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समालोचन

Home » डी. एच. लॉरेंस: शहसवार : हिंदी अनुवाद: आशुतोष दुबे

डी. एच. लॉरेंस: शहसवार : हिंदी अनुवाद: आशुतोष दुबे

मशहूर अंग्रेजी उपन्यासकार डी. एच. लॉरेंस (1885–1930) की कहानी 'द रॉकिंग हॉर्स विनर' १९२६ में प्रकाशित हुई और इसी शीर्षक से इसपर 1949 में फ़िल्म भी बनी. उस समय अपने उपनिवेशों से इकट्ठी की गयी अकूत सम्पत्ति के नशे में झूमते इंग्लैण्ड का मध्यवर्ग सट्टे में धन लगा रहा था. अपने ऐश्वर्य के लिए उसे और धन चाहिए था. विश्व युद्ध और उपनिवेशों में चल रहे स्वाधीनता संघर्ष के कारण ये स्रोत अब सूख रहे थे. इसका असर घातक हुआ और इस कहानी में इसका शिकार एक किशोर बनता है. हिंदी में यह प्रेमचंद का समय है. सामाजिक-आर्थिक रूप से टूटे जर्जर समाज की विडम्बनाओं के चित्रण का समय. बाद में भारत में भी इसी तरह का एक वर्ग पैदा हुआ. ‘गोदान’ में पूंजी के सट्टा तंत्र का भी वर्णन है, जिस पर एक विचारोत्तेजक लेख आलोचक रवि भूषण ने लिखा है. कवि आशुतोष दुबे ने हिंदी में इस कहानी का ‘शहसवार’ शीर्षक से बहुत सुंदर अनुवाद किया है. लगभग एक सदी बाद इस कहानी को पढ़ते हुए गेमिंग ऐपों की भरमार से भी इसे हम आज जोड़ कर देख सकते हैं. प्रस्तुत है.

by arun dev
June 12, 2023
in अनुवाद
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डी. एच. लॉरेंस:  शहसवार : हिंदी अनुवाद: आशुतोष दुबे
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डी. एच. लॉरेंस
शहसवार
हिंदी अनुवाद: आशुतोष दुबे

वह खूबसूरत औरत ज़िन्दगी की अच्छी शुरुआत करने के बावजूद बदकिस्मत थी. हालांकि उसने प्यार की खातिर शादी की थी, लेकिन अब प्यार खाक में मिल चुका था. उसके बच्चे थे, पर उसे लगता कि वे बच्चे उस पर थोप दिए गए हैं. वह उनसे प्यार नहीं कर पाती थी. वे ठंडी निगाहों से उसे देखते रहते, जैसे उसमें कोई नुक्स निकाल रहे हों. उसे भी लगता कि जैसे उसका कोई कुसूर है, जिसे छुपा लेना चाहिए, गो कि वह छुपाने वाली बात क्या थी, यह वह औरत कभी जान नहीं सकी. जब भी  कभी बच्चे मौजूद होते, उसे अपना दिल सख्त होता हुआ महसूस होता, जिससे वह परेशान हो जाती और अपने बच्चों से ऐसा लाड़ जताने लगती, जैसे उनसे बेपनाह प्यार करती हो. सिर्फ़ वही जानती थी कि उसके दिल के बीचोबीच एक सख्त जगह है,  जहाँ किसी के लिए प्यार महसूस नहीं होता, किसी के लिए भी नहीं.

हर कोई उसके लिए कहता – ‘ कितनी अच्छी माँ है, अपने बच्चों को कितना चाहती है ! सिर्फ़ वह और उसके बच्चे जानते थे कि ऐसा कुछ नहीं है. यह बात वे एक दूसरे की आँखों में पढ़ लेते थे.

उनमें एक लड़का था और दो  छटंकी लड़कियाँ. ये सब एक खुशनुमा मकान में रहते थे, जिसमें नौकर चाकर थे. सामने बगीचा था और सारे आस पड़ोस में वे अपने आप में खुद को सबसे बेहतर समझते थे.

हालांकि ये रहते बड़े अन्दाज़ से थे, लेकिन घर में एक फ़िक्र की मौजूदगी हमेशा महसूस करते थे. पैसा कभी भी काफ़ी नहीं रहता था. माँ और बाप दोनों की आमदनी ज़रा सी थी और सामाजिक रुतबे को बनाए रखने के लिए कतई काफी नहीं थी. बाप शहर के किसी दफ्तर में जाता था. हालांकि उसके लिए मौके बड़े अच्छे थे, पर वे हक़ीक़तन कभी अच्छे साबित नहीं हुए. शानोशौकत के अपनी जगह होने के बावजूद, पीस कर रख देने वाली पैसों की कमी अपनी जगह मौजूद थी.

आखिर माँ ने कहा- ‘मैं देखूंगी कि क्या कर सकती हूँ.’ लेकिन वह नहीं जानती थी कि शुरुआत कहाँ से करे? उसने अपने दिमाग पर काफ़ी जोर डाला, इसे-उसे आजमाया, लेकिन कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई. असफलता ने उसके चेहरे पर गहरी लकीरें खींच दीं. बच्चे बड़े हो रहे थे और अब उन्हें स्कूल जाना था. बाप को, जिसके शौक बड़े खर्चीले थे और पसन्द शानदार, लगा कि वह कुछ करने जैसा नहीं कर  पाएगा. माँ भी, जिसे खुद पर बड़ा यक़ीन था, कुछ खास कामयाब नहीं हुई. दरअसल उसके शौक भी उतने ही खर्चीले थे.

