कृत्रिम बुद्धिमत्ता के वास्तविक खतरे
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“प्रौद्योगिकी केवल एक उपकरण नहीं है, बल्कि एक शक्ति है जो हमारे ही स्वभाव को बदल रही है. हमारे पास दो विकल्प हैं, या तो हम अपनी प्रौद्योगिकी को नियंत्रित करेंगे या यह हमें नियंत्रित करेगी.”
निकोलस नेग्रोपोंटे
मनुष्य सभ्यता की विक्रास यात्रा लाखों साल से निरंतर है. मानव समाज की उन्नति और प्रगति के इस लंबे सफर के कई पड़ाव रहे हैं. इस ऐतिहासिक अनवरत् गतिशील प्रक्रिया में तकनीकी नवाचारों का जुड़ना एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी घटना रही है. विकास क्रम के शुरुआती दौर से ही मनुष्य ने अपनी बुद्धि द्वारा सरल तरीकों, युक्तियों से उपलब्ध वस्तुओं का औजारों और यंत्रों के रूप में उपयोग किया और जीवन को सुगम बनाया. कभी पत्थरों को नुकीला बनाकर उसका इस्तेमाल चाकू की तरह किया, लंबी लकड़ियों में नुकीले पत्थर लगाकर लंबे भाले के रूप में उपयोग करना सीखा, पतले पत्थरों को कीलों का आकार दिया, पत्थरों के मोटे टुकड़ों को हथौड़े के रूप में ढाला, घने पेड़ की जटाओं-जड़ों का रस्सियों के रूप में इस्तेमाल किया, बड़े वृक्षों के पत्तों को पानी के पात्र के रूप उपयोग करता रहा. आगे चलकर आग को जाना, पहचाना फिर उसका उपयोग खाना बनाने और जानवरों से बचने, सुरक्षा व प्रकाश के लिए किया जबकि गोल वस्तुओं से पहिए जैसे अविष्कार तो मानों क्रांतिकारी बन गए.
दरअसल, मनुष्य के जीवन में बुद्धि का यह इस्तेमाल बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुआ. मनुष्य ने छोटी-छोटी वस्तुओं का आसपास के परिवेश और पर्यावरण में तर्कसंगत तरीके से सोचकर इस तरह उपयोग किया कि जीवन सरल, सहज, समायोजित व अनुकूल तो हुआ ही बल्कि मौजूदा स्थितियों में वह सुरक्षित भी हुआ. इस तरह चतुराई से जीने की यह कला और बुद्धि के उपयोग की यह युक्तियाँ ही तकनीक कहलाईं. यह सारी छोटी-मोटी तकनीकें ही इंसानी बुद्धि के बुद्धिमता की ओर बढ़ने की शुरुआत रही. सीखने-सिखाने की इस प्रक्रिया से ही उसकी बुद्धि का विकास हुआ और विकसित होती बुद्धि बुद्धिमता तक पहुंचती रही. इसी बुद्धिमता ने उसके सामने तकनीक की नई दुनिया खड़ी कर दी.
स्टीफन हॉकिंग ने कहा था- “Intelligence is the ability to adapt to change.
जाहिर है इसी बुद्धिमता के बल पर मनुष्य ने नवाचार और रचनात्मकता के बीच सीखने के नए तरीकों को विकसित किया. प्रगति के नए सोपानों को छूआ और सभ्यता का विकास किया. तकनीकी विकास की इस यात्रा में एक ओर जेम्स वॉट का भाप से चलने वाला इंजन था तो दूसरी ओर थॉमस एल्वा एडिसन का बल्ब था जिसने औद्योगिक क्रांति और आधुनिक युग की नींव रखी. आगे चलकर निकोला टेस्ला का यह आप्त वचन कि “अगर आपकी खोज मानवता के लिए उपयोगी है, तो उसे साझा करें.” इस विचार ने वैश्विक स्तर पर तकनीकी ज्ञान के प्रसार को प्रोत्साहित किया.
आज बल्ब के अविष्कार से लेकर इंटरनेट और मोबाइल फोन तक पहुंचने वाली और सभ्यता पाषाण, कांस्य, और लौह युग से होते हुए सिलिकॉन युग तक पहुंच चुकी है. टिम बर्नर्स-ली के वर्ल्ड वाइड वेब ने जानकारी के स्वतंत्र प्रसार की नई संभावनाओं को खोलकर रख दिया है. सभ्यता के कदम चांद की धरती छू चुके हैं और उसकी जिज्ञासा मंगल से लेकर सूरज तक की खोज में निकल पड़ी है. प्रौद्योगिकी के विकास से डिजिटल क्रांति तक मनुष्य जाति अपने अविष्कारों के दम पर बुद्धि के उच्चतम् शिखर को तलाश रही है.
आज मनुष्य की बुद्धि विकास के उस पायदान पर है जब वह मानवीय बुद्धिमता के समानांतर कृत्रिम बुद्धिमता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को रच रही है. एलन ट्यूरिंग से शुरू हुई कृत्रिम बुद्धिमत्ता की यह यात्रा उस मुकाम तक आ पहुंची है कि भविष्य का संसार करवट बदलने जा रहा है. आज तकनीकी नवाचारों के साथ नैतिकता और नियंत्रण के सवाल सामने उठ खड़े हुए हैं. एलन ट्यूरिंग के उस कथन से ठीक उलट जिसे वे चिंता के साथ कहते रहे कि
“हम यंत्रों को सोचने नहीं देते, हम उन्हें नियंत्रित करने योग्य बनाते हैं.”
आज जबकि दुनिया डिजिटल संसार के संकट, समस्याओं और चुनौतियों को ठीक से समझ नहीं पा रही तो वहीं दूसरे छोर पर इसी दुनिया का भविष्य आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के समानांतर नए सिरे से ढूंढा जा रहा है.
एक ओर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को असीम संभावनाओं का आकाश बताया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर कृत्रिम बुद्धिमता से मनुष्य सभ्यता के ही अस्तित्व पर खतरे की बात कही जा रही है. सवाल अब केवल उस विवेक का है जिसमें मनुष्य तकनीक का उपयोग करेगा या फिर तकनीक हमें अपनी उंगलियों पर नचाएगी?
जैसा कि सदी के महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कहा था-
“कृत्रिम बुद्धिमत्ता मानव जाति के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार हो सकता है, या फिर सबसे खतरनाक.”
आज पूरी दुनिया में आर्टिफिशल इंटेलीजेंस विमर्श के केंद्र में है और जिस तरह से इसका विस्तार हो रहा है इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भविष्य में लंबे समय तक एआई में लगातार होने वाले संशोधन, विकास और हतप्रभ करने वाले नवाचार मनुष्य सभ्यता को तकनीक के विकास और उसकी सीमा के बारे में सोचने पर मजबूर करते रहेंगे. मंथन किया जा रहा है कि आखिर एआई किस स्वरूप में भविष्य के मनुष्य को ढालेगा? क्या विज्ञान के विकास, अनुसंधान और उन्नत होती प्रौद्योगिकी मनुष्य सभ्यता को बदलकर रख देगी? क्या लगातार बदल रही टेक्नॉलॉजी, जेनेटिक इंजीनियरिंग में एआई का प्रयोग, रोबोटिक सांइंस में इनोवेशन यह सब प्रकृति पर विजय की घोषणा का शंखनाद है?
