राम कुमार मल्लिक से अरविंद दास की बातचीत |
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ध्रुपद संगीत के लिए बिहार के दरभंगा घराने की चर्चा होती रही है. यह घराना दरभंगा राज की छत्रछाया में 18वीं सदी से फलता-फूलता रहा. पर राज के विघटन के बाद संरक्षण के अभाव में यह घराना दरभंगा से निकल कर इलाहाबाद, वृंदावन, दिल्ली आदि जगहों पर फैलता गया. बिहार में इसके कद्रदान नहीं रहे.
ध्रुपद गायकी की चार शैलियां- गौहर, डागर, खंडार और नौहर में दरभंगा गायकी गौहर शैली को अपनाए हुए है. इसमें आलाप चार चरणों में पूरा होता है और जोर लयकारी पर होता है. ध्रुपद के साथ-साथ इस घराने में ख्याल और ठुमरी के गायक और पखावज के भी चर्चित कलाकार हुए हैं. साथ ही जिस तरह कबीर के पदों के लिए कुमार गंधर्व और मीरा के पदो के लिए किशोरी अमोनकर विख्यात हैं, उसी तरह से दरभंगा घराने के गायक विद्यापति के पदों को गाते रहे हैं.
ध्रुपद के सिरमौर राम चतुर मल्लिक (पद्मश्री) के बारे में बड़े-बड़े संगीत साधक आज भी आदर से बात करते हैं. उनके गायन की कई रिकॉर्डिंग यू-टयूब पर उपलब्ध है. संगीत समीक्षक गजेंद्र नारायण सिंह ने उनके बारे में लिखा है-
‘रामचतुर दरअसल गानचतुर थे. गायकी की हर विधा पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी.’
रामचतुर मल्लिक के चचेरे भाई विदुर मल्लिक 80 के दशक में वृदांवन चले गए और वहाँ पर उन्होंने ध्रुपद एकेडमी की स्थापना की थी. वर्ष 2019 के लिए इस घराने के चर्चित गायक और राम चतुर मल्लिक के शिष्य अभय नारायण मल्लिक (1937-2023) को राष्ट्रीय कालिदास सम्मान (मध्य प्रदेश सरकार) दिया गया. वे इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ से लंबे समय तक शिक्षक के रूप में जुड़े रहे और अनेक शिष्यों को प्रशिक्षित किया. इसी घराने के इलाहाबाद में प्रोफेसर प्रेम कुमार मल्लिक को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से पिछले साल नवाजा गया.
पिछले दिनों दरभंगा घराने के वरिष्ठ गायक और ध्रुपद के शिक्षक राम कुमार मल्लिक को शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई. वे दरभंगा में रहते हैं.
अरविंद दास:
दरभंगा घराने के रामचतुर मल्लिक और सियाराम तिवारी को शास्त्रीय संगीत में योगदान के पद्मश्री से सम्मानित किया गया. आपके पिता एवं गुरु विदुर मल्लिक और अभय नारायण मल्लिक भी ध्रुपद के प्रसिद्ध गायक हुए, पर उन्हें यह सम्मान नहीं मिला. लगभग पचास सालों के बाद पद्मश्री इस घराने के हिस्से आया है, क्या देरी हुई?
राम कुमार मल्लिक:
हां, यह सवाल गृह मंत्रालय से पूछा जाना चाहिए. पंडित राम चतुर मल्लिक और सियाराम तिवारी के बाद यह मुझे मिला है. विदुर मल्लिक और अभय नारायण मल्लिक को मिलना चाहिए था.
हो सकता है भारत सरकार की तरफ से या कोई तकनीकी गड़बड़ी रही हो. देर तो हुई है. यह भारत सरकार की गलती है. बाद में ही सही पर मुझे मिला है… मैं उसी घराने का हूँ.
अरविंद दास:
आप दरभंगा-अमता घराने की बारहवीं पीढ़ी के गायक हैं. तेरहवीं पीढ़ी के गायक (मल्लिक ब्रदर्स) अपने गायन को लेकर हमारे बीच मौजूद हैं. कितनी पुरानी दरभंगा घराने की गायन परंपरा है?
राम कुमार मल्लिक:
हमारी संगीत की परंपरा पाँच सौ साल पुरानी है. तानसेन के घराने से ही हमारे पूर्वजों ने गायन सीखा था. राधाकृष्ण और कर्ताराम (दो भाई और थे) ने ग्वालियर में रह कर भूपत खान जी, जो तानसेन के नाती थे, 22 वर्ष तक संगीत की शिक्षा ग्रहण की जिसके बाद वे नेपाल बादशाह के पास आए. वहाँ वे दरबारी गायक थे.
