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Home » गर्भ का तेज: अली बाबा: जया जादवानी

गर्भ का तेज: अली बाबा: जया जादवानी

अली बाबा (1940 –2016 ) सिंधी भाषा के प्रसिद्ध लेखक हैं. उनकी कहानी ‘गर्भ का तेज’ इसी शीर्षक से 1970 के आसपास प्रकाशित हुई थी. इसका मूल सिंधी से यह हिंदी अनुवाद दोनों भाषाओं में लिखने वाली वरिष्ठ कथाकार जया जादवानी ने किया है. कहानी आठ महीने की गर्भवती स्त्री और उसके एक चाहने वाले के बीच घटित होती है. साहित्य में इस तरह के कथानक दुर्लभ हैं. सच में जीवन हमारी सोच से भी अधिक विचित्र है जिसका प्रतिनिधित्व यह बेचैन करने वाली कहानी करती है. आपको सिंधी कहानी की मज़बूती का भी एहसास होगा. प्रस्तुत है.

by arun dev
October 12, 2023
in अनुवाद
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गर्भ का तेज: अली बाबा: जया जादवानी
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गर्भ का तेज
अली बाबा
मूल सिंधी से हिंदी अनुवाद: जया जादवानी

 

वह मेट्रोपोल से पी-खा धुत होकर निकला है.

आकाश में तारे जैसे जलते-बुझते, छोटे-बड़े होते, छितर-बितर नीचे उतर आए हों और धरती पर हवाओं में चाँदी बिखर गई हो.

उसने किसी की खोज में चारों तरफ़ निगाह घुमाई.

उसकी आँखें घूमती हुई सामने खड़ी कारों के पार जा ठहरीं. सामने सड़क के उस पार वह गर्भवती औरत हैण्ड बैग लिए खड़ी नज़र आ रही है, जो थोड़ी देर पहले बार में एक बिगड़े अमीर बुड्ढ़े के साथ बैठी थी.

उसने गहरी घूरती आँखों से औरत के गहरे रंग-रूप और उसके गढ़े हुए नैन नक्श को निहारा. उसका दिमाग घूम गया. औरत क्या थी बौर थी बौर, भरी-पूरी-समृद्ध. टाँगें जैसे चप्पू, उस पर आठवें महीने के गर्भ की सूजन लिए हुए भी नाभि की गहराई ऐसी, जैसे गहरा दलदल, पेट ऐसा, जैसे बच्चे पैदा करने के लिए कुदरत ने उसे अतिरिक्त जगह, अतिरिक्त शक्तियाँ दीं हों. भारी-भारी हिप्स और कमर में चाबियों का गुच्छा झूलता, नीली साड़ी के ऊपर माथे पर नीली गहरी बिंदी, अशांत मुख, गहरी नील गोपी, नैन नक्श ऐसे, जो एक बार देखने के बाद सदा के लिए आँखों में बस जाएँ. फ्रीज़ हो जाएँ दिमाग में और दोनों के बीच दौड़ रहे हैं कारों के अटूट सिलसिले.

उसने लाउंज में करोड़पति मुहाजिर बूढ़े से उसकी बातचीत सुनी थी. औरत के लिए पैसों का मसला था और बूढ़े के लिए पतली-लचकदार कमर वाली औरत का मसला, बावजूद इसके वह उस मरदूद बूढ़े से कुछ पैसे निकलवा ही चुकी थी, चूमने और चाटने की एवज में.

औरत के उठते ही वह समूचा पैग एक ही घूँट में गटक बाहर निकल आया था, उसे ट्रैप करने के लिए.

