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Home » तिशानी दोषी की कविताएँ: अनुवाद: रेखा सेठी

तिशानी दोषी की कविताएँ: अनुवाद: रेखा सेठी

भारतीय अंग्रेजी लेखकों में तिशानी दोषी उभरती हुयी शख़्सियत हैं, ‘गर्ल्स आर कमिंग आउट ऑफ द वुड्स’ उनका नवीनतम कविता संग्रह है. उनके दो उपन्यास भी प्रकाशित हो चुके हैं. उनकी कुछ कविताओं का हिंदी अनुवाद सुपरिचित लेखिका रेखा सेठी ने किया है. इन कविताओं में स्त्री होने की तीखी और धारदार अनुभूति आपको मिलेगी. हिंदी में लिखी जा रही स्त्री केन्द्रित कविताओं से भी इनकी तुलना की जानी चाहिए. ‘प्यार की कविता’ अलग से ध्यान खींचती है.

by arun dev
August 13, 2021
in अनुवाद
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तिशानी दोषी की कविताएँ: अनुवाद: रेखा सेठी
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तिशानी दोषी की कविताएँ
अनुवाद: रेखा सेठी

 

लड़कियाँ जंगल से बाहर आ रही हैं
Girls are coming out of the Woods

लड़कियाँ जंगल से बाहर आ रही हैं
चोगों और टोपों में लिपटीं
लोहे की छड़ें और मोमबत्तियाँ उठाएँ
और लिए हुए असंख्य घाव
जो इकट्ठे किए उन्होंने
समय से पहले उगी घास के फैले मैदानों पर
और शहर की बसों पर, मंदिरों, और बार में

लड़कियाँ जंगल से बाहर आ रही हैं
अपने होठों पर ‘जाँघिया’ कसे
कुछ ऐसी आवाज़ करती हुईं,
नामुमकिन था जिसे सुनना.
क्या दुनिया भी बोल रही है?
क्या सच में पूछना होगा,
किसी को सम्मान से विश्राम देने का क्या अर्थ है?

लड़कियाँ जंगलों से बाहर आ रही हैं
उठाए ऊपर अपनी टूटी टाँगें, खुली हुई जाँघों से रिसते गोपनीय रहस्य
वे सारे झूठ जो धीरे से फुसफुसाए गए
अजनबियों द्वारा-
तैराकी प्रशिक्षक और अंकल,
खासतौर पर उन अंकलों द्वारा
जिन्होंने कहा खुलना आसान होगा, एकदम हल्के से
उन्होंने गाड़ दी गोलियाँ उनकी छातियों में
और झोंक दिए उनके सुंदर मुखड़े जलती हुई आग में
जिन्होंने खींचकर मिट्टी
उनकी पसलियों से
उन्हें साफ कर सजाए उनके ताबूत जंगली गुलाबों से

लड़कियाँ आ रही हैं जंगल से बाहर
साफ करतीं अपनी ज़मीन, अपनी कहानियाँ बिछाने
वे लड़कियाँ भी जो नंगी पाई गईं नालों और कुओं में
जो भुला दी गईं उपेक्षित दुछत्तियों पर और दफना दी गईं
किसी और शताब्दी की तलछट-सी, नदी की गहराइयों में
वे सरक आई हैं बाहर
बचपन के पर्दों के पीछे से
अपनी चाँदी की गुलाबी देह के वज़न से
पानी को धकेलतीं, उदासी हटातीं
यादों के दागों को अपने पंखों से चीरतीं

लड़कियाँ आ रही हैं जंगलों से बाहर
जैसे आते हैं पक्षी खिड़कियों पर सुबह गाते-ठकठकाते
जब तक कि तुम्हें सुनाई न दे
काँच से टकराना उनके छोटे से दिल का
उस आवाज़ का उजला-सा दु:साहस
भिड़ना और मिटना
लड़कियाँ आ रही हैं जंगलों से बाहर
वे आ रही हैं, वे आ रही हैं.

