इक ख़्वाब है
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पत्रकार कमाल को सब जानते हैं. उनकी बेमिसाल पत्रकारिता, पेशेवर प्रतिबद्धता और बेजोड़ अंदाज़ को आज पूरा देश याद कर रहा है. मिलते-जुलते बात करते जो बात कभी ज़हन में नहीं आयी आज उसका एहसास हो रहा है कि कमाल ख़ान शोहरत की किन बुलंदियों को हासिल कर चुके थे. गंगा आरती के समय कमाल ख़ान की तस्वीर के आगे जलते मुहब्बत और इज़्ज़त के दीयों ने बताया कि ऐसी श्रद्धांजलि सबको नसीब नहीं होती. आवाम का प्यार पैसे और सत्ता से बहुत परे होता है. कमाल ख़ान जानते थे कि उनको चाहने वाले चारों तरफ हैं.
कमाल के साथ कहीं भी जाइए थोड़ी ही देर में कोई-न-कोई उन्हें पहचान कर चला आयेगा और उनकी आवाज़ और अंदाज़ की तारीफ़ करता हुआ साथ में एक तस्वीर का इसरार भी करेगा और कमाल भी शायद ही किसी को निराश करते. यूनिवर्सिटी, कॉलेज बुलाइए या फिर कहीं और, कहीं भी बुलाइए कमाल ख़ान को सुनने के लिए सभागार खचाखच भर जाया करता. लखनऊ शहर में अधिकतर पत्रकार, लेखक, संस्कृतिकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता लगभग एक दूसरे को जानते हैं. कमाल ख़ान बाक़ी टीवी पत्रकारों के मुक़ाबिल अलहदा सिर्फ़ अपने अंदाज़ और पेशेवर हुनरमंदी की ही वजह से नहीं बल्कि शुरू से ही अपनी अध्येतावृति, मुद्दों के तह तक जाने की उनकी जिद्द और बौद्धिकता के प्रति वास्तविक रुझान की वजह से उन्होंने बहुत गहरी शख़्सियत हासिल की थी. यह उनके व्यक्तित्व की आंतरिक दीप्ति थी जिसने उन्हें इस हद तक विनम्र और सामने वाले को तवज्जोह देना सिखाया था कि लोगों को अपने विशिष्ट होने की ख़ुशफ़हमी हो जाय. “विद्यां ददाति विनयं” बहुत सारे लोगों ने पढ़ा होगा पर कमाल ने इस सूक्ति को सच में जीया. कमाल ख़ान के अंदाज़-ए-बयां पर लखनऊ से लंदन तक लोग फ़िदा रहते. पर कमाल जिस पर ताउम्र फ़िदा रहे वो उनकी पत्नी रूचि कुमार थीं. फोन पर भी कमाल जिस तरह रूचि का नाम लेते, सुनने वाला ये समझ जाता कि उनके लहजे में अपनी हमसफ़र के लिए कितना गहरा प्रेम और सम्मान का भाव है.
यह संयोग है कि अपने आख़िरी कार्यक्रम में कमाल पैट्रियार्की पर बात कर रहे हैं. उनकी पत्रकारिता को जानने समझने वालों को ध्यान होगा कि औरतों के हक़ और बराबरी के मसले कमाल के दिल और दिमाग़ के कितने क़रीब थे. ग़ौरतलब है कि बराबरी की ये बात सिर्फ़ चैनल पर बोलने के लिए नहीं थी. कमाल ने अपनी पत्नी के साथ जैसा जीवन जीया वह मुहब्बत की मिसाल के तौर पर पेश तो की जा सकती है पर उससे ज़्यादा यह एक पारिवारिक लोकतंत्र की नुमाइंदगी के तौर पर भी समझी जा सकती है जहां शादी के बाद प्रेमी, पति की भूमिका में मुख़्तार नहीं बना है. यहाँ घर और बाहर दोनों जगह हमसफ़र हैं. दफ़्तर कमाल को जाना है तो रूचि को भी जाना है, किसी राजनीतिक घटनाक्रम के चलते ख़बरों का पारा चढ़ा तो दोनों की मसरूफियत एक जैसी. दिन भर के काम के बाद शाम को सारी बातें साझा करना इस युगल के रोज़मर्रा की दिनचर्या का हिस्सा था. घर की केतली से लेकर सोफा तक ये मिलकर पसंद करते और ख़रीदते. घर, रिश्तेदारी या क़रीबी दोस्तों में कोई शादी पड़े या त्यौहार तो रूचि क्या पहनेंगी यह कमाल की ज़िम्मेदारी. चिकनकारी का काम कराया जाये या फिर जरदोजी, गोटा पत्ती ज़्यादा सही रहेगी या फिर जरी, कौन सा काम कराया जाये और कैसा और कहाँ से कराया जाये इस पर भी कमाल उतनी ही मेहनत करते जितनी अपनी रिपोर्ट पर.
