बुद्धचरित : एक महाकाव्य के खोने-पाने का क़िस्सा : चंद्रभूषण
लगभग पचास ईसवी पूर्व के महान कवि अश्वघोष की कृति ‘बुद्धचरित’ के महत्व से आज विश्व सुपरिचित है. दुर्भाग्य से अपनी सम्पूर्णता में यह आज भी हिंदी में उपलब्ध नहीं...
लगभग पचास ईसवी पूर्व के महान कवि अश्वघोष की कृति ‘बुद्धचरित’ के महत्व से आज विश्व सुपरिचित है. दुर्भाग्य से अपनी सम्पूर्णता में यह आज भी हिंदी में उपलब्ध नहीं...
संकीर्ण विचारों से देश तो क्या परिवार नहीं चल सकते. गणतंत्र उदात्त विचारों की नींव पर खड़े होते हैं. करुणा उन्हें महान बनाती है. हम भविष्य बना तो सकते हैं,...
पटना का इतिहास सैयद हसन असकरी का प्रिय विषय था. वह मध्यकालीन भारत ख़ासकर बिहार के विशेषज्ञ इतिहासकार थे. आज उनकी पुण्यतिथि (जन्म 10 अप्रैल 1901-28 नवंबर 1990) है. उन्हें...
इतिहास में कुछ जगहें ऐसी होती हैं जहाँ वर्तमान बार-बार जाता है. नालंदा ऐसी ही जगहों में से है. क्या है नालंदा का इतिहास ? कैसा था यह विश्वविद्यालय? किसने...
तुर्क कौन थे? वे बौद्ध से मुस्लिम क्यों हुए? तुर्कों के इस्लाम स्वीकार करने और व्यापार का रेशम मार्ग बाधित होने से भारत में बौद्ध धर्म पर क्या प्रभाव पड़ा?...
बुद्ध जिसे भारत के लोग भूल गये थे. औपनिवेशिक भारत में शोध और खोद से निकलकर देखते-देखते आधुनिक भारत की आत्मा बन गए, बाद में वह आज़ाद भारत की पहचान...
प्रबुद्ध राजनीतिज्ञ राष्ट्र के लिए वरदान होते हैं. आज़ाद भारत में सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियों के साथ-साथ सांस्कृतिक चुनौतियाँ भी कम न थीं. प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तत्परता, संलग्नता और दृष्टि...
विश्व की आधुनिक अकादमिक दुनिया में कुछ ही भारतीय हैं जिन्होंने अपनी स्थापनाओं से मूलभूत परिवर्तन उपस्थित किया जिसे हम ‘paradigm shift’ कहते हैं, रंजीत गुहा उनमें से एक हैं....
यह बातचीत ‘Mediapart’ में सबसे पहले 20 सितम्बर, 2022 में फ्रेंच में- ‘Le fascisme a un futur’ शीर्षक से प्रकाशित हुई, जिसका अनुवाद ‘versobooks’ के लिए David Fernbach ने अंग्रेजी...
जायसी के महाकाव्य ‘पदमावत’ के अन्यतम व्याख्याकार वासुदेवशरण अग्रवाल मूलतः इतिहासकार थे. राधाकुमुद मुखर्जी के निर्देशन में उन्होंने पाणिनि पर अपना शोधकार्य किया था. इतिहास, कला, साहित्य और समाज पर...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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