पारुल पुखराज की कविताएँ
पारुल पुखराज का एक कविता संग्रह प्रकाशित है, उनकी कविताएँ मंतव्य में मुखर नहीं रहतीं अपने दृश्य में खुलती हैं. ...
पारुल पुखराज का एक कविता संग्रह प्रकाशित है, उनकी कविताएँ मंतव्य में मुखर नहीं रहतीं अपने दृश्य में खुलती हैं. ...
औपनिवेशिक भारत में केवल इतिहास की ही खोज़ ख़बर नहीं ली जा रही थी, साहित्य की भी भूली बिसरी संपदा ...
रमाशंकर सिंह की पुस्तक ‘नदी पुत्र: उत्तर भारत में निषाद और नदी’ निषादों की नदी पर निर्भरता के साथ-साथ समाज ...
मार्कंडेय लाल चिरजीवी भारतेंदु के समकालीन कवि हैं, उन्हें कायस्थ समझा गया जबकि दलितों की एक जाति ‘दबहर’ से उनका ...
आज विश्व रंगमंच दिवस है (२७ मार्च). खड़ी बोली हिंदी साहित्य की शुरुआत में नाटकों की बड़ी भूमिका थी, इसके ...
हिंदी के सुपरिचित कवि बोधिसत्व की इन ग्यारह कविताओं में कविता की अपनी शक्ति तो दिखती ही है प्रतिरोध का ...
आज़ादी के बाद की भारतीय राजनीति को जिन विचारकों ने गहरे प्रभावित किया उनमें डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम ...
शेषनाथ पाण्डेय की कुछ कविताएँ और कहानियां प्रकाशित हुईं हैं. उनकी लम्बी कविता ‘सफ़ेद के सातों रंग’ प्रस्तुत है. इसमें ...
किसी भी पत्रिका के जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब वह कुछ ऐसा प्रकाशित करती है जिसके लिए उसे ...
फ़रीद ख़ाँ को हिंदी कवि के रूप में हम सब जानते ही हैं, कथाकार फ़रीद ख़ाँ इस कहानी से अब ...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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