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समालोचन

Home » रील वाली लड़की : रश्मि शर्मा

रील वाली लड़की : रश्मि शर्मा

रील आज महामारी की तरह है. जो संक्रमित हैं उनमें से अधिकतर इसके वाहक बन जाते हैं और यह बढ़ता जाता है. ये अधिकतर भ्रष्ट, अविवेकी और कुरुचिपूर्ण सामग्रियों से भरी हैं. हल्की चीजों की विशेषता ही यही है कि अगर उन्हें आप बार-बार देखते हैं तो वे अपनी जगह बना लेती हैं. इस गरीब देश के करोड़ों लोग आज निष्क्रिय उपभोक्ता में बदल गये हैं. रश्मि शर्मा की इस कहानी की नायिका इसके चपेट में आ जाती है पर इसे लेकर उसके अंदर एक ऊहापोह की स्थिति आखिर तक बनी रहती है. विषय हमारे आज के जीवन से जुड़ा है. रश्मि शर्मा ने नायिका के मनोभावों को कुशलता से उकेरा है. अतत: क्या होता है? या कुछ होता भी है कि नहीं, इसे तो आप यह कहानी पढ़ कर ही जान पायेंगे. प्रस्तुत है.

by arun dev
March 5, 2025
in कथा
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रील वाली लड़की : रश्मि शर्मा
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रील वाली लड़की
रश्मि शर्मा 

वह अनमनी सी बालकनी में खड़ी होकर आते-जाते लोगों को देखती रही. कुछ देर यूं ही खड़ी रहने के बाद वापस कमरे में आई और मोबाइल उठा लिया. खाली समय में यही करती है वह. कभी फेसबुक, कभी इंस्टाग्राम में जाकर स्क्रॉल कर तमाम तरह के रील देखती रहती है.

शादी विवाह के चुहल भरे गीत से लेकर रसोई में सीझते पकवानों तक के चलचित्र उसकी उँगलियों के पोर को छूते ही सजीव हो उठते हैं. चमत्कारी बाबाओं के करतबों से लेकर खूबसूरत साध्वियों के दिव्य वचनों तक पल भर ठिठकी नहीं कि कब घंटे दो घंटे हवन की समिधा की तरह स्वाहा हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता. क्या बड़े क्या बच्चे, उसे यह जताना नहीं भूलते  कि ‘तुम तो दिन रात रील में ही लगी रहती हो!’

एक दिन तो हद ही हो गई- लाइक, कमेन्ट और शेयर के कई हजारी आंकड़ों को देख उसकी उँगलियों ने एक पोस्ट को चटकाया ही था कि एक छरहरी काया वाली सुदर्शना अपनी कामुक आवाज़ के साथ कमरे में दाखिल हो गई. वह खुद को एक प्रोफेशनल सेक्सोलॉजिस्ट बता रही थी. वह सकते में आ गई. बिजली की गति से उसने स्क्रीन चेंज किया.

भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि उस दिन तरुणाई की दहलीज पर खड़ा उसका बेटा दूसरे कमरे में था. उसने राहत की सांस ली, जैसे एक बड़ी दुर्घटना होते-होते बच गई हो. उस दिन के बाद बिना इयर फोन के वह अकेले में भी कोई रील नहीं देखती है.

जब से उसे यह पता चला है कि एक घरेलू सी दिखती औरत ने रील की कमाई से 22 लाख रुपये की गाड़ी खरीद ली है, वह उसके सारे रील खोज-खोज कर देख लेना चाहती है. उसके रीलों की रीच, लाइक और कमेंट देखकर वह दंग है. कुछ भी तो आकर्षक नहीं है इन रीलों में, न खुद उसमें. उसकी रोजमर्रा की ज़िंदगी को उसका पति ही र‍िकार्ड करता है और पोस्‍ट करता जाता है. कभी वो सब्‍जी बना रही, कभी बच्चों को खाना ख‍िला रही. कभी गोलगप्‍पे खा रही. वह सोच-सोच कर हैरान है कि क‍िसी की पर्सनल लाइफ को क्‍यों देखते हैं लोग.

वैसे देखने को तो वह सबकुछ देख लेती है, पर उसे सबसे ज्‍यादा मजा आता है डांस की रील देखकर. ऐसी किसी पोस्ट को देख कुछ देर के ल‍िए जैसे अग-जग सब भूल जाती है वह. किसी स्वचालित मशीन की तरह उसके कदम स्वतः ही उनके फुट स्‍टेप्‍स कॉपी करने की कोशिश करने लगते हैं. बचपन में उसे डांस सीखने का बहुत शौक था. पर पिता ने कभी इसकी इजाज़त नहीं दी. उनकी नज़र में भले घर की लड़कियों को यह शोभा नहीं देता था. तब मन मसोस कर रह गई वह और इस सपने को अपनी शादी होने तक के लिए स्थगित कर दिया. वह चाहती थी उसकी संतान बेटी हो और उसे वह नृत्य की विधिवत शिक्षा दिलाए. लेकिन विधाता ने यहाँ भी उसका नहीं सुनी और उसे बेटे की माँ बनाया. किंचित निराशा के बाद उसने एक दिन स्कूल के डांस टीचर से बात की कि वे उसके बेटे को कथक सिखाएँ. बेटे ने कथक की क्लास में जाना तो शुरू किया लेकिन कुछ ही दिनों बाद उसने जाने से मना कर दिया था- ‘सब मुझे लड़की कह कर चिढ़ाते हैं.’

डांस वाली रीलें देखते हुए उसकी आँखों में बचपन का वह सपना फिर-फिर मचलने लगता है. इस रील को वह लगातार अठारहवीं बार देख रही है. हर बार उसे लगता है कि वह इससे बेहतर नाच सकती है.

जब से उसने इस लड़की की रील देखी है, वहीं अटक-सी गई है. उसी के बराबर की होगी. खूबसूरत और स्लीम, कॉटन की साड़ी, पल्लू सामने की तरफ कुछ यूं समेटे हुए कि क्लीवेज झलक पड़े और बैकग्राउंड में लता की आवाज में पारसमणि फिल्म का गाना– ‘हँसता हुआ नूरानी चेहरा’. उस लड़की ने गाने की शास्त्रीयता में मादकता की ऐसी छौंक लगाई है कि लाइक-कमेन्ट धड़ाधड़ ऐसे आ रहे जैसे भारी बरसात में आकाश से ओले बरसते हैं.

पता नहीं क्‍या हुआ क‍ि वह आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई. उसने अपना पल्लू किनारे किया और ब्‍लाउज की नेक में उभर आये क्लीवेज देखकर खुद पर ही मोहित हो गई. भीतर कहीं गुमान मिश्रित कामना की कलियाँ चटकीं.अगर उस सिंकिया-सी लड़की की रील पर इतने कमेंट आ सकते हैं तो मेरी रील पर.

कल्पना में डूब कर देखा उसने खुद को. नींबूई पीले कलर की शिफान की साड़ी में नृत्यमग्न है वह. कुछ कदम आगे जाने के बाद पीछे मुड़ते हुए कांधे से पल्लू सरक गया है और वह बड़ी अदा से उसे उठाती है. उसके बाएं पैर का पंजा जरा-सा उठा हुआ है और वह बल खाते हुए सामने आ रही है.