पिंटरेस्ट से निकाल कर सैकड़ों डिज़ाइन्स अपने मोबाइल में संजो कर रखने वाले कमाल बक़ायदा टेलर मास्टर और कढ़ाई वाले कारीगर को घर बुलवा कर डिज़ाइन पर तफ़सील बात करते. सबसे हाल में कमाल ने रूचि के लिए टुकड़ी का एक गरारा बनवाया जो अवध में बेहद ख़ास माना जाता है. रूचि का काजल गड़बड़ हो जाये तो कमाल उसे ठीक कराये बिना चैन नहीं लेते. रूचि की वजह से काजल में इतनी दिलचस्पी कि काजल के सारे विज्ञापनों पर पैनी नज़र रखते. आजकल काजल कैसे लगाया जा रहा ये सब जानने का वक्त कमाल कैसे निकाल लेते थे ये सोचकर हैरत होती है. रूचि का ख़्याल इतना कि जब रूचि बाथरूम से बाहर निकलें तो कमाल उनके ऑफिस जाने वाले कपड़ों की इस्तरी कर हाज़िर .कमाल के ऊपर काम का बोझ चाहे जितना हो रूचि को एक शर्ट खुद से नहीं प्रेस करने देंगे. घर का कोई काम ऐसा नहीं जो कमाल न कर सकें. कमाल कहा करते कि
“रूचि के बाबा कहते थे कि काम करने से कोई नहीं मरता, बिना काम के लोग ज़रूर मर जाते हैं”
इस काम के पीछे भी इक मज़ेदार कहानी है.कमाल किसी मौलाना अतहर के हवाले से कहते कि शौहर को अपनी बीवी का ख़्याल उसके मायके से तीन गुना रखना चाहिए. मसलन अगर मायके में बीवी के पास एक साड़ी हो तो शौहर को कोशिश करनी चाहिए कि वो उसे तीन साड़ियाँ पहनाये. जनाब कमाल ख़ान की मुश्किल ये थी कि रूचि की अम्मा के घर में तेरह नौकर थे तो उस लिहाज़ से कमाल के घर में 39 नौकर होने चाहिए. कमाल अपने घर में काम करने वाली चाची, रेहाना, माली, ड्राइवर आदि को जोड़ कर खींच खाच कर संख्या किसी तरह 7-8 तक पहुँचा देते और कहते बाक़ी के तीस नौकरों के बदले बंदा खुद हाज़िर है. कमाल के घर आने जाने वाले दोस्तों में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे कमाल ने ये बता कर हँसाया न हो और सबने इस बात के मज़े ना लिए हों. आज जब मैं रूचि की आँखों में वीरानगी देखती हूँ उन्हें कहते पाती हूँ कि “सच! कमाल कितना ध्यान रखते थे मेरा” तो लगता है नियति भी शायद इंसानी फ़ितरत से भरी है, बहुत ख़ूबसूरत रिश्तों पर नज़र लगा देती है. रूचि उसी खिड़की के बाजू में अपने बिस्तर पर निढाल सी बैठी हैं जिसको कमाल ने विशेष रूप से रूचि के लिए बनवाया है. कमाल हमसे कह रहे हैं
“रूचि की जब नींद खुलती है, सूरज की रोशनी उनके लिहाफ पर होती है और बाहर की हरियाली, अपना दामन फैलाये दिखती हैं”
तो कमाल की ये खिड़की वाली बात और उसको बनवाने के लिए की गयी मेहनत की कहानी से जहां सब लोग विशेषकर महिलाएँ प्रभावित होकर वाह! वाह! कहती हैं वहीं मेरे पतिदेव खिड़की की तरफ एक बार देखकर हमसे कहेंगे कि “भई मैं तो ऐसी खिड़की बनवाने से रहा, आपको हरियाली पसंद है तो लोहिया पार्क में आराम से जाकर बैठिए, वहाँ हरियाली भी है और धूप भी.”
