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Home » विजय राही की कविताएँ

विजय राही की कविताएँ

कविताएँ अच्छी हों तो पढ़ने का सुख देती हैं. प्रकाशित करने का भी श्रम सार्थक होता है. कविता और प्रकारांतर से शब्दों पर विश्वास दृढ़ होता है. विजय राही राजस्थान से आते हैं. प्रभात और विनोद पदरज जैसे श्रेष्ठ कवियों की मिट्टी से. इन कविताओं में जबरदस्ती के रोड़े-पत्थर नहीं हैं न अख़बारों की तात्कालिकता. अपनी जमीन से स्वाभाविक ढंग से अंकुरित कविताएँ हैं. प्रस्तुत है.

by arun dev
June 17, 2024
in कविता
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विजय राही की कविताएँ
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विजय राही की कविताएँ

१.
याद

सौंफ कट रही है
मगर उसकी ख़ुशबू नहीं
डंठलों में भी उतनी ही ख़ुशबू है
जो अभी कुछ दिन और रहेगी हवाओं में

तुम्हारे चले जाने पर भी
तुम्हारी याद की ही तरह
यह तपेगी
जलेगी
ढह पड़ेगी

 

 

२.
तुम्हारे बारे में

सहजन की फलियाँ लेते आना
अगर तुम आओ
फूलों की सब्जी से मेरा जी भर गया है

कस्बे की हाट में मिलती हैं
गंदे नाले की भाजी
तुम मोरेल से लाना बिल्कुल ताज़ी

कानों में छेद न करना पड़े जिनके लिए
नाक में भी चुभे नहीं
ऐसी बालियाँ लेकर आना तुम
अगर गणगौर के मेले जाओ

कितने कम रहते हो तुम मेरे पास
नहीं तो मंगाती ही रहूँ
कुछ न कुछ रोज़ मैं तुमसे

पीली लूगड़ी ज़रूर ले आना इस बार
जिसमें अच्छे कसीदे हो
आखातीज पर भाई का ब्याव है
मेरी सहेलियाँ तुमको उलाहना देगी

क्यों नहीं तुम लूगड़ी के फूल हो जाते
मैं तुमको ही माथे पर ओढ़ लेती

इन दिनों रोज़ दिन-रात
मैं इसी चिन्ता में रहती हूँ
जब तुम परदेश चले जाओगे
तब मेरे लिए अमरूद कौन लाएगा

 

 

३.
तुम्हारा प्यार

मेरे लिए चैत्र का महीना है यह
नीम के फूलों का महीना
जिसमें उम्र गुज़ार सकता हूँ मैं
सिर्फ़ नीम फूलों की नीम-ख़ुशबू को
अपने नथूनों में भर-भरकर

यह मादकता ऐसी है
भूख-प्यास का ज़रा भी एहसास नहीं होता
जग को बिसरित कर देता है मन
एक खेलता हुआ बच्चा रोटी-पानी भूल जाता है

 

4.
तुम्हारा प्यार (२)

दिल बुझ चुका है
जख़्म सूख चुके हैं सीने के
ख़ामोश है ज़बान

लेकिन आत्मा में घाव है अभी भी
इस घर के नष्ट होने से पहले
एक-बारगी इसमें जीवन भर देगा
तुम्हारा प्यार

 

 

5.
आँधी

आँधी आती है
जंगल के पेड़ चिपक जाते हैं एक-दूसरे से
अपने आपको टूटने से बचते-बचाते हुए

वे अपनी डालियों के हाथ हिलाते हैं
हिम्मत बँधाते हैं एक-दूसरे को
पौधों को अपनी बाँहों में छुपा लेते हैं

कुछ ऐसे पेड़ भी होते हैं
जिनका दूर तक कोई करीबी नहीं होता
कवियों की तरह
अलग-थलग पड़े अपने कुनबे से
वे अकेले ही आँधी के थपेड़े खाते हैं
सहते हैं सहने की सब सीमाओं तक
लेकिन आख़िर टूट जाते हैं

जीवन की ऐसी ही किसी आँधी में
तुमसे बिछुड़ जाने के बाद
जैसे मेरी छाती टूटती है

 

 

6.
बारिश

जैसे हमको गाड़ी दूर से दिख जाती है
वैसे माँ को दूर से दिख जाती है बारिश

 

 

7.
ग्वालिन

वह पढ़ती नहीं गाय चराती है
कौन जानता है वह गाय चराती है
इसलिए पढ़ नहीं पाती हो
शायद इसलिए भी कि
घर में कोई और गाय चराने वाला नहीं