आज वह रुकेगी नहीं, एकदम नहीं. भीतर कोई पंछी अपने पंख फड़फड़ा रहा है. स्वयं पर नियंत्रण की सीमा टूटती जा रही है. उसने झटके से उठकर आलमीरा खोला और शिफ़ान की वही पीली साड़ी तलाशने लगी. हाँ, वही रंग पहनना है उसे. बहुत खिलता है यह रंग उस पर. अच्छा है कोई नहीं है अभी घर में. खुद से लड़ते हुए जाने कब से रील बनाने का सोचती रही है, कई बार तो ट्रायपॉड पर मोबाइल भी सेट किया, लेकिन कुछ है उसके भीतर. शायद भय. शायद संकोच. जिसके आगे हर बार हार जाती है. लेकिन आज जैसे वह उन सारे भावों से बाहर आ चुकी है. सैकड़ों की संख्या में रील बनाने वाली लड़कियों और औरतों के उत्साह उसके पैरों को पंख बनाए दे रहे हैं.

उसने साड़ी निकाल ली है. अब वह ब्लाउज- पेटीकोट में आईने के सामने खड़ी है. एक नज़र उसने खुद को निहारा और सिर्फ ब्लाउज-पेटीकोट में साड़ी ड्रेपिंग वाली कितनी सारी रीलें उसके दृष्टि पटल पर तैर गईं. उसे अपनी बचपन की सहेली की मां याद आई, जो गर्मियों की दोपहर में इसी परिधान में मिलती थी. तब उन्हें देख झिझक से भर जाती थी वह. लेकिन उम्र का लिहाज ही था कि उनसे कह नहीं पाई कभी कुछ. उसने फिर-फिर खुद को निहारा है. वर्षों पुरानी उस झिझक का उसके चेहरे पर आज कोई नामोनिशान तक नहीं है.

वह मेकअप बाक्‍स न‍िकालकर ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ गई. क्लीनजिंग म‍िल्‍क से चेहरा साफ करते हुए उसने महसूस किया बहुत हुई सबकी चिंता, उसे थोड़ा अपना भी ध्यान रखना चाहिए. शादी के चौदह साल हो गए, आज तक अनुज को समझ नहीं पाई वह. अपनी फ़ीमेल कुलीग से लेकर दूर की भाभियों तक के सजने सँवरने की तारीफ करते नहीं थकता, लेकिन उसके चेहरे पर लगी फाउंडेशन की हल्की सी परत भी उसे पसंद नहीं आती. किसी पार्टी-फंक्शन या घूमने के लिए घर से निकलते हुए मेकअप और ड्रेसिंग सेंस के नाम पर अक्सर उनकी लड़ाइयाँ हो ही जाती है.

लेकिन आज वह उन सारी चिकचिक से मुक्त है. फाउंडेशन, आई शैडो, मस्‍करा, ब्‍लशर, ल‍िपस्‍ट‍िक. सब कुछ अपने मन का. शिफ़ान की प्‍लेन ट्रांसपरेंट साड़ी के अंदर से झांकता प्र‍िंटेड ब्‍लाउज. बड़ी ननद के बेटे के रिसेप्शन में पहनने के लिए कितने शौक से बनवाया था उसने इसे. लेकिन वी नेक और डीप बैक को देख अनुज एकदम से भड़क गया था. ‘यदि यही पहनकर जाना है तो तुम अकेली ही चली जाओ’. कुछ स्मृतियों के निशान मन से कभी नहीं जाते. उसने  खुद को बरजा. यह सब याद करके अपना मूड नहीं खराब करना है उसे.

ड्रांइग रूम के कोने में उसने ट्राईपॉड सेट क‍िया और टेबल ख‍िसका कर डांस मूवमेंट के ल‍िए थोड़ी जगह बनाई. बैकग्राउंड के लिए एक पसंदीदा म्‍यूज‍िक लगाया. गाने पर डांस स्‍टेप्‍स शुरू ही क‍िया था क‍ि उसे ख्याल आया रील के ल‍िए शायद प्री लोडेड गाना ही बेहतर हो, लेकिन कोई बात नहीं. फुट मूवमेंट के ल‍िए तो गाना बजाना ही होगा.

म्यूजिक प्लेयर से आती आवाज़ कमरे में तैरने लगी थी- ‘तेरे-मेरे होठों पे, मीठे-मीठे गीत मितवा’.उसने सोचा, दस बाई बारह के इस कमरे में इस गाने पर डांस का मजा नहीं आएगा. इसके लिए तो खुली वादिया होनी चाहिए. उसने पीछे की दीवार पर लगी पेंटिंग और ड्रेसिंग टेबल पर बिखरे मेकअप के सामानों पर एक नजर डाली और गाना चेंज किया- ‘मन क्यूँ बहका रे बहका आधी रात को’. उत्सव फिल्म के इस गीत में तैयार होती रेखा का मादक सौन्दर्य उसे हमेशा से लुभाता है. लगभग नृत्यविहीन उस गाने में कुछ ऐसा है जिसे देखते-सुनते हर बार उसका मन मयूर नाचने को व्यग्र हो उठता है. गीत के बोल के साथ उसके कदम भी बहक रहे हैं. उसकी भंगिमाओं में उसकी सारी दमित कामनाएँ उतरती जा रही हैं.

मोबाइल स्क्रीन पर अपना वीडियो देखते हुए उसे यकीन नहीं हो रहा कि यह वही है. काजल, लाइनर और मस्‍करे से सजी आमंत्रित करती आँखें. खुद को देखकर खुद की ही आँखें ठगी सी जा रही हैं. लगभग पाँच मिनट के विडियो से एक मिनट की क्लिप निकालते हुए उसने सोचा, रील की लंबाई इतनी ही होनी चाहिए कि देखने वाले की प्यास बनी रहे.

फ़ेसबुक पर रील पोस्ट करते हुए सुगंधा का द‍िल जोर-जोर से धड़कने लगा है. पता नहीं कैसी प्रत‍िक्र‍िया मिलेगी. जाने क‍ितने लाइक, क‍ितने कमेंट. क्षण भर को अनुज का चेहरा भी कौंधा, उसने देखा तो कैसे रिएक्ट करेगा. शेयर नाउ का बटन दबाते हुए उसने अपनी उँगलियों में एक खास तरह की कंपन महसूस की, जिसमें भय संकोच और पुलक सब शामिल थे.

एक मिनट.
दो मिनट.
तीन म‍िनट.

कोई लाइक नहीं, कोई कंमेंट नहीं.कोई व्‍यू नहीं.

कुछ देर पहले का उत्साह अचानक से ठंडा पड़ गया है. मायूस-सी हो आई सुगंधा खुद ही खुद को सांत्वना दे रही है. कौन-सी सेल‍िब्र‍िटी है वह क‍ि लोग पोस्‍ट करते ही कूद पड़ें उसकी रील पर.वह खुद भी तो किसी की पोस्ट पर मुश्किल से लाइक-कमेन्ट करती है. अपने आने का बिना कोई सुराग दिए चुपचाप लोगों के पोस्ट देखने की कला सिर्फ उसे ही तो नहीं आती.