इस समय इंटरनेट और मीडिया पर एआई से जुड़ी सामग्री की भरमार है, जिसमें कहीं संभावनाएं दर्ज हैं तो कहीं आशंकाएं. असंख्य वेबसाइट, रिसर्च पेपर्स और यूट्यूब पर असंख्य वीडियो एआई से जुड़े हैं जो लगातार प्रसारित हो रहे हैं.
2.
आज मोटा-मोटा अनुमान लगाएं तो AI, AGI और ASI पर कम से कम असंख्य रिसर्च पेपर्स और सैकड़ों स्टडी की जा चुकी है. एआई और एजीआई पर हर एक स्टडी और रिसर्च पेपर इस बात की पड़ताल करता नजर आ रहा है कि आने वाले 100 वर्षों में दुनिया कैसी होगी?
बदलती हुई तकनीकी और परिवर्तित होता मशीनी तंत्र मानव जीवन के सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक संबंधों पर एक क्या प्रभाव डालेगा? एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी?
लोकतांत्रिक मूल्यों को वह कैसे देखेगा? एजीआई और सुपरएआई आने के बाद लोकतांत्रिक संस्थाएं और व्यवस्थाएं कैसे काम करेंगी? राजनीति कैसी होगी? मानवीय नैतिक मूल्य और संस्कार कैसे होंगे? समाज कैसा होगा? मनुष्यों के बीच भावनात्मक संबंध कैसे होंगे? पारिवारिक संस्थाएं, रिश्ते और वे सारी बुनियादी चीजें आखिर कैसी और किस स्वरूप में सामने आएंगी? यह सारे ही सवाल एआई, एजीआई और एएसआई दोनों को लेकर भविष्य के बुनियादी प्रश्न हैं.
इधर आगत् की तस्वीर विश्व के दिग्गज टेक्नॉलॉजी विशेषज्ञों, रोबोटिक साइंस के जानकार और आईटी क्षेत्र सहित बड़ी वैश्विक पूंजीधारक कंपनियों के हाथों में है. पूरी दुनिया में पूंजीवाद के खतरों के बीच तकनीक के इस विराट विस्तार ने जहाँ पूंजी को नया स्वरूप दिया है तो वहीं अब एआई दुनिया में एक नए बाजार को जन्म दे रहा है. यह एक ऐसा बाजार होगा जो लगातार बदलेगा. जहाँ मांग और पूर्ति का गणित अविष्कारों, नवाचारों और शोधों के समानांतर चलेगा. आज कई एजेंसीज और बिजनेस रिसर्च फर्म लगातार इस बात की घोषणा कर रही हैं कि आने वाले समय में एआई और तकनीक का बाजार अरबों-खरबों का होगा और यह आने वाला समय दूर नहीं बल्कि मौजूदा पांच से छह वर्षों में होगा.
नेक्स्ट मूव स्ट्रैटेजी कंसल्टिंग की 2023 की एक रिपोर्ट कहती है कि आने वाले दशक में एआई का यह बाजार 2023 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर बीस गुना बढ़ जाएगा और यह दो ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर यानी भारतीय रुपये में तकरीबन 2 लाख करोड़ तक का हो जाएगा, आगे तो फिर इसका विस्तार ही होना है और यह लगातार हो रहा है. पूंजी के विस्तार की होड़ में इस समय दुनिया का पैसा खिसककर एआई नाम के एक ऐसे बड़े उद्योग की ओर सिमट रहा है जिससे उपजने वाले उत्पाद विरोधाभास, विषमता के बीच विकास की अंतहीन राह खोजने जा रहा है.
आज एआई की दुनिया में ओपन एआई, माइक्रासॉफ्ट, गूगल, मेटा (OpenAI+ Microsoft, Google, Meta) सहित दिग्गज सॉफ्टवेयर टेक्नॉलॉजी कंपनियों द्वारा लगातार Artificial Intelligence के विविध आयामों और स्वरूपों पर काम किया जा रहा है. वैश्विक बाजार के मैदान में इस वक्त इतनी कंपनियाँ दिन-रात कूद रही हैं कि अंदाजा ही नहीं कि इसका फैलाव और कितना होगा. पूंजी के नए खिलाड़ियों के बीच रोबोटिक्स और मशीनी दुनिया के विस्तार को लेकर होड़ मची है. चैट जीपीटी, जेमिनी, सहित AI के कई मॉडल्स दुनिया को नये सिरे से गढ़ रहे हैं. विजुअल एआई (Visual AI), इंटरैक्टिव एआई (Interactive AI) हो, एनालिटिक एआई (Analytic AI) फंक्शनल एआई हो (Functional AI) के बढ़ते प्रयोग और प्रभाव ने विश्व के वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी और यहाँ तक की राजनीतिज्ञों को सतर्क कर दिया है. आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के एक ओर रोजगार के वैश्विक संकट खड़ा करने की आंशका है तो वहीं एक संकट मनुष्य की बुद्धिमता और चेतनागत् व्यवहार को लेकर भी सामने आ रहा है.
दरअसल, साल 2022 के नवंबर माह में अमेरिकी कपंनी ओपन एआई के जनरेटिव एआई लैंग्वेज मॉडल चैटजीपीटी की लॉन्चिंग और उसके प्रयोग के बाद ही पूरी दुनिया में एआई को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा हुई. ओपन एआई के इस चैटबॉट के आने के बाद दुनिया के दिग्गज आईटी कंपनियों के खिलाड़ी अपने-अपने चैटबॉट और जेनेरेटिव एआई मॉडल लेकर उतर पड़े. गूगल के बार्ड (अभी जेमिनी), मॉइक्रोसॉफ्ट के बिंज के बाद अनेकों कंपनियाँ इस तरह के चैटबॉट को लेकर काम कर रही हैं. इस समय जेनरेटिव एआई टूल्स सबसे ज्यादा प्रयोग में हैं. जेमिनी, चैट जीपीटी, क्विलबोट, अल्फाकोड, गिटहब, हाईपरराइट, सिंथेसिया, कोपायलट, स्टेबल डिफ्यूजन, सोरा, मिडजर्नी जैसे बहुत सारे जेनेरटिव एआई टूल्स और प्रोग्राम ने मानों मीडिया प्लेटफॉर्म्स में क्रांति ला दी है, लिहाजा इसका प्रचार सोशल मीडिया पर सर्वाधिक हुआ है.
साल 2022 के अंतिम महीनों में लॉन्च हुआ चैटजीपीटी जब पूरी दुनिया में ऐतिहासिक रूप से लोकप्रिय हुआ तो एआई को डेवलप कर रही कंपनियाँ जिसमें खुद ओपन एआई भी शामिल रहीं वे ही संदेह के घेरे में आईं क्योंकि वह एआई के जनरेटिव मॉडल से इतर GPT4 के एडवांस वर्जन के साथ-साथ विशेष रूप से एजीआई यानी की आर्टिफिशल जनरल इंटेलिजेंस पर काम कर रही थीं. तीन माह में ही एआई दुनिया के सामने पहली बार संकट का संकेत देने लगा. संकट का कारण बना अमेरिकी मीडिया में जारी हुआ एक ओपन लेटर जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया. मार्च 2023 में अमेरिका में एलन मस्क, बिल गेट्स, लेखक इतिहासकार, युआल नोआ हरारी, एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव वोज्नियाक सहित विश्व के तकरीबन 30 हजार रिसर्चर, उद्योगपतियों, टेक लीडर और एक्सपर्ट्स ने एआई के खिलाफ लिखे इस खुले खत पर हस्ताक्षर किए.
