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Home » प्रदीप सैनी की कविताएँ

प्रदीप सैनी की कविताएँ

"कभी कभी आत्मा में धँसी सिर्फ़ एक पंक्ति कहने को/लिखता हूँ पूरी कविता " जैसे बीज में वृक्ष रहता है. कभी-कभी तो एक शब्द में रहती है पूरी कविता. हवा, पानी, मिट्टी, आकाश की तरह कविता का भी अपना पर्यावरण है, वह समाज से लेती है अपना खाद पानी. सलीका और दृष्टि उसे संवारते हैं. प्रदीप सैनी की इन कविताओं को पढ़ते हुए चिह्नित किया जा सकता है कि कवि अपने कवि-कर्म के प्रति सचेष्ट है और निरंतर विकासमान है. प्रदीप सैनी की कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं.

by arun dev
June 22, 2022
in कविता
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प्रदीप सैनी की कविताएँ
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प्रदीप सैनी की कविताएँ

 

यात्राएँ

एक

सच्चा यात्री
मानचित्रों की भस्म माथे पर लगा
यात्रा पर निकलता है.

 

दो

आप एक समय में एक साथ कई यात्राओं पर हो सकते हैं

हो सकता है कि किसी एक यात्रा में दौड़ते-दौड़ते
आप किसी दूसरी यात्रा में थककर बैठ जाएँ

कोई यात्रा अपनी थकान तन पर नहीं मन पर छोड़ती है
और कोई-कोई आत्मा पर

हो सकता है कोई यात्रा ये सारी थकानें सोख ले अपने भीतर
और आप किसी पंख से हल्के हो लौट आएँ वापिस

छोड़ना होता है सब धीरे-धीरे
असली यात्रा वही है जिसके लिए आप ख़ाली हाथ निकलते हैं.

 

तीन

यात्राएँ प्यास से पैदा होती हैं
दरअस्ल वे पानी की तलाश हैं

हर प्यास का अपना पानी होता है
यात्रा पर निकलते हुए साथ लिया गया पानी
ज़्यादा देर काम नहीं आता.

 

चार

नदियाँ पानी की यात्राएँ हैं
और बादल भी
यात्रा पर तो वो पानी भी है
जिसे न नदी की नाव मिली न बादल का उड़न खटोला
वह पानी जो रिसता रहा धरती के भीतर
एक कठीन यात्रा में है
भाग्य में जिसके खोजे जाने का इन्तिज़ार लिखा है.

 

पाँच

यह ब्रह्मांड असंख्य यात्राओं का मानचित्र है
पृथ्वी लगातार एक यात्रा पर है
उसे एक पल का आराम नहीं
उसका होना इस यात्रा में ही संभव हुआ और है
जो स्थिर हैं यहाँ जैसे सूर्य
वह किसी यात्रा में शामिल नहीं ?
क्या जो स्थिर रहता है जीवन भर
वह नहीं जाता है किसी यात्रा पर कहीं ?
पेड़ जो किसी यात्रा पर जाता नहीं दिखता
क्या पृथ्वी की यात्रा से पड़ते हैं उसके भीतर वलय ?
या एक ऋतुचक्र की यात्रा के निशान हैं ये ?

हमारे भीतर भी पड़ते होंगे यात्राओं से ऐसे ही वलय
हमें अपनी आयु उन्हें गिन कर मापनी चाहिए.

 

 

शर्मिंदगी

कभी कभी आत्मा में धँसी सिर्फ़ एक पंक्ति कहने को
लिखता हूँ पूरी कविता

यह ठीक वैसा ही है
जैसे प्रेम की कौंध का एक पल पाने के लिए
हमें जीना होता है पूरे का पूरा जीवन

उस एक पंक्ति के अलावा अपनी पूरी कविता के लिए
मैं उसी तरह शर्मिंदा हूँ
जैसे मुझसे है शर्मिंदा
प्रेमहीन यह बाक़ी जीवन.

