दीवार ज़्याँ पॉल सार्त्र अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद : सुशांत सुप्रिय |
उन्होंने हमें एक बड़े-से सफ़ेद कमरे में धकेल दिया. तेज़ रोशनी की वजह से मेरी आँखें झपकने लगीं. फिर मैंने देखा कि कमरे में एक मेज़ मौजूद थी जिसके पीछे चार आदमी कुर्सियों पर बैठे हुए थे. वे नागरिकों की वेश-भूषा में थे और कुछ दस्तावेज उलट-पलट रहे थे. उन्होंने क़ैदियों के एक और जत्थे को पीछे रखा हुआ था. हमें उनके पास जाने के लिए पूरा कमरा पार करना पड़ा. उनमें से कई क़ैदियों को मैं जानता था और कई और थे जो विदेशी रहे होंगे. मेरे सामने खड़े दो क़ैदी गोल खोपड़ी और सफ़ेद बालों वाले थे. शायद वे फ़्रांसीसी थे. उनमें से क़द में छोटा क़ैदी बार-बार अपनी पतलून को ऊपर खींच रहा था. वह बेचैन लग रहा था.
इस सब में तीन घंटे लग गए. मेरा सिर चकरा रहा था. और मैं खुद को बेहद ख़ाली महसूस कर रहा था. लेकिन कमरा गर्म था और यह एक अच्छी बात थी. पिछले चौबीस घंटों से हम लोग ठिठुर रहे थे. संतरी एक-एक करके बंदियों को मेज़ के सामने ले कर जा रहे थे. चारों लोग हर बंदी से उसका नाम और व्यवसाय पूछते. अधिकांश बार वे क़ैदी से और कुछ नहीं पूछते. या वे केवल कोई सामान्य-सा प्रश्न पूछ लेते:”क्या गोला-बारूद को नष्ट करने में तुम्हारा हाथ था?”या :”नौ तारीख़ की सुबह तुम कहाँ थे और क्या कर रहे थे?”वे उत्तर भी नहीं सुनते थे. एक पल की चुप्पी के बाद वे सामने देखते हुए कुछ लिखने लगते थे.
उन्होंने टॉम से पूछा कि क्या यह सच था कि वह अंतरराष्ट्रीय वाहिनी का सदस्य था. टॉम उनसे झूठ नहीं बोल सका क्योंकि उनके पास उससे ज़ब्त किए गए दस्तावेज़ मौजूद थे. उन्होंने जुआन से कुछ नहीं पूछा लेकिन जब उसने उन्हें अपना नाम बताया तो वे बहुत देर तक कुछ लिखते रहे.
“मेरा भाई जोस एक अराजकतावादी है,” जुआन बोला,”आप जानते हैं, अब वह यहाँ नहीं है. मैं किसी दल का सदस्य नहीं हूँ. मेरा कभी भी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं रहा.“
उन्होंने उत्तर नहीं दिया. जुआन बोलता रहा,”मैंने कुछ नहीं किया है. मैं किसी और के पापों की सज़ा नहीं भुगतना चाहता.”
उसके होंठ काँप रहे थे. एक संतरी ने उसे डाँट कर चुप कराया और वहाँ से ले गया. अब मेरी बारी थी.
“तुम्हारा नाम पैब्लो इब्बिएटा है?”
“हाँ.”
उस आदमी ने दस्तावेज़ों को उल्टा-पल्टा और फिर मुझ से पूछा, ”रैमोन ग्रिस कहाँ है ?”
“मुझे नहीं पता.”
“तुमने उसे छह से उन्नीस तारीख़ तक अपने घर में छिपा कर रखा था.”
“नहीं.”
उन्होंने एक मिनट तक कुछ लिखा. फिर संतरी मुझे कमरे से बाहर ले गया. गलियारे में टॉम और जुआन दो संतरियों के बीच प्रतीक्षा कर रहे थे. हम चलने लगे. टॉम ने एक संतरी से पूछा, ”अब ?”
“अब क्या ?”
“वहाँ हम से सवाल-जवाब किया गया था. क्या फ़ैसला भी लिखा गया था ?”
“हाँ, फ़ैसला भी लिखा गया था.”
“वे हमारे साथ क्या करेंगे ?
संतरी ने कड़े स्वर में कहा, ”तुम्हारे कैदख़ाने के कमरे में फ़ैसला पढ़ कर सुना दिया जाएगा.”
दरअसल हमारे कैदख़ाने का कमरा अस्पताल का तहख़ाना था. वहाँ बाहर से ठंडी हवा आने की वजह से बेहद ठंड थी. सारी रात हम ठिठुरते रहे और दिन में भी हमारी हालत अच्छी नहीं रही. मैंने पिछले पाँच दिन मठ की एक कोठरी में बिताए थे. वह दीवार में एक बड़े छेद जितनी छोटी कोठरी थी और वह मध्य-काल में बनाई गई होगी. असल में वहाँ बंदियों की संख्या बहुत ज़्यादा थी और कमरे कम थे, इसलिए उन्हें जहाँ भी थोड़ी-सी जगह मिलती, वे हमें वहीं बंद कर देते. पर मुझे उस कोठरी की याद नहीं आई. सच कहूँ तो मुझे ज़्यादा ठंड नहीं लग रही थी, हालाँकि वहाँ मैं अकेला था. बहुत समय के बाद आपको इससे खीझ होती है. पर यहाँ तहख़ाने में मेरे साथ अन्य बंदी भी थे. जुआन बहुत कम बोलता था. वह भयभीत था और उम्र में छोटा था और उसके पास बोलने के लिए ज़्यादा बातें नहीं थीं. लेकिन टॉम खूब बातें करता था और उसे स्पेनी भाषा अच्छी तरह आती थी.
तहख़ाने में एक छोटा तख़्त था और पुआल से बनी चार चटाइयाँ थीं. जब वे हमें यहाँ वापस ले कर आए तो हम तख़्त और चटाइयों पर चुपचाप बैठ गए. कुछ देर के बाद टॉम बोला, ”हमारा बेड़ा ग़र्क हो चुका है.”
“मुझे भी यही लग रहा है, ”मैंने कहा. ”लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे उस कम उम्र किशोर का कोई अहित करेंगे.”
“उनके पास उसके विरुद्ध कोई सबूत नहीं है, ”टॉम बोला. ”वह केवल एक उग्रवादी का भाई है, बस.”
मैंने जुआन की ओर देखा: हम क्या कह रहे थे, वह यह सब नहीं समझ पा रहा था. टॉम ने कहना जारी रखा,
“क्या तुम्हें पता है, वे सारागोस्सा में क्या करते हैं ? वे लोगों को सड़क पर जबरदस्ती लिटाते हैं और फिर ट्रकों से वे उन्हें कुचल देते हैं. मोरोक्को के एक भागे हुए सैनिक ने मुझे यह बताया. वे कहते हैं कि इस तरह वे गोलियों की बचत करते हैं.”
“लेकिन इस तरह वे अपना पेट्रोल नहीं बचा पाते.” मैं बोला.
मैं टॉम से नाराज़ था: उसे यह नहीं कहना चाहिए था.
“कई अधिकारी सड़क पर टहलते रहते हैं,” उसने कहना जारी रखा, ”वे जेब में एक हाथ डाले, सिगरेट पीते हुए इस सारे घटनाक्रम पर निगाह रखे रहते हैं. आप सोचेंगे, वे लोगों को मार डालते होंगे. लेकिन वे कमीने ऐसा नहीं करते. वे उन्हें तड़पने और दर्द से चीखने-चिल्लाने देते हैं. कई बार घंटे भर के लिए. मोरोक्को के भगोड़े सैनिक ने मुझे बताया कि उसने जब पहली बार यह दारुण दृश्य देखा तो उसे उल्टी आ गई.
“मुझे नहीं लगता कि वे यहाँ ऐसा करते हैं, ”मैंने कहा. ”यदि उन्हें गोलियों की भारी कमी हो गई हो तो अलग बात है.”
दिन की रोशनी तहख़ाने की चार खिड़कियों में से भीतर आने लगी. छत को भी बाईं ओर से गोल आकार में काट दिया गया था जहाँ से ऊपर का आकाश दिखाई दे रहा था. इस गोल छेद पर एक दरवाज़ा भी लगा था, जहाँ से तहख़ाने में कोयला डाला जाता था उस छेद के ठीक नीचे कोयले के चूरे का बड़ा ढेर था ; इसे अस्पताल को गर्म करने के लिए वहाँ डाला जाता था. लेकिन जैसे ही युद्ध शुरू हुआ, रोगियों को अस्पताल से बाहर निकाल दिया गया. वह कोयला बिना इस्तेमाल के वहीं पड़ा था. कई बार बारिश होने पर वह भीग भी जाता था, क्योंकि वे ऊपर का दरवाज़ा बंद करना भूल गए थे.
टॉम ठंड से काँपने लगा था.
“कमीने; मैं ठिठुर रहा हूँ,” उसने कहा. ”मैं दोबारा कसरत शुरू करता हूँ.”
वह उठ कर कसरत करने लगा. हर बार जब वह अपनी बाँह फैलाता तो उसकी क़मीज़ के बटन खुल जाते और सफ़ेद बालों से भरी उसकी छाती दिखने लगती. वह पीठ के बल लेटा और अपनी टाँगो को हवा में उठा कर गोल-गोल घुमाने लगा. मैं उसके मोटे नितम्बों को हिलता हुआ देखता रहा. टॉम यूँ तो तगड़ा था लेकिन क़द में नाटा था. मैं सोचने लगा कि राइफ़ल की गोलियाँ या संगीन की तीखी नोक जल्दी ही उसके मुलायम मांस में ऐसे घुस जाएगी जैसे कि वह मक्खन की एक टिकिया हो. यदि वह दुबला-पतला रहा होता तो सोच ने मुझे कुछ दूसरी ही तरह से प्रभावित किया होता.
दरअसल सच बोलूँ तो मुझे ठंड नहीं लग रही थी, बल्कि मेरी बाँहों और कंधों में किसी प्रकार की सनसनी का कोई अहसास ही नहीं रह गया था. समय-समय पर मुझे लगता कि कहीं कोई चीज़ ग़ायब थी और मैं अपने चारों ओर अपनी जैकेट ढूँढ़ने लगता. लेकिन फिर मुझे याद आ जाता कि उन्होंने पहनने के लिए मुझे जैकेट नहीं दी थी. यह वाक़ई एक समस्या थी. उन्होंने हमारे कपड़े उतरवा कर अपने सैनिकों को दे दिए थे. हमारे तन पर उन्होंने केवल क़मीज़ें और पाल के कपड़े की बनी पतलूनें छोड़ी थीं, जो गर्मियों में अस्पताल के रोगी पहनते हैं. कुछ देर बाद टॉम खड़ा हो गया और लम्बी साँसें लेते हुए मेरे पास आ कर बैठ गया.
