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समालोचन

Home » जेम्स ज्वायस: दो नागर: अनुवाद: शिव किशोर तिवारी

जेम्स ज्वायस: दो नागर: अनुवाद: शिव किशोर तिवारी

जेम्स ज्वायस (2 फरवरी,1882 – 13 जनवरी,1941) की कहानियों के शिव किशोर तिवारी द्वारा किये गये अनुवाद आप समालोचन पर पढ़ रहें हैं, अरबी बाज़ार (araby), एवलीन (eveline) के बाद अब प्रस्तुत है- दो नागर (two gallants). यह कहानी १९१४ में प्रकाशित हुई थी और उनकी प्रसिद्ध कहानियों में से एक मानी जाती है. यथार्थवाद से प्रकृतवाद (naturalism) की ओर झुकी हुयी शैली में लिखी इस कहानी का अनुवाद दोनों भाषाओं में दक्षता की मांग करता है.

by arun dev
October 9, 2021
in अनुवाद
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जेम्स ज्वायस: दो नागर: अनुवाद: शिव किशोर तिवारी
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जेम्स ज्वायस
दो नागर

अनुवाद: शिव किशोर तिवारी

अगस्त की धूसर, गुनगुनी शाम शहर पर उतर आई थी और सुहावनी नीमगरम हवा गये ग्रीष्म की याद की तरह सड़कों पर बह रही थी. सड़कों पर सारे पट रविवार के विश्राम-हेतु बंद थे, और वहाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने लोगों की भीड़ थी. अपने खंभों की ऊँचाई से प्रकाशित मोतियों जैसे लैम्पों की रोशनी नीचे सड़क पर सतत् आकार और रंग बदलती जीती-जागती संरचना पर पड़ रही थी, जिसकी अपरिवर्तनीय मर्मर-ध्वनि निरंतर धूसर शाम की नीमगरम हवा में उठ रही थी.

रटलैंड चौक की पहाड़ी से दो नौजवान नीचे आ रहे थे. उनमें एक इस समय एक लम्बा एकालाप समाप्त कर रहा था. दूसरा नौजवान, जिसे अपने साथी की अभद्रता के चलते फुटपाथ के किनारे चलना पड़ रहा था और कभी-कभी सड़क पर आ जाना पड़ रहा था, सहासमुख उसकी बातें सुन रहा था. वह कद में छोटा पर चौड़ा था तथा उसका चेहरा लाल था. उसने एक पीक्ड कैप पहन रखी था जो फिलहाल सिर के पिछले हिस्से पर विद्यमान थी. वह जो कहानी सुन रहा था उसके हिसाब से उसकी आँख, नाक और मुँह से आरंभ होकर नाना भावों की लहरें उसके मुँह पर आ-जा रही थीं. साँसों की घरघराहट के साथ लिपटे हँसी के फव्वारे उसकी देह में कम्पन जगाते बार-बार उठ रहे थे. उसकी चालाकी और हास्य के मिश्रण से चमकती आँखें निरंतर अपने साथी के चेहरे पर थीं. एकाध बार उसने अपने बरसाती कोट को, जिसे उसने बुल फाइटर की शैली में कंधों पर डाल रखा था, सँभालकर ठीक किया. उसका जोधपुरी, सफेद रबर के जूते और उसका छबीले ढंग से डाला बरसाती कोट, सभी युवा होने का संकेत देते थे. लेकिन कमर तक आते-आते उसका बदन गोलाकार-सा दिखने लगता था, उसके बाल झड़कर पतले और सफेद पड़ गये थे तथा भावों की लहरों के वापस होते ही उसका चेहरा समय की चोट खाया और श्रीहीन दिखने लगा था.

जब उसको भरोसा हो गया कि वृत्तांत समाप्त हो गया है, तब वह पूरे आधा मिनट तक वह बिना शब्द किये हँसता रहा, फिर बोला:

“वा… अव्वल बात है, जवाब नहीं !”

उसकी आवाज में दम नहीं मालूम हो रहा था; इसलिए उसने विनोद के स्वर में इतना और जोड़ दिया:

“अव्वल में अव्वल, एकदम यत्परो नास्ति”.

यह कहकर वह चुप हो गया और गम्भीर मुद्रा धारण कर ली. उसकी जबान पहले ही दोपहर से शाम तक डॉर्सेट स्ट्रीट के एक पब में बोल-बोलकर थक चुकी थी. अधिकतर लोग लेनिहैन को जोंक की तरह देखते  थे, लेकिन उसकी इस कुख्याति के बावजूद उसकी चातुरी और वाक्पटुता के कारण उसके मित्र उसके प्रति कभी कोई सामान्य नीति नहीं बना पाये थे. बहादुरी के साथ वह बार में एकत्रित किसी भी मंडली में शामिल हो लेता और सफाई से मंडली के एक छोर पर जमा रहता, आखिर उसे भी शराब के किसी राउंड में शामिल कर ही लेते. तमाम किस्म के चुटकुलों, गप्पों, पहलियों  और हल्की-फुल्की कविताओं से सज्जित वह एक फटकेबाज आवारागर्द था. हर किसी मानापमान के प्रति समभाव रखता था वह. किसी को पता नहीं था कि जीविका चलाने के कठिन काम को वह किस तरह साधता था, लेकिन अस्पष्ट-सी एक धारणा थी कि उसका सम्बंध रेस खेलनेवालों के लिए प्रकाशित किसी पत्रिका से था.