बाप पिछले साल चेचक से मर गया उसका
माँ को फुर्सत नहीं घर-बार के कामों से
छोटी बहन पढ़ने जाती है सरकारी स्कूल में
छोटा भाई बहुत छोटा है अभी
गाय के बछड़े की ही तरह

वह अल-सुबह निकलती है
गायों को लेकर चारागाह की तरफ
अपनी चुन्नी में बांधकर प्याज-रोटी
हाथों में लाठी और पानी का देउडा लेकर

अपनी गायों के साथ-साथ में
बस्ती की‌ दो-एक गायें चरा लाती है
उसके बदले में मिल जाता उसे
कुछ नाज-पानी और पैसे भी

गायें चरती रहती है मैदानों में हरी घास
लड़कियाँ शादी का खेल रचाती है
गायें सुस्ताती है जब दोपहर में पेड़ों तले
वह भी सखियों संग नाचती-गाती है

गायों का शीतल स्पर्श पाकर
दूर हो जाती है उसकी सारी थकान
उसका स्पर्श पाकर गायें भी सुख पाती हैं
पड़ौस में चढ़ती है जब कोई खिरोण्डी
उसे ग्वालों के साथ सम्मान प्राप्त होता है
वह ख़ुशी से गदगद हो उठती है

बस्ती के बच्चे उससे पूछते हैं-
“कमली! तू क्यूं नी पढ़बे जावे”
वह चुप हो जाती कुछ नहीं बोलती
ज़्यादा छेड़े जाने पर कहती-
“पढ़र कांई करूंगी
पेला ही कौनी पढ़ी, अब कांई पढूँगी
तम ही पढ़ो भाई-बहणों
म्हारी जिंदगी म तो
गाय चराबो ही लिख्यो छ!”

कभी-कभी लड़कियों का बस्ता टांगकर
शरमाती हुई वह चुन्नी में मुँह छुपा लेती है
गाय चराने वाली लड़की
एक दिन सचमुच गाय बन जाती है

 

८.
नई जगह

नई जगह नई होती है
मगर कुछ-कुछ पुरानी से मिलती जुलती-सी
लोग भी नए मिलते हैं जीवन में
लेकिन कुछ-कुछ पुरानों से हिलते-मिलते से

नई चीज़ें नई ही होती हैं
पर कुछ-कुछ पुरानी के आकार सी भी
नई जगह नए लोगों से नई होती है
पुरानी जगह पुराने लोगों से पुरानी

मगर नई जगहों के बीच
पुरानी जगहें दखल-अंदाज़ी करती रहती हैं
अपनी याद दिलाती रहती हैं

 

विजय राही
3/02/1990 दौसा, राजस्थान

विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं और डिजिटल माध्यम में कविताएँ प्रकाशित.
दैनिक भास्कर प्रतिभा खोज प्रोत्साहन पुरस्कार (2018), कलमकार मंच का  द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार (2019)

संप्रति
राजकीय महाविद्यालय, कानोता, जयपुर में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत
vjbilona532@gmail.com

Tags: 20242024 कविताएँनई सदी की कविताएँविजय राही
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Comments 51

  1. कुमार अम्बुज says:
    1 year ago

    सभी कविताएँ जी जुड़ाने वाली हैं। ख़ासतौर पर शुरुआती। अंतिम भी एक सुखद टीस से भरी है।
    बधाई और शुभकामनाएँ।

    Reply
  2. विनोद पदरज says:
    1 year ago

    बहुत अच्छी कविताएं
    कविताओं की एकरस भीड़ में अपनी ज़मीन हवा पानी से बनी ताजी टटकी कविताएं जिनका आकाश पहचाना जा सकता है और धीमी मंदरी आंच भी।
    विजय और अमर हमारी आशाएं हैं जो हमारे देस को वाणी देते हैं

    Reply
    • बेहतरी रडॉ राजेंद्र यादव आज राजेंद्र यादव आजाद न काव्य रचनाओं के लिए बधाई says:
      1 year ago

      विजय रही गांव से जुड़ा साहित्यकार है इसकी काव्य रचनाओं में गांव की सौंधी मिट्टी की महक आती है बेहतरीन काव्य रचनाओं के लिए बधाई

      Reply
  3. कल्लोल चक्रवर्ती says:
    1 year ago

    बहुत सहज, स्वाभाविक और अपनी स्थानीय प्रकृति एवं परिवेश को चित्रित करने वाली कविताएं हैं, जो मुग्ध करती हैं।

    Reply
  4. कौशल तिवारी says:
    1 year ago

    क्यों नहीं तुम लूगड़ी के फूल हो जाते
    मैं तुमको ही माथे पर ओढ़ लेती
    वाह अद्भुत जमीन से जुड़ी कविता

    Reply
  5. आशुतोष दुबे says:
    1 year ago

    अच्छी कविताएं. ताज़गी, मितकथन, सादगी : इनमें मेरी पसंद का बहुत कुछ है. कवि को शुभकामनाएं.

