The Riddle
Walter de la Mare
पहेली
अनुवाद: पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा
सो वे सात बच्चे ऐन व मटिल्डा, जेम्स, विलियम और हैनरी, हैरिएट तथा डोरोथीया अपनी दादी के साथ रहने आये. जिस घर में उनकी दादी बचपन से रहती आयी थी व जॉर्जियन युग में बना था. वह कोई सुन्दर घर नहीं था, पर काफी बड़ा, मज़बूत और चौकोर था. देवदार के एक विशाल वृक्ष ने अपनी शाखायें कुछ इस तरह फैलायीं थी, मानो वह घर की खिड़कियों को छू रहा हो.
जब बच्चे गाड़ी से उतरे (पाँच पिछली सीट पर थे और बाकी दो चालक के पास) उन्हें दादी के सामने हाज़िर किया गया. वे एक छोटे समूह में सिमटे अपनी बुज़ुर्गवार दादी के सामने आ खड़े हुये, जो छज्जे में बनी एक खिड़की के पास बैठी थीं. उन्होंने हरेक बच्चे से उसका नाम पूछा और अपनी स्नेह पगी पर लरजती आवाज़ में उसे दोहराया. तब उन्होंने एक को एक औज़ार-पेटी दी, विलियम को खटकेदार छुरी, डोरोथीया को एक रंगी हुयी गेंद; यानी हरेक को उसकी उम्र के हिसाब से एक तोहफा थमाया. और तब उन्होंने अपने हरेक पोती-पोते, सबसे छोटे तक को चूमा.
‘मेरे प्यारो,’ वे बोलीं, ‘मैं तुम सबको अपने घर में बेहद खुश और मस्त देखना चाहती हूँ. मैं खुद तो उम्रदराज़ हूँ सो तुम लोगों के साथ धींगामस्ती नहीं कर सकती. इसके लिये तुम्हें ऐन और मिसेज फैन की मदद लेनी होगी. पर हर सुबह और हर शाम तुम सबको अपनी दादी से मिलने आना होगा. अपने मुस्कुराते चेहरे ले कर आना, जो मुझे मेरे बेटे हैरी की याद दिलायें. पर दिन के बाकी समय, जब स्कूल खत्म हो जाये, जो कुछ तुम्हारा दिल चाहे वह करना मेरे प्यारो. पर मैं चाहूँगी कि तुम सब एक बात, बस एक ही बात याद रखना. वह जो बड़ा-सा फालतू सोने का कमरा है ना, जिसकी खिड़की स्लेट से बनी छत की ओर खुलती है, उसके कोने में एक बेहद पुराना बलूत की लकड़ी से बना एक सन्दूक है. बहुत ही पुराना, मुझसे भी पुराना मेरे प्यारों; मेरी दादी से भी पुराना. घर में जहाँ जी चाहे खेलना, बस उस कमरे में नहीं.’
उन्होंने सबसे बड़े प्यार से बात की, मुसकुराते हुए सबको देखा. पर वे सच में बेहद बूढ़ी थीं. लगता यह था मानो उनकी आँखों को इस दुनिया की कोई भी चीज़ नज़र न आती हो.
हालांकि सातों बच्चे पहले-पहल उदास और अजीब-सा महसूस करते रहे, पर जल्द ही उस बड़े भारी घर में खुश रहने लगे. उनके दिल को लगाए रखने और मन को बहलाने के लिए वहाँ बहुत कुछ था. और फिर उनके लिये तो सब कुछ नया भी तो था. दिन में दो बार, सुबह और शाम वे अपनी दादी से मिलने जाते, जो दिन ब दिन कमज़ोर से कमज़ोरतर नज़र आती. पर दादी उन्हें प्यार से अपने बचपन और अपनी माँ के किस्से सुनातीं. और तो और शक्कर में पगे आलू-बुखारों की दुकान में जा उनके लिये बुखारे लाना कभी न भूलती. और यों सप्ताह गुज़रते गये…
सांझ के झुटपुटे का समय था जब हैनरी बच्चों के कमरे से अकेले निकला और बलूत की सन्दूक को देखने ऊपरी मंज़िल की ओर बढ़ गया. उसने सन्दूक पर नक्काशी से उकेरे गये फलों और फूलों पर उंगलियाँ फिरायीं. कोनों में उकेरे गये मुस्कुराते काले सिरों से बात की. तब अपने कंधों के पीछे एक नज़र डाल सन्दूक का ढ़क्कन खोला और झांक कर अन्दर देखा. पर सन्दूक में न तो कोई खज़ाना छिपा था, न सोना था, न गहने. ना ही ऐसा कुछ था जो उसकी आँखें में खौफ जगाये. सन्दूक बिलकुल खाली था. सिवा इसके कि उसके अंदर वाले हिस्से में पुरानी गुलाबी-रेशम की एक परत लगी थी जिसका रंग सांझ के रंग से भी गहरा था और उसमें सूखे फूलों की मीठी खुशबू बसी थी. जब हैनरी सन्दूक में झांक रहा था उसे नीचे बच्चों के कमरे से हंसी की दबी आवाज़ और प्यालों की खनखनाहट सुनायी दी. खिड़की से बाहर उसने दिन को अंधेरे में गुम होते देखा. इस सब ने उसके मन में उसकी माँ की याद ताज़ा कर दी, जो अपनी चमचमाती सफेद पोशाक में सांझ ढले उसें कुछ पढ़ कर सुनाया करती थी. वह सन्दूक में घुसा, और सन्दूक का ढक्कन आहिस्ता से बन्द हो गया.