दोनों के बीच कारों के अटूट सिलसिले तेज़ी से गुज़र रहे हैं. उसने अपनी एक आँख कंजी कर चुरुट सुलगाया और औरत को काबू करने के वास्ते अपनी एकटक घूर से उसकी तरफ़ देखता रहा.
देखना चाहता है कि जवाबी मैच में औरत की तरफ़ से उसे क्या मिलता है?
और जवाब में

जवाब में उस अशांत औरत ने एक क्षण के लिए उसकी तरफ़ देखा फिर गर्दन सामान्य अंदाज़ में नीचे झुका उँगलियों से चाबियाँ खडकाती रही. फिर दूसरे ही क्षण में

दूसरे क्षण में
औरत की निहांईं (गर्भ) में बच्चा जैसे चिचौलियाँ करते हाथ-पैर मारने लगा, उसकी देह में ख़ुद को खींचते अंदर ही अंदर कलाबाज़ियाँ खाते खेलने लगा. गुदगुदी महसूस करती औरत के अंदर चल रही समूची वार्ता इतनी प्रगट हो आई कि भीतर की उलटती-पलटती लहरों के छींटे उछलते उसके होंठों, गले और आँखों में हल्की मुस्कान से चमकने लगे.

एक क्षण के लिए उसने गर्दन ऊपर उठा उसकी तरफ़ देखा फिर सिर झुका लिया.
(एक गूढ़-गहरा इशारा, जिसमें हाँ भी है, न भी.)

और हवाओं में जैसे रजतरंगी धूल उड़ रही है. जलते-बुझते साइन बोर्ड औरत के ऊपर इन्द्रधनुषीय छटा उड़ेल रहे हैं. जैसे ही ट्रेफिक कुछ लम्हों के लिए बंद हुआ, वह तेज़ी से सड़क पार कर औरत की तरफ़ बढ़ता गया, ऐसे कि देखने वाले समझें, पति-पत्नी हैं, टैक्सी का इंतज़ार कर रहे हैं.

‘असल में तुम बहुत शानदार हो. तुमने देवी वीनस की दासी अफ़रोज़न की तरह एक ही निगाह में मुझे बिल्कुल बुत बना दिया.’
‘थैंक्स. पर मैं यहाँ ग्राहक फँसाने नहीं आई हूँ.’

‘मुझे भी किराए की औरतें पसंद नहीं हैं. तौबा-तौबा! औरत और मोल भाव? मेरे ख्याल में तो औरत को मदर गॉडेस बना कर इस पूरी दुनिया से सजदा कराया जाए, तब भी उसके एक बाल की क़ीमत अदा नहीं की जा सकती, देह की तो बात ही और है.’

‘मतलब की बात कर. क्या चाहिए?’ औरत तल्ख़ हो गई.
‘तुम.’
औरत ने बैग अपने हिप्स पर नचाते अपने थुलथुल पेट की ओर निहारा

‘आख़िर इतना चुरपुराहट क्यों? मैं आठवें महीने से हूँ.’
‘चुरपुराहट? तुम भले इसे चुरपुराहट समझो पर गर्भवती औरत को अपनाते मेरी रातों को अमरता मिलती है.’
औरत की आवाज़ ज़्यादा तीख़ी हो गई
‘तुझे तो अमरता मिलेगी पर मेरा बच्चा मर जाएगा. सुन, यहाँ औरत के देह की कीमत दो-ढ़ाई सौ रुपया है. उस अमीर बुढ्ढे से अपने जिस्म को चुमवाने-चटवाने और बच्चे को बचाने का सौ रुपया लेकर आई हूँ.’
सुनकर नौजवान को क्षण भर के लिए गुस्सा आ गया

‘तौबा! जेकोलीन•  तक जितनी भी हसीन औरतें हैं, इन अमीर बुड्ढ़ों ने फंसाकर रखी हुईं हैं, पागल कुत्ते की तरह उनके माँस को चाटने-चूसने और नोचने के लिए.’

‘सिर्फ़ यही नहीं, नोचते-कचोटते-चूसते तुम नौजवान भी सेक्स हंगरी-थर्सटी हो. बताओ, मेरे पीछे सूंघते-सूंघते क्यों आ रहे हो? इस हाल में भला कोई भी औरत तुम्हें कंपनी दे सकती है?’

‘मेरे ख्याल से औरत कंपनी देना चाहे तो दसवें महीने में भी दे सकती है, बच्चा जनने वाली रात से थोड़ा पहले तक’

‘हाँ. भले उसे दूसरे दिन मरा हुआ बच्चा क्यों न पैदा हो?’ औरत का मुँह कड़वा हो गया.
‘नहीं. जिंदा, ऊँ…आं….ऊँ….आं करता ही पैदा होगा. भला कोई कबूतर अपने अण्डों पर बैठेगा तो क्या अंडे टूट जाएँगे? सुनो, तुम मेरे जीवन में आने वाली पहली गर्भवती औरत नहीं हो. आज तक मैंने कोई क़त्ल नहीं किया है.’

