यह बेमिसाल शर्म भी उसे नहीं पता
गिरिराज किराडू की कविताएँ
संदकफू 2022
जिसके घर में मेरा प्रवेश नहीं हो सकता उसने
ठहरने की जाने कितनी जगहों का बंदोबस्त कर दिया है
पहाड़ों को मानो उसने कहा है पाँच रात सह लेना इसे
उसे नहीं पता हम हिमालय देखने नहीं उसे पीठ दिखाने आए हैं
जहां भूख और मौत हर घर में देखी थी
भूख और मौत हर घर में देख कर जहां से कुछ किए बिना लौट गया था
और जहां कभी कुछ करने के लिए लौटा नहीं
वहाँ पर्यटक बनकर लौटना – यह बेमिसाल शर्म भी उसे नहीं पता
वह खुद अब यहाँ नहीं
उसका ब्याह हो गया
वह अब दूसरी तरफ़ के जंगलों में है
खुश है वह
अहमदाबाद 2018: तीन बिज़नेस मीटिंग
बीस हजार के एसाइनमेंट के लिए
एक मुश्किल मीटिंग
कुछ प्रचार लिखवाना है उससे
थिन क्रस्ट वेज पिज़्ज़ा उसका आइडिया है
चार साल बाद लिंक्ड इन पर
तीन लाख चौदह हजार चार सौ बावन लोग उसके अनुयायी होंगे
यह न उसे पता है न मुझे
वह अवसाद के बारे में प्रवचन करेगी
यह न उसे पता है न मुझे
उसके जाने के बाद उसी जगह
एक दूसरी लड़की
सात करोड़ का उसका बिज़नेस है
तीस उसकी उम्र है
तीस को उसने नौकरी दी है
चार साल बाद वह महामारी में दुनिया से जा चुकी होगी
यह न उसे पता है न मुझे
उसकी कहानी मुझे कभी पता नहीं चलेगी
यह न उसे पता है न मुझे
उसके जाने के बाद उसी जगह
तीसरी लड़की
हम एक दूसरे की कहानी जानते हैं
उसके पिता के घर जुआ चलता था
मेरे पिता के घर ज्योतिष
उसके पिता के जीवन में एक और स्त्री है
मेरे पिता के जीवन में उनके अलावा कोई हो नहीं सकता
उसकी माँ ने अपना स्वाभिमान पचास की उमर में हासिल किया
मेरी माँ ने उसी उमर में अपनी आवाज़
उसका वर्तमान प्रेमी गिटार बजाता है
मेरा बेटा हारमोनियम
हम काम के सिलसिले में पहली बार मिल रहे हैं
हमें एक स्ट्रेटजी बनानी है एक इनवेस्टर प्रोफ़ेसर को सुनाने के लिए
चार साल बाद हम एक दूसरे से बात नहीं कर रहे होंगे
यह न उसे पता है न मुझे
वह ‘प्रधानमंत्रीजी’ के बारे में जोक लिखकर सबसे अपनी माँ से भी
गालियां खाएगी
यह न उसे पता है न मुझे
चंडीगढ़ 2021: ‘परमवीर चक्र’ रिकॉर्ड करते हुए
सियाचीन में जवान मर रहे हैं
कुणाल कामरा के साथ हँस सकते हैं आप
सियाचीन न आपको जाना न कामरा को
जाना तब लताजी को भी नहीं था
उनकी आवाज़ नेहरू की हार को आंसुओं में पैक कर रही थी
जब हम बैठे थे घरों में वो झेल रहे थे गोली
अमर सिपाही मृत्यु का इश्तिहार है
कठिन कहानी है परमवीर चक्र
सिपाही की लिखी सिपाही की आवाज़ में
अमरता सिपाही की मृत्युसंगिनी है
गिरीश कर्नाड के भूतपूर्व घर में मिलना एक उपन्यासकार से
सम्मानित उपन्यासकार भविष्य देख सकता है उसे पता है नया व्यापारी नौ दिन में
उड़ जाएगा उसके चश्मे पर भी उसके कथाप्रयोगों का अभिमान है शास्त्रीय शिल्प
का सिपाही है वह क्या ऐसा उसके उच्चकुलीन ब्राह्मण होने के कारण भी हो सकता
है जो उसने अभी अभी ‘सेल्फ डेप्रिकेटिंग ह्यूमर’ के साथ प्रयोग प्रसंग में
अपने बारे में बताया है
“मैं हिबिस्कस टी लूँगा”