“क्या अब तुम ख़ुद को भीतर से गर्म महसूस कर रहे हो?”
“नहीं. स्साला, बिल्कुल नहीं. लेकिन मेरी साँस फूल गई है.”
शाम के आठ बजे एक मेजर फ़ासिस्ट फ़ैलिंगिस्ट पार्टी के दो सदस्यों के साथ कमरे में आया. उसके हाथ में काग़ज़ था. उसने संतरी से पूछा-”वे तीनों- क्या नाम हैं उनके ?”
“स्टाइनबौक, इब्बीएटा और मीरबल.” संतरी ने जवाब दिया. मेजर ने अपना पढ़ने वाला चश्मा पहना और अपनी सूची देखने लगा.
“स्टाइनबौक … स्टाइनबौक …मिल गया. तुम्हें मौत की सज़ा सुनाई गई है. कल सुबह तुम्हें गोली मार दी जाएगी.”
फिर वह सूची में नीचे की ओर देखने लगा.
“उन दोनों को भी मृत्यु-दंड दिया गया है,” उसने कहा.
“यह सम्भव नहीं है,” जुआन बोला. ”मुझे नहीं.”
मेजर ने हैरान हो कर उसकी ओर देखा.
“तुम्हारा नाम क्या है ?”
“जुआन मीरबल.”
“देखो, तुम्हारा नाम भी इस सूची में है,” मेजर बोला. ”तुम्हें भी मौत की सज़ा सुनाई गई है.”
“लेकिन मैंने तो कुछ नहीं किया है,” जुआन ने कहा.
मेजर ने उपेक्षा से कंधे उचकाए और वह टॉम और मेरी ओर मुड़ा.
“क्या तुम दोनों बास्क पार्टी के सदस्य हो?”
“यहाँ कोई भी बास्क पार्टी का सदस्य नहीं है.” जुआन बोला.
मेजर चिढ़ा हुआ महसूस करने लगा.
“मुझे तो यह बताया गया कि यहाँ बास्क पार्टी के तीन सदस्य हैं. मैं उनके बारे में पूछ कर अपना समय नहीं नष्ट करना चाहता हूँ. तो तुम लोगों को कोई पादरी नहीं चाहिए होगा?”
हमने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया.
वह बोला, ”बेल्जियम का एक डॉक्टर थोड़ी देर में यहाँ आएगा. उसे सारी रात यहीं गुज़ारने का आदेश दिया गया है.”
मेजर फ़ैसला सुना कर वहाँ से चला गया.
“मैं तुमसे क्या कह रहा था ?”टॉम बोला. ”हम सब ऊपर तक भर गए हैं.”
“हाँ,” मैंने कहा, ”उस किशोर के लिए यह बदक़िस्मती है.”
मैंने यह न्यायपूर्ण होते हुए कहा, हालाँकि मैं उस किशोर को पसंद नहीं करता था. उसका चेहरा बेहद नाज़ुक था और भय और दुःख ने उसकी रंगत बिगाड़ दी थी, जिससे उसके चेहरे की सारी विशेषताएँ ख़राब हो गई थीं. तीन दिन पहले तक वह बारिश में भीगे एक बड़े बच्चे-सा था. कुछ लोगों को यह आकर्षक लगेगा. लेकिन ठीक अभी वह अधेड़ हो रही किसी रानी जैसा लग रहा था. उसे देखकर मुझे ख़्याल आया कि अब उसका चेहरा कभी भी अपनी युवा विशेषताएँ दोबारा नहीं पा सकेगा. वे उसे छोड़ दें तब भी नहीं. उसके प्रति तरस खाना अच्छा रहता पर मुझे तरस खाने से नफ़रत थी. दरअसल उसे देखकर मुझे उल्टी आती थी. उसने बातें करनी बंद कर दी थीं लेकिन डर के मारे उसका चेहरा और उसके हाथ राख के रंग के हो गए थे. वह तख़्त पर बैठ कर ज़मीन को घूर रहा था. टॉम एक रहमदिल आदमी था. उसने उसे दिलासा देने के लिए उसे बाँह से पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उस लड़के ने मुँह बनाते हुए झटके से अपनी बाँह छुड़ा ली.
“इसको वैसे ही छोड़ दो,” मैंने धीरे से कहा. ”तुम देख सकते हो कि जल्दी ही वह बेहद भावुक हो जाएगा.”
बेमन से टॉम ने मेरी बात मान ली. उसका दिल तो उस लड़के को दिलासा देना चाहता था; इस तरह उसे करने के लिए कोई काम मिल जाता और तब वह अपने बारे में सोचने से बच जाता. लेकिन यह सोच कर मैं परेशान हो गया. मैंने कभी मृत्यु के बारे में नहीं सोचा था क्योंकि अब तक मेरे पास इसके बारे में सोचने का कोई कारण नहीं था. लेकिन अब मेरे पास एक कारण मौजूद था, और इसके बारे में सोचने के अलावा मेरे पास करने के लिए और कुछ भी नहीं था.
टॉम बात करने लगा.
“क्या तुमने उनमें से किसी का क़त्ल किया था ?” उसने मुझसे पूछा. मैंने कोई जवाब नहीं दिया. वह मुझे बताने लगा कि अगस्त माह की शुरुआत से उसने उनके छह लोगों को मार डाला था. वह समझ नहीं पा रहा था कि अभी वह किस स्थिति में था और यह स्पष्ट था कि वह यह बात समझना भी नहीं चाहता था. मैं ख़ुद पूरी तरह यह नहीं समझ पा रहा था. मैं सोचने लगा कि जब वे गोलियाँ चलाएँगे तो क्या मुझे बहुत ज़्यादा चोट लगेगी. मैंने बंदूक़ से चली गोलियों के बारे में सोचा. मैं गोलियों की बौछार के अपनी देह में धँसने की कल्पना करने लगा. लेकिन असली प्रश्न से यह सब बिल्कुल अलग था. पर मैं शांत था; और यह सब समझने के लिए अभी पूरी रात पड़ी थी. कुछ देर के बाद टॉम ने बातें करना बंद कर दिया. मैंने आँखों के किनारे से उसकी ओर देखा. मैंने पाया कि उसका चेहरा भी डर के मारे राख के रंग का हो गया था. वह बहुत बेचारा लग रहा था और मैंने खुद से कहा, ”तो यह होता है.” वह लगभग बीच रात का समय था: एक मद्धिम रोशनी तहख़ाने की खिड़कियों में से भीतर आ रही थी और कोयले के ढेर पर एक बड़ा रोशन आकार बना रही थी. छत पर बने बड़े से छेद में से मैं आकाश में मौजूद एक तारा देख सकता था. वह एक घनी, बेहद ठंडी रात थी.
तभी दरवाज़ा खुला और दो संतरी भीतर आए. उनके पीछे-पीछे भूरे बालों वाला एक शख़्स भी अंदर आ गया. उसने बेल्जियम के फ़ौज की वर्दी पहन रखी थी. उसने सलाम किया.
“मैं डॉक्टर हूँ,” वह बोला. ”मुझे इस विकट घड़ी में आप सब की मदद के लिए यहाँ भेजा गया है.”
उसकी आवाज़ सुखद और विशिष्ट थी. मैंने उससे पूछा, ”आप यहाँ क्यों आए हैं ?”
“मैं यहाँ आप की सेवा में प्रस्तुत हूँ. मुझसे जो भी हो सका, मैं वह करूँगा ताकि अगले कुछ घंटे आप सबके लिए ज़्यादा कठिन न हों.”
“लेकिन आप यहाँ हमारे पास ही क्यों आए हैं? अस्पताल में अन्य क़ैदी भी तो हैं?”
“उन्होंने मुझे यहीं भेजा है,”उसने अनिश्चित स्वर में कहा. ”क्या आप सिगरेट पीना चाहेंगे ?” उसने जल्दी से जोड़ा. ”मेरे पास न केवल कुछ सिगरेट हैं बल्कि कुछ सिगार भी हैं.”
उसने हमें कुछ ब्रिटेन की सिगरेट देने की पेशकश की किंतु हमने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया. मैंने उसकी आँखों में अपनी आँखें डाल दीं और वह थोड़ा शर्मिंदा लगा. मैंने उससे कहा, ”आप यहाँ दया की भावना से तो नहीं आए हैं. कुछ भी हो, मैं आपको जानता हूँ. जिस दिन मुझे गिरफ़्तार किया गया था, मैंने आपको फ़ासिस्ट सेना के साथ बैरक चौक पर देखा था.”
मैं अभी और बोलता लेकिन अचानक ऐसा कुछ हुआ जिसने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया. और तब उस डॉक्टर की उपस्थिति में मेरी रुचि समाप्त हो गई. आम तौर पर यदि मैं किसी व्यक्ति के बारे में पता कर रहा होता हूँ तो मैं बीच में अपना काम नहीं छोड़ता. पर बातचीत करने की मेरी सारी इच्छा समाप्त हो गई थी. मैंने अपने कंधे उचकाए और दूसरी ओर देखने लगा. थोड़ी देर बाद मैंने ऊपर देखा: डॉक्टर कुछ जानने की इच्छा से मेरी ओर ही देख रहा था. संतरी भूसे से बनी चटाई पर बैठ गए थे. पतला-दुबला और लम्बा पेड्रो अपने अंगूठों के साथ खेल रहा था. दूसरा व्यक्ति सोने से बचने के लिए हर थोड़ी देर पर अपना सिर झटक रहा था.