और इस तरह उस मकान में कुछ अबोले शब्दों की प्रेतछायाएं मंडराने लगीं- ‘और पैसा चाहिए… और दौलत चाहिए…’ कोई इन शब्दों को ऊंची आवाज़ में नहीं बोलता था, मगर बच्चे इसे हमेशा सुन सकते थे. यह आवाज़ क्रिसमस पर सुनाई देती, जब शानदार खिलौनों से नर्सरी भर जाती. चमकते हुए काठ के घोड़े के पीछे से कोई फुसफुसाता- ‘और पैसा होना ही चाहिए… और …और  …दौलत होनी ही चाहिए !’ और बच्चे लम्हे भर के लिए खेलना बन्द कर सुनने लगते. हर कोई एक दूसरे की आँखों में देख कर समझ जाता कि उसने भी सुन लिया है.

वह फुसफुसाहट अपना सिर झुकाए काठ के उस घोड़े ने भी सुन ली थी. सजी धजी गुलाबी बड़ी सी गुड़िया ने भी, जो तिरछी मुस्कान देती थी, इसे सुन लिया था. लगता था यह सुन कर उसकी मुस्कान और भी टेढ़ी हो गई है. टेडीबियर की जगह आया वह बेवकूफ़ सा पिल्ला इस फुसफुसाहट को सुन कर और भी बेवकूफ लगने लगता था.

लेकिन कोई इसे ऊंची आवाज़ में नहीं बोलता था. जैसे हर कोई बिना ये कहे कि मैं सांस ले रहा हूँ, सांस लेता रहता है- वैसे ही यह फुसफुसाहट भी बिना किसी के कहे, हर जगह मौजूद थी.

‘माँ’, बेटे पॉल ने एक दिन कहा, ‘हमारे पास अपनी कार क्यों नहीं है? हम हमेशा अंकल की कार या टैक्सी क्यों लेते हैं?’

‘क्योंकि हम गरीब हैं’ -माँ ने कहा.

‘लेकिन हमीं क्यों, माँ?’

‘क्योंकि…’ माँ ने धीमे और कड़वाहट भरे स्वर में कहा, ‘ क्योंकि तुम्हारे पिता भाग्यवान नहीं हैं.’

लड़का कुछ देर खामोश रहा.

‘क्या भाग्य का मतलब पैसा होता है माँ?’ उसने कुछ झेंपते हुए पूछा.

‘नहीं पॉल, लेकिन किस्मत ही वो चीज़ है जिससे पैसा आता है…’

‘क्या पिताजी लकी नहीं हैं माँ?’

‘वे तो बहुत बदकिस्मत हैं.’  माँ ने कड़वाहट से कहा. लड़के ने  उसकी ओर उलझन भरी आँखों से देखा – ‘क्यों ?’

‘मैं नहीं जानती. कोई कभी यह नहीं जान पाता कि एक आदमी खुशकिस्मत और दूसरा बदकिस्मत क्यों होता है!’

‘कोई नहीं? क्या कोई नहीं जान पाता ?’

‘शायद ईश्वर जानता हो, पर वह किसी को बताता नहीं.’

‘लेकिन तुम? … तुम भी क्या भाग्यशाली नहीं हो? ‘

‘शादी से पहले सोचती थी कि हूँ. लेकिन अब मैं खुद को अनलकी महसूस करती हूँ.’

‘क्यों?’

‘क्योंकि … ख़ैर छोड़ो!’

बच्चा माँ की तरफ़ देखता रहा, जिसके चेहरे की लकीरों से ज़ाहिर था कि वह उससे कुछ छुपा रही थी.

‘ख़ैर, जो हो, लड़के ने माँ से कहा, ‘मैं भाग्यवान हूँ.’

माँ अचानक हँस पड़ी -‘ कैसे?’

लड़के ने उसकी ओर देखा. उसे पता नहीं था कि यह बात वह क्यों कह बैठा था.

‘मुझे भगवान ने बताया है…’ उसने कुछ ऐंठ कर जवाब दिया.

‘काश, उसने बताया होता…’ एक कड़वी हँसी के साथ माँ ने कहा.

‘उसने कहा है माँ!’

‘वाह!’, माँ ने उस लफ़्ज़ का इस्तेमाल किया, जो अक्सर उसका पति करता था.

लड़के ने देखा कि माँ ने उसका यक़ीन नहीं किया है. इससे वह कुछ नाराज़ हो गया.

 

दो
D H Lawrence Statue, Nottingham University, Highfields Estate, Nottingham

वह अपने तौर पर, अपने बचकाने तरीके से ‘भाग्य’ की तलाश करने लगा. भीतर ही भीतर गुपचुप तरीके से, अपने आप में डूब कर, वह किस्मत की खोज करता रहा. जब दोनों लड़कियां नर्सरी में गुड़ियों के साथ खेलती रहतीं, वह अपने बड़े-से काठ के घोड़े पर बैठ जाता और इतने जोश से उसे चलाता कि लड़कियां बेचैनी से उसकी तरफ़ देखने लगतीं. भयंकर तेज़ी से घोड़ा आगे पीछे जाता. बच्चे के काले घुंघराले बाल हवा में उड़ने लगते और उसकी आँखों में अजीब सी चमक आ जाती. लड़कियों की तो उससे बात करने की हिम्मत भी नहीं होती थी.