 

आज़ाद औरतें

एक प्रेमी एक आज़ाद औरत की आज़ादी पर
इस-क़दर फ़िदा है
कि उसे प्रेम से गुलाम बनाने का सपना देखता है

एक आज़ाद औरत को एक बैरागी
विस्मय से देखता है
और अपने जीवन भर के बैराग पर शर्मिंदा होता है

एक व्यभिचारी एक आज़ाद औरत को
एक संख्या की तरह देखता है
और अपनी स्कोरशीट को याद करता है

एक कला मर्मज्ञ परखता है एक आज़ाद औरत को
कला के नमूने की तरह
देखता है उसके जीवन में रंग संयोजन और बताता है
कि एक पीली उदासी झरती है लगातार उसके भीतर
जिसे वह कभी नहीं बुहारती
एक गहरा लाल जंगली फूल है उसका दिल
जिस तक पहुँचने की लीक
पीली उदासी से ढक गई है
नीला उसने पीठ पर नहीं कंठ में धारण किया है
एक गुलाबी यदा-कदा चमकता है सिर्फ़ स्मृतियों में
जबकि उसकी आत्मा में पड़ा घाव हमेशा हरा है

समाज सुनता है कला मर्मज्ञ की बात
और उसकी बात में बात मिलाता हुआ कहता है
देखा ! बड़ी रंगीन होती है आज़ाद औरतें

यह सब देखता-सुनता
एक कवि उन्हें कविता में पुकारना चाहता है
लेकिन ऐसी भाषा की तलाश में गूँगा हो जाता है
जिसमें औरत को वो आज़ाद कहकर पुकारे
तो वो गाली न लगे.

 

एक पालतू दुःख

पल-पल चेहरे बदलने वाला
कोई बहरूपिया है मृत्यु
आएगी वह एक दिन हमारे बिल्कुल पास
और हमसे किसी हमारे ही अपने का चेहरा पहन मिलेगी
जब तक पहचान पाएँगे हम उसे
उसका पहना हुआ चेहरा रह जाएगा हमारे पास
और रह जाएगा दुःख जिसे देकर
वह लौट जाएगी

हम पहले इस दुःख को कह नहीं पाएँगे
लेकिन फिर आँखें उसे कह पाना आसान बना देंगी
और फिर ज़ुबान

दो-चार दिन की अनिच्छा के बाद आख़िरकार लौट आएगी हमारी भूख
उसके पीछे-पीछे ही लौट आएगा
दुःख से कसैली हुई जीभ का स्वाद भी

ये सच है कि मृत्यु जीवन का विलोम नहीं है
लेकिन उसके बर-अक्स खड़ा करने को हमारे पास
जीवन के सिवा कुछ भी नहीं होगा

हम मृत्यु से हार गए और उससे कभी जीत नहीं पाएँगे
ये जानते हुए भी
उससे बदला लेने की किसी अबोध ज़िद में
हम मृत्यु से उपजे हुए दुःख पर टूट पड़ेंगे

वह दुःख जो हमको बहा ले जा सकता है जीवन के पार
उससे करते हुए दो-दो हाथ
हम उसका गला घोंट देंगे
लेकिन वह मरेगा नहीं
मृत्यु से उपजा दुःख कभी नहीं मरता
हम बस उसे काबू कर पालतू बना लेंगे

अब वह हमारे साथ सोएगा
खाएगा, काम पर जाएगा और जीवन का
उत्सव मनाएगा.

 

जब भी प्रेम मुझसे होकर गुज़रा

मेरी आँखों ने एक्स-रे इमेजिंग नहीं की
मैंने पोर्न नहीं देखा
मैं सभी बदनाम ठिकानों का पता भूल गया
मेरे हाथों से गलत काम दूर रहे
मैंने ख़ुद को भी नहीं छुआ
मैंने आत्मा को पुकारा बार-बार और देह को भूल गया

मुझे भिखारियों से घृणा नहीं हुई
वे मुझे दूर के रिश्तेदार लगे
चाँद सितारों से मेरा कोई वास्ता नहीं रहा
सिवाए इसके कि रातों को उन्होंने मेरी जासूसी की
मैं आवारा कुत्तों का आभारी रहा जो भौंके नहीं मुझे देख
वही थे जिन्होंने अँधेरे में मुझे प्रेमी समझा चोर नहीं

मैं जब भी अकेला पड़ा
प्रार्थनाएं भूल गया और ईश्वर मेरे कोई काम नहीं आया
ऐसे वक़्त में जगजीत सिंह और गुलाम अली
मेरी मदद को ईश्वर से पहले आए

मैंने रूककर चींटियों को रास्ता दिया
मैं गालियों को भूल गया
मैंने दुनिया की किसी भी स्त्री को बदचलन नहीं कहा
जबकि ऐसा कहना चलन में था

मैंने जहाँ कहीं भी फूल देखे, रुका
उनसे कोमलता उधार ली
ली उनसे अपनी ख़ुश्बू लूटा देने की कला
और यह सीख भी कि बिना किसी की आँखों के सामने
खिलना भी उतना ही खिलना है

मैंने उनके लहू से सूर्ख नहीं किया प्रेम का रंग
मैंने फूलों को प्रेम से दूर रक्खा
उनकी कोमलता, ख़ुश्बू और निस्पृहता को उसके मध्य

प्रेम ही था जिसने मुझे इस जीवन में
एक मनुष्य होने का मौका दिया.