“उससे मिले कहाँ, कॉर्ली ?” उसने पूछा.

कॉर्ली ने तेजी से ओठ पर जीभ फेरी.

“यार, एक रात मैं डेम स्ट्रीट से जा रहा था कि मुझे वाटरहाउस कम्पनी की घड़ी के नीचे खड़ी एक खूबसूरत लौंडिया दिखी. मैंने उसे गुड ईवनिंग कहा, हां? फिर हम दोनों नहर की ओर टहलने निकल गये; उसने बताया कि वो बैगट स्ट्रीट पर एक घर में मेड का काम करती है. मैंने अपना हाथ उसके कंधों के गिर्द रख दिया और उस रात सिर्फ थोड़ा दबा-दबू लिया. अगले रविवार को मैं उससे बात करके मिलने गया. हम डॉनीब्रुक गये और मैं उसे एक खेत में ले गया. वह बोली एक डेयरी वाला उसका प्रेमी था…बढ़िया था, गुरु! हर रोज वो सिगरेट लाती और ट्राम का आने-जाने का किराया देती. एक रात वो दो टंच सिगार लाई, हाय! असल माल, जो उसका मालिक पीता था…मैं डरता था, यार, कि कहीं गर्भ न रह जाय, लेकिन लड़की इस मामले में चालाक है”.

“हो सकता है वह समझती हो कि तुम उससे शादी करोगे”, लेनिहैन ने कहा.

“मैंने उसे बता रखा है कि मैं बेकार हूँ” कॉर्ली बोला, “मैंने उससे कहा कि पहले पिम्स डिपार्टमेंटल स्टोर में काम करता था. मेरा नाम भी नहीं जानती. मैंने डर के मारे नहीं बताया. लेकिन उसका ख्याल है कि मैं अच्छे परिवार से हूँ”.

लेनिहैन फिर नि:शब्द हँसने लगा.

“आज तक  जो भी सुना है उसमें ये बात सबसे मजेदार है”, लेनिहैन ने कहा, “महा महा मजेदार, अव्वल!”

कॉर्ली के लम्बे कदमों ने मानो लेनिहैन को इस प्रशंसा के लिए धन्यवाद कहा. उसकी विशाल काया और लहरिया चाल की वजह से लेनिहैन को कई बार फुटपाथ से कूद-कूदकर सड़क पर आना पड़ा. कॉर्ली का बाप पुलिस इंस्पेक्टर था, कॉर्ली को कद-काठी और चाल पिता से मिली थी. चलते हुए उसके हाथ बगलों में रहते थे, बिना हिले, और वह एकदम सीधा होकर अपने सिर को एक से दूसरी तरफ हिलाते हुए चलता था. उसका मुंड विशाल और गोल था और बालों से तेल चूता था. उसके माथे पर हर मौसम में पसीना रहता. सिर पर एक गोल टोप, जिसे वह कनपटियों की ओर लगाकर पहनता था, ऐसा लगता था मानो बड़े जिमीकंद पर छोटा जिमीकंद उग आया हो. उसकी नजर सीधी होती थी जैसे परेड कर रहा हो, सड़क पर चलते किसी व्यक्ति को मुड़कर देखना हो तो उसका पूरा धड़ मुड़ता था, न कि केवल सिर. इस समय वह बेकार था. जब भी कोई जगह कहीं खाली होती उसका कोई मित्र उसे फौरन यह बुरी खबर दे देता. सादी वर्दी वाले पुलिस वालों के साथ घूमते और गम्भीर मुद्रा में उनसे बात करते उसे अकसर देखा जा सकता था. उसे हर चीज की अंदर की खबर रहती थी और हर बात पर निर्णय सुनाने का शौक था. साथियों की बात सुने बगैर वह बोलने लगता. बातें उसकी केवल अपने बारे में होती थीं: अमुक से उसने ये कहा फिर उस पर अमुक ने वो कहा और आखिर उसने कुछ और कहकर मामला रफा किया. जब वह इन वार्तालापों को दूसरों को सुना रहा होता तब फ्लोरेंस के लोगों की तरह अपने नाम के ‘सी’ अक्षर का ‘ह’ की तरह उच्चारण करता, माने हॉर्ली.

लेनिहैन ने मित्र को सिगरेट दी. भीड़ में चलते-चलते कॉर्ली बीच-बीच में गुजरती कुछ लड़कियों की ओर मुड़कर मुस्करा लेता था परंतु लेनिहन की नजर बड़े से चाँद पर टिकी थी जिसे चारों ओर दो प्रभामंडल दिख रहे थे. पूरी गंभीरता के साथ वह चंद्रमा के मुख के ऊपर गोधूलि की धूसर ज्योति के जाल को फैलता देखता रहा. देर के बाद वह बोला, “तो मैं मान लूँ कि यह काम तुम पूरा कर सकोगे? क्यों कॉर्ली!”

जवाब में कॉर्ली ने एक आँख दबाई.

“लड़की इस काम का जोखिम उठाने को तैयार है?”, लेनिहन ने संदेहपूर्वक पूछा. “औरतों का पता नहीं चलता”.

