बा की छवितुषार गांधी से के. मंजरी श्रीवास्तव की बातचीत |
1.
कस्तूरबा की डायरी मिलने की सूचना पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी ?
कुछ वर्षों पहले गाँधी रिसर्च फाउंडेशन, जलगांव के एक स्टाफ को इंदौर के कस्तूरबा आश्रम में बहुत बुरी अवस्था में एक डायरी मिली. उन लोगों में मुझे यह सूचना दी कि यह कस्तूरबा की डायरी है. मैंने मानने से इनकार कर दिया क्योंकि हम लोगों को बचपन से यही बताया गया था कि बा पढ़ी-लिखी नहीं हैं, वह पढ़-लिख नहीं सकती. लेकिन उन लोगों ने मुझे बोला कि उन्होंने डायरी डिजिटाइज़ करके रख दी है. फिर उन्होंने डायरी की तस्वीरें मुझे ट्रांसफर कीं और जब मैंने पढ़ना शुरू किया तो यह मेरे लिए बहुत भावुक कर देने वाला पल रहा. जबतक मैं डायरी पढ़ता रहा मैं भावातिरेक में डूबता-उतरता रहा. मुझे ऐसे लगा कि मैं बा के चरणों में बैठा हूँ और वह मुझसे बातें कर रही हैं, अपनी कहानी मुझे सुना रही हैं. आश्चर्य यह था की इतने सालों बाद बा को जानने का मौका मिल रहा था.
अब तक हम परिवार के लोग भी बा को नज़र अंदाज़ करते आये थे. मेरे पिताजी ने भी यह मानने से इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि यह संभव है कि बा ने बोला हो और किसी से डिक्टेशन लिया हो. लेकिन जब मैं बा की डायरी को पढ़ने लगा तो मुझे यक़ीन हो गया कि यह बा ने ही लिखा है या लिखा होगा क्योंकि वह पूरी डायरी गुजराती भाषा में है और वह गुजराती व्याकरणिक रूप से शुद्ध या आलंकारिक नहीं है. उन्होंने जिस भाषा में डायरी लिखी है, जो व्याकरण उमसे इस्तेमाल हुआ है वह दरअसल बोली भाषा का व्याकरण है, बोलचाल की भाषा का व्याकरण. उदाहरण के तौर पर उनकी डायरी के कुछ छोटे-छोटे वाक्य हैं-
सुबह उठी
स्नान किया
पूजा की
सूत कताई की
नाश्ता किया
कॉफी पी
यदि गुजराती का व्याकरण जानने वाला कोई व्यक्ति उनसे डिक्टेशन ले रहा होता तो वह कुछ भी बोलतीं उसे वह व्याकरणिक रूप से शुद्ध करके लिखता. पर उनकी डायरी में ऐसा नहीं हैं.
२.
बा की डायरी को पढ़कर आपके मन में आने वाले पहले विचार क्या थे, बा ने आपको कितना प्रभावित किया और आपने इसे पुस्तक के रूप में लाने का कब सोचा या दूसरे शब्दों में कहें तो इस डायरी को पुस्तक के रूप में लाने की ज़रूरत क्या थी ?
बहुत महत्वपूर्ण सवाल पूछा आपने. बा की यह डायरी दरअसल बहुत सामान्य डायरी है जैसे किसी सीधी साधी घरेलू महिला या गृहिणी की डायरी हो पर इस डायरी की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे पढ़ते वक़्त ऐसा महसूस होता है जैसे बा अपनी पहचान अपनी ज़बान से खुद करा रही हैं आपसे. इस डायरी की एक और खास बात यह रही कि मेरे सामने बा की एक आकृति तो थी लेकिन धुंधली-धुंधली…… जैसे किसी कोहरे के अंदर छिपी. इस डायरी से गुज़रते वक़्त ऐसा लगा जैसे बा ने खुद वह कोहरे का झीना पर्दा हटा दिया. मुझे यह मौक़ा मिला कि मैं बा का दर्शन रूबरू कर पा रहा हूँ और अपना दर्शन जैसे कराना चाहती हैं वैसे कर पा रहा हूँ. तीसरी बात यह कि बा ने अपनी डायरी में जिस प्रकार मामूली चीज़ों का ज़िक्र करके एक व्यक्ति की पहचान कराई वह महत्वपूर्ण है. इस डायरी को पढ़कर मुझे पता चला कि उनकी ज़िन्दगी में जो सादगी दिखती थी दरअसल वही सादगी उनकी ज़बान में भी थी. जैसे एक जगह उन्होंने लिखा है – “मीराबेन तो एक ही सब्ज़ी बनाती थी और दो रोटियां बनाती थी.”