जब यह छोटा सा पागल सफर ख़त्म होता, वह घोड़े से उतर आता और उसके सामने, उसके झुके हुए मुँह की ओर देखते हुए खड़ा हो जाता. घोड़े का लाल मुँह थोड़ा खुला हुआ रहता और आंखों में शीशे की सी चमक रहती.

‘अब!’ वह चुपचाप हांफते हुए घोड़े को हुक्म देता, ‘ले चल मुझे वहाँ, जहाँ भाग्य है! ले चल मुझे !’

और वह अंकल ऑस्कर की दी हुई छोटी सी छड़ी घोड़े की गर्दन पर मारता. उसे पता था कि घोड़ा उसे वहाँ ले जा सकता था जहाँ भाग्य है. इसलिए वह वहाँ पहुंचने की उम्मीद में, फिर से घोड़े पर चढ़ कर अपना सफ़र शुरू कर देता. उसे मालूम था कि वह ‘वहाँ ‘पहुँच सकता है.

‘तुम अपना घोड़ा तोड़ डालोगे पॉल!’ आया ने कहा.

‘यह हमेशा इसी तरह सवारी करता है!’, बड़ी बहन ने कहा.

लेकिन उसने  सिर्फ़ ख़ामोशी से उनकी ओर देखा. आया के बस का अब वह नहीं रहा था. उसने लड़के को अपने हाल पर छोड़ दिया.

एक दिन जब वह इसी तरह जोरों से सवारी कर रहा था, उसकी माँ और अंकल ऑस्कर आए. उसने उन लोगों से कोई बात नहीं की.

‘हैलो घुड़सवार! विजेता की सवारी कर रहे हो ?’, अंकल ने पूछा.

‘क्या अब तुम्हारी उम्र लकड़ी के घोड़े पर बैठने की है? तुम अब कोई छोटे बच्चे नहीं रहे, समझे?’, माँ ने कहा.

लेकिन पॉल ने अपनी बड़ी बड़ी बंद आँखों को खोलकर, उनकी तरफ़ अजीब नज़रों से देखा भर. जब वह पूरी रफ़्तार में होता था , किसी से नहीं बोलता था. उसकी माँ ने उसकी ओर फ़िक्रमंद होकर देखा.

आखिरकार उसने अपनी यांत्रिक घुड़सवारी अचानक रोक दी और उतर गया.

‘मैं वहाँ पहुँच गया.’, उसने ऐलान सा किया. उसकी नीली आँखें चमक रही थीं और लंबी टांगें फैली हुई थीं.

‘कहाँ पहुँच गए तुम?’ माँ ने पूछा.

‘जहाँ मैं पहुँचना चाहता था.’ उसने जल्दी से जवाब दिया.

‘अच्छी बात है बेटे, ‘अंकल ऑस्कर ने कहा,’जब तक वहाँ पहुँच न जाओ, रुकना नहीं. वैसे, घोड़े का नाम क्या है?’

‘उसका कोई नाम नहीं है’, लड़के ने कहा.

‘तो क्या उसका नाम बिना काम के चलता है?’

‘वैसे तो उसके अलग-अलग नाम होते हैं. पिछले हफ़्ते उसका नाम सेनसोविनो था.’

‘अरे सेनसोविनो? जिसने एस्कॉट की रेस जीती? तुम्हें उसका नाम कैसे पता चला?’

‘यह बेसेट से हमेशा घुड़दौड़ की बातें करता रहता है.’, बहन ने कहा.

अंकल को जान कर अच्छा लगा कि उनका भांजा रेस की सारी खबरें रखता है. माली का काम करने वाला बेसेट, जिसका दाँया पैर लड़ाई में ज़ख़्मी हो गया था और जिसे यह काम ऑस्कर क्रेमवेल की वजह से ही मिला था, रेस का दीवाना था. वह रेस की घटनाओं पर ज़िन्दा था और बच्चा उसके साथ.

बेसेट से अंकल ने सारी बातें जान लीं.

‘मास्टर पॉल मेरे पास आकर पूछता है तो मैं बताने के सिवा और कुछ नहीं कर सकता, सर.’ बेसेट ने बड़ा गम्भीर चेहरा बना कर कहा, जैसे धार्मिक विषय पर बोल रहा हो.

‘क्या उसने किसी घोड़े पर कभी कुछ लगाया है?’

‘मैं ये बात बताना नहीं चाहता- वह एक अच्छा लड़का है… आप खुद ही उससे क्यों नहीं पूछ लेते? उसे इस सब में मज़ा आता है और शायद वह सोचे कि मैंने उसकी बातें आपको बता दी हैं… बुरा मत मानिएगा सर…’

मामा अपने भांजे को कार में घुमाने ले गया.

‘क्यों पॉल, क्या तुमने कभी किसी घोड़े पर कुछ लगाया है?’

लड़के ने उसकी ओर गौर से देखा.

‘क्यों, आपको क्या लगता है- मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए?’

‘ऐसा बिल्कुल नहीं. मैंने सोचा, शायद तुम मुझे लिंकन के लिए कुछ बता सको.’

कार तेज़ी से अंकल ऑस्कर के हैम्पशायर वाले घर की ओर जा रही थी.

‘पक्की बात?’

‘एकदम पक्की, बेटे!’

‘तो फिर, डैफोडिल!’

‘डैफोडिल? मुझे उसका भरोसा नहीं. मिर्ज़ा के बारे में क्या खयाल है?’

