कटघरे में आलोचना और उसका पक्ष : विनोद तिवारी
आलोचना प्रारम्भ से ही हिंदी साहित्य के केंद्र में रही है. श्रेष्ठ का मूल्यांकन और प्रगतिशील तत्वों की पहचान के अपने दायित्व को उसने हमेशा याद रखा है. कहना न...
आलोचना प्रारम्भ से ही हिंदी साहित्य के केंद्र में रही है. श्रेष्ठ का मूल्यांकन और प्रगतिशील तत्वों की पहचान के अपने दायित्व को उसने हमेशा याद रखा है. कहना न...
इतिहास के सबक हम भूल जाते हैं, सत्ता जिसका चरित्र बदलता नहीं और भविष्य जिसे ये दोनों अक्सर बंधक बना लेते हैं. वरिष्ठ आलोचक रोहिणी अग्रवाल का यह गहन आलेख...
रामविलास शर्मा ‘तार सप्तक’ के कवि थे और विजयदेव नारायण साही ‘तीसरे सप्तक’ के. पर आलोचना ने उन्हें अपना बना लिया. सप्तकों की ही बात करें तो अज्ञेय, मुक्तिबोध और...
आलोचक विजयदेव नारायण साही के शती वर्ष के अवसर पर रज़ा फाउंडेशन ने ‘साही और साखी’ शीर्षक से उनपर दो दिवसीय गोष्ठी का आयोजन दिल्ली में किया जिसके आठ सत्रों...
प्रेमचंद की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ का यह शताब्दी वर्ष है. सौ वर्ष पहले 1924 में यह कहानी ‘माधुरी’ में प्रकाशित हुई थी. 1977 में सत्यजीत रे ने इस कहानी...
आलोचना के मुख्यतः दो कार्य हैं- सिद्धांत निर्माण और उनका अनुप्रयोग. मैनेजर पाण्डेय की आलोचना का पूर्वार्ध साहित्य के सिद्धांतों की विवेचना, महत्वपूर्ण आलोचकों की आलोचना और इतिहास-दृष्टि की पहचान...
आधुनिकता ने अपने प्रसार के लिए गद्य को चुना. ज्ञान-विज्ञान, चेतना का यही सारथी बना. खड़ी बोली हिंदी के रथ पर जिसे हम आज ‘हिंदी-क्षेत्र’ कहते हैं उसकी लगभग सभी...
पुरानी पोथियों की तलाश, मिलान और पाठ-निर्धारण की प्रक्रिया में हिंदी में पाठालोचन (Textual criticism) की शुरुआत हुई थी पर इधर अब यह मंद पड़ गई है. चंद्रभूषण का यह...
विजयदेव नारायण साही की आलोचनात्मक मेधा को स्वीकार करते हुए भी आलोचक के रूप में उनके अवदान और महत्व पर पर्याप्त लिखा नहीं गया है. जायसी पर उनका कार्य तो...
‘पुरस्कार’ को प्रेम और राष्ट्र-प्रेम के द्वंद्व की कहानी के रूप में देखा जाता रहा है. इसके प्रकाशन के शतवर्ष पूरे होने को ही हैं. वरिष्ठ आलोचक रोहिणी अग्रवाल ने...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum