मलिक मुहम्मद जायसी कृत ‘कन्हावत’ : माधव हाड़ा
मलिक मुहम्मद जायसी के ‘पदमावत’ से हम सब सुपरिचित हैं. क्या आप जानते हैं कि उन्होंने कृष्ण कथा पर आधारित महाकाव्य ‘कन्हावत’ भी लिखा है. लगभग पांच सौ साल पहले...
मलिक मुहम्मद जायसी के ‘पदमावत’ से हम सब सुपरिचित हैं. क्या आप जानते हैं कि उन्होंने कृष्ण कथा पर आधारित महाकाव्य ‘कन्हावत’ भी लिखा है. लगभग पांच सौ साल पहले...
कवि त्रिलोचन की मानें तो- ‘ग़ालिब गैर नहीं हैं, अपनों से अपने हैं.’ हिंदी को भले ही उर्दू से परहेज़ रहा हो पर मीर, ग़ालिब को उसने दिल से लगा...
आज प्यारे विष्णु खरे (9 फरवरी, 1940 - 19 सितंबर, 2018 जीवित रहते तो हम लोग उनका 82 वां जन्म दिन मना रहे होते. प्रकाश मनु गहराई और तसल्ली से...
प्रख्यात लेखिका, दार्शनिक, नाट्य और फ़िल्म निर्देशक सूसन सौन्टैग (16 जनवरी, 1933 – दिसम्बर 28, 2004) अपने समय की प्रसिद्ध शख्सियत थीं. उनका एक पहलू सामाजिक कार्यकर्ता का भी है....
सन्तोष अर्श समकालीन हिंदी कविता पर गम्भीरता से लिखते हैं, युवा कवियों के क्रम में सपना भट्ट की कविताओं पर लिखा है. कविताओं के मनोजगत में झाँकने की उनकी कोशिश...
हिमालय का क्षेत्र पहाड़ों के लिए ही नहीं जंगलों के लिए भी जाना जाता है, जंगल और उसके वृक्ष जहाँ उसकी संस्कृति के अटूट हिस्से हैं वहीं उनपर कारोबारियों की...
अमीर ख़ुसरो साहित्य (हिंदी, उर्दू, फ़ारसी) और इतिहास दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं. उनके व्यक्तित्व और महत्व पर माधव हाड़ा का यह आलेख रुचिकर है, प्रस्तुत है.
लगभग चार दशकों से कवि-कर्म में संलग्न रुस्तम के सात कविता संग्रह प्रकाशित हैं. प्रचलित राजनीतिक मुहावरों से अलग सम्पूर्ण अस्तित्व के लिए उनकी कविताएँ लड़ती हैं. उनमें आदिम होने...
भारतीय साहित्य विशेष रूप से उपन्यासों के लिए साल 2022 कामयाब रहा, हिंदी के उपन्यास ‘रेत-समाधि’ के अनुवाद को जहाँ ‘इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार’ मिला वहीं उर्दू के उपन्यास ‘नेमत ख़ाना’...
नारीवाद आधुनिक विश्व के कुछ महत्वपूर्ण विचारों में से एक है, यह जनांदोलन भी है और राजनीति भी. समानता, स्वतंत्रता और व्यक्ति की गरिमा जैसे मूल्यों से उपजे इसी नारीवाद...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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