जब बाकी छह बच्चे अपने खेल से थक गये, वे दादी के कमरे में उन्हें शुभ रात्रि कहने और उनसे शक्कर पगे बुखारे लेने गये. दादी ने मोमबत्तियों के बीच से उन्हें कुछ इस तरह देखा मानो कोई उलझन उन्हें सता रही हो. ऐना ने अगले दिन दादी को बताया कि हैनरी कहीं खोजे नहीं मिल रहा.
‘ओहो, मेरी बच्ची! तो फिर वह कुछ समय के लिये चला गया होगा,’ बूढ़ी दादी ने कहा. वे कुछ पल रुकीं. ‘पर तुम सब याद रखना बलूत के उस सन्दूक से कोई छेड़छाड़ न करना’.
पर मटिल्डा अपने भाई हैनरी को भूल न सकी. उसके बिना खेल में कोई मज़ा ही न था. वह घर भर में यह सोचते डोलती-फिरती कि आखिर वह गया कहाँ होगा. वह अपनी लकड़ी की गुड़िया बाहों में उठाये, उसके बारे में गीत गढ़ती और धीमे स्वर में उन्हें गाती. तब एक उजली सुबह उसने सन्दूक में झांका. सन्दूक मीठी खुशबू से इस कदर गमकता लगा कि वह अपनी गुड़िया के साथ उसमें घुस गई- ठीक जैसे हैनरी घुसा था.
सो अब घर में खेलने को जेम्स और विलियम, हैरिएट और डोरोथीया बचे. ‘शायद किसी रोज़ वे तुम लोगों के पास लौट आयें मेरे प्यारो,’ उनकी दादी ने कहा. ‘या शायद तुम लोग ही उनके पास चले जाओ. पर मेरी चेतावनियों को भूलना नहीं उन पर गौर करना.’
हैरिएट और विलियम की आपस में गहरी छनती थी. वे प्रेमी होने का स्वाँग रचते थे; जबकि जेम्स और डोरोथीया को शिकार, मच्छीमारी और युद्ध के जंगली खेल पसन्द आते थे.
अक्तूबर की एक शांत दोपहर स्लेट की छत और हरे खेतों को देखते हैरिएट और विलियम आपस में धीमे स्वर में बतिया रहे थे. अचानक उन्हें पीछे के कमरे से किसी चूहे की आवाज़ और हलचल सुनाई दी. वे साथ-साथ उस कमरे में गये और वह छेद ढूंढ़ने लगे जिससे चूहा निकला होगा. छेद न मिलने पर वे सन्दूक पर उकेरी आकृतियों को छूने लगे. मुस्कुराते काले चेहरों के नाम रखने लगे, ठीक उसी तरह जैसे हैनरी ने किया था. ‘मुझे मालूम है! चलो अपन एक स्वाँग करते हैं. हैरिएट तुम सोई सुन्दरी (स्लीपिंग ब्यूटी) बनो,’ विलियम ने कहा, ‘और मैं वह राजकुमार बनता हूँ जो काँटों के बीच से निकल कर आता है.’ हैरिएट ने अपने भाई पर कोमल पर अजीब-सी दृष्टि डाली. तब वह सन्दूक में लेट गयी और गहरी नींद में होने का नाटक करने लगी. विलियम पैरों के पंजों पर उचक कर उसकी ओर झुका. पर यह देख कि सन्दूक कितना बड़ा है, वह सोती सुन्दरी को चूमने सन्दूक में घुस गया ताकि उसे जगा सके. सन्दूक का नक्काशीदार ढक्कन बिना आवाज़ किये कब्जों पर घूमा और बन्द हो गया. डोरोथीया और जेम्स के अन्दर आने की खटपट ने ऐना का ध्यान उसकी किताब से हटाया.