इस बात से बा की सरलता और स्पष्टता का पता चलता है, उनकी साफ़गोई पता चलती है. इससे पता चलता है कि उनकी बातों में कोई डिप्लोमेसी, कोई हिप्पोक्रेसी नहीं थी. वह चीज़ों को जैसा देखती थीं, जैसा महसूस करती थीं, बिलकुल वैसा ही ज्यों का त्यों लिख देती थीं. उनकी डायरी उनकी सरलता और सच्चाई का प्रमाण है.
बा चाहतीं तो अपनी इस डायरी को विवरणात्मक बना सकती थीं लेकिन उन्होंने कम से कम शब्दों में लिखा. यह बात उनके चरित्र को भी उजागर करती है. बा की भाषा से जो उनका चित्र उजागर होता था वह मुझे प्रभावित कर गया. उनकी डायरी को पढ़ते समय मुझे ऐसा लगा कि मैं सरलता, सादगी और स्पष्टता की प्रतिमूर्ति अपनी परदादी से आमने-सामने बैठकर बात कर रहा हूँ.
पहली बार गुजराती में जब यह डायरी मैंने पढ़ी तो मुझे बा के एक अनगढ़ और स्पष्टवादी सीधी-सादी घरेलू गुजराती महिला होने का सबूत मिला. मैंने बा की उस अनगढ़ और स्पष्ट गुजराती को अपनी किताब (जो अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुई है) की अंग्रेजी में भी कायम रखने की पूरी कोशिश की है. ऐसा करते समय मुझे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. जैसे मेरे प्रकाशक को लगा कि अंग्रेज़ी पर मेरी पकड़ अच्छी नहीं है. जो पाण्डुलिपि मैंने उन्हें भेजी थी उनके हिसाब से और मेरे हिसाब से भी, अगर अंग्रेजी के व्याकरण के हिसाब से बात करें तो मेरी उस पाण्डुलिपि, उस अंग्रेजी में कई अशुद्धियाँ थीं लेकिन मैंने जानबूझकर उन अशुद्धियों को रखा क्योंकि मैं चाहता था कि जो भी बा की डायरी के अंग्रेजी अनुवाद को पढ़े उसे बिलकुल यह लगे कि वह आलंकारिक भाषा में बा की डायरी का अनुवाद नहीं पढ़ रहा बल्कि खुद बा का लिखा पढ़ रहा है या उनसे ही बातें कर रहा है. इसलिए मेरी किताब है तो अंग्रेजी में लेकिन कोई व्याकरणिक रूप से शुद्ध और आलंकारिक भाषा का इस्तेमाल उसमें मैंने नहीं किया है. सरल-सीधे और छोटे वाक्यों में बा की बातें आप लोगों के समक्ष रखने की कोशिश की हैं.
हाँ और इस किताब को लाने की ज़रूरत इसलिए थी कि आज तक दुनिया बा को महात्मा गांधी की पत्नी के रूप में जानती आई है लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद बा के बारे में लोगों की अवधारणा में अवश्य परिवर्तन आएगा और लोगों के सामने बा की एक स्वतंत्र छवि उभरेगी. उनकी यह डायरी यह साबित करती है कि उनकी पहचान सिर्फ़ महात्मा गाँधी की पत्नी के रूप में जो हम बरसों से करते आये हैं वह सही नहीं. वह एक सत्याग्रही महिला के स्वतंत्र वजूद के साथ बरसों से होने वाला अन्याय है. महात्मा गांधी की पत्नी होने के साथ-साथ वह एक मुकम्मल सत्याग्रही भी थीं, एक स्वतंत्रता सेनानी भी थीं प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों में. गांधी जी अगर देश के लिए इतना कुछ कर पाए तो उसके पीछे की एक बहुत बड़ी प्रेरक शक्ति निस्संदेह बा थीं. इसलिए अब समय आ गया है कि बा को सिर्फ़ गांधीजी की पत्नी के रूप में न देखकर स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े एक मुकम्मल व्यक्तित्व के रूप में देखा जाए और मेरी यह किताब एक हद तक यह काम करने में सफल होगी, ऐसी उम्मीद है. हालाँकि बा के ऊपर मेरी यह किताब कोई फाइनल वर्ड या पहली और अंतिम किताब नहीं है लेकिन महत्वपूर्ण अवश्य है क्योंकि यह खुद बा के लिखे फर्स्ट हैंड ड्राफ्ट का अनुवाद है. बा के ऊपर थोड़े बहुत काम पहले भी हुए हैं और निस्संदेह आगे भी होते ही रहेंगे. हो सकता है आनेवाले शोध कार्यों के लिए और किताबों के लिए मेरी यह किताब सहायक के रूप में उपयोगी हो.
3.
