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Home » कथा के बदलते आयाम: रमेश अनुपम

कथा के बदलते आयाम: रमेश अनुपम

सुपरिचित कथाकार तरुण भटनागर के कहानी संग्रह ‘प्रलय में नांव’ की समीक्षा कर रहें हैं- रमेश अनुपम. शीर्षक कहानी के साथ ‘क़ातिल की बीबी’ कहानी भी आप यहीं पढ़ सकते हैं. ‘प्रलय में नांव’ तो अप्रतिम कहानी है ही पूरा संग्रह ही पढ़ने योग्य है.

by arun dev
November 25, 2021
in समीक्षा
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कथा के बदलते आयाम:  रमेश अनुपम
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कथा के बदलते आयाम

रमेश अनुपम

 

इक्कीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में जिन कथाकारों ने कथा के पारंपरिक विषय क्षेत्रों से अलग हट कर नए-नए विषय क्षेत्रों के अन्वेषण में रुचि दिखाई है और अंतर्वस्तु तथा शिल्प की प्रचलित रूढ़ियों का निषेध कर अपने लिए सर्वथा नवीन कथा मुहावरे का सृजन किया है, उनमें तरुण भटनागर एक हैं.

इस पर अब गंभीरतापूर्वक विचार किए जाने की जरूरत है कि क्या हिंदी कहानी इक्कीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक तक पहुंचते-पहुंचते क्या एक बार फिर से अपना कलेवर बदलने को आतुर नहीं है? जिस तरह वह बीसवीं शताब्दी के छठवें दशक में दिखाई दे रही थी या भूमंडलीकरण के दौर में सदी के अंत में उदय प्रकाश और अन्य कथाकारों में बदलती हुई दिखाई दे रही थी.

इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि हर युग में कविता और कहानी समय तथा समाज की बदलती हुई परिस्थितियों के साथ अपना कलेवर बदलती चली जाती हैं.

युगीन स्थितियों-परिस्थितियों के अनुरूप कोई भी रचना अपने समाज में विद्यमान चुनौतियों से बिना टकराए एक सार्थक रचना सिद्ध नहीं हो सकती है. एक गंभीर, महत्वपूर्ण और कालजयी कहानी होने के लिए आवश्यक है कि वह नए-नए विषय क्षेत्रों का अन्वेषण करे, शिल्प और भाषा की नई संरचना इजाद करे.

तरुण भटनागर के नवीन कथा संग्रह  ‘प्रलय में नाव’  में संग्रहीत कहानियों को पढ़ते हुए एक बार फिर से हिंदी कहानी की बदलती हुई संरचना और संवेदना पर नए सिरे से विचार किए जाने की आवश्यकता महसूस होती है.

इस संग्रह की लंबी कहानी ‘प्रलय में नाव’ जब 2019 में प्रकाशित हुई थी उस समय से ही इस कहानी ने अपनी असाधारण कथा और शिल्प के चलते पाठकों और आलोचकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया था.

अपनी नवीन विषयवस्तु और सुंदर शिल्प के फलस्वरूप यह कहानी अलग से ध्यान आकर्षित करने वाली कहानी में शुमार की गई थी.

आज के जटिल और संश्लिषट यथार्थ को जिस तरह से तरुण भटनागर ने अपनी इस कहानी के नाभिक में दर्ज किया है, हमारे समय के अंतर्विरोधों और चुनौतियों को जिस सूक्ष्मता के साथ अपने इस आख्यान में गूंथने का प्रयास किया है, वह लेखक की गहरी अंतर्दृष्टि का परिचायक है.

‘प्रलय में नाव’ की विषयवस्तु असाधारण है. यह एक ऐसे मनुष्य की कथा है जो ईश्वर के आदेश पर एक घने जंगल में सदियों से एक विशाल नाव बना रहा है. ईश्वर ने उसे चेताया है कि एक दिन प्रलय आने पर इसी नाव में उसे पृथ्वी के प्राणियों और वनस्पतियों को सुरक्षित रखकर बचा लेना है.

‘प्रलय में नाव’ में तरुण भटनागर ने एक ऐसे आख्यान को अपनी कहानी के माध्यम से कहने की कोशिश की है जो हमारे समय की विभीषिका को एक नए रूप में प्रस्तुत करने का जोखिम उठाती है. यह कहानी भूमंडलीकरण के बाद तेजी से नष्ट होती जा रही दुनिया को अपने तईं बचा लेने की जिद करती है. यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यह कहानी जो कुछ भी नष्ट होने से बचा रह गया है उसे संरक्षित कर लेने की एक हद तक हठ करती है.

