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Home » सुमित त्रिपाठी की कविताएँ

सुमित त्रिपाठी की कविताएँ

किसी युवा कवि से जिस रचाव और ताज़गी की आप उम्मीद करते हैं वह सब सुमित त्रिपाठी के पास है, इसके साथ ही कविता की जो मूल विशेषता है- शब्दों को लेकर उसका मितव्ययी होना वह भी इन कविताओं में आपको दिखेगी. स्वागत है कवि का.

by arun dev
September 7, 2021
in कविता
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सुमित त्रिपाठी की कविताएँ
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सुमित त्रिपाठी की कविताएँ

 

1.

बस बर्फ़ थी-
सफ़ेद अँधेरे सी

उतरी थी
बादलों में घोंप कर कटार

नींद का अंधड़ लिए
फड़फड़ाते सफ़ेद चमगादड़ों सी

आँखों में लगाए
मृत्यु का ठंडा काजल

बर्फ़ थी.

 

2.
पहला फूल

मैंने सपने में एक फूल बनाया
मेरे हाथ और पाँव सुंदर बन आए

फूल को मैं ध्यान से उकेरता गया

बहुत बड़ी बात थी
फूल के द्वारा गढ़े जाना

वे क्षण सुरम्य थे
जब मैं फूल की इच्छा से था.

 

3.
अंतिम फूल

फूल गिर पड़ा है
पृथ्वी का रस त्याग कर

गिर पड़ा है
वृंत के सँयम से टूट कर

अंततः
अपनी गंध से
वह मुक्त है

फूल होने की चिन्ता
अब उसे नहीं.

 

4.

यह सिर्फ भ्रम है
कि वह प्रतीक्षा करती है
पृथ्वी नहीं गाती कोई गीत

फूलती-फलती
क्लांत भाव से
किसी को याद नहीं करती

ऋतुएँ पहनती है
बिन अपेक्षा
आदतन भरती है
रस का कटोरा

पृथ्वी एक खाली जगह है
जहाँ ईश्वर अब नहीं है.

पेंटिंग: प्रयाग शुक्ल: एक द्वार के खुलने की आहट (A door about to be opened)

5.

पुराना सा कोई रास्ता
गहराती-सी साँझ में
मन के भीतर उतरता चला जाता है

और चाँदनी रात की चुप्पी में
लिपटा कोई शहर
साँस लेने लगता है

स्मृति है पूर्व-जन्मों की
या स्वप्न
जो उतरा है
अनदेखे समय से

जो भी है
मेरी यात्रा का कारण है
जादू है
मेरा मन है.

 

6.

पेड़ कहीं जाना नहीं चाहते
वे प्रेम का अर्थ समझते हैं

धरती को गहरे और गहरे
वे छू लेना चाहते हैं

बस उसी के भरोसे
वे खड़े हैं.

 

7.
निषिद्ध

खुले मैदानों की तरफ मत जाना
उधर पागल घोड़े हैं
काले से भी काला आसमान है

हवा तुम्हारी खाल पर
कुछ खुरच देगी
पंछी तुम्हें भरमा लेंगे

हरी घास पर मत बैठना
वह तुम्हें डस लेगी.

 

8.

चाँद से मैं
अपने बच्चे माँगता हूँ

प्रेम वह मुझे नहीं दे सका
कोई बात नहीं—

पर अब
वह मेरे बच्चे ले भागा है

चाँद में
वे ख़ुश नहीं

उन्हें इस उदास ग्रह की
धूल चाहिए

वे अकेले हैं
और मेरे सपनों में
दिखाई देते हैं.

 

9.

फिर भी तुम हो—
भले ही वन में
नदी के पार सही

वन और नदी तो
बस मेरे लिए हैं
तुम तो वहाँ भी नहीं हो

नाहक नदी में उतरूँगा
वन में फिरूँगा मैं.

 

10.

बच्चों को
नंगे पाँव
फिरने दो

उनके कोमल तलुवों से
धरती को राहत होगी.