‘मैं केवल विनर को जानता हूँ ‘, लड़के ने कहा, ‘वह डैफोडिल है.’

‘ऐसा?’

कुछ देर चुप्पी रही. तुलनात्मक रूप से डैफोडिल एक कमज़ोर घोड़ा था.

‘अंकल!’

‘हाँ बेटे?’

‘आप ये बात किसी को नहीं बताएँगे? है न! मैने बेसेट से वादा किया है. ‘

‘कम्बख़्त बुड्ढा बेसेट! उसे इस सबसे क्या लेना देना?’

‘हम पार्टनर हैं शुरू से. उसने मुझे मेरे पहले पाँच शिलिंग दिए थे, जो मैंने गवां दिए. .मैंने उससे वादा किया था, पक्का वादा, यह सिर्फ़ मेरे और उसके बीच है. केवल आपने मुझे दस शिलिंग का नोट दिया जिससे मैंने जीतना शुरू किया. इसलिए मैंने सोचा, आप लकी हैं. आप और किसी को नहीं बताएंगे, है न?’

लड़के ने अंकल की ओर अपनी बड़ी, गर्म और नीली आँखों से देखा. अंकल ने बेचैनी से पहलू बदला और फिर हँस दिए.

‘तुम्हारी बात ठीक है बेटे! इस बात को मैं अपने तक ही रखूंगा. डैफोडिल? …उस पर तुम क्या लगा रहे हो?’

‘बीस पौंड के अलावा सब कुछ.’ लड़के ने कहा,’उन्हें मैं रिज़र्व में रखता हूँ.’

अंकल ने सोचा कि यह अच्छा मज़ाक है.

‘अच्छा, तो तुम बीस पौंड रिज़र्व में रख रहे हो, तो फिर लगा कितना रहे हो?’

‘मैं तीन सौ लगा रहा हूँ’, लड़के ने गम्भीरता से कहा-‘ लेकिन ये मेरे और आपके बीच ही रहेगा अंकल! पक्का वादा? ‘

अंकल ज़ोर से हँस पड़े.

‘अच्छी बात… तुम्हारे और मेरे बीच. ‘उन्होंने हँसते हुए कहा, ‘लेकिन तुम्हारे तीन सौ हैं कहाँ?’

‘बेसेट के पास जमा हैं. हम पार्टनर हैं ना!’

‘हूँ … और बेसेट डैफोडिल पर क्या लगा रहा है?’

‘वह मेरी तरह ऊँचा नहीं जा सकता…  शायद डेढ़ सौ लगाए…’

‘क्या, पेनी?’

‘पौण्ड’, बच्चे ने अंकल की ओर ताज्जुब से देखकर कहा,’बेसेट मुझसे भी ज़्यादा रिज़र्व में रखता है.’

आश्चर्य में डूबे अंकल ऑस्कर ख़ामोश हो गए.

उन्होंने बात आगे नहीं बढाई, लेकिन लिंकन रेस में अपने भांजे को साथ ले जाना  तय कर लिया.

‘तो बेटे, मैं मिर्ज़ा पर बीस लगा रहा हूँ और पाँच उस घोड़े पर लगाऊँगा जिसके लिए तुम कहोगे. तुम्हारी पसंद क्या है?’

‘डैफोडिल, अंकल !’

‘नहीं, डैफोडिल के लिए पाँच भी नहीं !’

‘अगर ये पाँच मेरे होते, तो मैं ज़रूर लगाता.’

‘अच्छा, पाँच मेरी और पाँच तुम्हारी तरफ से डैफोडिल पर.’

तीन

बच्चा कभी भी किसी रेस में नहीं गया था. उसकी आँखें नीली आग हो गई थीं. अपना मुँह सख़्त किए वह देखता रहा. उनके सामने एक फ्रेंच आदमी ने लांसलॉट पर पैसा लगाया था. उत्तेजना के मारे पागल होकर, वह अपनी बाँहें ऊपर फेंक-फेंक कर अपने फ्रेंच लहज़े में ‘लांसलॉट, लांसलॉट’ चिल्ला रहा था.

डैफोडिल पहले नम्बर पर आया, लांसलॉट दूसरे पर और मिर्ज़ा तीसरे नम्बर पर.

बच्चा, जिसका चेहरा लाल था और आँखें सुर्ख़, अजब तरीके से चुप था. उसके अंकल पाँच सौ पौंड के चार नोट ले आए. एक के बदले चार.

‘अब इनका क्या करें?’, वे लड़के की आँखों के सामने नोट लहराते हुए चिल्लाए.

‘मैं समझता हूँ कि हम बेसेट से बात करें’, लड़के ने कहा- ‘मेरे पास अब पन्द्रह सौ हैं. बीस रिज़र्व में और बीस ये.’

कुछ पलों तक उसके अंकल उसे देखते रहे.

‘देखो बेटे, तुम बेसेट और उन पन्द्रह सौ के बारे में सीरीयस नहीं हो, है न?’

‘हाँ, मैं हूँ, लेकिन ये सिर्फ़ आपके और मेरे बीच है, पूरी तरह.’

‘हाँ, हाँ, पूरी तरह. लेकिन मुझे बेसेट से बात करनी होगी.’

अंकल पॉल और बेसेट दोनों को एक पार्क में ले गए जहाँ बेसेट ने न केवल पन्द्रह सौ पौण्ड वाली बात की पुष्टि की, बल्कि अंकल के कहने पर, यह रकम ला कर दिखाई भी.

