ब्रजरतन जोशी की कविताएँ |
1.
शब्द अपनी संज्ञा में
तो इठलाते हैं
पर, क्रियाओं में बदलते ही
उनकी परेशानी शुरू हो जाती है
क्योंकि अपने होने की विधि में
वे लुटा चुके होते हैं अपना
सत्त्व
इसलिए शब्द मौन ही
रह जाते हैं.
2.
सुनेगा साधु
गुनेगा सन्त
रमेगा भक्त
हम
न सुनेंगे
न गुनेंगे
न रमेंगे
बस, अपनी ही धुन में रहेंगे
चलो यार क्या करना है
अपनी देखो
कहकर अपने को कर देते हैं
अपने से और अधिक दूर
भाषा
शून्य में पुकारती है
कवि! तुम कहाँ हो?
3.
हम इतने नए होते जा रहे हैं
कि हमारा इतिहास नहीं रहा
ठीक-ठीक से उभर कर तो
वर्तमान भी नहीं आ रहा
भविष्य की तो कहें ही क्या
अक्षरों की कोटरिकाओं में
सभी रास्ते हैं
फिर भी हैं हम लापता
अतीत-वर्तमान हँस रहे हैं
भविष्य की निगाहें अब
कविता की ओर है.
4.
भाषा की आत्मकथा
(i)
भाषा
मन के पर्दे पर
पड़ी धूल है
कवि जिसे झाड़ता रहता है
अस्तित्व
भाषा के पार है
और वैसे भी भाषा
दूसरे से संवाद के लिए बनी है
पर, वहाँ तो
स्वयं का ही
स्वयं से ही
संवाद है
(ii)
भाषा में
नहीं जन्मती
अस्तित्व
की वर्णमाला
कवि उसे
रचता है
कविता में
उगती भोर
बहती नदी
खिलते फूलों
और बारिश में
भीगते पत्तों
की तरह
(iii)
भाषा की फितरत में नहीं है
अकिंचनता
भाषा से ढँक जाता है
अस्तित्व
कवि हर दिन
सींचता है खुद को
रखने के लिए हरा
उघाड़ता रहता है परतें
भाषा की
जानने खुद को.
(iv)
कवि पूछता है
भाषा से
मैं कौन हूँ?
भाषा मौन रह जाती है
क्योंकि कवि
भाषा के कारण ही
भूल गया है खुद को कवि
अब तो मौन ही
मदद करेगा
कवि की.
(v)
तुमने कुछ कहा- कवि
नहीं, मैंने कुछ सुना – भाषा
इसी कहने और सुनने
के बीच
कविता ने जन्म लिया
तब से
भाषा और कविता के बीच
कवि ढूढ़ रहा है
अपनी राह
यात्रा उसकी जारी है
आज भी.
5.
ढूँढ़ते हुए प्रेम
शब्दों से
खेलते-खेलते
भाषा को ढूँढ़ता हूँ
एक शब्द
प्रेम
इस खेल में
टूटता-छूटता है
बार-बार
मैं हर बार
एक नए ईश्वर को
रचते हुए
करता हूँ प्रार्थना
इसे रहने देना
मेरे पास.
6.
जीवन और भाषा
जीवन की भाषा
और
भाषा के जीवन में
कितना अन्तर है
नहीं जानता
पर
दोनों के बीच
पलने वाली
भाषा
नहीं जानता
कोई अब
7.
मैंने एक कविता रची
लेकिन, मैं कैसे समझाऊँ उसे
कि मेरा और कविता का भविष्य
रेत का एक दरिया है
शब्दों का तीव्र घर्षण
स्व के लहूलुहान होने का बर्ताव है
मैं भाषा के सम्मुख
जिद्दी बच्चे की भाँति खड़ा हूँ
भाषा देती है यह अहसास कि
मैं भाषा में हो सकने का
संकेत भर हूँ.