उनकी बूढ़ी दादी बेहद कमज़ोर थी. उन्हें आँखों से देखने और कानों से सुनने में दिक्कत होती थी.
ठहरी हुयी हवा के बीच छत पर बर्फ गिर रही थी. और बलूत के सन्दूक में डोरोथीया एक मछली थी. जेम्स बर्फ में बने एक छेद के सामने हाथ छड़ी को बर्छा बनाये एस्कीमो होने का नाटक कर रहा था. डोरोथीया का चेहरा सुर्ख था और उसकी फटी-सी आँखें उलझे बालों के बीच झिलमिला रही थीं. जेम्स के गालों पर एक तिरछी खरोंच थी. ‘तुम्हें छटपटाना है डोरोथीया, और तब मैं तैर कर लौटूंगा और तुम्हें खींच कर निकाल लूंगा,’ खुले सन्दूक में घसीटे जाते वह हंसते हुये चीखा. और तब ढ़क्कन पहले की तरह हौले से बन्द हो गया.
अब बस ऐना अकेली रह गयी. उसे शक्कर में पगे बुखारे खास पसन्द न थे, पर वह दादी को शुभ रात्रि कहने अकेले ही जाती. बूढ़ी दादी अपने चश्मे के ऊपर से उसे टुकुर-टुकुर ताकतीं.
‘ओ मेरी प्यारी,’ वे बोलीं, उनका सिर डगमगा रहा था. उन्होंने ऐना की उंगलियों को अपनी हड़ियल उंगलियों और अंगूठे के बीच दबाया. ‘हम सच में कितने अकेले दो बूढ़े हैं!’ ऐना ने दादी के मुलायम ढीले पड़ चुके गाल को चूमा. वह उन्हें आराम कुर्सी पर, घुटनों पर अपने हाथ टिकाये, उसकी ओर सिर तिरछा किये बैठी छोड़ आयी.
जब भी ऐनी सोने जाती वह बिस्तर पर बैठ मोमबत्ती के उजाले में कुछ देर पढ़ती थी. उसने चादर के नीचे अपने घुटने मोड़े और अपनी किताब उन पर टिका दी. उसकी कहानी परियों और बौनों के बारे में थी. कहानी की नरमी से बहती चांदनी मानो किताब के पन्नों को जगमगाये दे रही थी. ढेरों कमरों वाले उस विशाल घर में इस कदर चुप्पी पसरी थी कि वह परियों की आवाज़ें सुन सकती थी. कहानी के शब्द कितने मधुर थे. कुछ देर बाद उसने मोमबत्ती बुझायी और कानों के पास आवाज़ों का शोर सुनते और आँखों के सामने रफ्तार से गुज़रते चित्रों को देखते उसे नींद आ गयी.
बीच रात वह सपने में ही अपने बिस्तर से उठी. उसकी आँखें पूरी खुली थीं, पर देख वह कुछ भी नहीं रही थी. वह चुपचाप उस खाली घर में चलती रही. उसने उस कमरे को दबे पैर, पर बेहिचक पार किया जिसमें उसकी दादी खर्राटे मारती एक छोटी पर गहरी नींद में थी. वह चौड़ी सीढ़ियाँ पार करती नीचे उतरी. वेगा का वह सुदूर सितारा स्लेटी छत के ऊपर वाली खिड़की से साफ नज़र आ रहा था. ऐन उस अजीबो-गरीब कमरे में ऐसे घुसी मानो कोई अदृश्य हाथ उसे बलूत के सन्दूक की ओर लिये जा रहा हो. और वहाँ सपने में उसका बिस्तर था. वह पुराने गुलाबी रेशम की खुशबूदार सेज पर जा लेटी. कमरे में अंधेरा इतना घना था कि ढक्कन का बन्द होना दिखाई नहीं दे सकता था.