अमेरिकी प्रशासन को ‘पॉज जायंट एआई एक्सपेरिमेंट्स’ Pause Giant AI Experiments शीर्षक से लिखे गए इस ओपन लेटर में ‘मानव-प्रतिस्पर्धी इंटेलिजेंस वाले एआई सिस्टम को समाज और मानवता के लिए खतरा बताते हुए लिखा गया-
“इस तरह के शक्तिशाली एआई सिस्टम तभी विकसित किए जाएं जब कंपनियाँ और पूरी मानवजाति इस बात के लिए आश्वस्त हो जाए कि इसका असर ना केवल सकारात्मक होगा बल्कि उनके जोखिमों का प्रबंधन भी उतना ही सरल होगा.”
एआई के विकास पर रोक के लिए उठे इस कदम की कमाल की बात यह थी कि इसकी अगुवाई वही एलन मस्क कर रहे थे जिन्होंने ओपन एआई कंपनी में मोटा निवेश किया था और वे ओपनआई के बोर्ड मेंबर तक थे. यह लेटर तब सामने आया जब ओपन एआई ने अपनी लैब में Chatgpt4 को लेकर एडवांस रिसर्च कर रही थी.
दरअसल, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को शुरुआत से दुनियाभर के दिग्गज खतरा बताते रहे हैं. इतिहासविद् और चर्चित लेखक डॉ. युआलनोआ हरारी तो आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को मनुष्यता के भविष्य के लिए खतरनाक बता चुके हैं. अपने कई इंटरव्यूज, लैक्चर और लेखों में हरारी एआई को मनुष्यता के भविष्य बदल देने वाला कह चुके हैं.
अप्रैल 2023 के अंतिम दिनों में स्विट्जरलैंड के मॉन्ट्रो (Montreux) में आयोजित फ्रंटियर्स फोरम में एआई और मनुष्यता (“AI and the future of humanity”) का भविष्य विषय पर बोलते हुए हरारी कहते हैं-
‘एआई का आना इतिहास के अंत से कम नहीं है. हाँ इसका अर्थ इतिहास का खत्म हो जाना नहीं है बल्कि जिसे हम इतिहास कहते हैं उसके मनुष्यता से जुड़े और प्रभावी हिस्से का खत्म हो जाना है. अब इतिहास के इस हिस्से क्या होगा जब आर्टिफिशल इंटेलिजेंस हमारी संस्कृति पर ही कब्जा कर लेगा. एआई को मनुष्य पर कब्जा करने के लिए चिप के रूप में मनुष्य के दिमागों पर कब्जे की जरूरत नहीं है बल्कि यह केवल भाषा पर महारत हासिल करके ही किया जा सकता है. जैसे हजारों सालों से लोगों को नियंत्रित करने के लिए ज्योतिषियों, कवियों, लेखकों ने कथाओं, चित्रों के जरिए लोगों के दिमागों को नियंत्रित किया था.
हमारा सामना एक एलियन इंटेलिजेंस से होने जा रहा है. यह इंटेलिजेंस कहीं बाहर नहीं है बल्कि यहीं पृथ्वी पर है. हम इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते सिवाय इसके कि यह हमारी सभ्यता को नष्ट कर सकता है. इसलिए हमें इस एलियन इंटेलिजेंस के अनियंत्रित, गैरजिम्मेदार नियोजन पर तुरंत रोक लगाना चाहिए और इसके पहले कि यह हमें रेगुलेट करे इसे हमें रेगुलेट करना होगा.’
हरारी समय-समय पर एआई और मानवता के भविष्य से जुड़ी कई गंभीर बातों को साझा करते रहे हैं. सेपियंस के बाद अपनी दूसरी प्रसिद्ध किताब होमो डेयस में कई जगहों पर उन्होंने इस बात के संकेत दिए हैं. हरारी एआई को मनुष्य सभ्यता के ना केवल सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आयाम के लिए खतरा मानते हैं बल्कि जैविक स्वरूप के लिए भी खतरनाक बताते हैं.
हरारी का एआई को लेकर सबसे बड़ा डर एआई द्वारा पृथ्वी के इकॉलॉजिकल सिस्टम को बदलने को लेकर है. वे मानते हैं कि एआई का सबसे बड़ा संकट यही है कि एआई आने वाले समय में मनुष्य सभ्यता के जैविक स्वरूप में सीधा हस्तक्षेप करेगा और यह पृथ्वी पर 4 अरब साल के जीवन में पहली बार होगा. एआई को मनुष्य अस्तित्व को नुकसान पहुंचाने के लिए ना चेतना की ना संवदेना और भावना की जरूरत है.
हरारी की सबसे बड़ी चिंता यह है कि एआई लगातार भाषा सीख रहा है और केवल भाषा सीखने की उसकी क्षमता सामान्य औसत मनुष्य से कहीं ज्यादा है. जाहिर है निकट भविष्य में एआई बैंकों से लेकर मंदिरों से लेकर तमाम संस्थाओं में प्रवेश की मास्टर की हासिल करेगा. वे कहते हैं-
“मैं एआई में सभी रिसर्च को रोकने के बारे में बात नहीं कर रहा लेकिन अनियंत्रित एआई टूल्स को जनता के बीच लाने से तानाशाही प्रवृत्तियाँ लोकतंत्र को हराने का कारण बनेंगी उसे नुकसान पहुंचाएंगी. लोकतंत्र में बातचीत, विमर्श और संवाद अनेक लोगों, समूहों से होता है और यह संवाद होता है भाषा के माध्यम से लेकिन यदि भाषा को ही एआई लीड करता है तो इसका अर्थ है कि वह हमारी अर्थपूर्ण बातचीत की क्षमता को प्रभावित करता है, जिससे लोकतंत्र भी नष्ट हो सकता है और यदि हम किसी खतरे का ही इंतजार करते रहेंगे तो इसे लोकतांत्रिक तरीके से नियंत्रित करने में काफी देर हो जाएगी. यदि हमनें समय रहते एआई को नियंत्रित नहीं किया तो हम आने वाले समय में अर्थपूर्ण संवाद नहीं कर पाएंगे.”
बहरहाल, आज आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को लेकर दुनियाभर में जितनी भी चर्चा हो रही है वह जितनी संभावना के साथ जुड़ी है उतनी ही अंदेशों और आशंका से भरी भी. एक ओर निरंतर प्रयोग और अनुसंधान चल रहे हैं तो दूसरी ओर चिंताएं और चुनौतियों पर विमर्श हो रहा है. प्रश्न यह है कि आने वाले समय में तकनीक के इस नये स्वरूप का मनुष्य जीवन और सभ्यता पर कैसा प्रभाव होगा जबकि इस पर एआई को बनाने वाले खुद भी असमंजस में है.