लड़के ने कहा,’ अगर आप बेसेट और मेरे साथ पार्टनर बनना चाहें, तो हम सब पार्टनर बन सकते हैं. बेसेट और मैं दोनों लकी हैं, और आप भी, क्योंकि आप ही के दस शिलिंग से मैंने जीतना शुरू किया था.’

‘अगर मास्टर पॉल आपको पार्टनर बनाना चाहता है तो बन जाइए सर… आपकी जगह मैं होता तो यही करता ‘ – बेसेट ने कहा.

ऑस्कर क्रेसवेल ने इस बारे में सोचा.

‘लेकिन तुम किसी भी घोड़े के बारे में इतना यकीन से कैसे कहते हो?’

‘मुझे नहीं पता. ‘लड़के ने कुछ बेचैनी से कहा.

‘ऐसा लगता है कि इसे ‘ऊपर’ से खबर मिलती है-‘ बेसेट बोला.

अंकल पार्टनर बन गए और जब लेजर की रेस का वक़्त आया, पॉल को ‘लाइवटी स्पार्क’ पर पूरा यक़ीन था. लड़के ने इस पर एक हज़ार, बेसेट ने पाँच सौ, और अंकल ऑस्कर ने दो सौ लगाए. घोड़ा पहले नम्बर पर आया और चूंकि दाँव एक से दस का था, उसने दस हज़ार बना लिए.

‘देखा आपने’, उसने कहा-‘ मुझे उसका पूरा यक़ीन था.’

यहाँ तक कि अंकल तक ने दो हज़ार बना लिए थे.

‘देखो बेटे’…उन्होंने कहा,’ यह सब मुझे नर्वस कर रहा है…’

‘इसकी कोई ज़रूरत नहीं अंकल. अब शायद मुझे लम्बे समय तक कुछ पता न चले.’

‘लेकिन तुम अपनी रकम का करोगे क्या?’, उन्होंने पूछा.

‘ऑफ़ कोर्स, यह मैंने माँ के लिए शुरू किया था,’ लड़के ने कहा,’ वह कहती थी कि पापा के कारण वह भी बदकिस्मत है. मैंने सोचा कि अगर मैं लकी हूँ तो वह फुसफुसाहट बन्द हो सकती है.’

‘क्या? कौन सी फुसफुसाहट ?’

‘हमारे घर की. मुझे इसी वजह से अपने घर से नफ़रत है… आप तो जानते हैं न कि पैसों की हमेशा तंगी रहती है…’

‘जानता हूँ बेटे …जानता हूँ .’

‘लोग माँ से तक़ाज़े करते हैं, है ना?’

‘हाँ ‘

‘और फिर सारा घर फुसफुसाने लगता है… जैसे कोई पीठ पीछे हँस रहा हो… लेकिन अंकल, आप माँ को मत बताइएगा कि मैं लकी हूँ….’

‘क्यों ?’

‘क्योंकि वह मुझे रोक देगी.

‘नहीं बेटे, वह ऐसा नहीं करेगी.’

‘ओह!’, लड़के का बदन अजीब तरीके से ऐंठ गया, ‘मैं नहीं चाहता कि ये सब माँ को मालूम हो.’

‘ऑल राइट सन, हम उसे  कुछ नहीं बताएँगे.’

पॉल ने मामा के सुझाव पर उन्हें पाँच हज़ार पौण्ड दे  दिए, जो उन्होंने वकील के पास जमा करवा दिए. वकील माँ को सूचित करने वाला था कि मां के किसी रिश्तेदार ने उसके पास पाँच हज़ार पौण्ड जमा करवाए हैं जो आने वाले पाँच सालों तक उसके हर जन्मदिन पर उपहार के तौर पर, एक-एक हज़ार पौण्ड के रूप में मिलते रहेंगे.

आखिर माँ का जन्मदिन भी आया. जब वह पत्र पढ़ने लगी, पॉल ने उसके चेहरे की ओर देखा.

वकील का पत्र पढ़ते-पढ़ते माँ का चेहरा सख्त और भावशून्य हो गया. उसने ख़त को दूसरे पत्रों के ढेर में छुपा दिया और इस बारे में एक लफ़्ज़ भी नहीं कहा. फिर माँ शहर की ओर चली गई.

उसी दोपहर मामा आए. उन्होंने बताया कि पॉल की माँ ने वकील से लम्बी मुलाकात करके चाहा है कि चूंकि वह कर्ज़ में डूबी है, इसलिए उसे पाँच हजार पौण्ड इकट्ठे ही दे दिए जाएँ.

‘आप क्या सोचते हैं मामा?’

‘मैं यह तुम्हीं पर छोड़ता हूँ बेटे.’

‘तो फिर उसे दे दीजिए. हम दूसरे पाँच हज़ार से और हासिल कर लेंगे.’, लड़के ने कहा.

‘याद रखो हाथ लगी एक चिड़िया, झाड़ी में छुपी दो चिड़ियों से बेहतर होती है.’ मामा ने समझाया.

‘लेकिन मुझे पूरा यक़ीन है कि मैं ग्रैंड नेशनल या लिंकनशायर, या फिर डर्बी में से किसी भी रेस के बारे में पता कर लूँगा,’ पॉल ने कहा.

अंकल ने एग्रीमेंट पर दस्तखत कर दिए और पॉल की माँ के हाथ में एकमुश्त पाँच हजार पाउंड्स आ गए.

तब एक अजीब बात हुई. घर की वे आवाज़ें , जैसे यकबयक पागल हो गईं.

