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Home » अमन त्रिपाठी की कविताएँ

अमन त्रिपाठी की कविताएँ

अमन त्रिपाठी इधर उभरकर आने वाले कवियों में अपनी ओर अलग से ध्यान खींचते हैं, वे कम लिखते हैं पर कविताएँ बताती हैं कि उनपर काम हुआ है. एक कारोबारी समय में कविता आख़िरकार कर क्या सकती है? उसके कुछ न करने का क्या कुछ ‘मूल्य’ है? अमन त्रिपाठी की सात नयी कविताएँ प्रस्तुत हैं.

by arun dev
October 25, 2022
in कविता
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अमन त्रिपाठी की कविताएँ
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अमन त्रिपाठी की कविताएँ

1.
इसरार

बहुत प्यारे कवि की बहुत महँगी किताब
जब तक दुकान में रहूँगा सीने से लगाए घूमूँगा
फिर एक बार पलट कर देखूँगा बीच के दो-चार पन्ने
अफसोस के साथ वहीं रख दूँगा और सोचूँगा
इतनी अच्छी किताब मुझे देने का हक़ तुम्हीं को है
चलता हूँ अभी, इसरार करूँगा तुमसे कभी
मुझे ले दो न उस प्यारे कवि की वह अच्छी किताब
तुम बहुत अच्छी हो और वह किताब थोड़ी महँगी है.

 

२.
अब भी सम्भावना

बहुत दिनों से किसी से पूछा नहीं
कैसे हैं आप?
जवाब जानता हूँ जो आएगा-
“निष्पाप”

दुनिया एक तरफ असीम सम्भावनाओं से
भरी लगती है
दूसरी तरफ शहर के एक छोर से
दूसरे छोर तक जाने में ही प्राण हलक में आ जाते हैं

ऐसे-ऐसे विशालकाय शहर; शहर नहीं मानो गाड़ियों का अजायबघर
इस छोर से उस छोर तक युद्धभूमि

जानता हूँ कुछ लोग अभी-भी मुझसे प्यार करते हैं
और उनके प्यार का दायित्व लेकर
मैं दुनिया की असीम सम्भावनाओं में
किस‌‌ तरह कूद सकता हूँ

लिहाज़ा डूब जाता हूँ

कम से कम मुझे प्यार करने वालों को
यह जवाब तो नहीं देना होगा कि
सरकारी या कोई भी- नौकरी क्यों नहीं लगी मेरी

“अब सम्भावनाओं में डूब चुका आदमी कैसे
नौकरी कर सकता है, प्यारे लोगों?”-
पूछेगा कोई फूफानुमा व्यक्ति और
मेरी सम्भावनामय मौत की
तेरहीं खाकर चला जाएगा.

 

3.
डरते-सहमते आश्वस्ति देता हूँ

भविष्य की योजनाएँ गहरे अनिश्चय से,
पर दृढ़ आवाज़ में बताता हूँ
कह नहीं सकता क्या होगा
पर मान कर चलिए जो होगा अच्छा होगा

अपने अंदर तक मुझे मालूम है
जो भी होगा वह अच्छा नहीं होगा
कैसे हो सकता है कुछ अच्छा
जिसे देखो वह कुछ तो नष्ट करने पर उतारू है
कोई नहीं जो न घिरा हो
भावुक पारिवारिक सांस्कृतिक परिचित हिंसक क्रोध‌ से

दिल मुसलसल फटा हुआ-सा रहता है

यह सब तो नहीं है अच्छे का लक्षण

उन्होंने पूछा- तुम्हीं बताओ क्या तुम स्वस्थ हो?
मैं नहीं हूँ स्वस्थ मैंने कहा नहीं स्वस्थ नहीं
स्वास्थ्य के कुछ टिप्स होते हैं
सकारात्मक सोच
वामपंथियों से दूरी
सूर्य को जल
यह सब तो होना ही है
एवं अफसरों से मेल-मिलाप
जो यह सब नहीं करता उसे कुछ परेशानी तो है ही
उससे पूछ लेना चाहिए उसकी परेशानी क्या है
ऐसे में अविश्वसनीय आश्वस्तियों
और बड़ी-बड़ी अमूर्त योजनाओं का सहारा लेना होता है

