मुलाज़्मा, के गर्भपात का पूरा दृश्य पितृसत्ता, औरतों की घरेलू ज़िन्दगी और उसके बीच के तनाव और उससे उपजी एक अद्भुत शक्ति या सत्ता का; आजादी और चुनाव का एक अनूठा दृश्य है.

मरिआन को कई बार एलोइस की झलक दिखाई देती है, जहाँ वह शादी का लिबास पहन, अँधेरे से निकलती है और अँधेरे में ही गुम हो जाती है. यह मेरी नज़र में ओविड के कायांतरण (Metamorphoses) में यूरिडसी का अधोलोक में वापस खींचे जाने का एक मर्मस्पर्शी वर्णन है. यह भी हो सकता है कि मरिआन की अपनी मनस्थिति यह हो. चूंकि उसका और एलोईस का मिलन नामुमकिन है, सो बस यादें रह जाएँगी और उस वक़्त के साथ एक अन्धकार, एक ख़ला.
मरिआन एक कलाकार है और उसके ख़ला का अपना रंग होगा. वहीँ एलोइस ने मरिआन से बिछड़ कर ख़ामोशी इख्तियार कर ली थी. दरहकीक़त दोनों ही सूरतें, ख़ामोशी और अन्धकार, ख़ला की ही तो हैं.
एक दिन मरिआन एक आर्ट गैलरी में एलोइस के साथ उसकी बेटी की तस्वीर देखती है. एलोइस ने इस तस्वीर में मरिआन के लिए एक संदेश भी छोड़ा था. यह दृश्य मुझे फ्रीदा कालो (Frida Kahlo) की पेंटिंग “रूट्स” (“Roots”) की याद दिलाता है, जहाँ एक तरफ़ तो इंसान का व्यक्तिगत विकास हो रहा होता है, और दूसरी तरफ़ वह किसी टाइम और स्पेस के दायरे में फँस कर रह जाता है.
नीत्शे कहता है जितना ज़्यादा हम ऊपर चढ़ते हैं, उतना ही गौण हम उन लोगों को नज़र आते हैं, जो उड़ नहीं सकते (the higher we sore, the smaller we appear to those who cannot fly). यह उस लैटिन भाषीय गाने, “फुजेरे नॉन पोस्सम”, के सन्दर्भ में कहा जा रहा है, जिसके बोल निर्देशिका ने ख़ुद, नीत्शे के ऊपर दिए वाक्य से ग्रहण कर (adapted from), लिखे हैं. इस गाने का मतलब है, ‘मैं उड़ नहीं सकती, मैं बच नहीं सकती’. नीत्शे का हवाला किसी इंटरव्यू में, निर्देशिका ने ख़ुद पेश किया है. इस गाने के दौरान एलोइस को एहसास हो जाता है कि वह मरिआन के साथ उड़ नहीं पाएगी, निकल नहीं पाएगी. यहाँ हमें नाइलिज़्म के कुछ पहलुओं की झलक मिलती है और निर्देशिका ने इस दृश्य में उपयुक्त रूपक इस्तेमाल किया है जहाँ एलोइस के कपड़ों में अलाव से आग लग जाती है. निर्देशिका ने इस दृश्य का बख़ूबी फ़िल्माया है.
मैं फ़िल्म के बारे में लिखती जा सकती हूँ, मगर जैसे कि फ़िल्म में, एलोइस मरिआन से पूछती है, “कैसे पता चलता है कि एक तस्वीर मुकम्मल हो गई है?”, मरिआन जवाब देती है कि ‘एक बिंदु पर हम रुक जाते है’, वैसे ही मैं यहाँ रुकती हूँ.
जे.एन.यू. , नई दिल्ली से समाजशास्त्र में एम्.ए, एम्.फ़िल और पी.एच.डी. हिंदी की कई पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित. हिंदी और अंग्रेजी पत्रिकाओं में लेख एवं अनुवाद प्रकाशित. ayesha.nida.arq@gmail.com |
यह एक तहदार समीक्षा है जिसमें काल और अवधि के बीच कल में आज की स्त्री की आज़ाद होने की इच्छा
और उसका अवांछित प्रतिफलन है।इस पर और बात
ठहर कर हो सकती है।जितनी गहराई से लिखा है और सिनेमेटिक भाषा को समझकर ,उतना वक़्त चाहिए।बधाई।
एक ज्वलंत प्रसंग लेकिन प्रासंगिक एवम प्राकृतिक मानविय संबधों के संदर्भों की स्त्रीत्व संवत्रता एव समाजिक समानता संघर्षों पर आधारित इस फिल्म की समीक्षा के माध्यम से अति स्पष्ट सुंदर अभिव्यक्ति बधाई
यह एकाधिक मायनों में साहसिक फ़िल्म है।
इस पर यह अच्छा आलेख है।
एक अच्छी फिल्म पर अच्छा आलेख
इतने दार्शनिकों के उद्धरण समेटते हुए भी इतनी सरल भाषा में फिल्म का ऐसा विवेचन! बुद्धिजीवी ऐसा लिखा करें इसकी कामना करने वाले मुझ जैसों के लिए यह बहुत ही सुखद है। विश्लेषण अच्छा तो है ही अच्छे से समझ में भी आता है।
विभिन्न कालखण्डों के उद्धरणों के साथ इस फिल्म के बहुपरतीय विश्लेषण के लिए आएशा जी को बधाई।