यह कहानी छोटे-छोटे किंतु बेहद प्रभावशाली काव्यात्मक बिंबों के माध्यम से जीवन यथार्थ की जिन छवियों की निर्मित करती है, वह हमारे समय का एक नया और त्रासद रूप है.

यह कहानी अपने आप में एक विराट और विरल फंतासी रचती है. यथार्थ इसी फंतासी में सांस लेता हुआ, धड़कता हुआ यहां-वहां अपने होने का इसरार करता हुआ दिखाई देता है.

इस विराट और विरल फंतासी के बिना हमारे समय के इस महान रूपक को कथा में गढ़ पाना तरुण भटनागर के लिए इतना सहज सरल नहीं होता.

सदियों से तमाम दुनिया से दूर और सबकी नजरों से तथा तमाम प्रलोभन से बच कर आने वाले प्रलय के लिए नाव का निर्माण करने वाला मनुष्य अंततः एक दिन प्रलोभन का शिकार हो जाता है. वह दुनियावी माया से खुद को बचा पाने में असमर्थ सिद्ध होता है.

प्रलय आने पर वह न जीव जंतुओं को बचा पाता हैं, न दुर्लभ वनस्पतियों को और न ही स्वयं को ही.

यह कहानी मनुष्य, प्रकृति और जो कुछ भी इस पृथ्वी पर सुंदर है उस सबको बचा लेने की एक व्याकुल पीड़ा और द्वंद्व से मिश्रित कहानी है.

यह कहानी लेखक की गहन मानवीय संवेदना को भी उजागर करती है. लेखक की गंभीर अंतर्दृष्टि को उद्घाटित करती है.

यह एक ऐसी किस्सागोई है जो काव्यात्मक भाषा में गुथी हुई है. एक ऐसी खूबसूरत भाषा में लिखी गई कहानी है जो दुर्भाग्य से इधर की हिंदी कहानियों में कुछ कम ही दिखाई देती है.

‘प्रलय में नाव’ मेरी दृष्टि में हिंदी कथा साहित्य की एक असाधारण उपलब्धि है. जिस तरह से तरुण भटनागर ने इस कहानी को अपनी अद्भुत संवेदनात्मक ज्ञान से एक नया विस्तार दिया है वह उनके भीतर की विचार प्रक्रिया को भी जानने-समझने का अवसर देती है.

इस अर्थ में वे हिंदी के उन कुछ एक लेखकों में से हैं जिनके यहां कहानी अपने होने को चरितार्थ ही नहीं करती है,  हमारे समय और संसार के साथ संवाद करती हुई उससे मुठभेड़ करने का यत्किंचित साहस भी करती है.

‘प्रलय में नाव’ मुक्तिबोध की किसी महान फैंटेसी की तरह यथार्थ के एक बीहड़ प्रदेश में प्रवेश करने का जोखिम उठाती है. बिना किस्सागोई को आहत किए हमारे समय के जटिल यथार्थ के भीतर धंसने का उपक्रम करती है. एक विराट फैंटेसी के बहाने मनुष्य और समूची सृष्टि की चिंता करती हुई उसे हर कीमत पर बचा ले जाने की जिद करती है.

‘तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड’ देश और काल का अतिक्रमण करने वाली वैश्विक संवेदना की कहानी है. इसकी पृष्ठभूमि यूरोप है पर इस कहानी की संवेदना देश और काल से परे एक गहरी मानवीय चिंता से प्रतिश्रुत है.

यह कहानी बुडापेस्ट या शायद एम्सटर्डम या शायद किसी अन्य यूरोपीय शहर की कहानी है. यह क्रिस्टीना नामक एक छियासी वर्षीय वृद्ध महिला की कहानी है जो अपने घर में एकाकी जीवन व्यतीत कर रही है.

वह एक दिन अपने घर में गिर पड़ती है और उसके सिर से खून बहने लगता है. वह यहां-वहां फोन लगाने की कोशिश करती है. कैफेटेरिया में बैठे हुए स्टीव नामक एक नवयुवक को फोन लग जाता है. वह वृद्धा मदद के लिए उससे गुहार लगाती है. स्टीव तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड के माध्यम से उस वृद्धा को किसी तरह ढूंढ कर बचा लेता है.