 

by Flickr

मुझे एक कॉल करो

तुम्हारी आवाज़ की स्मृति भी एक आवाज़ है
उसे बचाए रखने को उसका स्मरण करता हूँ
मेरे इस जतन से वह थोड़ा और घिसती है
और मद्धम हो जाती है
यूँही अगर करता रहा मैं तुम्हारी आवाज़ का स्मरण
तो जल्द ही स्मृति में क्षीण होती
तुम्हारी आवाज़ की जगह एक निर्वात ले लेगा
और स्मरण करने पर कुछ सुनाई नहीं देगा

उसका स्मरण करने पर मुझे सुनाई पड़े
खनक के साथ तुम्हारी आवाज़
इसके लिए जल्द ही
चाहिए मुझे उसकी आवृत्ति

मुझे एक कॉल करो

भले यह कहने के लिए करो कॉल
कि यह है मेरा स्मृति दोष
वरना तो स्मरण के दोहराव से तो
दीप्त हो उठती है स्मृति

कुछ भी कहने लिए
या कुछ न भी कहने के लिए
मुझे एक कॉल करो.

 

सतह के नीचे

उसके पवित्र सौंदर्य से अभिभूत
इस बात पर कौन माथापच्ची करता है
कि उसकी जड़ें कहाँ हैं?

उनसे इतनी दूर आकर खिलने का पौषण वह कहाँ से पाता है?
कितने अँधेरे उसके पानी में शामिल हैं?

कहते हैं कि उसका बीज सालों-साल नहीं सड़ता
वह पड़ा रहता है भीतर कहीं छुपा हुआ
आप जब भूल जाते हैं उसे मृत समझ
वह फूट पड़ता है कीचड़ की मलिन और असुंदर
दुनिया से अपने अनुकूल नमी और ऊष्मा पाकर आपको चकित करता हुआ

अगर प्रेम को हम एक फूल की तरह देख सकते
तो सतह के ऊपर वह हू-ब-हू एक कमल दिखता

सतह के नीचे देखता ही कौन है?

प्रदीप सैनी
28/04/1977

पत्र-पत्रिकाओं  में कविताएँ प्रकाशित

सम्प्रति: वकालत
सम्पर्क:
चैम्बर नंबर 145, कोर्ट काम्प्लेक्स, पौंटा साहिब, जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश.
sainik.pradeep@gmail.com

Tags: 20222022 कविताएँप्रदीप सैनी
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Comments 21

  1. विनोद मिश्र says:
    3 years ago

    बहुत अच्छी कविताएं।समालोचन का काम स्तरीय, पठनीय और उम्दा।

    Reply
  2. अशोक अग्रवाल says:
    3 years ago

    असली यात्रा वही है जिसमें हम ख़ाली हाथ निकलते हैं। बहुत सुंदर कविताएं।

    Reply
  3. M P Haridev says:
    3 years ago

    मेरे दो मित्र अलग-अलग कारणों से यात्रा करने के लिये निकल पड़ते हैं । इनमें से एक हमारे नगर हाँसी के हैं । ठीक-ठाक पैसों के मालिक हैं । कहने के लिये कार रिपेयर करने की वर्कशॉप है । वहाँ एक मिस्री रखा हुआ है । टाइम पास करने की लिये कुछ देर के लिये वहाँ चले जाते हैं । हर साल लेह-लद्दाख की यात्रा मोटरसाइकिल से करते हैं । दो दोस्तों को सहयात्री बनाते हैं । यात्रा का महीना शराब पीने में बीतता है । हाँसी में रहते हुए प्रतिदिन सुबह एक घंटे के लिये सैर करते हैं । इसमें दौड़ना, सूर्य नमस्कार, आसन और आरंभ में लगातार धीरे-धीरे दौड़ना शामिल है । कम खाना खाते हैं । स्वस्थ हैं ।
    दूसरे मित्र इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़िज़िकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स साइंसेज़, विकास पुरी दिल्ली में एथ़्’लेटिक् के प्रोफ़ेसर हैं । नियमित रूप से सुबह पौने घंटे के लिये दौड़ते हैं । हॉफ़ मैराथन में हिस्सा लेते हैं । कक्षा में समय पर पहुँचते हैं । विषय पर पकड़ है । पोस्ट ग्रेजुएट कक्षाओं को पढ़ाते हैं । किसी भी कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिये इनका कक्षा कक्ष खुला है । निकर टी-शर्ट पहनकर इंस्टीट्यूट में जाते हैं । “पौवा चढ़ा के आयी” नहीं बल्कि रात को घर में पूरी बोतल दारू पीते हैं । स्वभाव से उग्र हैं ।