घर में नया फर्नीचर आया और पॉल के लिए ट्यूटर भी रख दिया गया. वह सचमुच स्कूल जाने लगा. जाड़ों में फूल खिल गए और शानोशौकत की वही बहार आ गई, पॉल की माँ जिसकी आदी थी.

लेकिन छुईमुई और बादाम की टहनियों के पीछे से और रंगबिरंगे कुशनों के ढेर के नीचे से, वे आवाज़ें एक किस्म के उन्माद में थरथराती और चीखती रहीं -‘और पैसा चाहिए… और दौलत चाहिए… अभी… बिल्कुल अभी…और … और.…’

इन आवाज़ों ने पॉल को और डरा दिया. अपने ट्यूटर से वह लैटिन और ग्रीक सीखता रहा, लेकिन उसका ख़ासा वक़्त बेसेट के साथ ही गुज़रता था. ‘ग्रैंड नेशनल’ हो गई और उसे कुछ ‘मालूम’ नहीं हुआ. उसने सौ पौंड खो दिए.

गर्मियां आ चुकी थीं. ‘लिंकन’ के लिए उसे छटपटाहट थी. लेकिन लिंकन तक के लिए उसे कुछ पता नहीं चला और वह पचास पौंड खो बैठा. उसकी आँखों में अजीब वहशत आ गई, जैसे उसके भीतर कोई विस्फोट होने वाला हो.

‘छोड़ो भी बेटे, इसकी फ़िक्र मत करो.’ अंकल ऑस्कर ने इसरार किया, लेकिन लड़के ने जैसे उनकी बात सुनी ही नहीं.

‘मुझे डर्बी के बारे में जानना ही है. जानना ही होगा.’ लड़के ने दोहराया. उसकी बड़ी नीली आँखें, एक तरह के पागलपन में जल रही थीं.

उसकी माँ ने गौर किया कि वह कितनी सख्त मेहनत कर रहा था.

‘बेहतर हो, बजाय और रुकने के, तुम सी-साइड चले जाओ.’ उसने  फिक्रमंद नज़रों से बेटे को देखते हुए कहा.

लड़के ने अपनी विलक्षण आँखें ऊपर उठाईं. ‘मैं डर्बी के रेस से पहले नहीं जा पाऊंगा  माँ ‘, उसने कहा,’ नहीं जा पाऊंगा.’

‘क्यों नहीं! अगर तुम यही चाहते हो तो सी-साइड से अपने मामा के साथ डर्बी देखने जा सकते हो. इसके अलावा, मैं सोचती हूँ कि तुम्हें रेस का बड़ा खयाल रहता है. ये बुरा लक्षण है. मेरा खानदान  जुआरी खानदान रहा है. जब तक तुम बड़े नहीं हो जाते, जान नहीं पाओगे कि इस वजह से कितना नुकसान हुआ है. … लेकिन नुकसान हुआ है. मुझे बेसेट की छुट्टी करनी पड़ेगी और मामा से कहना पड़ेगा कि जब तक तुम समझदारी से काम लेने का वादा नहीं करते, तुमसे रेस के बारे में बातें न करें… तुम सी-साइड जाओ और सब भूल जाओ. कितने बेचैन हो गए हो तुम …’

‘अगर तुम डर्बी तक मुझे कहीं न भेजो, तो जो कहोगी, वही करूँगा माँ!’, लड़के ने कहा.

‘कहाँ से न भेजूँ ? इस घर से?’

‘हाँ’, उसने माँ की ओर देखते हुए कहा.

‘वाह रे लड़के ! अचानक तुम्हें इस घर की इतनी परवाह क्यों होने लगी? मैं नहीं जानती थी कि तुम इसे इतना चाहते हो.’

उसने बिना कुछ कहे माँ की ओर देखा. उसके रहस्य में भी एक रहस्य था. कुछ ऐसा जो उसने बेसेट और अपने मामा तक को नहीं बताया था.

पर उसकी माँ कुछ देर तक अनिर्णय की स्थिति में खड़ी रही और फिर कुछ उदास होकर बोली-‘ ठीक है,  अगर तुम नहीं चाहते तो मत जाओ, लेकिन मुझसे वादा करो कि अब अपनी हालत  ऐसी नहीं करोगे. वादा करो कि अब घुड़दौड़ और वहाँ की बातों के बारे में ज़्यादा नहीं सोचोगे.’

‘अरे नहीं, ‘ लड़के ने सहजता से कहा,’ मैं उनके बारे में ज़्यादा नहीं सोचूँगा, माँ. तुम्हें फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं. तुम्हारी जगह मैं होता तो बिल्कुल फ़िक्र न करता.’

‘अगर तुम मेरी जगह होते और मैं तुम्हारी ‘, माँ ने कहा, ‘तो पता नहीं हमें क्या करना चाहिए था.’

पॉल के रहस्यों का रहस्य वह काठ का घोड़ा था, जिसका कोई नाम नहीं था. आया के उसे अपने हाल पर छोड़ देने के कारण  वह अपने काठ के घोड़े को घर की छत पर अपने बेडरूम में ले गया था.

‘यकीनन अब तुम्हारी इस घोड़े पर बैठने की उम्र नहीं रही ‘- उसकी माँ ने फटकारा था.

‘ऐसा है माँ, जब’ तक मेरे पास सचमुच का घोड़ा नहीं आ जाता, मुझे अपने पास कोई जानवर रखना अच्छा लगता है.’ ये उसका अजीब सा जवाब था.