यह पूरी कहानी जिस तरह से बुनी गई है वह लेखक के लेखकीय कौशल को उद्घाटित करता है. एक विदेशी मनोभूमि की कहानी को एक सुंदर शिल्प और भाषा में भरपूर किस्सागोई के साथ कहना कोई कम मुश्किल या चुनौती भरा कार्य नहीं है. लेकिन तरुण भटनागर जिस सहजता के साथ इस कहानी को अंत तक निभा ले जाते हैं यह उनकी सबसे बड़ी खूबी है.

यह कहानी अपनी पूरी बनावट और बुनावट में हिंदी की एक असाधारण कहानी है. आम कहानियों से अलग हटकर अलग तरह की भाव संवेदना को चित्रित करने वाली एक स्मरणीय कहानी.

तरुण भटनागर की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे अपनी कहानियों के साथ पूरी तरह से न्याय करते हैं. कहानी के साथ अपने ट्रीटमेंट में वे बेहद संजीदगी और अपार धैर्य का परिचय देते हैं. वे बहुत सूक्ष्मता के साथ अपनी कहानियों को धीरे-धीरे बुनने में विश्वास करते हैं ताकि कथ्य, शिल्प और भाषा के रंग उसकी पूरी चटकता के साथ कहानी में खिल उठे.

‘रात की बारहखड़ी’ कहानी कोरोना महामारी के दौरान एक निम्न-मध्यवर्गीय दंपत्ति की कहानी है. यह एक ऐसे चोर की कहानी है जो भूखा रहने पर उस नव-दम्पत्ति के यहां रात में घुस जाता है. बात पुलिस तक पहुंच जाती है, पर घनश्याम और सुमन यह समझ चुके थे कि वह कोई भूखा प्यासा और किस्मत का मारा मजदूर है जो उनके घर खाने की तलाश में घुस आया था. उन्हें चोर पर दया आती है.

कहानी की अंतिम पंक्तियों में सुमन के बारे में लेखक कहते हैं ‘किचन का प्लेटफार्म साफ करने से पहले पल भर को सुमन ने उस पर बिखरी दाल, रोटी के टुकड़े और छलक कर गिरा दूध देखा था. वह इतना भूखा था कि एक बार में ही सब कुछ निगल जाना चाहता था.’

कोरोना जैसी विश्वव्यापी आपदा पर और इसके फलस्वरूप हमारे देश के हजारों लाखों मजदूरों के साथ जो बीती उस सबको, हिंदी कहानी और कविता में जिस तरह से दर्ज किया जाना चाहिए था जाहिर है वैसा कुछ नहीं हुआ.

तरुण भटनागर की यह कहानी बिना किसी शोर-शराबे के, बिना किसी अतिरिक्त आग्रह या दुराग्रह के चुपचाप मजदूरों की पीड़ा और तकलीफ को हमारे सामने रख देती है.

इस संग्रह की एक अन्य कहानी ‘कातिल की बीबी’ का यह शीर्षक थोड़ा चौंकाता है. पर यह कहानी मानवीय संवेदना और करुणा की कहानी है. एक स्त्री के भीतर अपनी जैसी एक दूसरी स्त्री के प्रति कातर करुणा की कहानी है. अपने ही पति के कातिल के बीबी के प्रति अपार करुणा से भरी हुई मार्मिक कहानी.

तरुण भटनागर के यहां जीवन को देखने-समझने और उसे आत्मसात करने की बहुविध चेष्टाएं दिखाई देती है. वे चरित्रों को जाने किन-किन मुहानों और अदृश्य गलियों से निकाल लाने वाले लेखक हैं जो उन चरित्रों को अपनी कहानियों में मनुष्य की संवेदना के मूर्त प्रतीक में रूपांतरित कर देते हैं.तरुण भटनागर कई बार अपनी इस तरह की कहानियों से पाठकों को विस्मित कर देते हैं. वे जैसे अपनी कहानियों के माध्यम से जीवन की लय और खुशबू को एक साथ हमारी एक रस और बंजर होती जा रही अनुभूति की मरूभूमि में बिखेरने के कौशल में पारंगत हैं.

इस कहानी से गुजरते हुए कमोबेश हम यही पाते हैं. वे नफरत के बरक्स मोहब्बत का फलसफा रचते हैं. कठोरता की जगह कोमलता का एक नया राग छेड़ते हैं. कहना न होगा उनकी यह अनेक अर्थों में एक सुंदर कहानी है जिसे तरुण भटनागर जैसा कोई लेखक ही लिख सकता था.