“क्या आपको थोड़ी रोशनी चाहिए ?” अचानक पेड्रो ने डॉक्टर से पूछा. डॉक्टर ने सहमति में अपना सिर हिलाया. मेरे विचार से वह बेहद बेवक़ूफ़ आदमी था. लेकिन वह किसी का अहित करने वाला व्यक्ति नहीं था. जब मैंने उसकी बड़ी-बड़ी, ठंडी, नीली आँखों की ओर देखा, तो मैं एक बात समझ गया कि उस व्यक्ति में कल्पना-शक्ति की अपार कमी थी. पेड्रो बाहर गया और एक पेट्रोल-लैम्प उठा लाया जिसे उसने तख़्त के कोने में रख दिया. वह ज़्यादा रोशनी नहीं दे रहा था लेकिन थोड़ी रोशनी भी अँधेरे से बेहतर थी. पिछली रात उन्होंने हमें घुप्प अँधेरे में छोड़ दिया था. लैम्प की जो वृत्ताकार रोशनी छत पर पड़ रही थी, मैं उसे थोड़ी देर देखता रहा. उसने मुझे मोहित कर लिया. और फिर अचानक मैं जैसे जाग गया. वह रोशनी का वृत्त ओझल हो गया और मैं जैसे किसी भारी दबाव के नीचे कुचला गया महसूस करने लगा. वह मृत्यु का ख़ौफ़ नहीं था, न ही वह कोई अन्य भय था: वह जैसे कोई अज्ञात चीज़ थी. मेरे गालों की हड्डियाँ जलने लगीं और मेरी खोपड़ी में दर्द महसूस होने लगा.
मैंने झटका दे कर खुद को हिलाया और अपने दोनों साथियों की ओर देखा. टॉम ने अपना सिर अपनी दोनों हथेलियों के बीच छिपा रखा था और मैं केवल उसके गर्दन के बीच मौजूद सफ़ेद, मोटे बालों के गुच्छे देख सका. किशोर जुआन बहुत बुरी हालत में था. उसका मुँह खुला हुआ था और उसके नथुने फड़क रहे थे. डॉक्टर ने उसके पास पहुँच कर उसके कंधे पर हाथ रखा ताकि वह उसे उत्साह दे सके, लेकिन उसकी आँखें पहले की तरह ठंडी बनी रहीं. तब मैंने देखा कि उस बेल्जियम-निवासी डॉक्टर ने चुपके से अपना हाथ जुआन की बाँह के नीचे सरकाया और उसने उसकी कलाई पकड़ ली. जुआन ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और वह पहले की तरह ही उपेक्षा के भाव से बैठा रहा. डॉक्टर ने भूले हुए ढंग से उसकी कलाई को तीन उँगलियों से पकड़ा और साथ ही वह एक कदम पीछे ले कर वहाँ खड़ा हो गया जिससे उसकी पीठ मेरी ओर हो गई. लेकिन मैं पीछे झुका. मैंने पाया कि उसने अपनी घड़ी निकाल कर एक पल के लिए उसे देखा, लेकिन वह उस किशोर की कलाई पकड़े रहा. कुछ पलों के बाद उसने वह निष्क्रिय कलाई छोड़ दी और वह दीवार के साथ अपनी पीठ लगा कर झुक कर खड़ा हो गया. फिर अचानक जैसे उसे कोई महत्त्वपूर्ण बात याद आ गई हो जिसे वहीं और उसी समय लिखना ज़रूरी हो, उसने अपनी जेब से एक छोटी डायरी निकाली और उसमें कुछ पंक्तियाँ लिखने लगा.
“कमीना,” मैंने ग़ुस्से से सोचा. ”बेहतर होगा कि वह मेरी नब्ज़ पकड़ने नहीं आए. नहीं तो मैं उसके बदसूरत चेहरे पर एक घूँसा मारूँगा.”
वह मेरे पास नहीं आया. लेकिन मैंने उसे अपनी ओर घूरता हुआ पाया. मैं भी सिर उठा कर उसे घूरने लगा. उसने वैयक्तिक स्वर में मुझसे पूछा, ”क्या आपको नहीं लगता कि यहाँ जमा देने वाली ठंड है ?” वह ठंड से पीड़ित लग रहा था. उसकी त्वचा का रंग बैंगनी हो गया था.” मुझे ठंड नहीं लग रही,” मैंने उत्तर दिया.
वह मुझे लगातार घूरता रहा. अचानक मैं समझ गया और मेरा हाथ मेरे चेहरे की ओर गया: मेरा चेहरा पसीने से भीगा हुआ था. इस जेल में सर्दी के मौसम में, जब ठंडी हवा के झोंके मुझे सता रहे थे, ऐसे समय में मुझे पसीना आ रहा था. मैंने अपने हाथ अपने पसीने से भीगे बालों पर फेरे. तब मुझे अहसास हुआ कि मेरी क़मीज़ गीली थी और मेरी त्वचा से चिपकी हुई थी. मैं पिछले एक घंटे से पसीने से तरबतर था. किंतु मुझे पहले यह महसूस नहीं हुआ था. लेकिन वह कमीना बेल्जियम-वासी सब कुछ देख रहा था. उसने मेरे माथे से मेरे गालों पर लुढ़कती पसीने की बूँदों को देखा था और सोचा होगा- यह बेहद भयभीत होने के कारण था. जबकि वह खुद सामान्य महसूस कर रहा था. उसे अपने जीवित होने पर गर्व भी हो रहा होगा. उसे केवल ठंड लग रही थी. मैं उठ कर खड़ा होना चाहता था. मैं चाहता था कि एक घूँसा मारकर उसका थोबड़ा बिगाड़ दूँ. लेकिन जैसे ही मैं अपनी जगह से हिला, मेरा ग़ुस्सा और मेरी शर्म जाती रही. मैं उपेक्षा के भाव से वापस तख़्त पर बैठ गया.
मैंने अपने रुमाल से अपनी गर्दन की मालिश करने में संतोष प्राप्त कर लिया क्योंकि अब मैं महसूस कर रहा था कि पसीना मेरे बालों से चू कर मेरी गर्दन पर टपक रहा था और यह सुखद नहीं था. जो भी हो, जल्दी ही मैंने अपनी गर्दन की मालिश करनी बंद कर दी; इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा. मेरा रुमाल अब पूरी तरह से भीग चुका था और मुझे अभी भी पसीना आ रहा था. मेरे नितम्ब भी पसीने से भीग गए थे और मेरी पतलून गीली हो कर तख़्त से चिपक गई थी.
अचानक जुआन बोला,”क्या आप डॉक्टर हैं ?”
“हाँ,” बेल्जियम-निवासी ने कहा.
“क्या गोली मारे जाने पर बहुत देर तक दर्द होता होता है ?”
“अरे,नहीं,” बेल्जियम-निवासी डॉक्टर ने वात्सल्य से भरकर कहा. ”ज़्यादा देर तक नहीं. जल्दी ही सब कुछ ख़त्म हो जाता है.” उसने ऐसे कहा जैसे वह किसी चिंतित उपभोक्ता को शांत कर रहा हो.
“लेकिन … उन्होंने मुझे बताया …कभी-कभी उन्हें दोबारा गोली चलानी पड़ती है.”
“हाँ, कभी-कभी,” डॉक्टर बोला. ”यह हो सकता है कि पहली बार चली गोलियाँ जीवन के लिए आवश्यक किसी अंग में न लगी हों.”
“तो क्या उन्हें राइफ़ल में फिर से गोलियाँ भर कर दोबारा निशाना लगाना पड़ता है ?”
डॉक्टर ने रुक कर कुछ पल सोचा और बोला, ”हाँ, इसमें समय लगता है !”
जुआन पीड़ा और तड़पने से बहुत डरता था. वह इसी के बारे में सोचता रहता था. शायद यह उसकी कम उम्र की वजह से था. लेकिन मैं कभी इसके बारे में नहीं सोचता था और मुझे तड़पने या दर्द के डर से पसीना नहीं आ रहा था.
मैं उठा और चलता हुआ कोयले के चूरे के ढेर के पास पहुँच गया. टॉम अपनी जगह से उछल कर खड़ा हुआ और उसने मेरी ओर एक घृणास्पद निगाह डाली. वह मुझसे चिढ़ गया था क्योंकि मेरे जूते चर्र-मर्र की आवाज़ निकाल रहे थे. मैंने सोचा, क्या मेरा चेहरा भी उसकी तरह ही भयभीत लग रहा था? दरअसल उसे भी बहुत पसीना आ रहा था. रात बेहद खूबसूरत लग रही थी, हालाँकि अँधेरे कोने में रोशनी की एक भी किरण नहीं पहुँच रही थी. बिग डिप्पर नामक चमकीले सितारे को देखने के लिए मुझे केवल अपना सिर ऊपर उठाना पड़ता था. लेकिन यह दृश्य पहले जैसा नहीं था. एक रात पहले मैं मठ की अपनी तंग कोठरी में से आकाश का एक बहुत बड़ा हिस्सा देख सकता था. हर घंटे मेरी स्मृति में कोई नया दृश्य कौंधता था. सुबह के समय जब आकाश हल्के नीले रंग का होता, तब मुझे अटलांटिक महासागर के किनारे स्थित तटों की याद आती. दोपहर के समय सूरज देखने पर मैं सेविले में एक शराबखाने के बारे में सोचता जहाँ मैं अलग-अलग क़िस्म की शराब पिया करता था. शाम के समय मैं छाया में होता और मुझे छोटे, गोल अखाड़े में साँड़ के साथ लड़ने वाले युवक याद आते. आधे अखाड़े में घना साया होता और शेष अखाड़े में चमकने वाली धूप खिली हुई होती. आकाश में इस तरह पूरी दुनिया की परछाईं देखना वाक़ई मुश्किल काम होता. लेकिन अब मैं जितना चाहूँ, उतना आकाश को देख सकता था. यहाँ से आसमान को देखकर मेरे मन में कोई विचार नहीं उभरता था. वह स्थिति बेहतर थी. मैं वापस आया और टॉम के पास बैठ गया. एक लम्बा पल बीत गया.
टॉम ने धीमी आवाज़ में बोलना शुरू किया. बात करना उसकी मजबूरी थी. बिना बात किए जैसे वह अपने ज़हन में खुद को ही पहचान नहीं पाता था. मुझे लगा कि वह मुझसे बात कर रहा है लेकिन वह मेरी ओर नहीं देख रहा था. वह मुझे देखने से डर रहा था और यही हाल मेरा था. दरअसल डर की वजह से हमारी त्वचा कुम्हला गई थी और हम पसीने से तरबतर थे. हम बिल्कुल एक-दूसरे के जैसे लग रहे थे और आईने में अपनी बदतर छवि से भी बुरे लग रहे थे. टॉम बेल्जियम-निवासी डॉक्टर की ओर देखने लगा.
“क्या तुम सब कुछ समझ रहे हो ?” उसने कहा. ”मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा.”