जैसे कि हरारी कहते हैं-
‘एआई डेवलपर्स को भी कई बार पता नहीं चल पाता है कि उन्होंने बनाया क्या है? और वे उसके काम करने की क्षमता पर आश्चर्य प्रकट करते हैं.’
3.
AI : सभ्यता के इतिहास की विस्मृति
वर्तमान में हम जेनेरेटिव एआई के साथ संपर्क में हैं या यह कहें यह किसी ना किसी रूप में हमारे जीवन का हिस्सा है. लैंग्वेज मॉडल्स, चैट बॉट, इमेज मेकर, या फिर दूसरे तमाम टूल्स सारे जेनरेटिव एआई का हिस्सा हैं. जनरेटिव एआई का अर्थ है ऐसी कृत्रिम बुद्धिमता जो सूचना विश्लेषण यानी की डेटा एनालिसिस से आगे निकलकर पुराने डेटा के आधार पर सृजन कर रही है. खासतौर पर भाषा से संबंधित हर तरह के कार्य करने में यह सक्षम हुआ है. फिर चाहे वह भाषा लिखना हो, अनुवाद करना हो या फिर विश्लेषण, मीमांसा, शोध विषय के अलावा प्रश्न-उत्तर केंद्रित गणनाएं करने में सक्षम हो. जनरेटिव एआई का दायरा लगातार विस्तृत हुआ है, वीडियो, इमेज, ग्राफिक्स सहित संगीत और फिल्म के क्षेत्र में क्रांतिकारी काम कर सकता है.
जनरेटिव एआई में कई तरह के एआई शामिल होते हैं और इनमें Generative Text AI सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ है जिसने एक बड़े वर्ग को चुनौती दी है. GPT-3.5, GPT-4, Bard, Gemini Jurassic-1 Jumbo, जैसे एआई ने पूरी दुनिया में क्रांति ला दी है. ऐसे ही Generative Image AI में DALL-E 2, Midjourney, Stable Diffusion, जैसे कई AI हैं जिन्होंने भाषा के माध्यम से सीधे चित्र बनाने की दक्षता हासिल की है. जबकि Generative Audio और Generative Video AI जैसे कई टूल्स हैं जो लगातार विकसित हो रहे हैं. खासबात यह है कि इनके विकास की गति इतनी है कि रोजाना इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है और इनकी टेक्नॉलाजी विकसित हो रही है. इसे एक्सपोनेंशल ग्रोथ कहा जाता है जो यह बताता है कि इसकी स्पीड कैसी होगी.
इस वक्त पूरी दुनिया जिस हंगामे चलते बेचैन है वह हंगामा दरअसल एआई के जनरेटिव मॉडल्स को लेकर ही है, जिसने एक मोर्चे पर बेरोजगारी के संकट पर चुनौतियाँ खड़ी की हैं तो वहीं दूसरी ओर कई तरह की सुविधाओं के साथ समाधान को लेकर भी सामने आया है. लेकिन महत्वूर्ण बात यह है कि एआई किसी ना किसी रूप में हमारे सामने पहले से ही रहा है. एलेक्सा से लेकर गूगल मैप इसके उदाहरण हैं जबकि रोजमर्रा के जीवन में ऐसी कई टेक्नॉलॉजी है जो एआई का ही स्वरूप है. हालांकि Chat GPT वह नींव है जिसके सहारे पूरी दुनिया में जनरेटिव एआई का एक विशाल बाजार खड़ा होने जा रहा है. 2023 -24 में गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, जेनरेटिव एआई दुनिया की जीडीपी में 7 प्रतिशत यानी की तकरीबन 7 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी कर सकता है. रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि यह 10 वर्षों में उत्पादकता वृद्धि को 1.5 प्रतिशत अंक तक बढ़ाने में सक्षम है.
बहरहाल, जनरेटिव एआई की दस्तक और विस्तार के बीच दुनियाभर के टेक दिग्गजों, राजनीतिज्ञों और बुद्धिजीवियों को असली चिंता जनरेटिव एआई को लेकर तो है ही लेकिन असल चिंता एजीआई यानी की आर्टिफिशल जनरल इंटेलिजेंस और आर्टिफिशल सुपरइंटेलिजेंस को लेकर है जिसकी कार्य करने की क्षमता एक सामान्य मनुष्य के दिमाग जितनी ही नहीं बल्कि उससे ज्यादा भी हो सकती है. फिलहाल आर्टिफिशियल सुपरइंटेलिजेंस अभी अस्तित्व में नहीं है और ASI एक तरह से AI की एक काल्पनिक स्थिति है.
एएसआई से पहले एजीआई को समझना जरूरी है क्योंकि एजीआई केवल मानव बुद्धि की नकल ही नहीं होगी बल्कि वह अपनी बड़ी मात्रा में डेटा कॉपी करने के साथ ही कॉम्प्लेक्स प्रॉब्लम को साल्व करने की ताकत रखेगा. जैसे एक सामान्य मनुष्य कई तरह की परिस्थितियों, विपरित अवस्थाओं, विषम वातावरण में स्वयं को समायोजित और संयोजित कर अपने निर्णय लेता है ठीक है वैसे ही एजीआई अपने एल्गोरिदम से हर भिन्न परिस्थिति में ना केवल निर्णय लेगा बल्कि प्राप्त सूचनाओं के विश्लेषण के आधार पर भविष्य की संभावनाओं को सामने लाएगा. हालांकि मानवबुद्धि को लेकर अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञों की ना केवल भिन्न तरह की परिभाषाएं हैं बल्कि दृष्टिकोण भी हैं.
मनोवैज्ञानिक और समाजविज्ञानी सामान्य मानवबुद्धि को अनुकूलता, समायोजन और परिस्थितियों के अनुसार आसानी से संयोजन बिठाने की क्षमता के अनुसार देखते हैं. एजीआई को आप एक तरह से सुपर इंटेलिजेंस के तौर पर देख सकते हैं, हालांकि आर्टिफिशल सुपरइंटेलिजेंस एजीआई से एक कदम और आगे है जिसमें एक मनुष्य की तरह व्यवहारिक बुद्धि होगी, समझ होगी और जो एक सामान्य इंसान की तरह तुरंत ना केवल परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेगा बल्कि सटिक आकलन भी कर सकेगा. एक तरह से एआई ASI एक सैद्धांतिक स्तर की कल्पना है जहाँ AI मानव क्षमताओं से कई गुना आगे निकल जाती है.
आईबीएम का वॉट्सन सुपर कम्प्यूटर जो बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर सकता है, ऐसे ही अल्फागो जो एक तरह से सामान्य से थोड़ा अलग एआई है. यह ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम है जिसके पास बोर्ड गेम गो खेलने की महारत है. यह प्रोग्राम बिना नियम जाने गेम खेलने की ताकत रखता है. इसके एडवांस वर्जन तो आश्चर्य हैं. ऐसे ही रॉस इंटलिजेंस जिसे AI अटार्नी भी कहा जाता है यह एक कानूनी विशेषज्ञ प्रणाली है यह बेहद कम समय में एक बिलियन टेक्स्ट दस्तावेजों से डेटा निकाल सकता है. ऐसे ही GPT-3, GPT4 लैंग्वेज मॉडल हैं और हर प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम हैं. इसमें GPT4 तो अपने आप में किसी क्रांति से कम नहीं बशर्ते है आप प्रॉम्प्ट की दुनिया को ठीक-ठीक समझते हों.
