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Home » कौशलेन्द्र की कविताएँ

कौशलेन्द्र की कविताएँ

कविता का कार्य सूचित करना नहीं अर्थ देना है. कौशलेन्द्र की कविता-यात्रा में इसे देखा जा सकता है. बताने से अधिक वह दिखाने की और अग्रसर हैं. उनकी कविताएँ पढ़ते हुए यह अहसास हो जाता है कि किसी संवेदनशील चिकित्सक की मनो-रचनाएँ हमारे सामने हैं. घाव के चिह्न उनके मन से हटते नहीं, उसकी पीड़ा को यह चिकित्सक भी महसूस करता है. कौशलेन्द्र की कुछ नई कविताएँ प्रस्तुत हैं.

by arun dev
December 12, 2023
in कविता
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कौशलेन्द्र की कविताएँ
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कौशलेन्द्र की कविताएँ

शहर में दो शहर

रात की रौशनी में शहर मुसकुरा रहा था
दूर दूर तक आकाश लांघती इमारतों में पोशीदा खिलखिलाहट
जगमगाते बाज़ार की चहल पहल में जुगनुओं की तरह टिमकते लोग
सजीले चेहरे महकती आबोहवा ख़ुमार ही ख़ुमार
पास ही सुनसान जजीरे पर लहराता समंदर
चमक से ओझल गहरे अंधेरे को समेटे उमड़ रहा था
उस रंगीन रात में सूनेपन की बुझती लौ
लहरों के हल्के शोर से अचानक कौंध उठती
हर शहर में दो शहर बसते हैं
उजाले का अपना अंधापन होता है.

 

संवेदना

शल्य क्रिया से मेरे जितने अपने गुज़रे
उन सबको लगाए गए चीरे मेरे शरीर पर लगे
उतनी ही पीड़ा उलझन और भय
मैंने अनुभव किये
उन सभी के निशान मुझ पर अंकित हैं
किसी अभिलेख के समान
जितने अभिन्न मित्र स्वजन नहीं रहे
उनके दाह की राख मेरी आत्मा से झरी
जीवन किसी चलनी के समान मुझे चालता रहा
हर बार मैं थोड़ा सा छूट गया
किंचित और दुर्बल
और परिष्कृत

 

ढलती साँझ

साँझ के कोलाहल में अद्भुत विश्रांति थी
हेमंत ऋतु के आरम्भ से पवन में शीत की मंद आहट
देह में झुरझुरी सी थिरक उठती
सूर्य तट के उस पार गाँव के झोंपड़ों में
झुकता
क्षितिज से ताम्रप्रभा नदी के जल में घुल रही
रेतीले तट पर
दूर साधुओं की धूनी ताप विसर्जन करती दिखती
समष्टि में ऊर्जा और आलस्य दोनों का समवेत स्वर
रात्रि में जागने वालों की भोर हो रही थी,
मेरे चित्त में वह नदी उमड़ती ठाठें मारती
दृश्य करवट लेता
तिरोहित हो रहा था.

 

पारखी मन

पूरे सुर से चाक चौबंद गीत में
एक छोटी बेसुरी तान
नीले निरभ्र आकाश में एक सुरमई रेख
श्वेत दुकूल पर सुई की नोक सा काला बिंदु
कमल नयनों के कोरों से तनिक बिखरते काजल का त्रिकोण
सुंदर सजीले भवन में क्षुद्र सा वास्तु दोष
सटीक सधे नृत्य की भाव भंगिमाओं में निमिष मात्र की विचलन
पारखी रसिक मन रफ़ूगर की तरह होता है
वह वहीं पहुँचता है जहाँ से कोई बारीक़ धागा उधड़ रहा हो.

 

असहायता

कुरुक्षेत्र की धरती पर
आज भी पड़े हैं भीष्म शरशय्या पर
अभी भी असुरक्षित हैं हस्तिनापुर की सीमाएँ
आरम्भ हो रहे हैं अनेक युद्ध
शंखनाद की ध्वनि आने लगी है कानों तक
वीरगति को प्राप्त हो रहे हैं योद्धा
प्रत्यंचाओं की टंकार से गूंज रहा है व्योम
प्रलाप के स्वर निरंतर तीव्र हो रहे हैं
कहीं कोई शकुनि आज भी खेल रहा है कपट का द्युत
असंख्य लोग रोज़ हार रहे हैं दाँव
बिना खेले ही
छल की धूल में छिप गए हैं नैतिकता नीति नियम
बाणों से बिंधे विराट राष्ट्र रूप का बूँद बूँद रिस रहा है रक्त
अंतिम समय में अलभ्य है गंगाजल
माता गंगा के अपने ही पुत्र के लिए
कदम्ब वृक्ष के नीचे लेटे हैं श्रीकृष्ण
स्वयं मोक्ष की प्राप्ति के लिए
बहेलिए के तीर की प्रतीक्षा में.

 

बूँदों के फूल

तुम्हारा दुख मुझ तक हर बार पहुंच जाता है
मैंने कितनी बार तुम्हें रोते हुए देखा
और मुँह घुमा लिया
मुझे कई बार तुम सामान्य दिखी लेकिन आभास हुआ कि रोकर आयी हो
पूछा नहीं मैंने
पूछना शायद हमेशा ठीक नहीं होता,
भीतर ही सोख लेता हूँ कितना कुछ
थोड़ा और भारी होने के लिए
और निकट आने के लिए
उस पेड़ की तरह जो बारिश के बाद झुक आता है
उसमें बूँदों के फूल खिलते हैं.