कर्नाड का घर अब कैफ़े है सीढ़ियाँ चढ़ते हुए
महँगी टेबल के कैरीकेचर-सी एक टेबल के पास
अमीश त्रिपाठी का एक महाकाव्य है
सुनयना! चलो यहाँ से
तुम्हारे पिता की सम्पत्ति पर मुक़द्दमा शुरू होने ही वाला है
अहमदाबाद 2015
शिव कुमार गांधी के लिये
इस दुकान में कभी मक़बूल फ़िदा आते थे
शायद चाय पीते थे बन मस्का भी अच्छा है यहाँ का
इस दुकान में कब्रें हैं
थोड़ी दूर एक संग्रहालय है कला और हिंसा के बारे में
ज़्यादा दूर एक आश्रम है अहिंसा के संग्रहालय जैसा
एक आर्ट गैलरी है जिस पर हमला हुआ था
ऐसी एक कब्र भी है
एक नर्तकी है
एक खिलाड़ी है
एक नदी है
एक मॉडल है
इस शहर कई बार आकर भी
ओझल नहीं होता जो
लेक करेरी 2021
मेरा नाम बिल्किस याकूब रसूल
मुझसे हुई बस एक ही भूल
जब ढूँढते थे वो राम को
तो मैं खड़ी थी, राह में*
रब्बी शेरगिल के बारे में अलग से सोचना नहीं पड़ता
वह मेरे जीवन, और शायद मृत्यु, का स्थायी विषय है
वह दस हज़ार फ़ीट साथ ट्रेक करता है और
करेरी के हुस्न से एकदम बेअसर है
मेरा नाम श्रीमान सत्येन्द्र दुबे
जो कहना था वो कह चुके
अब पड़े हैं राह में
दिल में लिये एक गोली*
तम्बू में तिकोनी रोशनी के सुस्ताये परिहास में बेटे को एक प्यारे पालतू
कुत्ते की कहानी सुना रहा हूँ जिसका प्यार से नाम शाहरुख़ है जिसका
अपहरण उन रेडिकल कुत्तों ने कर लिया है जो चाहते हैं कोई कुत्ता पालतू
न हो कहानी में एक डॉग डिटेक्टिव एजेंसी है यह कहानी मैंने एक वर्कशॉप
में सोची थी और किसी को लिखने के लिए दे दी थी
माझा नाव आहे नवलीन कुमार उन्नीस जून उन्नीस बार
उन्नीस उन्नीस उन्नीस उन्नीस उन्नीस उन्नीस उन्नीस
उन्नीस बार*
* https://www.youtube.com/watch?v=h0EdbEsE0pw
सराड़ा 2015: गांधी के आत्मखोजियों* के साथ
मासी के लिए
कैंसर से मर रहे मौसा बिंदास हो गए थे
चालीस की उमर में दिमाग़ के कैंसर से मर रहा एक पहलवान
सबके सामने अपनी ब्याहता को चूम रहा था
पर श्रीमान विजयशंकर पुरोहित जी
आप यहाँ क्यूँ मेरे साथ चले आए हैं
अब तो मुझसे विदा लीजिए
बीस साल हुए कि मैं ठीक से जी नहीं पा रहा
आत्मखोजियों के साथ
तीन दिन गली गली स्कूल स्कूल घूमकर
कोई संदेह तक नहीं होगा
यह तो हिमांशु* बताएगा
दंगा कैसे हुआ था कैसे उसके निशान अब मिलते नहीं
उसकी आँखों से अन्याय ओझल नहीं होता
मेरी आँखों से मृत्यु
*हिन्दी आलोचक, एक्टिविस्ट, अध्यापक और अनियतकालिक दोस्त हिमांशु पण्ड्या
** एक एनजीओ की “गांधी फ़ेलोशिप” कर रहे युवा
हिसार 2018
एक ही दिन में
दरअसल प्रचंड गर्मी से झुलसी एक दुपहर में
तीन लड़कों ने कहा
वो देश का प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं
और बनकर रहेंगे
यह करियर प्लान इतने रियल ढंग से इससे पहले सिर्फ़ एक बार
इतनी ही झुलसती एक दुपहर सुना था
तीन साल पहले
राजगढ़ से चूरू जाने वाली रोड़
छियालीस डिग्री तापमान
कोक पीते हुए तब उस अन्यथा कॉमिक नौजवान ने
बिना अचकचाये गंभीर स्वर में कहा था
– लाँग टर्म प्लान यह है कि मैं भारत का प्रधानमंत्री बनूँगा
– कब?
