बातचीत

रोहिणी हट्टंगड़ी से सुशील कृष्ण गोरे की बातचीत

रोहिणी फ़िल्म और टेलिविज़न के साथ की थियेटर की भी प्रबुद्ध कलाकार हैं. अर्थ, सारांश और गाँधी जैसी फिल्मों में उनका अविस्मरणीय अभिनय है. सुशील कृष्ण गोरे ने विस्तृत फलक...

मैनेजर पाण्डेय से अरुण देव की बातचीत

मैनेजर पाण्डेय से अरुण देव की बातचीत

नामवर सिंह, मैनेजर पाण्डेय को ‘आलोचकों का आलोचक’ कहते हैं. पर इसके साथ ही मैनेजर पाण्डेय के यहाँ समकालीन रचनाशीलता की गहरी परख भी है. उनकी आलोचना सभ्यतापरक है, वह...

सुमन केशरी से अपर्णा मनोज की बातचीत

कवयित्री सुमन केशरी अपनी मानवीय दृष्टि और सहज अभिव्यक्ति के कारण अलग से पहचान ली जाती हैं. उनका लेखन परम्परा को आत्मसात करता हुआ समकालीन दृश्य को आलोकित और समृद्ध...

नन्दकिशोर आचार्य से कालु लाल कुलमी की बातचीत

नन्दकिशोर आचार्य से कालु लाल कुलमी की बातचीत

वरिष्ठ लेखक, अनुवादक, विचारक नन्दकिशोर आचार्य के कविता संग्रह 'छीलते हुए अपने को' के लिए २०१९ के साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा हुई है. समालोचन की तरफ से बहुत-बहुत बधाई....

मैं कहता आँखिन देखी : राजेन्द्र यादव

कहानी संवाद है              – राजेन्द्र यादव राजेन्द्र यादव अपने लेखन के कारण प्रशंसित, संपादन के कारण चर्चित और अपने जीवन के कारण विवादित रहे हैं. आप उनके...

तुलसी राम से अरुण देव की बातचीत

तुलसी राम से अरुण देव की बातचीत

तुलसी राम से अरुण देव की बातचीत   आप जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के अन्तर-राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में पिछले कई सालों से अध्यापन कार्य कर रहे हैं. आपको दलित-बुद्धिजीवी के रूप...

मार्खेज़ से  मेंदोजा की बातचीत: अनुवाद: सुशील कृष्ण गोरे

मार्खेज़ से मेंदोजा की बातचीत: अनुवाद: सुशील कृष्ण गोरे

२० वीं शताब्दी के महत्वपूर्ण लेखकों में से एक, १९८२ में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित, जादुई यथार्थवाद के जनक, कोलम्बिया के मार्खेज़ से लेखक–पत्रकार मेंदोजा की बातचीत का अंग्रजी से अनुवाद सुशील...

मैं कहता आँखिन देखी : अरुण कमल

अपना क्या है इस जीवन मेंसब तो लिया उधार                                                                         सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार . (अपनी केवल धार)देखो हत्यारे को मिलता राजपाट सम्मान जिनके मुहं में...

संवाद: विमल कुमार

विमल कुमार से अरुण देव की बातचीत.  कवि - रचनाकार विमल कुमार के  जीवन के 50 वर्ष, हिंदी की सृजनात्मकता के भी वर्ष हैं. विमल कुमार बड़े अपनापन  से अपने साथिओं और...

मैं कहता आँखिन देखी : रंजना अरगड़े

शमशेर बहादुर सिंह (१९११-१९९३) की जन्म शताब्दी वर्ष पर समालोचन की विशेष प्रस्तुति\"एक कवच मैं और ओढ़ना चाहता हूँएक अदृश्य कवच - निरहंकार,तटस्थतमनिर्मलता का\".                                                       डायरी-६/मार्च/१९६३ कई बार ऐसा लगता है कि...

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