अगले लम्बे खिंचे जा रहे पूरे दिन दादी अपनी छज्जे वाली खिड़की के पास बैठी रही. उसके होंठ भिंचे हुये थे. वह उत्सुकता भरी धुंधली नज़र से सड़क को निहार रही थी, जहाँ लोग आ-जा रहे थे और गाड़ियाँ गुज़र रही थीं. शाम को सीढ़ियाँ चढ़ वे उस बड़े से सोने के कमरे की दहलीज पर खड़ी हुयीं. चढ़ाई से उनकी साँस फूल गयी थी. चीज़ों को बड़ा कर दिखाने वाला उनका चश्मा उनकी नाक पर टिका था. दरवाज़े की चौखट पर हाथ टिका, उन्होंने मौन झुटपुटे के पार खिड़की का चौकोर देखा. पर वे ज़्यादा दूर तक देख न पायीं क्योंकि उनकी नज़र कमज़ोर और रोशनी मद्धिम थी. न ही वे उस हल्की-सी खुशबू को पकड़ पायीं, जो पतझड़ के पत्तों समान थी. उनका दिमाग स्मृतियों के उलझे धागों से भरा था- खिलखिलाहट और आँसू, और बच्चे जो एक अर्से से पुराने चलन के हो चुके थे. दोस्तों का आना और अंतिम विदाइयाँ.
तब खुद के साथ बीच-बीच में अस्फुट स्वर में बतियाती बूढ़ी दादी छज्जे पर बनी अपनी खिड़की के पास लौट गयी.
पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा हैदराबाद मोंटेसरी, पाउलो फ्रेइरे, जॉन होल्ट, ए. एस नील सहित बीसियों शिक्षाविदों की पुस्तकों के हिंदी में अनुवाद. बाल साहित्य का विपुल अनुवाद. |
अतीत और वर्तमान की संधिवेला ।अतीत की अबूझ खींचती गंध।जीवन गति की अनंत संभावनाएं।एक भरी हुई रिक्तता का तमाम स्मृतियों के साथ बच जाना साथ।सचमुच आज भी गहरे तल की ओर हठात् बुलाती, संवाद करती कहानी ।आभार आपका।🙏
पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा ने शिक्षा जगत से जुड़ी कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का हिंदी अनुवाद किया है। बेहद पठनीय और महत्वपूर्ण किताबें। रमेश थानवी के साथ एक बार जयपुर में उनके घर मुलाकात भी हुई थी। उनकी सक्रियता से तभी से परिचित हूं। हां, उनके द्वारा किसी कहानी का अनुवाद पहली बार पढ़ने में आया है। बहुत अच्छी कहानी और उसका अनुवाद। इसे सामने लाने के लिए तेजी का भी आभार।
मेरी अल्पबुद्धि में यह कहानी रहस्यमय कम बल्कि दार्शनिक अधिक है। यहाँ अंतिम क्षण तक जीवन का उल्लास है। जब रहस्य का पर्दाफाश होता है तो जीवन चुक जाता है। मृत्यु भी तो एक पर्व है। हम सब इस कहानी के बच्चों की तरह ही हैं। सत्य यह है कि कुछ चीजों को नहीं जानना बेहतर है। सूचनाओं का विस्फोट भी घातक ही है। अज्ञानता में सुख है। पाश्चात्य दर्शन में इसके संकेत मिलते हैं। रही बात दादी की तो वह मृत्यु की देवी है परंतु क्रूर नहीं। वह सब को स्नेह देती है और सावधान करती है। वह अनुभव की अधिष्ठात्री है और हम जीवन के उत्सव या दुनियादारी में इस तरह उलझे हुए है कि उसके संकेत को अनसुना करते रहती है। अंतत: काल के ग्रास बनते है।
बहुत सुन्दर कहानी है। इसी पुस्तक में पहले अँग्रेज़ी में भी पढ़ी थी। इस कहानी को अँग्रेज़ी में पढ़ने से पहले वाल्टर दे ला मेर को मैं कवि के तौर पर ही जानता था। उनकी एक सुन्दर और रहस्यमय कविता कॉलेज में हमारे सिलेबस में लगी हुई थी। उस कविता को पढ़ते हुए मुझे हमेशा एडगर एलन पो की प्रसिद्ध और रहस्यमय कहानी The Fall of the House of Usher याद आती थी। आधुनिक हिन्दी में इस तरह की कहानियाँ कितनी हैं? आज का हिन्दी लेखक फ़न्तासी को पढ़ता तो है लेकिन मेरा ख़्याल है कि वह खुद उस विधा में लिखने की कोशिश नहीं करता। वह यथार्थ में धँसे रहना चाहता है। लेकिन मेरी कुछ कविताओं को इस विधा में रखा जा सकता है।
