किसान आंदोलन और दलित कविता: बजरंग बिहारी तिवारी
बुद्धिजीवी की एक विशेषता यह भी होती है कि वह समकालीन समस्याओं को अतीत से जोड़ कर समझने का प्रयास करता है और भविष्य के लिए रास्ता निकालता है. जब...
बुद्धिजीवी की एक विशेषता यह भी होती है कि वह समकालीन समस्याओं को अतीत से जोड़ कर समझने का प्रयास करता है और भविष्य के लिए रास्ता निकालता है. जब...
किसी कवि की इससे बड़ी सफलता क्या होगी कि उसका काव्य इतना लोकप्रिय हो जाए कि घर में किसी मांगलिक आयोजन से पहले उसका सामूहिक पाठ किया जाए, और विडंबना...
हिंदी कविता में धूमिल भारतीय जनतंत्र के निर्मम आलोचकों में अन्यतम हैं, ख़ासकर अपनी भाषा को लेकर जो तीर की तरह चुभती है. कबीर की भाषा की ‘सुनो भाई साधो’...
कथाकार, पत्रकार और स्त्रीवादी लेखिका गीताश्री ने यह आलेख हिंदी की महत्वपूर्ण कवयित्री अनामिका की कविताओं में शहर- ख़ासकर मुज़फ़्फ़रपुर की उपस्थिति के विविध आयामों को ध्यान में रख कर...
आज के युवा ही कल के वरिष्ठ हैं. सभी क्षेत्रों की तरह साहित्य और कलाओं में भी नव पल्लव, नव रक्त चाहिए ही. कविता, कहानी की तुलना में आलोचना में...
कथाकार-आलोचक राकेश बिहारी की इस सदी की कहानियों की विवेचना की श्रृंखला ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ समालोचन पर छपी और यह क़िताब के रूप में आधार प्रकाशन से प्रकाशित हुई है. इधर...
राज्य और धर्म का पुराना गठजोड़ रहा है, दोनों एक दूसरे के काम आते थे. कुल मिलाकर यह गठजोड़ जनता के हितों की रक्षा, और तार्किक चेतना के प्रसार में...
आलोचक-अध्येता माधव हाड़ा की चर्चित कृति ‘मीरां का जीवन और समाज’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘Meera vs Meera’ शीर्षक से प्रदीप त्रिखा ने किया है जिसे वाणी ने प्रकाशित किया है. इसकी...
रेणु की ख्याति में उनके उपन्यास ‘मैला आँचल’ और उनकी कुछ कहानियों की केन्द्रीय भूमिका है. मैला आँचल के समानांतर उनके दूसरे उपन्यास ‘परती परिकथा’ की चर्चा उसके प्रकाशन से...
कवि-आलोचक अच्युतानंद मिश्र वैचारिक आलोचनात्मक आलेख लिखते रहें हैं, पश्चिमी विचारकों पर उनकी पूरी श्रृंखला है जो समालोचन पर भी है और जो अब ‘बाज़ार के अरण्य में’ (उत्तर-मार्क्सवादी चिंतन...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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