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Home » अर्चना लार्क की कविताएं

अर्चना लार्क की कविताएं

अर्चना लार्क कविताएं लिख रहीं हैं, और बेहतर लिखेंगी यह इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता है.     अर्चना लार्क की कविताएँ                                           ­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­ बेटी का कमरा _____________ एक दिन नहीं बचता बेटियों का कमरा बहू […]

by arun dev
December 24, 2019
in कविता
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अर्चना लार्क कविताएं लिख रहीं हैं, और बेहतर लिखेंगी यह इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता है.    


अर्चना लार्क की कविताएँ                                          
­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­
बेटी का कमरा
_____________
एक दिन नहीं बचता बेटियों का कमरा
बहू के कमरे में चक्कर लगातीं
सवालिया शिकन को नजरंदाज कर भरसक खिलखिलाती हैं
उनके कमरे उनके नहीं रह जाते
कमरे का कोना देख याद आता है
आँख मिचौनी का खेल
वहीं अलमारी में रखी वह तस्वीर जिससे माँ ने कभी डराया था
सहेली को लँगड़ी फंसा कर गिरा देने पर बड़ी देर तक घूरती रही थी वह तस्वीर
बाबा की परछाईं कोने में रह गई है
माँ के बगल में सोने की लड़ाई आज भी कमरे में खनकती है
माँ के पेट पर ममन्ना लिखना और पेट पर फूंक मारना
 
माँ ने मान ही लिया है
अब किसी कोने में हो जाएगा उसका गुजारा
तो बेटियों का क्या है ससुराल में
कि हो उनका कोई कमरा.
एक मिनट का खेल
___________________________
   
एक मिनट का मौन
जब भी कहा जाता है
हर कोई गिन रहा होता है समय
और फिर मौन बदल जाता है शोरगुल में
एक मिनट का मौन 
ग़ायब हो जाता है 
सिर्फ एक मिनट में
अपने शव के पास उमड़ी भीड़ को देख व्यक्ति और मर जाता है 
मृत्यु वाकई पहला और अंतिम सत्य है
और माफ़ करें मुझे मरने में ज़रा समय लग गया.


होना होगा
__________________
आँसू को आग
क्षमा को विद्रोह
शब्द को तीखी मिर्च
विचार को \’मनुष्य\’ होना होगा
खारिज एक शब्द नहीं \’हथौड़ा\’ है
\’मादा\’ की जगह लिखना होगा सृष्टि
मुहब्बत
मज़बूती
जीने की कला,
शीशे की नोक पर जिजीविषा.
मनुष्य \’लिखना\’ नहीं
मनुष्य \’होना\’ होगा.
भदेस प्रेम
_________________
नहीं चाहती मुझे प्रेम हो
हँस पड़ती थी
अपने ही बनाए चुटकुले पर
और लगातार हँसती जाती थी उन सहेलियों पर
जिन्होंने कर लिया था प्रेम
एक पान मुँह में चबाए
गिलौरी बगल में दबाए
होठों के कोरों से रिसते लार को बार बार समेटते
वे अपनी फूहड़ आवाज़ और अंदाज़ में
न जाने क्या समझाते रहते हैं
अपनी प्रेमिकाओं को
त्रिवेणी संगम के पास
प्रेमिकाएँ बनी-ठनी
आतुर निगाहों से
अपलक अनझिप
प्रेमी को निहारती रहती हैं
कोई कैसे पड़ सकता है प्रेम में
न लड़ाई न बहस
न अपेक्षा न उपेक्षा
देर तक होती थी इनके बीच घर गाँव की बातें
कितनी बार रोते देखा है इन प्रेमी जोड़ों को
हर जोड़े के यहाँ
मिट्ठू पनिहार और काकी मिल ही जाती थीं
संवाद के लिए
क्या मेरे लिए भी है कहीं मेरा प्रेम. 
________________________

अर्चना लार्क
(जन्म सुल्तानपुर)
कुछ कविताएँ प्रकाशित
फ़िलहाल दिल्ली में रहती हैं.
archana.tripathi27@gmail.com
Tags: अर्चना लार्ककविता
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