ज़ाहिर है ऐ्से कहकहे अब कमाल के बिना लगाने मुश्किल होगें. ऐसे ही जब हम लोग लंदन से लौटे थे तो मैंने बातों ही बातों में कमाल को बताया कि कैसे मैं नार्थफेस की जैकेट खरीदना चाहती थी पर जैकेट के महंगे होने का हवाला दे अनुराग ने नहीं ख़रीदने दिया. कमाल ने सुनते ही कहा “अरे इन्होंने मना कर दिया, रूचि तो एक कहतीं तो मैं दो खरीद देता” चूंकि मैं भी कमाल को जान गयी थी इसलिए जानबूझकर पूछती कि रूचि जी के लिए फ़लाँ चीज़ आपने कहाँ से ली या घर में सजाने का कोई सामान कहाँ से आया तो कमाल खूब मन लगाकर उत्साह से बताते. दरअसल उनका बताने और सुनाने का अंदाज़ ही ऐसा था कि बताई हुई बातों को भी सुनने में बहुत सुख मिलता. ऐसी ही एक बात वे लखनऊ के एक मौलाना साहब के बारे में बताते थे कि वो मौलाना साहब अपने पायलट नाना की जहाज़ उड़ाने की काबिलीयत का बयान करते-करते कहते कि “नाना जहाज़ नीचे लाते और नानी का दुपट्टा छूकर निकल जाते”
दरअसल कमाल और रूचि के सारे दोस्त कमाल के घर जितनी देर भी रहते बहुत ख़ुश रहते. ऐसी ही एक बात एक और मौलाना साहब की थी जिन्होंने टीवी पर मायावती की खुशामद करते हुए उन्हें अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा की तरह भारत की “ओबामी” कह दिया था. कमाल और रूचि के घर पर होने वाली बातचीत में राजनीति, पत्रकारिता और अधिकारी तंत्र के तहख़ानों की बातें निकल कर सामने आतीं और अक्सर एक से बढ़कर एक क़िस्सों की झड़ी लग जाती. बहुत सारी बातें तो ऑफ द रिकार्ड वाली होतीं. महफ़िल शबाब पर तब पहुँचती जब कमाल और रूचि के बहुत पुराने मित्रों शरत प्रधान और फसी भाई के गानों की जुगलबंदी होती.
यह पहली ऐसी महफ़िल होती जहां शराब की एक बूँद के बिना भी ज़िंदगी के पूरे लुत्फ़ होते. कमाल के प्रशंसक देश और उसके बाहर तक फैले हुए हैं जो उन्हें व्हाट्सएप पर तारीफ़ों के अलावा सलाह भी भेजते हैं. लोकसभा चुनावों के दौरान कमाल के मोबाइल पर एक महिला का संदेश आया कि “रिपोर्टिंग कर-कर आप टैन हो गये हैं, आय थिंक यू नीड अ गुड फेशियल“
समझा जा सकता है ऐसे संदेशों से पति-पत्नी का अच्छा मनोरंजन होता था. कमाल और रूचि की बेमिसाल मेहमाननवाज़ी के बीच उनके आशियाने को देखना और उसके कोने-कोने में रचे बसे सुरुचिपूर्ण सौंदर्यबोध को महसूस कर उसके जादू में बंध जाना मेहमानों के लिए लाज़िमी होता.
अगर मुझे ठीक से याद आ रहा हो तो संभवतः बहुत पहले नरेंद्र मोदी जी भी इनके घर आकर तहरी खा चुके हैं जब वे गुजरात से भाजपा के कार्यकर्ता के रूप में यूपी आये हुए थे. बाकी आने वालों नेताओं की फ़ेहरिस्त तो है ही.
