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Home » मंगलाचार : वल्लरी

मंगलाचार : वल्लरी

24 वर्षीय वल्लरी मिरांडा हाउस से इतिहास में आनर्स हैं और स्कूली बच्चों में नेतृत्व विकास के लिए कार्य करती हैं. कविताएँ लिख रही हैं. प्रेम के राग का अनुगमन करती इन कविताओं में उस अनुराग की छबियों के सान्द्र स्नेहिल रंग बिखरे हैं.   वल्लरी श्रीवास्तव की कवितायेँ  1. शक्करपारे की महक से घर […]

by arun dev
June 2, 2015
in Uncategorized
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24 वर्षीय वल्लरी मिरांडा हाउस से इतिहास में आनर्स हैं और स्कूली बच्चों में नेतृत्व विकास के लिए कार्य करती हैं. कविताएँ लिख रही हैं. प्रेम के राग का अनुगमन करती इन कविताओं में उस अनुराग की छबियों के सान्द्र स्नेहिल रंग बिखरे हैं.  

वल्लरी श्रीवास्तव की कवितायेँ 

1.

शक्करपारे की महक से घर भर रहा था
ये हर साल तुम्हारे वापस लौटने की आहट देता
तुम आते तो,
समुन्द्र में नमक सा घुलता मेरा मन
धूप में इन्द्रधनुष सी दिखती मेरी हँसी
तुम्हारे होने की नक्काशी मेरे नब्ज़ में रहती
आज फिर महक, आहट, घुलना, हँसी, नक्काशी साथ हैं,
पर,
मेरी काया के सावलेपन में, सिर्फ तुम्हारी परछाई बाकी हैं.

2.

सूखे पत्ते के ऊपर नेह की नीव,
पत्ते की खरखराती आवाज़ हरी नदी की सतह पर
रुक गयी हैं.
कीड़े, मछली, और नदी के रंग मिल कर नीव को
लोहे के पुतले में बदल रहे हैं
वो पुतला कभी चांदनी रात में
सड़क के बीचो बीच बैठता हैं
तो कभी तारो भरी दोशाल्ला ओढ़े
हाथो में गुनगुनेपन का एहसास लिए
बासुरी बजाता,
छेड़ता नेह की धुन.

3.

अंगूठे की त्वचा की रेखाओ में
छिपी है बारिश की नमी .
फिर भी रेखाओ में नमी की तलाश करते .
एक बिछड़ते से डर की आहट हो तुम
तीन मुख वाली घास के जड़ो में पनपते रेशो के साथ
रहते हो तुम.
सतह से दूर, रेखाओ में भटकते, रेशो में रहते
किसी शीत की कम्पन से लिपटे,
किसी औघड़ की आग हो तुम.

4.

चेहरे पर उभरती लकीरे
मेरे होने का आभास देती हैं
ये लकीरे कहानियां बयाँ करती हैं
मेरी यात्राओ का वर्णन देती
पीपल की परछाई से टपकती बूंदों को
सोखती हैं लकीरे
मेरे गले में उग रही लताओं में लिपट रही हैं लकीरे
नब्ज के भीतर घुल रही है,
आँखों की सफेदी में उभरी लाल रेखाओ से मिल जाएँगी लकीरे
शाम की नमाज़ के साथ हवा में घुल जाएगी.

5.

अंजुरी भर पत्तों के रेशो में जीवन पनपता,
अपने भीतर हरा आसमान लिए, बेख़ौफ़, आज़ाद चलता
तांबे सी धूप जब उसके आसमान को झुलसाती तो,
हरे रंग को अपनी कोख में बिठा लेता,
गर्भ के नशे में जीता, बेफिक्र बढ़ता,
लताओं से लिपटता, बेलो पर ऊँघता, नदी की बायीं करवट पर सोता.
तलाशता बिखरे बारूद से सपनो के टुकड़े.
थिरकता अपनी सोच के गलियारों पे
सुनता जीवन्तता भरी धुन.

6.

हमारा मिलना कोई घटना नहीं
हमारा मिलना तय था
आँखों को भीचने पर रंग बिरंगे बनते शून्य सा
बढती उम्र सा, घटते नाख़ून सा.
_________________________________
वल्लरी श्रीवास्तवा
जन्म – १९९०, मोतिहारी
शिक्षा – आरम्भिक शिक्षा पटना में . मिरांडा हाउस दिल्ली से इतिहास में स्नातक, आनर्स.
२०१० -१२ कैवल्यं फाउंडेशन का गाँधी फ़ेलोशिप प्राप्त.
सम्प्रति- इन दिनों दिल्ली में डिजाईन फॉर चेंज संस्था के साथ मिल कर स्कूली बच्चों के नेतृत्व विकास के लिए कार्यक्रम सकल्पना पर कार्यत.
संपर्क-  vallari.shrivastava@gmail.com
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