अमर देसवा: प्रवीण कुमार
दो चर्चित कहानी संग्रहों के बाद प्रवीण कुमार का यह पहला उपन्यास है- ‘अमर देसवा’ जो कोरोना में आम आदमी की बेबसी, दर्द और अकेलेपन के बीच सुलगते उबलते आक्रोश...
दो चर्चित कहानी संग्रहों के बाद प्रवीण कुमार का यह पहला उपन्यास है- ‘अमर देसवा’ जो कोरोना में आम आदमी की बेबसी, दर्द और अकेलेपन के बीच सुलगते उबलते आक्रोश...
ललिता यादव की यह कहानी भरे-पूरे घर में बहनों और भाइयों से आरम्भ होकर उनके अलग-अलग होने तक जाती है, फिर जब वे मिलते हैं उनकी कहानियां भी आकर मिलती...
जापान के प्रो. हाइचाबूरो और उनके कुत्ते हचीको की कथा आपने सुनी होगी, इस कहानी में भी यह प्रसंग आया है. एक भारतीय जब जापानी युवती से मिलता है तो...
लेखिका दीपक शर्मा के अब तक उन्नीस कथा-संग्रह प्रकाशित हुए हैं. आपने उनकी कितनी चर्चा सुनी है ? अव्वल तो यह एक कहानी ही उन्हें प्रसिद्ध करने के लिए पर्याप्त...
कोरोना में आफत मनुष्यों पर तो थी ही, पशु भी इससे प्रभावित हुए. हीरालाल नागर ने कुत्तों ख़ासकर जो पालतू नहीं हैं उनसे जुड़ी यह कहानी लिखी है. हीरालाल नागर...
डॉ. नूतन डिमरी गैरोला पेशे से चिकित्सक हैं और कविताएं लिखती हैं, संग्रह प्रकाशित हो रखा है. कुछ महीनों पहले ‘महादेवी वर्मा स्मृति’ पेज पर उनकी इस कहानी का वाचन...
रश्मि शर्मा की कहानी, ‘राहतें और भी हैं’ पढ़ते हुए अनामिका का यह कथन याद आता रहा कि ‘“नई स्त्री बेतरहा अकेली है. क्योंकि उसको अपने पाये का धीरोदात्त, धीरललित,...
प्रवीण कुमार की कहानियों पर लिखते हुए कथाकार और ‘तद्भव’ के संपादक अखिलेश ने ‘हिंसा के सूक्ष्म रूपों को भी ओझल नहीं होने देते’ ऐसा रेखांकित किया है. त्रासदी, उत्पीड़न,...
‘कास्ट आयरन की इमारत’ शीर्षक से अम्बर पाण्डेय की कहानी छपी है जिसे किसी उपन्यास के हिस्से की तरह भी देखा जा सकता है. इसी तरह ‘पुनर्निर्माण’ को भी स्वतंत्र...
भारतीय अंग्रेजी कथा-साहित्य में तनुज सोलंकी युवा प्रतिभा हैं, उन्हें उनकी कहानियों के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिल चुका है. यह कहानी आकार में छोटी है पर असर इसका गहरा...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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