एकबार तो ईद के दिन सुबह-सुबह जब रूचि शैंपू कर रही थीं तभी प्रदेश के मुख्यमंत्री ईद मुबारक बोलने आ गये. समीक्षात्मक दृष्टि और पत्रकारीय सरोकारों के बावजूद बहुत बार पत्रकार नेताओं के बारे में अपनी निजी राय ज़रूर रखते हैं. कमाल ख़ान को अखिलेश यादव की कलात्मक अभिरुचियाँ पसंद थीं. एक बार उन्होंने अखिलेश यादव के टेबल पर रखे ‘गुडअर्थ’ के कप का ज़िक्र किया था. कमाल की पसंद में बेशक एक अभिजात्य था, उत्कृष्टता के नीचे के मानदंड उन्हें स्वीकार्य ही नहीं थे पर उनके पाँव हमेशा ज़मीन पर रहे. अपने परिश्रम से अर्जित धन से बेहतर जीवन हासिल करने और उसका आनंद लेने में उनका विश्वास था.
कमाल को कभी किसी के बारे में सतही तरीके से बात करते नहीं पाया गया. कमाल अक्सर अपने को ‘अनपढ़’ कहते थे. किताबों में गहरी दिलचस्पी रखने वाले शख़्स ने अपने परिचितों और दोस्तों को न जाने कितनी किताबें उपहार स्वरूप दीं. हमारे घर में भी कमाल द्वारा दी गयीं बीसियों किताबें हैं.
कमाल ने पिछले साल मुझे कई बेहतरीन किताबें दीं. किम घटास की “द ब्लैक वेव“ अली मसीह नेजाद की “द विंड इन माई हेयर”, मलाल-उल-शरीफ की “डेयर टू ड्राइव” जिन पर मैंने समालोचन में लिखा था. तद्भव में छपी मेरी कहानी “रेश्मी लाल गमछा” पढ़ने के बाद उन्होंने बतौर इनाम क्रिस्टोफ़र जैफरलो की “द मोदी, ज इंडिया” भेजी.
कमाल की ख़ास बात थी कि वे हमेशा हार्डबाउंड किताबें ही देते थे. जितना बड़ा उनका नाम है उतना ही बड़ा उनका दिल भी था. हमें स्नेह और मान देने में वे बहुत भारी पड़े. हमें याद ही नहीं कि हमने उनके लिए क्या किया है. उनकी आत्मीयता के क़र्ज़दार हैं हमलोग. काश कि हम उन्हें कभी बता पाये होते कि वे हम लोगों के लिए कितना मायने रखते हैं, कि वे हमें कितने प्रिय और आत्मीय हैं. काश कि हमने यही कह दिया होता कि इतना बड़ा सेलिब्रिटी पत्रकार हमारा दोस्त है ये हमारे लिए गर्व की बात है. आज जब वे नहीं हैं हमारे घर में वही हालात हो गये हैं जो माँ के जाने के बाद हो गये थे. घर में छायी इस उदासी और वीरानी को देखते हुए एहसास हो रहा कि वे कैसे हमारे जीवन में शामिल थे.
रूचि कमाल की डायरियों को पलटतीं है. रूपरेखा जी के शब्दों में “एक इंसान! खालिस इंसान!!” की डायरियाँ हैं ये. गेदें के फूल हों या बोगनवेलिया के, किसमें कितना उर्वरक डालना है सब कुछ व्यवस्थित ढंग से दर्ज है. किसी पन्ने पर इफ़्तिख़ार आरिफ़ का नाम लिखा है और उसके नीचे एक शेर कमाल ख़ान की सुंदर लिखावट में दर्ज है
मुहब्बत की आख़िरी नज्म
मेरी ज़िंदगी में इक किताब है
इक चराग़ है
इक ख़्वाब है
और तुम हो
रूचि की आँखों में दर्द का समंदर है, खुद को ज़ब्त करती हैं और पन्ने पलटती हैं. किताबों के नाम दर्ज हैं
जिन्हें पढ़ा जाना है. किताबें जिन्होंने हम सबके ह्रदय का आयतन बढ़ाया, किताबें जिन्होंने हमें बेहतर इंसान बनने में मदद की. कमाल अपने दोस्तों को और बेहतर बनाना चाहते थे, शायद इसलिए खूब किताबें भेंट करते थे. अपने देश की राजनीति समाज और साहित्य को समझने के साथ ही कमाल को इस्लाम और मध्यपूर्व की राजनीति की भी बेहतर समझ थी. धार्मिक कट्टरपंथ अंततः इंसानियत के ख़िलाफ़ होता है, और दुनिया में जिस तरह चारों तरफ धर्म के हथियार की धार तेज़ की जा रही है वह कमाल की चिंता का विषय था. किसी भी अच्छे भारतीय की तरह वे अपने समाज की बुनियादी समझ को पलटने की कोशिशों से भी परेशान थे. पिछले दिनों उनके द्वारा भेजे गये तमाम वीडियोज उनकी चिंता को दर्शाते हैं. नफरत के समुद्र से एक बूँद कम करने की चाहत रखने वाले पत्रकार पर देश ने मोहब्बत का झरना बहा दिया है.
