तुषार गांधी से के. मंजरी श्रीवास्तव की बातचीत |
1.
इस किताब का शीर्षक आपने ‘लेट्स किल गाँधी’ क्यों रखा और आपकी यह किताब क्यों ख़ास है ?
जिस विषय पर यह किताब है उसके लिए यही शीर्षक सबसे उपयुक्त है. गांधीजी की हत्या के बाद की जांच की एक रिपोर्ट बताती है कि उनकी हत्या के ठीक पहले एक बैठक हुई थी जिसमें बापू की हत्या की योजना बनाई गई थी. पहले मैंने इस पुस्तक का नाम ‘मर्डर ऑफ़ अ महात्मा’ रखा था. फिर मेरे ज़ेहन में यह बात आई कि अगर बापू की हत्या के पहले कोई बैठक हुई थी तो क्या पता किसी ने उसमें कहा हो- ‘लेट्स किल गाँधी’.
वहीं से मेरे दिमाग में यह शीर्षक आया. फिर मैंने एक नोटिस बोर्ड पर इन दोनों शीर्षकों को लगाया। मैंने यह देखा कि १० में से ८ लोगों का ध्यान आकर्षित किया ‘लेट्स किल गाँधी’ ने. लोग इस शीर्षक के पास थोड़ी देर ठहरकर इसे देखते थे. तब मैंने निर्णय लिया कि किताब का नाम ‘लेट्स किल गाँधी’ रखना ही सही रहेगा. मुझे लगा यह लोगों का ध्यान ज़्यादा आकर्षित करेगा और ऐसा हुआ भी. मेरी इस किताब को प्रकाशित हुए १५ साल हो गए हैं और इसका हिंदी अनुवाद भी आ गया है लेकिन आज भी यह शीर्षक लोगों को आकर्षित करता है.
आपका अगला सवाल यह है कि मेरी किताब ख़ास क्यों है तो मैं यह कहूंगा कि मेरी किताब कई मायनों में ख़ास है और ख़ास के साथ यह बेहद ज़रूरी किताब भी है. इस किताब का मक़सद यह है कि बापू के बारे में बहुत सारी गलत अफवाहें फैलाई जाती हैं उनकी हत्या को जस्टिफाई करने के लिए और आज के दौर में जब नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया जा रहा है और एक हत्यारे को हीरो बनाने की कोशिश लगातार ज़ारी है तो उसका प्रत्युत्तर है मेरी यह किताब. इस किताब के बहाने मेरा उद्देश्य बापू को हीरो और नाथूराम गोडसे को विलेन साबित करना कतई नहीं है. बस मेरी ये कोशिश है कि बापू की हत्या के बारे में जो मुझे पता है वह दूसरों को भी पता होना चाहिए और सच पता होना चाहिए.
बापू के जीवन के अंतिम ४ वर्षों में उनपर तरह-तरह की तोहमतें लगाई गयीं. उन तोहमतों का मैंने तथ्यों को दिखाते हुए खंडन किया है इस किताब में. दूसरा अहम पहलू है कि लोगों को गाँधी के बारे में तथ्य पता चलें ताकि उन्हें कोई दिग्भ्रमित न कर पाए. मैंने इस किताब में बापू के जीवन के अंतिम ४ वर्ष दिखाए हैं कि आज़ादी के बाद, जेल से छूटने के बाद भारत की राजनीति में उनका क्या किरदार रहा, दंगों में उनकी भूमिका क्या रही और इन बातों से सम्बन्धित तथ्यों को भी मैंने प्रस्तुत किया है. विशेष रूप से जनवरी १९४८ और उस समय के पूरे घटनाक्रम को मैंने बहुत ही विस्तारपूर्वक लिखा है.
बापू के जीवन के अलग-अलग पहलू को मैंने अलग-अलग खण्डों में बांटा है. चूंकि यह ९००-१००० पृष्ठों की पुस्तक है इसलिए मैंने हर घटनाक्रम और पहलू के हिसाब से इसे अलग-अलग खण्डों में बांटा ताकि पाठक अपनी सुविधानुसार जो खंड चाहें चुनकर पढ़ सके.
२.
क्या आपकी किताब का हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है ?
जी मेरी किताब के हिंदी अनुवाद के दो खंड अभी कौटिल्य प्रकाशन से आ चुके हैं और तीसरा खंड प्रकाशनाधीन है. अनुवादक हैं प्रोफ़ेसर विनोद कुमार झा.
फ़िलहाल हिंदी में मेरी किताब के दो खंड उपलब्ध हैं जिनके शीर्षक हैं –
१. गाँधी हत्या: महात्मा की मनोव्यथा
२. गाँधी हत्या : षड्यंत्र और हत्यारे
3
गाँधी बनाम गोडसे को लेकर आपकी क्या टिप्पणी है ?
