अन्तोन चेख़फ़: कौशलेन्द्र और सुशांत सुप्रिय
अन्तोन चेख़फ़ (29 जनवरी,1860 -15 जुलाई,1904) की कहानियां आज भी पाठकों पर गहरा असर छोड़ती हैं. कौशलेन्द्र पेशे से चिकित्सक हैं पर मन उनका साहित्य में ही रमता है. चेख़फ़...
अन्तोन चेख़फ़ (29 जनवरी,1860 -15 जुलाई,1904) की कहानियां आज भी पाठकों पर गहरा असर छोड़ती हैं. कौशलेन्द्र पेशे से चिकित्सक हैं पर मन उनका साहित्य में ही रमता है. चेख़फ़...
अनुराधा सिंह की निर्वासित तिब्बती कविताओं पर आधारित पुस्तक ‘ल्हासा का लहू’ वाणी प्रकाशन ने रज़ा फ़ाउण्डेशन के सहयोग से इधर प्रकाशित किया है. 2018 में ज्ञानपीठ से उनका पहला...
औपनिवेशिक भारत में केवल इतिहास की ही खोज़ ख़बर नहीं ली जा रही थी, साहित्य की भी भूली बिसरी संपदा का शोधन हो रहा था. इनमें देशी विदेशी सभी तरह...
आज़ादी के बाद की भारतीय राजनीति को जिन विचारकों ने गहरे प्रभावित किया उनमें डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम प्रमुखता से आता है. आज उनका जन्म दिन है पर...
रंजना मिश्र अरसे से कविताएँ लिख रहीं हैं, अब उनका पहला कविता संग्रह- ‘पत्थर समय की सीढ़ियाँ’, लिटिल बर्ड पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली से छप कर आया है जिसकी विस्तार से...
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का आज जन्म दिन है आज ही के दिन 7 मार्च,1911 को कुशीनगर में उनका जन्म हुआ. उनके पिता हीरानंद शास्त्री पुरातत्ववेत्ता थे और वहीं शिविर...
रहीम (17 दिसम्बर, 1556 – 1 अक्तूबर, 1627) को हिंदी पढ़ने वाले उनके नीति के दोहों के कारण जानते हैं और अपना कवि मानते हैं. विख्यात विद्वान प्रो. हरीश त्रिवेदी...
लगभग ६०० साल पूर्व चित्तौड़गढ़ में प्राकृत में लिखी जिनहर्षगणि के महाकाव्य रत्नशेखर नृप कथा को प्रस्तुत करते हुए पहली बात तो यही लगती है कि भारत में कथा कहने...
कवि शमशेर बहादुर सिंह की जन्म तिथि 3 जनवरी 1911 को पड़ती है, कई जगहों पर यह तिथि 13 जनवरी 1911 भी देखने को मिलती है. लेकिन हाई स्कूल के...
समकालीन प्रमुख कथाकार तरुण भटनागर के उपन्यासों- ‘लौटती नहीं जो हँसी’, ‘राजा, जंगल, और काला चाँद’ तथा ‘बेदावा’ पर आधारित सुपरिचित कवि-लेखक निशांत का यह आलेख विस्तार से इन उपन्यासों...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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