नवीन रांगियाल |
पुकारना
जिसे पुकारा
वह खो गया
पुकारना
गुम हो जाना है
मैंने कहा सफर
तो सड़कें गुम हो गईं
नदी कहा
मैं डूब गया पानी में
मैं बहुत गहरे तक धंस गया
जब मैंने कहा पहाड़
रंग कहा
तो मैं सिमट आया उसकी कत्थई आंखों में
मैंने एक बार कहा था दिल
उसके बाद मैं अकेला रह गया
प्यार कहने पर
तुम चली गई
मैंने कहा तुम्हारी याद
तो गुम हो गया मैं
मैंने सुना एक बार नाम तुम्हारा
लेकिन पुकारा नहीं
मैं नाम को तुम्हारे देखता हूँ
बस देखता ही रहता हूँ.
मुझे हैरत में डालो
ज़ालिमों मुझे गुस्से से भर दो
मैं किसी मजलूम के काम आऊं
रिंदों मेरा जाम पूरा भर दो
मैं बेहोश हो जाऊं
जानवरों मुझे दो मनुष्यता
मैं आदमियों के काम आऊं
औरतों मुझे दो करुणा
मैं कभी मैला न कर सकूं किसी का मन
आशिकों मुझे पागलपन दो
मैं प्यार करूँ बदले में कुछ न चाहूँ
उदासियों मुझमें जमा हो जाओ
मैं मुस्कराऊँ तो उसे अच्छा लगूं
किताबों मुझे सवाल दो
थकानों झपकियां दो
जमानों मुझे याद दो
दुनिया के तमाम जादूगरों
मुझे हैरत में डालो
असानियों मुझे मुश्किलें दो
मैं फिर उठूं मैं फिर चलूं
चिताओं मुझे होश दो
मैं तैयार रहूँ
समय मुझे उम्र से भर दो
मैं बड़ा काम करूं
मैं मर जाऊं.
मृत्यु
मृत्यु मेरा प्रिय विषय है
लेकिन
मैंने कभी नहीं चाहा
कि मैं मर जाऊं
इतनी छोटी वजह से
जहाँ
केवल दिल ही टूटा हो
और
शेष
पूरी देह
सलामत हो.
एक अदद चाय
दो घड़ी तुम्हारे साथ के लिए कैसी प्रार्थनाएँ?
प्यार के लिए कैसी गुजारिश?
ये क्या बात हुई कि तुम्हारा हाथ थामने से पहले
छूने होंगे
फूलों से ढकना होंगे देवताओं के चरण
क्या इसलिए दुनिया में आया था ईश्वर
कि तुम्हारे साथ एक ठीक ठाक दिन के लिए
उसके कानों में बुदबुदाऊं अपनी इच्छाएँ
धूप बत्ती से उसकी नाक में दम कर दूं?
आखिर इतनी भीड़ क्यों लगा रखी है ईश्वर ने दुनिया में?
जिस तरफ़ सिर झुकाओ कृपा करने खड़े हो जाते हैं!
क्या करना है हमें इतनी कृपाओं का?
जबकि मैं चाहता हूँ
किसी शाम तुम्हारे साथ बालकनी में बैठना
और एक अदद चाय पीना.
सतही आदमी
तुम्हारे साथ मैं कितना सतही आदमी था
प्यार प्यार
और बस प्यार करता रहा
कॉफी
रूमाल
चॉकलेट
और चाबी के छल्लों में गुजार दिए दिन
उस थोक बाज़ार में
कितने लोग पहचानने लगे हमे
जहाँ से तुम्हारे स्कार्फ
आई लाइनर और सन कोट खरीदे
कई शामें तुम्हारे लिए वो काजल ढूंढने में गुजार दीं
जो लंबे वक्त तक टिका रहे तुम्हारी आँखों में
नहीं आने वाले उस अनजान सुख के लिए
कितना वक्त गंवाया हमने साथ साथ
इस जिंदगी में कितनी चीज़ें थीं आसपास
जिनसे नफ़रत कर सकता था मैं
जब तक तुम बिछड़ नहीं गई
यह जान ही नहीं पाया
कि घृणा और प्रतिशोध के भी मूल्य होते हैं
तुमसे अलग होकर ही जान सका
सबसे बुरे होते हैं फूल
बिन बात ही हिलते रहते हैं हवाओं में
अब जबकि मैं प्यार में नहीं हूँ
बादल क्यों बेवजह निकल आते हैं आसमान में?
धूप कितनी क्रूर है
जिस घर में कोई मर गया, उसी के आंगन में खिल आती है
चांद हर शाम पसर आता है छतों पर मातम की तरह
सुख कितना ख़राब लगता है
तुम्हारे बगैर
दुख समृद्ध है
कितना मज़ा देता है अकेले में
यह कविता भी एक सुख है
लिखकर मिटा दूंगा
बस थोड़ी ही देर में.
