बिल्लियों के भी घर होते हैं शिल्पा कांबले मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा |
मेरी मौसी ‘हरियाली एकर्स’ के टॉप फ्लोर के एक फ़्लैट में रहती हैं और हम दादाजी के बालेवाड़ी मंदिर के निकट के घर में. घर हमारा चाल में स्थित है. हालाँकि उससे कुछ ज्यादा बनता बिगड़ता नहीं है क्योंकि मौसी के पास सुख सुविधाओं की जितनी भी चीजें हैं मसलन टीवी, फ्रिज, एसी, वाशिंग मशीन उन सभी चीजों से हमारा घर भी अटा है. मुझे मौसी के पति बेहद पसंद है. इसका यह मतलब कतई नहीं है कि मुझे वयस्क लोग पसंद हैं. मेरी माँ घर में सबसे बड़ी और मौसी सबसे छोटी हैं. यानी मेरी और मौसी की उम्र में महज़ दस वर्ष का अंतर है और उनके पति और मुझमें केवल बारह वर्षों का.
मैंने घर में पन्द्रह-बीस बिल्लियों को पाल रखा है, बस यही कारण है कि मेरी शादी नहीं हो रही है, ऐसा मेरा बड़ा मामा सोचता है. हमारा घर केवल 220 वर्गफुट का है और रिडेवलपमेंट में गया नहीं, इसलिए मेरी शादी नहीं हो रही है ऐसा मेरे पिताजी सोचते हैं. मैं तीस वर्ष की हो चुकी हूँ पर मम्मी की नज़र में अभी भी एक छोटी बच्ची ही हूँ. इसलिए उन्हें लगता रहता है कि साल-दो साल में जरूर मेरा विवाह तय हो जाएगा. पर जिस स्टाइल में मैंने उन्हें जीते हुए देखा है उसे देखकर तो लगता है कि वे ही मेरे सामने छोटी-सी बच्ची हैं. मेरे जॉब के पहले वे कभी होटल में भी नहीं गई थीं. पिज्जा, चीज़, हॉटडॉग खाने की चीजें हैं, ये उन्हें पता भी नहीं था. मैंने अपने मोबाइल के वीडियो भी उनसे छिपाकर रखे हुए हैं. हमारे इस छोटे से घर में मैंने कभी भी अपनी बिल्लियों को और पापा-मम्मी को सेक्स करते हुए नहीं देखा है. उन दोनों के बीच के नीरस और फीके रिश्ते को देखकर कई दफा मुझे आशंका होती है कि कहीं मेरा जन्म भी अमीबा, स्पायरागोरा आदि जीवों की भांति असेक्स्युअल तरीके से तो नहीं हुआ है!
हम मौसी के पति को काका कहते हैं. मज़े की बात देखिये कि पुराने इमरान हाशमी मतलब राजेश खन्ना को भी उसकी पीढ़ी के लोग काका कहते थे. टीवी पर उसकी फिल्में आते ही मम्मी हाथ का काम छोड़कर टीवी के सामने आ बैठती हैं. मैं अपने प्रेमी को भी प्यार से काका कहकर पुकारती हूँ. वह उम्र में मेरे पापा से दस वर्ष छोटा है. काका मेरे पुराने ऑफिस में मेरा बॉस हुआ करता था. उसने मुझे प्रपोज किया था उसके एक वर्ष बाद मैंने उसे हाँ कहा था. वैलेंटाइन डे के दिन उसने मेरी बिल्लियों के लिए एक आर्टिफिशियल घर बनाकर मुझे गिफ्ट किया था. और फिर मैं उसके साथ होटल गई थी. तब तक पसंद आने के बावजूद मुझे पाँच लड़के नकार चुके थे. उनके मना करने का कारण मैं ओवरवेट हूँ ऐसा मुझे लगता है.
