विश्व कविता
अनुवाद: रुस्तम
II योर्गोस सेफेरीस II
(अँग्रेज़ी अनुवाद: एडमंड कीले और फिलिप शेररार्ड)
1.
कभी-कभी तुम्हारा ख़ून चाँद की तरह जम जाता था
अन्तहीन रात में तुम्हारा ख़ून
काली चट्टानों, पेड़ों और घरों के आकारों के ऊपर
अपने श्वेत पंख फैलाता था,
हमारे बचपन के दिनों से थोड़ी सी रोशनी लेकर.
2.
मुझे दुख है कि एक चौड़ी नदी को मैंने अपनी उँगलियों में से फिसल जाने दिया
उसकी एक बूँद तक पिये बिना.
अब मैं पत्थर में धँसता जा रहा हूँ.
मेरे पास लाल ज़मीन में देवदार का बस एक पेड़ है.
जो कुछ भी मुझे प्रिय था वह उन घरों के साथ ही अदृश्य हो गया
जो पिछली गर्मियों में नये थे
और पतझर की हवाओं में ढह गये.
3.
तीन चट्टानें, थोड़े से जले हुए देवदार, एक छोटा-सा गिरजाघर, अकेला, तथा और भी ऊपर
यही परिदृश्य अपने-आप को दोहराता हुआ फिर शुरु हो जाता है:
तीन चट्टानें एक जंग खाये द्वार के आकार में,
थोड़े से जले हुए देवदार, काले और पीले,
और एक चौकोर झोपड़ी सफ़ेदी से पुती हुई;
तथा और भी ऊपर, कितनी बार,
यही परिदृश्य पुनरावृत होता है हरेक स्तर पर
क्षितिज तक, शाम के आकाश तक.
यहाँ हमने लंगर डाल दिया टूटे चप्पुओं को बांधने के लिए,
पानी पीने के लिए और सोने के लिए.
समुद्र जिसने हमारे मन को कड़वा कर दिया था वह गहरा और अजाना है और एक असीम प्रशान्ति को खोलता है.
यहाँ कंकड़ों के बीच हमें एक सिक्का मिला और हमने उसे पासे की तरह फेंका.
जो सबसे युवा था उसने उसे जीत लिया और वह गुम हो गया.
एक बार फिर हम समुद्र पर निकल पड़े अपने टूटे हुए चप्पुओं को लेकर.
4.
जब मैं जगा तो संगमरमर का यह सिर मेरे हाथों में था;
यह मेरी कोहनियों को थका रहा है और मैं नहीं जानता इसे कहाँ नीचे रक्खूँ.
जब मैं स्वप्न से बाहर आ रहा था तो यह स्वप्न में जा रहा था
इस तरह हमारा जीवन एक हो गया और अब उसका अलग होना बहुत कठिन होगा.
मैं आँखों को देखता हूँ: वे न खुली हैं न बन्द हैं
मैं इसके मुँह से बात करता हूँ जो बोलने की कोशिश करता रहता है
मैं गालों को थामे हुए हूँ जो त्वचा से छिटक गये हैं.
मैं बस इतना ही कर सकता हूँ.
मेरे हाथ ग़ायब हो जाते हैं और मेरी ओर आते हैं
कटे-फटे.
5.
हवा यदि बहे भी तो वह हमें ठंडा नहीं करती
और सरू के पेड़ों के नीचे छाया बहुत कम है
और चारों तरफ़ ढलानें पहाड़ों के ऊपर चढ़ रहीं हैं;
वे हमारे लिए बोझ हैं
मित्र जो अब मरना नहीं जानते.
II होर्खे लुइस बोर्खेस II
सहजता
बगीचे का ग्रिल वाला फ़ाटक
क़िताब के पन्ने की सहजता से खुलता है
जिसे बहुत पढ़ा गया है,
और, जब हम अन्दर आ जाते हैं, हमारी आँखों को
उन वस्तुओं पर रुकने की ज़रूरत नहीं
जो पहले से ही हमारी स्मृति में नपी हुई और स्थित हैं.