    Reply
  6. Poonam manu says:
    1 year ago

    बहुत अच्छी कविताएं। मेरे मन की कविताएं। विनोद पदरज जी की कविताओं से मानों गुफ्तगू करती हैं। विजय जी को हार्दिक बधाई

    Reply
    • कविता मुखर says:
      1 year ago

      कविताओं में से झांक रहे हैं ठेठ ग्रामीण सुख दुख के भाव जो जा जुड़ते हैं सार्वभौमिक सुख दुख से !

      Reply
  7. avenindra mann says:
    1 year ago

    प्यारी कविताएं, विजय भाई कि कविताओं में सेहजता कब चुभ जाए पता hi नहीं चलता,, बेहतरीन और कुछ हट के .
    मेरी शुभकामनायें हैँ, वो लेखन क्षेत्र में बहुत कुछ करने वाले हैँ

    Reply
  8. Sumita Ojha says:
    1 year ago

    सौंफ की खुशबू की तरह ही देर तक घेरे रहती है इन सहज-सुन्दर कविताओं की संवेदना। कवि को बधाई।

    Reply
  9. Anonymous says:
    1 year ago

    बहुत ही सुंदर कविताएँ। विनोद पदरज, प्रभात से मिलकर ये कुनबा बढ़ रहा है।

    Reply
  10. राहुल मीणा says:
    1 year ago

    पदरज जी की टिप्पणी ही मेरी भी बात है।

    Reply
  11. Anonymous says:
    1 year ago

    इन कविताओं में जीवन की सादगी और कहन की सरलता है। कविताओं पढ़ते हुए जुड़ जाते है। लोक की आशा – उम्मीदों से कविताओं को रचा हैं। कवि को बहुत बधाई।

    Reply
  12. Komal beplawat says:
    1 year ago

    सुंदर, सरस और यादगार कविताएं । बहुत बधाई राही जी।

    Reply
  13. Pawan Kumar vaishnav says:
    1 year ago

    बहुत बेहतरीन कविताएं लिखी। बधाई विजय जी को।

    Reply
  14. शिवानी जयपुर says:
    1 year ago

    मन को गहरे छूती हैं ये कविताएँ। जीवन का सार और रस भी है इनमें तो दर्शन भी। दो पंक्ति की कविता- ‘बारिश’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
    कवि के रूप में विजय प्रभावी है और इससे बहुत उम्मीद है।
    शुभकामनाएँ

    Reply
  15. कैलाश मनहर says:
    1 year ago

    बहुत अच्छी कवितायें हैं। इन कविताओं में लोक ध्वनि की मध्दम-सी अनुगूंज सुनाई देती है। विजय को बहुत बहुत बधाई और आपको ये कवितायें प्रकाशित करने हेतु साधुवाद।

    Reply
  16. हरीश करमचंदाणी says:
    1 year ago

    बहुत सुंदर कविताएं मिट्टी अपनी की गंध लिए

    Reply
  17. पुरु मालव says:
    1 year ago

    बहुत अच्छी कविताएं हैं।

    Reply
  18. rahul jha says:
    1 year ago

    टटके भाव-बिंब की कविताएँ…जो एकदम ख़ालिश देशजता लिए ‘धँस’ जाती हैं…
    दूसरी बात यह कि इन कविताओं में रेतिले विस्तार का जो अनंत है…जो रागदारी है…वह एक अलग ‘थाट’ लिए हुए है…

    Reply
  19. डॉ. भूपेंद्र बिष्ट says:
    1 year ago

    ठीक कहा आपने, विजय राही की कविताएं पढ़ने का सुख देती हैं. इस सुख के तुरंत बाद कविताओं में रुपायित स्मृतियां और अधूरी कामनाएं पाठक के मन को दुखी भी नहीं करती.
    कारण, इफेमिनेट हो रहने के स्वभाव की ताकत. ….. जैसे छठी कविता ‘बारिश’ में मां की हस्ती.