जाहिर है लगातार होती रिसर्च और एजीआई का एआई के मौजूदा टूल्स से इंटरैक्शन इसे आगे और विस्तार देगा जैसे कि बार्ड, जीपीटी जैसे लैंग्वेज मॉडल का किसी रोबोट से इंटरैक्शन. उदहारण दुनिया का सबसे एडवांस रोबो अमेका है जिसने अप्रैल 2023 में GPT-3 से इंटरैक्ट होकर एक नहीं कई तरह की भाषा में बात करने की क्षमता विकसित करने का सफल प्रयास किया है. इसकी क्षमता दुनियाभर के सवालों का पूरी भावभंगिमा के साथ बात करने की भी है. ऐसे में कृत्रिम बुद्धिमता को लेकर जिस संभावित खतरे का अंदेशा दुनिया में इस समय दिखाई दे रहा है वह केवल काल्पनिक नहीं रहा है.
स्टीफन हॉकिंग जैसे वैज्ञानिक पहले ही आर्टिफिशल इंटेलिजेंस से मानवता को होने वाले खतरे को लेकर चेताते रहे हैं. साल 2014 में बीबीसी को एक दिए एक इंटरव्यू में हॉकिंग ने एआई के संभावित खतरे पर आगाह करते हुए कहा था- एआई का लगातार विकास आने वाले समय में मनुष्य जाति के खत्म होने का कारण बन सकता है. हॉकिंग कहते हैं-
‘सबसे बड़ा खतरा इसके स्वयं की बुद्धि और कमांड के बिना काम करने का है क्योंकि जब यह स्वयं से कार्य करने लगेगा तो लगातार बढ़ती रफ्तार से खुदको नया आकार और स्वरूप देगा. ऐसे में मनुष्य जो बेहद सामान्य और धीमी गति से जैविक विकास क्रम में बंधा हुआ है वह इसकी क्षमता का मुकाबला नहीं कर पाएगा और आसानी से यह मनुष्य का स्थान ले लेगा.’
दुनिया के जाने-माने कंप्यूटर साइंटिस्ट, लेखक, अविष्कारक, भविष्यवेता और गूगल के इंजीनियरिंग डायरेक्टर रेमंड कुर्जवील एआई को लेकर कुछ अलग राय रखते हैं. वे दुनिया के उन भविष्यवेताओं में से एक हैं जिनकी तकनीक और विज्ञान को लेकर कई भविष्यवाणियाँ सत्य साबित हुई हैं. सन् 1990 में अपनी किताब द एज ऑफ इंटेलिजेंट मशीन्स में दर्ज भविष्य की संभावनाओं का सटीक आंकलन करने वाले कुर्जवील की फोन, और इंटरनेट के विस्तार को लेकर की गई भविष्यवाणियाँ सच साबित हुई थीं.
माना जाता है कि तकनीक, विज्ञान और मानव सभ्यता पर उनके प्रभावों पर उनके तकरीबन 147 में से 86 फीसदी भविष्य के आंकलन सही या सही होने के आसपास बैठे. खासबात यह है कि 2017 में कुर्जवील ने एआई को लेकर भविष्यावाणी की थी और वह वर्ष 2022 में तब सही साबित होती नजर आई जब एक लैंग्वेज मॉडल के तौर पर GPT-3 लॉन्च हुआ और फिर तो जनरेटिव एआई ने पूरे विश्व को सोचने पर मजबूर कर दिया.
इस समय गूगल में AI रिसर्च टीम के इंजीनियरिंग डायरेक्टर कुर्जवील दुनिया के उन चंद विशेष लोगों में से एक हैं जो आर्टिफिशल इंटेलिजेंस पर चल रही रिसर्च और डेवलपमेंट रोक को गलत मानते हैं. वे उन वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों व रिसर्चर में भी शामिल नहीं थे जिन्होंने एआई पर बढ़ती रिसर्च को रोकने को लेकर लिखे गए पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. एआई को लेकर वे अपनी तरह का अलग विचार रखते हैं-
साल 2017 में साउथ वेस्ट कॉफ्रेंस में दिए एक इंटरव्यू में वे कहते हैं-
वर्ष 2029 तक एआई कहीं आगे निकल चुका होगा. एक तरह से यह मनुष्य की सामान्य बुद्धि के स्तर पर होगा और एक समय ऐसा आएगा कि आगे चलकर मनुष्य द्वारा इसकी बराबरी करना आसान नहीं होगा.
वे कहते हैं-
जीपीटी-4 से ज्यादा पॉवरफुल एआई पर रिसर्च को रोकना अव्यवहारिक है. जो राष्ट्र इस पर प्रतिबंध को नहीं स्वीकारेंगे वे उन राष्ट्रों से पिछड़ जाएंगे जो एआई पर इन प्रतिबंधों को स्वीकार करेंगे. चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवाश्म ईंधन को बदलने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की खोज और कई अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए मानवता को एआई को बहुत आगे बढ़ाने की जरूरत है और इसके जबरदस्त लाभ हैं.
कुर्जविल सालों से भविष्य में मनुष्य के अमर हो जाने को लेकर भी दावा करते रहे हैं. वर्ष 2012 में गूगल इंजीनियरिंग के निदेशक पद पर आने के बाद गूगल ने कैलिको नाम की कंपनी की स्थापना की इस कंपनी का घोषित लक्ष्य ही “मृत्यु” को हल करना था. आश्चर्य है कि इससे पहले गूगल ने 2009 में गूगल वेंचर इन्वेस्टमेंट फंड बनाया जिसकी अध्यक्षता बिल मैरिस नाम के व्यक्ति को दी जो मनुष्य जाति की अमरता के लिए काम करना चाहता है. साल 2015 में एक इंटरव्यू में मैरिस ने कहा था-
यदि आप मुझसे पूछें कि क्या 500 साल तक जीना संभव है तो मेरा जवाब होगा हाँ. आश्चर्य की बात है कि गूगल अपने 2 अरब डॉलर के पोर्टफोलियो के 36 प्रतिशत हिस्से का निवेश लाइफ साइंस नाम के स्टार्टअप में कर रहा है, जिसमें मनुष्य की उम्र बढ़ाने के लिए कई तरह महत्वकांक्षी योजनाएं शामिल हैं.
कुर्जविल तो तकनीक और विज्ञान के सहारे मनुष्य की उम्र बढ़ाने को लेकर दृढ़ ही रहे हैं. सिंगुलैरिटी यूनिवर्सिटी में साल 2017 में अपने व्याख्यान में कुर्जवील ने कहा था-
“आने वाले समय में मनुष्य के मस्तिष्क से जुड़कर कई नैनोचिप्स ना केवल इंसान को बीमारियों से बचाएंगे बल्कि उसे अमरता की ओर ले जाएंगे.”
अक्टूबर 2015-17 में हफिंगटन पोस्ट में कुर्जवील भविष्यवाणी करते हुए कहा था- -2030 के दशक में, हमारे दिमाग में मौजूद नैनोबॉट्स हमें ‘भगवान जैसा’ बना देंगे (In The 2030s, Nanobots In Our Brains Will Make Us ‘Godlike’: Ray Kurzweil) इस महत्वपूर्ण बातचीत में कुर्जवील एआई को लेकर भविष्य में होने वाली कई महत्वपूर्ण बातों की ओर इशारा करते हैं.