यहाँ आदतें और मन और निजी भाषा
जो सब परिवार गढ़ते हैं
मेरे लिए रोज़मर्रा की चीज़ें हैं.
कुछ बोलने या कोई और होने का स्वांग करने की ज़रूरत ही क्या है?
पूरा घर मुझे जानता है,
उन्हें मेरी चिन्ताओं और कमज़ोरी का अहसास है.
सबसे बढ़िया जो हो सकता है वह यह है —
जो ऊपर वाला शायद मुझे दे दे:
कोई मेरे बारे में हैरानी से न सोचे या सोचे कि मुझे सफ़ल होना चाहिए,
बस मुझे अन्दर आने दे
जैसे कि मैं उस यथार्थ का हिस्सा हूँ जो असंदिग्ध है
सड़क के पत्थरों की तरह, पेड़ों की तरह.
(अँग्रेज़ी अनुवाद: नार्मन थॉमस डी जिओवानी)
देवदूतों जैसे घर
जहाँ सैन हुआन और चाकाबुको मिलते हैं
मैंने नीले घर देखे,
घर जो रोमांच के रंग पहनते हैं.
वे ध्वजों की तरह थे
और उस भोर की तरह गहरे जो शहर के बाहरी घरों को मुक्त कर देती है.
कुछ के रंग ऐसे हैं जैसे उस वक़्त होते हैं जब दिन फूट रहा होता है, कुछ के भोर जैसे;
उनकी शीतल कान्ति एक जुनून है किसी भी नीरस और निराश कोने के आड़े चेहरे के बरक्स.
मैं उन औरतों के बारे में सोचता हूँ
जो अपने जलते हुए आँगनों से आकाश की ओर देख रही होंगी.
मैं उन पीली बाँहों के बारे में सोचता हूँ जिनकी रोशनी में शामें टिमटिमाने लगती हैं
और काली लटों के बारे में: मैं उस संजीदा खुशी के बारे में सोचता हूँ
जब उनकी गहरी आँखें मुझे प्रतिबिम्बित करेंगी, रात के मण्डपों की तरह.
मैं आँगन के लोहे के फ़ाटक को धकेल कर खोल दूँगा
और वहाँ कमरे में एक गोरी लड़की होगी, जो मेरी हो चुकी होगी.
और हम आलिंगन करेंगे, लपटों की तरह काँपते हुए,
और उन क्षणों में उपस्थित आनन्द शान्त हो जायेगा.
(अँग्रेज़ी अनुवाद: रोबर्ट फिट्ज़जेराल्ड)
मेरा पूरा जीवन
यहाँ एक बार फिर स्मरणीय होंठ, अद्वितीय और तुम्हारे होंठों जैसे.
मैं यह टटोलती हुई शिद्दत हूँ जो कि एक आत्मा है.
मैं ख़ुशी के पास पहुँच गया और दुख की छाया में भी खड़ा रहा.
मैंने समुद्रों को पार किया.
मैं बहुत से प्रदेशों को जानता हूँ; मैंने एक औरत को देखा है और दो या तीन आदमियों को.
मैंने एक लड़की से प्रेम किया जो गोरी और गर्वीली थी, और उसमें स्पेनी स्थिरता थी.
मैंने शहर के किनारे को देखा है, वह अन्तहीन फैलाव जहाँ सूरज बिना थके नीचे जाता है, बार-बार, बार-बार.
मैंने कई शब्दों का स्वाद चखा है.
मुझे गहरा विश्वास है कि बस यही कुछ है और कि मैं न तो नयी चीजें देखूँगा और न ही उन्हें पाऊँगा.