मैं भी धीमी आवाज़ में बोलने लगा. मैंने भी डॉक्टर की ओर देखा.
“क्यों ? क्या बात है ?”
“हमारे साथ कुछ घटने वाला है जो मुझे समझ नहीं आ रहा.”
टॉम में से एक अजीब-सी गंध आ रही थी. मुझे लगा जैसे गंधों के प्रति मैं अधिक संवेदनशील था. मैं हँसा.
“तुम कुछ देर में समझ जाओगे.”
“यह स्पष्ट नहीं है.” उसने अड़ियल स्वर में कहा. ”मैं बहादुरी से उसका सामना करना चाहता हूँ पर पहले मुझे यह सब पता होना चाहिए.”
“देखो, वे हमें अहाते में ले जाने वाले हैं. बढ़िया है. वे हमारे सामने खड़े होने वाले हैं. वे कितने हैं ?”
“मुझे नहीं पता. शायद पाँच या आठ. ज़्यादा नहीं.”
“ठीक है. सम्भवत: वे आठ होंगे. कोई चिल्ला कर ‘निशाना लगाओ‘ कहेगा. और मैं आठ राइफ़लों को अपनी ओर तनी हुई देखूँगा. मैं सोचूँगा, काश, मैं दीवार के भीतर समा जाता. मैं अपनी पीठ से पूरा ज़ोर लगा कर दीवार को धकेलूँगा, लेकिन दीवार अपनी जगह बनी रहेगी. जैसे यह सब कोई दु:स्वप्न हो. मैं इस सब की कल्पना कर सकता हूँ. काश, तुम लोगों को पता होता कि मैं कितनी अच्छी तरह इस सब की कल्पना कर सकता हूँ.”
“ठीक है, ठीक है. मैं भी इसकी कल्पना कर सकता हूँ. असली दर्द की नहीं. उससे भी बुरी चीज़. कल सुबह मैं यही महसूस करने वाला हूँ. और फिर क्या ?”
मैं ठीक से समझ रहा था, वह क्या कहना चाहता था. पर मैं दिखाना नहीं चाहता था कि मैं यह सब समझ गया हूँ. मेरी देह में भी दर्द हो रहा था, जैसे त्वचा पर छोटे-छोटे दाग़-धब्बे बन गए हों. लेकिन मुझे इसकी आदत नहीं थी, हालाँकि मैं भी उसी की तरह था. मैं इसे कोई महत्व नहीं दे रहा था.”
वह अपने-आप से बातें करने लगा. पर उसने बेल्जियम-निवासी उस डॉक्टर की ओर देखना बंद नहीं किया. डॉक्टर कुछ भी सुनता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा था. मुझे पता था, वह क्या करने हमारे पास आया था. हम क्या सोच रहे थे, इसमें उसकी कोई रुचि नहीं थी. वह केवल हमारी देह देखने आया था- जीवन शेष रहते हुए भी हम कैसे मर रहे होंगे, यह देखने.
“यह सब किसी दु:स्वप्न जैसा है,” टॉम कह रहा था. ”आप कुछ सोचना चाहते हैं. आपको लगता है कि सब ठीक है, कि आप सब कुछ समझ जाएँगे. पर ये सब फिसल कर, धुँधली हो कर ग़ायब हो जाती हैं. मैं खुद से कहता हूँ- बाद में कुछ भी नहीं होगा. लेकिन इसका मतलब क्या है, मैं नहीं जानता. कई बार मैं लगभग समझ जाता हूँ, लेकिन तभी सभी चीज़ें धुँधली हो कर ग़ायब हो जाती हैं. फिर मैं भीषण दर्द, गोलियों और विस्फोटों के बारे में सोचने लगता हूँ. मैं पागल नहीं हुआ हूँ. लेकिन कोई तो बात है. मैं अपनी लाश देखता हूँ. यह मुश्किल नहीं है लेकिन अपनी आँखों से अपनी लाश देखने वाला व्यक्ति मैं खुद हूँ. मुझे सोचना पड़ेगा … कि इसके बाद मैं कुछ भी नहीं देख पाऊँगा, जबकि दूसरों के लिए जीवन पहले की तरह ही चलता रहेगा. हम यह सोचने के लिए नहीं बने हैं, पैब्लो. मेरा यक़ीन करो. मैं पहले ही कुछ होने का अंदेशा लिए पूरी रात जगा रह गया हूँ. पर यह वही बात नहीं है. यह हमारी पीठ के पीछे रेंगती हुई आ जाएगी और हम इसके लिए खुद को तैयार नहीं कर पाएँगे.”
“चुप रहो,” मैंने कहा. क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए कोई पादरी बुलाऊँ ?”
उसने कोई उत्तर नहीं दिया. मैंने पहले ही पाया था कि वह मुझे पैब्लो कह कर बुलाता था और किसी मसीहा की तरह व्यवहार करता था. वह बेहद सपाट आवाज़ में बोलता था. मुझे यह पसंद नहीं था. लेकिन लगता है, आयरलैंड के सभी निवासी इसी तरह के थे. मुझे अस्पष्ट-सा कुछ लगता था, जैसे उसमें से पेशाब की गंध आती हो. मुझे टॉम के साथ ज़्यादा सहानुभूति नहीं थी. और मुझे लगता था कि क्योंकि हम सब साथ मरने वाले थे, केवल इसी वजह से मुझे उसके साथ सहानुभूति क्यों हो ? दूसरों के मामले में बात अलग होती- जैसे रैमोन ग्रिस.
टॉम और जुआन के बीच में मैं खुद को अकेला महसूस कर रहा था. किंतु मुझे वह स्थिति ज़्यादा अच्छी लगी. रैमोन के साथ मैं अधिक द्रवित और विचलित महसूस करता. लेकिन उस समय मैंने अपने मन को कठोर बना लिया था और मैं वैसा ही रहना चाहता था.
वह अपने शब्दों को चबाता रहा, जैसे वह व्याकुलता का शिकार हो. यह ज़ाहिर था कि वह सोचने से बचने के लिए लगातार बोल रहा था. उसमें से पेशाब की दुर्गंध आ रही थी, जैसे वह प्रोस्टेट का पुराना रोगी हो. इसलिए मैं उससे सहमत था. वह जो कुछ कह रहा था, मैं भी वह सब कह सकता था : यूँ मरना स्वाभाविक नहीं था.
और क्योंकि मैं मरने वाला था, मुझे कुछ भी स्वाभाविक नहीं लग रहा था. न कोयले के चूरे का यह ढेर या तख़्त, न पेड्रो की बदसूरती. लेकिन जो बातें टॉम सोच रहा था, वे ही बातें सोचना मेरे लिए सुखद नहीं था. हालाँकि मैं यह जानता था कि रात भर, हर पाँच मिनट पर, हम एक ही समय में कई चीज़ों के बारे में सोचते रहेंगे. मैंने कनखियों से उसकी ओर देखा और पहली बार वह मुझे अजीब लगा: जैसे उसके चेहरे पर मौत लिखी हुई थी. मेरा गर्व आहत हुआ. पिछले चौबीस घंटों से मैं टॉम के बग़ल में बैठा था, मैंने उसे बोलते हुए सुना था. मैंने उससे बात की थी और मैं जान गया था कि हममें कुछ भी एक जैसा नहीं था. और अब हम इतने एक जैसे लग रहे थे कि हम जुड़वाँ भाई हों. इसलिए क्योंकि हम एक साथ मरने जा रहे थे. बिना मेरी ओर देखे हुए टॉम ने मेरा हाथ पकड़ लिया.
“पैब्लो, … क्या यह सच है कि हर चीज़ का अंत हो जाता है.”
मैंने अपना हाथ छुड़ाया और बोला, ”ओ सुअर, अपने पैरों के बीच देखो.”
वहाँ बहुत सारा पेशाब पड़ा था और उसकी टांगों और पैंट में से पेशाब टपक रहा था.
“यह क्या है,” उसने डर कर पूछा.
“तुम अपनी पैंट में पेशाब कर रहे हो,” मैंने उसे बताया.
“यह सही नहीं है. मैं पेशाब नहीं कर रहा. मुझे कुछ भी महसूस नहीं हो रहा.”
बेल्जियम-वासी चलता हुआ हमारे पास आया. उसने झूठी चिंता से भरे स्वर में पूछा, ”क्या तुम ख़ुद को बीमार महसूस कर रहे हो ?”
टॉम ने कोई जवाब नहीं दिया. बेल्जियम-वासी ने ज़मीन पड़े हुए पेशाब की ओर देखा और कुछ नहीं कहा.
“मैं नहीं जानता यह क्या है.” टॉम ने ग़ुस्से से भर कर कहा. ”लेकिन मैं भयभीत नहीं हूँ. मैं क़सम खा कर कहता हूँ, मैं भयभीत नहीं हूँ.”
बेल्जियम-वासी ने कोई उत्तर नहीं दिया. टॉम उठा और पेशाब करने के लिए वह एक कोने में चला गया. वह अपनी पैंट के बटन बंद करता हुआ वापस आया और चुपचाप बैठ गया. बेल्जियम-वासी अपनी कॉपी में कुछ लिख रहा था. हम तीनों उसे देखते रहे क्योंकि वह जीवित था. वह किसी जीवित इंसान की तरह की हरकतें कर रहा था. वह उस कोठरी में ऐसे काँप रहा था जैसे कोई जीवित इंसान काँपता है. उसके पास कहना मानने वाली एक जीवित देह थी. हम में से बाक़ी लोगों को शायद ही कुछ महसूस हो रहा था- उसकी तरह तो बिल्कुल नहीं. मैं अपनी टाँगों में पहनी हुई पैंट को महसूस करना चाहता था पर मुझमें ऐसा करने की हिम्मत नहीं थी. मैंने बेल्जियम-वासी की ओर देखा. वह अपने पैरों पर खड़ा था और उसकी मांसपेशियाँ उसके वश में थीं. वह एक ऐसा व्यक्ति था जो कल के बारे में सोच सकता था. जबकि दूसरी ओर हम लोग थे- तीन रक्तविहीन परछाइयाँ. हम उसे देखते रहे गोया हम तीनों उसकी देह से लहू पीने वाले पिशाच हों.
अंत में वह किशोर जुआन के पास गया. क्या वह किसी पेशेवर कारण से उसके गर्दन का नाप लेना चाहता था या वह अपने भीतर उठी दान-पुण्य की इच्छा के तहत ऐसा कर रहा था? यदि वह दान-पुण्य की भावना से प्रेरित था तो उस रात वह ऐसा पहली बार कर रहा था.