गांधी और गोडसे इस तरह से लिंक हो गए हैं कि गांधी बनाम गोडसे बहस चलती ही रहेगी. एक का ज़िक्र होगा तो दूसरे का ज़िक्र आएगा ही. मैंने आपसे पहले भी कहा कि मैंने सिर्फ़ उस समय के इतिहास को पेश किया है. मैंने ऐसी कोई कोशिश नहीं की है कि गाँधी को हीरो साबित करूँ क्योंकि जो हीरो होता है, नायक होता है, उसे साबित करने की कोशिश नहीं करनी पड़ती. बापू को मैंने बापू नहीं बनाया. आपलोगों ने, इस देश ने उन्हें राष्ट्रपिता माना. किसी युग का नायक वह होता है जो उस युग की मूक आकांक्षाओं को शब्द दे सके. बापू ने वह किया तभी बापू को इस देश ने राष्ट्रपिता माना.
हां, मेरी तो बापू को हीरो साबित करने की कोई कोशिश नहीं लेकिन कुछ लोगों की सुनियोजित चाल है बापू को बदनाम करने की. यह कोई नई बात नहीं है. यह सब बापू की हत्या के बाद से ही हो रहा है. उन्हें बदनाम करने की, उनपर तोहमतें लगाने की मुहिम कुछ लोग तभी से चलाते रहे हैं. उनका हौसला अब और बढ़ गया है. उन्हें लगता है कि अब उनकी सरकार है. लेकिन मुझे डर नहीं लगता इन चीज़ों से. गोडसे की उपलब्धि क्या थी- एक खून और ये लोग एक ख़ूनी को हीरो साबित करने की सोची-समझी साज़िश को अंजाम देने में लगे हैं. लेकिन करने दीजिये उन्हें वह जो वह कर रहे हैं क्योंकि कुछ भी साबित करने की ज़रूरत उन्हें हैं और साबित करने की चाहत भी उन्हें है- एक ख़ूनी को, एक क़ातिल को हीरो साबित करने की. लेकिन सच क्या है वह पूरी दुनिया जानती है और जो सच नहीं जानते हैं या भ्रमित हैं वह मेरी किताब पढ़कर सच जान जायेंगे क्योंकि मैंने इसमें अपनी तरफ से कोई कहानी नहीं लिखी है. मेरी किताब में हर बात का सबूत है, रेफरेंसेज हैं, सबकुछ तथ्य आधारित है, मेरी पूरी किताब तथ्य आधारित है.
4.
गांधी के रामराज्य और आज के रामराज्य में क्या फ़र्क़ है ?
गांधी के रामराज्य की जो संकल्पना थी वह एक आदर्श देश की संकल्पना थी जिसमें कोई भेदभाव न रहे, सबको न्याय मिले, सबकी अहमियत समान हो. गांधी ने नाम रामराज्य दिया अपनी संकल्पना को लेकिन उस संकल्पना में जो बातें शामिल थीं वह एक आदर्श देश को परिलक्षित करती हैं.
रही बात आज के रामराज्य की तो आज रामराज्य के नाम पर सबकुछ मुद्दा बना दिया गया है. आज की राजनीति में अगर सिर्फ राम की नीति होती, राम का मर्यादा पुरुषोत्तम वाला भाव होता तो रामराज्य अपने सही स्वरूप में होता लेकिन आज राम का नाम लेकर राम की नीति को दरकिनार कर दिया गया है और मंशा सिर्फ और सिर्फ़ राज करने की है या सीधे साफ़ शब्दों में कहूँ तो सिर्फ़ राज ही किया जा रहा है. राम के नाम पर जो राजनीति हो रही है वह बेहद क्रूर और डरावनी है. आज राम का नाम लेकर लोगों को डराया, धमकाया और प्रताड़ित किया जा रहा है. तो आज के रामराज्य की तुलना तो बापू के रामराज्य से की ही नहीं जा सकती.
5.
आज गांधी जी को फॉर्मेलिटी या औपचारिकता के लिए सब जगह रखा गया है लेकिन व्यवहार से गाँधी गायब हैं. इसे लेकर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?
आज के युग में गांधी बहुत डरावना शब्द है. आज की पीढ़ी, समाज के लिए गांधी एक बहुत डरावना शब्द बन जाता है चाहे वह मुन्ना भाई एमबीबीएस जैसा गांधीगीरी का ही कांसेप्ट क्यों न हो. आज की जीवनशैली के लिए गाँधी बहुत बड़ा ख़तरा हैं. आज हमने जिन चीज़ों को ज़रूरी समझ लिया है, जिन चीज़ों के ऊपर हमें आज के समाज और आज के बाज़ार ने निर्भर कर दिया है, जिन्हें हमने अपने सिद्धांत, विचार और जीवन में उतार लिया है वो डरावना है. हम गांधीवाद का गर्व करें ये ज़्यादा बेहतर है बनिस्बत गांधी जैसा जीवन जीने के, उनकी जीवनशैली अपनाने के.