मैं मानता हूँ कि मेरे दिन और मेरी रातें, अपनी विपन्नता और दौलत में, ईश्वर के दिनों और उसकी रातों के बराबर हैं तथा सभी आदमियों के दिनों और उनकी रातों के बराबर हैं.
(अँग्रेज़ी अनुवाद: डब्लयू. एस. मर्विन)
ओरटुज़ार बंगले के ऊपर सूर्यास्त
क़यामत के दिन जैसी शाम.
गली का अन्त आकाश में एक ज़ख्म की तरह खुल रहा है.
दूर जलती रोशनी सूर्यास्त था या कोई देवदूत?
सतत, एक दुःस्वप्न की तरह, दूरी मुझ पर लदी हुई है.
तार की बाड़ क्षितिज को सता रही है.
दुनिया किसी बेकार वस्तु की तरह है, फिंकी हुई.
आकाश में अब भी दिन है, लेकिन रात नालियों में छिपी घूम रही है.
रोशनी जितनी भी बची है वह नीली दीवारों और लड़कियों के उस झुण्ड में है.
यह वृक्ष है या कोई देव जो जंग खाये उस गेट में से नज़र आ रहा है?
कितनी तरह के क्षेत्र हैं इकट्ठे: देश, आकाश, शहर का फटा-पुराना बाहरी भाग.
आज कुछ ख़ज़ाने भी थे: गलियाँ, चिरपिरा सूर्यास्त, शाम की चकाचौंध.
यहाँ से बहुत दूर, मैं एक बार फिर अपनी विपन्नता में डूब जाऊँगा.
(अँग्रेज़ी अनुवाद: डब्ल्यू. एस. मर्विन)
आँगन
शाम होते ही
ईंटों के आँगन के दो या तीन रंग थक जाते हैं.
पूरे चाँद की विशाल गोल दीप्ति रोज़मर्रा के नभ को अपने जादू में बाँध नहीं पाती.
आँगन: आकाश का जलमार्ग.
आँगन वह ढलान है जिस पर फिसलता हुआ आकाश घर में चला आता है.
धीरज से अनन्त वहाँ प्रतीक्षा करता है जहाँ तारे इक-दूजे से मिलते हैं और फिर आगे चले जाते हैं.
डयोढ़ी, कुंज और ढँके हुए चौबच्चे की अँधेरी मित्रता में रहना अच्छा लगता है.
(अँग्रेज़ी अनुवाद: रोबर्ट फिट्ज़जेरॉल्ड)
II सेज़र वैय्यखो II
(अँग्रेज़ी अनुवाद: एड डोर्न तथा गॉर्डन ब्रदर्सटन)
खुला हुआ
आज कोई भी पूछने नहीं आया;
इस शाम उन्होंने मुझसे कुछ नहीं पूछा.
रोशनियों के इतने खुशी भरे जुलूस में
मैंने कब्रिस्तान का एक भी फूल नहीं देखा.
मुझे मुआफ़ करना, ईश्वर; मैं कितना कम मरा हूँ.
इस शाम हर कोई, हर कोई पास से निकल कर चला जा रहा है
मुझसे कुछ भी पूछे बिना.
और मुझे नहीं पता वे क्या भूल रहे हैं और मेरे हाथों में
ग़लत कुछ छूट रहा है, जैसे कि वह किसी और की वस्तु हो.
मैं बाहर दरवाज़े तक गया हूँ
और उन सब की ओर चिल्लाऊँगा:
जो चीज़ तुम्हें मिल नहीं रही, वह यहाँ है!
क्योंकि इस जीवन की सभी शामों को,
मुझे नहीं पता कौन से दरवाज़े मेरे मुँह पर धड़ाम से बन्द कर दिये जाते हैं,
और कोई परायी वस्तु मेरी आत्मा को जकड़ लेती है.
आज इधर कोई नहीं आया:
और आज इस शाम मैं कितना कम मरा हूँ.
