हमने ‘अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे’ नहीं उठाये : रविभूषण
हिंदी की आलोचना-परंपरा में रविभूषण उन प्रमुख आवाज़ों में से हैं जिन्होंने अपने साहस और वैचारिक निरंतरता से पाँच दशकों से मार्क्सवादी-आलोचना को ज़िन्दा रखा हुआ है. ‘फ़ासीवाद की दस्तक’,...
हिंदी की आलोचना-परंपरा में रविभूषण उन प्रमुख आवाज़ों में से हैं जिन्होंने अपने साहस और वैचारिक निरंतरता से पाँच दशकों से मार्क्सवादी-आलोचना को ज़िन्दा रखा हुआ है. ‘फ़ासीवाद की दस्तक’,...
आज जब पुरुषोत्तम अग्रवाल सत्तर वर्ष के हो चुके हैं, उन्हें याद करना अपने प्रिय शिक्षक, मित्र और मार्गदर्शक को याद करना है. यह उनके बौद्धिक महत्व और आलोचनात्मक हस्तक्षेप...
एक ऐसे समय में, जब सोशल मीडिया के कारण चित्त की चंचलता बढ़ी है, एकाग्रता की अवधि घट गई है, और गंभीर पठन को रीलों के तूफ़ान ने लगभग अपदस्थ...
कथाकार अमरकांत (1925–2014) की यह जन्मशती है. आज ही के दिन, 1925 में उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के भगमलपुर गाँव में हुआ था. उन्हें प्रेमचंद की यथार्थवादी...
आलोचना प्रारम्भ से ही हिंदी साहित्य के केंद्र में रही है. श्रेष्ठ का मूल्यांकन और प्रगतिशील तत्वों की पहचान के अपने दायित्व को उसने हमेशा याद रखा है. कहना न...
इतिहास के सबक हम भूल जाते हैं, सत्ता जिसका चरित्र बदलता नहीं और भविष्य जिसे ये दोनों अक्सर बंधक बना लेते हैं. वरिष्ठ आलोचक रोहिणी अग्रवाल का यह गहन आलेख...
रामविलास शर्मा ‘तार सप्तक’ के कवि थे और विजयदेव नारायण साही ‘तीसरे सप्तक’ के. पर आलोचना ने उन्हें अपना बना लिया. सप्तकों की ही बात करें तो अज्ञेय, मुक्तिबोध और...
आलोचक विजयदेव नारायण साही के शती वर्ष के अवसर पर रज़ा फाउंडेशन ने ‘साही और साखी’ शीर्षक से उनपर दो दिवसीय गोष्ठी का आयोजन दिल्ली में किया जिसके आठ सत्रों...
प्रेमचंद की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ का यह शताब्दी वर्ष है. सौ वर्ष पहले 1924 में यह कहानी ‘माधुरी’ में प्रकाशित हुई थी. 1977 में सत्यजीत रे ने इस कहानी...
आलोचना के मुख्यतः दो कार्य हैं- सिद्धांत निर्माण और उनका अनुप्रयोग. मैनेजर पाण्डेय की आलोचना का पूर्वार्ध साहित्य के सिद्धांतों की विवेचना, महत्वपूर्ण आलोचकों की आलोचना और इतिहास-दृष्टि की पहचान...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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