तो बात यह थी कि टाउनसाइड के फाइव स्टार होटल में मैं पहली बार गई हुई थी. टेबल पर बड़ी प्लेट में भरकर सैंडविच रखे हुए थे. खाना देखते ही टूट पड़नेवाली मैं. फिर भी बहुत सारा ब्रेड बचा रह गया था. वहाँ पर सोने के लिए इतना बड़ा बेड था कि ऐसे बेड पर तो मेरे पापा, मम्मी, मैं और तो और मेरी सभी बिल्लियाँ सो लेतीं. फिर काका यकायक बेड पर पड़े-पड़े चद्दर लेकर बिलख-बिलखकर रोने लग गए. मैंने उनके सिर को सहलाते हुए उन्हें शांत किया. फिर वे सिसकते हुए ही मेरे क़दमों के पास उसी तरह से सो गए जैसे मेरी बिल्लियाँ सो जाती हैं. उनकी नींद पूरी होने तक मैं मोबाइल पर गेम खेलती रही.
उसके कुछ महीनों बाद काका की पत्नी ने ऑफिस में आकर बड़ा बखेड़ा किया. मुझसे बुरी तरह से उलझ पड़ी. तब तक काका की एक पत्नी है, उनका तलाक़ नहीं हुआ है, उनके बेटे की कालेज की पढ़ाई अधूरी है, काका की माँ को कैंसर है इन सभी को लेकर मैंने गंभीरता से सोचा ही नहीं था. उस बखेड़े के बाद मैंने जॉब छोड़ दी और मैं घर पर ही रहने लगी.
जब मेरा जॉब चल रहा था तब मैं अपनी बिल्लियों को समय नहीं दे पाती थी. मिनी, छुटकी, कटरीना, गोरी कटरीना, काली पिंकी, प्रियंका, इंग्लिस प्रियंका…मेरी बिल्लियों के ऐसे कई प्यारे-प्यारे नाम मैंने रखे हुए हैं. मजेदार बात यह है कि मेरी बिल्लियाँ केवल लड़कियाँ ही जनती हैं. इतने वर्षों में उनके एक भी बिल्ला नहीं पैदा हुआ है. इस वजह से मेरी बिल्लियों के सभी प्रेमी घर के बाहर ही मंडराते रहते हैं. कभी कभार वे किचन या बाथरूम की खिड़कियों से गुर्र-गुर्र की आवाज़ करते हुए भीतर आने की कोशिश करते हैं. तब मम्मी बड़ा-सा डंडा लेकर उन्हें भगाने के लिए इधर-उधर दौड़ती रहती हैं. बिल्ले डिस्कवरी चैनल के तेंदुओं की तरह होते हैं. थुलथुली मम्मी के वे कहाँ हाथ लगनेवाले हैं. वे हांफती हुई डंडा एक ओर रखकर बैठ जाती हैं. मम्मी का बिल्ले के पीछे इस तरह से भागने का एक कॉमेडी वीडियो मैंने शूट किया है. वह काका को इतना पसंद आया था कि वे खास मम्मी से मिलने हमारे घर आये थे.
मौसी के पति आज तक हमारे घर नहीं आये हैं. जब हमने पापा और मम्मी की वेडिंग एनीवर्सरी एक हॉल में मनाई थी तब वे आये थे. उन्होंने कोट पहना हुआ था जिस पर टाई बंधी हुई थी. और वे अपनी ऑडी कार से आये थे. चाल के सभी लोग आपस में कह रहे थे कि देखिये, इतना बड़ा आदमी है फिर भी झोपड़पट्टी में रहनेवाले रिश्तेदारों को भूला नहीं है! मेरी मौसी ने मुझे उस समय उसका एक काला गाउन जो उसे बहुत टाईट होता था, अल्टर कर मुझे पहनने के लिए दिया था. बाद में वह गाउन लेकर मैं काका के साथ गोवा घूमने गई थी. तब इतना सुनहरा मौका होने के बावजूद मैंने और काका ने बियर या वोदका को हाथ भी नहीं लगाया था. क्योंकि मम्मी ने मुझे सौगंध दिलाई थी कि वे मुझे गोवा जाने की अनुमति दे रही हैं पर इसका मतलब यह नहीं कि मैं वहाँ जाकर ऐसी-वैसी हरकतें करूँ. किसी भी हालत में शराब से दूर रहना होगा.