उस कोने में
उस कोने में, जहाँ हम इकट्ठे सोये थे
कितनी रातें, अब मैं बैठ गया हूँ
चलने के लिए. मृत प्रेमियों का बिस्तर
बाहर कर दिया गया था, या शायद जो कुछ भी हो सकता था.
तुम किसी और काम से जल्दी आ गयी हो
और अब तुम चली गयी हो. यह वो कोना है
जहाँ तुम्हारे संग बैठकर एक रात मैंने पढ़ी थी,
तुम्हारे कोमल बिन्दुओं के बीच,
डाउडे* की एक कहानी. यह प्रिय
कोना है. इसके बारे में ग़लती मत करना.
मैं गर्मियों के वे दिन याद करने बैठ गया हूँ
जो चले गये हैं, तुम्हारा अन्दर आना और तुम्हारा बाहर जाना
थोड़ा और तुष्ट और पीला
कमरों में से होते हुए.
इस गीली रात में,
अब हम दोनों से बहुत दूर, मैं चौंक कर उठता हूँ……
दो दरवाज़े हैं जो खुल रहे हैं बन्द हो रहे हैं,
दो दरवाज़े जो हवा में आते हैं और जाते हैं
छाया से छाया.
*अल्फोन्स डाउडे (1840–1897) फ्रांसीसी उपन्यासकार तथा कहानीकार थे.
निर्णय
मैं एक ऐसे दिन पैदा हुआ
जब ईश्वर बीमार था.
सब जानते हैं कि मैं जीता हूँ,
कि मैं बुरा हूँ; और वे उस जनवरी के
दिसम्बर के बारे में नहीं जानते.
क्योंकि मैं एक ऐसे दिन पैदा हुआ था
जब ईश्वर बीमार था.
मेरी तत्त्वमीमांसी हवा में
एक छेद है
जिसे कोई भी महसूस नहीं करेगा:
ख़ामोशी का एक मठ
जो आग से प्रफुल्ल होकर बोलता था.
मैं एक ऐसे दिन पैदा हुआ था
जब ईश्वर बीमार था.
सुनो, भाई, सुनो….
ठीक है. और मुझे जाने नहीं दो
ताकि मैं दिसम्बर लेकर नहीं आऊँ,
ताकि मैं जनवरियों को छोड़ नहीं जाऊँ.
सब जानते हैं कि मैं जीता हूँ,
कि मैं चबाता हूँ……और वे नहीं जानते
कि मेरी कविता में इन सब की चरचराहट क्यों है:
शवगाड़ी के अँधेरे झोंके
घर्षण से ज़ख्मी हवाएँ
जो स्फिंक्स* में से गोल-गोल घूमकर निकल रही हैं
मरु का कौतूहल
सब जानते हैं……और वे नहीं जानते
कि रोशनी क्षय से ग्रस्त है,
और छाया मोटी है……
और वे नहीं जानते कि रहस्य समन्वय करता है……
या कि वह उदास संगीतमय
कूबड़ कौन है जो दूर से ही निन्दा करता है
दोपहर को उठाये गये कदम की, सीमाओं से सीमाओं तक.
मैं एक ऐसे दिन पैदा हुआ था
जब ईश्वर बुरी तरह
बीमार था.
*यूनानी मिथकीय कथाओं में पंखों वाला एक जन्तु जिसका सिर महिला जैसा है और शेष देह सिंह जैसी.
हर रोज़
हर रोज़ मैं अन्धों की तरह उठता हूँ
काम करने के लिए ताकि मैं ज़िन्दा रह सकूँ: और मैं नाश्ता करता हूँ
उसकी एक बूँद को भी चखे बिना, हर सुबह.
बिना जाने कि मैंने इसे बनाया है, या कि क्या कभी बनाऊँगा,
कोई चीज़ जो स्वाद में से बाहर लपकती है
या केवल हृदय है, कोई चीज़ जो लौट आयी है, जो विलाप करेगी
जब तक कि वह यहाँ सबसे महत्वहीन काम होगा.