उसने जुआन के सिर और गर्दन को सहलाया. उस लड़के ने उसे ऐसा करने दिया, लेकिन लड़के की आँखें उसे ही देखती रहीं. अचानक लड़के ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अजीब ढंग से देखा. उसने बेल्जियम-वासी के हाथ को अपने दोनों हाथों में पकड़ा हुआ था किंतु इसमें कुछ भी सुखद नहीं था. लग रहा था जैसे दो सलेटी चिमटों ने उसके मोटे, लाल हाथ को कस कर पकड़ रखा था. जो होने वाला था उसके बारे में मुझे शक हो गया था और टॉम को भी उस बात का शक हुआ होगा. लेकिन बेल्जियम-वासी ने इस सब से बेख़बर हो कर उसे पितृवत् मुस्कान दी. एक पल के बाद वह लड़का एक झटके से उस मोटे, लाल हाथ को अपने मुँह के पास ले गया और उसने उस हाथ को अपने दाँतों से काटने की कोशिश की. बेल्जियम-वासी ने फटाफट उसके मुँह के पास से अपना हाथ हटाया और वह लड़खड़ा कर दीवार की ओर पीछे हटा. एक पल के लिए उसने डर कर हमारी ओर देखा. अचानक वह यह ज़रूर समझ गया होगा कि हम उसकी तरह के आदमी नहीं हैं. मैं हँसने लगा और एक पहरेदार उछल कर खड़ा हो गया. दूसरा पहरेदार भावशून्य, खुली आँखों से सो रहा था.
मैंने एक साथ निश्चिंत और अति उत्साहित महसूस किया. सुबह तड़के मृत्यु के समय क्या होगा, मैं अब उसके बारे में नहीं सोचना चाहता था. इसका कोई अर्थ नहीं था. मेरे इर्दगिर्द केवल शब्द थे या ख़ालीपन था. लेकिन जैसे ही मैं कुछ और सोचने की कोशिश करता, मुझे अपनी ओर तनी राइफ़लों की नलियाँ दिखाई देतीं. शायद मैंने बीस बार अपनी हत्या का दृश्य देखा होगा. एक बार तो मुझे यह भी लगा कि जो हो रहा है, अच्छे के लिए ही हो रहा है. शायद मुझे एक मिनट की झपकी लग गई होगी. नींद में मैंने देखा कि वे मुझे एक दीवार की ओर घसीट रहे थे और मैं छटपटा रहा था. दया के लिए गिड़गिड़ा रहा था. एक झटके से मेरी नींद खुली और मैंने बेल्जियम-वासी की ओर देखा. मुझे डर था कि मैं नींद में रो रहा हूँगा. लेकिन वह अपनी मूँछों पर ताव दे रहा था. उसने कुछ भी घटित होते हुए नहीं देखा था. यदि मैं चाहता तो कुछ देर के लिए सो सकता था. मैं पिछले अड़तालीस घंटों से जगा हुआ था. मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी. लेकिन मैं अपने जीवन के बचे हुए दो घंटे सो कर नहीं गँवाना चाहता था. वैसे भी वे लोग सुबह तड़के ही मुझे जगाने के लिए आने वाले थे. मैं बिना ‘उफ़् ‘ बोले नींद में स्तब्ध उनके पीछे-पीछे चला जाता. मैं यह नहीं चाहता था.
मैं किसी जानवर की तरह नहीं मरना चाहता था. मैं सब कुछ समझना चाहता था. फिर मुझे दु:स्वप्नों से भी डर लगता था.
मैं उठा और अपने विचारों से पीछा छुड़ाने के लिए आगे-पीछे चहलक़दमी करने लगा. मैं अपने बीत चुके जीवन के बारे में सोचने लगा. हड़बड़ी में मुझे स्मृतियों की भीड़ ने घेर लिया. वे अच्छी और बुरी स्मृतियाँ थीं- पहले तो मैं उनके बारे में यही सोचता था. ज़हन में लोगों के चेहरे थे और घटनाएँ थीं. मेरे ज़हन में साँड़ से लड़ने वाले एक छोटी उम्र के लड़के का चेहरा कौंधा जिसे एक उत्सव के दौरान एक साँड़ ने अपने सींगों से खून से लथपथ कर दिया था. मेरी स्मृति में मेरे एक चाचा और रैमोन ग्रिस का चेहरा भी कौंधा. मुझे अपने पूरे जीवन की याद आई. 1926 में मैं तीन महीनों तक बेरोज़गार था. तब कई दिनों तक बिना कुछ खाए-पिए होने के कारण मैं लगभग मर ही गया था. मुझे ग्रेनाडा के एक सार्वजनिक बैठने की जगह की याद आई. मैंने तीन दिनों से कुछ भी नहीं खाया-पिया था. मुझे ग़ुस्सा आया. मैं अभी मरना नहीं चाहता था. यह सोच कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई. मैं पागलों की तरह कितना ज़्यादा ख़ुशियों, युवतियों और आज़ादी की ओर दौड़ता था. क्यों ? मैं स्पेन को आज़ाद करवाना चाहता था. मैं पी. य. मारगल का प्रशंसक था. मैं अराजकतावादी आंदोलन में शामिल हो गया था. मैं सार्वजनिक मंचों से भाषण देता था. मैं हर चीज़ को इतनी गम्भीरता से लेता था जैसे मैं अमर होऊँ.
उस पल मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा पूरा जीवन मेरे सामने था और मैंने सोचा, ”वह एक शापित झूठ है.” उस जीवन का कोई मूल्य नहीं था क्योंकि वह ख़त्म हो चुका था. मैं सोचता रहा कि कैसे मैं इतना चलता था, सुंदरियों के साथ हँसता था. यदि मुझे पहले पता होता कि मेरी मृत्यु ऐसे होगी, तो मैं अपनी छोटी उँगली भी नहीं हिला पाता. यह सब कभी नहीं कर पाता. मेरा जीवन किसी बंद थैले की तरह मेरे सामने पड़ा था हालाँकि उस थैले के भीतर सब कुछ अधूरा था. एक पल के लिए मैं उसका आकलन करने लगा. मैं खुद से कहना चाहता था कि यह एक सुंदर जीवन था. लेकिन मैं अपने जीवन के बारे में यह फ़ैसला नहीं सुना सका. यह केवल एक रेखा-चित्र था. मैंने अपना जीवन अनंत की नक़ल करने में लगा दिया. नतीजा यह हुआ कि मैंने एक जाली, झूठा जीवन जिया. मैं कुछ भी नहीं समझ पाया. मैंने किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं की. कई चीज़ें थीं जिनका अभाव मैं महसूस कर सकता था. स्पेन की सफ़ेद मदिरा या गर्मियों में कैंडिड की छोटी
खाड़ी में स्नान करना. किंतु मृत्यु ने हर चीज़ से मेरा मोह भंग कर दिया था.
तभी बेल्जियम-वासी के ज़हन में कमाल की सोच आई.
“मित्रो,” उसने हमसे कहा, ”यदि सैनिक प्रशासन ने अनुमति दी तो मैं आप सब की ओर से आप के प्रिय-जनों को एक अंतिम संदेश भेजने में आपकी मदद करूँगा. जो आप से प्यार करते हैं, यह उनके लिए एक यादगार की तरह होगा.”
टॉम बुदबुदाया, ”मेरा कोई नहीं है.” मैंने कुछ नहीं कहा. टॉम एक पल के लिए रुका और उसने उत्सुकता से भर कर मेरी ओर देखा. ”क्या तुम कोंचा से कुछ नहीं कहना चाहते ?”
“नहीं.”
इस मिली-भगत से मुझे नफ़रत थी. यह मेरी ही गलती थी. मैंने कोंचा के बारे में पिछली रात बात की थी. मुझे खुद पर नियंत्रण रखना चाहिए था. मैं उस युवती के साथ एक वर्ष तक रहा था. पिछली रात उससे पाँच मिनट के लिए भी मिलने पर मुझे प्रसन्नता होती. इसी लिए मैंने उसके बारे में बात की. पर अब मेरी इच्छा उससे मिलने की नहीं थी. अब मुझे उससे और कुछ नहीं कहना था. अब मुझे उसे अपनी बाँहों में लेने की इच्छा नहीं थी. मेरी देह मुझे दहशत से भर रही थी क्योंकि उसका रंग सलेटी हो गया था और वह पसीने से लथपथ थी. जब कोंचा को मेरी मृत्यु के बारे में पता चलेगा तो वह रोएगी. महीनों तक उसकी रुचि जीवन में नहीं रहेगी. लेकिन मृत्यु तो आख़िर मेरी ही होनी थी. मैंने कोंचा की मुलायम, सुंदर आँखों के बारे में सोचा. जब भी वह मेरी ओर देखती, मुझे एक सुखद अहसास होता. लगता जैसे मैं उससे कुछ ग्रहण कर रहा हूँ. लेकिन मैं जान गया कि अब यह सब ख़त्म हो चुका था. यदि इस समय वह मुझे देखती तो मुझे कुछ भी महसूस नहीं होता. अब मैं अकेला था.
टॉम भी अकेला था. लेकिन उसकी बात अलग थी. वह आल्थी-पाल्थी मार कर बैठा था और एक तरह की मुस्कान के साथ तख़्त को घूर रहा था. वह अचम्भित लगा. उसने ध्यान से अपना हाथ आगे बढ़ा कर लकड़ी को छूआ. ऐसा लगा जैसे वह किसी चीज़ के टूटने से डर रहा था. लकड़ी को छूकर उसने अपना हाथ जल्दी से पीछे खींचा और वह काँप उठा. यदि मैं टॉम होता तो मैं तख़्त को छूकर अपना मनोरंजन नहीं करता. मुझे लगा कि यह भी आयरलैंड के लोगों की बेकार की हरकत थी. हालाँकि मैंने यह महसूस किया था कि कई बार चीज़ें दिखने में हास्यजनक लगती थीं. कई बार वे आम तौर पर दिखने की बजाए पृष्ठभूमि में धुँधली और कम ठोस लगती थीं. तख़्त, लालटेन, कोयले के चूरे का अम्बार- इन चीज़ों को देखकर मुझे महसूस हो रहा था कि मैं मरने वाला था. हालाँकि मैं अपनी मृत्यु के बारे में स्पष्ट रूप से नहीं सोच पा रहा था, लेकिन मैं उसे हर ओर देख सकता था. वह मुझे हर चीज़ में दिखाई दे रही थी. चीज़ें पीछे हट रही थीं और सावधानी से दूरी बनाए हुए थीं, जैसे लोग किसी मरते हुए आदमी के सिरहाने धीमी आवाज़ में फुसफुसाते हैं. टॉम ने दरअसल तख़्त पर अपनी मृत्यु को छुआ था.