वे खुद को नास्तिक कहते थे पर सच्चे मन से की गयी इबादतों में हमेशा शामिल होते थे. रूचि बताती हैं कि उनके दादा, दीवाली की पूजा में कमाल को अपने बगल में बिठाते थे. उत्तर प्रदेश में 2017 में सरकार बदली तो कमाल को उनके चैनल NDTV की वजह से मुख्यमंत्री आवास के भोजों में शुरू के तीन सालों तक नहीं बुलाया गया जबकि रूचि का स्वागत बड़े मन से वहाँ होता. रूचि कहतीं कि इस मसले पर क्या मजाल की कमाल के चेहरे पर कभी कोई शिकन आयी हो कि तुम जा रही, मैं नहीं जा रहा.
राम के जिस रूप को कमाल ने आज के भारत के सामने दिखाने की कोशिश की और अमर हो गये, वह उनकी अपने देश की गंगा-जमनी तहज़ीब को बचाने की कोशिश के रूप में देखा और समझा जाना चाहिए. हम सब इंसान बने रहें यही हमारे दौर की सबसे बड़ी फ़िक्र और जरूरत है. कमाल की रूह को ज़रूर सुकून मिला होगा जब उन्होंने देखा होगा कि उनकी मेहनत बेकार नहीं गयी, उनके देश का एक शहर बनारस उनको अपने समस्त शिवत्व के साथ गंगा आरती के साथ ऐसे श्रद्धांजलि देगा.
कमाल ने 11 जनवरी को अपनी आख़िरी किताब आर्डर की जो 15 जनवरी को उनके पते पर पहुँचीं. स्टीफन हॉकिंग की किताब “ब्रीफ आंसर्स टू द बिग क्योश्चन” कमाल ख़ान को पढ़नी थी जो वो नहीं पढ़ पाये. रूचि कहती हैं, “कमाल के साथ जो हुआ उसका जवाब कहीं है?“
(सभी फोटो प्रीति चौधरी के सौजन्य से)
प्रीति चौधरी ने उच्च शिक्षा जेएनयू से प्राप्त की है, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, राजनय, भारतीय विदेश नीति, लोक नीति और महिला अध्ययन के क्षेत्र में सक्रिय हैं. लोकसभा की फेलोशिप के तहत विदेश नीति पर काम कर चुकी हैं. साहित्य में गहरी रुचि और गति है. कविताएँ और कुछ आलोचनात्मक लेख प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं.बुंदेलखंड में कर्ज के बोझ से आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवार की महिलाओं को राहत पहुँचाने के उनके कार्यों की प्रशंसा हुई है.बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में राजनीति विज्ञान पढ़ाती हैं. preetychoudhari2009@gmail.com |
बहुत सुंदर संस्मरण।
अच्छाई और गहरी समझ के प्रतीक कमाल से हमे एक नए कोण से ,सम्वेदना के साथ ,मिलाने वाला
ओह! मार्मिक और सुंदर।
कमाल साहब का फैन हूँ। इस भावांजलि से उनकी वह शख्सियत जान सका, जिससे उनका कद और बढ़ गया। इनके बारे में बहुत बहुत जानना ही उनकी अनुपस्थिति के दुख से मुक्ति का रास्ता है।
Bahut aatmiy.