इससे ही कुछ समय की बख़्शीश मिलेगी

इससे मिल जाएगी
आने वाली अपनी बरबादियाँ देखने का साहस जुटाने को कुछ मोहलत
और वे बरबादियाँ तो हैं ही हमारे दिमाग़ का फितूर
क्योंकि सूर्यदेव ने हम पर‌ से फेर ली है अपनी
कृपा-दृष्टि.

 

art work- Marcel Caram marcarambr

4.
ख़राब सामान्यीकरणों का गणतंत्र

बहुत बड़ी गाड़ी में रहता है बहुत छोटा आदमी
बहुत छोटे आदमी की सफलता की कहानियाँ इतनी बड़ी
और उसका संघर्ष हमेशा ही सबसे बड़ा
बहुत कायर आदमी कर सकता है बहुत बड़ी हिंसा
सबसे असुरक्षित आदमी के पास सबसे बड़े हथियार-

ऐसे भौंडे और अक्सर जनविरोधी
व्यंग्यात्मक सामान्यीकरणों से
अपना माथा जितना बच सके बचा रखना चाहिए

(चाहिए के शिल्प में बात बहुत करता है
बड़ी गाड़ी में रहता आदमी)

इतने छोटे लोग हैं कि छोटे को छोटा कहने का
संकट बहुत बड़ा है
बड़ी गाड़ियों के नीचे मृत्यु बहुत छोटी है

श्रेष्ठताबोध की ऊँचाई का उथलापन
इतना भी सामान्य नहीं है
डरना नहीं चाहिए- जो श्रेष्ठ है, है
जो नीच है, है
उत्तर-वुत्तर कुछ नहीं होता
सत्य है जो, वह है सापेक्षता के साम्राज्य में

पर सामान्यीकरणों के घनघोर गणतंत्र में
यह मान लो,
कि जो आदमी छोटा लगता है
और अब भी उसके पास गाड़ी छोटी है
या गाड़ी नहीं है
दरअसल बहुत बड़ा आदमी है
वह अदना आदमी.

 

5.
अनर्हत

उसका पहला काम है कि वह आपको जवाब देने में अक्षम बना देगा
आपको वह आँसुओं से भर देगा पर आपकी रुलाई किसी को दिखेगी नहीं
वह जाएगा नहीं और आप कभी अकेले नहीं हो सकेंगे
जिसे दुनिया समझती है साहस और आप जिसे कुछ समझते भी नहीं हैं
वह चीज़ आपको इस तरह मिलेगी कि अगर कहूँ कि आप ख़ुद के लिए ही ख़तरा हैं तो आप हैरान नहीं होंगे
आपसे कुछ नहीं होगा पूरा-पूरा
अधूरेपन के नितांत आधुनिक संस्करण आप
अपने पुरानेपन में इस तरह टहलेंगे
कि चलते हुए दौड़ने लगेंगे
बोलते हुए गाने
और गाली देते हुए भैया-बाबू कहने लगेंगे

वह देह जो अपने भार से लदी हुई है
चलती हुई है पर गति मानो नहीं है
है पर
जैसे नहीं है
निष्प्रभाव और अदृश्य-सी
वह प्यार की देह

उसके दिल पर प्यार का इतना बोझ है
कि उसकी पूरी देह उससे झुक गई है
अपने पूरे वजूद के साथ उठाता है
मुट्ठी भर प्यार.