मैं जिस हालत में था, यदि उस समय कोई आ कर मुझे यह कहता कि मैं चुपचाप घर जा सकता था और वे मेरे जीवन को साबुत छोड़ देंगे, तो यह बात मुझे रोचक नहीं लगती. कई घंटों या कई वर्षों तक प्रतीक्षा करते रहना एक ही जैसा होता है, यदि आप शाश्वत होने का भ्रम खो देते हैं. मैं नाउम्मीद था लेकिन एक तरह से मैं शांत था. यह एक भयावह शांति थी- यह मेरी देह की वजह से थी. मैं अपनी देह की आँखों से देख रहा था, अपनी देह के कानों से सुन रहा था लेकिन अब वह देह जैसे मेरी नहीं थी. वह अपने-आप पसीने से लथपथ हो कर काँप रही थी और मैं अब उस देह को पहचान नहीं पा रहा था. क्या हो रहा था, यह जानने के लिए मुझे उसे देखना और छूना पड़ रहा था, जैसे वह किसी और की देह हो. कभी-कभार मैं उसे अब भी महसूस कर सकता था. जैसे आप किसी ऐसे हवाई जहाज़ में होते हैं जो तेज़ी से नीचे की ओर गोता लगाता है, उसी तरह मैं अपनी देह के डूबने और गिरने को महसूस कर रहा था. मैं अपने दिल के तेज़ी से धड़कने को महसूस कर सकता था. पर इसने मुझे आश्वस्त नहीं किया. मेरी देह से जो भी संकेत मिल रहे थे, वे अहंकारी थे. अधिकांश समय मेरी देह शांत थी और मुझे एक भार से अधिक कुछ भी महसूस नहीं होता था. मेरी देह मुझे एक गंदी उपस्थिति लग रही थी. मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं किसी विशाल कीड़े से बँधा हुआ हूँ. एक बार मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी पतलून गीली हो गई थी. पता नहीं, वह पसीना था या पेशाब था, लेकिन एहतियातन मैं कोयले के चूरे के ढेर पर पेशाब करने चला गया.
बेल्जियम-वासी ने अपनी घड़ी निकाली और उसे ध्यान से देखा. उसने कहा, ”अभी तीन बज कर तीस मिनट हुए हैं.”
हरामी कहीं का ! ज़रूर इसने जानबूझकर यह किया था. टॉम उछल पड़ा. हमने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था कि समय तेज़ी से बीत रहा था. रात हमें एक आकृतिहीन मलिन पिंड-सी घेरे हुए थी. मुझे तो यह भी याद नहीं था कि यह रात शुरू कब हुई थी.
किशोर जुआन रोने लगा. वह अपने दोनों हाथों को मलते हुए निवेदन के स्वर में बोला, ”मैं मरना नहीं चाहता. मैं मरना नहीं चाहता.”
वह हवा में अपने हाथ लहराता हुआ पूरे तहख़ाने में दौड़ता रहा और अंत में सुबकते हुए एक चटाई पर गिर गया. टॉम बिना उसे सांत्वना दिए शोकाकुल आँखों से उसे देखता रहा. दरअसल उसे सांत्वना देने से कोई फ़ायदा नहीं होता. वह किशोर हम सब से अधिक शोर मचा रहा था. लेकिन वह इस स्थिति से ज़्यादा प्रभावित नहीं हुआ था. वह उस बीमार आदमी की तरह था जो अपनी बीमारी में बुख़ार से लड़ रहा होता है. लेकिन स्थिति तब ज़्यादा गम्भीर हो जाती है जब बीमारी तो होती है, पर बुख़ार नहीं होता. तब बीमारी होते हुए भी बीमारी का लक्षण नहीं दिखता.
वह रो रहा था. मैं स्पष्ट रूप से यह देख सकता था कि वह खुद पर तरस खा रहा था. वह मृत्यु के बारे में नहीं सोच रहा था. एक पल के लिए, केवल एक पल के लिए मैंने स्वयं भी रोना चाहा. मैंने अपने ऊपर तरस खा कर रोना चाहा. लेकिन इसका उल्टा असर हुआ. मैंने सुबकते हुए किशोर की ओर देखा. मैंने उसका दुबला कंधा देखा और मैंने स्वयं को निर्दयी महसूस किया. मैं न स्वयं पर तरस खा सका, न दूसरों पर. मैंने खुद से कहा, ”मैं शांति से मरना चाहता हूँ.”
टॉम उठ कर खड़ा हो गया था. वह छत के वृत्ताकार बड़े छेद के नीचे खड़ा हो गया और सुबह की रोशनी की प्रतीक्षा करने लगा. मैं चुपचाप मृत्यु के आग़ोश में जाना चाहता था, और मैं केवल उसी के बारे में सोचता रहा. लेकिन जब से उस डॉक्टर ने हमें समय के बारे में बताया था, मुझे लगा जैसे समय पंख लगा कर उड़ रहा है. जैसे समय किसी टूटे बर्तन से बूँद-बूँद करके गिरता जा रहा है.
अभी अँधेरा ही था जब टॉम की आवाज़ आई, ”क्या तुम लोगों ने उनके आने की आवाज़ सुनी?”
बाहर आँगन में से लोगों के चलने की आवाज़ आ रही थी.
“हाँ.”
“वे अँधेरे में क्या कर रहे हैं? अँधेरे में वे हमें गोली नहीं मार सकते हैं!”
कुछ समय के बाद आवाज़ें थम गईं. मैंने टॉम से कहा, ”अब सुबह हो गई है.”
जम्हाई लेते हुए पेड्रो उठ गया. उसने फूँक मार कर लालटेन बुझा दी. फिर उसने अपने साथी से कहा, ”मेरी देह बिल्कुल ठंडी पड़ गई है.”
इस समय तहख़ाने में हल्का अँधेरा था. कुछ दूरी से हमें गोलियों के चलने की आवाज़ सुनाई दी.
“अब वह सब शुरू हो गया है. वे क़ैदियों को पीछे की दीवार के पास गोली मार रहे हैं.”
टॉम ने पीने के लिए डॉक्टर से सिगरेट माँगी. मुझे सिगरेट या शराब नहीं चाहिए थी. उस पल के बाद क़ैदियों को गोली मारने का सिलसिला नहीं रुका.
“क्या तुम समझ रहे हो, बाहर क्या हो रहा है ?” टॉम बोला. वह कुछ और बोलना चाहता था पर वह दरवाज़े की ओर देखते हुए रुक गया. द्वार खुला और और एक सैनिक अधिकारी चार सिपाहियों के साथ अंदर आया. टॉम के हाथ से सिगरेट गिर गई.
“स्टॉइनबॉक ?”
टॉम ने उत्तर नहीं दिया. पेड्रो ने उसकी ओर इशारा
किया.
“जुआन मिराबल ?”
“वह वहाँ चटाई पर है.”
“खड़े हो जाओ,” सैनिक अधिकारी बोला.
जुआन अपनी जगह से नहीं हिला. दो सैनिकों ने बाजुओं से पकड़ कर उसे उसके पैरों पर खड़ा कर दिया. लेकिन उन्होंने उसे जैसे ही छोड़ा, वह वापस चटाई पर गिर गया.
सैनिक हिचक रहे थे.
“यह पहला क़ैदी नहीं है जो बीमार है. तुम दोनों इसे उठाओ. वे बाहर आँगन में इसे ठीक कर देंगे.”
सैनिक अधिकारी टॉम की ओर मुड़ा. ”चलो, चलते हैं.” टॉम दो सैनिकों के बीच चलता हुआ बाहर निकल गया. दो अन्य सैनिक किशोर को पकड़ कर बाहर ले गए.
वह बेहोश नहीं हुआ था. उसकी आँखें पूरी तरह से खुली हुई थीं और आँसुओं की बूँदें उसके गाल पर ढुलक रही थीं. जब मैंने उठ कर बाहर जाना चाहा तो सैनिक अधिकारी ने मुझे रोक दिया.
“तुम इब्बिएटा हो ?”
“जी हाँ.”
“तुम यहीं रुको. वे तुम्हारे लिए बाद में आएँगे.”
वे चले गए. बेल्जियम-वासी और दो जेलर भी तहख़ाने से बाहर निकल गए. अब मैं अकेला था. मेरे साथ क्या हो रहा था, मुझे इसके बारे में कुछ नहीं पता था. किंतु बेहतर होता यदि वे मुझे भी ले जाते और मेरा काम तमाम कर देते. हर थोड़ी देर के बाद गोलियों की आवाज़ सुनाई देती. गोली की हर आवाज़ सुन कर मैं सहम कर चिहुँक जाता. लगता था जैसे मैं चिल्ला कर अपने बाल नोच लूँगा. लेकिन मैं अपने दाँत कड़े करके अपने हाथों को अपनी जेब में डाल लेता क्योंकि दरअसल मैं चुपचाप सब कुछ सहना चाहता था.
एक घंटे बाद वे मुझे भी लेने आए. वे मुझे पहली मंज़िल पर एक छोटे-से कमरे में ले गए जहाँ बेहद गर्मी थी और सिगारों के धुएँ की गंध भरी हुई थी. वहाँ दो अधिकारी आराम-कुर्सियों पर बैठ कर सिगार पी रहे थे. उनके घुटनों पर दस्तावेज़ पड़े हुए थे.
“तुम इब्बिएटा हो ?”
“जी हाँ.”
“रैमोन ग्रिस कहाँ है ?”
“मुझे नहीं पता.”
मुझसे प्रश्न पूछने वाला अधिकारी क़द में छोटा और मोटा था. चश्मे के भीतर से ताकती उसकी आँखें कठोर थीं. उसने मुझसे कहा, ”यहाँ आओ.”
