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Home » इस्तवान तुर्ज़ी: हिंदी अनुवाद: संगीता गुप्ता

इस्तवान तुर्ज़ी: हिंदी अनुवाद: संगीता गुप्ता

प्रसिद्ध हंगेरियन कवि-लेखक इस्तवान तुर्ज़ी के पच्चीस कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. हिंदी में पहली बार उनकी कविताएँ अनूदित हो रहीं हैं. अनुवाद चित्रकार और लेखिका संगीता गुप्ता ने किया है. भाव और संरचना दोनों में जटिलता और संदर्भबहुलता के कारण इस्तवान तुर्ज़ी अनुवादकों के समक्ष चुनौती हैं. प्रस्तुत है यह अंक.

by arun dev
May 25, 2023
in अनुवाद
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इस्तवान तुर्ज़ी: हिंदी अनुवाद: संगीता गुप्ता
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हंगेरियन कवि
इस्तवान तुर्ज़ी
हिंदी अनुवाद: संगीता गुप्ता

‘मेरे दोस्त जेकब ने प्रसिद्ध हंगेरियन कवि इस्तवान की ओर मेरा ध्यान खींचा और उनकी कविताओं को हिंदी में अनूदित करने का आग्रह भी किया. इस्तवान ने अपनी हंगेरियन कविताएँ जो उन्हीं के द्वारा अंग्रेजी में अनूदित थीं मुझे भेजीं. मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि मैं मूलतः कवि हूँ अनुवादक नहीं.
मैंने इस्तवान की कविताओं को पढ़ना शुरू किया और इनके सम्मोहन में फंस गयी. इस्तवान की इमेजरी की जड़ें बड़ी गहराई में  यूरोप की सभ्यता-संस्कृति से जुड़ी हैं. मैं पूरी तन्मयता से अपने काम में जुट गई.  यह एक तपस्या का काल था जब एक कवि को एक दूसरे कवि की काया में प्रवेश करना पड़ा. लगातार शब्दकोश को उलटना-पलटना पड़ा. लगा न्याय करना है तो इन कविताओं को पूरी तरह से जीना होगा, डूबना-उतराना होगा. मैंने पूरी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश की है. मैं यही कर सकती थी. उनकी पचपन लम्बी कविताओं में से कुछ के अनुवाद यहाँ दिए जा रहें हैं.’

संगीता गुप्ता
दिल्ली

इस्तवान तुर्ज़ी की कविताएँ

 

1.
एक आवाज़

तारों भरी रात में
साये-सी पैनी
धारदार आवाज़
ठहरी हुई
सुनहरी फुसफुसाहटों को चीरती
पूछती है
मुझे बताओ
तुम किन कवियों को पढ़ते हो
और मैं तुम्हें बता दूँगा
तुम कौन हो

मुझे बताओ
तुम किन कवियों का करते हो सम्मान
मैं तुम्हें बता दूँगा
तुम कौन थे

उन असह्य दिनों की
अपने असक्त दादा की छाया दिखती है मुझे
जब सारे पार्क मुरझाये, बुझे होते हैं
हमारे पास

सिर्फ हमारी किताबें थीं
जो हमें ठंड के उस पार
ले जा सकती थीं

मुझे बताओ
तुम किन कवियों के इर्दगिर्द घूमते हो
मैं तुम्हें बता दूँगा
तुम क्या बनोगे.

 

2.
काश तुम यहां होतीं

काश तुम यहां होतीं और मुझे देखतीं
सुकून से भरी तुम, जैसे तुम थीं हमारे सामने
खेलती उतनी ही सादगी से जैसे दृढ़ निश्चय
जैसे जन्म से पहले, जैसे दर्द की तरंग शीशे में
रात पैनी संगीन-सी चुभती
मैं घिसटते हुए घुटनों के बल गिरता, गिरने से पहले
एक पल के निर्दोष लपटों में
तुमने ख़ुद को
मुझमें कहाँ खोया था
तुम यह देखती

एक अंत जो अंतहीन है
एक धुँध जो  प्रातः
उम्मीद के  तिरछे अक्षरों के निशान खोजता है
जिन्हें हमने पचा लिया था.