भावुकता और जानकारियों से भरा … जीने की सलाहियत सीखने वाला …समृद्ध करने वाला संस्मरण …. जन्नतनशीं कमाल साहब के प्रति मन में इज्ज़त और गहरी हो गई
बहुत आत्मीय और मार्मिक संस्मरण।
कमाल ख़ान पर प्रीति चौधरी का यह लेख पढ़ते हुए मैं सुबकने लग गया हूँ । कमाल ख़ान ग़ज़ब के शख़्स थे और प्रीति चौधरी ने उतने ही प्रीतिकर तरीक़े से लेख लिखा है । यह लेख और कमाल ख़ान दोनों अमर रहेंगे । प्रीति “विद्यां ददाति विनयं” न भी लिखतीं तब भी कमाल ख़ान की रिपोर्टिंग को सुनने वाले व्यक्ति जानते हैं कि उपर्युक्त सूक्ति उनके व्यक्तित्व का Inseparable हिस्सा था । कमाल की तस्वीर के सामने गंगा आरती की दी गयी श्रद्धांजलि हमेशा याद की जाती रहेगी । मुझे कमाल ख़ान के दांपत्य जीवन के बारे में जानकारी नहीं थी । प्रीति चौधरी ने जो कुछ देखा और महसूस किया वह यहाँ लिखा है । इनकी आपसी मोहब्बत से देवता रश्क करेंगे । Life of spouse of Kamal Khan a Ruchi Kumar is to be emulated. पत्नी और पति एक-दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करते थे । घर में खिड़की का बनवाना एक मिसाल भर है । ऐसे हज़ारों उदाहरण होंगे । रुचि के कपड़ों को कमाल ख़ान ख़ुद इस्तिरी करते थे । उनके पहनने के कपड़ों का चयन किया करते । रुचि जी के जीवन में कमाल साहब की कमी की पूर्ति नहीं हो सकेगी । रुचि कुमार उनकी स्मृतियों के साथ जीवन बितायेंगीं ।
कमाल ख़ान ने ख़ूब अध्ययन किया । इस कारण उनकी रिपोर्टें जीवंत लगती थीं । रवीश कुमार ने प्राइम टाइम में कहा था कि कभी-कभी कमाल ख़ान रिपोर्ट करने से इनकार कर देते । यह अच्छे पत्रकार की ख़ूबी है कि वह बिना तैयारी किये रिपोर्टिंग करने से मना कर दे । रवीश ने यह भी कहा था कि वे न्यूज़ रूम से पूछते की उन्हें कितने fractions of minutes रिपोर्टिंग करनी है ताकि ख़बर की bytes कम ख़र्च हों ।
“वो चला जायेगा ज़ख़्मों की तिजारत करके
मुद्दतों शहर में उस शख़्स का चर्चा होगा”
मुझे यकीन ही नहीं हो रहा कि ऐसी खूबसूरत यादें पढने को मिल रही हैं। क्या वो शख्स वाकई चला गया हम सब को छोड़कर। अरे, कल रात ही को तो तुम्हें चैनल पर देख रहा था। तुम कांग्रेस की महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया जाने पर अपना मंतव्य दे रहे थे। उस समय याद आ रही थी वो पहली मुलाकात शायद अम्मार रिज़वी के सौजन्य से। हम उम्र में कोई दसेक साल बड़े होंगे। सामने एक नौजवान रिपोर्टर था जो पत्रकार नहीं बल्कि साहित्यकार की तरह बात कर रहा था। लखनऊ में दंभियों की कमी नहीं। पर ये नौजवान तो बिल्कुल जुदा सी ही एक मुख़तलिफ सी जान थी जो रूसी लेखकों पर इतनी मालूमात रखने वाली। उसने मानस और आदि शंकराचार्य के श्लोक भी हाफ़िज़े में क़ैद कर रखे थे। उसे बहुत कुछ पता थी जो सब किसी को पता नहीं थी। वह गंगा-जमुनी-गोमती तहज़ीब का प्रतीक था। दो एक बार फिर मुलाकातें हुई थीं। प्रीति जी, आप ने तो और कितना सारा बता दिया जिस के लिए हम सब आप के मशकूर-ओ-ममनून रहेंगे। वाह, लेकिन यह सब जब कोई विरला ही होता है तभी आता है। कमाल, वाकई कमाल का था। हुस्न-ए-कमाल! कमाल का जमाल!