आपने इस किताब को हिंदी में लाने का क्यों नहीं सोचा? चूंकि भारत का एक बड़ा हिस्सा हिन्दी भाषी है तो क्या आपको नहीं लगता है कि अगर यह किताब हिंदी में होती तो इसकी पहुँच व्यापक होती और भारतीय जनता बा को बेहतर तरीके से आत्मसात कर पाती? अंग्रेज़ी क्यों?
आपकी बात से बिलकुल सहमत हूँ. भारत का एक बड़ा हिस्सा हिन्दी भाषी है. मैं भी हिंदी भाषी हूँ लेकिन बहुत ईमानदारी से यह स्वीकार करता हूँ कि मैं हिंदी में बात बहुत अच्छे तरीके से कर लेता हूँ, अच्छी हिंदी बोल लेता हूँ लेकिन मेरे लेखन की भाषा हिंदी इसलिए नहीं है कि मैं उतनी अच्छी हिंदी लिख नहीं पाता. लेकिन मेरी कोशिश है कि जल्द ही यह किताब आप लोगों तक हिंदी में पहुंचे क्योंकि अंग्रेजी में होने के बावजूद हिन्दी समाज और हिंदी मीडिया ने इसका शानदार स्वागत किया है. बस कोई उम्दा हिंदी अनुवादक की तलाश जारी है. हालाँकि इसका मराठी अनुवाद बस आने ही वाला है. तमिल और मलयालम में भी इसके आने की बात चल रही है.
4.
इस किताब की मेकिंग या लेखन के पीछे की अवधारणा, आइडियोलॉजी और मेथोडोलॉजी क्या रही? इस किताब के लेखन के पीछे का आपका मक़सद क्या था?
दरअसल इस किताब को लिखने का मक़सद यह था कि बा की डायरी पढ़ते वक़्त जिस बा का मुझे दर्शन हुआ मैं पाठकों को भी उनसे रूबरू करना चाहता था इसलिए उनकी डायरी को किताब के रूप में लाने का ख्याल मेरे ज़ेहन में आया. मुझे ऐसा महसूस हुआ कि लोगों ने मेरी परदादी को अब तक उनके सही रूप में और ठीक से जानने की कोशिश ही नहीं की. उस डायरी का भाषांतर करके दरअसल मैंने अपनी उस ख़ुशी को लोगों से शेयर किया जिसे मैं खुद महसूस कर रहा था.
इस किताब के पीछे की अवधारणा थी बा की नए सिरे से खोज, नए सिरे से उनको समझना और उसे लोगों से शेयर करना. दूसरे शब्दों में कहें तो बा की एक नयी तस्वीर से इस दुनिया का परिचय कराना, बा की एक नयी छवि लोगों को मैं दिखाना चाहता था.
आइडियोलॉजी और मेथोडोलॉजी की अगर हम बात करें तो सबसे पहले बा की डायरी को ट्रांसक्राइब किया गया फिर मैंने उसमें उनकी जीवन रेखा भी डाली. मुझसे पहले जिन्होंने भी बा की जीवनी लिखी है उन्होंने श्रीमती गाँधी की जीवनी लिखी है पर मैंने बा को उनकी आइडेंटिटी में देखा. इसीलिए मैंने इस किताब के शीर्षक में भी बा के लिए कस्तूरबा गांधी शब्द का उल्लेख नहीं किया है. मैंने किताब का नाम रखा है ‘द लॉस्ट डायरी ऑफ़ कस्तूर माय बा’ क्योंकि दुनिया को मैं श्रीमती गाँधी की जीवनी नहीं अपनी परदादी की कहानी सुनाना चाहता था और उन्हीं की ज़बानी सुनाना चाहता था. कस्तूर माय बा शीर्षक से मुझे बा के साथ ज़्यादा अपनापन लगा, ज़्यादा कनेक्टिविटी महसूस हुई.
5.
आपके हिसाब से आपकी यह किताब किस प्रकार भारतीय जनमानस और शोधार्थियों के लिए उपयोगी है ?
इस किताब से पाठकों को जो नई चीज़ जानने को मिलेगी वह यह कि एक लोकप्रिय व्यक्तित्व, एक पब्लिक फिगर महात्मा गाँधी के निजी जीवन पर यह किताब बात करती है, उनकी और बा की ज़िन्दगी के कई नए पहलुओं पर यह किताब प्रकाश डालती है, उनकी ज़िन्दगी के कई नए पन्ने खोलती है, कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है. इस पूरी किताब में मैंने बा और बापू दोनों के निजी व्यक्तित्व को उजागर करने की कोशिश की है जिस वजह से लोगों को आत्मीय बा और बापू के दर्शन होंगे.