 

3.
एना

एना
मुझे इस पल को शाश्वत बनाने दो
जब पहली बार तुमने
मेरे अभिमान के मांस में पंजा चुभोया
तुम्हारे नाखूनों ने मेरी जड़ों को खोद
मेरे पुरुषत्व के मुखौटे को उजागर कर दिया

तुमने मुझे विश्वास दिलाया
कि तुम वास्तविक हो
तुम्हारी गोद में मौन बसता था
जहाँ कोशिकाएँ अपना स्वभाव छोड़
कूद कर मेरी रीढ़ की मज्जा में चली गयीं

तब तुम मुझे देख हँसी थी
और शोक में भी डूबी
हमारी पहली आत्मीयता डूब गयी
तुम्हारे उत्सुक घोंसले के गीलेपन में
तुमने मुझे सुना और मुझमें मौन भर दिया
तुमने मुझे निचोड़ कर टांग दिया
जैसे एक मुड़ा-तुड़ा लंगोट.

 

Curtsy art work by Darwin Enriquez

4.
एक पल का पुनर्जन्म

बाथरोब गिरा
सहसा उजागर हुए झुके चमकते मोती
उस पल मेरी शानदार भट्टी सुलग उठी
ताजे साबुन की गंध ने
मेरी इंद्रियों पर हमला किया
तुम्हारे बाल बंधे हुए,
एक दो खुलीं लटें
सलीके से सजी
तुम्हारे नग्न गर्दन पर गिरी
मेरे गुप्तांगों के केंद्र को सुलगाती
तुम्हारी प्यासी निगाहें
धुएँ से भरी हवा के एक टुकड़े में खो गई

एक बेसब्र इंतजार
जो न नहीं सुन सकती
अचानक तुमने शेल्फ़ से एक किताब खींची
शायद वह मोरविया थी
फिर धीमे वहशीपन से उसे
अपने मांसल स्तनों से लगा लिया

तुम्हारी शरारती भोली आँखें
एक पल का पुनर्जन्म
भाव भंगिमा और भी पारदर्शी
तुम केंद्र में खड़ी
दोपहर की रोशनी में नहायी
तुम्हारे शरीर का हर उभार
चांदी के खंजरों की किरचों में बटा

एक धड़कते मेडुसा* में तबदील होता
अपनी धारदार रेखाओं से
ख़ामोशी का आगाज़ करता

पर्दा हटाओ मैं कहने को तैयार हूं
पर्दा अब हट चुका
मैं तुम्हें दुनिया को दिखाने के लिये तैयार हूं
जैसे कोई अपनी भूल सुधारता है.

*मेडुसा: यूनानी पौराणिक कथा, एथेना का अभिशाप:
मेडुसा एक बेहद आकर्षक और सुंदर राक्षसी का नाम है. एक बार जब मेडुसा एथेना के मंदिर में पूजा कर रही थी तभी समुद्र देवता पोसिडन को वह अत्यंत भा गई और उन्होंने अपने सुख के लिए उसका उपभोग किया. एथेना को अपने प्रेमी पोसिडन का किसी अन्य महिला में रुचि लेना पसंद नहीं था इसलिए उसने मेडुसा को शापित किया जिससे उसके सिर पर बालों की जगह सांप लटकने लगे. ऐसा कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति उसकी आंखों में झांकता था, वह पत्थर का बन जाता था. एथेना ने मेडुसा को अमरत्व और अकेलापन दे दिया.

5.
एक नई कहानी का अंत

एक कुत्ते के पिल्ले की तरह
मैं कराहता लेटा रहा
तुम्हारी सिसकियों से भरे सन्नाटे में
तुम्हारी बिखरे केशों की धूमिल मुस्कुराहट में
करुणा से रिक्त स्मृतियाँ

कल तक मैं सोच भी नहीं सकता था कि
मैं एक झपकते पल से इतना अभिभूत हो जाऊंगा
मैं चीखूँगा और अपना सिर दीवार पर दे मारूंगा
शब्द जो जलते हैं मेरे कंठ से फूटते हैं
अंततः मैं अपनी ग्लानि पीऊंगा
एक कायर दुख मेरी नसों में सरसराता है
पलायन बिलकुल बेकार होगा
मेरा डर साये की तरह मेरा पीछा करता है
काश एक बार फिर मैं तुम्हें नग्न देख पाता
तुम्हारे कंधों का उचकना
तुम्हारे आंसुओं का मेरी रात को
नमक में बदल देना

कभी ख़त्म न होती
तुम्हारी बिखरी पड़ी हँसी
मेरे बिस्तर के चारों ओर करवट बदलती

सबसे ज्यादा मुश्किल है
अपने आपको माफ़ करना.