उसकी हर पोस्ट पर नजर गड़ाए बैठी रहनेवाली अनुपमा ने तो अबतक जरूर देख लिया होगा. पर वह बोलेगी कुछ नहीं. आये दिन उसके पोस्ट की नकल करती रहती है. कोई पोस्ट डालो नहीं कि दूसरे-तीसरे दिन ठीक उसी तरह के पोस्ट डालेगी. कविताई और फोटोग्राफी से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था उसका, लेकिन फ़ेसबुक पर उसकी नकल कर-कर के कवि और फोटोग्राफर बन गई है. यहाँ लाइक-कमेन्ट करे न करे, कल परसों वह पक्का कोई डांस रील डालेगी.

यहाँ कंटेन्ट की क्वालिटी से किसी को कोई मतलब नहीं, सब लेनदेन का मामला है. इतनी नेटवर्किंग उसके वश की बात नहीं. खैर, इतने दिनों से सोचती रही थी, आज कम से कम.

खुद को समझाने की सारी कोशिशें नाकाम हुई जाती हैं. न‍िराशा का कोहरा उसके इर्द गिर्द तैरने लगा है. कुछ देर यूं ही रहा तो वह पोस्ट की प्राइवेसी सेटिंग बदलकर ‘ओनली मी’ कर देगी.

उसने नेट का कनेक्शन चेक किया. यहाँ भी तो कोई दिक्कत नहीं. उसकी मायूसी कुछ और गाढ़ी हुई जाती है. बेचैनी में उसने रिफ्रेश का बटन दबाया.

20 लाइक, आठ कमेंट और 79 व्यूज़. खुशी से उछल पड़ी सुगंधा. बचपन में सीखा ऐकिक नियम याद हो आया. पांच म‍िनट में इतने लाइक, कमेन्ट व्यूज तो पांच घंटे में?

मोबाइल को सोफे पर फेंक वह जैसे थ‍िरक उठी. हर नोटिफिकेशन की टन्‍न आवाज के साथ उसकी खुशी बढ़ती ही जा रही थी.

‘कितनी खूबसूरत.’
‘लगता है भगवान ने आपको फुर्सत से बनाया है.
‘वाउ. आप कमाल लगती हैं.’
‘क‍ितना सुंदर गाना है.’

हर कमेंट के साथ उसके चेहरे की चमक कुछ और बढ़ जा रही थी. लड़के-लड़कियाँ, बूढे- अधेड़. सब कुछ न कुछ ल‍िख रहे थे. कमेंटस से कई गुणा ज्यादा लाइक और उससे भी ज्यादा व्यूज. अनुपमा ऑन लाइन थी पर उसके होने का कोई सबूत उसकी रील पर नहीं था.. सुगंधा को विश्वास था, वह व्यूज की संख्या में जरूर शामिल होगी.

‘अब तक कहाँ छुपा रखा था यह सौंदर्य. सुगंधा कमेंट करने वाले को पहचानने की कोश‍िश करने लगी. जरूर कोई पर‍िच‍ित ही होगा तभी न.

‘सो सेक्‍सी’ इस कमेन्ट को देख वह सहम सी गई थी कि तभी किसी ने लिखा- ‘मन तो मेरा भी बहक रहा है. नंबर मिलेगा?’ इससे पहले कि घरवालों या रिश्तेदारों की नजर पड़े, उसने घबराकर दोनों कमेन्ट ड‍िलीट कर दिये.

अनुज बिजनेस टूर पर बरेली गये हैं. कल शाम तक लौटेंगे. उनकी बहन का घर वहीं है और स्कूल में छुट्टियां चल रही हैं इसलिए बेटा रोहन भी बुआ के घर चला गया है. वह हफ़्ते भर बाद आयेगा. इसलिए उसके पास पूरा समय है. इस बीच वह आराम से दो तीन और रील बना लेगी और एक-एक कर पोस्‍ट करेगी. लोग तो जाने कैसी-कैसी रीलें बनाते हैं. लेकिन वह सिर्फ डांस वाले रील ही बनाना चाहती है. मन ही मन पसंद के गानों को दुहराती है. उनके अनुकूल फुट स्टेप्स की कल्पना करती है. उसे अभी जो भी गाने याद आ रहे, सब में कपल डांस है. उसकी निगाहों में कई पति पत्नी के जोड़े कौंध गए जो एक साथ रील बनाते हैं. हर रोज नई रील अपलोड करते हैं. वह तो अनुज के साथ ऐसा कुछ करने का सोच भी नहीं सकती. उसके द‍िल में एक कसक-सी हुई. काश वह भी अनुज के साथ. वैसे अनुज और उसके बीच रिश्तों में कोई कड़वाहट नहीं है, पर उन दोनों की रुचियाँ बिल्कुल अलग हैं. डांस सुगंधा का पहला प्यार है, पर अनुज नाचना तो दूर कमर तक नहीं ह‍िला सकता. फैमिली गैदरिंग में भी जब सब खूब मस्ती कर रहे होते हैं, वह एक किनारे खड़ा रहता है. सुगंधा चाहकर भी सबके साथ शामिल नहीं हो पाती, उसे अनुज को कंपनी देनी पड़ती है.

उसे कॉलेज की फ़ेयरवेल पार्टी की याद हो आई. रोहित के साथ कितनी देर तक डांस किया था उसने. गजब की केमिस्ट्री थी उन दोनों के बीच. कॉलेज के बाद कुछ साल तो उनके बीच फोन-मेसेज का आदान प्रदान होता रहा, लेकिन जाने कब- कैसे वह सिलसिला एकदम से टूट ही गया. जाने वह कहाँ है आजकल. बहुत दिनों से फ़ेसबुक पर भी नहीं दिखता है. क्या वह भी कभी उसे याद करता होगा?

गुनगुनाती शाम रात में तब्दील हो गई. आज वह पूरे तौर पर अकेली है. न उसे क‍िसी के देखे जाने का भय है न ही रसोई में कुछ बनाने का दबाव. आज ड‍िनर में उसने मैगी ही खाया. सारे समय वह फोन पर च‍िपकी रही. कभी फेसबुक, कभी इंस्‍टा तो कभी यू ट्यूब. बीच-बीच  में गूगल भी खंगालती रही. इस तरह मन ही मन लोगों की पसंद और ट्रेंड्स का विश्लेषण करते हुए हर पाँच मिनट के बाद रील पर बढ़ रहे लाइक, कमेन्ट को भी देख आती.

इसी खोजबीन के दौरान सुगंधा की नजर ‘ओनली फैंस’ पर गई. यह एक एडल्‍ट और सबक्र‍िप्‍शन बेस्‍ड साइट है जहाँ वीडियो देखने के ल‍िए पैसे देने पड़ते हैं. यहाँ कोई भी व्यक्ति अपना अकाउंट बना सकता है. अच्छी कमाई भी कर सकता है, बस उसे बालिग होना चाह‍िए. सुगंधा ने सोचा, यहाँ लोग यूजर नहीं, कंज्यूमर हैं या फिर सप्लायर. फैन्टेसी के इस बाजार में कोई सप्लायर कब स्वयं एक प्रॉडक्ट में बदल जाता है, उसे नहीं पता चलता. प्रॉडक्ट, यानी उत्पाद यानी माल.

