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समालोचन

Home » हसन रूबायत की कुछ कविताएँ

हसन रूबायत की कुछ कविताएँ

हसन रूबायत बांग्लादेश के समकालीन चर्चित युवा कवि हैं. उनके आठ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. कवि-अनुवादक अजीत दाश भी बांग्लादेश से हैं. पड़ोसी देश के साहित्यकार भी समालोचन से जुड़ रहे हैं यह सुखद है. हसन रूबायत की प्रस्तुत अधिकतर कविताओं में अलगाव की तड़प है. इस्लामी धार्मिक प्रतीकों के प्रयोग बहुधा हुए हैं. उनकी कविताओं को पढ़कर हिंदी के पाठक यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि बांग्लादेश की युवा कविता में किस तरह की प्रवृत्तियां आकार ले रहीं हैं.

by arun dev
May 9, 2023
in अनुवाद
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हसन रूबायत की कुछ कविताएँ
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हसन रूबायत की कुछ कविताएँ
बांग्ला से अनुवाद : अजीत दाश

मुसलमान का लड़का

1.

ईमान और कुफ़्र से दूर
एक वृक्ष खड़ा है

पक्षियों के सैनेटोरियम में फूल खिले हैं

ख़ाली मैदान में बूढ़ा आदमी
अपने वार्धक्य को देखते हुए सोचता है
ईमान और कुफ़्र से दूर सेमल का फूल
कितनी गहराई से खिला है लाल रंग में.

 

2.

उदास जीवन जीने के लिए
घर पर बैठा रहता हूँ
बाहर लगातार चीख रहें हैं फेरीवाले

दोपहर
कुछ लोग आयें हैं इस घर में
समाचार पत्र या किसी पत्रिका पर बातें कर रहें हैं

अमरूद के पत्ते आँगन में गिर रहें हैं
कितनी गहरी है यह दोपहर
जैसे मैं किसी खाली ट्रेन में बैठा हूं
और मेरा जीवन बहुत सारे टिकट चेक करने वालों से घिरा है.

 

3.

मैं तुम्हारा इस तरह इंतजार करता हूं
जैसे नमाज़ पढ़ने वाली माँ के बगल में खड़े उसके बच्चे करते हैं

 

4.

नन्हें परिंदों की तरह
बह रही है हवा
आज कहीं कोई नहीं है
तुम्हें नहीं बताया शायद

यह जाती हुई दोपहर
किसी पुलिया की तरह वक्र है
और तुम्हारा लौट आना
बुख़ारी की आख़िरी हदीस की तरह हसीन.

 

5.

दुपहर गुज़र गयी
पर तुम नहीं लौटी

चींटियाँ पीठ पर धूप लिए जा रहीं हैं
अंधेरी गुफाओं में

तुम्हें बुलाते हुए रोज एक
हरसिंगार खिलता है

 

6.

तुम्हारा चले जाना
सूरह बक़रह की तरह

लम्बा है.

 

7.

तुम तनहाई में खड़े हो
कहीं
दूर गुलमोहर का वृक्ष
लहूलुहान हो रहा है अकेला

जीवन से भाग रहा हूँ मैं
जैसे कोई भागता फिरता है पुलिस से

 

8.

कोई पक्षी मर जाए कहीं तो
मैं लिख लेता हूँ
हर रात ट्रेन से कोई न कोई उतरता है

शिरीष के पत्ते
जीवन के पास दहक रहें हैं
इंसान ऐसा ही है

जंगल से गुज़रते हुए
खुद को जंगल समझ लेता है.

 

9.

सड़क पर चलते हुए
तुम पीछे मुड़कर देखते हो
पूरी शाम ढल जाती है किसी गुलमोहर के ऊपर
फिर
कहीं कुछ नहीं
सिर्फ सब्र
मकतब में रहने वाला बच्चा
जैसे जुमे के इंतज़ार में हो.

 

10.