वह हँसी थी- ‘क्या वह तुम्हारा साथ देता है?’

पॉल ने कहा था-‘हाँ, वह बहुत अच्छा है और जब मैं वहाँ होता हूँ, वह मेरा साथ देता है.’

इस तरह अपनी खास मुद्रा में कैद वह भद्दा सा घोड़ा लड़के के बेडरूम में था.

रेस नज़दीक आ रही थी और लड़का अधिक से अधिक तनावग्रस्त होता जा रहा था. वह अपने से कही गई बात को बमुश्किल सुनता और उसकी आँखें अजीब सी लगतीं. वह कमज़ोर भी दिखाई देता. उसकी माँ  को कभी-कभी अचानक उसके बारे में बेचैनी होने लगती. कभी-कभी आधे घन्टे तक अचानक उसे लड़के के बारे में बहुत तकलीफ़देह सी चिन्ता होने लगती. वह उसी वक़्त उसके पास आकर जानना चाहती कि वह खैर से तो है.

डर्बी से दो रातें पहले, वह शहर में एक बड़ी दावत में मौजूद थी, जब अपने बेटे के बारे में फ़िक्र के उसी दौरे ने उसके दिल को यूँ जकड़ा कि वह बोल तक नहीं पा रही थी. वह पूरी ताकत से उस अहसास से जूझती रही, क्योंकि वह कॉमन सेंस में यक़ीन रखती थी. लेकिन वह अहसास बड़ा जबर्दस्त था. नाचना छोड़कर उसे नीचे जाकर, गाँव में फ़ोन करना पड़ा. बच्चों की आया रात में इस तरह फ़ोन आने से ताज्जुब में पड़ गई.

‘बच्चे ठीक से हैं ना मिस विल्मोट ?’

‘हाँ, अच्छी तरह से हैं.’

‘और पॉल ? वो तो ठीक है ना?’

‘वह तो फौरन सोने चला गया. क्या मैं दौड़कर उसे देख आऊं?’

‘नहीं,’ पॉल की माँ ने अनिच्छा से कहा, ‘रहने दो, तकलीफ़ मत करो. ठीक है, हम जल्दी ही लौट आएंगे.’ वह नहीं चाहती थी कि उसके बेटे की निजता में दखलन्दाजी हो.

तकरीबन एक बजे होंगे, जब पॉल के माता पिता घर लौटे. सन्नाटा था. पॉल की माँ ने कमरे में जाकर सफ़ेद फर उतार दिया. नौकरानी से पहले ही कह दिया था कि वह इंतज़ार न करे. नीचे व्हिस्की और सोडा मिलाते हुए उसके पति की आवाज़ आ रही थी.

और तब, अपने दिल में अजीब सी बेचैनी के कारण वह चुपचाप ऊपर बेटे के कमरे की तरफ चढ़ने लगी. बिना आवाज़ के, वह ऊपरी बरामदे में बढ़ चली.

क्या कोई मद्धम आवाज़ आ रही थी? कैसी थी ये?

दरवाज़े के बाहर, सुनती हुई, सख़्त मांसपेशियों के साथ वह खड़ी रही. उसका दिल थम गया था.

यह एक ध्वनिहीन शोर था, लेकिन तेज़ और ताक़तवर. कोई बड़ी सी चीज़ बेहद तेज़ गति में थी. क्या था यह ? उसे लगा कि वह इस आवाज़ को पहचानती है.

लेकिन वह ठीक से याद नहीं कर पा रही थी. कह नहीं सकती थी कि यह क्या था. और किसी पागलपन की तरह आवाज़ बढ़ती ही जा रही थी.

डर और फ़िक्र के मारे बेहाल होकर, उसने धीरे से दरवाज़े का हैंडल घुमाया.

कमरे में अंधेरा था. फिर भी खिड़की के पास की जगह में, वह कोई चीज़ आगे-पीछे कूदते हुए देख सकती थी. वह हैरत और दहशत में देखती रही.

फिर अचानक उसने लाइट का स्विच दबाया और अपने बेटे को देखा, जो हरे पाजामे में, अपने काठ में घोड़े पर,बेतहाशा रफ़्तार से सवारी कर रहा था. एक झपाके के साथ रोशनी लड़के, घोड़े  और खुद उस पर जा गिरी.

‘पॉल ! ‘ वह चिल्लाई, ‘यह तुम क्या कर रहे हो?’

‘वह मलाबार है.’ वह अपनी दमदार, अजीब सी आवाज़ में चीखा- ‘वह मलाबार है.’

जैसे ही उसने काठ के घोड़े को रोका, एक अजीब, बेमानी से लम्हे के लिए उसकी आँखें लहकीं, फिर वह धड़ाम से फ़र्श पर ढेर हो गया. माँ का यातनाग्रस्त मातृत्व अचानक एक सैलाब की तरह उमड़ पड़ा और वह उसे सँभालने दौड़ पड़ी.

लेकिन वह बेहोश था और किसी दिमागी बुखार से बेहोश ही रहा. वह बोलता रहा और करवटें बदलता रहा और उसकी माँ पथराई हुई सी, उसके पास बैठी रही.

‘मलाबार! वो मलाबार है! बेसेट, बेसेट, मैं जान गया हूँ ! वो मलाबार ही है.’

इस तरह बच्चा चिल्लाता रहा और काठ के घोड़े की सवारी करने के लिए उठने की कोशिश करता रहा.