मैं उसके पास गया. वह उठ खड़ा हुआ और मेरी बाँहें पकड़ कर वह मुझे ऐसे घूरने लगा जैसे उसके घूरने मात्र से ही मैं धरती में गड़ जाऊँगा. उसने मेरी बाँह पर ज़ोर से चिकोटी काटी. यह मुझे दर्द देने के लिए नहीं था. यह केवल एक खेल था जिसमें वह मुझ पर भारी पड़ना चाहता था. उसने यह भी सोचा कि उसे अपनी बदबूदार साँसें मेरे चेहरे पर छोड़नी हैं. एक पल के लिए हम दोनों वैसे ही रहे. मुझे लगभग हँसी आ रही थी. जो व्यक्ति मरने जा रहा हो, उसे डराना आसान नहीं होता. वह मुझे नहीं डरा सका. उसने मुझे ज़ोर से धक्का दिया और वह दोबारा कुर्सी पर बैठ गया. वह बोला, ”उसके जीवन के बदले तुम्हारा जीवन. यदि तुम हमें उसका पता बता दो तो हम तुम्हें नहीं मारेंगे.”
विशिष्ट फ़ौजी वर्दी और फ़ौजी जूते पहने ये लोग भी अंत में काल का ग्रास बनने वाले थे. इनकी मौत यदि अभी नहीं होनी थी तो कुछ समय के बाद अवश्य होनी थी. इनकी मौत भी अवश्यंभावी थी. वे अपने मुचड़े काग़ज़ों में क़ैदियों के नाम ढूँढ़ते हुए खुद को व्यस्त रखे हुए थे. वे अन्य लोगों को सताने और क़ैद करने के लिए उनके पीछे पड़े हुए थे. स्पेन के भविष्य और अन्य चीज़ों के बारे में उनकी एक निश्चित राय थी. उनकी बौनी गतिविधियाँ मुझे विद्रूप और हास्यजनक लगती थी. मैं खुद को उनकी जगह पर रखने के बारे में सोच भी नहीं सकता था. मुझे वे सारे लोग पागल लगते थे. अपने फ़ौजी जूतों को फ़र्श पर रगड़ता हुआ वह छोटा आदमी अभी भी मुझे घूर रहा था. अपनी हरकतों से वह खुद को मेरे सामने एक ख़ूँख़ार जानवर के रूप में प्रस्तुत करना चाहता था.
“तो ? तुम समझे ?”
“ग्रिस कहाँ है, यह मुझे बिल्कुल नहीं मालूम. मुझे लगा, वह मैड्रिड में होगा.”
दूसरे अधिकारी ने अपना रक्तहीन-सा दिखने वाला हाथ ढीले-ढाले ढंग से उठाया. उसने ऐसा जानबूझकर किया. मैं उनकी सारी युक्तियों को समझ रहा था और मैं यह देखकर हैरान था कि वे सभी अपना मनोरंजन कैसे कर रहे थे.
“तुम्हारे पास सोचने के लिए पंद्रह मिनट हैं,” उसने धीरे से कहा. ”इसे धुलाईघर में ले जाओ और पंद्रह मिनट बाद वापस यहाँ ले आना. यदि इसने तब भी हमारी मदद करने से इंकार किया तो इसे यहीं गोली मार दी जाएगी.”
वे जानते थे, वे क्या कर रहे थे. मैं रात भर प्रतीक्षा करता रहा था. फिर उन्होंने एक घंटे तक मुझे तहख़ाने में इंतज़ार करने दिया, जिसके दौरान उन्होंने टॉम और जुआन को गोली मार दी थी. और अब वे मुझे धुलाईघर में बंद कर दे रहे थे. पिछली रात ही उन्होंने अपना यह खेल खेलने का इरादा बना लिया था. उन्होंने आपस में यह सलाह कर ली थी कि ऐसा करने से अंत में मैं घबरा कर उनकी बात मानने के लिए मजबूर हो जाऊँगा.
पर वे पूरी तरह ग़लतफ़हमी का शिकार थे. धुलाईघर में मैं एक कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगा. दरअसल मैं बेहद कमज़ोर महसूस कर रहा था. पर मैं उनके प्रस्ताव के बारे में नहीं सोच रहा था. मुझे पता था कि ग्रिस इस समय कहाँ छिपा था. वह शहर से चार किलोमीटर दूर अपने चचेरे भाइयों के घर में छिपा हुआ था. मैं यह भी जानता था कि मैं तब तक उन्हें ग्रिस के छिपने की जगह नहीं बताऊँगा जब तक वे मुझे यातना नहीं देंगे (किंतु वे इसके बारे में विचार नहीं कर रहे थे). ये सारी बातें पहले से तय थीं और मेरी रुचि इन बातों में नहीं थी. मैं केवल अपने व्यवहार के कारण को जानना चाहता था. मुझे मर जाना स्वीकार था किंतु मैं उन्हें ग्रिस का पता क़तई नहीं बताने वाला था. क्यों? मैं रैमोन ग्रिस को पसंद नहीं करता था. उसके प्रति मेरी मित्रता आज सुबह ही समाप्त हो गई थी. यह उसी समय हुआ था जब कोंचा के प्रति मेरा प्यार जाता रहा था. उसी समय जीवित बचे रहने की मेरी इच्छा भी ख़त्म हो गई थी.
बेशक, मैं ग्रिस की इज़्ज़त करता था. उसे झुकाया नहीं जा सकता था. लेकिन यह वह कारण नहीं था जिसके लिए मैं उसके बदले मरने के लिए तैयार था. उसके जीवन की क़ीमत मेरे जीवन से अधिक नहीं थी. किसी के जीवन का कोई महत्त्व नहीं था. वे किसी भी व्यक्ति को जबरदस्ती दीवार के सामने खड़ा करके उसे गोली मार देने वाले थे. चाहे वह मैं था या रैमोन ग्रिस था या कोई और था, इससे उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला था. मैं जानता था कि स्पेन के लिए ग्रिस मुझसे अधिक उपयोगी था. लेकिन मैंने सोचा कि स्पेन और अराजकता भाड़ में जाए. अब कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं था. किंतु मैं वहाँ मौजूद था. हालाँकि ग्रिस के छिपने की जगह बता देने पर मैं बच जाता, लेकिन मैंने ऐसा करने से इंकार कर दिया. यह हास्यजनक था लेकिन यह मेरा हठ था. मैंने सोचा, ”मुझे हठी होना चाहिए !” और एक मसख़रेपन का उल्लास मुझ पर छा गया.
वे मेरे लिए लौटे और मुझे पकड़ कर दोबारा फ़ासिस्ट फ़ैलिंगिस्ट पार्टी के उन दोनों अधिकारियों के पास ले आए. एक चूहा मेरे पैरों के बग़ल से गुजर कर भागा और यह देखकर मैं मुस्करा दिया. ”क्या तुमने वह चूहा देखा ?” मैंने वहाँ मौजूद अधिकारी से पूछा.
उसने कोई उत्तर नहीं दिया. वह बेहद गम्भीर था. और वह इस सारे मामले को गम्भीरता से ले रहा था. मैं हँसना चाहता था लेकिन मैंने खुद को ऐसा करने से रोका क्योंकि मुझे डर था कि यदि एक बार मैंने हँसना शुरू कर दिया तो मुझसे अपनी हँसी रोकी नहीं जाएगी.
उस स्पेनी अधिकारी की मूँछें थीं. मैंने दोबारा उससे कहा, ”बेवकूफ़, तुम्हें अपनी मूँछें काट लेनी चाहिए.” मुझे यह हास्यजनक लगा कि उसने अपने बालों को अपने चेहरे पर हमला करने की इजाज़त दे दी थी. उसने बिना किसी दृढ़ विश्वास के मुझे एक लात मारी पर मैं चुप रहा.
“क्या तुमने हमारे प्रस्ताव के बारे में सोचा?” मोटे अधिकारी ने पूछा. मैंने रुचि लेते हुए उन सब की ओर देखा जैसे वे किसी विरल प्रजाति के कीड़े हों. मैंने कहा, ”मुझे पता है, ग्रिस कहाँ छिपा है. वह क़ब्रिस्तान में किसी कब्र में छिप कर बैठा है या वह क़ब्रों की खुदाई करने वाले लोगों की झोंपड़ी में छिपा हुआ है.”
यह एक स्वांग था. मैं उन्हें खड़े हो कर अपनी बेल्ट कस कर व्यस्तता से आदेश देते हुए देखना चाहता था.
वे उछल कर खड़े हो गए. ”आओ चलें. मोलेस, तुम लेफ़्टिनेंट लोपेज़ से पंद्रह सैनिक ले लो.” मोटे अधिकारी ने कहा.
“और तुम ! यदि तुम सच बोल रहे हो तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगा. लेकिन अगर तुमने हमें बेवकूफ़ बनाया तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा होगा.”
वे सब शोर मचाते हुए वहाँ से चले गए और मैं स्पेन के फ़ासिस्ट फ़ैलिंगिस्ट सैनिकों की क़ैद में शांतिपूर्वक प्रतीक्षा करता रहा. यह सोच कर कि वे सब बेवकूफ़ बन गए हैं, मैं रह-रह कर मुस्करा रहा था. हालाँकि मैं अवाक भी था और विद्वेष से भरा हुआ भी. मैं उन्हें अपनी कल्पना में एक-एक करके क़ब्रों के पत्थर उठा कर ग्रिस को ढूँढ़ने की असफल कोशिश करते हुए देख सकता था. क्या तमाशा होगा- मैंने सोचा. जैसे मैं कोई और था और स्पेन के उन गम्भीर फ़ासिस्ट सैनिकों को क़ब्रों के बीच दौड़ते-भागते हुए देख रहा था. अपनी कड़क मूँछों और फ़ौजी वर्दियों में वे हास्यजनक लग रहे होंगे जबकि इस प्रकरण में ग्रिस किसी नायक की भूमिका में होगा- मुझे लगा. आधे घंटे के बाद छोटे क़द का वह मोटा अधिकारी अकेला वापस आया. मुझे लगा, ज़रूर वह मुझे गोली मार देने का आदेश देने के लिए आया होगा जबकि बाक़ी सैनिक और अधिकारी वहीं क़ब्रिस्तान में अपनी विफलता पर खीझ रहे होंगे.
उस मोटे सैनिक अधिकारी ने मेरी ओर देखा. उसे देख कर मुझे ऐसा नहीं लगा कि वह बेवकूफ़ बन गया था. ”इसे भी दूसरों के साथ बड़े वाले अहाते में ले जाओ,” वह बोला. ”सैनिक अभियान के बाद सामान्य अदालत यह तय करेगी कि इसके साथ क्या किया जाए.”
“तो क्या वे मुझे गोली नहीं … मारने वाले ?”