धीमी दुनिया
न चाहते हुए भी मुझे घोषित कर दिया गया
फिफ्थ जनरेशन का आदमी
जबकि मैंने चाहा नहीं था कि मैं इतनी जल्दी-जल्दी गुजार दूँ अपने साल
मुझे चाहिए थी एक बहुत धीमी दुनिया
तुमसे मिलने के लिए चाहिए था एक लम्बा इंतजार
और एक रुका हुआ दिन
मैं बहुत धीमे धीमे जीना चाहता था तुम्हारे साथ
इसलिए कि देर तक तुम्हारे साथ चल सकूं
इतना कि तुम्हारा हाथ पकड़ने में
कई साल लग जाए मुझे
देर तलक टिका रहे तुम्हारा सिर मेरे कांधों पर
और तुम्हारी नींद लग जाए
मैंने कभी नहीं चाहा
कि दुनिया इतनी विराट हो जाए
कि उसकी महानता में गुम हो जाए हमारा सुख
जब तक उठकर बिस्तर की सलवटें ठीक करता हूँ
दुनिया थोड़ी सी और बदल चुकी होती है
मुझे तुमसे अलग करने में इस दुनिया का भी हाथ है
यह जितनी तेज रफ्तार से भागती है
मैं उतना तुमसे दूर हो जाता हूँ
जबकि मैं चाहता था इस जन्म तुमसे प्यार करूं
और अगले जन्म में करूं तुम्हारी प्रतीक्षा
पिछली शाम बैठा था तुम्हारे साथ
तो देख रहा था
घड़ी में कांटों की रफ्तार भी कितनी बढ़ा दी गई है
कितनी जल्दी कट रहे हैं जनवरी फरवरी
कितनी जल्दी आ रहे हैं दिसंबर
किसी भी दुनिया को इतना भूखा नहीं होना चाहिए
कि वह वक्त को भी खा जाए
और उस प्यार को भी
जिसे कह देने का वक्त अभी आया ही नहीं था.
लुका-छिपी
मैं हासिल की हुई चीजों को भूल जाता हूँ
मुझे याद रहते हैं खोए हुए लोग
पा लेना
खो देने से ज्यादा खतरनाक है
भयावह है किसी का साथ मिल जाना
जितनी बार तुमसे मिलता हूँ
उतनी बार अकेला हो जाता हूँ
इस आकाश को भूल जाने दो हम दोनों की उपस्थिति
याद रखो कि इस पृथ्वी पर
तुम एक गुम हो चुकी लड़की हो
मैं एक याद में जीने वाला लड़का हूँ
तुम्हें पा कर खोना नहीं चाहता
मैं तुम्हें खो कर याद रखूंगा
इसके पहले कि प्यार हो जाए तुमसे
तुम अभी
इसी वक़्त गुम हो जाओ
मैं तुम्हें
अभी
इसी वक़्त से ढूंढना शुरू करता हूँ.’
सारे सफ़र ग़लत हो गए
दुनिया मे सबकुछ सही चल रहा है
जहाँ कहना था
वहाँ चुप्पियाँ रख दी गईं
जहाँ रोकना था- वहाँ जाने दिया
हर जगह सही बात कही और सुनी गई
सभी ने सबसे सही को चुना
सबकुछ सही तरीके से रखा गया
कहीं भी कोई ग़लती नहीं की गई
नतीज़न सारे हाथ ग़लत हाथों में थे
सारे पांव ग़लत दिशाओं में चल दिए
दुनिया में सारे फैसले सही थे
इसलिए सारे सफ़र ग़लत हो गए.
और उसे खो देता हूँ
सारी देह को समेट कर
जब वह उठती है बिस्तर से
हेयर बैंड को मुँह में दबाए
अपने सारे बालों को बाँधती है
तो उसकी गर्दन में याद आता है
मंदिर का गुंबद
रात भर से जागी
थकी हुई उसकी मदालस आँखों में
शिव ने फूँक दी हो
अपनी निगाह जैसे
सोचता हूँ अपने जूड़े में
कितना कसकर बाँध लेती है
वो अपनी आवारगी
अपने टूटे हुए बालों में
चुनती है एक-एक लम्हा
जो इसी रात
टूट कर बिखरा था
यहां-वहाँ
जैसे शिव बिखेरते हैं
और फिर समेटते हैं ये सृष्टि
बनाते हैं
फिर मिटाते हैं
हमारी दुनिया बनती है
बनते-बनते रह जाती है
उस क्षण
कितनी चाहत भरी थी
तुम्हारी देह में
कितना शोर था
मेरे हाथों में
चाह और शोर के इस द्वंद् में
मै बार-बार बिखरता और सँभलता हूँ उसके साथ
वहीं उसके क़रीब
इस बिखरी हुई दुनिया में
अपने आज्ञाचक्र पर
टिक कर बैठ जाता हूँ
उसके प्यार में
पा लेता हूँ अपना ईश्वर
और
उसे खो देता हूँ.