 

चलती हुई औरत के लिए आह्वान गीत
An Ode to The Walking Woman

बैठो –
थक गई होगी चलते-चलते.
जूझती अँधेरों से
अपने को खोते हुए
इस तरह:
थकान से छीजती
तांबई पसली.
बैठो –
विश्वास करने को
अभी बाकी है बहुत कुछ
जैसे सभ्यताएँ
जीवन और प्रेम.
और वे पूर्वज
जो बहते हैं चुपचाप
नदी की शिराओं में
लाल-पृथ्वी के गाँवों में
इतिहास का पालना लिए
मिथकों की बाहों के झूले में.
लेकिन सुनो,
क्या होगा अगर उमड़ आये
उस पानी का सैलाब
तुम्हारे चमकते शहर के किवाड़ धकेलता?
चलोगी क्या तुम
उस पानी के किनारे तक
पैरों के नीचे महसूस कर सको थिरकन
मुअनजदाड़ो की नर्तकी
चूड़ियों भरी बाहें
लाल पारे से होंठ

टेराकोटा के पैरों पर खड़ी
हड़प्पा की पाग बँधी देवी माँ

बेबाक अंधियारे में
छोटे-से वक्ष के भीतर
जोर से भींचे अपना बड़ा-सा दिल
आर्टेमिस, इनाणा, इस्थर, साइबेले
पुकारती हैं
‘बिटिया
कहाँ गए वे अन्न के भंडार
बड़े-बड़े हमाम?
फिर से नहीं जी उठोगी क्या
आलिंगन में बाँधे आकाश,
दुनिया को पाने फिर से!’

 

जब तक थी मैं एक कवि
When I was still a poet

जब तक थी मैं एक कवि
देखा करती थी नदियों के सपने
फूलों के नाम हुआ करते थे
और इरादे भी
घावों के दाग से दिखते
छोटे पंछी
बनाते थे घोंसले
आसमान की अंगिठियों में.
अब जब मैंने
छोड़ दिया सब
किशमिश के छिलकों-सी
सिकुड़ती है, सूखी दुपहरी.
चले आते हैं चोर
भौंकते हैं कुत्ते
फूट पड़ता है प्यार
जैसे मिट्टी से
लाल गाजर.

पेंटिंग: K.S. Kulkarni

वह औरत
That Woman

वह औरत फिर यहाँ आन पहुँची है
उसने ढूँढ़ लिया है रास्ता
सीढ़ियों के नीचे से
सदियों से करती रहीं विलाप
रुदन-गीत गातीं
खोए हुए पुरुषों के बारे में,
खोता हुआ सौंदर्य,
अपमान.

अब लौट आई है वह दुनिया में
ट्रैफिक की बत्तियों पर रूकती
पेड़ों के साए में
पार्लर की तरफ दौड़ती
छिपाने, अपने चेहरे पर उभर आई दरारें.

‘उस औरत जैसी मत होना’
मेरी माँ ने कहा.
इससे मतलब था उनका
वह औरत मत होना
जो ब्याह नहीं करती
या नहीं जनती बच्चे
वह औरत जो फैला देती है टाँगें
जो पिटती है, नहीं संभाल पाती
अपना दुख या अपना ड्रिंक
वह औरत मत बनना.

लेकिन वह औरत और मैं
सालों से
साथ चलते आए हैं
जैसे पक्षियों का जोड़ा
मचलता हो पानी की सतह पर
हर दम, हल्के से
उस पागलपन के खुल जाने के करीब
हमारी देह के स्याह तल
अलग नहीं थे
हमारी परछाइयों से.

 

मैंने पाया एक गाँव और उसमें थीं हमारी सभी गुमशुदा औरतें
I found a village and in it were all our missing women
(मार्गरेट मैसकरेनहास के लिए)

मैंने पाया एक गाँव और उसमें थीं हमारी सभी गुमशुदा औरतें
बंदूकें तानें पक्षियों के सिर

सुना था उन्होंने, शुरू हो गया है मतदान
चल रहा है जो बरसों से उनके बिना ही

जानती थीं वे गैस सिलेंडर और बाइसिकल की रिश्वत के बारे में
जो दी जाती रही
उनकी बहनों, दादी-नानी, सभी को

मतदान के बदले धान की बोरियाँ समेटते
नाराजगी या नाखुशी नहीं दिखाई उन्होंने

छोड़ दिया अपना सारा सोना
मंगोलिया के युद्ध की राजकुमारी के उत्तराधिकारियों के लिए
जिसके डीएनए का कुछ अंश था उनके भीतर भी

मैंने पाया एक गाँव, एक गणतंत्र
छोटे से द्वीप-देश के बराबर जिसका था इतिहास

अपने ही नरसंहार का
वहीं थीं हमारी सारी गुमशुदा औरतें

रजिस्ट्रार के दफ्तरों तक भेज रही थीं
अपने होने के प्रमाण
जन्म और पूरी तरह मृत न होने के प्रमाण-पत्र

इसके प्रत्युत्तर में मिला उन्हें
डिब्बे में मकड़जाल और पाँचा

पाँचा जो छानता रहा गन्ने के खेत
अकस्मात निकाल कर फेंक दिए गए
खोए हुए गर्भाशयों के लिए