 

6.
कविता करके क्या बन पाया

कविता करके क्या बन पाया

झूठे अंतःकरण सुखाया
उसका भी आयतन छोटाया
झुरा गया आँखों का पानी
काव्यशास्त्र के भार से झुककर
मुद्राएँ‌ न्यारी-न्यारी
बना-बनाकर
जनता के आईने से
अपनी शक्ल छुपाया
कविता से भी क्या बन पाया

पूँजी हुई विशाल प्रथमतः गरियाया
फिर अपनी हालत को देखा
देखा अपने मित्रों की सुख-सुविधाएँ
लगा खोजने इस दुनिया में
कितना पैसा कविता मुझको दे सकती है
कविता के सुनसान नगर में
पैसे की भरने चकाचौंध जब निकला तो मालूम हुआ
कविता का व्यापार बहुत है
किंतु न जाने उस कूचे में
किस कविता की आवाजाही
उसे कभी मैंने न देखा
उसने भी कभी नहीं देखी थी
मेरी हास्यास्पद शकल

बहुत हँसा कि बुरा फँसा
यह कविता की नैतिकता मुझको कहीं न छोड़ेगी
मगर क्या करूँ
है कैसी विडम्बना कि अब रोना आता है
लोगों का दुख नहीं वरन्
अपना ही दोहरापन विगलाता है

किंतु व्यक्तिगत आलापों को छोड़ मुझे अब देना चहिए
मेरी सम्पत्ति नहीं कविता
संशयात्मा विनश्यति में भी मुझको विश्वास नहीं है
मेरा तो यह मतलब था कि
बहुत बड़ी पूँजी से भी और विचार से
मनुष्यता के सबसे बड़े उदाहरणों से
आख़िर कितनी बातें निकलीं
बातों से भी कितने-कितने जाले निकले
और जालों में बीत गई सारी धरती और डूब गई अपनी खानों में

एक तत्व भी ना उपराया
कविता से भी क्या बन पाया.

 

7.
कुछ करने का समय

(ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता
सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे – जौन एलिया)

 

मेरी चमड़ी में पराबैंगनी का अनन्त कोश है
और मेरी नसों में पॉलीथीन बह रहा है
मौसम विज्ञानियों ने कुछ भी हो पाने की संभावना पर हाथ खड़े कर दिए हैं
मेरे दोस्त नफ़रत से भरकर हँसते हैं कि रोते हैं

मेरे पास भविष्य के बारे में कोई अनुमान या अंदेशा,
कुछ भी नहीं है
मेरी भाषा से भविष्य का गा, गी, गे ग़ायब कर दो
जबकि तुम्हारी क्या औक़ात है कवियो!

इतिहास मेरा खल-सुख है और भूगोल मेरा प्रेरणास्रोत है
एरिज़ोना‌ और विदर्भ मेरी मसहरी के नीचे फैले हुए हैं
कास्ट और क्लास
अम्बेडकर और मार्क्स
मेरा ख़ून हैं और ख़ून में, मैं फिर से कहूँ,
मेरे पॉलीथीन बह रहा है

इतिहास में एक हिमालयनुमा जियोलॉजिकल क्लॉक
मुँह चिढ़ाता है

गौतम के आगे बहुत ज़ोर-ज़ोर‌ से
स्त्रियों ने कहा और विचारकों ने भी
कि उनके पास सत्ता कभी नहीं रही
वरना जंगलों में असली पेड़ होते
और जंगल के जंगल जलपिपासु
दस्यु वृक्षों से नहीं पट गये होते

इस बात पर‌ तो क्या कहा जाए लेकिन,
गद्य में कहूँ फिर भी आप नहीं मानेंगे
यहाँ राजमार्ग पर जंगलों से बेदख़ल महा-वटों की क़तारें हैं
एक बार स्त्रीविहीन मही पर एक महा-वट की पीली पत्ती ने
एक श्रमण से कहा- ‘कहाँ जा रहे हैं भदंत’
और इतना ही कहने में वे वटवृक्ष
अघोरियों-सा नाद करते
धराशायी हो गये