 

6.
रात को शेन्ज़ेन में जन्मदिन का शोकगीत

मुमकिन है शोक गीतों ने मुझे बर्बाद किया हो

धीमे स्वच्छंद मंडराते पंछियों ने
मुझे सिखाया
मैं उस आसमान के नीचे
जो मेरे नाम से बोझिल है
बहुत लंबे समय तक जीवित रह सकता हूं

मैंने हमेशा
बेहद धीमे बहती नदी से प्यार किया है
उमगते पेड़ों को
आत्महंता तितलियों को

वह एक दिन मेरी ज़िंदगी से
मुझे पता था- दस और चेहरे बचे थे उस रात के लिए
दस और मौतें धरती के अगले दिन के लिए.

आधी रात ने जब बत्ती बुझा दी
मैं अनंत तक पहुंच सकता हूं
जैसे मेरे हाथ छू रहे हों
अखरोट का एक पत्ता
जो बस उड़ने वाला है

सप्ताह के सभी दिनों में भी
एक औरत की ठंडी जांघ
लाश का लिबास पहनना चाहती है
इस लिये एक बार फिर
मैं खिसक जाता हूं अपने शरीर के समय में
समयातीत घण्टों और समयातीत सालों के बीच से
उतना ही सौभाग्यशाली
जितना कोई सपने में रक्तस्राव से मरता हो
मुसकुराता हुआ

उसके गाल आधे ढके हुए थे.

 

7.
दोस्ती

जब एक वृक्ष
मेरे कमरे में गरमाहट पाने के लिए घुसा
मैं डर गया

बड़ी कशमकश है यह
आश्चर्य से भरकर उसने आँख मारी
यह जानने के लिए कि
मैं किस किस तरह का जीव हूँ

टांगे, हाथ,
ये चमकीली आँखें
और मेरे बाल हरे क्यों नहीं ?
उसने रात का खाना चखा, अपने नाक चढ़ाये
मेरी किताबों को उलटा-पलटा, मुझ पर दया आयी उसे
मेरे बिस्तर ने उसके कूल्हे मरोड़ दिये
जबकि डाकिये के मोटर साइकिल ने
उसे मौत-सा डरा दिया.

हालाँकि मोज़ार्ट उसे पसंद आया.
हर दोपहर बांसुरी की प्रफुल्ल ध्वनि ने
घर में मेरा स्वागत किया
कलियों के खिलने तक हमारी दोस्ती बनी रही.

आज सुबह लकड़ी-सा कटहल आ पहुंचा
और स्वागत के तौर पर उसने
मेरे अतीत का एक अच्छा हिस्सा काट दिया
वृक्ष मुझसे लिपट गया.

 

8.
दो मिनट की घृणा

रौशनी का कौंधना
घड़ी की टिकटिक
चेहरे की एक भी मांसपेशी नहीं हिली
एकाग्रता बिना किसी मिथ्याभिमान के

खेल के नियमों का पालन करो.
उत्पीड़न का लक्ष्य उत्पीड़न है.
यंत्रणा का लक्ष्य यंत्रणा है.

जैसे लक्ष्य समान है; उसी तरह कार्य सबके नियत
गतिविधियां यथावत हैं

उनके आंखों के भाव धुंधले.
तुम यहाँ सुनहरे बालों और नीली आँखों वाले
नहीं हो सकते.
तुम्हारा अतीत साफ़ है
तुम्हारे तर्क भिन्न
क्या तुम अपने बनाये नियमों के अनुसार
अभी के लिए
सोचते और जीते हो
इसलिए सब खत्म हो गया तुम्हारे लिए.

अकसर चीज़ें
कई बार घूम फिर कर
उसी स्थिति में लौट आती हैं.
तुम्हारे मरते हुए अंतरात्मा के कारण
तुम्हारे भागने का रास्ता अब बंद है
उसे किसी घृणित स्थान पर भेज देना चाहिये
बहुत दूर किसी जगह

उफ ! यह कैसा पाप
हृदय को संकुचित कर देता है.

 

9.
कुछ समय से

(एक)

कुछ समय से मैंने छोड़ दिया है देखना
मौसमों का हर पल बदलना
धरती पर अचेत पड़ी पंखुड़ियों के स्थिर झोले में बंद
धरती के छुपे सुगंधों से मैं स्वयं को मलता हूं
न संशय न कोई अंधी उम्मीदें जो बेचैन करतीं हैं अब मुझे
बारिश निरर्थक ही मेरी गीली त्वचा में चुपके से प्रवेश करती है
रोशनी निरर्थक ही साये से लिपटती है
झुरमुट की सरसराहट

बस एक पगली अटकी हवा है मेरे कानों में
रात के शोर सुनने के लिए अब मैं सिर नहीं उठाता
मुझे अविचलित छोड़ देता है चंद्रग्रहण.