तरुण भटनागर की छोटी-छोटी कहानियां भी अपने कथ्य, शिल्प और अपने अभिप्राय में जीवन की विसंगतियों को जिस रूप में अभिव्यंजित करती हैं वह उनकी कहानियों के वैशिष्ट्य को प्रदर्शित करती हैं.

इस संग्रह की पहली ही कहानी ‘जंगल में चोरी’ बस्तर के आदिवासियों के दुख द्रारिदय, उनकी निर्धनता और भोलेपन को जिस तरह से अपने वृतांत में रचती है, वह देखने योग्य है. किशोर और सोमारू सीमेंट के गोदाम में एक अंधेरी रात में घुसकर सीमेंट के बोरे से सीमेंट निकाल कर खाली बोरे की चोरी इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास ओढ़ने और बिछाने के लिए कुछ भी नहीं है.

ठेकेदार के पुलिस में रिपोर्ट करने पर पुलिस यह समझ नहीं पाती है कि चोरी का केस दर्ज करें तो कैसे करें. चोर सीमेंट को गोदाम में फेंककर खाली बोरा ही चुरा कर ले गए हैं. उन चोरों को तो यह भी नहीं पता कि सीमेंट क्या होता है.

यह साधारण सी कहानी बस्तर के आदिवासियों के दुख-दर्द और अथाह शोषण की कहानी है. बमुश्किल चार पृष्ठों में सिमटी हुई यह कहानी बस्तर की बदरंग और स्याह तस्वीर को प्रस्तुत करती है. ‘जंगल में चोरी’ इस संग्रह की अर्थगर्भित और एक मार्मिक कहानी है.

बस्तर पर समय-समय पर अनेक लेखकों ने कहानियां लिखी है पर तरुण भटनागर की यह कहानी उन सभी कहानियों से अलग एक प्रभावशाली कहानी है.

इस संग्रह की अन्य कहानियों में ‘जख्म ए कुहन’, ‘महारानी एक्सप्रेस’, ‘चित्र पर थरथराती उंगलियां’ उल्लेखनीय कहानियां हैं.

तरुण भटनागर की कहानियों के विषयवस्तु में वैविध्य है. वे हर कहानी में जैसे अपनी पूर्ववर्ती कहानी के प्रभाव से बाहर निकलकर एक अलग और दुर्गम कथा क्षेत्र में जाने का प्रयास (शायद सही शब्द हठ) करते हुए दिखाई देते हैं. इसलिए उनकी कहानियों में एकरसता नहीं विविधता है.

वे जैसे जीवन और प्रकृति के सारे रंगों को विषयवस्तु के अनुरूप अपने वृतांत के केनवास में रंगना जानते हैं. उनके यहां विषयवस्तु ही नहीं शिल्प और भाषा के भी अनेक शेड्स, अनेक लैंडस्केप अपने अलग-अलग जादू बिखेरते हुए दिखाई देते हैं.

तरुण भटनागर का यह कथा संग्रह हिंदी कथा साहित्य के बदलते हुए परिदृष्य का द्योतक है. इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक की चुनौतियों और संकटों को ये कहानियां एक अलग तरह से दर्ज करने का जोखिम उठाती हैं. कथा के नए भूगोल में प्रवेश करने का साहस दिखाती हैं.

पुस्तक: प्रलय में नाव
लेखक : तरुण भटनागर
प्रकाशक: आधार प्रकाशन प्रा. लि. पंचकुला (हरियाणा )
मूल्य: 150 रुपए

रमेश अनुपम
ई मेल : 1952rameshanupam@gmail.com

Tags: तरुण भटनागर
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Comments 2

  1. Sanjeev buxy says:
    4 years ago

    तरुण भटनागर की कहानी प्रलय में नाव जब पहली बार छपी थी तब ही पढ़कर मैं काफी प्रभावित हुआ था। इसे मैंने विनोद कुमार शुक्ल जी से भी चर्चा करके उन्हें पढ़वाया था। उनको भी यह कहानी विशेष रूप से बहुत पसंद आई और उन्होंने तरुण भटनागर को फोन करके इसकी बधाई भी दी। रमेश अनुपम ने इस कहानी पर लिखते हुए जो कहा है वह अपने आप में इस कहानी के लिए पूरी तरह से न्याय पूर्ण है। तरुण भटनागर को इसके लिए बहुत-बहुत बधाई व साधुवाद समालोचन को यहां समीक्षा और कहानी देने के लिए भी साधुवाद

    Reply
  2. Anita Rashmi says:
    3 years ago

    महत्वपूर्ण कहानियों से युक्त पुस्तक की सारगर्भित समीक्षा।

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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