‘क्या??’ औरत को जैसे उसकी बातों पर यकीन नहीं हो रहा. नौजवान के चेहरे को गौर से देखने लगी. उसे ज़रा घबराहट होने लगी.

‘ओह नो. मुझे डर नहीं लग रहा. यू आर ए बाइरोनिक मैन.’

‘ओनली बाय फेस एपीरियंस, बाय स्टाइल, नाट बाय कैरेक्टर. यकीन मानो, मैं तुम्हारे भीतर आग भरके, हाथों में मशाल देकर, तुम्हें अपने मज़बूत घोड़ों के मुकाबले में दौड़ाऊँगा नहीं. आया समझ में?’

औरत ने दुविधा और द्वंद्व भरी अजीब निगाह से उसे निहारा. उसने ख़ुद को एक चुम्बकीय कशिश में महसूस किया फिर एकदम उस कशिश से निकलने के लिए इंकार में सिर हिलाती फुटपाथ पर चलने लगी.

‘थैंक यू.’ वह औरत के पीछे-पीछे चल पड़ा और चलते-चलते औरत की बाँह में बाँह फँसा ली. औरत की बाँह उसकी बाँह से लगी उलझती-छटपटाती रही फिर उसकी छटपटाती बाँह खुद ही शिथिल हो नौजवान की बाँह से लिपटती चली गई. वह लड़खड़ाती मदमाती सी नौजवान के साथ चलने लगी. यह सब एक चुपचाप में हो गुज़रा, जैसा कि हमेशा होता है.

अब सड़क पर चलते-चलते औरत भुनभुनाने लगी
‘अजीब आदमी हो. दसवें महीने या बच्चे की पैदाइश से फ़कत एक रात पहले! दूसरे मर्द तो दूर भागते हैं.’
‘हाँ. पर मुझे इसमें ज़्यादा मज़ा आता है. डबल.’
‘ऐसा करने से तुम्हें क्या महसूस होता है?’
‘सृष्टि के प्रारंभ की प्रतिध्वनियां, जो संसर्ग के चरम तक आते-आते किसी औरत के मुँह से निकलती हैं, उम् ……उम् ’

‘ऊँहं. सृष्टि के प्रारंभ की प्रतिध्वनियाँ? तुम क्या जानो कि जचगी के वक्त औरत कितनी तकलीफ़ भोगती है.’
‘झूठ, कोरा झूठ. तुम औरतों के मन पर शायद आज तक हज़रत मूसा की ज़ात की दहशत बैठी है.’
‘कौन सी?

‘ऐ औरत, तुमने गुनाह किया है. तुम्हें बहिश्त से बाहर धकिया दिया जाएगा. अब तुम्हारी सज़ा यही है कि इस जचगी की पीड़ा को इतना बढ़ाया जाए कि तुम सिर पटक-पटक कर, कराहती, चीखती-चिल्लाती-दर्द सहती बच्चा जनती रहो.’
‘तो ऐसा नहीं है क्या?’

‘है. पर उस बेचारे को क्या पता कि जचगी की उस पीड़ा और चीखों में औरत कितना मज़ा लेती है?’
‘मज़ा?’
‘हाँ और क्या? नहीं तो सारी औरतें बच्चेदानियाँ न निकलवा देतीं और धरती पर बचती सिर्फ़ ख़ाक और धूल?’
जवाब में औरत हैरत से हैरान हो उसके मुँह की ओर निहारती है.
‘बताओ न, तुम्हारी बच्चे जनने की चाहना कभी ख़त्म होगी?’
औरत एक पल के लिए सुन्न पड़ गई.
‘क्या तुम यहूदी हो?’
‘नहीं.’
‘ईसाई?’
‘नहीं.’
‘हिंदू हो?’
‘नहीं. मैं सिंधी हूँ.’
‘तुम झूठे हो. सिंधी तो गधे होते हैं. मुझे सिंधियों से नफ़रत है. तौबा-तौबा! किस वाहियात कौम का नाम लिया है.’
‘मेरे ख्याल से तुम बिहारिन हो?’
‘हाँ.’
‘फिर तुम ठीक कह रही हो. तुमने अभी तक सिर्फ़ वडेरों से संसर्ग किया होगा, बाक़ी तो न तुमने सिंध देखी है, न सिंधी. डरो मत. न मैं वडेरा हूँ, न वडेरा का बेटा. मैं तुम्हें पूरी संतुष्टि दूँगा.’

