दबंग गबरू और बदमाश किट्टू: सत्यदेव त्रिपाठी
संस्मरण लिख रहें हैं जिनमें से कुछ आपने समालोचन पर ही पढ़े हैं. प्रस्तुत संस्मरण दो पालतू कुत्तों पर हैं जिन्हें विवश होकर घर से बाहर निकालना पड़ा. घर में...
संस्मरण लिख रहें हैं जिनमें से कुछ आपने समालोचन पर ही पढ़े हैं. प्रस्तुत संस्मरण दो पालतू कुत्तों पर हैं जिन्हें विवश होकर घर से बाहर निकालना पड़ा. घर में...
विश्व प्रसिद्ध आलोचक-अनुवादक हरीश त्रिवेदी का हिंदी साहित्य से गहरा नाता रहा है, वह हिंदी में भी लिखते रहें हैं. मंगलेश डबराल पर उनका यह संस्मरण आत्मीय तो है ही...
जेल की यातनाओं और अनुभवों पर प्रचुर मात्रा में देशी विदेशी भाषाओं में साहित्य मिलता है. नेताओं, क्रांतिकारियों, कार्यकर्ताओं और साहित्यकारों आदि को जब-जब जेल में डाला गया उन्होंने अपने...
कथाकार अशोक अग्रवाल की कवि पंकज सिंह से गहरी आत्मीयता थी, वह उनके जीवन और रचनाकर्म दोनों के सहभागी थे. इस संस्मरण में पंकज सिंह के दोनों पक्षों की चर्चा...
पशु-पक्षियों पर संस्मरण लिखे गये हैं,हालांकि वे कम हैं. वरिष्ठ लेखक और रंगमंचीय आलोचक सत्यदेव त्रिपाठी के पशुओं पर लिखे संस्मरण आपने समालोचन पर पढ़े हैं, अब यह संस्मरण ‘नानी...
वरिष्ठ कथाकार अशोक अग्रवाल के संस्मरण इधर सामने आये हैं और चर्चित भी हुए हैं, ज्ञानेन्द्रपति पर यह संस्मरण बनारस की पृष्ठभूमि में उन्हें देखता है, समझता है और जहाँ...
कवि, उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल को इस वर्ष साहित्य अकादमी की ‘महत्तर सदस्यता’ प्रदान की गयी है, यह अकादमी का सर्वोच्च सम्मान है. विनोद कुमार शुक्ल के कुछ अनछुए आयामों...
कन्हैयालाल नंदन (१ जुलाई,१९३३ - २५ सितम्बर,२०१०) अपने समय की कई महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े हुए थे. धर्मयुग के सहायक संपादक, सारिका, दिनमान और पराग के संपादक, तथा साप्ताहिक संडे...
हम अपने लेखकों के लेखक-व्यक्तित्व से परिचित होते हैं, उनका सामाजिक और पारिवारिक चेहरा भी होता है. वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पाण्डेय २३ सितम्बर को ८० साल के हो रहें हैं,...
आज विष्णु खरे की तीसरी बरसी है. प्रकाश मनु का उनसे घनिष्ठ लगाव रहा है, उनके द्वारा विष्णु खरे का लिया गया साक्षात्कार हिंदी के कुछ अच्छे साक्षात्कारों में से...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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