बच्चे बड़े हो जायेंगे खुशी से तृप्त
ओह चमकीली सुबह,
हमारे माँ-बाप के दुख के सामने जो हमें छोड़ नहीं पायेंगे
जो इस दुनिया से अपने प्रेम के सपनों से बच नहीं पायेंगे;
प्रेम से भरे ईश्वर की तरह
उन्होंने सोचा कि वे सृजक हैं
उष्ण चोट से हमें प्यार किया.
अदृश्य बाने के अलंकृत कोने
दाँत जो गन्धबिलाव की तरह शिकार करते हैं अकर्मक भावनाओं के पर्दे से
स्तम्भ
जिनकी कोई नींव नहीं कोई चोटी नहीं
विशाल मुँह में जो ज़ुबान खो चुका है.
बार-बार जलती है अँधेरे में दियासलाई,
धूल के बादल में बार-बार एक आँसू.
शाश्वत पासा
मेरे ईश्वर, मैं उस होने का शोक मनाता हूँ जिसे मैं जी रहा हूँ;
मुझे दुख है कि मैंने तुम्हारी रोटी ली;
लेकिन सोचने वाली यह ग़रीब मिट्टी
कोई पपड़ी नहीं है जिसे तुम्हारी देह पर उफाना गया था:
तुम्हारे पास ऐसी मेरियाँ* नहीं हैं जो चली जायें!
मेरे ईश्वर, यदि तुम आदमी होते,
तो तुम आज जान जाते कि ईश्वर कैसे बनते हैं;
पर तुम जो कि सदा मुक्त थे
उसका कुछ भी महसूस नहीं करते जिसे तुमने बनाया है.
और आदमी तुम्हें सहता है: ईश्वर वह है!
आज मेरी चुड़ैल आँख में एक चमक है
जैसे उस आदमी में जिसे मरने की सज़ा दे दी गयी हो
इसलिए, मेरे ईश्वर, तुम अपनी सारी मोमबत्तियाँ जला लो
और हम तुम्हारा पुराना पासा खेलेंगे……
यह हो सकता है, बूढ़े जुआरी,
जब यह पूरा ब्रह्माण्ड, जो मृत्य है, ढह जायेगा,
तब मृत्यु की भरी हुई आँखें
कीचड़ के दो विषादमय इक्कों जैसी दिखेंगी.
मेरे ईश्वर, और यह नीरस, मनहूस रात,
तुम कैसे खेलोगे, क्योंकि पृथ्वी
एक घिसा हुआ पासा है, जो बेतरतीबी से
लुढ़क-लुढ़क कर पहले ही गोल हो चुका है,
और सिर्फ़ एक खोखल में ही रुक सकता है,
एक बहुत बड़ी क़ब्र के खोखल में.
*मेरियाँ मेरी का बहुवचन है जो जीसस की माँ थीं.
II टी. एस. इलियट II
चार बजे हवा उछल पड़ी
चार बजे हवा उछल पड़ी
हवा उछल पड़ी और उसने घण्टियाँ झिंझोड़ दीं
जो जीवन और मृत्यु के बीच झूल रही थीं
यहाँ, मृत्यु के स्वप्निल राज्य में
भ्रामक कलह की जागती हुई गूँज
क्या यह एक स्वप्न है या कुछ और
जब कालिख़-पुती सतह नदी की
आँसुओं से पसीजा एक चेहरा है?
मैंने कालिख़-पुती नदी के उस तरफ़ देखा
शिविर की आग पराये बरछों से हिल रही थी.
यहाँ मृत्यु की दूसरी नदी के पार
टटार घुड़सवार अपने बरछे हिला रहे हैं.
एसक*
टहनी को अचानक तोड़ नहीं देना, या
श्वेत कुएँ के पीछे
श्वेत हिरन को पाने की उम्मीद नहीं करना.