पूर्वा हिन्दी क्षेत्र की एक प्रमुख अनुवादक हैं। जब मैं लगभग दस वर्षों तक एकलव्य में वरिष्ठ सम्पादक था तो हमने भी उनसे शिक्षा सम्बन्धी कई पुस्तकों का अनुवाद करवाया था जिन्हें मैंने सम्पादित किया था।
बहुत अच्छा अनुवाद है। पूर्वा अपूर्वा हैं।
कहीं पगे आलूबुखारे का जिक्र आया है। शायद शुगरप्लम होगा। यह बच्चों की मिठाई थी जिसमें आलूबुखारे का काम नहीं लगता था। हमारे बचपन में इन सब मिठाइयों का एक नाम था – लेमनचूस
पूर्वा जी सच में अपना परिचय छुपाये रखती हैं। उन्होंने अनुवाद के जरिए हिन्दी के शिक्षा और बाल- साहित्य को समृद्ध किया है। उनके परिवार का राजस्थान में शिक्षा, विशेषकर महिला शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक योगदान है। इसका परिचय उनकी किताब- मित्थल मौसी का परिवार- से पता चलता है।
हिन्दी में फंतासी कहानियाँ दुर्लभ हैं। इनका अर्थ निरूपण भिन्न तरह होता है। यह कहानी साहस, खतरे के रोमांच और त्रासदी के मिले- जुले अभिप्राय समोये है। पूर्वा जी मितभाषी, प्रबुद्ध, साथ ही अपने खास सेंस आफ ह्यूमर की छवि में मिलती रही हैं। अपनी ही तरह के जनकवि हरीश भादानी का जयपुर में एक ठीया पूर्वा जी का घर होता था।
तेजी जी और समालोचन ने अच्छा संधान किया।
कहानी कुछ समझ में नहीं आयी. खैर नाम ही पहेली है. स्कूल के दिनों में वॉटर डे ला मेर की एक कविता हमारे पाठ्यक्रम में थी, शायद मार्था. अंग्रेजी शिक्षक खाँ साहेब ने डे ला मेर की कहानियाँ पढ़ने को प्रोत्साहित किया था. मैंने एक कहानी पढ़ी थी और उस कहानी से मैं कुछ डर गया था. जब कि उसे बच्चों के लिए लिखी कहानी बताया गया था और मैं पंद्रह का होगया था, बच्चा कतई नहीं. यह कहानी भीअसहज कर गयी.
पहेली है, तो एक एक शब्द ध्यान से पढ़ना जरूरी लगा. सात बच्चों में सबसे पहले ऐन का नाम था. शायद वह सबसे बड़ी थी. शायद इसी लिए दादी ने पहले ही दिन ऐन को अलग कर दिया – ऐन और मिसेज़ फेन से बच्चे अपनी धींगामस्ती में मदद ले सकते थे. दादी बच्चों में अपने मृत बेटे हैरी को देखना चाहती थी. शायद उन्हें हैरी के साथ देखना चाहती थी.
शायद दादी चाहती थी बच्चे उस बक्से के रस्ते वहाँ पहुँच जाएं जहाँ वह चाहती थी, हैरी के पास. अन्यथा उसने बक्से के ऊपर एक मोटा ताला लटका दिया होता. बक्सा क्या है? ऐन सबसे अंत में क्यों जाती है? बच्चों के नाम में सबसे पहले उसका नाम आता है. बीच में वह गायब भी हो जाती है – हेनरी और माटिल्डा के बक्से में चले जाने के बाद मिलता है, “सो अब घर में खेलने को जेम्स और विलियम, हैरिएट और डोरोथीया बचे.” ऐन कहाँ गयी? मैंने पहली छोड़ रिड्ल खोजना शुरू किया. प्रॉजेक्ट गुटेनबर्ग पर रिड्ल मिला. उसमे भी हेनरी और माटिल्डा के जाने के बाद बस चार के बचने की बात है. फिर अंत में ऐन मिल जाती है.
रिड्ल पढ़ने पर देखा अनुवाद कितना सच्चा है. पूर्वा जी को बधाई. और शुगरप्लम भी मिला. शिवकिशोर जी ने सही पकड़ा था. पर कहानी बेचैन कर गयी.
वॉल्टर दे ला मेर की प्रसिद्ध कविता – The listeners भी कुछ इसी तरह का भाव जगाती है। उनकी अन्य मनोवैज्ञानिक हॉेरर कहानियाँ – “Seaton’s Aunt” और “All Hallows” अधिक प्रभावशाली लगती हैँ पर वे आकार मेँ बड़ी हैँ। कहानी का अनुवाद बेहतर हो सकता था। इस अनुवाद मेँ शब्दोँ की तीक्ष्णता कम लगती है। फिर भी प्रयत्न के लिए साधुवाद।