सुगंधा ने काला जैकेट पहना है और वह बहुत अदा से लहरा रही है. उसके बाल खुले हैं. हाथों में झिल्‍लीदार दस्‍ताना है लाल रंग का और ठीक वैसी ही जुराबें. शोख लाल ल‍िपस्‍ट‍िक में लिपटे होंठ अंगारे से दहक रहे हैं. नकली आई लैशेज से सजी आंखें जाने किस विश्वामित्र का तप भंग करने को आतुर दिख रही हैं. वह एक खास अदा के साथ पीछे चलकर जाती है और पुनः आगे की ओर लौटते हुए अपना जैकेट उतार कर दर्शकों की तरफ उछाल देती है. लोग शोर मचा रहे हैं. वह लाइव स्‍ट्रीम पर है.

सुगंधा बिस्तर पर बैठी हुई लंबी-लंबी सांसे भर रही है. उसका चेहरा पसीने से तर है. हाथ बढ़ाकर उसने टेबल से बॉटल उठाया, गटागट पानी पीया और पंखे का रेग्युलेटर पाँच पर कर दिया.

सुबह जरा देर से उठी. दुबारा सोने के बाद भी उसे रील के ही सपने आते रहे. कभी वह छतरी लेकर पानी में भीग रही है, तो कभी छोटे से स्‍कर्ट में क‍िसी डैम साइड में है और ‘जरा सा झूम लूं मैं.’ गाने पर डांस कर रही है. नहीं-नहीं. वहाँ तो काजोल है ज‍िसकी सांवली थाई पर पानी की बूंदें सरक रही हैं. अपने सर पर हल्‍की-सी थाप मारी उसने. एक अनजान सा नशा अब भी उसे अपनी गिरफ्त में लिए हुए है. उनींदी आँखों से उसने फोन उठाया और कल के पोस्‍ट पर नजर डाली. अब 268 लाइक और 2 हजार व्‍यू है.

सुगंधा बिस्तर से खिड़की तक आई. पिछले कुछ महीनों से उसे ठीक से नींद नहीं आती. कई बार सारी-सारी रात खुली आँखों में बीत जाती है और सुबह बिस्तर से हिलने का मन नहीं करता. जमीन पर पैर रखते ही तलवे में एक अजीब सी चुभन महसूस होती है. पर आज वैसा कुछ भी नहीं हुआ. उसके पैर जैसे हवा में तैर रहे थे. उसने खिड़की पर फैले परदे को एक किनारे समेट दिया. अपने दोनों हाथ खोलकर हवा में पंख की तरह फैलाए और आँखें बंद कर अपने भीतर उतर आई चंचल चिड़िया को महसूस करते हुए सहज ही कमरे में उड़ने सी-लगी. ‘पंछी बनी उड़ती फिरूँ मस्त मगन में, आज मैं आजाद हूँ दुनिया के चमन में.’

आज का सूरज और दिनों से ज्यादा चमकदार था. उसे याद नहीं इतनी सुहानी सुबह इससे पहले कब आई थी. उसने सोचा, आज वह कल से और बढ़‍िया रील बनाएगी.

शार्टकट में घर के काम निबटाने के बाद एक बार फिर वह आलमीरे के सामने खड़ी है. बहुत सोचकर उसने लाल साड़ी और हरा ब्‍लाउज न‍िकाला. हालांक‍ि उसे पीला ब्‍लाउज पहनने का मन था, क्‍योंक‍ि इस गाने में वही पहना था माधुरी दीक्ष‍ित ने. मगर कल ही पीली साड़ी में उसने रील बनाया था, इसल‍िए उसने लाल रंग चुना. मराठी स्‍टाइल में लांग वाली साड़ी बांधी, और ऊपर एक बार फिर से वी गले का ब्‍लाउज. बरबस ही उसकी नजर अपनी क्लीवेज की तरफ गई और अकेले में ही थोड़ी सकुचा सी गई. उसे कवर करने के ल‍िए मटरमाला निकाला और साथ में सुनहले स्‍टोन एवं मोती से बना ब्राहमी नथ.

पहले उसने कुछ सेल्फ़ी लिए. ट्रायपॉड पर मोबाइल फिक्स किया और खुले लहराते बाल और बदन में गजब की लोच लिए थिरक उठी.. “हमको..आजकल है इंतजार..कोई आए ले के प्‍यार.”

तीसरी बार में वह संतुष्ट हुई. एक बार उसके स्‍टेप्‍स गलत हो गए और एक बार उसका आँचल खिसक गया था.

रील पोस्ट करने के लिए शेयर नाउ का बटन दबाते हुए उसने फिर अपनी उँगलियों में एक कंपन महसूस किया था. लेकिन यह कल के कंपन से बहुत अलग था. आज इसमें सिर्फ पुलक थी. भय और संकोच के रंग कर्पूर की तरह हवा हो उठे थे.

आज लाइक कमेन्ट देखने के लिए दो पल का अभी इंतजार नहीं करना पड़ा. जैसे ही मोबाइल रिफ्रेश किया कमेन्ट किसी बरसाती फूल की तरह खुद ब खुद उसकी स्क्रीन पर खिलने लगे.

आज की रील पर पहला कमेंट.- ‘सुपर-डूपर डांस’ चौड़ी सी मुस्कराहट ख‍िल उठी उसके चेहरे पर.

‘अमेजिंग…लुकिंग सो प्र‍िटी’ इस कमेंट पर दिल का निशान बनाते हुए सुगंधा को जैसे खुद पर ही प्‍यार आने लगा.

‘बहुत सुंदर एक्‍प्रेशन’
‘ब्‍यूटीफूल मूव्‍स..यू ऑसम’
‘ब्‍यूटीफूल वीडि‍यो ड‍ियर’
‘गाना मस्‍त है और डांस भी’
‘एकदम माधुरी लग रही हो..रोम -रोम नाच रहा है तुम्‍हारा’
‘आई जस्‍ट लव योर डांस’

नई रील पर महुआ की तरह टप-टप गिर रहे हैं कमेन्ट. दो पढे नहीं कि चार और हाजिर. पढ़ नहीं पा रही, ज‍ितने कमेंटस आ रहे. शुरू में तो धैर्य से एक-एक कमेन्ट पढ़ती रही सुगंधा, यथा संभव जवाब भी दिए. पर थोड़ी ही देर बाद धैर्य जवाब दे गया उसका. हर कमेन्ट का जवाब देना संभव नहीं. कुछ कमेन्ट तो ऐसे भी हैं, जिस पर जवाब सूझते भी नहीं. अब वह सब को लाइक किए जा रही है. बीच में किसी परिचित का नाम दिखा तो उस पर दिल के निशान. कुछ देर बाद वह उठी और खुशी से नाचने लगी. जैसे एक जमाने में कैडबरी के विज्ञापन वाली लड़की नाचती थी.

उसके पास फ्रेंड र‍िक्‍वेस्‍ट की भरमार हो गई है. हर उम्र के लोग उसकी दोस्ती के लिए लालायित हैं. खुशी से ज्यादा विक्टरी के अहसास से भरी है वह. उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे.

उसने इनबाक्‍स खोलकर देखा. किन्हीं सुनील का मैसेज है- ‘अब तो हमें आपके हर पोस्‍ट का इंतजार रहेगा. जब भी आप कोई रील अपलोड करें, मुझे लिंक जरूर शेयर कर दीज‍िएगा. मैं एक भी पोस्‍ट म‍िस नहीं करना चाहता.’

छोटी बहन लता का मैसेज– ‘वाउ दीदी.. तुम तो छा गई. अब सारी दुन‍िया को पता लेगा क‍ि मेरी बहन कितनी अच्‍छी डांसर है.’