‘मलाबार से उसका क्या मतलब है?’ माँ ने पूछा.

घबराए हुए पिता ने कहा, ‘मैं नहीं जानता.’

यही सवाल माँ ने अपने भाई से किया.

‘यह डर्बी में दौड़ने वाला एक घोड़ा है.’ जवाब मिला.

और, खुद को रोकने के बावजूद, ऑस्कर क्रेसवेल ने ये बात बेसेट से कही और एक के चौदह पर, हज़ार पौण्ड्स मलाबार पर खुद लगा दिए.

चार

बीमारी का तीसरा दिन अहम था. वे सभी किसी फ़र्क की प्रतीक्षा में थे. लड़का, अपने लम्बे, घुंघराले बालों के साथ, लगातार तकिए पर सिर रखे तड़प रहा था. न तो वह सोया, न ही  उसे होश आया. उसकी आँखें, नीले पत्थरों की सी हो गईं थीं. बैठी हुई उसकी माँ को लगा, कि सचमुच उसका दिल किसी पत्थर में बदल गया है.

दबे पाँव माली कमरे में आकर चुपचाप बिस्तर के बगल में, अपनी चमकती हुई छोटी छोटी आँखों से तड़पते, मरते हुए बच्चे को देखता रहा.

‘मास्टर पॉल!’ वह फुसफुसाया, ‘मास्टर पॉल, मलाबार अव्वल आया है- एकदम  पहले नम्बर पर. मैंने वही किया जो तुमने कहा था. तुमने सत्तर हज़ार पौण्ड कमा लिए हैं और अब तुम्हारे पास अस्सी हजार से ज़्यादा हैं. मलाबार जीत गया है, मास्टर पॉल !’

‘मलाबार! मलाबार! मैंने कहा था ना माँ? क्या मैं खुशकिस्मत हूँ माँ? अस्सी हज़ार पौण्ड से भी ज़्यादा! मलाबार जीत गया… मैं जानता था… अगर मैं यक़ीन होने तक अपने घोड़े को चलाऊँ, तो तुम जितना चाहो बेसेट, उतना ऊँचे  जा सकते हो… क्या तुमने अपना सब कुछ लगा दिया था?’

‘मैंने एक हज़ार लगाए थे, मास्टर पॉल.’

‘मैंने तुम्हें कभी बताया नहीं माँ, लेकिन अगर मैं अपने घोड़े पर सवारी करूँ और ‘वहाँ’ पहुँच जाऊँ, तो मुझे पक्का पता चल जाता है- एकदम पक्का. माँ… मैं भाग्यवान हूँ. क्या यह बात मैंने तुम्हें बताई है?’

‘नहीं, तुमने कभी नहीं बताई.’ माँ ने कहा.

लड़का रात को मर गया.

और जब वह बेजान वहाँ पड़ा हुआ था, उसकी माँ ने अपने भाई की आवाज़ को, खुद से कहते हुए सुना -‘अच्छा ही हुआ हेस्टर, जो वह उस जीवन से चला गया, जहाँ एक विजेता की तलाश करने के लिए, वह काठ के घोड़े की सवारी करता था.’

 

आशुतोष दुबे (1963)

कविता संग्रह : चोर दरवाज़े से, असम्भव सारांश, यक़ीन की आयतें, विदा लेना बाक़ी रहे, सिर्फ़ वसंत नहीं.
कविताओं के अनुवाद कुछ भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी और जर्मन में भी. अ.भा. माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, केदार सम्मान, रज़ा पुरस्कार,वागीश्वरी पुरस्कार और स्पंदन कृति सम्मान.
अनुवाद और आलोचना में भी रुचि. 
अंग्रेजी का अध्यापन.

सम्पर्क:
6, जानकीनगर एक्सटेन्शन,इन्दौर – 452001 ( म.प्र.)
ई मेल: ashudubey63@gmail.com

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Comments 5

  1. ममता कालिया says:
    2 years ago

    d h lawrence की कहानी का बहुत पुरअसर अनुवाद हुआ है।लड़के के विश्वास की गहराई हमें अंदर तक मरोड़ देती है

    Reply
  2. Hemant Deolekar says:
    2 years ago

    एक अद्भुत कहानी। पढ़ते वक़्त हर पल एक सिहरन दौडती है। पाठक के मन में हर वक़्त कोई बेचैनी, कोई बुरा खयाल मंडराते रहता है। अंत की पंक्ति बहुत मानीखेज़ है। कवि आशुतोष जी ने बहुत सुंदर अनुवाद किया है। बहुत शुक्रिया इतनी मार्मिक कहानी पढवाने के लिये।

    Reply
  3. Sumit Tripathi says:
    2 years ago

    बहुत अच्छा है कि ऐसी बेहतरीन कहानियों का अनुवाद हो रहा है। लॉरेंस तो हर साहित्यिक विधा में पारंगत थे। आशुतोष जी को धन्यवाद और समालोचन को भी।

    Reply
  4. Madan Pal Singh says:
    2 years ago

    धन्यवाद आशुतोष जी, इस कहानी को पढ़वाने के लिएँ। अच्छा अनुवाद बन पड़ा है और शब्दों का चुनाव भी। आशा है दुसरे अनुवाद भी पाठकों के सामने आते रहेंगे।

    Reply
  5. कुमार अम्बुज says:
    2 years ago

    अच्छी कहानी का चयन।
    अच्छा, प्रवाही अनुवाद।

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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