अधिष्ठा बना मकड़जाल का डिब्बा
अजीब-सी उलझन जताता रहा

जैसे रेल पर उलटे बैठे ज़िंदगी की गाड़ी बढ़ती जाए तुमसे दूर
जबकि तुम करते रहे कामना उससे आगे बढ़ने की

भाग्यवादी नहीं थीं वे. कहने को था
भविष्य की थकान और मिट जाने के संकट का सिलसिला भर

माई-ताई के कई घूँट भर कर
मैंने पाया एक गाँव पावन वृक्ष वाला

अपने शरणार्थियों से मुक्त
जिसकी टहनियों में लटकी थीं
हमारी गुमशुदा औरतें

अपने ही पार-पत्रों की रंगीन फोटो जैसी

अब सुनो
औरतें नहीं हैं पक्षी या चूज़े या पंखों वाली कुछ और
औरतें जानती हैं हवा की आवाज़

कैसे रगड़ती है तुम्हारी त्वचा से अपनी गदराई जाँघें
घर की आवाज़ खिंची जाती पानी के निकास में

गड्ढा, गुफा, चोर-बालू, भूकंप
सामूहिक रूप से गायब हो जाने के कई तरीके

जैसे कि बंदूक चूक जाए अपना निशाना
जैसे कि दो करोड़ दस लाख औरतें बस यूँ ही
हो जाएँ गायब.

(*2019 में एक अनुमान के अनुसार दो करोड़ दस लाख औरतें अपने मताधिकार से वंचित कर दी गईं क्योंकि मतदाता सूचियों में उनके नाम नहीं थे.
(पांचा- rake, जमीन साफ़ करने का औज़ार जिसमें पांच दांत होते हैं)

 

पेंटिंग: K.S. Kulkarni

प्यार की कविता
Love Poem

अंततः हम खो देंगे एक-दूसरे को
किसी बात के लिए
मैं चाहूँगी बात कोई बड़ी हो
मृत्यु या आपदा

लेकिन हो सकता है ऐसा बिल्कुल न हो
हो सकता है तुम यूँ ही चले जाओ इक सुबह
बहुत प्यार करने के बाद
कुछ सिगरेट खरीदने और फिर कभी न लौटो.
या फिर मैं ही किसी और के प्यार में पड़ जाऊँ.
यह भी हो सकता है कि
धीरे-धीरे होने लगें एक-दूसरे से उदासीन हम
जैसे भी हो
ऐसा होने की संभावना का बोझ-

इसे सहना
सीखना होगा हमें
खो देंगे हम एक-दूसरे को
किसी बात के लिए.
तो क्यों न अभी से शुरू करें
जबकि तुम्हारा माथा
ठहरा है गोल चाँद-सा मेरी गोद में
समंदर किनारे के बालू तट की आवाज़ें
बेमानी कर रहीं सब कुछ
कुत्ते बिला रहे हैं

दक्षिण भारत की इस रात में
क्यों न पहुँचें हम उस सीवन तक
और उधेड़ दें उसे थोड़ा
ताकि शुरू हो सके उसका खुलना

बाद में कभी राह चलते सामना हो जाने पर
नज़रें चुरानी होंगी हमें
जब बंद कर चुके होंगे हम अपनी नज़दीकियों के
अनादृत टुकड़े बेडरूम के किन्हीं दराज़ों में

हमारी देह की खुशबू बीत रही होगी
जैसे बीत जाती है खुशबू मुरझाए फूलों की
क्या कहकर पुकारेंगे उसे
वह प्यार तो नहीं रहेगा?

______________

तिशानी दोषी

बहुमुखी प्रतिभा की धनी, तिशानी दोषी अंग्रेज़ी की युवा कवयित्री हैं. कवि, लेखक और पत्रकार के रूप में शब्द की साधना के साथ-साथ वे सुर, लय और ताल की साधिका भी हैं. उनका जन्म 1975 में मद्रास में हुआ. उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर उपाधि अमरीका की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी से प्राप्त की. कुछ समय लंदन में विज्ञापन की दुनिया में काम करने के बाद 2001 में वे भारत लौट आईं और आधुनिक नृत्य शैली की प्रसिद्ध नृत्यांगना चंद्रलेखा जी के साथ नृत्य की दुनिया में शामिल हो गईं. नृत्य की लय और स्थिरता ने उनके लेखन को भी एक अतिरिक्त आयाम दिया. उनका अद्यतन काव्य-संग्रह है– ‘गर्ल्स आर कमिंग आउट ऑफ द वुड्स’. उनके पहले कविता संग्रह ‘कंट्रीस ऑफ द बॉडी’ को 2006 में ‘फॉरवर्ड पोइट्रि प्राइज़’ से सम्मानित किया गया. ‘प्लेज़र सीकर्स’ तथा ‘स्मॉल डेज़ एंड नाइट्स’ उनके चर्चित उपन्यास हैं. उनकी रचनाएँ स्त्री, स्त्री-देह, हिंसा और प्रतिरोध के विमर्श पर आधारित हैं.