“वो एकदम फिट है”, कॉर्ली बोला, “मुझे उसे पटाने का ढंग मालूम है, यार. मेरे ऊपर काफी निछावर हो रखी है”.

“तुमको तो मैं मस्त छलिया कन्हैया मानता हूँ”, लेनिहैन ने कहा, “एकदम जैसा होना चाहिए, वैसा”.

उपहास की एक क्षीण रेख उसके पूरे व्यवहार में प्रकट होने वाली मुसाहिबी को कुछ हल्का कर गई. आत्मरक्षा के तौर पर उसकी आदत थी की अपनी चापलूसी भरी बातों को हास्य-विनोद की तरह समझे जाने की सम्भावना बनाये रखे. लेकिन कॉर्ली की बुद्धि इतनी महीन न थी.

“घरों में काम करने वालियों का जवाब नहीं है”, कॉर्ली बोला, “मैं बता रहा हूँ तुम्हें”.

“बताते हैं वो जो सभी कामवाली लड़कियों को आजमा चुके हैं”, लेनिहैन ने कहा.

“पता है, पहले मैं अच्छे घरों की लड़कियों के साथ दोस्ती करता था”, कॉर्ली ने मानो दिल का बोझ उतारते हुए कहा, “साउथ सर्कुलर की तरफ की लड़कियाँ. मैं उन्हें घुमाने ले जाता, ट्राम से कहीं, टिकट जेब से खरीदकर, या किसी बैंड को सुनाने या थियेटर में नाटक देखने. उनके लिए चाकलेट खरीदो, मिठाइयाँ खरीदो, नहीं तो कोई और चीज- अच्छा-खासा खर्चा था यार!” कॉर्ली ने कुछ यों कहा जैसे उसे भरोसा न हो कि सुननेवाला उसका यकीन कर रहा है.

लेनिहैन के लिए इस बात का यकीन करना बिल्कुल मुश्किल न था. उसने गम्भीर भाव से सिर हिलाकर विश्वास जताया.

“वो खेला पता है मुझे”, उसने कहा, “बेवकूफी का काम है”.

“हाँ, कसम खाने को भी कुछ मिला हो कभी!” कॉर्ली बोला.

“यहाँ भी यही हाल रहा है”, लेनिहैन ने कहा.

“सिर्फ एक से कुछ मिला”, कॉर्ली बोला.

उसने अपने ओठ पर जबान फेरकर उसकी खुश्की दूर की. उस लड़की की याद से उसकी आँखों में चमक आ गई. उसने भी चंद्रमा के म्लान वृत्त की ओर देखा जो अब तक लगभग छुप गया था. कॉर्ली कुछ देर तक विचारमग्न रहा, फिर अफसोस के साथ बोला, “वो लड़की…ठीक-ठाक थी.”

वह एक बार और थोड़ी देर तक चुप रहा, फिर उसने जोड़ा , “इस समय वह धंधे में है. मैंने एक रात उसे दो जनों के साथ अर्ल स्ट्रीट पर मोटर में जाते देखा”.

“तुम्हारी ही कारस्तानी हुई न यह?”, लेनिहैन ने कहा.

“मेरे पहले भी बहुत लोग उसके जीवन में आ चुके थे”, कॉर्ली ने दार्शनिक मुद्रा में कहा.

इस बार लेनिहैन विश्वास न कर सका, ऐसा प्रतीत हुआ. उसने अपना सिर इधर से उधर और उधर से इधर कई बार हिलाया और मुसकराया.

“तुम जानते हो ,कॉर्ली, कि तुम मुझे झाँसा नहीं दे सकते”.

“भगवान कसम!”, कॉर्ली ने कहा, “उसने खुद मुझे मुझे बताया था कि नहीं?”

लेनिमैन ने हाथों के संचालन से दु:ख का भाव व्यक्त किया .

“बलमा बेईमान” उसने कहा.

ट्रिनिटी कॉलेज की रेलिंग के समानांतर चलते हुए लेनिहैन कूदकर सड़क पर पहुँच गया और कॉलेज की क्लॉक की ओर देखा.

“नौ बीस”, वह बोला.

“बहुत समय है”, कार्ली ने कहा, “मिलेगी वहीं, पक्का! मैं हर बार थोड़ा इंतजार कराता हूँ.”

लेनिहन धीरे से हँसा.

“कसम से, कॉर्ली, लड़कियों को पटाना तुम ही जानते हो”, वह बोला.

“मुझे उनके सारे तिकड़म पता हैं”, कॉर्ली ने स्वीकारोक्ति के भाव से कहा.

“लेकिन ये बताओ कि तुम पक्का इस काम को अंजाम दे पाओगे?”, लेनिहैन ने एक बार फिर पूछा, “तुम्हें पता है कितना टेढ़ा काम है. ऐसे मामलों में लड़कियाँ दिल की बात दिल में रखती हैं. है या नहीं? बताओ!”

उसकी छोटी, चमकीली आँखें आश्वस्ति की खोज में कॉर्ली के चेहरे पर घूमती रहीं. कार्ली ने अपना सिर इधर से उधर झटका मानो किसी उड़ने वाले कीड़े से बच रहा हो. उसकी भौंहें संकुचित हुईं.