मुझे तुम्हारी
सादगी पसंद है
जिस तरह
मकतब का बच्चा
फ़ज्र की नमाज़ में
सो जाता है

_____

संदर्भ
कुरान के बाद इस्लामी कानून पर सबसे विश्वसनीय पुस्तक
.पैग़म्बर मुहम्मद साहब के कथनों, कार्यों या आदतों का वर्णन करने वाले विवरण
बक़रह कुरान की सब से बडी सूरह (अध्याय) है  

 

अजीत दाश (जन्म: 1989) बांग्लादेश की नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-अनुवादक हैं. अनुवाद की दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. ajitmitradas@gmail.com 

Tags: 20232023 अनुवादअजीत दाशइस्लामबांग्ला कविताबांग्लादेशमुसलमानहसन रूबायत
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Comments 11

  1. मृदुला says:
    4 weeks ago

    समालोचन पर मेरी पढ़ी अब तक की ये श्रेष्ठ रचनाएँ हैं। कवि को सेल्यूट।

    Reply
  2. Aishwarya Mohan Gahrana says:
    4 weeks ago

    साधारण बिंबों का असाधारण पर सरल प्रयोग

    Reply
  3. आमिर हमज़ा says:
    4 weeks ago

    हसन रुबायत को पहली मर्तबा पढ़ा। यों आज इस क्रम में दरअस्ल कई-कई मर्तबा पढ़ा। कविताएँ सुंदर हैं यह तो नहीं कहूँगा। मेरा ख़याल है कविता के लिए सुंदर लफ़्ज़ का इस्तेमाल कविता की समझ से दूर ले जाता है। ये ‘ठहर’ की नज़र से देखी गई कविताएँ हैं। ये मुसलसल भीतर पैदा होते जाते ख़ालीपन की नज़र से देखी गई कविताएँ हैं। कहीं कोई जल्दी नहीं। निज़ार कब्बानी का कहा याद आता है—‘अदब सब्र की कोख से जन्म लेता है।’ यह अच्छा लगा कि हसन रुबायत के पास इस ज़रूरी सब्र की समझ है। इन कविताओं और इनके लिखने वाले से हिंदी पाठकों का परिचय कराने के लिए अनुवादक अजीत दाश और अरुण देव जी का बहुत शुक्रिया…!

    Reply
  4. Anonymous says:
    4 weeks ago

    हसन रुबायत की कविताएँ गहरे तक उतरती हैं । बेहतरीन कविताएँ ।

    Reply
  5. नीलोत्पल says:
    4 weeks ago

    बहुत से बिंबों के माध्यम से कविताएं ने प्रतिमान गढ़ती है. कवि के जीवन में प्रेम, प्रकृति, उदासी के बहुत गहरे मायने है.
    शुक्रिया

    Reply
  6. कुमार अम्बुज says:
    4 weeks ago

    अच्छी कविताएँ हैं।
    कुछ नये रूपक।
    कुछ नये बिंब।

    Reply
  7. Shampa Shah says:
    4 weeks ago

    अहा! इतनी सादा उजास और उदासी लिए हुए ये कविताएं, किसी तरह के दिखावे से कोसों दूर☘️ शमशेर जी के शब्दों में–
    “इतना खफीफ़, इतना हलका, इतना मीठा
    उनका दर्द “☘️
    शुक्रिया अरुण देव जी और अजित दाश इस पडौस के कवि हसन रुबायत से मिलवाने के लिए☘️☘️☘️

    Reply
  8. M P Haridev says:
    4 weeks ago

    अरे वाह । इस्लाम के दायरे में और उससे बाहर निकलकर लिखी गयीं कविताओं ने नयी रंगत दी है । जैसे ‘चींटियाँ पीठ पर धूप लिये चलती हैं’
    ऐसा अहसास होता है कि कवि सड़क पर बने एक पुराने पुल की मेड़ पर बैठा वीरानी का मज़ा ले रहा है । यूँ ख़ालीपन लगता है लेकिन कविताओं ने ख़ालीपन के कैनवस पर रंग भर दिये हों । विश्वास नहीं होता ।

    Reply
  9. Tewari Shiv Kishore says:
    4 weeks ago

    युवा कवि हैं। आपके अनुग्रह से पहली बार मुलाकात हुई। धन्यवाद।
    बुखारी की हदीसें सबसे अधिक समादृत हैं। उनकी आखिरी हदीस के बारे में कहते हैं कि उसमें इस्लाम का सार है। यह सूचना पाठकों के लिए उपयोगी हो सम्भवतः।

    Reply
  10. Pankaj Agrawal says:
    4 weeks ago

    वाह! सुंदर

    Reply
  11. Anonymous says:
    4 weeks ago

    दिल को छू लेने वाली कविता।

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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