एक तरफ़ नज़र डालना, बरछे के लिए नहीं, प्राचीन टोने
नहीं उच्चारना. उन्हें सोने दो.
‘धीमे से डुबकी लगाना, पर बहुत गहरी नहीं,’
अपनी आँखें उठाना
जहाँ सड़कें ढलती हैं और जहाँ सड़कें उठती हैं
केवल वहीं ढूँढना
जहाँ स्लेटी रोशनी हरी हवा से मिलती है
जहाँ संन्यासी का पूजा-घर है, तीर्थयात्री की प्रार्थना है.
*एसक वेल्स नामक देश में एक नदी का नाम है, जिसके किनारे इसी नाम का एक नगर है. वेल्स ग्रेट ब्रिटेन का हिस्सा है.
न्यू हैम्पशायर*
बगीचे में बच्चों की आवाज़ें
फूल खिलने और फल बनने के बीच:
सुनहरी सिर, किरमिज़ी सिर,
नोक और जड़ के बीच.
काले पंख, भूरे पंख, मण्डराओ;
बीस वर्ष और वसन्त जा चुका है;
आज दुख मनाता है, कल दुख मनाता है,
पत्तियों-में-रोशनी, मुझे ढक लो;
सुनहरी सिर, काले पंख,
चिपट जाओ, झूलो,
वसन्त, गाओ,
सेब के पेड़ में ऊपर की ओर झूल जाओ.
*न्यू हैम्पशायर यूनाइटेड स्टेट्स (अमरीका) में एक छोटा राज्य है.
वर्जिनिया*
लाल नदी, लाल नदी,
धीमा बहाव ताप ख़ामोशी
कोई भी इच्छा नदी की तरह स्थिर नहीं
स्थिर. क्या ताप केवल
नक्काल मैना के ज़रिए चलेगा
जिसे एक बार सुना गया? स्थिर पहाड़ियाँ
प्रतीक्षा करती हैं. फ़ाटक प्रतीक्षा करते हैं. बैंगनी वृक्ष,
श्वेत वृक्ष, प्रतीक्षा करते हैं, प्रतीक्षा करते हैं,
देरी करते हैं, सड़ जाते हैं. जीवित, जीवित,
कभी नहीं हिलते. हमेशा चलते हुए
लौह विचार मेरे साथ आये
और मेरे साथ ही जाते हैं:
लाल नदी, नदी, नदी.
*वर्जिनिया यूनाइटेड स्टेट्स (अमरीका) में एक राज्य है.
योर्गोस सेफेरीस कवि और कूटनीतिज्ञ थे. वे कई देशों में यूनान के एम्बेसडर रहे. वे बीसवीं सदी यूनान के सबसे महत्वपूर्ण कवियों में गिने जाते हैं. 1963 में उन्हें कविता के लिए साहित्य का नोबल पुरस्कार दिया गया. |
होर्खे लुइस बोर्खेस Jorge Luis Borges (1899-1986) जन्म लातिनी अमरीका के देश अर्जेन्टीना में हुआ था. वे कवि, कहानीकार, निबन्धकार तथा अनुवादक थे. बीसवीं सदी में न केवल स्पेनी भाषा में बल्कि विश्व साहित्य में उनका अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है. सबसे अधिक वे अपनी फ़न्तासी-पूर्ण कहानियों के लिए जाने जाते हैं. |
सेज़र वैय्यखो कवि, नाटककार और पत्रकार थे. उनका जन्म लातिनी अमरीका के पेरु देश में हुआ. वे स्पेनी भाषा में लिखते थे. 1922 के बाद वे पेरिस (फ्रांस) में रहने लगे. उनका अधिकतर जीवन घोर ग़रीबी में बीता. वे कविता में अपनी घनघोर प्रयोगात्मकता के लिए जाने जाते हैं. वास्तव में उन्हें बीसवीं सदी का सबसे अधिक प्रयोगात्मक कवि माना जाता है. कुछ विद्वानों की नज़र में बीसवीं सदी में वे न केवल स्पेनी भाषा के बल्कि विश्व के सबसे बड़े कवि थे. |
टी. एस. इलियट जन्म अमरीका में हुआ. 25 वर्ष की उम्र में वे इंग्लैण्ड चले गये और वहीं बस गये. वे बीसवीं सदी के सबसे बड़े कवियों में गिने जाते हैं. इसके अलावा वे नाटककार तथा आलोचक के रूप में भी प्रसिद्ध हैं. उन्हें अँग्रेज़ी कविता में आधुनिकतावाद को लाने का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने कविता में शैली, संरचना तथा भाषा में नये प्रयोग किये. भाषा के उनके कुछ प्रयोग यहाँ अनूदित चारों कविताओं में देखे जा सकते हैं. 1948 में उन्हें कविता के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया. |