– 2044
उसके चेहरे को नहीं कपड़े पहनने तिलक लगाने
हिन्दी बोलने के अन्दाज़ को बहुत ध्यान से देखा सुना
भावी प्रधानमंत्री तब शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति कर रहे थे
पच्चीस हज़ार प्रतिमाह पर
उनतीस बरस बाद लालक़िले से भाषण देंगे
यह लेकिन इतना रियल ढंग से कह रहे थे कि मैं
लगभग डर ही गया था
2
तीनों से कहा
पता नहीं तब तक मैं रहूँ न रहूँ
अगर तुम्हें इस प्रोजेक्ट में सेलेक्ट होना है
बताओ कैसा होगा 2044 का भारत?
जैसा आप छोड़ के जाएँगे सर वैसा ही तो होगा ना!
उनके इस मौलिक ऐतिहासिक जवाब पर फ़िदा होते हुए
उनका चयन किया एक संग्रहणीय सेल्फ़ी खिंचाई उनके साथ और
पूछा कोक पियोगे?
बीकानेर 2020, महामारी, घर
“छोटी काशी वाले हेरिटेज विज्ञापन की कला में पीछे रह गये
बिना गंगाजी होता भी कैसे
गर्व यहाँ भी बहुत है
परम्परा भी अपरम्पार है
अन्याय यहाँ भी सिर्फ़ ईश्वर करता है
राजकुमारी विधायक है
भुजिया पहचान है
दंगे कभी नहीं होते थे
क्या ग़लत थे मरहूम मास्टर और शायर अज़ीज़ आज़ाद जिन्होंने
किसी और दौर में एक बड़े-से मैदान में शायद पंद्रह अगस्त जैसे किसी जलसे में
अपना एक शेर बुलंद मुस्कान के साथ पढ़ते हुए कहा था –
मेरा दावा है सब जहर उतर जाएगा
तुम मेरे शहर में दो दिन ठहर कर तो देखो*”
– एम्बुलेंस में बैठा सोचता हूँ यह सब
महामारी में दिवाली के दिन
अपनी साँस उखाड़ कर
सरकारी अस्पताल में बिस्तर और सिलेंडर पा जाना
क्या नेमत से कम है
पाबंदियों के तीन शहर छह सौ किलोमीटर पार करके
घर में मृत्यु देखने ही आया था मानो
यह शहर जहां मैं जन्मा उसे छोड़ते हुए रो रहा हूँ पहली बार
यहाँ से जीवित बच निकला
मुंबई जाकर समंदर को बताऊँगा
मेरा छोटा भाई अंततः मुझसे बड़ा हो गया है
रफ़ी को उसके लिए गाना चाहिए था तू प्यार का सागर है
*यह शेर मैं शब्दशः भूल गया था, इसे लौटा लाने के लिए कहानीकार, मित्र मालचंद तिवाड़ी का शुक्रिया
चंडीगढ़ 2022: आप की सरकार
अफ़सर लोग एक कॉमेडियन को सीएम मान चुके हैं
उसके बारे में सम्मान से बात कर रहे हैं
आपने यूक्रेन के स्टैंडअप राष्ट्रपति का अमेरिकी
कॉमेडियन के साथ इंटरव्यू देखा है? एक जूनियर पूछता है
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अपमान अवसर और औरत के बारे में मज़ाक़ दिन भर
चौरासी से चिट्ठे तक पंजाब पुलिस की बात दिन भर
अर्बन फेस्टिवल के इश्तेहार नेहरू की याद दिन भर
एक आधुनिक शहर के सपने की आफ़त दिन भर
सुखना पहली बार अकेले जाना यह ख़याल दिन भर
सिर्फ़ अफ़सरों से मिलने किसी शहर आना यह मलाल दिन भर
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कभी एक घर ढूँढा था
उसमें लेकिन रहना नहीं था
रहना ख़ैर मुझे किसी घर में नहीं था
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ये कौन है जो खुद को नया भिंडरावाले कह रहा है?