    Reply
    • Anonymous says:
      3 years ago

      सभी कविताएं बेहतरीन है , यात्रा सीरीज , शर्मिंदगी ,आजाद औरतें ऐसी कविताएं जिनसे हम जुड़ जाते हैं,शेष कविताएं भी ठहरकर पढ़ने वाली कविताएं हैं , संवेदनशील और स्तरीय ,

      Reply
  4. M P Haridev says:
    3 years ago

    दो
    चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में खोज कर रहे व्यक्तियों ने सिद्ध किया है कि एक व्यक्ति अनिवार्य रूप से कम से कम एक साथ दो यात्राओं पर निकलता है । एक शरीर से और दूसरा मन से । जिनके मन और शरीर की यात्राओं में तालमेल नहीं होता वे अस्वस्थ होते हैं । मानसिक रूप से बीमार भी हो सकते हैं । रक्तचाप हो जाता है । डॉक्टर उसे सलाह देते हैं । स्वास्थ्य में सुधार को वे कंप्यूटर पर ग्राफ़िक्स के माध्यम से रोगी में हुए सुखद परिणाम को दिखाते हैं । ऐसे यात्री भीतर की सारी थकान को सोखकर नयी ऊर्जा हासिल करते हैं । प्रदीप सैनी को विज्ञान के निष्कर्ष पर सच्चाई पर उतरती हुई कविता के लिये बधाई । इस टैग में मैं प्रोफ़ेसर अरुण देव जी के टैग करने पर टिप्पणी करने के बाद संतुष्टि और उऋण महसूस कर रहा हूँ ।

    Reply
  5. विनय कुमार says:
    3 years ago

    पहली बार पढ़ रहा हूँ प्रदीप सैनी को। आभार अरुण भाई कि आपने पढ़वाया। ख़ूब तबीयत से लिखने वाले। वाह!

    Reply
  6. विनोद पदरज says:
    3 years ago

    बहुत अच्छी कविताएं ताजगी लिए हुए और मजे की बात बिम्बाश्रित भी नहीं
    चयन और निर्वहन दोनो सुंदर
    पहले भी पढ़ीं हैं उनकी कविताएं, बधाई आपको प्रदीप जी को

    Reply
  7. मनोज जोशी says:
    3 years ago

    बेहतरीन कविताएं। हर कविता एक नई बात कहती है और बहुत प्रभावशाली ढंग से कहती है। प्रदीप सैनी जी एक असाधारण कवि हैं। इतनी अच्छी कविताएं एक साथ पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए समालोचन का आभार!

    Reply
  8. Tithi Dani says:
    3 years ago

    बहुत अच्छी कविताएं सुबह उठते ही सबसे पहले इन्हें पढ़ा और दिन की शुरुआत सार्थक होती लग रही है, यात्राएं कविता बे बहुत प्रभावित किया। आज़ाद औरतें भी मन में अंकित हो गयी। बहुत बधाई और शुभकामनाएं बेहतरीन सृजन के लिए।

    Reply
  9. Anonymous says:
    3 years ago

    बेहद शानदार कविताएँ

    Reply
  10. अनुराधा सिंह says:
    3 years ago

    वे कवि बहुत पसंद हैं जो अपनी हर नई कविता को पिछली से बेहतर लिखना चाहते हैं। प्रदीप सैनी की बिल्कुल इधर पढ़ी अच्छी कविताओं से भी सुंदर हैं ये कविताएँ। बहुत उम्मीद के साथ शुक्रिया

    Reply
  11. तेजी ग्रोवर says:
    3 years ago

    कविताएँ अच्छी हैं या वे और भी अच्छी होने की अकुलाहट लिये हुए हैं। इनमें कुछ ऐसा है जो अभी और सूक्ष्म होने को आतुर है.. कुछ और लम्बी यात्राओं पर निकलने को मचलती हुई संवेदनाएं भी हैं।