‘पता नहीं क्यों? अब तुम्हारे साथ चलते मुझे डर लग रहा है.’

‘हर औरत मुझसे मिलने में कतराती है, जैसे बच्चे जनने से, पर …. सुनो, तुम जा सकती हो तो मुझे छोड़ कर चली जाओ. रोकूँ टैक्सी?’
‘तुम सिंधी सूअर हो. तुमने आँखों ही आँखों में मुझे खुद से ऐसे गाँठ लिया है, जैसे …..’
‘जैसे कुत्ता, कुतिया को ….’
नौजवान जैसे ही जुमला पूरा करता है कि दोनों की हँसी फूट पड़ती है.

टैक्सी रुकी, वे दोनों रात की नीरवता में एक छोटे केबिननुमा बंगले में पहुँच गए. ब्लैक लाईट का बटन ऑन होते ही दीवारों पर लगी तस्वीरें और शो पीस चम-चम चमकने लगे. चौतरफ़ हैं होंठ-हाथ-कलाईयां-उँगलियाँ-नाक-आँखें-वक्षस्थल. औरत हैरानी से चारों तरफ़ निहारती रह जाती है.

‘तुम कैसे कह सकते हो कि तुम वडेरे नहीं हो?’
‘नहीं हूँ.’ उसने एक गहरी साँस ली–

‘जैसे तुम मेरी नहीं हो, वैसे इस कमरे की तो क्या पूरे मुल्क की कोई भी शै मेरी नहीं है. एक तीली भी नहीं. यह बंगला मेरे एक मिस्कीन उर्दू आर्टिस्ट का है. समझीं?’

उसने नीलयुंग के गीतों की कैसेट लगाई, पूरा कमरा झीनी-झीनी, भीनी-भीनी मौसिक़ी के अनाम दर्द की लहरों पर, नीलयुंग के कंठ से फूटती मधुर आवाज़ में डूबने-उतराने लगा. एक समां बंध गया. दीवारों पर लगी तरह-तरह की तस्वीरें काली रौशनी में ज़ाहिर होती चली गईं, जैसे अमावस्या की रातों में झिलमिलाते तारों का तेज.

और फिर है मीठी-मीठी आग. आग, जो निकलती है गरम-गरम जिस्मों से. जिस्म, जिस्म के कपड़ों से रिहा हैं.

जैसे-जैसे रात गुज़रती गई, वैसे-वैसे गर्भवती औरत की पीड़ा बढ़ती गई. अंदर में अलाव, हाथों में मशालें. वह औरत कैरोलिन लैम्ब (Caroline Lamb) की तरह, मजबूत घोड़ों के साथ दौड़ती चली गई अजानी दिशाओं की ओर, हाँफते, एक साँस में दौड़ते, देह की संधियों में बिजलियों का पानी भरते. मज़बूत घोड़े कहीं नहीं ठहरते और उनकी असीम दौड़ का कोई अंत दिखता भी नहीं. उसके बच्चा जनने की जगह चौड़ाती जाती है और बच्चा बच्चेदानी के सारे धागे तोड़ उसकी गुह्य गुफ़ा से बाहर आने के लिए पलटियाँ खाते अपना सिर बाहर निकालने की कोशिश में ज़ोर लगा रहा है, उसके उस हिस्से पर अपना सिर मार रहा है. अचानक औरत के गले से पीड़ा से विह्वल चीख़ निकल पड़ी.