    Reply
  20. अजय दुर्ज्ञेय says:
    1 year ago

    जरूरी कविताएँ। गाँव के कुएँ की तरह। करेजा जुड़ाती हुईं। विजय भैया को बधाई ♥️

    Reply
  21. सुधा देवरानी says:
    1 year ago

    एक से बढ़कर एक कविताएं
    दिल को छूती…
    बहुत ही लाजवाब
    वाह!!!

    Reply
  22. विनीता बाडमेरा says:
    1 year ago

    “गाय चराने वाली लड़की
    एक दिन सचमुच गाय बन जाती है।”वाहहह
    अद्भुत कविताएं हैं विजय राही जी की , इसलिए इनका असर बहुत दिनों तक बना रहेगा। सरल शब्दों में बिना किसी लाग लपेट के लिखी इन कविताओं में माटी की खुशबू भी है और जीवन की खूबसूरती भी।
    कवि को बधाई

    Reply
  23. Hiralal Nagar says:
    1 year ago

    जी, लगा कि कविताएं ही पढ़ रहा हूं -बहुत आत्मीय, अनछुई फूल-पत्ती की तरह।
    कविता पढ़कर उमंग -सी हुई, कुछ भी हो, कैसी भी हो कविता लिखते रहना चाहिए, नहीं तो सूख जाएगा मन।

    हीरालाल नागर

    Reply
  24. Ajay kumar bairwa says:
    1 year ago

    विजय राही जी आपकी सभी कविताएँ शानदार है जमीनी स्तर से जुड़ी हुई अंतर्मन को छुने वाली, कविताएँ पढ़ने पर आभास होता है मेरे आस पास के परिघटनायों को उकेरा गया हो l
    आशा है कि आगे भी आपकी ऐसी कविताएँ पढ़ने का लाभ प्राप्त होता रहे l

    Reply
  25. Amzad khan says:
    1 year ago

    राही जी माशाल्लाह बहुत ही खूबसूरत कविताएं हैं आपकी मानो ऐसा प्रतीत होता है जैसे की कोई पास में बैठा हो और मीठी-मीठी बातें कर रहा हो बहुत ही खूबसूरत है

    Reply
    • अवधेश मीना says:
      1 year ago

      विजय राही, आधुनिक युग में बहुत सुंदर कविताओं के माध्यम से युवा पीढ़ी को एक नई सोच जाग्रत करने का काम कर रहे हैं। धन्यवाद प्रिय भतीजे

      Reply
  26. शीशराम डोई says:
    1 year ago

    वाह अति सुंदर…आपकी कविताएं पढ़ते वक्त यूं नही लगता कि कुछ पढ़ रहे है, ऐसा लगता मैं इन तमाम चीजों को जी रहा हूं
    । वाकई में बहुत सादगी और गांव के सच्चे जीवन को चरितार्थ करते है आपके शब्द।

    Reply
  27. Kamal Kumar says:
    1 year ago

    हिंदी संसार मे जरूरी हस्तक्षेप की तरह दाखिल कविताएं। बहोत मुबारक विजय भाई।

    Reply
  28. यशवंत जोशी says:
    1 year ago

    विजय राही की उम्दा कविताएं छुपे हुए कई सवालों का जवाब है। शुभकामनाएं

    Reply
  29. Yaswant joshi says:
    1 year ago

    विजय रही की कविताओं में कई सामाजिक आर्थिक संदेश छुपे हुए शुभकामनाएं

    Reply
  30. माधव राठौर says:
    1 year ago

    समालोचन इस समय की बेहतरीन साहित्यिक ई-पत्रिका है। इस बार विजय राही की लोक व उसके जीवन की गन्ध से लिपटी प्रेम कविताएँ प्रकाशित हुई हैं।
    ऐसी सहज व सरल कहन के साथ ये कविताएं देर तक आसपास गूँजती रहती हैं।
    कम से कम मेरा निज मानना है कि अब कविता की तरफ विजय का प्रस्थान बिन्दु यहाँ से शुरु हो रहा है। अब इससे आगे की यात्रा इस रेंज की कविता से प्रारम्भ होगी।
    इस उम्मीद के साथ बहुत बहुत बधाई हो विजय भाई।💐💐💐

    Reply
  31. Surendra kumar अर्जुन says:
    1 year ago

    शानदार कविताओं का संग्रह, बहुत बहुत बधाई सर 💐💐

    Reply
  32. Vijay P Meena says:
    1 year ago

    Amazing poetry by Vijay Rahi my younger brother.
    Every word of his poetry define the calibre of the poet. I am speechless for his poetry.

