एन्नी दवू बर्थलू की बीस कविताएँअनुवाद: रुस्तम सिंह |
एन्नी दवू बर्थलू का जन्म 1947 में हुआ. पेशे से वे जीव विज्ञानी हैं, परन्तु अब रिटायर हो चुकी हैं. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपना पूरा समय पेन्टिंग और ड्राइंग करने में लगाया, जो कि वे अपने युवा दिनों से ही करना चाहती थीं. इस दौरान वे फ्रांसीसी कवि-दार्शनिक रोबर्ट नोटेनबूम से मिलीं. यह मुलाकात एक गहरी दोस्ती में बदल गयी क्योंकि उन्होंने पाया कि वे दोनों कला की विशुद्ध और न्यूनतमवादी (minimalist) धारणा में विश्वास करते हैं. अब तक एन्नी दवू बर्थलू ने छह पुस्तकें प्रकाशित की हैं जिनमें दो कविता संग्रह हैं तथा एक उपन्यास है. Copyright of the original poems in French: Annie Deveaux Berthelot
Copyright of the translations into Hindi: Rustam Singh
|
1.
मैं तुम्हें पतझड़ में मिलने आऊँगी
पत्तों के नीचे
वहाँ गुलाब होंगे, विस्मृत
काँटों से मैं अपने होंठों को ज़ख्मी कर लूँगी
अपनी उँगलियों से मैं तुम्हारी नंगी देह को सहलाऊँगी.
2.
आकाश
डूबते सितारों में भभक रहा है
उसी तरह
अँधेरे के ख़ून में भी
और मेरी ख़ामोशियाँ
कब से बन्द पड़ी हैं
शिकारी पक्षियों की छाया में.
3.
बेजान पक्षी मुड़ा हुआ
भुला दिया गया है
बर्फ़ कितनी श्वेत है
हिचकिचाते हुए कदम
बहुत देर हो चुकी है
ताबूत बन्द है
मैं देख रही हूँ मृत्यु के पंखों को गुज़रते हुए.
4.
शाम में लटकी हुई
सुनहरी
चमकती ख़ामोशी
लहूलुहान फूलों का गिरकर मर जाना
हे तालाब के दर्पण
यह रही मैं
जैसे उस शाम को थी
जब मुझे
पहली बार मिला था परम-आनन्द.
5.
और सितारे
और फूल
एक घायल हृदय के
तुमने कहा और ख़ामोशियाँ भी गाने लगीं.
6.
जब हवा पेड़ों को छील देती है
और पक्षी चुप हो जाते हैं
मेरी छाया चुपचाप तैरती है
यादों के कालीन पर
नंगे पाँव
मैं अपने ज़ख्मों को ढोती हूँ.
7.
वायलिनें चुप हो गयी हैं
आज रात कोई नहीं आयेगा
केवल एक भूत
लम्बे समय से मृत
हवा की धूल.
8.
वह बिना कुछ कहे चला गया
उसकी पलकों पर हल्की सी हवा
रास्ता कितना सुन्दर था.
9.
मेरे बारे में क्या?
ओह: मैं
हवा में एक पत्ते की तरह
मैं खलबली में रहती हूँ
भविष्यों की संख्या बढ़ाते हुए
जो और कहीं पहुँच से बाहर हैं.
10.
जब भोर होती है
गहरे आसमानी नीले वाली नीली झील पर
वनीला की गन्ध लिए एक मख़मली स्पर्श
धीरे से फैलता है
समय से चुराये एक क्षण के लिए
मैं दुनिया का गीत सुनती हूँ.
11.
तुम्हारा हाथ
भटक कर
मेरे बालों में चला गया
मेरे प्यार
आओ हम माणिकों और गुलाबों के मुकुट बुनें
तुम मेरे राजा होगे
और मैं तुम्हारी रानी.
12.
यह खिल गयी है, पुरानी गुलाब की झाड़ी
इसकी शाखाएँ काली हैं
सम्भव है यह अंतिम बार हो
इतने गुलाब मौन को अर्पित
13.
नींबू का एक पेड़ खिला हुआ
हवा में सूक्ष्म एक सुगन्ध है
लगभग अनछुआ
एक नींबू गिरता है.
14.
मैंने कुछ शब्द हवा में उड़ा दिए
वे हर जगह आग जलाते हैं
यह रही तुम्हारी कृति
उसने मुझसे कहा.
15.