एक समय की बात है, दरभंगा में भीषण अकाल पड़ गया और दरभंगा के शुरुआती महाराज बेनी माधव पता लगाने गए कि कोई ऐसा साधक हो जो अपनी साधना से जलवृष्टि करवा सके. उन्होंने कहा कि जो कुछ वह मांगेगा उसे वह देंगे. नेपाल बादशाह से मालूम हुआ कि दो भाई संगीत सीख कर आये हैं जो मेघ-मल्हार गा कर पानी बरसा सकते हैं
वहां से दोनों भाइयों को बुलाया गया. वे दोनों भाई आए और दरभंगा राज में दरबार लगा. तानपुरा लेकर जब दोनों भाई ने मेघ-मल्हार गाना शुरु किया भंडार कोन से बादल उठा जो फैलता गया. पानी बरसने लगा जो इतना बरसा कि महाराज ने हाथ जोड़ लिया कि अब प्रलय हो जायेगी. दोनों भाई फिर शांत हुए. महाराज ने उनसे कुछ मांगने कहा. दोनों भाइयों ने कहा कि लोभ से उन्होंने यह साधना ग्रहण नहीं किया है. आपकी जो इच्छा हो दें. साढ़े सात सौ बीघा जमीन (जिस पर हम रह रहे हैं) अमता गाँव में उन्हें मिला और बहुत सारी चीजें भी. उन्हीं की पीढ़ी से हम है जो दरभंगा महाराज से जुड़े रहे.
अरविंद दास:
आपने किनसे ध्रुपद गायन सीखा?
राम कुमार मल्लिक:
पहले तो अपने दादा जी (पंडित सुखदेव मल्लिक) से सीखा फिर अपने पिता एवं अपने गुरु विदुर मल्लिक से. मैंने छह वर्ष से ही संगीत-साधना शुरु कर दिया था. बाबा रामचतुर मल्लिक का भी मुझे आशीर्वाद मिला. रामधीन पाठक (खंजड़ी वादक), सियाराम तिवारी ने भी मुझे आशीर्वाद दिया. अपने पिता के साथ अमेरिका, यूरोप सहित पूरी दुनिया में मैंने गायन किया. हमारे घराने में शिवदीन पाठक हुए (मेरे दादाजी के मामा) उनका जो सितार बजता था वह तो विश्व में कोई नहीं बजा पाया.
उनकी ऊँगली का रखाव इतना सुंदर (सही) था, सब स्वरों के अंदर बद-बद, बद-बद होता था. रामेश्वर पाठक ने उन्हीं की छत्रछाया में कुछ-कुछ सीखा था, जो रामाशीष पाठक के दादा हुए.
अरविंद दास:
दरभंगा घराने की प्रसिद्धि ध्रुपद गायन को लेकर है. यह किस प्रकार डागर घराने के ध्रुपद से अलग है. इस घराने की क्या विशिष्टता है?
राम कुमार मल्लिक:
हमारी गायन शैली अन्य घरानों से बहुत अलग है. हम गौहर-खंडार शैली को अपनाए हैं. वे ‘री त न न तोम नोम…’ करते हैं. हम ‘ओम, हरी ओम अनंत हरि ओम’ (गाकर सुनाते हैं) से आलाप शुरु होता है. इसके बाद नोम-तोम त न री. यही सब. मीड़ गौहर बानी का काम है और गमक खंडार बानी (गा कर सुनाते हैं). इन दोनों को हमारे पूर्वज गाते थे. मेरे दादा जी, पिता जी और हम खुद उसी परंपरा को अपनाए हुए हैं.
अरविंद दास:
आपके पिता विदुर मल्लिक एक बंदिश गाते थे- राजा रामचंद्र चढयो हैं त्रिकुट पर…
राम कुमार मल्लिक:
ये हमारी परंपरा की बंदिश है. यह राधाकृष्ण-कर्ताराम बाबा की बंदिश है, जो चार चरण में पूरी होती है. राग देसी में है:
राजा रामचंद्र ज्यू चढयो हैं त्रिकुट पर
लंका गढ़ डगमगायो जबहि डंफ बाजे (स्थायी)
श्रवण कनक टंक पर रावण घन मेघनाद
कुंभकर्ण रण बिदारी देव गगन बाजे
बड़े-बड़े योद्धा सब युद्ध करवे को साथ चले
समुद्र तीर डारि के लश्कर ठहरायो है
हनुमान ऐसो वीर लंका को फूक गई
रावण को मार राम पचरंग फहरायो है.
