नाट्यान्वेषण: आनंद पांडेय
भारत में नाटकों के मंचन की समृद्ध उपस्थिति का प्रमाण ‘नाट्यशास्त्र’ है. आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रारम्भ में भी नाटकों की बड़ी भूमिका रही थी. नाट्य-आलोचना के क्षेत्र में ‘मधुमती’...
भारत में नाटकों के मंचन की समृद्ध उपस्थिति का प्रमाण ‘नाट्यशास्त्र’ है. आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रारम्भ में भी नाटकों की बड़ी भूमिका रही थी. नाट्य-आलोचना के क्षेत्र में ‘मधुमती’...
देवी प्रसाद मिश्र का पहला कविता संग्रह ‘प्रार्थना के शिल्प में नहीं’ 1989 में आया था. लगभग तीन दशकों बाद उनकी दूसरी कविता-पुस्तक ‘जिधर कुछ नहीं’ 2022 में राजकमल से...
पत्रकार, लेखक, संस्कृतिकर्मी और इधर ‘न्यूज़क्लिक’ पर अपने स्तम्भ से चर्चित भाषा सिंह की पुस्तक ‘शाहीन बाग़: लोकतंत्र की नई करवट’ की चर्चा कर रहें हैं पत्रकार कवि मुकुल सरल.
अवतारवाद की अवधारणा भारतीय चिंतन के केंद्र में रही है, इसकी व्याप्ति इतनी है कि इसके विरोधी भी कालान्तर में अवतारी घोषित कर दिए गये. हेतु भारद्वाज की काव्य नाटिका-'पूर्णावतार',...
पत्रिकाएं छपतीं हैं, प्रकाशित सामग्री की चर्चा भी होती है पर सम्पूर्णता में पत्रिका की भूमिका को समझने के लिए यह जरूरी है कि उसकी सभी प्रकाशित सामग्री की कोई...
यथास्थितिवाद और आधुनिकता का द्वंद्व मनुष्य जाति के सबसे पुराने और अब तक असमाप्त द्वन्द्वों में से एक है. इसे राष्ट्र, धर्म, समुदाय, परिवार सभी स्तरों पर आज भी देखा...
गिरमिटियों पर आधारित ‘कुली लाइन्स’ से चर्चित प्रवीण कुमार झा की ‘रूस, रशिया और रासपूतिन’ पुस्तक इसी वर्ष वाणी से ‘इतिहास श्रृंखला’ के अंतर्गत छप कर आयी है. ‘लोकप्रिय इतिहास’...
आलोचक माधव हाड़ा इधर विवेचना और अन्वेषण दोनों कार्य बड़े मनोयोग से कर रहें हैं. कई अप्रकाशित, अल्पप्रचलित और अनुपलब्ध पुरानी साहित्यिक पोथियों पर आधारित उनका शोध-कार्य सामने आया है....
‘अच्छा आदमी’ पंकज मित्र का पांचवां कहानी संग्रह है जिसमें नौ कहानियां शामिल हैं. इसका प्रकाशन राजकमल ने किया है. इस संग्रह की चर्चा कर रहें हैं सुभाष चन्द्र गुप्त....
कवि-संपादक राकेश रेणु का तीसरा कविता संग्रह- ‘नये मगध में’ इसी वर्ष अनुज्ञा बुक्स से प्रकाशित हुआ है. इसकी चर्चा कर रहें हैं कवि पंकज चौधरी.
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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