अगर मेरे पापा को लेडीज बार में जाने की आदत न होती तो आज हर हाल में हमारा अपना टू बीएचके का फ़्लैट होता जिसमें अटैच्ड टायलेट-बाथरुम होते. उस घर में मैं अपनी बिल्लियों के लिए टेरेस पर एक प्यारा-सा घर बना पाती और मेरी बिल्लियाँ यूँ अनाथों की तरह रास्ते पर सोने से बच जातीं.
मेरी डीपी में जो तस्वीर है वह हमारी मिनी बिल्ली की है. एक दिन दुपहरी में वह रास्ते पर शांति की नींद सो रही थी तभी एक गाड़ी उसके ऊपर से गुजर गई और वह वहीं पर चल बसी. तब उस एक्सीडेंट में उसके कुचले हुए मृत शरीर को देखकर मुझे पहली बार पता चला था कि सच्चा दुःख क्या होता है. मैं इतना रोई कि मेरा दम फूलने लगा था और मेरी साँसे अटक गई थी. पहले ही बढ़ चुके वजन की वजह से मेरा थायराइड बॉर्डरलाइन पर रहता है. सच कहूँ तो अगर काका मेरी ज़िन्दगी न होते तो मैं यह भयावह सदमा कभी झेल नहीं पाती. मिनी बिल्ली की इस असमय हुई मौत के बाद मैंने काका से शादी के लिए हाँ कह दी. मैंने जब घरवालों के सामने यह बात रखी तब अपना फैसला सुनाने में उन्हें दो दिन लगे थे. फिर जब मैंने सभी बिल्लियों को यह बात सुनाई तब वे सभी मेरे ससुराल जाने की बात सुनकर दु:खी होकर रोने लगे. मैंने उन्हें शांत करते हुए भरोसा दिलाया कि मैं तभी शादी करूँगी जब काका टेरेस-फ़्लैट खरीदेगा और टेरेस पर हमारी बिल्लियों के लिए आलीशान शेल्टर लगवाएगा.
काका अपने वादों को निभानेवाले इनसान है. उन्होंने मुझे अंधेरी से लाल कलर का स्लीवलेस ड्रेस खरीदकर दिया था. मेरे लिए उन्होंने स्मार्ट गियर की स्कूटर भी बुक कर दिया. हम दोनों फ्लाइट से छुट्टियाँ मनाने अंडमान-निकोबार गए. पर अब मैं समझ चुकी हूँ कि काका छोटे-मोटे वादे तो पूरे कर देते हैं पर बड़े वादें नहीं निभा पाते हैं. यह उनके बस की बात ही नहीं है. नोटबंदी के बाद उनकी नौकरी भी चली गई. इस उम्र में इन्टरव्यू आदि झमेले झेलने उनके लिए मुश्किल हैं, सो ऐसी किसी नौकरी की उम्मीद भी बेकार थी. पचास वर्ष के आदमी को बतौर सुपरवाइजर हम भी कभी अपनी कम्पनी में न रखें. इस दरमियान काका की पत्नी हमारे घर आई थी. अच्छा हुआ कि पापा घर पर नहीं थे. वरना वे बड़ा ऑकवर्ड फील करते. हार्टअटैक आने के बाद वे हर शाम घूमने जाते हैं. मम्मी ने काका की पत्नी के लिए चाय बनाई. ऊपर से पोहों का भी इंतजाम किया. पर उसने केवल आधा ही कप चाय पी. बची हुई आधी चाय उसने मेरी मियांवू की प्लेट में उडेल दी. वह लगातार बड़बड़ा रही थी कि आपके घर में इतनी बिल्लियाँ हैं. इनसे बदबू आती है. उनके बाल झड़कर इधर-उधर उड़ते रहते हैं जिससे बीमारी फैलती है. ये