‘अल्लाह …. मैं मर रही हूँ. ओ जलील सिंधी कुत्ते, तुम मेरा बच्चा गिराना चाहते हो .. ओ …ओ ….ऊँहं …. ऊँहं …..उम् …..उम् ….उम् ……उम्’

और फिर पीड़ा और तकलीफ़ से वह निढ़ाल होने लगी. चीखें गले के भीतर ही घुटती गईं और फिर आँखों के सामने आ गए तारे, चमकते तितर-बितर तारे, जैसे जुड़वां बच्चे जनने के बाद औरत बेहाल हो होश से बाहर चली जाती है, उसने अजीब ख़ुमारी में आकर आँखें बंद कर लीं, जैसे निर्वाण मिल गया हो. जैसे बच्चा जनने के बाद किसी औरत को मिलता है.

सुबह, लाल अजरक (चादर) के अंदर पेट पर चुम्बनों का मधुर स्पर्श महसूस करते उसने अपने होश संभाले, अपने पेट पर हाथ फेरते-लजाते अपने साथी की बगलों में मुंह छिपा लिया.

‘तौबा! रात नहीं जैसे काली कयामत गुज़री हो. तुम जादूगर हो.’
‘न मैं लार्ड बायरन हूँ न जादूगर. मैं सिंधी गधा हूँ.’
लफ़्ज़ों की तल्खी को महसूस करते उसने उसे अपने नंगे बदन के जाल में मकड़जाल सा लपेट लिया.
‘शायद रात नशे में मैं तुम्हें क्या-क्या बोल गई. नाराज़ हो?’
‘नहीं. मैं ऐसी बातों की परवाह नहीं करता.’
औरत ने उसे और कसकर भींच लिया.
‘यह रात थी कि क्या थी? ऐसी पीड़ा तो मुझे कभी बच्चा जनते हुए भी नहीं हुई.’
‘औरतों से बच्चा जनवाने का पूरा हुनर है मुझमें.’

अचानक औरत को कुछ याद आ गया …..

‘ओह …. मुझे जाना है. मेरे बच्चे मेरा इंतज़ार करते होंगे.’
कुछ पलों की गहरी ख़ामोशी.

औरत उठी ….
‘फिर कब मिलेंगे? क्या उसी मोड़ पर?’
‘मैं बार-बार नहीं मिलता.’

औरत ने साड़ी बाँधते हुए थोड़ी उदासी से उसकी ओर देखा ….
‘क्यों?’
नौजवान ठण्डी साँस भरते कुछ पलों के लिए जैसे घुट गया….
‘इसलिए कि ज़्यादा गालियाँ खाने की मुझमें सहनशीलता नहीं है.’
‘तुम नाराज़ हो?’ औरत ने कुछ तेज़ स्वर में पूछा.
‘रूठना छोड़ो न. मैं कल उसी जगह तुम्हारे इंतज़ार में खड़ी रहूँगी.’

‘ठीक है.’ अनमना स्वर. और फिर गहरी-तीखी चुम्मियों की आवाज़ के साथ दोनों के होंठ जुदा हो गए. बेहद तकलीफ़ से उसने उसे देखा.
‘ओ. के. गुड बाय.’

‘बाय …’ वह उसे छोड़ने गेट तक आया. दोनों के बीच बिछड़ने की चुप्पी है.
कभी कोई पल सदियों पर भारी पड़ जाता है.
‘सुनो …’ मरदाना आवाज़.
‘कहो.’
‘समझ में नहीं आ रहा कि आप किस रास्ते की तरफ़ बढ़ना चाहती हैं?’
‘क्या मतलब?’ औरत ने घूर कर उसे देखा.

‘मेरा मतलब है कि हिंदुस्तान आपको पसंद नहीं आया, बंगाल आपको रास नहीं आया. सिंध में सिर्फ़ हैं कुतियाएँ और कुत्ते. बताइए फिर कहाँ जाएँगी? किस दिशा में?’

‘क्यों? तुमने ऐसा सवाल क्यों किया?”
‘शायद तुम्हें खो देने के बाद मुझे तुम्हें ढूँढना पड़े.’
‘ऐसा क्यों नहीं कहते कि तुम मुझे धिक्कारते हुए निकाल देना चाहते हो?’
‘नहीं. ऐसा नहीं है. जो बीज धरती में मर्ज नहीं हो पाते, वे भस्म हो जाते हैं.’
औरत लाजवाब हो, बुझी हुई आँखों से उसे निहारती रह गयी.

