गांधीसदानंद शाही |
1.
गांधी की अमरता के आगे
गांधी की हत्या
केवल तीस जनवरी उन्नीस सौ अड़तालीस को नहीं हुई थी
जब ब्रूनो ज़िन्दा जलाए गये थे
गांधी की हत्या तब भी हुई थी
जब मंसूर को सूली पर चढ़ाया गया
तब भी हुई थी गांधी की हत्या
गांधी की हत्या तब भी हुई थी
जब ईसा मसीह को सलीब पर
चढ़ाया गया था
सुकरात को
जब ज़हर दिया गया था
तब भी
गांधी की हत्या हुई थी
सूली पर चढ़ा मंसूर बचा रह जाता है
ईसा मसीह बचे रह जाते हैं
सुकरात अमर हो जाते हैं
मर जाते हैं
ज़हर देने वाले
ख़ाक में मिल जाते हैं
ईसा मसीह को
सूली चढ़ाने वाले
सूरज का चक्कर काटती हुई पृथ्वी
रोज़ देती है
ब्रूनो के ज़िन्दा होने का सबूत
गांधी की अमरता के आगे
रोज़ रोज़ मरते हैं
हत्यारे.
2
गांधी में कबीर
गांधी नहीं मरेंगे
मर जायेंगे गांधी को मारने वाले
जैसे कबीर को मारने के
चक्कर में पड़े
पीर और पैग़म्बर मर गये थे
मर गये थे सातों भुवन के चौधरी
कबीर की तरह
गांधी ने भी पी लिया था राम रसायन
कबीर की तरह
गांधी ने भी जान लिया था राम नाम का मर्म
जैसे कबीर राम को बुन सकते थे
अपने करघे पर
गांधी बुन लेते थे राम को
अपने चरखे पर
जैसे कबीर और राम मिल कर हो गये थे एक
वैसे ही गांधी और राम हो गये थे एकमेक
कहते हैं
जब कबीर बनते थे ताना
राम बन जाते थे बाना
गांधी कपास हो जाते थे
राम सूत बनकर
लिपट जाते थे लच्छे में
चरखे से गूंज उठती थी
राम धुन
सूत और कपास
ताना और बाना
मिलकर बन जाती
ईश्वर नाम की चादर
न ईश्वर मरता
न मरते हैं कबीर
फिर कैसे मर सकते हैं
गांधी …!
3
गांधी जी की बकरी
1
गांधी जी को बकरी की भाषा आती थी
वे बकरियों से बात कर सकते थे
उन्हें मालूम था
बकरियों का हाल
बकरियाँ क्या सोचती हैं
बकरियाँ क्या बतियाती हैं
सब मालूम था गांधी जी को
बकरियों की टांग में लग जाती थी चोट
गांधी जी का कलेजा दुखने लगता था
वे सब कुछ छोड़छाड़ कर
करने लगते थे
बकरियों की टूटी टांग का इलाज
बांधते थे
मिट्टी की पट्टी
वे नेहरू को इंतज़ार करवा सकते थे
बकरियों को नहीं.
2
गांधी जी की बकरी
कुएँ में गिर गई है
मिमिया रही है
गांधी जी की बकरी
किसी को सुनाई नहीं पड़ रही
बकरी की आवाज़
गांधी के चेलों के कान में
लगा है ईयर फ़ोन
वे सुन रहे हैं रामधुन
बकरी के मिमियाने की आवाज़
कौन सुने
कौन निकाले
बकरी को कुएँ से बाहर
गांधीजी होते तो निकालते
उतरजाते कुएँ के भीतर
बना लेते अपनी ही धोती का फाड
उसमें रख कर निकाल लाते बकरी को
कुएँ से बाहर
जैसे समुद्र के जबड़े से निकाल लिया था
मुट्ठी भर नमक
और बाँट दिया था बकरियों में
साहस की तरह
3
गांधी जी के चरखे के साथ
सब खिचाते हैं सेल्फ़ी
सब जाते हैं साबरमती आश्रम
सब जाते हैं सेवाग्राम
फ़क़ीर दिखने के चक्कर में
अधनंगे क्या
पूरी तरह नंगे हो जाते हैं
बकरियों के पास कोई नहीं जाता
कोई सेल्फ़ी नही खिंचवाता
बकरियों के साथ.
4
चटक गया है शीशा
टूट गया है फ़्रेम
गांधी जी की फ़ोटू
निकल आई है बाहर
फड़फड़ा रही है फ़ोटो
इधर उधर उड़ रही है
गांधी जी की फ़ोटो
बकरियाँ देखती हैं
भूख लगी होगी गांधी जी को
सोचती हैं बकरियाँ
उनके थनों में
उतर आता है दूध
और बहता रहता है
देर तक.