हम किसी भी तरह विचार करते रहें
श्रमण की नसों में भी पॉलीथीन ही बहता रहता है
और वृक्ष की शिराओं में कार्बनमोनोऑक्साइड ही
पत्तियों और गिट्टियों में फर्क नहीं है
और यह सब भूतकाल की घटनाएँ हैं

ऐसा लगता है कोमलता मेरी सबसे बड़ी दुश्मन है पर सच तो यह है कि
व्यस्ततम सड़कों पर ट्रकों और बुलडोज़रों के बीच
पूँछ उठाकर बेतहाशा दौड़ती गायें
भड़भड़ाकर गोमती में गिरता स्लग पीती गायें
और मृत कुत्तों का मांस खाती गायें
मेरा सबसे बड़ा दुःस्वप्न है और सच तो यह है
कि यह सब सच है

तुम्हें लगता है कि हमें नींद आती है?
हम तब पर्दानशीनों के इश्क़ में जाग रहे थे
और उर्दू में डूब जाते थे
टूटे घरों के टूटे दरवाज़ों से झाँकतीं
बीहड़ गलियों में चमक जैसे चेहरों वाली
संभावित प्रेयसियों की‌ तलाश में शहर-शहर‌ घूमते थे
और फिर एक रात
चालीस सालों से जाग रहा सुंदरलाल बहुगुणा
यमुना में डूब गया
तुम्हें लगता है हमें नींद आती है?

हमारी तंद्रावस्था में एक मच्छर कान में
सूत्र फूँकता है- अरे मूर्ख!
चालीस सालों के जागरण को
चार अरब साल की पृथ्वी से तौलता है!
जीवन भी कभी नष्ट होता है?
समय और मनुष्यों को पूछता कौन है रे!
चार अरब साल को
समय समझता है मूर्ख?

चिम्पांज़ियों की दहाड़ से हमारी तंद्रा टूटती है
जिनके सिरहाने बैठकर जेन गुडॉल संसार का सबसे
पुराना मंत्र बुदबुदाती थी
और मधुमक्खियों से बातें करती थी
बेलुगा से क्षमा माँगती थी
और एक-एक‌ मनुष्य से घूम-घूमकर पूछती थी-
‘वह कौन-सा‌ समय था जब
कुछ नहीं करने का समय था?’

अमन त्रिपाठी
(
देवरिया) 

laughingaman.0@gmail.com

 

Tags: 20222022 कविताएँअमन त्रिपाठीनयी सदी की हिंदी कविता
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Comments 12

  1. Sanjeev Buxy says:
    5 months ago

    अभी संभावना एक अच्छी कविता इसके लिए बधाई

    Reply
  2. कुमार मंगलम says:
    5 months ago

    अमन को इन सुंदर कविताओं के लिए बहुत बहुत बधाई…अमन अपने लिखे हर पीस में अपने लिए और प्रेम अर्जित कर लेता है। यह हमारे समय का अलहदा और विशिष्ट स्वर यत्किंचित् दीखता हुआ भीड़ में नितांत अकेला है। शुभकामनाएं अमन।

    Reply
  3. नवल शुक्ल says:
    5 months ago

    अमन जी के बारे में आपने ठीक लिखा है।उनकी कविताओं के लिए आपका लिखा उनकी संभावनाओं और धीरज को भी बता रहा है।मुझे भी ऐसा ही लगा।
    बहुत धन्यवाद।

    Reply
  4. बजरंगबिहारी says:
    5 months ago

    संभावनाशील कवि। फ़िलहाल, कवि होने का जोख़िम उठाने को तैयार दिख रहे हैं। परंपरा की अनुगूँजें अनायास आएं तो कविता की अपील निखरती जाएगी। समालोचन का आभार।

    Reply
  5. Mahesh Kumar says:
    5 months ago

    अच्छी कविताएँ। समालोचन गद्य और कविता दोनों बढ़िया रचनाओं से परिचय करा रहा है।

    Reply
  6. Kamlnand Jha says:
    5 months ago

    अच्छी कविता। अमन की कविता में अपने समय की टोह के साथ समय की बेबसी भी छिपी होती है। कोरी भावुकता मार्का कविता पसंद करने वाले अमन की कविता पसंद नहीं करेंगे। समालोचन का काव्य-विवेक सराहनीय। शुक्रिया। कवि अमन को बहुत बहुत बधाई।