बिल्लियाँ बड़ी अशुभ होती हैं. इन्हें घर के बाहर रखिये आदि आदि. अच्छा हुआ मेरी बिल्लियों को हिंदी नहीं आती वरना बेचारी बुरा मान जातीं. फिर अचानक वह रुआंसी हो गई और उसकी रुलाई फुट पड़ी. मेरी मम्मी भी रोने लगी. मैं भी रो पड़ी. वह उलाहना देने लगी कि मैंने उसकी गृहस्थी उजाड़ दी. काका ने मुझसे कहा था कि शादी के बाद उन्होंने दो गर्लफ्रेंड बनाई थी. यूँ तो मैं तीसरी थी. फिर भी वह अपने खोटे नसीब का दोष लगातार मुझे ही दिए जा रही थी. फिर यकायक उसने अपना आपा खो दिया और मेरे बाल नोचकर कहने लगी कि अगर तलाक़ चाहती हो तो पहले दो करोड़ का फ़्लैट और सारा बैंक-बैलेंस उसके नाम पर करना होगा. तब मम्मी ने यह सारा मामला वीडियो में कैद कर लिया. बाद में हमने वह वीडियो काका को दिखाया तो वे कहने लगे कि उनकी पत्नी पर बीच-बीच में ऐसे दौरे पड़ते रहते हैं और वह हिस्टेरिकल हो जाती है. रात में उठकर बालों को खुला छोड़कर चिल्लाने लग जाती है. घर की चीजें इधर-उधर उठाकर फेंकने लगती है. इतना ही नहीं कई दफा उसने काका को भी मारा-पीटा है. मुझे अचरज हुआ कि मैंने कभी आज तक मम्मी को हायपर होते हुए नहीं देखा है. बल्कि बचपन में पापा ही मम्मी को जब जी चाहे पीटते थे. बावजूद इसके मम्मी वट-पूर्णिमा का व्रत रखती हैं, यह तो बड़ा अजीब है.
इस घटना के बाद काका जैसे चिंता में घुलने लगे. हमारा बाहर घूमना-फिरना, खाना-पीना सभी बंद हो गया. काका का गंजापन दिन-ब-दिन बढ़ने लगा. उनका पूरा शरीर स्किन इन्फेक्शन की चपेट में आ गया. उनके बच्चों ने एक बार अपने दोस्तों के साथ मिलकर उनसे रास्ते में मारपीट भी की. मुझे भी समय-समय पर गालीगलौज भरे फोन आने लगे. रिश्तेदारों ने हमसे दूरी बनानी शुरू कर दी. मौसी भी एक बार घर आई और मुझे लम्बा-चौड़ा भाषण सुनाकर चली गई.
इसी बीच सोसाइटी का रीडेवलपमेंट प्लान लेकर पाँच-छह बिल्डर आये पर साढ़े चार सौ के एरिया के लिए कोई मेम्बर तैयार नहीं था. फिर नगरसेवक आये. उन्होंने सुलह करनी चाही पर उनकी कोशिशें भी बेकार गई. कालोनी में गंदे पानी की सप्लाई शुरू हो गई तो हमारी सभी बिल्लियों के बाल उस दूषित पानी के चलते झड़ने लगे. बीपी की गोलियाँ नियमित लेने के बावजूद पापा को दिल का दौरा पड़ ही गया. उस समय काका ने ही सारी भागदौड़ की. फिर दो-तीन दिनों के बाद वे दूसरे काका यानी मौसी के पति का ऑफिस से फ़ोन आया कि अगर पैसों की जरूरत हो तो आकर ले जाएँ. मैंने तैश में आकर मेरे काका से कहा कि क्या हम कोई भिखारी हैं…हम भी कुछ बनकर दिखाएंगे. काका ने भी हाँ कहा और हमारी लाइफ की नई पारी शुरू हो गई.