स्‍कूलमेट दिव्या- वाह सुगंधा! तुम अब भी इतना अच्‍छा डांस कर लेती हो. तुममें इतने सालों बाद भी कोई चेंज नहीं है.’

ऐसे ही न जाने क‍ितने मैसेज से उसका इनबाक्‍स पटा हुआ था.

सुगंधा को लगा जैसे अब उसके जीवन में सेरोटोन‍िन और डोपामाइन की कोई कमी नहीं नहीं रह गई है. सालों का अकेलापन खुद-ब-खुद छँटा जा रहा है. इनबॉक्स बंद करते हुए उसकी नजर गई. पिछले आधे घंटे में उसे 25 नए फ्रेंड र‍िक्‍वेस्‍ट आ गए हैं. वह बाद में चेक करेगी इनको. बिना देखे-समझे किसी का फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं लेगी वह. बचपन से  स्थगित सपना कभी इस तरह साकार हो उठेगा, उसने नहीं सोचा था. उसकी खुली आँखों में कुछ और सपने जगमग करने लगे हैं. उसने अपना यू ट्यूब अकाउंट खोल लिया है. खूब कमाई हो रही है. देखते ही देखते वह हाउस वाइफ से सेलिब्रेटी हो गई है.

बाहर रोशनी कम होने लगी थी. लगभग सारा दिन कैसे गुजर गया, उसे पता ही नहीं चला. हड़बड़ा कर वह उठी, कपड़े बदले, मेकअप हटाया और घड़ी पर नजर डालते हुए चाय की एक प्‍याली लेकर सोफे पर बैठ गई. एक बार से वह लाइक, कमेन्ट व्यूज के गणित से खेल रही है. अनुज आता ही होगा. उसने एहतियात से नोट‍िफ‍िकेशन ऑफ कर दिया. वह नहीं चाहती क‍ि आते ही अनुज का ध्‍यान उसके रील्‍स पर जाए.

जैसे ही डोरबेल की आवाज आई, सुगंधा ने झट फोन को टीवी कैब‍िनेट के पास ऐसे रख द‍िया जैसे बहुत देर पहले से उसे छुआ न गया हो. उसने मुस्‍कराते हुए दरवाजा खोला. अनुज की नजरें एक पल के ल‍िए सुगंधा के चेहरे पर ठहरी फ‍िर वह टाई की गांठ ढीली करता हुआ अंदर आ गया. लैपटॉप बैग टेबल पर रखा और सीधे फ्रेश होने के ल‍िए बाथरूम घुस गया.

सुगंधा जब रसोई से बाहर आई तो उसके हाथ में दो कप चाय और स्‍नैक्‍स था. टॉवल से मुंह पोंछता हुआ अनुज उसकी ही तरफ गौर से देख रहा था.

सुगंधा का द‍िल बहुत जोरों से धड़कने लगा. कहीं अनुज ने रील देख तो नहीं ली. नहीं, इनके फेसबुक, इंस्‍टाग्राम अकाउंट तो लगभग डेड से पड़े हैं, महीनों देखते तक नहीं. हो सकता है क‍िसी र‍िलेट‍िव ने फोन पर बता दिया हो. जरूर बरेली वाली ननद ने बताया होगा. वही सारा द‍िन फेसबुक पर पड़ी रहती हैं. आज ही ब्‍लॉक करती हूं. द‍िल्‍ली वाली जेठानी को भी ब्‍लॉक करना होगा. नहीं तो वह इनके साथ-साथ सास-श्‍वसुर के भी कान भर देगी. नहीं-नहीं. ब्‍लॉक किया तो तुरंत फोन आ जाएगा उनका. प्राइवेसी सेटिंग में जाकर उनको रीस्ट्रिक्ट करना ज्यादा अच्छा रहेगा, ताकि उनको मेरी पोस्‍ट द‍िखे ही नहीं. फिलहाल अनुज की निगाहों को देखकर ठीक-ठीक समझ नहीं आ रहा कि क्या चल रहा इनके दिमाग में.

“आज बहुत खुश लग रही हो. कुछ खास बात है क्‍या?”

“नहीं तो, आप समय से आ गये, इसलिए खुश हूं.“

अनुज चुपचाप बैठा रहा. और द‍िनों की तरह न उसने टीवी ऑन क‍िया न कुछ और पूछा. सुगंधा ही पूछती रही क‍ि कैसा रहा ट्र‍िप. किससे मुलाकात हुई. रोहन तो अपने कज़िन से मिलकर बहुत ख़ुश होगा वहाँ. वह अनमना सा हाँ-हूं में जवाब दे रहा था.

सुगंधा का असमंजस और बढ़ा जा रहा था. वैसे पता भी चल गया है उन्हें तो क्या हुआ. उसने रील ही तो बनाई है, कोई क्राइम थोड़े किया है. उन्हें तो पता ही है कि वह फ़ेसबुक पर है. अब कोई वहाँ हैं तो पोस्ट भी डालेगा ही न. उसे तो ऑफिस और टूर से ही फुरसत नहीं होती. बेटा सारा दिन स्कूल. खाली समय काटने के ल‍िए वह रील बना रही तो क्‍या बुरा है इसमें. अनुज को पता है कि कॉलेज में उसके डांस की क‍ितनी तारीफ होती थी. उसके फन की उन्हें कभी कोई कद्र ही नहीं रही.

अनुज कुछ पूछे या कहे, उसके पहले अपने सारे जवाब और तर्क मन ही मन तैयार कर रही है सुगंधा. डिनर की तैयारी करते हुए भी उसके द‍िमाग में केवल रील ही घूम रहा है. अब तक तो लाइक का आंकड़ा सौ से हजार में पहुँच चुका होगा. नए कमेन्ट की कल्पना करते हुए मन ही मन मुदित हुई जा रही है…पर न चाहते हुए भी फोन से दूर है. अपनी तरफ से कोई सुराग नहीं देना चाहती वह.

अचानक अनुज की आवाज आई है- “सुगंधा. अपना फोन देना जरा!

वह एकदम डर गई. सच में अनुज को पता चल ही गया लगता है. पोस्‍ट पर आ रहे कमेंट भी पढ़ ही चुका होगा. हालांकि जो भी कमेंट थोड़े हल्के किस्म के थे, उन्हें ड‍िलीट करती गई थी वह. कुछ लोगों को सच में अपनी बात कहने का शउर नहीं होता. कुछ तो इनबॉक्स में ऐसे करीबी बनने लगते हैं जैसे कब के पड़ोसी हों.

“क्‍या करना है मेरे फोन का.” सुगंधा किचन से बाहर आई.

“तुम्‍हारा फोन नहीं देख सकता हूं क्‍या..?” अनुज की आवाज़ में घुले रोष को खूब पहचानती है वह. बिना किसी बाहरी प्रतिरोध के उसने मोबाइल उन्हें पकड़ाया और बगल में चुपचाप बैठकर त‍िरछी न‍िगाहों से देखने लगी क‍ि आख‍िर अनुज उसके फोन में क्‍या देख रहा है. वह मन ही मन प्रार्थना कर रही है कि अनुज कहीं इनबॉक्स न खोल ले.