‘आख़िर तुम सिंधियों को कुत्ता कैसे कह सकती हो? बताओ, तुम्हारा ऐसा कौन सा मुहाजिर है, जिसने उस मरदूद बुड्ढ़े की तरह तुम्हारी देह को माल-ए-ग़नीमत समझ खरीदने के लिए नीलामी नहीं लगाईं? बताओ, वे कौन से कुत्ते हैं, जिन्होंने तुम्हें औरत से वेश्या बना दिया. बेस वुमन.’

‘उफ़ …. बस करो … बस करो.’ औरत की सुनने की सहनशीलता जैसे भस्म हो गई. वह तेज़ क़दमों से टैक्सी की ओर बढ़ी, जैसे ही टैक्सी स्टार्ट हुई, नौजवान तेज़ी से बढ़ता हुआ कार की खिड़की तक आया ….

‘अभी भी कोई तीर बाक़ी है क्या?’ औरत अशांत हो गई.

‘नहीं. मैं ये कह रहा था कि मैं सितारों की गर्दिश का ज्ञान नहीं रखता, न उनमें भरम रखता हूँ पर मैं महसूस कर रहा हूँ कि अलविदाई के कुछ नए सितारे आसमान में निकल आए हैं. न जाने किस-किसको अपना वतन छोड़ना पड़े … मैं और तुम अब शायद चाहने के बावजूद न मिल सकें.’

औरत बेचैनी से टकटकी लगाकर उसे निहारती रही.
‘कुछ और भी कहना चाहते हो?’

‘और? हाँ. मुझे अपने हों या पराए, बच्चे अच्छे लगते हैं. शायद इसलिए कि बच्चे तो पैदा ही होते हैं प्यार करने के लिए. जब तुम यह बच्चा जनो और उस बच्चे की चिकनी और गेहुंई ख़ाल पर सफ़ेद-सफ़ेद दाग़ दिखें तो भूले से ही सही, कोमिला वाले उस बंगाली ब्वाय फ्रेंड की तरह मुझे भी अपनी यादों में रख लेना.’

औरत का मन भर आया. उसने टैक्सी वाले को चलने के लिए कहा और अपनी बाँह घुमा, गर्दन उठा रियर व्यू मिरर में पीछे देखती रही, जैसे-जैसे टैक्सी दूर होती जाती है, वैसे-वैसे उसके कलेजे पर चीर पड़ते जाते हैं.

(• जैकोलिन एफ़. कैनेडी एक सुंदर स्त्री का नाम है जिसने बीस साल की उम्र में जॉन कैनेडी से शादी की थी, जो उससे बारह साल बड़े थे. रिफ़्रेंस वहीं से है कि जेकोलिन से आज तक जो हसीन औरतें है, इन अमीर बुड्ढों ने फँसाकर रखी हुई हैं. अनुवादक)

जया जादवानी
(1 मई 1959 को कोतमा, शहडोल) 

कविता-संग्रह: मैं शब्द हूँ, अनंत संभावनाओं के बाद भी, उठाता है कोई एक मुठ्ठी ऐश्वर्य और पहिंजी गोल्हा में (सिंधी).  कहानी-संग्रह: मुझे ही होना है बार–बार, अन्दर के पानियों में कोई सपना कांपता है, उससे पूछो, मैं अपनी मिट्टी में खडी हूँ कांधे पे अपना हल लिये, समन्दर में सूखती नदी (प्रतिनिधि कहानी संग्रह), बर्फ़ जा गुल (सिन्धी कहानी संग्रह), खामोशियुनि जे देश में (सिन्धी कहानी संग्रह),ये कथाएं सुनाई जाती रहेंगी हमारे बाद भी (प्रतिनिधि कहानी संग्रह), अनकहा आख्यान, अणचयल आखाणी (सिन्धी कहानी संग्रह). उपन्यास: तत्वमसि, कुछ न कुछ छूट जाता है, मिठो पाणी खारो पाणी (यह उपन्यास सिन्धी में भी प्रकाशित), हिन शहर में हिकु शहर हो (सिंधी उपन्यास), इस शहर में इक शहर था, देह कुठरिया, ख़रगोश आदि प्रकाशित. 