अब तक हमारी बिल्लियाँ काका के बहुत निकट आ चुकी थीं. काका से उन्हें लगाव हो गया था. मेरी अनुपस्थिति में, काका के पास भी वे सभी बिना ऊधम मचाए शांत रहने लगी. काका भी उनके खाने-पीने की आदतों से परिचित हो गए. इंग्लिस कटरीना तो काका की ख़ास मित्र बन गई थी. बिना काका के वह खाने को मुँह भी नहीं लगाती. काका अगर उसकी गर्दन नहीं सहलाते तो वह नाराज़ हो जाती. काका उसके लिए स्पेशल खाने की चीजें ले आते. उसमें अन्य बिल्लियों की हिस्सेदारी उसे गवारा नहीं थी. ऐसा होने पर वह नाराज़ होकर घर से निकल जाती. एक बार काका दो दिन घर नहीं आये तब वह पानी की टंकी पर चढ़कर बैठ गई. न खाने-पीने के लिए नीचे उतरी और न ही सोने के लिए. जब काका तीसरे दिन घर आये तब वह झपटकर उनके शरीर पर चढ़ गई और उन्हें नाखूनों से खरोचने लगी. उसके बाद काका अपना सारा सामान लेकर हमारे घर रहने चले आये. पापा ने अपनी अलमारी का एक कोना उन्हें कपड़ों के लिए दे दिया. तब तक काका को दूसरी नौकरी भी मिल चुकी थी. वेतन आते ही उनकी पत्नी आकर आधा वेतन लेकर चली जाती. आधा वेतन काका मम्मी के हाथ पर रख देते. मम्मी को ज़िन्दगी में पहली बार इतने पैसे नसीब हुए थे. चूंकि उन्हें हिसाब समझ में नहीं आता था, इसलिए पापा ने कभी उन्हें वेतन के पैसे सौंपे नहीं थे. वे खुद ही घर का सारा सामान लाते थे. मम्मी पूरे माह तक पैसे बचा-बचाकर खर्च करतीं. मैंने भी पार्टटाइम जॉब शुरू कर दिया था. वेतन बहुत नहीं था पर अब हमारे पास हमारी बिल्लियों की देखभाल के लिए काफी समय था.
फिर हुआ यूँ कि एक बार काका ने पूछा कि क्या हमने कभी अपनी बिल्लियों का बर्थडे मनाया है? जाहिर है, ऐसा कभी हमारे यहाँ नहीं हुआ था. काका ने जैसे ही यह प्रस्ताव रखा, घर में सभी उत्साह से भर गए. पापा-मम्मी आननफ़ानन में तैयारियों में जुट गए. किस-किस को बुलाना होगा, इसकी एक लम्बी-चौड़ी फ़ेहरिस्त बनाई गई. मुझे और काका को उसे एडिट करना पड़ा. फिर एक छोटा इन्विटेशन कार्ड भी छपकर आ गया. चौक के एसी हाल को हमने किराये पर लिया. मैंने मास्टर चाचा से अपनी बिल्लियों के लिए कपड़े सिलवाये. मास्टरजी ने अपने पूरे जीवन में बिल्ली के लिए पहली बार कपड़े सिले थे. ठठाकर हँसते हुए कहने लगे, हमें भी अपनी बिल्ली की शादी में बुलाना…मैंने कहा, शादी नहीं है चाचा, बर्थडे है. रिटर्न गिफ्ट लेकर जरूर आइयेगा. हालाँकि पार्टी के दिन हमारी अपेक्षा से कम ही मेहमानों ने हाज़िरी लगाई. मेरी सहेलियाँ और काका के ऑफिस के सहकर्मी भी आए. पर मौसी नहीं आई पर उनके पति यानी वे काका ऑफिस से सीधे घर आये. पूरे समारोह के दौरान वे रुके रहे. और जाते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि अब इस बिल्ली की शादी कर दो. हमारे पास एक स्टड बिल्ला है. कहो तो भिजवा देता हूँ तुम्हारी बिल्ली के लिए. मुझे यह बात बेहद अश्लील लगी. और तब से मैंने उनसे बात करना बंद कर दिया है.