“मैं कर लूँगा”, उसने कहा, “मेरे ऊपर भरोसा करो, या नहीं रख सकते?”

लेनिहैन ने आगे कुछ नहीं कहा. वह मित्र का मिजाज खराब  करना नहीं चाहता था, कि वह उसे जहन्नुम में भेजते हुए कह दे तुम्हारी सलाह नहीं चाहिए. थोड़ी युक्ति से काम लेना पड़ेगा. लेकिन कॉर्ली की कुंचित भौहें जल्द ही सामान्य स्थिति में आ गईं. वह कुछ और ही सोच रहा था.

“अच्छी और भली लौंडिया है वो”, उसने प्रशंसा के भाव से कहा, “अच्छी और भली.“

वे नैसो स्ट्रीट पर चलते रहे, उसके बाद किल्डेयर स्ट्रीट में मुड़ गये. किल्डेयर स्ट्रीट क्लब के पोर्च के पास सड़क पर खड़ा एक हार्प-वादक कुछ श्रोताओं के लिए बजा रहा था. वह वाद्य के तारों को लापरवाही से छेड़ रहा था, बीच-बीच में किसी नये दर्शक की ओर एक नजर देख लेता, कभी थकी मुद्रा में आसमान की ओर ताकता. उसकी हार्प भी, मानो इस बात से लापरवाह कि उसका खोल सरक कर घुटनों तक आ गया है, दर्शकों की आँखों और बजाने वाले की उँगलियों से खिन्न-सी लगती थी. एक हाथ ‘बेस’ में ‘साइलेंट, ओ मॉयल’ की धुन बजा रहा था, दूसरा हाथ हर स्वरसमूह के बाद ‘ट्रेबल’ में चलता था. गीत के स्वर गभीर और स्पष्ट सुनाई दे रहे थे.

दोनों नौजवान सड़क पर बिना कोई बातचीत किये चले जा रहे थे. उदास संगीत उनका पीछा कर रहा था. स्टीफेन्स ग्रीन पर पहुँचकर उन्होंने सड़क पार की. ट्रामों का शोर, रोशनियाँ और लोगों की भीड़– इन सबने दोनों को अब तक के चुप्पी-भर सन्नाटे से मुक्ति दी.

“वो रही!”, कॉर्ली बोल उठा.

ह्यूम स्ट्रीट के कोने पर एक युवती खड़ी थी. उसकी पोशाक नीले रंग की थी, लिर पर सफेद गोल टोप था. एक हाथ में एक छतरी थी जिसे वह घुमा रही थी. लेनिहैन जोश से भर गया.

“एक बार मुझे भी देखने दो”, उसने कॉर्ली से कहा.

कॉर्ली ने तिरछी नजर से अपने साथी को देखा और उसके मुँह पर एक अप्रीतिकर मुसकान उभर आई.

“तुम मेरे से भाँजी मारना चाहते हो?” उसने सवाल किया.

“सत्यानाश हो!” लेनिहैन ने तल्खी से जवाब दिया, “मैं यह नहीं कहता कि उससे परिचय करा दो. उसे एक नजर देखना चाहता हूँ. खा नहीं जाऊँगा उसे”.

“ओ… बस देखना चाहते हो?”अबके कॉर्ली ने नरमी से कहा, “देखो मैं बताता हूँ. मैं जाकर उससे बातचीत करता हूँ. तुम बगल से गुजर लेना”.

“ठीक है”, लेनिहैन ने कहा.

कॉर्ली ने एक पाँव फुटपाथ के किनारे लगी जंजीर के पार रख दिया था, तभी लेनिहैन ने आवाज दी:

“और बाद में? बाद में कहाँ मिलेंगे?”

“साढ़े दस”, अपना दूसरा पैर उस पार रखते हुए कॉर्ली ने उत्तर दिया.

“कहाँ?”

“मेरियन स्ट्रीट के कोने पर. हम लोग वापस आ रहे होंगे”.

“काम ठीक से करना” लेनिहन ने बतौर रुखसत कहा.

कॉर्ली ने जवाब नहीं दिया. आराम से उसने सिर को बाएँ-दाएँ हिलाते सड़क पार की. उसकी विपुल काया, उसकी इत्मीनान-भरी चाल और उसके बूटों की ठोस आवाज में विजेता का-सा भाव था. लड़की क पास पहुँचकर उसने विना किसी प्रकार के अभिवादन के तत्काल बात करना आरंभ कर दिया.वह अपनी छतरी और भी तेज हिलाने लगी और अपनी एड़ियों पर अर्धवृत्त बनाती रही. एकाध बार जब वह बहुत पास आकर बोला तो लड़की हँसी और सिर पीछे की ओर मोड़ा.