बहुत दिन बाद कुछ ऐसा मिला जिसे दोबारा पढ़ा।प्रीति जी ने अपने एहसासों को खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है।कमाल से मेरी करीबी तो नहीं थी लेकिन मैं उन्हें बहुत प्यार करता था।दरअसल वे थे थी इतने प्यारे।अनगिनत लोग उन्हें प्यार करते होंगे।आप खुशनसीब हैं कि आपको इतने खूबसूरत इंसान की दोस्ती मिली।
प्रीति जी ने बड़ी आत्मीयता ,मार्मिकता और तार्किकता और मोहब्बत के साथ कमाल साहब के बारे कमाल का संस्मरण लिखा है l कमाल खान की सरलता , साफ़गोइ विनम्रता ,गहन अध्येता , मजहब से ज्यादा मनुष्यता में रुचि , अनेक भाषाओं के जानकार , गंगा जमुनी तहजीब के संस्कार उनको ऑरो से अलग काबिले तारीफ पत्रकार बनाते थे l कमाल के पास अल्फाजों का जादू था खूबसूरत आवाज़ का जादू , अंदाजे बयां का जादू ही उन्हें कमाल खान बनाता था l कमाल खान को विनम्र श्रद्धांजलि l प्रीति जी और अरुणदेव जी को साधुवाद l
बहुत शुक्रिया आपका,,,कमाल साहब की चाहने वाली को उनकी शख्सियत से रूबरू होने का मौका मिला।।।सचमुच् कमाल
हाल- फिलहाल इतना सुंदर लिखा संस्मरण नहीं पढ़ा. मैं उनसे मिला नहीं, लेकिन वे हमारे जीवन में, घर की बातचीत में शामिल थे. एक बड़ा घर वे बना कर गये, जिसमें हम सब उनकी अनुपस्थिति से उदास हैं….प्रीति जी बहुत- बहुत शुक्रिया…
बहुत हर्षित और बहुत व्यथित करने वाला संस्मरण। हर्षित यों कि इस ज़माने में भी कोई ऐसा कमाल
हो सकता है।व्यथित इसलिए कि न्याय के हक में बुलंद एक और आवाज हम से छिन गई।
बढ़िया स्मृति आलेख। काश इसे लिखने की नौबत न आती।
मार्मिक। सुंदर।
बहुत सी नई बातें जानने को मिलीं।
आत्मीयता भरे शब्दों में प्रीति चौधरी ने कमाल ख़ान को बखूबी याद किया है।
बढ़िया लिखा है। पंथी पूर्वाग्रही और मानसिक गुलामी का गुलबन्द लपेटे छद्म बुद्धिजीवियों के इस जमाने में कमाल एक अलग प्रजाति के इंसान और असली पत्रकार थे। नमन।
समालोचन जो कर रहा है वह तो कर ही रहा है इधर इसके पोस्टर भी कला की दहलीज को छू रहें हैं। आप हिंदी के लिए किसी रत्न से कम नहीं अरुण जी। असली पद्मश्री के तो आप हकदार हैं। प्रीति के संस्मरण में कमाल का एक दूसरा ही रूप नज़र आता है ।
ओह जल्दी खत्म हो गया!
प्रीति जी ने दिल से लिखा है।
दिल से दिल को राहत।
कमाल की पत्रकारिता मुझे पसंद थी। यह भी लगता कि वे समझदार व्यक्ति हैं। पर इस ज़हीन इन्सान के बारे में मेरी जानकारी कितनी कम थी।
उनके बारे में यह सब जान पढ़ कर समृद्ध हुआ।पर उदास भी हूँ कि उन्होंने इतना तनाव इतना बोझ क्यों लिया।
बहरहाल प्रीति जी का आभार और समालोचन को धन्यवाद ।इसे पढ़ वाने के लिए।
–हरिमोहन शर्मा
कमाल खान पर कमाल का संस्मरण।काबिले तारीफ़ ।पठनीय और अनुकरणीय भी।
बहुत सुंदर लिखा है आपने मैम ..कमाल सर को सादर नमन 🙏
बहुतही मार्मिक है ।कमाल साहब पर कमाल की टिप्पनी एबम संस्मरण है ओम् शांति .