नवीन रांगियाल पेशे से पत्रकार |
सुंदर कवितायें!! मन के भीतरी कोनों को ढूँढ ढूँढ कर छूने की कोशिश करती हुई कवितायें! धीमी दुनिया, लुका छिपी , और उसे खो देता हूँ मैं , ये तीनों कविताओं की लयबद्धता एक एक पंक्ति के साथ पाठक को ठहरने पर विवश कर देती है!
बड़ी प्यारी कविताएं लिखते हो नवीन भाई
भीतर तक भिगो देते हैं शब्द।
कविताएँ सुंदर हैं।
नवीन रंगियाल तुम [जानकर आप नहीं लिखा] क्या बलाँ हो । डुबा देते हो एक कोने में और ख़ुद चपलता से दूसरे सिरे पर चले जाते हो । माँगकर भी कहते हैं कि कुछ नहीं माँगा । भरमाने आये हो । यूँ चलता रहा तो पृथ्वी का ग्लोब बदल दोगे । कोई आश्चर्य नहीं कि अब जापान, आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में सूरज पहले तिड़कता है तो कहीं इनकी बारी बाद में आये ।
सनातन धर्म में ईशनिंदा blasphemy की अवधारणा नहीं है । सनातनी होते हुए भी ईश्वर को न मानने की छूट है । मुझे कोफ़्त होती है कि मंदिर में परमेश्वर की प्रतिमा के सामने उसकी नाक में धुआँ उगलती धूप और अगरबत्तियों को जलाकर परेशान किया जाता है । नवीन जी मैं 1990s में रामेश्वरम मंदिर में गया था । यह बड़ा मंदिर धुएँ से काला हो चुका है । हर रोज़ किया जाता है । प्रभु पर रहम करो ।
जिसके साथ तुम धीरे-धीरे चलना चाहते हो वह तुम्हारी प्रेमिका हाथ छुड़ाकर तेज़ी से बढ़ गयी । ग़ायब हो गयी कि मानो धरती डूब गयी हो समुद्र में । आपने जल्दी क्यों मचायी । आप स्त्री के मन का फ़लसफ़ा नहीं जानते । जल्दी की तो लौटकर नहीं आयेगी । युवती पहल नहीं करती अपितु प्रतीक्षा करती है । तुम उतावले हो गये ।
अब नयी सृष्टि का निर्माण करो ।
अँधेरे में लौटना चाहते हैं तो वहाँ उजियारा हाथ लगता है । ज़िंदगी भूलभुलैया का दूसरा नाम है । यहाँ टिप्पणी करें या सीधे टिप्पणी की जगह; दोनों घाटे का सौदा है । यहाँ कविताएँ सामने नहीं होतीं कि मुकम्मल हुआ जा सके । बाहर टिप्पणी करता हूँ तो नेटवर्क साथ नहीं देता ।
मैं बार बार सोचता हूँ कि शर्करा रोग से ग्रस्त व्यक्ति को पीलिया हो जाये तो क्या करेगा । चिकित्सा की शब्दावली में स्लाइन की ड्रिप लगा देंगे । परंतु काम धीरे-धीरे होगा ।
ग़ुलाम अली ख़ान ने ग़ज़ल गायी थी
दिल को रोऊँ के या जिगर को हसन ।
अपनी दोनों से आशनाई थी ॥
जान में मेरी जान आयी थी ।
कल सबा किसकी याद आयी थी ॥
अच्छी कविताएं छोटे छोटे वाक्यांशों से सज्जित पढ़ते हुए भीतर डुबो देने वाली और क्या हासिल हो सकता है कविता का कि आप अपने आपको फिर से देखने लगते हैं
कविता पढ़ने या …….कविता के साथ धीरे-धीरे एक-एक कदम चलना……… कुछ ऐसा ही कविता पढ़ते समय अनुभव हो रहा था। कविता में लेखक पूरी तरह उपस्थित है कदम दर कदम……. अच्छी कविताएं जिन्हें पलट कर पढ़ने का मन होता है बधाई…. नवीन जी
बेहद खूबसूरत कविताएं!
बधाई इतने प्यारे संग्रह के लिए!
प्रेम में पगी ये कविताएं बहुत गहरे तक छू लेती हैं।
बहुत आभार, खूब सारा धन्यवाद आप सभी का. इन बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणियों के लिए.