रावण का वध जब राम ने किया उसी का वर्णन है, इस बंदिश में. हमारे यहाँ फर्स्ट, सेकंड, थर्ड और फोर्थ चार आलाप है (इक गुण, द्विगुण, त्रिगुण और चौगुण). डागर लोग तीन दर्जे का आलाप करते हैं, इतना ही फर्क है. डागर की पुरानी परंपरा है, मैं उन्हें अलग नहीं समझ रहा.
अरविंद दास:
मैथिल भाषी होने के कारण मैं दरभंगा घराने की एक विशिष्टता की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा. शास्त्रीय संगीत में पारंगत होने के बावजूद भी यह घराना मैथिली के लोक कवि विद्यापति को गाता रहा है. मैंने विदुर मल्लिक, अभय नारायण मल्लिक और आपको भी गाते सुना. यहाँ पर मैं आपके गाए- ‘सुंदरी तुअ मुख मंगल दाता’, का जिक्र करना चाहूँगा जो इंटरनेट पर खूब सुना जाता है.
राम कुमार मल्लिक:
विद्यापति गाने की सीख मुझे पिताजी से मिली. उनके संग्रह से मैंने राग-रागनियों को चुना. दरभंगा आकाशवाणी के लिए भी हमने गाया है. साथ ही मेरे पिताजी का कैसेट है- ‘नाइटिंगल ऑफ मिथिला’ उसमें आपके विद्यापति के पद आपको मिलेंगे.
‘के पतिया ल जायत रे मोरा प्रियतम पास’
और
‘कुंज भवन स निकसल रे रोकल गिरधारी’
आपको वहाँ मिलेगा. मैंने
‘कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ’ और विद्यापति की नचारी
‘आजु नाथ एक व्रत महासुख लागत हे, तू शिव धरु नटभेस हम डमरू बजायब हे’
भी गाया है. ये हमारा अपना संग्रह है. ये सब रागों के अंदर है. ध्रुपद के साथ मैं ख्याल, दादरा, ठुमरी, गजल-भजन, लोकगीत भी गाता हूँ. चारों पट की गायकी दरभंगा घराने में आपको मिलेगी.
अरविंद दास:
आपकी संगीत यात्रा का केंद्र दरभंगा ही रहा है. साठ-सत्तर के दशक में दरभंगा और पटना में देश भर के संगीतकारों का जमावड़ा रहता है, ध्रुपद संगीत समारोह भी होते थे. बिहार की एक सांगतिक-सांस्कृतिक पहचान थी, जो बाद के दशक में सिमट गई.
राम कुमार मल्लिक:
राजनीति हावी होती गई और हम परंपरा को भूल गए.
अरविंद दास:
20वीं सदी में ख्याल का बोलबाला रहा, ऐसे में ध्रुपद गायकी पिछड़ गई. 21वीं सदी में इसका क्या भविष्य आप देखते हैं.
राम कुमार मल्लिक:
ध्रुपद को कोई हटा नहीं सकता है. यह अचल पद है. सारी दुनिया की संगीत का तत्व समझिए इसे. ख्याल विचलित हो सकता है, ध्रुपद नहीं. कनक, मुरकी मूर्छना नहीं लगता, यह मीड़ और गमक की चीज है. दरभंगा परंपरा में इसे स्थिर गायकी और चलन के रूप में आप पाएंगे. इस घराने की नयी पीढ़ी के लोग उसी रास्ते पर चल रहे हैं. पिताजी के शिष्य हैं वृजभूषण गोस्वामी, सुखदेव चतुर्वेदी, राधा गोविंद आदि वे भी इसे अपनाए हुए हैं.
अरविंद दास:
लेकिन बिहार के अन्य संगीत घरानों की बात करें तो वह कहीं सुनाई नहीं देता..
राम कुमार मल्लिक:
गया घराना ठुमरी घराना था. वहाँ बहुत अच्छे गायक जयराम जी थे, जो नशा के चलते बर्बाद हो गए. बेतिया घराने में दो-चार कलाकार थे. एक इंद्र किशोर जी हैं जो वृद्ध और असमर्थ हैं. मैं पाँच साल से पंडित विदुर मल्लिक गुरुकुल (दरभंगा) में छात्र-छात्राओं को ट्रेनिंग दे रहा हूँ. लोगों में रुचि जागृत हो रही है. दस-बीस छात्रों को मैंने सिखाया है. अभिषेक मिश्र हैं पटना में. अभिषेक पाठक हैं, जिन्हें मैंने सिखाया है. मैं चाहता हूँ छात्रों की संख्या बढ़े.