“अभी तो नहीं. बाद में तुम्हारे साथ क्या होगा, इससे मुझे कोई लेना-देना नहीं.”
मैं अब भी कुछ नहीं समझा. ”पर क्यों … ?”
उसने बिना उत्तर दिए अपने कंधे उचकाए और सैनिक मुझे लेकर चल पड़े. बड़े अहाते में कम-से-कम सौ क़ैदी मौजूद थे जिनमें महिलाएँ, बच्चे और कुछ वृद्ध लोग भी थे. मैं वहाँ मौजूद घास के टुकड़े पर चलने लगा. मैं स्तब्ध था. दोपहर के समय उन्होंने हमें भोजन-कक्ष में खाना खाने दिया. दो-तीन लोगों ने मुझसे कुछ सवाल पूछे. शायद मैं उन्हें जानता था. लेकिन मैंने उनके सवालों का कोई जवाब नहीं दिया. मुझे यह भी नहीं पता चल रहा था कि मैं कहाँ था.
शाम के समय वे दस नए क़ैदियों को अहाते में ले आए. मैं नानबाई गार्सिया को पहचान गया. वह बोला, ”अरे, तुम तो बड़े क़िस्मत वाले हो! मुझे नहीं लगा था कि मैं तुम्हें जीवित देख पाऊँगा.”
“उन्होंने मुझे मौत की सज़ा सुना दी थी,” मैं बोला. ”लेकिन बाद में उन्होंने अपना इरादा बदल दिया. पता नहीं, ऐसा क्यों हुआ.”
“उन्होंने मुझे दो बजे गिरफ़्तार किया,” गार्सिया ने कहा.
“क्यों ?” गार्सिया का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था.
“मुझे नहीं पता,” वह बोला. ”वे उन सब लोगों को गिरफ़्तार कर रहे हैं जिनकी सोच उनसे उलट है.” उसने धीमी आवाज़ में कहा, ”उन्होंने ग्रिस को पकड़ कर मार दिया.”
मैं काँपने लगा. ”कब ?”
“आज सुबह. उससे गलती हो गई. मंगलवार को वह अपने चचेरे भाई के घर पर छिपने वाली जगह से निकल कर चला गया क्योंकि उन दोनों में किसी बात पर बहस हो गई थी. बहुत से लोग उसे अपने यहाँ छिपाने के लिए तैयार थे लेकिन वह किसी का भी अहसान नहीं लेना चाहता था. उसने कहा, ”मैं इब्बिएटा के घर जा कर वहाँ छिप जाता लेकिन उसे सैनिकों ने पकड़ लिया है. इसलिए मैं जा कर क़ब्रिस्तान में छिप जाऊँगा.”
“क़ब्रिस्तान में ?”
“हाँ. कितना बेवकूफ़ था वह ! फ़ैलिंगिस्ट सैनिक आज सुबह क़ब्रिस्तान की तलाशी लेने पहुँच गए. उन्होंने उसे क़ब्र खोदने वाले की झोंपड़ी में से ढूँढ़ निकाला. उसने उन पर गोली चलाई. जवाबी गोलीबारी में वह मारा गया.”
“क़ब्रिस्तान में !”
मेरा सिर बुरी तरह चक्कर खाने लगा. अपना सिर पकड़ कर मैं ज़मीन पर बैठ गया. मैं इतनी ज़ोर से हँसने लगा कि मेरा रोना निकल गया.
सुशांत सुप्रिय सात कथा-संग्रह, तीन काव्य-संग्रह तथा सात अनूदित कथा-संग्रह प्रकाशित.अंग्रेज़ी में काव्य-संग्रह ‘इन गाँधीज़ कंट्री’ प्रकाशित, अंग्रेज़ी कथा-संग्रह ‘ द फ़िफ़्थ डायरेक्शन ‘ प्रकाशनाधीनसंप्रति: लोक सभा सचिवालय , नई दिल्ली में अधिकारी.पता: A-5001,गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड, इंदिरापुरमग़ाज़ियाबाद – 201014 (उ. प्र.) ई-मेल : sushant1968@gmail.com |
हिंसा की ऐसी विवृत्ति कि पढ़ने वाले दहल जाएं। देश के इस दौर में कहानी और भी प्रासंगिक हो गई है। सुशांत सुप्रिय और समालोचन का साधुवाद। सार्त्र का जवाब नहीं।
अदभुद एक बेहद हसास अफसाने का उतना ही मर्मस्पर्शी अनुवाद अनुभव करने का अवसर मिला धन्यवाद एवम बधाई
इसे पढ़ने के बाद मुझे नाट्य निर्देशक सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ का नाटक ‘मुंतज़िर’ याद आ गया। वह भी ऐसे ही किसी क़ैदी की कहानी है,बिल्कुल ऐसी ही पृष्ठभूमि पर। सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ शानदार नाटककार है, शानदार नाट्य निर्देशक भी। शुक्रिया Arun जी। बहुत बधाई आप दोनों को।
”वे उन सब लोगों को गिरफ़्तार कर रहे हैं जिनकी सोच उनसे उलट है.”
रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी.
अत्यंत हृदय स्पर्शी, अद्भुत और मृत्यु के मनोद्वन्द में उलझकर, जीवन के अस्तित्व की चुनौतीयों में गुंथी ऐसी कहानी जिसमें राजद्रोह के तथाकथित अराजकतावादी दोषी और निर्दोष कैदियों की मनोदशा का चित्रण है,!
उनके चिंतन में जिस तरह की दार्शनिक स्थितियां महान दार्शनिक सार्त्र रखी हैं वे बेहद हिला देने वाली हैं, अंत तो बहुत ही मार्मिक है और सुशांत सुप्रिय जी सिद्धस्त अनुवादक हैं उन्होंने अनुवाद को बहुत बारीकी से रचा और बुना है !
सदा की तरह आपका चयन, संपादन उत्कृष्ट है अस्तु आपका आभार 🌹
अद्भुत कहानी। सुंदर अनुवाद।
विचलित कर देने वाली कहानी है यह। इसकी भाषा इतनी प्रवाहपूर्ण है कि पाठक इससे चिपक सा जाता है। और कहानी का अंत तो अत्यंत विडंबनात्मक है। सुशांत सुप्रिय को इतने अच्छे अनुवाद के लिए बधाई।
मुझे अपने देश में पच्चीस जून उन्नीस सौ पचहत्तर की आधी रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आपातकाल की घोषणा करने की याद आ गयी । धीरे-धीरे विपक्षी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया गया । मुझे पहली दफ़ा जुलाई में । ज़मानत करा कर बाहर आ गया । फिर ग्यारह दिसंबर 1975 की संध्या में इमरजेंसी के खिलाफ़ नारे लगाये ।
पुलिस ने गिरफ़्तार करते ही लाठियाँ बरसानी शुरू कर दीं । हुक्म के ग़ुलाम अति उत्साही सिपाहियों ने अंधाधुंध पिटाई की । थाने में ले जाकर नंगा कर दिया । चमड़े के बल्ले से पिटाई की । सोंटे को घुटनों के बीच रखकर एड़ियों को नितंबों से मिलाने की कोशिश करते रहे । शरीर सुन्न हो गया था । न पानी दिया और न रोटी । अगली सुबह दस बजे सेशन जज की कचहरी में पेश किया गया । लोहिया के विचारों से प्रभावित सीनियर एडवोकेट श्यामलाल सरदाना ने हमें जुडीशियल कस्टडी में जेल भेज दिया । सच न उगलवा सकने के कारण हमें तीन दिन तक पुलिस रिमांड में भेज दिया गया । हमें अलग अलग चौकियों [तीन व्यक्तियों को] भेजा गया । पुलिस नाकाम रही । शरीर की हालत ऐसी बना दी कि न जी सकते हैं और न मर सकते । हमें गोली मार कर मौत के कूएँ में डाल देते ।
पैब्लो इब्बिएटा, टॉम और जुआन ने मौत की सजा की रात जिस मानसिक पीड़ा और अस्तित्व हीनता की अनुभूति की, कमोबेश उसी तरह की अनुभूति पाठक के नाते इस कहानी को पढ़ते हुए महसूस हुई।
जीवन-मरण के उतार-चढ़ाव को लेकर बढ़ने वाली यह कहानी सबसे पहले सह-अस्तित्व बोध को खत्म करती है और आगे स्व अस्तित्व बोध को भी तिरोहित कर मृत्यु को यथाशीघ्र वरण करने को बढ़ जाती है।
सह-अस्तित्व बोध के खत्म होते ही नायक को टॉम और जुआन के होने से चिढ़ होने लगती है और यह बोध आगे बढ़कर उसकी प्रेयसी ‘कोंचा’ से भी उसे दूर ले जाती है।
यह कहानी ‘देह’ और ‘आत्मा’ के जीवित रहते बिलगाव की कहानी है। यह तब सिद्ध होता है, जब टॉम लकड़ी के तख्त को छूकर और इब्बिएटा अपने शिथिल शरीर को अलग से महसूस करते हुए अपने शरीर और आत्मा को दो खंडों में विभाजित महसूस करता है।
कुल मिलाकर इस कहानी में असंगत कथा विन्यास और डर के सहारे ‘अस्तित्व की अहमियत’ को स्थापित करने की कोशिश है।
कहानी का अनुवाद बहुत अच्छे ढंग से किया गया है। कथा कहीं भी अवरुद्ध नहीं होती।
सादर धन्यवाद।
अस्तित्व और संवेदना को झकझोरती कहानी.. मृत्यु
के वातावरण में जीवन की विडंबना का वर्णन। मृत्यु की गंध.. अस्तित्व की निरर्थकता.. निश्चित अंत की प्रतीक्षा में बीतते क्षणों में जीवन का मोह और निरूपाय बेचैनी..अधिनायकवादी क्रूरता और निर्ममता को अभिव्यक्त करती कहानी ‘द वॉल’ का बहुत सुंदर भावानुवाद किया है सुशांत सुप्रिय जी ने। ‘दीवार’ कहानी पढ़कर अज्ञेय के तीसरे उपन्यास ‘अपने-अपने अजनबी’ की याद आ गई । निश्चित ही अज्ञेय ने द वॉल से बौद्धिक उत्तेजना पाई थी । सुशांत जी को सारगर्भित प्रयास के लिए साधुवाद ! समालोचन और अरुण देव जी का हम पाठकों तक कहानी पहुंचाने के लिए हार्दिक आभार ।