(दो)

कुछ समय से मैंने छोड़ दिया है देखना
मौसमों का हर पल बदलना
समय मेरी ओर रेंगता है जैसे एक आलसी मकड़ी
वह मुझे निगलेगा, चाव से खायेगा एक एक कौर करके
पूर्वजों का एक अभिशाप है मुझ पर
अगर वह धुल कर बह नहीं जाता
धरती से उठती बारिश के गंध से
हवा उसे बेकार ही पहेलियों में उलझायेगी
मेरे शरीर पर इंद्रधनुष तो बस मात्र सजावट है
मैं संलग्न हूं एक अधम पहले से रचे अंधकार में

और अस्तित्व के केचुई सुरंगों से
बाहर निकलने का रास्ता
और ज्यादा पेचीदा है.

 

10.
मैथ्यू के अनुसार ईसाई धर्म सिद्धान्त

रात अपने पथ पर है
एक नन्हे कंकड़-सा चांद मेरे माथे पर दस्तक देता है.
हवा के घुमावदार पेंच मेरे बालों से लिपट रहें हैं
पत्थरों की त्वचा को अस्तव्यस्त कर रहें हैं
स्लेटी रास्तों से बादल मेरे पीछे आ रहें हैं
मेरी तंत्रिकाएं गुनगुने पारे में डूबी हुईं
मेरा शरीर टुकड़ों में फटा हुआ और प्रतीक्षा में चूसा हुआ.

आकाश कौंधता है: मेरा चेहरा एक जलती हुई चट्टान
मौन मेरी गतिविधियों को शब्दों की दूसरी ओर से देखता
नरम दहशत अमरता के नाज़ुक गुरुत्वाकर्षण को आकार देता हुआ.
प्रकृति का निर्णायक चेहरा
पत्थर हुए वधस्थल पर भटकता
एकांत के स्पंज को वनवास भेजता

कोई अंधेरे में अपना हाथ मेरे कंधों पर रखता है
और मुझे मेरे नाम से पुकारता है
मेरी साँस माचिस की तरह सुलगती हुई
सूली पर चढ़ना ज़रूर कभी ऐसा ही रहा होगा;
पौराणिक कथा रचता, बेघर खुशी का एक खंड.

 

11.
आगंतुक

मैंने आईने में देखा

जब से पृथ्वी पर हूं
मैं कई सदियां पुराना हो चुका हूं
काफ़ी देर से लावा बहना बंद हो चुका है
मेरी आकृति कठोर हो मैग्मा में बदल गयी है
ग्रेनाइट मेरे मुंह के लकीरों में बहता है
और चट्टानों में दरारें पड़ गयीं हैं

डायनासोर मेरी आँखों से विलुप्त हो गये
यहाँ  तक कि महाद्वीप अब कहीं नहीं मिलते
मेरी आँखों  के कोटरों में चूना और डोलोमाइट संचित है
क्या यह अंत है ?
मेरे चेहरे पर नन्हे द्वीप छिटके पड़े हैं, समुद्र के धब्बे धीमे धीमे डूब रहे : प्रवाल, कैल्शियम युक्त घोंघा, समुद्री जीव के कवच, केकड़ों के घर. मेरी कनपटियों पर पहाड़ों की रेखाएं.
जब से पृथ्वी पर हूं.
मैंने खोई है नाममात्र की ऊर्जा
मेरे हृदय का प्रवाह वैसा नहीं जैसा पहले था
और पिछले कुछ समय से मैंने एक प्रकार का
चुम्बकीय विकार विकसित कर लिया है
क्या यह अंत है ?

मेरी कोशिकाओं में रेडियोधर्मी विघटन आरंभ हो गया है,
ऐसा लगता है कि यह प्रक्रिया अब समाप्त नहीं हो सकती. यंत्रवत कहूं तो: अपरिवर्तनीय.
यह अंत है.
शायद यह अंतिम टेक्टोनिक* मुस्कुराहट है
जब मैं स्वयं और समय का सामना कर रहा हूं.

अकेला हूं, मेरा कार्य नहीं हुआ,
फिर भी मैं अनादि उल्लास से खड़ा हूं
सृष्टि के आईने के सामने
निर्देश की प्रतीक्षा में, यदि कोई हो प्रभु.