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ब्रजरतन जोशी जन्म 9 मई 1973 बीकानेर (राजस्थान)जल और समाज, संगीत: संस्कृति की प्रकृति, हिंदी कहानी: नया स्वर आदि पुस्तकें प्रकाशित. राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका मधुमती का संपादन. drjoshibr@gmail.com |
1 हमारे दैनंदिन जीवन में संज्ञा महत्वपूर्ण है । मेरी दृष्टि में व्यक्ति का नाम व्यक्तिवाचक संज्ञा में होना चाहिये । अजीब बात है कि आम जन अपने बच्चों के नाम क्रिया या विशेषण पर रखते हैं । जिसे हम उत्तर भारत कहते हैं या हिन्दी पट्टी; यहाँ हिन्दी भाषा के साथ खिलवाड़ हुआ है । किसी बाहरी तत्वों ने नहीं बल्कि स्वयं हमने । और उच्चारण माशा अल्लाह राम भरोसे । हम बोलते परकाश हैं तो अंग्रेज़ी के हिज्जे Parkash. आख़िर संज्ञा न रोये । मशहूर फ़िल्म कलाकार धर्मेंद्र पंजाब से बंबई की फ़िल्मी दुनिया में आये थे । धरमेन्दर उच्चारण करते थे । जिसका लघु रूप धरम है ।
2 कविता अनुगमन करने के योग्य है । हम अपने विचार और व्यक्तित्व में परिवर्तन नहीं करते । मुक्ति दूर की कौड़ी है । यह जीवन हमें स्वयं को सुधारने के लिये बना है । लेकिन हम तैयार नहीं होते । संत और दार्शनिक पहाड़ में परिवर्तन होते हुए देखते हैं । हम नहीं सीखना चाहते । अपने से दूर भाग रहे हैं ।
3 अशोक वाजपेयी ने लिखा था-मैं दुनिया को बदलना चाहता हूँ/ आपकी दुनिया नहीं अपनी दुनिया को/ जिसे समझने, सुधारने और सँभालने में वक़्त बीत गया । इन्हीं पंक्तियों की गूँज ब्रज रत्न जोशी की कविता में सुनायी देती है । हम इतने नयें भी न हों की भूत हमसे छूट जाये । भविष्य के लिये क्या बचाकर रखें । वर्तमान समय ही हमसे छूटा जा रहा है ।
नए अंदाज में रचित राजनीतिक शोर-शराबे से अलग श्रेष्ठ कविताएं।
साधुवाद।
ब्रजरतन जोशी जी दुर्लभ प्रतिभा हैं। आपकी कविताएं पढ़ता रहा हूं। आज की कविताएं भी बहुत सुंदर हैं विशेषकर भाषा सीरीज की। आपकी तरह अरुण जी जोशी जी के संपादन का भी मुरीद हूं। मधुमती जैसी सरकारी पत्रिका को कहां पहुंचा दिया आपने। आने वाले समय में आलोचना में भी इनसे मुझे बड़ी उम्मीद है क्योंकि शास्त्रीय भाषा पर इनका अधिकार मैने देखा है। जोशी जी और समालोचन को बधाई।
आपकी कविताओं में सेठियाजी का शिल्प बिम्बित होता है। कम शब्दों में गहन भावबोध।प्रशंसनीय…।।
Congratulations Brajratan ji for presenting your musings on the use of language in our search for meaning in poetry.
All the seven poems go along well in this search.
Deepak Sharma
सम्पादन कार्य के साथ ब्रजरतन जी एक कवि के रूप में अंतर्मुख व्यक्तित्व रखते हैं। इधर उनकी कविताओं से परिचय होता रहा है। जिस प्रकार से वे संशलिष्ट भाषा में भावप्रवणता के साथ बौद्धिक संगति रचते हैं, वह महत्त्वपूर्ण है। मैं एक कवि के रूप में उन्हें अधिक देखने और समझने की चेष्टा करता हूँ।
कविताओं में कहने की अधीरता की जगह समझने का धैर्य है। अच्छी रचनाएँ।
शानदार सर
आप के इस नये रचित शब्द संसार ने बहुत कुछ बताया है ।
भाषा के इर्दगिर्द घूमते हुए यह शब्द प्रमाण विचारों की शरण में लिये जाते लग रहे है।
ब्रजरतन जी आप विशद ज्ञान का प्रवाह बनते जा रहे है।
भाषा और भाषिकता के संदर्भों को कविता में रूपांतरित करने का इतना बढ़िया हुनर ब्रजरतन जी के पास है यह पहली बार पता चला ! गहरे रचनात्मक आशयों से लबरेज इन कविताओं को पढ़ना सुखद रहा । बहुत बहुत बधाई !
वाह जोशी जी ,भाषा और शब्दों को लेकर लेखनी की कशमकश के साथ विसंगतियों पर छोट…..उम्दा आपको बधाई 🙏
सभी कविताएँ भाषा और कवि को समर्पित है। शुभकामनाएं।
शानदार कविताएं।🙏