शायद इस किताब को पढ़कर बा के व्यक्तित्व को जानने और उनके व्यक्तित्व पर लिखने के लिए आनेवाली पीढ़ियों के लेखकों को कुछ मदद मिले. बा का सत्याग्रही स्वरूप अभी उजागर नहीं हुआ है उसपर काम होना अभी ज़रूरी है. दक्षिण अफ्रीका और भारत में भी बा का जो सत्याग्रही स्वरुप है उसपर काम होना अभी ज़रूरी है. शायद यह किताब बा के सत्याग्रही स्वरूप की खोज में भी शोधार्थियों की कुछ मदद कर पाए. क्या पता भविष्य में बा की और भी डायरियां मिलें हमें तो बा पर और काम हो. महात्मा गाँधी पर तो बहुत काम हुआ है पर बा पर अभी बहुत काम होना बाकी है. और बा पर जब भी काम होगा उसमें मेरी इस किताब की थोड़ी-बहुत भूमिका तो अवश्य रहेगी ही. इसे सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा.
6.
गांधीजी को समझने में बा की डायरी या यूँ कहें कि आपकी इस किताब की क्या भूमिका है ?
देखिये बा की यह डायरी तब की है जब वह बापू से जुदा थीं. वह एक जेल में बंद थीं और बापू दूसरी जेल में थे तो उन्होंने यह सोचा होगा कि जब मिलूंगी तो उन्हें दिखाऊंगी. ऐसा लगता है कि शायद उन्होंने अपनी दिनचर्या बापू को बताने के लिए यह डायरी लिखी. दूसरी बात यह कि बा का विवाह बापू के साथ १३ वर्ष की उम्र में हुआ था और उनका साथ ६ दशकों का रहा इसलिए दोनों का एक दूसरे पर बहुत प्रभाव पड़ा. बा और बापू ने एक-दूसरे से सरलता, स्पष्टवादिता सीखी. हिप्पोक्रेसी और डिप्लोमेसी से दोनों ही हमेशा दूर रहे. यह भी हो सकता है कि बापू पर बा की सरलता और स्पष्टवादिता का ज़्यादा प्रभाव पड़ा हो या बा ही उनसे प्रभावित हुई हों पर अंदाज़ के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना थोड़ा मुश्किल है. निस्संदेह ६ दशकों के साथ में दोनों ने एक-दूसरे को बहुत प्रभावित किया. इतना प्रभावित किया कि दो व्यक्ति होने के बावजूद उनका व्यक्तित्व एक ही था, वे एकाकार हो चुके थे, दोनों एक-दूसरे में ऐसे घुलमिल गए थे कि बा के बिना बापू को समझा ही नहीं जा सकता और बापू के बिना बा के वजूद की कल्पना ही नहीं की जा सकती.
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यह विचारोत्तेजक है। पूरी श्रृंखला भी ऐसी ही रहेगी, इसमें संदेह नहीं। समालोचन का यह सुविचारित उपक्रम नि: संदेह पाठकों को समृद्ध करने वाला है।
इलाहाबाद में प्रोफेसर राजेन्द्र कुमार के हवाले से डाॅ. कुमार बीरेन्द्र ने एक बात कही कि बा पर कुछ भी सामग्री नहीं है। हमें बा पर काम करना है। कोई बा पर लिखे तो सूचित करिएगा। दरअसल, प्रोफेसर कुमार गांधी पर काम कर रहे हैं।
यह साक्षात्कार महत्वपूर्ण है। श्री तुषार जी ने बताया कि यह किताब हिन्दी में आएगी, हम प्रकाशक की तलाश कर रहे हैं।
हिन्दी किताब की प्रतीक्षा है।
बहुत महत्त्वपूर्ण बातें कस्तूरबा गांधी जी के विषय में। आज गांधी जयंती भी है। इस साक्षात्कार को पढ़ते हुए गांधी जी और कस्तूरबा गांधी के जीवन के अनछुए पहलुओं पर यह पढ़ना सुखद है। इस साक्षात्कार में एक धारा प्रवाह है, जो आपको अंत तक पढ़वाते हुए चलता है।
गांधी जयंती पर तुषार गांधी से मंजरी श्रीवास्तव की बातचीत सुखद आश्चर्य लगी इस पुस्तक को पढ़ने की बेचैनी शुरु हो गयी है.
तुषारजी से एक छोटी सी मुलाक़ात याद आ गयी.भोपाल में महात्मा गॉंधी 125 वां जन्म समारोह के अवसर पर. मैंने एक आलेख पढ़ा था- गाँधी के राम. तुषार जी ने बा की सरलता और सादगी बरकरार रखी है.
अच्छी बातचीत! किताब भी अवश्य पढूंगी!
समालोचन की इस श्रृंखला में प्रतिदिन कुछ दिलचस्प जानने मिलेगा इस आशा के साथ! बहुत बधाई! आज के दिन की..