कुछ देर तक लेनिहैन उनकी ओर देखता रहा. उसके बाद वह उसी फुटपाथ पर तेज-तेज कुछ देर तक चलता रहा, फिर सड़क तिरछे पार की. ह्यूम स्ट्रीट के कोने पर आते-आते उसे हवा में तेज इत्र की गंध मिली और उसने आँखों-आँखों युवती के हुलिए पर गौर किया. उसने अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहन रखी थी.उसकी नीले रंग की सर्ज की स्कर्ट कमर पर काले चमड़े के बेल्ट से बँधी थी. बेल्ट पर चाँदी के रंग का बड़ा बकल लगा था जो उसकी कटि को दबाकर छोटा करता दिख रहा था और उसके सफेद ब्लाउज के पतले कपड़े को एक क्लिप की तरह सँभाले था. उसने एक छोटा काला कोट पहन रखा था जिसमें सीप के बटन लगे थे और उसके गले के गिर्द एक पुराना ‘बोआ’ लटका था. महीन सिल्क के कपड़े से बना एक ‘कॉलरेट’ जान-बूझकर अस्त-व्यस्त करके पहना गया था. उसके वक्ष पर लाल फूलों का एक बड़ा गुच्छा डंढल के हिस्से को ऊपर करके पिन से टँका था. लेनिहैम की आँखों ने प्रशंसा के भाव से उसकी छोटे कद की, हट्ठी-कट्ठी और मजबूत काया को निहारा. प्रकट एवं स्वाभाविक सुस्वास्थ्य उसके मुख, उसके गोल और लाल गालों और उसकी संकोचरहित आँखों में झलकता था. उसके नाक-नक्श तीखे नहीं थे- नथुने चौड़े, होठ बेडौल और इस समय उत्तेजना-भरी और तुष्ट मुसकान में फैले हुए और सामने के दो दाँत थोड़े ऊँचे. उनके पास से गुजरते हुए लेनिहैन ने अपनी टोपी उठाकर अभिवादन जताया, कोई दस सेकंड में कॉर्ली ने हवा में प्रत्युत्तर दिया- प्रत्युत्तर में उसने यूँ-ही, खोये-खोये हाथ उठाया और अपने टोप का कोण बदल दिया.

लेनिहैन शेलबोर्न होटल तक चलकर रुक गया और इंतजार करने लगा. थोड़ी देर बाद वे दोनों आते दिखे. वे दायें मुड़ गये तो वह भी उनके पीछे-पीछे चला – सफेद जूतों में आराम से चलता वह मेरियन स्क्वेयर के एक तरफ के रास्ते पर बढ़ा. उन दोनों की चाल के हिसाब से अपनी चाल धीमी करके वह कॉर्ली के सिर पर नजर जमाये रहा– धुरी पर घूमते हुए गोले की तरह उसका सिर बार- बार लड़की के चेहरे पर झुक आ रहा था. लेनिहैन ने उन दोनों पर अपनी नजर तब तक बनाये रखी जब तक वे डॉनीब्रुक जाने वाली ट्राम पर सवार नहीं हो गये. उसके बाद व उसी रास्ते लौटा जिधर से आया था.

वह अकेला रह गया तो उसका चेहरे पर उम्र ज्यादा दिखने लगी. अब तक का प्रसन्नमुख भाव तिरोहित हो गया और ड्यूक्स लान की रेलिंग तक आते-आते वह रेलिंग का हल्का सहारा लेकर चलने लगा. पहले जो गाना हार्पिस्ट ने बजाया था उसकी धुन उसकी गति को नियंत्रित करने लगी. उसके नरम तलवे वाले जूते गीत की धुन पर चलने लगे और उसकी उँगलिया सरगम की तानों पर रेलिंग पर चलती रहीं.

वह उदासीन भाव से पहले स्टीफेंस ग्रीन के गिर्द और उसके बाद ग्राफ्टन स्ट्रीट पर चलता रहा. उसकी आँखों ने गुजरने वाली भीड़ के कई हिस्सों का अवलोकन किया, परंतु उदासीनता और खिन्नता के साथ. जो कुछ उसकी दिलजोई की खातिर सड़क पर मौजूद था वह उसे बेकार लगा, जिन आँखों ने उसे नागर की तरह आचरण करने का आमंत्रण दिया उनका उसने उत्तर नहीं दिया. उसे पता था कि किस्से गढ़ने और दिलजोई के लिए बातें बनाने में बहुत बोलना पड़ेगा और उसका मन इतना मुरझाया और गला इतना खुश्क था कि यह काम उसके बस का नहीं था. कॉर्ली से दुबारा मुलाकात तक का वक्त कैसे कटे यह समस्या थी. चलते रहने के अलावा मिलने का कोई और तरीका न था. रटलैंड स्क्वेयर के कोने पर वह बायें मुड़ गया जहाँ अँधेरी, शांत गली में उसे सुकून मिला. गली की मायूसी उसके मन की हालत से मेल खाती थी. आखिर वह एक बदहाल दूकान की खिड़की के सामने रुका जिस पर ‘अल्पाहार भवन’ सफेद अक्षरों में अंकित था. खिड़की के काँच पर दो परचे लगे थे जिनमें ‘जिंजर एल’ और ‘ जिंजर बियर’ ये दो इबारतें थीं. एक बहुत बड़ी तश्तरी पर सुअर की टांग और उसकी बगल में मिष्टान्न की प्लेट प्रदर्शित थे. वह कुछ देर तक इन खाद्यों को देखता रहा, फिर सतर्कता से गली की दोनों ओर देखता वह जल्दी-जल्दी दूकान में दाखिल हुआ.