*टेक्टोनिक-पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तन के अध्ययन से सम्बन्धित

 

Rainer Maria Rilke in Nyon, Switzerland, ca. 1919. curtsy: Tumblr

12.
रिल्के

पहली बार वह एक पत्र में आया; उसने मुझे एक सपने में छूआ. मेरे सबसे प्यारे दर्द, उसने मुझे पुकारा. मेरे सोफे पर वह छोड़ गया कविताओं के ढके शहर. और एक सूखे संतरे जैसे छीले हुए हृदय को निचोड़ कर सुखा दिया, मेरे सारे गढ़े शब्दों को जो उसके लिए थे खाली दीवारों पर छिड़क गया. उसे साबित करने की मेरी कोशिशें बेकार थी: एक मैं हूँ जिसे वह नहीं जानता. मैं रेत, फूल, चाकू हूँ. उसने लिखा कि रेत, फूल और चाकू अंधे हैं. वे केवल मेरे देखने से रिसते, मुरझाते, आहत होते हैं. मुझे उस पर कायम रहना चाहिये. और जब मैंने उम्मीद छोड़ दी, वह आया. मेरे सबसे प्यारे दर्द, उसने मुझे पुकारा; इस बीच सांप को मिट्टी में मिलाने वाली अपनी आंखें मुझ पर से उसने कभी नहीं हटाई. जैसे रौंदा अपने ताजा मुकम्मल किये हुए मूर्ति पर टिका हो, वह कदम बढ़ा कर मुझ तक पहुंचा. मनुष्य परिपूर्ण होने की प्रतीक्षा नहीं कर सकता. उसकी आवाज़ की ठंडी सुनहरी शाखाओं ने कमरे को अदरक से पीले सूर्यास्त के रंग से ढक दिया. जो हमने पीछे छोड़ा है वह अब तक फीका नहीं पड़ा.

*रौंदा प्रसिद्ध फ्रेंच मूर्तिकार

 

चित्रकार और कवयित्री संगीता गुप्ता की पच्चीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखती हैं. उनकी दस से अधिक पुस्तकें विश्व की अनेक भाषाओं में अनूदित हुईं हैं. उन्होंने तीस वृत्त फ़िल्मों का निर्माण किया है. उनके चित्रों की छत्तीस एकल प्रदर्शनियां हो चुकी हैं.

sangeetaguptaart@gmail.com.

इस्तवान (ISTVAN TURCZI,1957) हंगरी के सुप्रसिद्ध कवि और लेखक हैं. उनके 25 काव्य संग्रह, 5 उपन्यास, कई नाटक एवं रेडियो नाटक प्रकाशित हो चुके हैं. उन्हें हंगरी के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान और राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है उनकी सत्रह पुस्तकें विश्व की अनेक भाषाओं में अनूदित हुईं हैं. सम्प्रति वह हंगेरियन पैन क्लब के सेक्रेटरी जनरल हैं एवं लेखक संघ के चेयरमैन के पद पर कार्यरत हैं. वह वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ पोएट्स के उपाध्यक्ष पद के लिए दो बार चुने जा चुके हैं.

Tags: 20232023 अनुवादHungarian poetISTVAN TURCZIइस्तवान तुर्ज़ीसंगीता गुप्ताहंगेरियन कवि
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Comments 3

  1. प्रमोद says:
    2 years ago

    बहुत सघन व सुंदर कविताएँ

    Reply
  2. K. Manjari Srivastava says:
    2 years ago

    विस्मित हूँ। इतनी सुंदर कविताओं के उतने ही सुंदर अनुवाद के लिए कि पढ़ते वक्त लगा ही नहीं कि अनुवाद पढ़ रही हूं। संगीता जी ने कमाल काम किया है। बहुत बधाई संगीता जी को और शुक्रिया आपका अरुण जी इन कविताओं को हम तक पहुंचाने के लिए।

    Reply
  3. डॉ. सुमीता says:
    2 years ago

    ‘मुझे बताओ
    तुम किन कवियों को पढ़ते हो
    और मैं तुम्हें बता दूँगा
    तुम कौन हो’

    इस पारखी, आत्मविश्वस्थ कवि की यहाँ प्रकाशित सभी कविताएँ लाजवाब कर देने वाली हैं। एक पल का पुनर्जन्म, एक नई कहानी का अन्त, दोस्ती जैसी कविताएँ भुलाई नहीं जा सकतीं। इन गहन कविताओं के सुन्दर अनुवाद के लिए संगीता गुप्ता जी को हार्दिक धन्यवाद। हम पाठकों को इन कविताओं से परिचित कराने के लिए ‘समालोचन’ को बहुत धन्यवाद।

    Reply

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