5
बकरी के बच्चे
गांधी के बच्चे हैं
गांधी के बच्चे
बकरी के बच्चे हैं
भेड़ियों ने घेर लिया है
बकरी के बच्चों को
भेड़ियों ने घेर लिया है
गांधी के बच्चों को
चिंतित है कुम्हार-
भेड़ियों से
बच्चों को कैसे बचाये
उसे मालूम है
मिट्टी से ही बनते हैं गांधी
वह बनाने में जुट गया है
मिट्टी से गांधी.
4
गांधी जी की आँखें
राज सिंहासन पर बैठे-बैठे
जार्ज पंचम ने सुना
गांधी के बारे में
उन्हें एक कौतुक की तरह
लगे थे गांधी जी
सम्राट के मन में
गांधी को देखने की उत्सुकता पैदा हुई
उन्होंने हुकुम दिया चर्चिल को
चर्चिल ने वायसराय को
वायसराय ने गांधी को बताई
सम्राट की इच्छा
क़िस्सा कोताह यह कि
गांधी जी और सम्राट की भेंट हुई
ऐन बर्किंघम पैलेस में
अधनंगे गांधी को देखकर
सम्राट मुसकुराया
राजसी वेशभूषा में सज्जित
सम्राट को देखकर
गांधी भी मुसकुराए
बातें क्या थीं
बस मुस्कराहटों का
आदान प्रदान होता रहा
दोनों के बीच
गांधी को आँखों की मुस्कान देखकर
सहम गया सम्राट
मुलाक़ात का समय ख़त्म हुआ
गांधी ने हाथ जोड़ा
और लौट गये वापस
सम्राट का सिंहासन
हिलता रहा देर तक.
5
बच्चों के गांधी जी
(पार्थ, नैना और ईशू की कविता)
पहला बच्चा बोला-
गांधी जी के पास जादुई चश्मा था
जिससे वे देख लेते थे सबकुछ
दूसरे ने कहा-
एक जादुई घड़ी भी थी उनके पास
समय का हाल जानने के काम आती थी
तीसरे बच्चे ने कहा-
उनके पास तीन बंदर भी थे
बुरा न देखने
बुरा न सुनने
और बुरा न करने की
शपथ दिलाते हुए
पहले ने जोड़ा-
गांधी जी ने देश को
आज़ादी दिलाई थी
दूसरे ने कहा-
उनके पास बस एक धोती थी
जिसे वे पहनते थे
ऊपर से नीचे तक
तीसरे ने कहा –
गांधी जी
पूजा बहुत करते थे
और मद्धिम आवाज़ में जोड़ा
एक दिन जब वे पूजा कर रहे थे
किसी ने उनको गोली मार दी
धॉंय धॉंय धॉंय
और वे मर गये.
सदानन्द शाही असीम कुछ भी नहीं, सुख एक बासी चीज है, माटी-पानी (कविता संग्रह) स्वयम्भू, परम्परा और प्रतिरोध, हरिऔध रचनावली, मुक्तिबोध: आत्मा के शिल्पी, गोदान को फिर से पढ़ते हुए, मेरे राम का रंग मजीठ है आदि का प्रकाशन. आचार्य |
गांधी पर कविताएं पढ़कर आनंद आ गया,एक नयापन लिए हुए हैं ये कविताएं
सदानंद शाही की सहज कविताएं गांधी पर बहुत ही मार्मिक एवं महत्वपूर्ण हैं बहुत-बहुत साधुवाद
सम्राट का सिंहासन
हिलता रहा देर तक.
बहुत ही सुंदर माता जी की आरती
बहुत सुंदर और मानीखेज़ गांधी स्मृति । सादा और अर्थवान । सदानंद शाही और समालोचन का आभार ।
गांधी को तन्मय होकर याद करने का अद्भुत तरीक़ा आचार्य सदानंद शाही ने अपनाया । कबीर, ब्रूनो, सुकरात, यीशु को साथ लेकर गांधी का स्मरण किया । कबीर की चादर में गांधी के साथ ताना-बाना बुना । बकरी के कुएँ में गिर जाने की और गांधी द्वारा अपनी धोती फाड़कर निकालने की कल्पना नवीन है ।
गांधी प्रासंगिक हैं और रहेंगे । हम उनके जीवन को समझेंगे तो अपना जीवन सँवार लेंगे ।
प्रभावी और अर्थपूर्ण कविताएँ !
गाँधीजी को पूरी तन्मयता से याद करती हुई सुन्दर कविताएं.. बहुत धन्यवाद सदानंद साही और समालोचना का