    Reply
  7. Anonymous says:
    5 months ago

    समझ से परे … बेतरतीब

    Reply
  8. नरेन्द्र पुंडरिक says:
    5 months ago

    यह कविताएँ समकालीन हिंदी कविता में नया जोड़ती दिखाई दे रही हैं।

    Reply
  9. तेजी ग्रोवर says:
    5 months ago

    अमन में जोखिम उठाने की हिम्मत तो है और उनकी कविता की आमद से कुछ एकदम नया जुड़ा भी प्रतीत होता है हिंदी कविता में।

    फिर भी शिल्प के स्तर पर भी कुछ नए की अपेक्षा उनसे रहेगी। नहीं तो उनका स्वर अलग से पहचाना नहीं जाएगा, जबकि इसकी अनन्त संभावना उनमें है।

    दरअसल युवतर कवियों में कईयों ने ज़बरदस्त संभावनाएं हिंदी कविता में पैदा की हैं। बिम्ब सामर्थ्य की कहें तो एक साथ साथ आठ नाम उद्दीप्त हो उठेंगे। सोच का कविता में घुलनशील होना, कवि की विश्वदृष्टि का आभास मिलना और शिल्पगत कसावट … इन सब कसौटियों को मद्देनजर रखना चाहिए किसी कवि का आकलन करने में।

    अमन को उस शिल्प की खोज करते रहना चाहिए जो उनकी विशिष्टता को रेखांकित कर सके। अभी क्या है कि बहुत से कवि पँक्ति दर पंक्ति एक ही सुर में लिखते चले जाते हैं। आप उनकी दृष्टि, सोच, बिम्ब सामर्थ्य को देख प्रसन्न भी होते है, चकित भी। फिर भी आपको लगता रहता है कि कवि की अपनी निजी आवाज़ अभी बन नहीं पा रही। लेकिन जिस कवि में आपको उसके बनने की संभावना दिखती है आपका मन होता है उसे आगाह करें। कुछ को संकोचवश आप कर नहीं पाते, खास तौर पर जब उस कवि को बहुत सी लाइक्स और लव्स ने थोड़ा बिगाड़ दिया होता है।

    Reply
  10. NOOR ALAM says:
    5 months ago

    अमन भाई की कविताओं को ‘नयी सदी की कविता’ में पहली सफ की कविता बनते देखना सुखद है उन्हें ढेर साड़ी शुभकामनाये

    Reply
  11. राजेन्द्र दानी says:
    5 months ago

    कवि में एकदम नहीं आभा है ,फिर उनकी कविताओं में उन जटिल , विषम प्रश्नों के उत्तर समाहित हैं जो समकालीन जीवन में उठकर अनुत्तरित रह जाते हैं । समय के इस अभूतपूर्व संक्रमण में सूक्ष्म अंतर्दृष्टि की अनिवार्यता को कवि काफी हद तक पूरी करता हुआ है । उनके स्वागत को रोकना नामुमकिन है और श्रेष्ठ रचना की जरूरत को वे पूरी कर सकेंगे , यह विश्वास दृढ़ होता है ।

    Reply
  12. रमाशंकर सिंह says:
    3 months ago

    कविता करके क्या उपराया – बहुत अच्छी कविता लगी। बाकी तो बढ़िया कविताओं की रचना की ही है अमन ने। अमन को शुभकामनाएं।

    आलोचक गण प्रशंसा करने में सावधानी बरतें। अति प्रशंसा ने कवियों को खराब किया है। पिछले एक दशक के अनुभव तो यही हैं।

    अमन को बढ़िया आलोचक और शानदार सम्पादक मिलें।

    Reply

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