 सुमित त्रिपाठी को पढ़ने-लिखने से दिलचस्पी है. अपने बारे में कहने के लिए उनके पास कुछ विशेष नहीं. जो है वो कविताएँ हैं.
 timustripathi@gmail.com

 

Tags: कविताएँनयी सदी की हिंदी कवितायुवा कविसुमित त्रिपाठी
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Comments 10

  1. श्रीविलास सिंह says:
    4 years ago

    बहुत अच्छी कविताएँ। साधारण शब्दों में असाधारण कथ्य। युवा कवि को हार्दिक शुभकामनाएं और आपको अच्छी कविताएँ प्रस्तुत करने हेतु धन्यवाद।

    Reply
  2. Sudeep Sohni says:
    4 years ago

    कविता की नई पुकार खुली-ताज़ी हवा की तरह होती है। मन प्रसन्न .. सुंदर कविताएँ. बहुत शुभकामनाएँ कवि को

    Reply
  3. राहुल द्विवेदी says:
    4 years ago

    सुमित की कविताओं में वाकई ताजगी है । लंबे लंबे उलझाऊ और उबाई वाक्य विन्यासों के इतर छोटे छोटे वाक्यों में सीधे धक से दिल मे उत्तर जाने वाली कविताएं

    Reply
  4. दया शंकर शरण says:
    4 years ago

    कविता के बारे में एक मत है कि अर्थ कविता का नित्य धर्म नहीं है।कविता वह अद्भुत श्रृष्टि है जिसका प्रभाव हमें अर्थ समझने के पूर्व हीं पड़ने लगता है और ऐसी कविताएँ सबसे श्रेष्ठ हैं जिन्हें बार-बार पढ़ने पर भी पाठक को यह विश्वास नहीं हो कि कविता का सारा अर्थ उसकी समझ में आ गया है। सुमित त्रिपाठी की इन कविताओं के बीच यथार्थ की एकरूपता एवं अंतःसूत्र की खोज करना बेमानी है। हर कविता का एक अपना यथार्थ है । ये कविताएँ अनास्था और मुक्ति की कविताएँ हैं।नीत्शे ने भी कहा था कि ईश्वर मर चुका है। साहित्य में मोहभंग का दौर जो आजादी के कुछ बरसों बाद शुरू हुआ, उसकी निरंतरता में ही हमारी उम्मीदें और हमारे स्वप्न जीवित हैं। सभी को साधुवाद !

    Reply
  5. Madhu Bala joshi says:
    4 years ago

    Contemplative poems. Mature content and craft.
    Now I am really tempted to publish my poems too.

    Reply
  6. तेजी ग्रोवर says:
    4 years ago

    उत्कृष्ट और सुंदर कविताएँ। मुझे जिन कवियों की स्मृति हो आई वे उन्हें हिंदी में कम ही लोग जानते होंगे और सुमित ने भी शायद उन्हें न पढ़ा हो।

    लेकिन यह कितना सुखद है कि किसी कवि में किसी अन्य काल खण्ड और सर्वथा भिन्न किसी भूगोल का कवि अपना अक्स दिखा जाता है।

    सुमित की कविताओं को रुस्तम और मैं वर्षों से पढ़ते आये हैं। खास बात यह है कि कवि का स्वर स्वयं को सदैव स्पंदन में रखता है, थिर नहीं होता। गंभीर है, गाम्भीर्यग्रस्त नहीं।

    स्वप्न भी हैं, ताज़ी गिरती बर्फ की मानिन्द, किसी फ़िल्म में, स्लो मोशन में बीच बीच में लहरा जाते हुए।

    चांद की ऐसी कल्पना! वाह!

    Reply
  7. Sumit Tripathi says:
    4 years ago

    आप सभी को इस प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद करता हूँ । लिखने और पढ़ने वालों द्वारा स्वीकार किए जाना मेरे लिए ऊर्जा और प्रेरणा दोनो का स्त्रोत है ।

    Reply
  8. Sanjay K Pandey says:
    4 years ago

    कैसा विषाद है जो गहराती-सी साँझ में मन के भीतर उतरता चला जाता है

    परन्तु पागल मन का घोड़ा काले आसमान के पार खुले मैदान की तरफ जाना चाहता है क्योंकि वहां जादू है

    अद्भुत हैं सुमित की कवितायेँ

    Reply
  9. Anonymous says:
    3 years ago

    बेहतरीन कविताएँ | सहज भाषा और शब्दों का इतने मितव्ययी होकर प्रयोग करके इतनी गूढ़ बात कह देना कविता के रूप में, ऐसा भाव मन में उतपन्न करता है जैसे कयी वनस्पतियों, फूलों को सूंघकर फिर एक बूंद अमृत रस निकाला गया हो जीवन प्राण के लिए | चिंतन में अथक मेहनत दिखती है उनकी | छठवीं कविता पेड़ वाली और धरती पे बच्चे के नर्म तलुए… मेरी सबसे ज्यादा पसंदीदा कविताएँ हैं |

    सुमित त्रिपाठी जी को बहुत बहुत शुभकामनायें 💐💐

    Reply
    • Ritu Nautiyal says:
      3 years ago

      मैं ऋतु डिमरी नौटियाल हूँ | ये Anonymous के नाम से मेरा कमेंट है, जल्दी में नाम लिखना भूल गयी

      Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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