अकेली
स्पष्ट और सटीक
जलकाग की छाया
समुद्र को छूती है
तब मैं जान जाती हूँ कि मृत्यु दूर नहीं है.
16.
यह बहुत सुन्दर था
मैं सरक जाना चाहती थी
संगीत की गहराइयों में
उसकी दरारों
उसके आँसुओं में से
मेरे बारे में सब कुछ वहाँ कहा जा चुका था.
17.
अपनी
पसलियों पर पड़ा वह पियानो बजा रहा है
और रात को
वह स्वप्न लेता है सितारों को देखता हुआ.
18.
बच्चे
मैंने उन्हें बड़ा होते इतना कम देखा
इस खाली समुद्र तट पर
गंगा-चिल्ली* की तरह
वे भी उड़ गए हैं
हवा में….
*समुद्री पक्षी seagull को हिन्दी में गंगा-चिल्ली कहते हैं. यह पक्षी समुद्र पर आम तौर पर उड़ता नज़र आता है. यह अनुवाद मैंने Penguin की The English-Hindi Dictionary and Thesaurus से लिया है.
19.
टिन के डिब्बे में
वर्षों बीत चुके हैं
एक कमज़ोर हाथ ने
जो गुलाब उसमें डाले थे
धूल में बदल गये हैं
उनकी ख़ुशबू उड़ गयी है.
20.
बैंजनी फूलों की ख़ुशबू
वह वहाँ थी
सूर्य की धूल में
मौन में
मैं उसके पदचिन्हों पर चलने लगी
जिन्हें
लम्बे समय से
भुला दिया गया था.
कवि और दार्शनिक, रुस्तम (जन्म, अक्तूबर 1955) के सात कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिनमें से एक संग्रह में किशोरों के लिए कविताएँ हैं. हाल ही में उनकी “चुनी हुई कविताएँ” (2021) सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर, से प्रकाशित हुई हैं. उनकी कविताएँ अंग्रेज़ी, तेलुगु, मराठी, मल्याली, पंजाबी, स्वीडी, नौर्वीजी, इस्टोनी तथा स्पेनी भाषाओं में अनूदित हुई हैं. रुस्तम सिंह नाम से अंग्रेज़ी में भी उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हैं. इन में प्रमुख हैं: Violence and Marxism: Marx to Mao (2015) तथा “Weeping” and Other Essays on Being and Writing (2010). इसी नाम से अंग्रेज़ी में उनके पर्चे कई राष्ट्रीय व अन्तर-राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं. उन्होंने नॉर्वे के प्रसिद्ध कवियों उलाव हाउगे तथा लार्श अमुन्द वोगे की कविताओं का हिन्दी में पुस्तकाकार अनुवाद किया. ये पुस्तकें सात हवाएँ (2008) तथा शब्द के पीछे छाया है (2014) शीर्षकों से वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, से प्रकाशित हुईं.
रुस्तम सिंह नाम से अंग्रेज़ी में भी उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित हैं. इन में प्रमुख हैं: Violence and Marxism: Marx to Mao (2015), “Weeping” and Other Essays on Being and Writing (2010) तथा Literature, Philosophy, Political Theory: Selected Essays (2022). रुस्तम, Economic and Political Weekly, Bombay, में सहायक सम्पादक रहे. वे Centre for the Study of Developing Societies, Delhi, तथा Indian Institute of Advanced Study, Shimla, में फेलो तथा Jawaharlal Nehru University, New Delhi, में विज़िटिंग फेलो रहे. वे श्री अशोक वाजपेयी के साथ महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, की अंग्रेजी पत्रिका “Hindi: Language, Discourse, Writing”, के संस्थापक सम्पादक रहे. बाद में वे एकलव्य फाउंडेशन, भोपाल, में सीनियर फेलो तथा वरिष्ठ सम्पादक रहे. 1978 से 1983 के दौरान वे भारतीय सेना में अफ़सर रहे. जब वे कैप्टन थे तो उन्होंने सेना से त्यागपत्र दे दिया. |
इतने गुलाब कि दो भरे-पूरे गुलदस्ते बन जाएं।
एक कवि को
एक अनुवादक को
इन महकती हुई बेहतरीन कविताओं के लिए।
जन्मदिन मुबारक रुस्तम जी।
जन्म दिन की हार्दिक अशेष बधाई रुस्तम जी को! मुलाक़ात करने की बेहद तमन्ना रही है। उन की कविताओं का एक अद्भुत मिस्टीक है। कभी मिल कर उन से बातचीत करना चाहूँगा। जानना चाहूँगा अच्छी कविता का मर्म, अच्छी बातों का तिलिस्म। लिखते छपते हुए छप्पन सत्तावन साल हो गए, भाषा की महारत अब तक न आ पायी। छोटा आदमी हूँ, कुछ समझने का आग्रह है। रुस्तम जी बता पाएंगे, इसी उम्मीद के साथ। पुन: एक बार – जन्म दिन मुबारक होवे! लख लख वधाईयां…!