कुछ लोग जो अब भी गाँधी जैसा जीवन जीते हैं उन्हें देखकर, उनकी स्थिति देखकर, समाज में उनका मान-सम्मान देखकर क्या आज के बच्चों को गाँधी जैसी जीवनशैली अपनाने की सलाह दी जा सकती है या उन्हें इस बात के लिए कन्विंस किया जा सकता है ? और जब हमारे सिद्धांत और व्यवहार में इतना अंतर है तो हम नई पीढ़ी को दोष नहीं दे सकते या उन्हें सलाह नहीं दे सकते या उन्हें कन्विंस करना भी उचित नहीं है. एक तरह गांधी के सिद्धांतों की दुहाई देता है हमारा समाज और अगर कोई गांधीवादी तरीके से जीता है तो उसे वह सम्मान क्यों नहीं देता जो एक गांधीवादी को हासिल होना चाहिए ? क्या इस डबल स्टैण्डर्ड के साथ हम अपने या अपनी आनेवाली पीढ़ी के जीवन में गांधीवाद को इम्प्लीमेंट कर सकते हैं ? और गांधीवाद या कोई भी वाद इम्प्लीमेंट ही क्यों करना ?
एक इंसान को सामान्य इंसान की तरह जीने दिया जाए बस. जैसे हमें गर्व है ‘मेरा भारत महान’ का वैसे ही मैंने कहा न कि गांधीवाद पर गर्व करना ज़्यादा बेहतर है बनिस्बत गांधी जैसा जीवन जीने के.
6.
आप गाँधी जी के परिवार से हैं, उनके पड़पोते हैं , क्या आपका जीवन गांधी के विचारों से प्रभावित है ? यदि हाँ, तो कितना ?
मेरी जीवनशैली में बापू नहीं हैं. मैं सामान्य इंसान हूँ. मेरी कमज़ोरियाँ और ज़रूरतें आम इंसानों जैसी हैं. ये समझना भी ज़रूरी है कि गाँधी पैदाइशी गाँधी नहीं थे, वे गांधी बने अपने प्रयत्नों से. दूसरी बात, बापू जब जनता के बने तो सबको परिवार के रूप में लेकर चले. वसुधैव कुटुम्बकम् को उन्होंने जीवन में उतारा, फिर परिवारवाद तो वहीं ख़त्म हो गया. मेरा लोगों से यह सवाल है कि क्या आप बापू को राष्ट्रपिता मानते हैं और अगर हाँ तो क्या आप गांधीजी के परिवार से नहीं हैं ? जवाब दीजिए. और अगर आप गांधीजी के परिवार से हैं तो आपका जीवन क्या गांधीजी के विचारों से प्रभावित है और अगर प्रभावित है तो कितना ?
(प्रस्तुत विचार लेखक तुषार अरुण गाँधी के हैं)
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किंचित निराशाजनक। ‘गांधी बनाम गोडसे’ वाला प्रश्न निरादरपूर्ण है। काहे का ‘बनाम’? गोडसे किसी विचार का प्रतिनिधि है?
आज गोडसे की कुख्याति में राष्ट्रवाद का भरवां मसाला डालकर जो पकवान कुछ पागलों द्वारा बनाया-परसा जा रहा है वह बीमारी है, विचारधारा नहीं।
सभ्यता के अद्यतन संकट (उपभोक्तावाद, पर्यावरण का विनाश, पृथ्वी पर जीवन को खतरा आदि) में गांधी की सार्थकता पर बात अधिक जरूरी है जो इस चर्चा में छूट गई है।
फिर भी केवल गांधी जी को याद करना भी इस जमाने में कम नहीं है।
गांधी के पडपोते तुषार गांधी से गांधी के विषय पर जानने को उत्सुक था । अंततः यह पोस्ट समालोचन पर पढ़ने को मिल गयी । तुषार गांधी स्वीकार करते हैं कि मैं सामान्य इन्सान हूँ । उन्होंने सही कहा है कि गांधी पैदाइशी रूप से वे गांधी नहीं थे । हालातों ने उन्हें गांधी बना दिया । वे गहरे रूप से आध्यात्मिक व्यक्ति थे । गांधी का नाम आयेगा तो स्वाभाविक रूप से गोड़से का भी ज़िक्र होगा । वर्तमान समय में गांधी की बनिस्बत गोड़से अधिक मूल्यवान बना दिये गये हैं । गोड़से मनोवृत्ति बन गया था और इसके सहस्रों सिर हैं ।
आज पहली बार बापू के परिवार से आनेवाले उनके परपोते तुषार गांधी का विचार पढ़ने को मिला । इसके लिए समालोचन को बहुत बहुत धन्यवाद
सार्थक साक्षात्कार। तुषार गांधी जी की किताब पढ़ने के प्रति उत्सुकता जगी।
बहुत सहज ढंग से की गई बातचीत में किताब का एक अक्स दिख रहा है । बहुत को भ्रांति है जिस आदर्श पर उसको और जानने के लिए प्रेरित करता साक्षात्कार। मंजरी लगातार बहुत अच्छा कर रही हैं उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं । नाटक कला से बाहर का विषय है जो उनका करीबी क्षेत्र है उससे इतर यह सराहनीय कदम है।