वह भूखा था क्योंकि सुबह नाश्ते के समय दो अनिच्छुक बार कर्मियों से जो मुट्ठी-भर बिस्कुट उसने हासिल किये थे उनके अलावा उसने दिन भर कुछ नहीं खाया था. वह बिना मेजपोश की एक काठ की टेबुल पर बैठ गया. उसके सामने दो कामगार लड़कियाँ और एक मेकैनिक बैठे थे. एक फूहड़ दिखने वाली लड़की उसका ऑर्डर लेने आई.

“एक प्लेट मटर का कितना लगेगा?” उसने पूछा.

“डेढ़ पेंस, सर” लड़की ने उत्कर दिया.

“एक प्लेट मटर और एक बोतल जिंजर बियर लाओ”, उसने रुखाई से कहा ताकि उसकी उसकी भले घर वाली सूरत से पैदा भरम टूटे, क्योंकि उसके घुसने के साथ ही पहले से उपस्थित लोगों की बातचीत कुछ समय के लिए बंद हो गई थी. उसका चेहरा लाल हो रहा था. स्वाभाविक दिखने के लिए उसने अपनी टोपी पीछे सरका ली और कुहनियाँ टेबुल पर रख लीं. मेकैनिक और कामगार लड़कियों ने उसका बिंदुवार मुआयना किया, फिर वे पहले से धीमी आवाज में बातें करने लगे. वेटिंग कर रही लड़की सिरके और काली मिर्च के साथ पकाया सूखा हरा मटर, एक काँटा और जिंजर बियर लाई. वह जल्दी-जल्दी खाने लगा. स्वाद उसे इतना अच्छा लगा कि उसने दूकान का नाम मन ही मन याद कर लिया. मटर समाप्त करके वह बियर की चुस्कियाँ लेने लगा और कुछ देर तक कॉर्ली के कारनामे के बारे में सोचता बैठा रहा. उसने कल्पना में प्रेमी-युगल को किसी अँधेरी गली में चलते देखा; वह कॉर्ली की पुरुषोचित प्रणयालाप को कल्पना में सुन रहा था,और फिर एक बार लड़की की उत्तेजना-भरी मुसकान उसे दिखाई दी. इस कल्पित दृश्य ने उसकी अपनी जेब और आत्मा की दरिद्रता का तीव्र अनुभव कराया. मारे-मारे फिरते, शैतान की दुम पकड़े, ठगी-चालबाजी की जिन्दगी से वह ऊब चुका था. नवम्बर में इकतीस साल का हो जायेगा. क्या कभी उसे ठिकाने की नौकरी हाथ आयेगी? क्या उसका अपना घर-परिवार होगा? उसने सोचा, कितना सुखद होता एक गरम आग के किनारे बैठना और ताजा भोजन खाने बैठना!  दोस्तों के साथ और लड़कियों को घुमाते सड़कों की खाक बहुत छान ली उसने. उसे पता था वे दोस्त कितने काम के थे, या लड़कियाँ ही कैसी थीं. अनुभवों ने उसके मन को संसार के प्रति कटुता से भर दिया है. लेकिन आशा पूरी नष्ट नहीं हुई थी. भोजन के बाद वह पहले की तुलना में अधिक ठीक महसूस कर रहा था, अपने जीवन से अपेक्षाकृत कम उकताया हुआ, कम पराभूत- चेतस्. अब भी समय है– काश उसे कोई भली, सीधी और पैसेवाली लड़की मिल जाय जिसके साथ वह दुनिया के किसी आरामदेह कोने में बस जाय!

उसने फूहड़-सी लड़की को ढाई पेंस अदा किये और फिर से इधर-उधर घूमने को बाहर निकला. वह कैपेल स्ट्रीट गया और सिटी हॉल की दिशा में चलने लगा. फिर वह डेम स्ट्रीट में मुड़ गया. जार्जेज स्ट्रीट के कोने पर उसे अपने दो दोस्त मिल गये. वह उनसे बात करने को ठहर गया. उसे अच्छा ही लगा कि इतनी सारी घुमक्कड़ी के बाद जरा आराम मिला. उसके दोस्तों ने पूछा कि उसने कॉर्ली को देखा है क्या और नया क्या चल रहा है. उसने जवाब दिया कि उसने सारा दिन कॉर्ली की सोहबत में बिताया है. दोस्तों ने ज्यादा बात नहीं की. भीड़ में जाते लोगों को वे भावशून्य ढंग से देख रहे थे और बीच-बीच में किसी पर प्रतिकूल टिप्पणी कर रहे थे. एक ने कहा कि उसने घंटे भर पहले मैक को वेस्टमलैंड स्ट्रीट पर देखा था. इस पर लेनिहैन ने बताया कि वह खुद पिछली रात मैक के साथ ईगन के पब में था. जिस युवक ने मैक को वेस्टमलैंड स्ट्रीट पर देखा था उसने जानना चाहा कि क्या यह सच है कि मैक ने बिलियर्ड मैच में पैसे जीते थे. लेनिहैन ने कहा, नहीं मालूम: उसने बताया कि ईगन के पब में होलहैन ने सबको शराब पिलाई.