    इस कवि को पढ़कर मेरी यह जानने की इच्छा भी हुई कि इसके प्रिय कवि कौन हैं, किन्हें पढ़ता आया है वह, बार बार पढ़ेगा।

    इन्हें पढ़ना कुछ अलग अनुभव तो था, लेकिन यात्राएँ अभी और बदी हैं इस कवि के काव्यकर्म में।

    Reply
  12. Anonymous says:
    3 years ago

    बहुत सुंदर कविताएं

    Reply
  13. अजेय says:
    3 years ago

    प्रदीप मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं. अभी तीन दिन पहले रेणुका जी सिरमौर में हमने गोष्ठी की…. महज़ पांच जन, और गिरि गंगा की खादर….. प्रायः यही, (जो यहाँ लगीं हैं)कविताएँ सुनाई प्रदीप ने और मै कृत्कृत्य होता रहा रात भर. समालोचन में फिर देख फिर कृतकृत्य हुआ! आभार!

    नदियाँ पानी की यात्राएँ हैं
    और बादल भी
    यात्रा पर तो वो पानी भी है
    जिसे न नदी की नाव मिली न बादल का उड़न खटोला
    वह पानी जो रिसता रहा धरती के भीतर
    एक कठीन यात्रा में है
    भाग्य में जिसके खोजे जाने का इन्तिज़ार लिखा है.

    Reply
  14. राजेश कुमार says:
    3 years ago

    एक से एक बेहतरीन कविताएँ, आज पहली बार एक साथ आपकी कई कविताएँ पढने का सोभाग्य प्राप्त हुआ प्रदीप Sir । Thanks https://samalochan.com

    Reply
  15. हीरालाल नगर says:
    3 years ago

    कवि प्रदीप सैनी की कविताएं कुछ आश्चर्यजनक ढंग से प्रभावित करती हैं। संवेदनाओं से भरी पूरी धरती में संवेदना का कोई खाली कोना अपने लिए तलाश ही लेता है एक कवि और फिर अपनी प्रतिभा का पौधा रोप ही देता है।’आजाद औरतें’, ‘शर्मिंदगी’, ‘एक पालतू दुख’ और ‘जब भी प्रेम मुझसे होकर गुज़रा’ आदि
    कविताएं पढ़कर मैं आह्लादित हुआ। ये कविताएं कवि के
    लिए एक बड़ा आकाश रचती हैं, जहां इनको देखा-परखा जा सकता है।
    कवि प्रदीप सैनी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।

    Reply
  16. Anup Sethi says:
    3 years ago

    प्रदीप की एक साथ कई कविताएं आपने उपलब्ध करा दीं, धन्यवाद। वरना यह कवि ओझल हुआ रहता है। मैं प्रदीप की कविताएं ढूंढ़ता रहता हूं। प्रदीप के पास ठहराव भी है, शब्दों का चुनाव भी है और कसावट भी।

    Reply
  17. Anonymous says:
    3 years ago

    ये पंक्तियाँ मुझे अतिशयोक्ति लगी ……………………मैं जब भी अकेला पड़ा
    प्रार्थनाएं भूल गया और ईश्वर मेरे कोई काम नहीं आया
    ऐसे वक़्त में जगजीत सिंह और गुलाम अली
    मेरी मदद को ईश्वर से पहले आए

    Reply
  18. Ritu Nautiyal says:
    3 years ago

    बेहतरीन कविताएँ| अंतस में जुगाली की तरह निरंतर, निर्बाध, विराट और सूक्ष्म दोनों भावों को धीरे धीरे चबाते हुए पर संपूर्ण स्वाद लेना, कुछ रह ना जाये अनदेखी, अनचखा; कड़वा, मीठा,…… फीका भी ऐसी सृजनशीलता से गुजरी कविताएँ लगती हैं |
    प्रदीप सैनी की भाषा सहज है, सारी पीड़ा और परिश्रम सूक्ष्म दृष्टि से भाव और कल्पना के सुंदर मेल में दिखती है |
    हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🌺🌺

    ऋतु डिमरी नौटियाल

    Reply
  19. Malini Gautam says:
    3 years ago

    बहुत अच्छी कविताएँ हैं प्रदीप जी की, कहन की ताज़गी लिए हुए…आज़ाद औरतें और यात्राएँ दोनों ही कविताएँ बहुत पसंद आईं…शुभकामनाएं💐💐

    Reply
  20. Anonymous says:
    3 years ago

    बहुत ही उम्दा

    Reply

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