भविष्य में जैविक संरचना में तकनीकी हस्तक्षेप के विचार से खासतौर पर मस्तिष्क में चिप लगाने को लेकर कुर्ज़वील बेहद कौतुक से भरे नजर आते हैं. वे कहते हैं-
“2030 के दशक में मनुष्य का मस्तिष्क क्लाउड से जुड़ने में सक्षम होगा और इस तकनीक से हमें सीधे मस्तिष्क में ईमेल और तस्वीरें भेजने और अपने विचारों और यादों का बैकअप लेने की अनुमति होगी. वे कहते हैं यह सब नैनोबॉट्स के माध्यम से संभव होगा, जो डीएनए स्ट्रैंड से भी छोटे रोबोट हैं. ये नैनोबॉट्स हमारे मस्तिष्क की केशिकाओं में तैरेंगे और हमें क्लाउड से जुड़ने में मदद करेंगे. यह सब मानव विकास के अगले चरण में होगा जब तकनीक का स्तर इतना होगा कि मस्तिष्क को गैर-जैविक रूप से सोचने और कार्य करने की क्षमता मिल जाएगी. यह हमारे पुराने लोगों की तरह उपकरणों का उपयोग करना सीखने के समान होगा.” यह न केवल हमारी तार्किक बुद्धि, बल्कि हमारी भावनात्मक बुद्धि को भी नया स्वरूप देगा और इसे बढ़ाएगा.
कुर्जविल की बात को केंद्र में रखा जाए तो जेनेटिक इंजीनियरिंग और एआई को जोड़कर इस समय दुनियाभर में तेजी से रिसर्च चल रही है. आश्चर्य यह है कि बीते साल 2023 में ही दुनिया के जाने-माने उद्योगपति और टेक रिसर्च के क्षेत्र में अग्रणी कंपनी टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने न्यूरालिंक नाम की एक कंपनी बनाई है. हाल ही में कंपनी को अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ़डीए) ने मानव शरीर पर टेस्ट की अनुमति दे दी है. बाइडन प्रशासन की अनुमति से यह एक तरह साइबॉर्ग यानी आधे मशीन और आधे मानव की कल्पना को साकार करने दिशा में बड़ा कदम है. एलन मस्क का दावा है कि इसके माध्यम से वे कई जटिल बीमारियों का इलाज करने में सफलता हासिल करेंगे. 2016 में अस्तित्व में आई इस कंपनी का लक्ष्य साल 2030 तक तकरीबन 22 हजार लोगों के दिमाग में चिप प्लांट करना है. इस चिप की मदद से व्यक्ति अपने आसपास मौजूद लैपटॉप, टैबलेट और अन्य गैजेट तक वायरलेस कनेक्टिविटी रख पाएगा और आसानी से कमांड दे पाएगा.
बहरहाल, न्यूरालिंक जैसे स्टार्टअप से कल्पना को साकार करने वाले एलन मस्क का यह प्रोजेक्ट जब जेनरेटिव एआई से कनेक्ट करेगा तो संभावनाएं दूसरी दिशा में काम करेंगी. प्रथम दृष्टया संभावना इसके सकारात्मक उपयोग को लेकर सामने आ रही है उतना ही इसके कई नकारात्मक पहलू भी हैं. सायबॉर्ग, एआई और एजीआई और भविष्य की पूरी दुनिया एक संभावना और आशंका के बीच जाकर खुलती है.
एआई पर दुनिया की सबसे चर्चित किताबों में से एक लाइफ-3.0 बीइंग ह्यूमन इन द एज ऑफ आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के लेखक स्वीडिश-अमेरिकी भौतिक विज्ञानी, मशीन लर्निंग शोधकर्ता मैक्स एरिक टेगमार्क एआई को मानवता के लिए कैंसर तक बता चुके हैं हालांकि वे इसके सुरक्षित और नियंत्रित विकास को संभावनाशील तरीके से देखते हैं और एआई से बदलती हुई दुनिया को कई तरह की संभावनाओं के साथ देखते हैं. एआई की मुखालफत करने में अग्रणी और एआई रिसर्चर और फ्रेंडली एआई की अवधारणा पर काम कर रहे लेखक और रिसचर्र एलीएज़र युडकोव्स्की एआई पर किसी भी तरह के डवेलपमेंट को तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की मांग करते हैं.
अप्रैल 2023 में टाइम मैगजीन में प्रकाशित एआई पर दिया गया उनका एक इंटरव्यू बेहद चर्चित हुआ था जिसमें उन्होंने एआई को लेकर सबसे मारक टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था-
“मौजूदा परिस्थितियों में सुपरएआई को बनाने का सबसे संभावित परिणाम यही है कि सचमुच पृथ्वी पर हर कोई मर जाएगा और यह कोई दूरवर्ती संभावना’ नहीं है बल्कि बल्कि ‘वह स्पष्ट बात है जो घटित होगी.
प्रसिद्ध कंप्यूटर वैज्ञानिक और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर स्टुअर्ट जोनाथन रसेल दुनिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI+AGI) के जानें-माने विशेषज्ञ हैं. वे 2008 से 2011 तक कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन फ्रांसिस्को में न्यूरोलॉजिकल सर्जरी के सहायक प्रोफेसर भी रहे हैं. रसेल एआई के क्षेत्र में विश्व की सबसे प्रभावशाली हस्तियों में से एक मानें जाते हैं. साल 2023 में टाइम मैगजीन ने उन्हें एआई के क्षेत्र में दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक माना है.
एआई पर हालिया समय में तेजी से हुई प्रगति रसेल को चिंता में डालती है. वे एआई के नियंत्रित विकास और उसे लेकर जारी चेतावनी के रूप में लिखे गए 30000 लोगों के खुले पत्र के मुखर समर्थक रहे हैं. ये खत उन्हें आश्वस्त करता रहा है.
रसेल वर्ष 2013 में वे एक सवाल के साथ ठहर गए कि क्या होगा जब हम सफल हो गए तो? टाइम मैगजीन के अनुसार- 2013 में ह्यूमन राइट्स वॉच से एक ईमेल प्राप्त करने के बाद, रसेल घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियों पर प्रतिबंध के मुखर समर्थक बन गए. एआई के नियंत्रण से बाहर हो जाने और इसका गलत इस्तेमाल होने का डर रसेल के मन में सदा से रहा है. इस सवाल के साथ ही रसेल ने बर्कले में सेंटर फॉर ह्यूमन-कम्पैटिबल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (सीएचएआई) की स्थापना की जो एआई पर केंद्रित दुनिया के उन चुनिंदा महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक हैं जहाँ एआई के नियंत्रण, निर्देशन और मानवता के लिए लाभदायक बनाए जाने को लेकर काम हो रहा है.