अरविंद दास:
ध्रुपद दरभंगा राज में फला-फूला.
क्या बिहार राज्य सरकार से आपकी कोई अपेक्षा है?
राम कुमार मल्लिक:
मैं क्या कहूँ, यहाँ तो कुएं में भांग पड़ी है.
अरविंद दास लेखक-पत्रकार. ‘बेखुदी में खोया शहर: एक पत्रकार के नोट्स’ और ‘हिंदी में समाचार’ ‘मीडिया का मानचित्र’ किताबें प्रकाशित. रिलिजन, पॉलिटिक्स एंड मीडिया: जर्मन एंड इंडियन पर्सपेक्टिव्स के संयुक्त संपादक. डीयू, आईआईएमसी और जेएनयू से अर्थशास्त्र, पत्रकारिता और साहित्य की मिली-जुली पढ़ाई. एफटीआईआई से फिल्म एप्रीसिएशन का कोर्स. जेएनयू से पत्रकारिता में पीएचडी और जर्मनी से पोस्ट-डॉक्टरल शोध. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और वेबसाइट के लिए नियमित लेखन.arvindkdas@gmail.com |
बढ़िया साक्षात्कार। यह पद्मश्री सम्मान का प्रताप है। इसे प्रकाशित करने के लिए आपको बहुत धन्यवाद क्योंकि प्रतिष्ठित विदुर घराने के बारे में कम ही पढ़ने को मिलता है।
आप संगीत को लेकर गंभीर हैं, ये बड़ी बात है। संगीत सब को प्रिय है, किंतु उस पर बात कम हो पाती है। अमता घराना (दरभंगा घराना) के मल्लिक बंधुगण विलक्षण ध्रुपद गाते हैं। सरकार ने इनकी सुधि ली और आपने उन्हें समालोचन में स्थान दिया, इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। अमता के सभी गायकों को बार-बार सुनने का अवसर मिला है। दरभंगा में रहने के कारण बेटी कनुप्रिया के पहले गुरु पदम् श्री रामकुमार मल्लिक ही हैं। उसके बाद उनके योग्य पुत्रों समित मल्लिक, साहित्य मल्लिक और संगीत मल्लिक से उसे सीखने का सुअवसर मिला। मैं अभ्यास सुन-सुन कर मुदित होता। जब अभ्यास चलता मैं सारा काम छोड़कर अभ्यास सुनता। मल्लिक बंधु अपने शिष्य-शिष्याओं को दिल की गहराई से सिखाते हैं। गुरु-शिष्य परंपरा अभी भी वहाँ जीवित है। पंडित रामकुमार मल्लिक जी को बहुत बहुत बधाई।।
Bilkul sahi kaha aapane sir, sab maa shati ka vardaan aur Guru Kripa hai 🙏♥️
मेरे लिए बहुत जानकारी देनेवाला इंटरव्यू !
Gyanvardhak. Pahli bar mallik pariwar ke sadasy ka interview padha hai. Thoda bahut to janta tha lekin isme kaafi details Hain. Apne students ko bhejta hun. Research ka inspiration milega
यह एक महत्वपूर्ण साक्षात्कार है। इस अर्थ में तो और भी विशेष कि बिहार के अधिकतर लोग इस इसी बात से अपरिचित हैं कि हिंदुस्तानी संगीत या ध्रुपद गायन का कोई घराना इस प्रदेश से भी संबंधित है, अन्यथा लोगबाग़ तो इसे लोकसंगीत की ही मिट्टी मानते हैं। मैंने पंडित जी को एक समारोह में सुन ज़रूर रखा था, लेकिन इस घराने के बारे में इतने विस्तार से बाकियों की तरह मैं भी नहीं जानता था।
बिहार में ध्रुपद गायिकी की यह 13 वीं सक्रिय पीढ़ी है, इस जानकारी के अर्थ में भी यह एक उल्लेखनीय साक्षात्कार है। एक संपादक के रूप में केवल अरुण देव जी ही साहित्य, संगीत, सिनेमा और चित्रकला पर इतनी मौलिक चीज़ें प्रस्तुत कर सकते हैं। इन सामग्रियों की इतिहास-सापेक्षता भी अद्भुत है।
साक्षात्कार-कर्ता अरविंद दास जी को इस शोधपरक इंटरव्यू के लिए बहुत बधाई। ऐसा ही कोई आलेख या साक्षात्कार गया घराने पर भी आना चाहिए।
संक्षिप्त सारगर्भित और नयी जानकारी मेरे लिए। धन्यवाद। – – हरिमोहन शर्मा