मनुष्य और प्रकृति के अद्वैत की कहानियाँ : नरेश गोस्वामी
वरिष्ठ कथाकार अशोक अग्रवाल की प्रकृति से मनुष्य के एकात्म पर आधारित चार कहानियों पर समाज विज्ञानी और कथाकार नरेश गोस्वामी का यह आलेख बेहद दिलचस्प है. यह कहानियों को...
वरिष्ठ कथाकार अशोक अग्रवाल की प्रकृति से मनुष्य के एकात्म पर आधारित चार कहानियों पर समाज विज्ञानी और कथाकार नरेश गोस्वामी का यह आलेख बेहद दिलचस्प है. यह कहानियों को...
वरिष्ठ लेखक-संपादक गिरधर राठी जीवनानन्द दाश की कालजयी कविता ‘वनलता सेन’ के विषय में लिखते हैं, ‘दशकों से, अर्थ विवेचन से अधिक इस कविता का नाद सौंदर्य, इसका संगीत, और...
हिंदी के सबसे बड़े व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की जन्मशती को मनाने का सबसे सार्थक तरीका तो यही है कि अब तक वह जहाँ नहीं पहुंचे हैं वहाँ पहुंचें. हर घर...
बांग्ला भाषा के महत्वपूर्ण कवि शंख घोष (5/2/1932- 21/4 2021) की स्मृति में हिंदी के कवि और अनुवादक प्रयाग शुक्ल आज 5 फरवरी को रवीन्द्र ओकाकुरा भवन, कोलकाता में स्मृति...
गांधी की हत्या ने गांधी के हत्यारों के मंसूबों को कुछ दशकों तक अमल में आने से रोक दिया था. उनका सम्पूर्ण जीवन ही महाकाव्य है. वह खुद एक कविता...
बारीकी और सावधानी से जब मुद्रित पाठ को देखा जाता है तब उसके संरचनात्मक और वैचारिक दोनों अंतर्विरोध खुल कर सामने आते हैं. यह कृति से संवाद का खुला तरीका...
कवि के रूप में पंकज सिंह की चर्चा कम हुई है. उनपर प्रकाशित आलेखों में उनकी उपस्थिति इतनी जीवंत रहती है कि उनका कवि-कर्म पार्श्व में चला जाता है. उन्हें...
२१वीं सदी की हिंदी की समलैंगिक कहानियों की गहरी पड़ताल करते हुए लेखिका अंजली देशपांडे ने एलजीबीटीक्यू विमर्श को इस आलेख में ठोस आधार दिया है. गम्भीरता से इस विषय...
‘सिर्फ़ यही थी मेरी उम्मीद’ प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल के गद्य का संचयन है जिसे वाणी ने 2021 में प्रकाशित किया था. आज मंगलेश डबराल की पुण्यतिथि है. उनके स्मरण...
‘पानी से न लिखना पत्थर पे कोई नाम’ (अनुराधा सिंह), ‘ठेकेदार की आत्मकथा’ (आकांक्षा पारे काशिव) तथा ‘रहस्यों के खुरदुरे पठार’ (किंशुक गुप्ता) को पढ़ते हुए वरिष्ठ लेखिका अंजली देशपांडे...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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