रसेल एआई पर प्रसिद्ध व महत्वपूर्ण तीन किताबों के लेखक हैं. “एआई: ए मॉडर्न अप्रोच” उनकी विश्व प्रसिद्ध पाठ्य पुस्तक है जिसमें वे सह-लेखक है. इस किताब को उन्होंने पीटर नॉरविग के साथ मिलकर लिखा है. यह किताब आज 135 देशों के 1500 विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है. किताब एआई को लेकर एक आधारभूत समझ पैदा करती है. इस किताब में एआई को लेकर संभावना, चुनौतियों और खतरों दोनों के बारे में बताया गया है. लेखक द्वय एआई को मानवजाति के इतिहास में तीसरी औद्योगिक क्रांति के रूप में देखते हैं और इसे पिछली दो क्रांतियों की तुलना में ज्यादा विघटनकारी मानते हैं.
इधर ट्यूरिंग पुरस्कार विजेता जेफ्री हिंटन एआई तीन गॉड फादर में से एक मानें जाते हैं. जेफ्री एक प्रमुख ब्रिटिश-कनाडाई कंप्यूटर वैज्ञानिक हैं जिन्होंने डीप लर्निंग के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया है. हिंटन को “न्यूरल नेटवर्क्स के गॉडफादर” के रूप में जाना जाता है. हिंटन ने डीप न्यूरल नेटवर्क्स के विकास में बेहद उल्लेखनीय योगदान दिया है.
हिंटन ने वर्ष 2023 में गूगल से अपने पद से इस्तीफा देकर एआई पर अपने अब तक के सबसे उल्लेखनीय विचार प्रस्तुत किए. जेफ्री का इस्तीफा पूरी दुनिया में चर्चा में था क्योंकि उन्होंने तकरीबन एक दशक के लंबे अंतराल के बाद यह फैसला लिया. इस्तीफे के बाद एमआईटी टेक्नोलॉजी रिव्यू के एमटेक डिजिटल 2023 सम्मेलन में एक सवाल-जवाब सत्र के दौरान, हिंटन ने एआई को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं.
GPT4 जैसी चीजें हमसे कहीं अधिक जानती हैं.” “उन्हें हर चीज़ के बारे में सामान्य ज्ञान का ज्ञान है.” और यकीन मानिए प्रौद्योगिकी इंसानों के बारे में जितना अधिक जानेगी, वह इंसानों के साथ छेड़छाड़ करने में उतनी ही बेहतर होगी.
जून 2023 में टोरंटो के कोलिजन टेक सम्मेलन में जेफ्री कहते हैं-
“मुझे लगता है कि यह महत्वपूर्ण है कि लोग समझें कि यह सिर्फ विज्ञान कथा नहीं है; यह सिर्फ डर फैलाना नहीं है – यह एक वास्तविक जोखिम है जिसके बारे में हमें सोचने की ज़रूरत है, और हमें पहले से ही यह पता लगाने की ज़रूरत है कि इससे कैसे निपटना है.
एआई को लेकर दुनियाभर में सबसे अग्रणी अग्रणी विशेषज्ञों में से एक योशुआ बेंगियो का काम एआई में न्यूरल नेटवर्क और डीप लर्निंग को लेकर खासा चर्चा में रहा है. इस कनाडाई कंप्यूटर साइंटिस्ट को भी एआई के गॉड फादर के रूप में जाना जाता है. योशुआ जेफ्री हिंटन और यान लेकुन के साथ 2018 एएम ट्यूरिंग अवॉर्ड, के सहविजेता रहे हैं. एआई के विकास को लेकर योशुआ की एक ओर जहाँ अपनी चिंताएं रही हैं तो वहीं दूसरी ओर वे उसके जोखिम को लेकर भी लगातार मुखर होकर बोलते हैं. एआई पर योशुआ बहुत अलग ढंग से सोचते हैं विशेष रूप से वे भविष्य में एआई के ज्यादा शक्तिशाली होने और उसके परिणामों को लेकर चिंतित रहे हैं. अपने इंटरव्यू, ब्लॉग्स और लेखों में लगातार वे एआई के कई पहुलओं पर बात करते रहे हैं.
मैं सोचता था कि सुपरएआई अभी भी भविष्य में दूर है, लेकिन चैटजीपीटी और जीपीटी-4 ने मेरी भविष्यवाणी क्षितिज को काफी कम कर दिया है (20 से 100 साल से 5 से 20 साल तक). 100 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ताओं के साथ, हम राइट ब्रदर्स चरण से काफी आगे निकल चुके हैं. वे इस सवाल के जवाब में कि एआई कितना कैसे और कितना खतरनाक हो सकता है वे कहते हैं-
‘भले ही AI सभी संज्ञानात्मक क्षमताओं में मनुष्यों से अधिक मजबूत न हो, फिर भी यह खतरनाक हो सकता है यदि जिन पहलुओं में यह महारत हासिल करता है (उदाहरण के लिए भाषा लेकिन रोबोटिक्स नहीं) वे तबाही मचाने के लिए पर्याप्त हैं, उदाहरण के लिए, मनुष्यों के साथ संवाद का उपयोग करके सृजन करना एक जोड़-तोड़ वाला भावनात्मक संबंध और उन्हें दुनिया में ऐसे तरीकों से कार्य करने के लिए भुगतान करना या प्रभावित करना जो बहुत हानिकारक हो सकते हैं, जिसकी शुरुआत वर्तमान सोशल मीडिया से भी अधिक लोकतंत्र को अस्थिर करने से होती है.’
वर्तमान में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और फेसबुक AI रिसर्च (FAIR) के मुख्य वैज्ञानिक यान लेकुन एआई के गॉड फादर में से एक माने जाते हैं. एक फ्रांसीसी कंप्यूटर वैज्ञानिक यान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में अपने योगदान के लिए पूरी दुनिया में एक महत्वपूर्ण नाम है. यूआन एआई के क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण दो नाम जेफ्री हिंटन, योशुआ बेंजियो के साथ मिलकर उस तिकड़ी को पूरा करते हैं जिन्हें एक तरह से एआई का गॉड फादर कहा जाता है.
यान का नजरिया एआई को लेकर बहुत ही सकारात्मक रहा है. इस वर्ष एआई के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान और काम के लिए TIME100 इम्पैक्ट अवॉर्ड से सम्मानित यान 13 फरवरी 2024 को टाइम मैगजीन के साथ अपनी एक महत्वपूर्ण बातचीत में एआई और एजीआई को लेकर बहुत महत्वपूर्ण बात कहते हैं-
मुझे एजीआई उपनाम से ही समस्या है. यह आश्चर्यजनक है कि लार्ज लैंग्वेज मॉडल अलग तरह से काम करते हैं. यदि आप उन्हें बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित करते हैं, लेकिन यह बहुत सीमित है. यान लेकुन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, विशेष रूप से आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) के भविष्य को लेकर बहुत अलग तरह से सोचते हैं. ऐसा कहा जा सकता है कि वे अपने समकालीन और समान विचारों वाले साथियों से भी असहमति दर्ज कराते हैं. लेकुन काम मानना है कि AGI का विकास इतना भी आसान नहीं है और यह एक तरह से चुनौतीपूर्ण है. यान इसके लिए ना केवल बहुत अलग तरह के तकनीकी कौशल की आवश्यकता देखते हैं बल्कि नैतिक और सामाजिक संवेदनशीलता को इसके लिए बहुत जरूरी मानते हैं. यान का मानना है कि AGI का विकास मानवीय सहानुभूति और समझ को शामिल किए बिना पूरा नहीं हो सकता है. वे अपने विचारों, ब्लॉग्स और कई इंटरव्यू में कह चुके हैं कि “AI के भविष्य के लिए न केवल तकनीकी प्रगति, बल्कि मानवीय मूल्यों का समावेश भी जरूरी है. हालांकि यान एआई के विकास के बीच इसके नियंत्रण और नियमन को लेकर भी गंभीर नजर आते हैं और इसके दुरुपयोग की संभावना को खारिज नहीं करते. वे मानते हैं हैं कि बिना सही नियंत्रण के एआई की क्षमताओं का दुरुपयोग मानवता के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. टाइम मैग्जीन में अपनी लंबी बातचीत के दौरान दो महत्वपूर्ण और वर्तमान में बेहद उल्लेखनीय प्रश्नों को पर बहुत ही सधा उत्तर देकर एआई को लेकर अपने दृष्टिकोण को बहुत साफ कर देते हैं.