 

मोतियाबिंद

देर तक ताकती आँखों में
परछाइयाँ डोलती थीं
कभी सहसा मेघ घिर आते
गर्म तीखे दिन के मध्य तुहिन गिरने लगता
आँखें मीचते उंगलियों से मलते
पानी टपकता
सोते हुए ऐनक लगी छूट जाती

ज्योति के जाने का भ्रम बताया भी न जाता
बढ़ती वय के अंधकार से स्पष्ट कुछ नहीं
निदान में भय देखने वाली आँखें भला क्योंकर समझतीं
कि स्वच्छ जल में तैरने वाली दृष्टि के
किनारों से जाल उतर आया
ज्योति का मोती उसमें छुपता निकलता है.

 कौशलेन्द्र प्रताप सिंह
MBBS, MD
कविता संग्रह ‘भीनी उजेर ‘और संस्मरणों की किताब प्रकाशित.
मोबाइल न. 9235633456

 

Tags: 20232023 कविताकौशलेन्द्रचिकित्सक की कविता
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Comments 11

  1. आशुतोष दुबे says:
    1 year ago

    सुन्दर, स्पर्शी, संवेदनशील कविताएं। कवि की विकास यात्रा में एक नए सुखद मोड़ की तरह। बहुत बधाई कवि को।

    Reply
  2. सुदीप सोहनी says:
    1 year ago

    शब्द और दृश्य की तरलता में मर्म की सघनता. कविताओं ने सुकून बरसाया। सुबह सार्थक हुई। बधाई कवि को शुक्रिया समालोचन.

    Reply
  3. श्रीविलास सिंह says:
    1 year ago

    नए कथ्य और नयी भाषा की बहुत अच्छी कविताएँ। संवेदना और सोच का नयापन आकर्षित करता है। कौशलेन्द्र को बधाई। समालोचन का आभार प्रस्तुति हेतु।

    Reply
  4. गीता सिंह says:
    1 year ago

    नए तेवर की कविताएं

    Reply
  5. राजीव कुमार अग्रवाल एडवोकेट says:
    1 year ago

    सहजता के साथ, अमुभूति को शब्दों में व्यक्त करना आपकी अप्रतिम कला है

    Reply
  6. डॉ किरण मिश्रा says:
    1 year ago

    कविता में अव्याख्येय और अनिर्वचनीय ‘तथ्य’ को भाषाबद्ध करने का कवि का उम्दा कविकर्म हुआ है। स्पंदनयुक्त कविताओं के लिए कौशलेन्द्र सर आपको साधुवाद। अरुण सर कविताओं को हम पाठक तक पहुंचाने के लिए आपका आभार !

    Reply
  7. Virendra Pratap Singh says:
    1 year ago

    मुझे तो आश्चर्य होता है कि Kaushlendra Singhh ने डॉक्टर बनने का फैसला ही कैसे किया? मेरा यह कहने का तात्पर्य बिल्कुल नहीं है कि चिकित्सक कम संवेदनशील होते हैं, बिल्कुल नहीं।
    लेकिन कौशलेंद्र, सामान्य से अलग हृदय रखते हैं। वो उन हतभागों की पीड़ा खुद से स्वयं द्रवित हो जाते हैं। निर्धन मरीजों की स्थिति उन्हें परेशान करती है और मुझे लगता है कि वे अपनी तरफ से जितना कर सकते होंगे करते भी होंगे।
    डॉक्टरी का पेशा इसलिए भी ऊंची नजर से देखा जाता है क्योंकि, ईश्वर को किसने देखा है? पर धरती पर ईश्वर के रूप में माता के बाद हमारे डॉक्टर भाई बहन ही हैं जिनकी अथक परिश्रम ने लाखों करोड़ों को स्वास्थ्य दिया है, जीने की आशा दी है और इससे दीर्घायु बनाया है।
    हम सभी अनुज कौशलेंद्र सिंह जी की रचनाएं अक्सर पढ़ते रहते हैं और वे सब की सब अनुपम होती हैं।
    अपनी पुस्तक में भी उन्होंने प्रेम , करुणा, सत्य और अनेकों पवित्र भावों के साथ जीवन दर्शन को समोया होगा। आशा करता हूं कि मैं खुद भी समय मिलते ही पढूंगा।
    उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं, बहुत बहुत आशीर्वाद।

    Reply
  8. मीनाक्षी जिजीविषा says:
    1 year ago

    बहुत सूक्ष्म संवेदनाएं लिए , बहुत अच्छी कविताएं। कौशलेंद्र जी को बहुत बधाई।

    Reply
  9. हिमानी सचान says:
    1 year ago

    गहरी सम्वेदना और अर्थ समेटती हुई रचनायें I जीवन की आपाधापी में कुछ समय रुक कर पढ़ने का समय हो तो पढ़िए कौशलेन्द्र की कविताएं I
    शुभकामनाएँ ..

    Reply
  10. Pravin Kumar says:
    1 year ago

    गहरे बिम्ब में डूबी कविताएं हैं. बिम्ब ऐसा कि कविता के अर्थ बोध की समझ जल्द हो जाती है.

    Reply
  11. Sarvesh Kumar says:
    1 year ago

    क्लिष्ट से क्लिष्ट मनोभावों को सुशाब्दों से
    परिभाषित करती हुई उत्कृष्ठ रचनायें
    आदर्णीय सर जी को साधुबाद व हार्दिक बधाइयाँ।🙏🏻🙏🏻

    Reply

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