    Reply
  33. Dr AMRATA Choudhary says:
    1 year ago

    शानदार कविताओं का संग्रह, बहुत बहुत बधाई सर 💐💐

    Reply
  34. सुमेर सिंह गुर्जर says:
    1 year ago

    शानदार कविताओं का संग्रह विजय इसी प्रकार अपनी कविताओं से अपनी पहचान बनाते रहो देश समाज और प्रकृति का नाम रोशन करते हैं

    Reply
  35. Anonymous says:
    1 year ago

    कविताएँ बहुत अच्छी लगी.

    Reply
  36. आरती शर्मा says:
    1 year ago

    मन को छू लेने वाली कविताएं | देर तक जेहन में रहती हैं | बहुत बधाई विजय भाई

    Reply
  37. Vijay Rahi says:
    1 year ago

    कविताओं को ख़ूबसूरत तरीके से प्रकाशित करने के लिए अरुण देव जी का शुक्रिया । कविताओं पर विश्वास जताने और उत्साहवर्धक टिप्पणियों से नवाज़ने के लिए आप सबका भी बेहद शुक्रिया। आप सबका स्नेह बनाए रहें 🌻

    – विजय राही
    दौसा, राजस्थान

    Reply
  38. प्रीतिका says:
    1 year ago

    बहुत सुंदर और मार्मिक कविताएं। कम शब्दों में कमाल किया है आपने। शब्द बहुत सीमित हैं परंतु अर्थ में सागर की सी गहराई और विस्तार है। बारिश , सौंफ, गाय चराने वाली लड़की ,नीम इनके माध्यम से हमारी संस्कृति और संवेदना दोनो के दर्शन होते हैं। आपकी कविताओं में मोनालिसा की सी मुस्कान छुपी हुई है। बहुत बहुत बधाई।

    Reply
  39. kalu says:
    1 year ago

    very good and impresive poem written by vijay

    Reply
  40. संतोष मीना says:
    1 year ago

    राही साहब ,आपकी कविताओं में घर – आंगन की खुशबू हैं तो दूसरी तरफ वियोग की मार्मिकता हैं । जहाँ आपकी संवेदना समाज की संस्कृति व सभ्यता को अमर शब्द प्रदान करती है ।

    आप ऐसे ही साहित्य सेवा करते हुए समाज राह दिखाते रहे ।

    सन्तोष मीना
    दौसा
    शोधार्थी
    राज.विश्वविद्यालय

    Reply
  41. विकास कुमार शर्मा says:
    1 year ago

    विजय राही की कविताओं को पढ़कर महसूस होता है कि अब भी हिंदी साहित्य में ग्रामीण जीवन की कविताएं लिखी जा रही हैं।अब भी हिंदी साहित्य अच्छे कवियों से समृद्ध है।मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएं स्वीकार करें कविवर औऱ ऐसे ही लिखते रहे।खेत खलिहान, लूगड़ी, बारिश की कविताएं।

    Reply
  42. नरेन्द्र कुमार शर्मा says:
    1 year ago

    बेहद खूब रोचक कविताओं का संकलन है । इन सभी में गांव की मिट्टी की स्पष्ट ख़ुशबू और ग्रामीण परिवेश की स्पष्ट झलक महसूस हो
    रही है।

    Reply
  43. नरेन्द्र कुमार शर्मा says:
    1 year ago

    बेहद खूब रोचक कविताओं का संकलन है । इन सभी में गांव की मिट्टी की स्पष्ट ख़ुशबू और ग्रामीण परिवेश की स्पष्ट झलक महसूस हो
    रही है।

    Reply
  44. आशीष says:
    11 months ago

    बहुत सुंदर कविताएं डियर सर

    Reply
  45. MUKESH MEENA says:
    9 months ago

    bahut Sundar kavitayen hain. bahut badhai or shubhkamnaye

    Reply
  46. Manish kumar says:
    8 months ago

    Bahut sundar kavitayen. Aapko bahut badhai

    Reply
  47. Gaurav kumar says:
    2 months ago

    Sundar kavitaaen hain✨

    Reply
  48. ramraj meena says:
    4 weeks ago

    Bahut khoobsurat poetry ❣️

    Reply

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समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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