आलेख

रामविलास शर्मा का कला-सौन्दर्य सम्बन्धी चिंतन: रविभूषण

रामविलास शर्मा का कला-सौन्दर्य सम्बन्धी चिंतन: रविभूषण

रामविलास शर्मा का लेखन विस्तृत है और विषयों में विविधता है. बड़े अर्थों में वह संस्कृति के आलोचक हैं. सौन्दर्य और कला विषयक चिंतन का विस्तार करते हुए उसे उन्होंने...

गांधी और तत्कालीन हिंदी पत्रिकाएँ:  सुजीत कुमार सिंह

गांधी और तत्कालीन हिंदी पत्रिकाएँ: सुजीत कुमार सिंह

महात्मा गांधी ने सिर्फ़ राजनीतिक परिवर्तन का रास्ता ही प्रशस्त नहीं किया भारतीय समाज को सत्य, करुणा और बराबरी के वैश्विक मूल्यों से जोड़ने का भी प्रयास किया. सच्चे अर्थों...

उत्तराखण्ड में नवलेखन-6: बटरोही

उत्तराखण्ड में नवलेखन-6: बटरोही

विज्ञान और वैज्ञानिक चेतना दोनों के प्रचार प्रसार की कितनी आवश्यकता भारत को है इसे बताने के आवश्यकता नहीं है. व्यक्तिगत प्रयासों से वैज्ञानिक चेतना और विज्ञान को नई पीढ़ी...

उदयन वाजपेयी की कविताएँ: मदन सोनी

उदयन वाजपेयी की कविताएँ: मदन सोनी

मदन सोनी हिंदी के प्रमुख आलोचक और अनुवादक हैं. उनकी छह आलोचना पुस्तकें और विश्व प्रसिद्ध लेखकों की रचनाओं के हिंदी अनुवाद जिनमें उम्बर्तो एको के ‘द नेम ऑफ द...

उत्तराखण्ड में नवलेखन-5: बटरोही

उत्तराखण्ड में नवलेखन-5: बटरोही

उत्तराखण्ड में नवलेखन की यह पाँचवीं क़िस्त नवीन कुमार नैथानी और अशोक पाण्डे के कथा-लेखन पर केन्द्रित है. कवि-कथाकार अशोक पाण्डे ने विश्व साहित्य से हिंदी में विपुल अनुवाद भी...

रचना और आलोचना: भूपेंद्र बिष्ट

रचना और आलोचना: भूपेंद्र बिष्ट

भूपेंद्र बिष्ट ने नामवर सिंह पर कथाकार धीरेंद्र अस्थाना के लेख के संदर्भ में रचना और आलोचना के अंतर-सम्बन्धों पर यह टिप्पणी लिखी है. प्रस्तुत है.

उत्तराखण्ड में नवलेखन-4: बटरोही

उत्तराखण्ड में नवलेखन-4: बटरोही

मुख्यधारा के समानांतर अनेक धाराएँ चलती हैं, मुख्यधारा इन्हीं से जीवन पाती है. हिंदी का साहित्य ही इन्हीं उपधाराओं से बना है. इन उपधाराओं की अलग से भी पहचान होनी...

‘वीरेनियत’ का मतलब: पंकज चतुर्वेदी

‘वीरेनियत’ का मतलब: पंकज चतुर्वेदी

‘इतने भले नहीं बन जाना साथी/जितने भले हुआ करते हैं सरकस के हाथी’ वीरेन डंगवाल के पहले कविता संग्रह, ‘इसी दुनिया में’ यह कविता शामिल है. इसका असर कुछ ऐसा...

क्या प्रेमचन्द की परम्परा इकहरी थी? : विमल कुमार

क्या प्रेमचन्द की परम्परा इकहरी थी? : विमल कुमार

साहित्य और संस्कृति में परम्परा और उत्तराधिकार के सवाल अक्सर सरलीकरण के आखेट हो जाते हैं. भाषा और साहित्य की दुनिया उसके लिखने-बोलने वालों से आबाद है जो कि अपने...

उत्तराखण्ड में नवलेखन-3: बटरोही

उत्तराखण्ड में नवलेखन-3: बटरोही

उत्तराखण्ड में नवलेखन की तीसरी कड़ी में वरिष्ठ लेखक बटरोही अरुण कुकसाल और शम्भू राणा की चर्चा कर रहें हैं. उत्तराखण्ड के युवा लेखन में विविधता है. जड़ों से जुड़े...

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