पौने दस बजे उसने मित्रों से विदा ली और जार्जेज स्ट्रीट पर चलने लगा. सिटी माकेट के पास वह बायें मुड़ गया और ग्राफ्टन स्ट्रीट पर आ गया. युवकों-युवतियों की भीड़ कम हो गई थी. रास्ते पर चलते उसे कई लोग या जोड़े परस्पर विदा लेते दिखे. वह कॉलेज ऑफ सर्जन्स की घड़ी तक गया, उस समय ठीक दस बज रहे थे. वह मैदान के उत्तरी किनारे पर फुर्ती से चलने लगा, उसे भय था कि कहीं वे दोनों समय से पहले न आ जायँ. मेरियन स्ट्रीट के कोने पर पहुँचकर वह एक स्ट्रीट लैम्प के तले अँधेरे में खड़ा हो इंतजार करने लगा. बचाकर रखी सिगरेटों में से एक सिगरेट उसने जला ली. वह लैम्पपोस्ट से पीठ लगाकर खड़ा हो गया और अपनी नजर उधर जमा ली जिधर से कॉर्ली और लड़की के लौटने की उसे उम्मीद थी.

उसका दिमाग फिर चलने लगा. उसे चिन्ता हुई, कॉर्ली काम कर भी पाया या नहीं. उसके मन में सवाल उठा कि कॉर्ली ने लड़की को पहले ही बता दिया होगा या अंत में बताने के लिए छोड़ रखा होगा. अपने मित्र की स्थिति में उसकी, तथा स्वयं अपनी, उत्कंठा और भयमिश्रित उत्तेजना का अनुभव किया. लेकिन कॉर्ली की ऐंठ-भरी चाल की याद ने उसे आश्वस्त किया: उसे विश्वास था कि कॉर्ली मकसद हासिल करके ही आयेगा. अचानक उसके दिमाग में ख्याल आया कि कहीं कॉर्ली लड़की को किसी और रास्ते से घर पहुँचाकर उसे दाँव तो नहीं दे गया. उसने सड़क पर नजर दौड़ाई: वे दोनों कहीं नहीं दिखे. कॉलेज की घड़ी  दस बजे थे, उसके बाद आधा घंटा तो बीत गया होगा. कॉर्ली ऐसा कर सकता है? उसने अपनी आखिरी सिगरेट जलाई और बेचैनी के साथ कश लेने लगा. वह आँखों पर जोर देकर हर ट्राम से चौक के कोने पर उतरने वाले यात्रियों को देखता रहा. वे दोनों किसी और रास्ते से घर चले गये. सिगरेट का कागज फट गया, उसे लेनिहैन ने गालियाँ निकालते हुए सड़क पर फेंक दिया.

अचानक वे दोनों लेनिहैन की तरफ आते दिखे. एक साथ चकित और हर्षित लेनिहैन लैम्पपोस्ट से खूब सटकर खड़ा रहा और उनकी चाल से यह अनुमान लगाने की कोशिश की कि सफलता मिली या नहीं. वे तेज चल रहे थे, लड़की तेजी से छोटे कदम रखती और कॉर्ली लम्बे डगों से उसकी बराबरी में चलता हुआ. देखने से लगा वे बात नहीं कर रहे हैं. नतीजे का अंदाज करके उसे जैसे बर्छी चुभी. पता था कॉर्ली सफल नहीं होगा, कुछ नहीं होने वाला !

वे दोनों बैगट स्ट्रीट में मुड़ गये और वह दूसरे फुटपाथ से उनका पीछा करने लगा. जब वे रुके तब वह भी रुक गया. वे कुछ देर तक बातें करते रहे, उसके बाद लड़की एक घर के तलघर की ओर जाने वाली सीढ़ियाँ उतर गई. (तलघर में किचेन होता था और इसका द्वार नौकरों के घुसने का रास्ता था. -अनु) कॉर्ली घर को जाने वाले रास्ते के किनारे खड़ा रहा. कुछ मिनट बीते. फिर घर का मुख्य द्वार सावधानी से, धीरे-धीरे खोला गया. एक स्त्री सामने की सीढ़ियों से दौड़कर उतरी और खाँसने की ध्वनि की. कार्ली मुड़ा और स्त्री के पास गया. कुछ सेकंड के लिए कार्ली की विशाल काया के पीछे वह लेनिहैन की नजर से छिप गई, फिर वह प्रकट हुई और सीढ़ियो के ऊपर तेज चढ़ती दिखी. दरवाजा बंद हो गया और कॉर्ली स्टीफेन्स ग्रीन की दिशा में तेज-तेज चलने लगा.

लेनिहैन भी उसी दिशा में तेज चाल से चल पड़ा. हलकी वर्षा की कुछ बूँदें गिरीं. लेनिहैन ने उन्हें चेतावनी का संकेत माना और पीछे उस घर की ओर देखा जिसमें लड़की गई थी, यह पता करने को कि कोई उसे देख तो नहीं रहा. उसने बेसब्री से दौड़कर सड़क पार की. उत्कंठा और तेज चलने की वजह से वह हाँफने लगा था. उसने आवाज दी:

“हेलो ! कॉर्ली !”

कॉर्ली ने पीछे मुड़कर देखा कि कौन पुकार रहा है, फिर पहले की तरह चलता रहा. लेनिहैन एक हाथ से बरसाती कोट कंधों पर सँभालता उसके पीछे दौड़ा.

“हेलो, कॉर्ली !”, उसने फिर आवाज दी.

वह कॉर्ली के पास पहुँच गया और उसके चेहरे को ध्यान से देखा. चेहरे से कुछ पता नहीं चला.