अद्भुत मूल्यपरक प्रस्तुति…. कमाल खान,रुचि जी और प्रीति चौधरी के मूल्यों की भावगत मूल्यों की त्रिवेणी से व्यक्ति,समाज और देश बदल सकता है पर दूसरा कमाल पैदा नहीं हो सकता….हृदय का रिक्त कोना भर नहीं सकता
प्रती चौधरी के संस्मरण से बहुत कुछ जान पाया कमाल खान के बारे मे ।
बहुत सुंदर संस्मरण कमाल जी के बारे में उनकी दृष्टि के बारे में जानना अच्छा है ।शुक्रिया
कमाल खान के देहावसान पर प्रीति चौधरी के इस लेख ने मेरे भीतर तूफान मचा रखा है। कोई सोचे या न सोचें लेकिन इस दिलेर और प्रतिभाशाली नौजवान टी वी पत्रकार पर किसकी नज़र लगी गई कि वह असमय ही काल कवलित हो गया।
प्रीति चौधरी के लेख के एक-एक शब्द ह्रदय में उतरते चले गए। उन्होंने बहुत से लेखकों की कलम को गिरवी रख लिया है जो अपने मित्रों के आकस्मिक निधन पर चाहते हुए भी नहीं लिख पाए।
यह एक बेमिसाल संस्मरण है। रुचि के बारे सोचता हूं कलेजा मुंह को आता है। कमाल खान जैसे पत्रकार कम ही पैदा होते हैं। मेरी आत्मिक श्रद्धांजलि।
हीरालाल नागर
बहुत सुंदर ख़ाका खींचा गया है। इस अद्भुत संस्मरण के लिए प्रीति जी का दिल से आभार।
कमाल ने कमाल कर दिया
इंसानियत का नमूना सामने रख दिया।
बहुत ही सुंदर प्यारा मगर मार्मिक अभिव्यक्ति !
एक इंसान की खूबसूरत यादें उनकी संवेदन शीलता और एक प्यारे और मोह्ब्बत से भरे इंसान की खूबसूरत चित्रण !
हमेसा सबके दिलों में रहेंगें कमाल खान साहब !!
प्रीति जी का सुन्दर व मार्मिक संस्मरण पढ़ कर पता चला की कमाल खान एक अच्छे पत्रकार ही नही बल्कि अच्छे व संवेदनशील पति व मित्र भी थे। वे हसना व हसाना भी जानते थे। उनकी उपस्थिति मात्र से ही महफिल रंगीन हो जाती थी। उनमें मानवता व प्रकृतिक सौंदर्यबोध कुट-कुट कर भरा था। अपने इन मानवोचित गुणों के कारण कमाल खान सम्पूर्णता के बहुत करीब थे, सायद इसीलिए ईश्वर उनको समय से पहले अपने पास बुलालिये। अंत मे इतनाही कि प्रीति जी को पढ़ना संगीत सुनने की तरह है। संजय यादव
कमाल खान पर संस्मरणों युक्त शब्द चित्र हृदय स्पर्शी है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
कमाल खान साहब को सुनते हुए हम जैसे सैकड़ों युवा हुए हैं। इनकी समझ आजकल के “पत्रकारों” से जुड़ा थी। वे विद्वान थे, इसका आवाज तो हम सबको था ही लेकिन उनकी शख्सियत के बारे में प्रीति जी ने इस संस्मरण के माध्यम से बता कर उनके प्रति सम्मान और बढ़ गया।
बेहद आत्मीय लेख ,प्रीति जी को साधुवाद .मित्र को कैसे याद किया जाना चाहिए यह सलीका देने के लिए.अलविदा कमाल खान.फिर मिलेंगे-‘ फूल मरै,पै मरै न बासू’
बहुत मार्मिक याद, ऐसे ही याद करते रहें 🌹🌹🌹