क्राकोव 2012
बिल्कुल आख़िरी क्षण में मैसेज कर दिया नहीं चल पाऊँगा
तीन नए-नए बने दोस्त चले गए हैं
एक के साथ समय बिताना भी चाहता था
कल रात किसी सुरंग में बने एक डांस बार से
रात तीन बजे हम साथ लौटे थे
थोड़ी देर बात करके यह फ़ैसला किया था कि
कल की ट्रिप के बाद इसके बारे में फ़ैसला करेंगे
उनके चले जाने के बाद
पानी किनारे टहलने निकलता हूँ
इतवार है आठ-दस टैक्सी वाले पूछते हैं
आउशवित्ज चलोगे बीस परसेंट डिस्काउंट में?
यह जूइश डिस्ट्रिक्ट है जहाँ ठहरा हूँ
यहाँ से वहाँ तक पर्यटन ही पर्यटन है
कहता हूँ दोस्त गए हैं
लोग जो हुआ उसके बारे में बात करने के लिए गाइड ढूँढते हैं
यहाँ रहने वालों से वह बात करने में संकोच और डर है
नेशनल बुक इंस्टीट्यूट की पार्टी में जगायेवस्की* आए
आदतन बेवक़ूफ़ी में कहा हम
हिंदी में कवियों के मार्फ़त आपके देश का दुःख जानते हैं
वे चुप रहे उन्होंने शायद शरारत से पूछा
जिस चर्च में कल का कार्यक्रम हुआ था
वहाँ तुम्हे शांति महसूस हुई?
*पोलिश कवि अदम जगायेवस्की [1945-2021]
ज़्यूरिख़ 2012
यहाँ से हम अपने अपने मुल्क लौट जाएँगे
दोस्तों के लिए हम एक दूसरे की पसंद से शराब ख़रीदते हैं
एक फ़ैसला है जो हमने टाल दिया है
“अच्छा हुआ तुम वहाँ नहीं चले” –
कुछ फ़ोटो मुझे आभासी दीवारों पर दिखते हैं
जैसे जलियाँवाला गए हो दो बार
आउशवित्ज जाना चाहिए था
तुम्हें दो बार उसे यहाँ लिखना तो था ही ना
देहरादून+ 32 बार (2003-2022)
कई लोग पहाड़ दरकने से मर गये थे यहाँ इसी जगह
लोगों के मरने से दरकने वाले पहाड़ दुखी नहीं लगते
सालों से दरकने की खबरें पढ़ रहा हूँ
कई बार जहां लोग मरे हैं वहाँ से आज की तरह गुजरा हूँ ठहरा हूँ
केदारनाथ से पहले और बाद
बत्तीस बार यहाँ आया हूँ
सौ बार पहाड़ों के गिर जाने की दूरंदेशी सुनी है
सौ बार गिर्दा का नाम किसी ने बोला है
‘देवभूमि’ में आपदा प्रबंधन आपदा हो गया है
‘देवभूमि’ को आधुनिक राज्य बनाना मुश्किल ही होता है,
श्रीमान गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’!