मुक्तिबोध सम्मान, कुसुमांजलि सम्मान, कथा-क्रम सम्मान आदि प्राप्त.
jaya.jadwani@yahoo.com 

 

Tags: 20232023 अनुवादअली बाबागर्भ का तेज
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Comments 13

  1. ममता कालिया says:
    2 years ago

    बहुत unique कहानी है।कुछ असंभव सी होकर भी यथार्थ।अनुवाद बहुत चुस्त,चपल है

    Reply
  2. चंद्रकला त्रिपाठी says:
    2 years ago

    बहुत संवेदनशील

    Reply
  3. Rajeev Prakash Sahir says:
    2 years ago

    बहुत उम्दा अफसाना अदभुद बहुआयामी कथानक कायनात संसार सेक्स की मानविय संवेदनाओ से परिपूर्ण पुनरावृत्ति की नफसियाति धनक और कसक जो शाश्वत है लेकिन अपनी धुरी पर अधुरी है लफ़्ज़ों की चित्रकारी में आहोफुगां की अनुभूति है शुक्रिया जनाब इस उम्मीद के साथ कि आप ऐसे बेमिसाल अफसानो से रू ब रू कराते रहेंगे

    Reply
  4. ऐश्वर्य मोहन गहराना says:
    2 years ago

    कहानी पढ़ने के बाद सोच रहा हूँ, अजीब कहूँ या अद्वितीय। जीवन के यथार्थ का अनछुआ सा पहलू। पूरी शिद्दत से उसका वर्णन। शानदार।

    Reply
    • Hiralal Nagar says:
      2 years ago

      साधारणतया बहुत प्रभावशाली कहानी को हम गज़ब से संबोधित कर बैठते हैं। यह कहानी तो गज़बोगज़ब है। सिंधी लेखक इतनी रोमांटिक और रोमांचित कर देनेवाला कहानी लिख सकता तो हिंदी लेखक क्यों नहीं?
      बहरहाल, कहानी सिंधी में लिखी गई। लेकिन अनुवाद इतना चुस्त कि भ्रम होता है कि इस कहानी को जया जादवानी ने हिंदी में लिखा है।
      यह कहानी एक साथ कई सवाल खड़ा करती है- इनके प्रति:समाज , परिवार , सेक्स, पैसा और स्त्री अस्मिता।
      सिरफिरापन न हो तो कहानी बनती ही नहीं। जीवन के विरल अनुभव की एक अद् भुत कहानी।

      Reply
  5. Bhairavi Amrani says:
    2 years ago

    चुस्त है। मूल सिंधी में है जानकर आश्चर्य चकित हूँ व खुश हूँ पढ़कर। संवेदनाओं से भरपूर…इतनी सत्यता व कलात्मकता से कम ही लिखा जाता है या लेखक खुद बचना चाहता है। यह अद्भुत है।

    Reply
  6. देवेंद्र मोहन says:
    2 years ago

    अली बाबा या अली मुहम्मद रिंद की यह कहानी हमेशा की तरह प्रभावित करती है, परेशान भी करती है। सिंधी से जया जादवानी का यह अनुवाद पाकिस्तान में लिखी जा रही कई कृतियों की तरह अनमोल है, ज़रूरी है।कई उर्दू और पंजाबी लेखन के हिंदी अनुवाद तो बहुतेरे मिल जाते हैं पर सिंधी के समृद्ध साहित्य के अनुवाद कम ही पढने को मिलते हैं। यह हो सकता है मुझ ही से देखने में चूक हो गयी हो। एक पत्रकार के रूप में मैंने ‘जिये सिंध’ अथवा ‘सिंधु देश ‘ आंदोलन का सत्तर के दशक से ही अध्ययन किया है। इसी दौरान मैंने यह भी सुना पढ़ा था कि पाकिस्तान में सिंधी में काफ़ी सारा अलामती साहित्य लिखा जा रहा है। बहुत तो नहीं थोड़ा-बहुत पढ़ा लेकिन एक ख़ास परिप्रेक्ष्य नहीं बन पाया। सिंधी कथाकार लाल पुष्प इस बाबत बात करते रहते थे। पर असमय मृत्यु के कारण नहीं कर पाए। कुछ काम हो रहा है लेकिन अधिकांश अंग्रेज़ी में ही। जया जी और उन जैसे उद्यमियों के प्रयास से कुछ और सिंधी साहित्य हिंदी में आए तो यह बहुत बड़ा योगदान होगा…