संप्रति: न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के आबू धाबी कैम्पस में साहित्य तथा रचनात्मक लेखन की विज़िटिंग एसोसिएट प्रोफेसर.
वेबसाइट : www.tishanidoshi.com

रेखा सेठी

डॉ. रेखा सेठी दिल्ली विश्वविद्यालय के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज में प्राध्यापक होने के साथ-साथ एक सक्रिय लेखक, आलोचक, संपादक और अनुवादक हैं. उन्होंने 5 पुस्तकें लिखीं हैं, 7 संपादित की हैं तथा एक कविता संकलन का अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद किया है. उनकी अद्यतन प्रकाशित पुस्तकों में हैं-‘स्त्री-कविता पक्ष और परिप्रेक्ष्य’ तथा ‘स्त्री-कविता पहचान और द्वंद्व’. उनके लिखे लेख व समीक्षाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं. राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों तथा साहित्य उत्सवों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही है. उन्होंने सुकृता पॉल कुमार, के. सच्चिदानंदन, संजुक्ता दासगुप्ता, लक्ष्मी कण्णन सहित अनेक अंग्रेज़ी कवियों की कविताओं के अनुवाद किए हैं. इन दिनों वे समकालीन अंग्रेज़ी स्त्री कवियों के अनुवाद में संलग्न हैं.

ई-मेलः reksethi22@gmail.com /फ़ोन: 9810985759

Tags: तिशानी दोषीरेखा सेठी
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Comments 10

  1. Sushil Manav says:
    4 years ago

    बेहतरीन भावानुवाद. तिशानी की कविताओं से हिंदी भाषी लोगों को परिचित कराने के लिये रेखा जी और अरुण जी का आभार.

    Reply
  2. Manjula chaturvedi says:
    4 years ago

    बहुत सुंदर और सार्थक अनुवाद। मार्मिक रचनायें और कहन भी कुछ अलग।धन्यवाद।

    Reply
  3. Anonymous says:
    4 years ago

    काव्यानुवाद इतनी सहज हुई है कि मूल कविता से आस्वाद मिल रहा है । बहुत सुंदर कविताएँ।

    Reply
  4. अच्युतानंद मिश्र says:
    4 years ago

    सुंदर और भावपूर्ण कविताएं।तिशानी दोषी की कविताएं अपने समय को मार्मिक और संवेद्य कहन में ढालती हैं। हिंदी अनुवाद में ये कविताएं हिंदी की समकालीन कविताओं का ही बहुआयामी पाठ लगती हैं । इतने बेहतरीन अनुवाद के लिए रेखा सेठी जी को बहुत बधाई।भाई अरुण देव और समालोचन का भी बहुत आभार ,इन कविताओं तक पहुंचाने के लिए।

    Reply
  5. Vishal Kapoor says:
    4 years ago

    जैसा कि आपने कहा..स्त्री होने की तीखी और धारदार अनुभूति..अज़ल से औरतों के साथ घर में और बाहर होते आये ज़ुल्मों का बारीक़ मुआयना…बेहतरीन अनुवाद के लिये रेखा जी को शुक्रिया

    Reply
  6. Anonymous says:
    4 years ago

    सुन्दर अनुवाद। बहुत ही उम्दा कविताएँ। आपके ज़रिए इतनी अच्छी कविताएँ पढ़ने को मिली। आपका बहुत आभार।

    Reply
  7. Madhu Bala joshi says:
    4 years ago

    Anuvad apne aap mein maulik rachnaon se hain. Bahut sundar!

    Reply
  8. Anonymous says:
    4 years ago

    सुंदर चित्रों बिम्बों की कविताएं,बिम्बों के आलोक में औरत तस्वीर
    बेहद संजीदा है।

    Reply
  9. नंदकुमार कंसारी says:
    4 years ago

    बहुत बेचैन और रोंगटे खड़े करनी वाली अद्भुत कविताएं.

    Reply
  10. शालीन says:
    4 years ago

    सुंदर अनुवाद, सुंदर कविताएं

    Reply

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