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Home » दीपक जायसवाल (कविताएँ)

दीपक जायसवाल (कविताएँ)

दीपक जायसवाल (जन्म : ७ मई १९९१, कुशीनगर) दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में गोल्डमेडलिस्ट हैं (परास्नातक) और वहीं से शोध कार्य (पीएच. डी) भी कर रहे हैं. उनकी दो किताबें  प्रकाशित हैं– ‘कविता में उतरते हुए’ और ‘हिंदी गद्य की परम्परा और परिदृश्य’. दीपक साहित्य की नयी संभावना हैं. उनकी कुछ कविताएँ आपके लिए. […]

by arun dev
October 15, 2018
in कविता
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दीपक जायसवाल (जन्म : ७ मई १९९१, कुशीनगर) दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में गोल्डमेडलिस्ट हैं (परास्नातक) और वहीं से शोध कार्य (पीएच. डी) भी कर रहे हैं. उनकी दो किताबें  प्रकाशित हैं– ‘कविता में उतरते हुए’ और ‘हिंदी गद्य की परम्परा और परिदृश्य’.
दीपक साहित्य की नयी संभावना हैं. उनकी कुछ कविताएँ आपके लिए.
दीपक  जायसवाल  की  कविताएँ                                                      

लामा

तिब्बत के पर्वतों से आते हैं लामा
बहुत कम बोलते हैं लामा
बड़े संवेदनशील होते हैं लामा
हर वो चीज जो बोलती है
उनको सुनते हैं लामा
जिन चीजों के पास
अपनी आवाज़ नहीं
उन्हें और गौर से सुनते हैं लामा
पत्थरों पर सोते हैं लामा
बहुत धीरे धीरे चलते हैं लामा
हमेशा ध्यान में होते हैं लामा
शंख रखते हैं लामा
शंखों से गुजरते वक्त हवाएं
लामाओं से बात करती हैं
जब कोई लामा आत्मदाह करता है
रुंध जाते हैं शंखों के गले
झुककर बोलते हैं लामा
लामाओं के बाल बड़े नहीं होते
चीवर ओढ़ते हैं लामा

जब कोई लामा मरता है तो
समुन्द्र छोड़ जाता है अपने किनारे
एक शंख
उस दिन बादल खूब बरसते हैं
फूल उस दिन नहीं खिलते
सूरज डूबते वक्त उस दिन
बहुत भारी हो जाता है.

पछछील्लो…..

पछछील्लों मेरे गाँव
के बच्चे खेलते हैं
मैंने सात पत्थर लिए
और उस पर सूरज को टिकाया
बिट्टू की गेंद से
साध कर निशाना लगाया
सारे देवता दौड़े
लाने गेंद
कि तब तक सजा दी थी बिट्टू ने
सारी गोटियाँ
देवता हो गए थे पराजित
बिट्टू हँस रहा था
पृथ्वी अब उसकी थी.

जन्म और मृत्यु

हम हर वक्त रिसते रहते हैं
जैसे रिसता है रक्त
जैसे रिसती है नदी
जैसे रिसता है रेत
हमारे भीतर हर वक्त
कुछ भरता रहता है
जैसे भरता है समुन्दर
जेसे भरता है घाव
जैसे आँखों में भरता है आँसू
जैसे बादल में भरता है पानी
जैसे फसलें भरती हो दाने
जैसे ट्रेन भरती है पैसेंजर
हाँ यह सच है
हम वक्त के साथ पीले होते जायेंगे
जैसे हर पतझर में हो जाते हैं पत्ते
हम डबडबाई आँखों से बह जायेंगे
जैसे बहता है आँसू
हमें पकने के बाद
काट लिए जाएंगे
और ट्रेन हमें न चाहते हुए भी उतार देगी
अगले यात्रियों के लिए.
लेकिन जन्म और मृत्यु
के बीच जो जीवन है
उसे हम भले जीत न सकते हों
पर जी सकते हैं.

मगध, दिल्ली और मुर्दों का हस्तक्षेप

मेरे देश के लोगों
हर देश की राजधानी की नींव
लकड़ी की बनी हुई होती है
दीमक हर वक्त उसे चालते रहते हैं
यदि जरूरी हस्तक्षेप नहीं हुआ तो
राजधानी ढह जाती है
फिर भरभराकर पूरा देश
और तब बचते हैं सिर्फ मुर्दे
जो एक राजधानी बनाने में वर्षों लगा देते हैं.

सिर्फ एक जूते का दिखना

एक जोड़ी जूते में
सिर्फ एक जूते का दिखना
एक त्रासद घटना है
उम्र भर साथ रहने के बाद
पति-पत्नी में से एक का
पीछे रह जाना
रेल की पटरियों में से एक
का उखड़ जाना
किसी उन्मादी युद्ध के बाद
सैनिक का एक पांव से घर लौटना
किसान के बैलों में से एक का मर जाना
जंगल में अकेले बाघिन का रह जाना
जीवन में सिर्फ दुःखों का भर जाना
साँस का अंदर आना
पर बाहर न निकल पाना
त्रासद घटना है
सिर्फ एक जूते का रह जाना.

लड़कियाँ…..

वे बारूद और बन्दूकों को नहीं चाहती
तितलियाँ, पंख, बारिश, फूल, गिटार,
को चाहती हैं
उनका दिल मोम, शहद और धातुओं
का बना होता है
वे प्रेम करती हैं
उनका दिल खूबसूरत और बड़ा होता है
वे रिश्तें बुनती हैं
चीजों को करीने से रखती हैं
वे संवेदनाओं को रचती हैं
युद्ध में कोई पुरुष नहीं मरता
सिर्फ स्त्रियाँ मरती हैं
कई दफ़ा
लाशों को नोंचते कौए
उनकी आत्मा को खाते हैं
उनकी आँखे जब उदास होती हैं
धरती अपनी उर्वरता खोने लगती हैं
तितलियाँ बूढ़ी होने लगती हैं
रंग मनहूसियत ओढ़ लेते हैं

गाँधी महात्मा


मेरी माँ बताती है कि
गाँधी देवता आदमी थे
उनके दो पैर, चार आँखें, बारह हाथ थे
और बड़ा सा दिमाग भी
उनका दिल मोम का बना था
उनको देखकर अंग्रेज थर थर काँपते थे
हवा पीकर बहुत दिन तक वे रह जाते थे

वे नंगे रहते थे
उनके कपड़े अंग्रेज़ चुरा ले गए थे
उनका चश्मा बहुत दूर तक देखता था
बुधिया के आंसूं उनके चश्में पर
जाकर गिरते थे

वे बकरी का दूध पीते थे
बच्चों के मानिन्द हँसते थे
उनके पास कई जिन्न थे

आजादी के बाद
संसद भवन में
बकरीद मनाई गई थी
उनकी लाठी खींचा-तानी में
चौदह अगस्त की रात टूट गयी थी
जिन्न
बहुत दिनों से एक पैर पर खड़े थे
अब उन्हें कुर्सी चाहिए थी
जब दंगे होने शुरू हुए
वे गलने लगे थे
वू बूढ़े हो गए थे.
___________________
deepakkumarj07@gmail.com 
Tags: कवितादीपक जायसवाल
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