बिल्ली की बर्थडे पार्टी के बाद मुझे महसूस होने लगा कि चाल के लोग हमारी ओर देखकर कानाफूसी करने लग जाते हैं. अड़ोस-पड़ोस वाले अब बात करने से कतराते हैं. रास्ते के आते-जाते जवान लड़के हमारी बिल्लियों पर पत्थर फेंकते हैं. बच्चों को हमारी बिल्लियों से खेलता देखकर उनकी माँएँ उन्हें बुलाकर घर ले जाती हैं. रिश्तेदारों ने मम्मी के कान भरने शुरू कर दिए हैं. कभी-कभी वह भावुकता से भरकर कहने लगती हैं, आगे तुम्हारा क्या होगा ?
अब उन्हें कैसे समझाएँ कि इस रिसेशन के समय में किसी का भी कोई भरोसा नहीं कि कुछ माह बाद ही किसी का क्या हो जाए! फिर मैं उन्हें तसल्ली देते हुए कहती हूँ कि जब तक काका मेरे साथ है मेरा कुशल ही होगा. और जब तक मैं हूँ मेरी बिल्लियों के साथ कुछ भी ऐसा वैसा न होगा. कुछ भी हो भई, आखिर बिल्लियों के भी घर होते ही हैं न!
_______________
शिल्पा कांबले ‘नीली आँखो की लडकी’ (निळ्या डोळ्यांची मुलगी) उपन्यास, ‘बिर्यानी’ (नाटक), ‘नौ चालीस की लोकल’ (नऊ चाळीसची लोकल) कहानी संग्रह आदि प्रकाशित.कई पुरस्कारों से सम्मानित. मुंबई में रहती हैं. shilpasahirpravin@gmail.com |
सुनीता डागा
‘दाह’ (ल.सि. जाधव), ‘सुलझे सपने राही के’ (भारत सासणे),’रामराज्य : कहाँ है लोकतंत्र’ (शरणकुमार लिम्बाले), ‘ज़मीन और पानी के दरमियान’ (श्रीधर नांदेडक़र), ‘जंगल के ख़ज़ाने की खोज’ (मराठी बाल उपन्यास ) के हिंदी अनुवाद प्रकाशित. |
अलहदा विषय पर बहुत सुंदर और मार्मिक कहानी।
कथा, अनुवाद दोनों अच्छे हैं, सिर्फ ‘मित्र’ काका के लिये कभी ‘वह’, ‘उसको’ और कभी ‘वे’ ‘उनको’ कहा गया है जिससे थोडासा कन्फ्यूजन हो जाता है.
बिल्लियों के माध्यम से कथा नायिका की पीड़ा को प्रकट करती अलग तरह की कहानी है।इस पर विस्तार से लिखा जा सकता है। अनुवाद तो बिल्कुल मूल जैसा ही प्रवाहमान है।यह एक समस्या प्रधान कहानी है जिसमें बहुत सी भुक्तभोगियों की व्यथा पढ़ी जा सकती है और परिवेश की परख की जा सकती है।घर और घर बसने का दर्द तो है ही।
अच्छी कहानी है। अनुवाद में झांकता मराठीपन बहुत लुभावना है।
शानदार कहानी है. बिल्लियों की आदतों और उनके स्वभाव पर कहानी को थोड़ा और विस्तार दिया जा सकता था
कहानी और अनुवाद अच्छा लगा .
Thanks Arun Dev ji for presenting this intriguing and disturbing story …….
Written in a self- conscious and sometimes even in a crazed tone………
Warm regards
Deepak Sharma
अच्छी कहानी है। अनुवाद भी सहज है। अच्छी गढ़न है। अनुवादक और लेखिका को बधाई।
बहुत अच्छी कहानी और अनुवाद। जीवन की जटिलताओं और समस्याओं को इस कहानी में इतनी सरलता से कह दिया गया है.. यही इसकी खूबसूरती है। ऐसा लग रहा है जैसे कोई बच्चा साफ़गोईसे किसी घटना का वर्णन कर रहा है। नए तरीके की कहानी पढ़कर मजा आ गया।