रुस्तम कवि और दार्शनिक. रुस्तम के हिन्दी में आठ कविता संग्रह प्रकाशित हैं, जिनमें से एक संग्रह किशोरों के लिए है. उनकी “चुनी हुई कविताएँ” 2021 में सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर, से प्रकाशित हुईं. उनकी कविताएँ अँग्रेज़ी, तेलुगु, मराठी, मल्याली, पंजाबी, स्वीडी, नौर्वीजी, फ्रांसीसी, एस्टोनी तथा स्पेनी भाषाओं में अनूदित हुई हैं. रुस्तम सिंह नाम से अँग्रेजी में भी उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित हैं. इसी नाम से अँग्रेजी में उनके पर्चे राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं. उन्होंने नार्वे के कवियों उलाव हाउगे व लार्श अमुन्द वोगे की चुनी हुई कविताओं के पुस्तकाकार अनुवाद हिन्दी में किये हैं जो वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, से 2008 तथा 2014 में प्रकाशित हुए. उन्होंने तेजी ग्रोवर के साथ मिलकर एस्टोनिया की प्रसिद्ध कवयित्री डोरिस कारेवा की चुनी हुई कविताओं का अनुवाद किया है जो संग्रह 2022 में राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, से प्रकाशित हुआ. उन्होंने पंजाबी के सात कवियों की कविताओं का अनुवाद किया है जो संग्रह 2022 में सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर, से प्रकाशित हुआ. इसके अलावा उन्होंने पाँच अन्य पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया है. वे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला, तथा विकासशील समाज अध्ययन केन्द्र, दिल्ली, में फ़ेलो रहे हैं. वे “इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली”, मुंबई, के सहायक-सम्पादक तथा श्री अशोक वाजपेयी के साथ महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, की अँग्रेजी पत्रिका “हिन्दी : लैंग्वेज, डिस्कोर्स, राइटिंग” के संस्थापक सम्पादक रहे हैं. वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली, में विजिटिंग फ़ेलो भी रहे हैं. वे एकलव्य नाम की एन. जी. ओ. में सीनियर फ़ेलो तथा वरिष्ठ सम्पादक रहे हैं. इस सबसे पहले वे भारतीय सेना में अफसर (कैप्टन) भी रहे हैं. |
अभी शुरू की तीन कविताएँ पढ़ी हैं। बेहतरीन कविताओं का उतना ही अच्छा अनुवाद। यह काम साहित्य को समृद्ध करने जैसा है।
बहुत खूबसूरत कविताओं का अद्भूत अनुवा
ये चारों हमारे समय के बहुत महत्वपूर्ण कवि-लेखक हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद के लिए रुस्तम को बहुत बहुत बधाई।
इतनी अद्भुत कविताओं को हिंदी पाठकों के सामने प्रस्तुत करने के लिए रुस्तम जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं तो कम से कम इस खजाने से वंचित ही रहता यदि आपने इतने सुंदर अनुवाद द्वारा इन्हें पहुंचने का महत्वपूर्ण कार्य अंज़ाम नहीं दिया होता।
बेहद गहन और जीवन्त अनुवाद है रुस्तम जी के,सच कहा जाए तो सरसरी निगाह से नहीं बल्कि बहुत डूब कर पढ़ी जाने लायक हैं. आपकी इजाजत हो तो गाहेबगाहे पढ़ने के लिए सेव कर लूं……. माताचरण मिश्र.