    Reply
  7. प्रिया वर्मा says:
    2 years ago

    एक कहानी पर दस पंक्ति की टिप्पणी लिख देना एक किस्म का अपराध है। यह बहु परतीय कहानी है, इसलिए बड़ी है। इसमें प्रेम शब्द के वर्तमान यथार्थ की परिभाषा है। क्षण भर के प्रेम में देह की नश्वरता को लेकर लिखी हुई एक नई थीम है इस कहानी की। कहानी में कई रस एकसाथ बहते हैं- संयोग और विप्रलंभ, हास्य और करुण, वात्सल्य भी और कहीं- कहीं व्यंग्य भी। विरह की अंतर्ध्वनि पर संपन्न होने वाली कहानी के अंत को लेकर मेरी कुछ अन्य अपेक्षाएं रह गईं थीं, पर यह अनुवाद है, मूल कहानी की भाषा कोई दूसरी मतलब कि सिंधी है। जया जी के अनुवादक पक्ष को बहुत सारी बधाई जो उन्होंने यह कहानी हम हिन्दी भाषियों तक पहुंचाने के बारे में सोचा, पहुंचाया भी। आकर्षण से जन्म लेती हुई यह कहानी विरह की संभावना पर खत्म होती हुई , अपने भविष्य को खुला रहने देती है, पाठक को लंबे समय तक ध्यान रहेगी और इस ध्यान में दर्ज़ रह जाने में कहानी की बोल्डनेस से ज़्यादा कुछ और है जो प्रेम की आकांक्षा करने के आगे की कोई अनुभूति है।

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  8. विनीता बाडमेरा says:
    2 years ago

    कुछ कहानियां दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर करती है। यह कहानी उनमें से एक है। देह से शुरू हुआ कोई संबंध इतना गहरा होता है कि आपकी आंखें भीग जाए ।
    जया जादवानी जी का आभार खूबसूरत अनुवाद कर इस कहानी को हम तक पहुंचाने के लिए।

    Reply
  9. खुर्शीद आलम says:
    2 years ago

    बहुत ही खूबसूरत कहानी और बेहतरीन अनुवाद। लेखक, अनुवादक बधाई के पात्र हैं। शुभकामनाएं।

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  10. Anonymous says:
    2 years ago

    बहुत सी परतों में बुनी गई है कहानी। स्त्री भी देह भी देह से अप्रतिम प्रेम भी और सचमुच विषय भी अछूता।
    जया जी के प्रति आभार। सिंधी साहित्य से ऐसी ही कुछ और नायाब कहानियां लाएं जया जी।

    Reply
  11. प्रोफेसर हसीन खान says:
    2 years ago

    एक बेहतरीन और शानदार कहानी …जया जादवानी जी का अनुवाद काबिले तारीफ … सिंधी भाषा की यह कहानी सचमुच में अपने कथानक और संवेदनशीलता में अद्भुत है….

    Reply
  12. अलका सिन्हा says:
    1 year ago

    गर्भस्थ शिशु की तरह अपनी रचना के पोषण के लिए किए जाने वाला संघर्ष, सृजन का सौंदर्य और उसकी तेजस्विता से उद्भासित इस कथानक और उसके अनूठे ट्रीटमेंट को अचंभित होकर महसूस कर रही हूं। लगता नहीं, इसकी गिरफ्त से निकलना आसान होगा।
    जया जादवानी ने अपनी कहानी की तरह इसे अपनाया, तभी तो अनुवाद में मौलिकता को इस कदर संजो पाईं हैं।
    बहुत-बहुत साधुवाद!

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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