खेतड़ी में शिक्षाकर्मी, 2015
उस घर में कल एक अपराध हुआ है
इस स्कूल में आज सुबह
आप इस अध्यापक की नौकरी नहीं छीन सकते
आप उस पिता को थाने नहीं ले जा सकते
एक अटल उदास बच्चे को थोड़ा कम उदास करने के लिए
अमीर उत्तरी यूरोप के आदर्श स्कूलों से आये नुस्ख़ों में से एक
आप आज़माते हैं और उसे एक रचनात्मक गतिविधि में बदलते हुए
इश्तेहार हो जाते हैं आप
बचपन
दूध नहीं था फल नहीं थे जगह नहीं थी
दुलार नहीं था प्यार नहीं था करुणा नहीं थी
रोटी थी दोनों वक़्त
गालियाँ थीं दोनों वक़्त
छूआछूत था दोनों वक़्त
फेलू मास्टर
किसी शारीरिक शिक्षक को हम मास्टर नहीं कहते थे
फेलू को लेकिन कहते थे
शारीरिक के साथ मानसिक दंड में उसकी महारत उस्तादाना थी
सुनते थे वह एक ‘नेता का कुत्ता’ था
हमारी पहुँच से बाहर था उसका जीवन
वरना अगर देखा होता हमने उसे तलवे चाटते हुए
तो उसका डंडा देख़कर रूह कम काँपती
उसकी गालियाँ सुनकर कम सहमते
लंबी उम्र नहीं मिली उसे
सट्टे के पैसे किसी काम नहीं आये
क़ब्ज़े की ज़मीनें भी नहीं
उसके बेटे को उसकी तरह सरकारी नौकरी नहीं मिली कभी
उसने गाय पालकर जीवन चलाया
लेकिन फेलू की जायदाद को लात मार दी उसने
यह फेलू मास्टर की दास्तान की वह तफ्सील है जिसके लिए
शायद कभी लौटूँगा उसके घर
और उस क्राइम सीन
– दसवीं का स्कूल
लेखक-संपादक गिरिराज किराडू (1975) ने कविता और उसके अनुवाद की पाँच पुस्तकें संपादित की हैं. वह बहुभाषी डिजिटल पत्रिका ‘प्रतिलिपि’ (2008-14) के संस्थापक-संपादक, स्वतंत्र प्रकाशन ‘प्रतिलिपि बुक्स’ (2011-14) के संस्थापक- निदेशक, भारतीय भाषा महोत्सव, इंडिया हैबिट सेंटर के क्रिएटिव डायरेक्टर (2011-2014) और स्वंतत्र आयोजन “कविता समय” के संस्थापक-संयोजक रहे हैं. उन्हें उनकी पहली बार प्रकाशित कविताओं में से पहली के लिए “भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार” और बाद में “कृष्ण बलदेव वैद फ़ेलोशिप” मिले हैं. rajkiradoo@gmail.com
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गिरिराज जी की कविताएं ताजा और अच्छी हैं। कवि की निगाहें समय का एक्सरे करती हैं। यहाँ कुछ भी अतिरिक्त नहीं है। अतीत से वर्तमान तक सेतु बनाती कविताओं के लिए उन्हें बधाई प्रेषित कर रहा हूँ। कुछ पंक्तियाँ तो बेहद चमकदार और धारदार हैं।
बहुत सुन्दर कविताएं हैं। पता नहीं ये महाशय अपना कविता-संग्रह क्यों नहीं छपाते।
याद करने के लिए शुक्रिया गिरिराज किराड़ू. हिन्दी की दुनिया में मुब्तिला रहने वालों से आपकी कविता अलग है.अभी मेरे अन्दर शोर है कुछ शान्त होने पर आपकी कविता पढ़ी जायेगी तमीज़ के साथ जैसे कविता पढ़ी जानी चाहिए। शुभकामनाएं.