कवि रूस्तम बेहतरीन अनुवादक है,इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता ही नहीं की इनका विदेशी भाषा से अनुवाद किया गया है,एक से एक शानदार कविताओं का चयन जिनमें भावों के साथ फेंटेसी,बिम्ब, प्रतीक,मानवीकरण को ज्यों का त्यों बचा लिया गया है,इन कविताओं में ज्यादातर प्रकृति और कवि एक दूसरे से इस तरह गुंफित है कि वह एकाकी होते हुए भी अकेला नहीं है ।यही तादात्म्य कवि रूस्तम की कविताओं में देखने को मिलता है।यह एक अलग संसार है जिसमें गोते लगाना अद्भुत है।आज के दिन की अच्छी शुरुआत।कवि रूस्तम और समालोचन को हार्दिक बधाइयां ।
कल से इन कविताओं को पढ़ रहा हूँ,निकल नही पा रहा इनके गुरुत्वाकर्षण से। रुस्तम जी अनुवाद तो अच्छा करते
ही हैं, पर महत्वपूर्ण बात यह है कि वह किस तरह की कविताओं को हमारे सामने लाने के लिए चुनते है। इधर मैंने देखा
अच्छे-अच्छे कवि भी विषय-वस्तू से बाहर नहीं होते। उन्हें कविता का एक आदि चाहिए, एक अंत। कविता को एक शक्ल देने की कोशिश रहती है। इन कविताओं को पढ़ कर लगता है, जैसे आदि, अंत घुले मिले है। पहली स्तर के बिल्कुल उलट दूसरी स्तर अपने अस्तित्व में आती है। हर स्तर का अपना आदि अंत है। विषाद और आनंद घुले मिले
हैं, अभी जाल है, अभी समुंदर। कविता एक बिंब से नहीं, अनेक बिंबों से उभर रही है। फिर भी उनमें एक ही रीढ़ दिखती है। इन कविताओं में पड़ी हुई हल्की सी फंतासी ने यथार्थ को ऐसा पटका दिया है कि पढ़ते ही बनता है।
जैसे– ‘एक चौड़ी नदी को मैंने उँगलियों से फिसल जाने दिया’
“मैं अपने हाथ से गायब हो गया”
” कभी कभी तुम्हारा खून चाँद की तरह जम जाता है”
इन कविताओँ में समय एक सीधी रेखा में नही चलता , एक वर्तुल बनाता है, जिसमे भविष्य अतीत से पहले और
वर्तमान, भविष्य के आगे भी आ सकता है,( बोखरेस )। यह कविताएँ फंतासी, यथार्थ और वास्तविकता के मिश्रण
की कविताएँ हैं। आदि, अंत की जगह बीच मंझदार में है, गोल-गोल दृश्य लिए। किनारे पर अंत है, और फिर नही है।
मैं सोचता हूँ कि अगर यह कविताएँ किसी हिंदी अथवा पंजाबी के किसी कवि ने लिखी होती तो क्या
इतनी स्वीकारता मिलती ?
यह कवितायें यूँ ही पढ़ने के लिए नहीं, धीरे धीरे गुनने की हैं। बार बार पढ़े जाने की। तभी इनका महत्व समझा सकता। वाक़ई श्रमसाध्य काम है, इन कविताओं का चुनाव और फिर स्तरीय हिन्दी अनुवाद।