“अब बताओ”, उसने कहा, “ काम बना?”

वे ईली प्लेस के कोने तक पहुँच गये. अब भी बिना कोई उत्तर दिये कॉर्ली बाईं तरफ गली में मुड़ गया. उसके मुँह के समस्त अवयवों पर एक कठिन शांति थी. लेनिहन मित्र के साथ चलता रहा, उसकी साँसों में घबराहट थी. वह कुछ समझ नहीं पा रहा था. अब उसकी आवाज में धमकी थी.

“कुछ बताओगे भी ? वह बोला. “तुमने उससे काम निकालने की कोशिश की?”

कॉर्ली पहले लैम्पपोस्ट के नीचे रुका और सख्त लहजे में सामने देखता रहा. फिर गम्भीरतापूर्वक उसने एक हाथ रोशनी की ओर बढ़ाया, और,  हँसते हुए, अपने शागिर्द को दिखाकर मुट्ठी खोली. हथेली पर एक सोने का सिक्का चमक रहा था.

__________________

शिव किशोर तिवारी

२००७ में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त.
हिंदी, असमिया, बंगला, संस्कृत, अंग्रेजी, सिलहटी और भोजपुरी आदि भाषाओँ से अनुवाद और आलोचनात्मक लेखन.

tewarisk@yahoocom

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Comments 7

  1. Deepak Sharma says:
    4 years ago

    Another Joyce masterpiece translated brilliantly by Shiv Kishore Tewari ji.
    The sheer incapacity to find work for themselves and their dependence on mean little relationships make these two Dubliners representative of two idlers/parasites anywhere in the world..

    Congratulations Shiv Kishore Tewari ji and Arun Deb ji for presenting this story.

    Reply
  2. Atulvir Arora says:
    4 years ago

    भाई, सच पूछो तो इस तरह के अनुवाद अच्छे भी लगते हैं और कभी नहीं भी। एक चीज़ जो टिपिकल आयरिश है , उसे उसके बदले बदले से ऊबड़ खाबड़ माहौल के साथ ओरिजनल संज्ञाओं के बीच पढ़ना तरह तरह की अचकचाहट से भर देता है । मूल के स्लैन्ग्स अनुवाद में गु म हो जाते हैं । कई जगहों पर लगता है कि कुछ प्रतीकात्मक ढंग से कहा जा रहा है और कुछ अनकहा छोड़ा जा रहा है , तो उसे पकड़ने में बाधा आती है। बैकेट के ‘गोदो’ के दो पात्र बिना किसी वजह के याद आ जाएं तो और गुनाह। कोई मेल भी नहीं । ‘ टू ग्लैण्ट्स’ तो वैसे भी उनसे आधी सदी पहले की रचना है । कैसे मूर्ख स्मृति जगाती है मेरे भीतर। पर, क्या करूं? एक किस्म की आवारगी , भूख, अय्याशी , और ज्यां जेने चरित स्खलन और इस सब के बीच कुछ बेहद आध्यात्मिक संलग्नताएं इसे अधिकाधिक जटिल बनाती जाती हैं । कथा में बहुत कुछ है जो प्रश्नाहत छोड़ दिया गया है । सोचते रहो, गर्क होते रहो !

    Reply
  3. Anil Janvijay says:
    4 years ago

    मेरे ख़याल से इस कहानी का शीर्षक ’दो छैले’ हो सकता था। तिवारी जी ने कहानी की भाषा पर ठीक से पूरा-पूरा काम नहीं किया। अगर भाषा को अधिक ’चलताऊ’, और अधिक बोलचाल की भाषा बनाया होता तो इस कहानी में जान पड़ जाती और यह कहानी और अधिक जीवन्त दिखाई पड़ती।

    Reply
  4. शिव दयाल says:
    4 years ago

    अच्छी, रोचक कहानी का बढ़िया अनुवाद!

    Reply
  5. अम्बर पाण्डेय says:
    4 years ago

    यह अनुवाद पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कोई खिड़कियाँ खोल खोलकर प्रकाश कर रहा हूँ।
    इन्हें मैं अनुवाद की तरह नहीं पढ़ रहा हूँ बल्कि Joyce की एक प्रकार की व्याख्या की तरह पढ़ता हूँ। जो बात अंग्रेज़ी में पढ़ उतनी खुली न थी वह हिंदी में पढ़कर एक अलग ही डिमेन्शन खोलती है।
    अनुवादों की उन्हें भी आवश्यकता होती है जो मूल को पढ़ चुके है (जैसा कि Teji जी ने लिखा है) क्योंकि अनुवाद active reading (गायत्री चक्रवर्ती स्पिवैक) है। अनुवादक किसी भी टेक्स्ट का सबसे आत्मीय पाठ करता है। यह इस तरह की बात है कि अपने crush के बॉयफ़्रेंड से अपने crush के बारे में बात करना।
    Tewari Shiv Kishore जी का आभार।

    Reply
  6. अखिलेश says:
    4 years ago

    बहुत अच्छा अनुवाद। पाठ की प्रांजलता अन्त तक बनी रही।

    Reply
  7. राकेश रोहित says:
    4 years ago

    सुन्दर चयन और प्रस्तुति! महत्वपूर्ण कविताओं को सामने लाने की यह अच्छी पहल है।

    Reply

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