जब उसने देखा क‍ि अनुज ने यूनो खोल रखा है तो उसकी जान में जान आई. वह र‍िलैक्‍स होकर बैठ गई. सोचा, पहली फुर्सत में ही वह इनबॉक्स खाली करेगी और कुछ र‍िश्‍तेदारों को ब्‍लॉक भी. कुछ देर अकाउंट चेक करने के बाद अनुज ने फोन वापस दे द‍िया उसे और टीवी ऑन कर ली.

कुछ देर तक तो वह अनुज के साथ टीवी स्‍क्रीन पर नजरें ट‍िकाए रही, फ‍िर ऐसे जताया क‍ि उसका टीवी देखने में मन नहीं लग रहा और वह टाइम पास के ल‍िए मोबाइल उठा रही है. हालांकि उसका सारा ध्‍यान उसी पर था. क‍ितने लोग अब तक देख चुके उसका डांस, कौन शेयर क‍िया. क‍िसने क्‍या ल‍िखा. इनबॉक्स में क‍िसी ने ऐसा-वैसा मैसेज न भेजा हो..

वह अपनी जेठानी की फ़ेसबुक वॉल पर गई. उसे देखकर हंसी आई क‍ि उसने अभी जो लेटेस्‍ट प्रोफ़ाइल फ़ोटो लगाई है, ठीक उसी की कॉपी है. वैसे ही खुले बाल और क‍िनारे से दि‍खता चेहरा. ब्‍लॉक करने से तो बवाल हो जाएगा.

‘अरे सुगंधा. किसने क‍िया तुम्हारा मेकअप. और ये डांस कहीं सीख रही हो? देवर जी से पूछकर तो रील बनाया है न!’ उसके कानों में जेठानी रीता की आवाज गूंजने लगी. उसकी जुबान से तो तारीफ के दो बोल कभी फूट ही नहीं सकते. बस उलाहनाने और श‍िकायत. शुक्र है, रील पर उनके आने की कोई निशानी नहीं है. सुगंधा ने प्राइवेसी सेटिंग में जाकर उसे रीस्ट्रिक्ट करते हुए सोचा, यदि उसने चुपचाप देख लिया हो तो. उसके भीतर कलह की एक नई आशंका ने सर उठाया, पर सुगंधा की उँगलियाँ रुकी नहीं. तब की तब सोचेंगे.

सास को इन सबसे मतलब नहीं. छोटी ननद से उसकी ठीक-ठाक बनती है. वह जरूर साथ देगी उसका. बल्‍कि उसे भी साथ-साथ रील बनाने को कहेगी वह. तब शायद अनुज को भी कुछ बोलते नहीं बनेगा.

डिनर के दौरान भी अनुज का चेहरा थोड़ा तना सा रहा. टमाटर की मीठी चटनी के साथ आलू के पराठें वे शौक से खाते हैं. पर आज हमेशा की तरह थोड़ा और चटनी डालने को नहीं कहा. वह समझ नहीं पा रही कि अनुज तनाव में है या खुद उसका ही तनाव उसकी आँखों के रास्ते उन दोनों के बीच उतर आया है.

टूर से लौटने के बाद अमूमन अनुज जल्दी सोते हैं. पर आज तब से टीवी के आगे बैठे हैं. वह भी वहीं बैठी है, मगर जबतक वह सो नहीं जाते वह मोबाइल को हाथ नहीं लगाना चाहती.

अनुज ने अबतक कुछ कहा नहीं यानी उसे उसकी रील के बारे में कुछ नहीं पता.

अनुज चुप है यानी वह नाराज़ है, यानी उसने सब देख लिया है.

सुकून और आशंका के दो पलड़ों में झूल रही है सुगंधा. सामने पड़ा मोबाइल बुला रहा है उसे. कब से वह बाथरूम जाना चाह रही, लेकिन खुद को रोक रखा है. कहीं उसी बीच अनुज ने उसकी मोबाइल देख ली तो.

________

रश्मि शर्मा
राँची (झारखण्ड)

एक दशक तक सक्रिय पत्रकारिता करने के बाद अब पूर्णकालिक रचनात्मक लेखन एवं स्वतन्त्र पत्रकारिता. कविता-संग्रह ‘नदी को सोचने दो’, ‘मन हुआ पलाश’ और ‘वक्‍त की अलगनी पर’ प्रकाशित. ‘बंद कोठरी का दरवाज़ा’ तथा ‘सपनों के ढाई घर’ कहानी संग्रह प्रकाशित. सी.एस.डी.एस. नेशनल इन्क्लूसिव मीडिया फेलोशिप (2013) प्राप्त.

rashmiarashmi@gmail.com

Tags: 20252025 समीक्षारश्मि शर्मारील बनानारील वाली लड़की
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Comments 20

  1. Oma Sharma says:
    4 months ago

    हमारे समय और उसके आस पास की व्यापतियों को रश्मि जी ने अंतरंगता से उकेरा है। एक आयाम को स्वर दिया है। अच्छी रचना।

    Reply
  2. प्रियंका परमार says:
    4 months ago

    घरवालों के द्वारा जिन स्त्रियों की सहज मानवीय इच्छाओं तक को दमित किया गया है और जिनको सीमित एक्सपोजर मिला है, उनके जीवन में मोबाइल-इंटरनेट-सोशल मीडिया ने क्या असर डाला है, इसका बढ़िया बयान है कहानी में। रील्स देखने और खुद रील्स बनाना शुरु करने के बाद सुगंधा के मन और व्यक्तित्व में घटित हुआ कोई नकारात्मक बदलाव कहानी में नहीं आया है। खुद को मिल रही तारीफों से वह खुश है। उसकी झिझक उसके पति और रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया को लेकर है, जो उसकी परिस्थिति में स्वाभाविक है। उसकी कहानी अपने लिए द्विधारहित मन से कुछ करने की स्वतंत्रता चाहने की ओर है। उम्मीद है अगली किसी कहानी में आगे की बात भी होगी।

    Reply
  3. एकांकिनी वैष्णव says:
    4 months ago

    वह स्वतंत्र होकर भी पराधीन है, अपनें एक एक पल, स्वप्न को जीने के लिए दूसरों की अनुमति की आवश्यकता हर समय की स्त्री को पड़ेंगी।

    Reply
  4. रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' says:
    4 months ago

    उच्चकोटि की मनोवैज्ञानिक कहानी। गहरा कथ्य, नवीनता लिये हुए.

    Reply
  5. जय। माला says:
    4 months ago

    एक आम स्त्री के जीवन में खींची गई लक्ष्मण रेखा के भीतर का भय, झिझक और अंगड़ाई लेता अधूरे स्वप्न की मुकम्मल कहानी ! बहुत बहुत बधाई रश्मि जी !