बहुत सुंदर कविताएं हैं अनुवाद भी कमाल
कवि रुस्तम को हार्दिक बधाई और शुभकामना
बिल्कुल नए ढंग की कविताएँ…एकदम ताज़ा! इतनी ताज़ा कि ये अनुवादक की भी कविताएँ हो गई हैं। इतनी बेहतरीन कविताएँ पढ़वाने के लिए ‘समालोचन’ और अनुवादक रुस्तमजी का आभार! भाई अरुण देवजी का काम क़ाबिल-ए-ग़ौर और अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
बहुत सुंदर कविताएँ। अनुवाद बेहतर हुआ है
जी है कि कुछ रुक कुछ कहूँ, यह ठहरी रुकी हुई कविताए
एकदम से कुछ कहने को रोक रही है, इतनी smooth भाषा है कि दिल मे उतरती है,सर पर नही चड़ती,कभी कभी ऐसा महसूस होता है,यह कुछ भी नही कह रही,और इस बात को ऐसे ही समझना कि यह कुछ भी नही कह रही,कहने वाली बात है,फिर भी लगता है इस कवि की कुछ और भी कविताए
पड़ने योग अनुवाद करनी चाहिए रुस्तम जी को,अभी तो सिर्फ
ख़ज़ाने की चाबी मिली है,इस तरह की खामोश गहरी भाषा तक आने के लिए कितना चुप रहना पड़ता होगा,मैं महसूस कर सकता हूँ।
क्षमा करना सुंदर फ्रेंच कवि। फिर कभी किसी दिन कोई आएगा। देखेगा इन कविताओं को। जैसे दुर्लभ प्रजाति के किसी विलुप्तप्राय जीव को। और विस्मय से भर जाएगा। भले ही वह स्वयं कवि हो। विस्मय से भरे किसी कवि ने फिलवक्त हिन्दी में इन कविताओं को रख दिया। महक के इस झोंके से यह भाषा प्रसन्न दीख पड़ती है मुझे। आपने मानो स्वयं ही इसी भाषा में लिखा हो।
जैसा जीवन आपने चुना वैसी ही कविताएँ हैं ये। कवि मुख्यतः अपने जीवन को शिल्पित करते करते ही कवि हो जाता है। फिर धीरे धीरे वह मृत्यु के शिल्प का वरण भी करता है। फिर पाता है कि जैसा जीवन है कुछ कुछ वैसी ही मृत्यु भी होती है। कोई पहुंचा हुआ सुकवि उनमें अभेद की स्थिति पैदा कर लेता है।
सितम के दौर में ऐसी बहुत सी मृत्युएं होती हैं जिन्हें किन्हीं निरीह जीवों को शिल्पित करने का एक भी क्षण नहीं मिल पाता। मनुष्य ही ने यह सुनिश्चित भी किया है कि वह इस तरह मृत्यु की गरिमा को कुछ प्राणियों के लिए पूर्णतया भंग कर दे।
तुम्हारा सौभाग्य है कि तुमने इत्मीनान से जीवन और मृत्यु को एक साथ शिल्पित किया है। इसलिए आप मेरे लिए तुम हुईं और तुम्हारा अनुवादक तो बहुत पहले से ही तुम्हारे रास्ते पर चलता आ रहा है।
उसके इस पृथ्वी पर होने का सुख कोई मामूली शै नहीं! उसी ने तो तुम्हें मिलवाया है हम सभी को।
तुम्हारी कविताएँ अब मूल में पढूंगी। मुझे मालूम है तुम्हारी भाषा मेरी मदद करेगी।
एन्नी दवू बर्थलू की छोटी छोटी बीस कविताओं ने दिल का लहू कर दिया है । यह शब्द इसलिये चुना क्योंकि इनकी कविताओं में मोहब्बत मुखर होकर लिखी गयी है ।