    Reply
  6. Anonymous says:
    4 months ago

    एक बहुत ही शानदार समकालीन कथा जिसमें वर्तमान दौर की उन स्त्रियों की प्रतिनिधित्व करती एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो अपने ना पूरा हुए ख्वाबों को पूरा करने के लिए आतुर है और उसे रेल्स के रूप में उन ख्वाबों को पूरा करने का एक माध्यम मिलता है लेकिन साथ ही उससे जुड़ी हुई परेशानियां और कठिनाइयां भी समझ दिखाई पड़ती हैं की संदर्भ में लेखिका की सबसे बड़ी सफलता यह है कि उसने उसे स्त्री के भीतर चल रहे समस्त मनोभावों का बहुत ही सटीक चित्रण किया है और उससे भी बड़ी बात यह है कि इस पूरी कथा में एक रोचक परवाह है और कोई भी पाठक इसे एक सांस में बड़े बगैर इस कथा से है ही नहीं सकता इस कहानी को पढ़ाते हुए में लगातार यह सोच रहा था की लेखिका इस कहानी का अंत कहां करेगी आर्य पर दोनों ही स्थिति में अंत में बहुत अच्छी बात निकाल कर सामने नहीं आती इसलिए लेखिका ने इस कहानी को बिल्कुल बीचो-बीच में ना और ना पर ऐसी स्थिति में लाकर अंत कर दिया है इसके बाद की जो कहानी है वह पाठक खुद कल्पना कर लेगा ऐसा सोचकर बहुत ही शानदार कहानी इन दोनों पड़ी हुई बहुत ही अच्छी कहानियों में से एक बहुत-बहुत आभार बहुत-बहुत बधाई लेखिका को इस कथा के लिए

    Reply
  7. राजीव थेपड़ा says:
    4 months ago

    बहुत ही अच्छी कथा “रील वाली लड़की”! आज के परिवेश को देखकर लिखी गई एक सच्ची कहानी, जो एक ऐसी स्त्री के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने कभी अपने सपने पूरे करने चाहे थे, लेकिन नहीं कर पाई थी ।और उसे वर्तमान परिदृश्य में उन सपनों को पूरा करने का एक अवसर दिखाई पड़ता है, लेकिन साथ ही उस अवसर के अपने घात प्रतिघात भी दिखाई देते हैं। और इन्हीं सबके बीच अपनी उधेड़बुन में डोलती, अपने पति की इच्छाओं को ध्यान में रखकर अपनी इच्छा पर काबू रखने का प्रयास करती और साथ ही अपने सपनों के पीछे भागते रहने का यह अंतर्द्वंद बहुत ही अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है इस कहानी में ।
    सबसे बड़ी बात है कि इस पूरी कहानी में एक रोचक प्रवाह है । धाराप्रवाहत्मकता है, जिसने पाठकों को आदि से अंत तक बांधे रखा है और कोई भी पाठक इस कहानी को यदि एक बार पढ़ना शुरू करता है, तो वह अंत तक पढ़ें बगैर उसे पढ़ना नहीं छोड़ सकता । यह कहानी की लेखिका की बहुत बड़ी सफलता है और इसके लिए उन्हें बहुत-बहुत बहुत बधाई बहुत-बहुत शुभकामनाएं और उनके भविष्य में इसी प्रकार बढ़ते रहने की मंगल कामनाएं

    Reply
  8. Sudershan Ratnakar says:
    4 months ago

    नारी कीं मनोस्थिति का बहुत सुंदर च। आज भी उसकी इच्छाओं की पूर्ति उसके पति और परिवार पर निर्भर करती है। वह पंख फैलाए भी तो कैसे?

    Reply
  9. रत्ना रॉय says:
    4 months ago

    मैं जब भी reels देखती हूँ उसमें लोगों (महिलाओं ) को कहीं भी नाचते, कपड़े उतारते हुए वीडियो बनाते देखती हूँ ती हमेशा यही सवाल मन में उभरता है कि ऐसा वीडियो बनाते हुए उनके मन में क्या रहता है या उनके घरवाले कैसे रियेक्ट करते हैं.
    मैं खुद भी सोशल मिडिया पर वीडियो पोस्ट करती हूँ लेकिन मेरा प्रोफेशन ही फोटो वीडियो मिडिया से जुड़ा है तो अपना और मेरे जैसे प्रोफेशनल्स के काम और विचार को समझ सकती हूँ लेकिन आज आपकी कहानी पढ़ कर उनकी मनोस्थिति भी कुछ हद तक समझ पायी जिनके बारे में मैं सोचा करती थी.
    सुगंधा बदलाव के रास्ते किस किस पड़ाव से गुज़री ये जानने का कौतुहल कम नहीं हो रहा.
    कहानी आगे बढे तो अच्छा ही रहेगा 👍🏾
    शुभकामनायें 😊

    Reply
  10. Vijay Joshi says:
    4 months ago

    अद्भुत खूबसूरती से बयां किया है इस दौर की सोशल मीडिया की मोह माया का संसार, जिसका न ओर है और न छोर। माया महा ठगिनी हम जानी। सत्य संवार कर सबके समक्ष सराहनीय प्रस्तुति। हार्दिक बधाई : सादर विजय जोशी🌷👍🏾
    – शौहरत की भूख हमको कहाँ ले के आ गयी
    – हम मोहतरम हुए भी तो किरदार बेच कर

    Reply
  11. डॉ शत्रुघ्न पांडेय says:
    4 months ago

    जीवन के आपाधापी के बीच खुद को रील के माध्यम से अपनी छवि देखने वाली एक औरत की मनोदशा का बेहतरीन चित्रण रश्मि शर्मा जी ने किया है। भावों की अभिव्यक्ति अंत तक पाठकों को बांधे रहती है। बिना खत्म किए पाठक इसे बीच में नहीं छोड़ सकता। इस लेखन के लिए रश्मि जी को बधाई।

    Reply
    • विनीता बाडमेरा says:
      4 months ago

      बहुत ही अच्छे विषय को लेकर लिखी गई है यह कहानी। रश्मि जी ने जिस तरह परत-दर-परत कहानी को लिखा है कितनी ही गांठें खुल कर सामने आई है।
      रश्मि जी को एक बेहतरीन कहानी के लिए बधाई।

      Reply
  12. Sachidanand Singh says:
    4 months ago

    कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी.

    Reply
  13. Sudesh says:
    4 months ago

    “रील वाली लड़की” – सुगंधा के अंतर्द्वंद्व और आत्म-अन्वेषण की कथा

    रश्मि शर्मा की कथा “रील वाली लड़की” सिर्फ सोशल मीडिया और रील्स की लत पर टिप्पणी नहीं है, बल्कि इसकी नायिका सुगंधा के भीतर दबी इच्छाओं, आत्म-अन्वेषण और स्वीकृति की जटिल यात्रा को गहराई से उकेरती है। यह कहानी सुगंधा के मनोवैज्ञानिक ताने-बाने को बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है—बचपन के दमन से लेकर अधूरे सपनों तक, पति की असंवेदनशीलता से आत्म-सजगता तक और समाज की आलोचना से आत्म-स्वीकृति तक।

    सुगंधा के लिए रील्स का आकर्षण सिर्फ एक डिजिटल लत नहीं, बल्कि उसकी दबी इच्छाओं और अधूरे सपनों का आईना बन जाता है। जो जीवन उसने कभी खुलकर नहीं जिया, वह इन छोटी-छोटी वीडियो क्लिप्स में कहीं न कहीं उसे खुद को महसूस करने का अवसर देता है। लेकिन क्या यह वास्तविक स्वतंत्रता है, या सिर्फ एक भ्रम?

    कथा का अंतिम भाग विशेष रूप से प्रभावशाली है, जहां उत्साह और हताशा के बीच झूलती सुगंधा खुद को सांत्वना देने की कोशिश करती है, लेकिन भीतर ही भीतर स्वीकृति की लालसा से मुक्त नहीं हो पाती। यह आधुनिक जीवन की उस विडंबना को उजागर करता है, जहां डिजिटल दुनिया हमारी व्यक्तिगत भावनाओं और सामाजिक समीकरणों को बदल रही है।

    रश्मि शर्मा की लेखनी का सौंदर्य उनकी सूक्ष्म दृष्टि, सहज प्रवाह और सुगंधा जैसे किरदारों के मनोवैज्ञानिक यथार्थ के गहरे चित्रण में निहित है। साधारण घटनाओं के माध्यम से स्त्री-मन की जटिलताओं को प्रस्तुत करने की उनकी कला उन्हें विशिष्ट बनाती है।

    “रश्मि जी, आपकी यह कथा केवल एक स्त्री के डिजिटल युग में उलझे जीवन की झलक भर नहीं, बल्कि सुगंधा के भीतर दबी आकांक्षाओं और समाज के अदृश्य नियमों से जूझने की सशक्त अभिव्यक्ति है। आप जिस तरह से मनोवैज्ञानिक गहराई को शब्दों में ढालती हैं, वह पाठक को भीतर तक छू जाता है। आपकी लेखनी संवेदनशील भी है और धारदार भी—कहीं यह आत्म-स्वीकृति की यात्रा लगती है, तो कहीं सामाजिक व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी। गजब की बुनावट, बेहतरीन प्रस्तुति! 👏🔥”

    Reply
  14. Vimal Chandra Pandey says:
    4 months ago

    अच्छी लगी! क्लाइमेक्स में कुछ प्रतीक्षित रह जाता है, लगता है जैसे कुछ फटेगा कहीं लेकिन ठीक है ये भी कि एक पल रुका हुआ है

    Reply
  15. विनय सौरभ says:
    4 months ago

    उन स्त्रियों के बारे में सोचता हूं जो रील की दुनिया में बेधड़क , बेखौफ लगातार आती दिखती हैं! अपने को बहुत भद्दे तरीके से प्रदर्शित करते हुए उनका आत्म विश्वास हैरत में डालता है। वे असंख्य हैं इंटरनेट की दुनिया में ! हमेशा यह ख्याल आता है कि कौन है ये स्त्रियां ? क्या इनका कोई परिवार नहीं ? क्या उनके पति या भाई नहीं होंगे ? क्या रिश्तेदारों से खाली है उनकी जिंदगी ? क्या उनके भीतर कोई संकोच नहीं उभरता होगा ?

    समालोचन मैं पिछले दिनों पढ़ी हुई रश्मि शर्मा की कहानी में उन स्त्रियों के उस अंतर्द्वंद्व को समझने की कोशिश की गयी है।
    कथा नायिका रील की दुनिया में आकर जिस संकोच के घेरे में खुद को पाती है, उसमें यह दिख रहा है कि उसके अंदर एक भय है। थोड़ा संकोच है। थोड़ा उहापोह है। वह डरी भी है, लेकिन उसके आकर्षण से मुक्त भी नहीं है । रील की सफलता के किस्से उसे लुभा रहे हैं। यह कहानी सही जगह‌ पर आकर खत्म होती है। नायिका का अंतर्द्वंद्व पाठक के मन में ठहर जाता है। जो स्त्रियां इस संशय, संकोच, डर और द्वंद्व से निकल गयी हैं, वे निर्द्वंद्व भाव से मोबाइल की स्क्रीन पर चमक रही हैं।

    नायिका के उस मनोविज्ञान को कथाकार ने बहुत प्रमाणित तरीके से प्रस्तुत किया है। तेजी से बदलती हुई दुनिया में नये विषय पर यह कहानी याद में बनी रहेगी।

    Reply
  16. अनामिका प्रिया says:
    4 months ago

    रश्मि शर्मा की यह कहानी कई पहलुओं को छूती है। समाज का एक बड़ा तबका रील बनाने वाली लड़कियों को मानसिक रूप से बीमार बता रहे हैं। विवेकहीन और दिशाहीन घोषित ये लड़कियां आखिर किस सामाजिक और मानसिक परिवेश से आती हैं! किन मनुस्थितियों के बीच रील बनाने की यात्रा शुरू होती है, इसका बड़ा सहज और मनोवैज्ञानिक चित्र इस कहानी में मिलता है। दूसरों को रील बनाता देखकर कैसे संक्रमित होती हैं, किन मानसिक द्वंदूों से गुजरती है, इसको रश्मि ने बखूबी रखा है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर इस कहानी को पढ़ाते हुए लगा कि यह अस्तित्वहीन होती स्त्री की कहानी भी है। अपने वजूद को खोने और पाने का संघर्ष भी है

    Reply
  17. नीरज नीर says:
    4 months ago

    बहुत ही सामयिक पर अछूते विषय को उठाती यह कहानी वास्तव में वर्तमान समय की असंख्य स्त्रियों की कहानी है। सामाजिक वर्जनाओं और लांछनाओं की परिधि को व्यतिक्रमित करके आज स्त्रियाँ अपने मन की कर लेना सीख रही है, लेकिन वर्षों की पराधीनता एवं परनिर्भरता से उपजी सीमाओं की वजह से जिस द्वन्द्व का सामना वह करती है, उसका बहुत ही सुंदर चित्रण इस कहानी में रश्मि ने किया है।

    Reply
  18. डॉ विनय कुमार पाण्डेय says:
    3 months ago

    वर्तमान युग के यथार्थ के आकर्षक चित्र प्रस्तुत कर रही रश्मि शर्मा की कहानी रीलवाली लड़की। भाषा, भाव, चरित्र चित्रण, कंथ्य संयम आदि सभी दृष्टिकोण से अत्यंत उत्कृष्ट रचना के लिए लेखिका को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    Reply
  19. Rakesh Bihari says:
    3 months ago

    स्वप्न, भय और संकोच के रसायन से निर्मित सुगंधा का चरित्र हमारे समय और समाज से इतना आबद्ध है कि उसकी छवि में अपने आसपास की सुगंधाओं को सहज ही पहचाना जा सकता है। कहानी में घटनाएं बहुत तेजी से घटती हैं। स्वप्न और उपलब्धि जैसे शब्दों के अर्थ आज कितने संकुचित हो गये हैं, इसे भी यहाँ महसूस किया जा सकता है। गोकि सुगंधा के मनोविज्ञान की निर्मिति में उसके अपूरित स्वप्नों की बड़ी भूमिका है, पर इस बात के भी कहानी में पर्याप्त संकेत हैं कि सुगंधा जैसे चरित्र एकरैखिक नहीं होते। इस तरह भूमंडलोत्तर समय की तीनों प्रमुख विशेषताएं- गति, संकुचन और फ्यूजन को इस कहानी के कथ्य, और कहन दोनों में साफ-साफ देखा जा सकता है। स्वप्न और महत्त्वाकांक्षा की बीहड़ में फंसा आज का व्यक्ति कभी उपभोक्ता, तो कभी आपूर्तिकर्ता तो कभी स्वयं ही उत्पाद बनने को विवश है। कहानी हमारे समय की इन जटिलताओं की तरफ इशारे तो करती है, लेकिन घटनाओं की तीव्र गति उसकी विडंबनाओं की अभिव्यक्ति में किंचित अवरोध भी पैदा करती है। गति हमारे समय का बड़ा सच है, लेकिन गति प्रदत्त जीवन की दुरभिसंधियों की पुनर्रचना के लिए संरचना में ठहराव और भराव की जरूरत भी होती है।

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