जब उनसे पूछा जाता है-
आपने एआई द्वारा मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करने के विचार को “बेतुका” कहा है. क्यों?
“हाँ मैं उसे बेतुका ही मानता हूं. जैसा कि मैंने पहले भी कहा मुझे एजीआई नाम से ही चिढ़ होने लगी है. ऐसा इसलिए क्योंकि वहाँ अब भी बहुत सी भ्रांतियाँ हैं. पहली भ्रांति तो यही है कि चूंकि कोई व्यवस्था बुद्धिमान है, वह नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहती है. दरअसल, यह बिल्कुल झूठ है और एक तरह से यह मानव प्रजाति के भीतर भी झूठ है. हममें से सबसे बुद्धिमान लोग दूसरों पर हावी नहीं होना चाहते. इन दिनों अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर हमारे पास उदाहरण हैं-हममें से सबसे चतुर लोग ही प्रमुख नहीं हैं.”
इस उत्तर के जवाब में साक्षात्कारकर्ता के एक सधे सवाल पर कि क्या होगा अगर एक इंसान, जिसमें हावी होने की चाहत हो, उस लक्ष्य को एआई में प्रोग्राम कर दे?
वे दो टूक कहते हैं-
“तो फिर, यह आपके बुरे AI के विरुद्ध मेरा अच्छा AI है. यदि आपके पास बुरा व्यवहार करने वाला एआई है, या तो खराब डिजाइन के कारण या जानबूझकर, तो आपके पास अधिक स्मार्ट, अच्छे एआई होंगे जो उन्हें खत्म कर देंगे. उसी प्रकार हमारे पास पुलिस या सेनाएं हैं. “
4.
कृत्रिम और संवैधानिक बुद्धिमता के बीच भारतीय समाज
आज आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की दस्तक के बीच भारत इस समय विकासशील राष्ट्र है. स्वतंत्रता के 75 साल बाद इस आत्मनिर्भर हो रहे देश में चुनौतियाँ तेजी से बदली हैं और उसके आयाम भी. अभी भारत डिजिटल संसार के संकट, समस्याओं और चुनौतियों को ठीक से समझ भी नहीं पा रहा है और आज दुनिया का भविष्य आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के समानांतर नए सिरे से ढूंढा जा रहा है. एआई के आने और उसके विस्तार व व्यवस्था में हस्तक्षेप के बीच भविष्य में भारत के सामने एक नहीं कई चुनौतियाँ सामने होंगी. हिंदुस्तान आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देख रहा है. भारत में बीते दो दशकों में राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक हर आयाम में बदलाव हुआ है. देश में परिवर्तन की सबसे बड़ी धुरी विज्ञान, प्रौद्योगिकी और हालिया दौर की डिजिटल क्रांति रही है.
देश में प्रगति और विकास दोनों विषमता और असंतुलन के बीच चल रहे हैं. हम एक ओर संवैधानिक बुद्धिमता और चेतना हासिल करने का संघर्ष कर रहे हैं जबकि इसके ठीक समानांतर नागरिकों के सामने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानी की कृत्रिम बुद्धिमता खड़ी हुई है. एक ऐसी बुद्धिमता जिसका अर्थ है मशीनी बुद्धि से निर्णय लेने की क्षमता. ऐसी काबिलीयत जिसे मनुष्य मस्तिष्क के समानांतर मशीन के माध्यम से विकसित किया गया है. एक ऐसा निर्णय जिसे किसी भी स्तर पर एक झटके में मशीन तो ले लेगी लेकिन उसे लेने के लिए मनुष्य अपनी बुद्धि, क्षमता, विवेक, चेतना, संवेदना, भावना व तर्क की कसौटी का उपयोग करता है. ऐसे में आने वाले समय में हमारे विकासशील राष्ट्र के सामने कुछ बड़े ज्वलंत सवाल कृत्रिम बुद्धिमता और संवैधानिक बुद्धिमता के समानांतर होंगे-
पहला सवाल तो यही होगा कि आखिर क्या भारत की राजनीतिक, प्रशासनिक और न्याय प्रणाली व नागरिक व्यवस्था संवैधानिक बुद्धिमता से चलेगी या फिर कृत्रिम बुद्धिमता से संचालित होगी? जैसा कि इस समय यूरोप और अमेरिका में इसकी आहट सुनाई देने लगी है.
क्या मनुष्य के मनुष्य के प्रति ही लिए जाने वाले सारे महत्वपूर्ण निर्णय कृत्रिम बुद्धिमता विकृत नहीं करेगी? क्या गरिमा, न्याय, समानता, संवेदना, सहानुभूति और भावना जैसे संवैधानिक मूल्यों का कोई आधार होगा? या फिर मशीनी पैटर्न, तार्किक संजाल या फिर एल्गोरिदम को आधार बनाया जाएगा? ऐसे ही क्या बतौर राष्ट्र हम यह नहीं सोचेंगे कि आखिर विविधता से भरे देश में एक वृहद मनुष्य समाज की भलाई, उसकी सुख-सुविधाओं, संसाधनों के वितरण में संवैधानिक मूल्यों के बोध का अभाव खतरा नहीं बनेगा? जो कि पहले से ही मौजूद है. अवसरों की असमानता, रोजमर्रा के जीवन में चोटिल होती गरिमा, बाधित होता न्याय यह सबकुछ इसी चमकते भारत की गलियों में रोजाना का हिस्सा है तो आखिर ऐसे में एक मशीनी रोबोट डेटा और प्राप्त सूचना के आधार पर कितना निष्पक्ष और समता दृष्टि से संचालित होगा?
न्याय, रोजगार का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार कितना हासिल होगा जो कि पहले ही नहीं है. आखिर लोककल्याण की भावना का निर्वहन कैसे होगा? आर्टिफिशल इंटेलिजेंस मनुष्य को समझेगी कैसे? अभी तो मनुष्य ही मनुष्य के प्रति संवेदनहीन हुआ जा रहा है? क्रूरता, जघन्यता, अन्याय, परस्पर सहिष्णुता का अभाव, कट्टरता की भावना काम कर रही है तो आखिर ऐसे में कृत्रिम बुद्धिमता संवैधानिक बुद्धिमता की तरह निर्णय ले पाएगी? और उन संवैधानिक मूल्यों का ध्यान रख पाएगी जिसकी आज हमारे समाज में सबसे ज्यादा आवश्यकता है. या फिर समाज और व्यवस्था एक मशीन तंत्र में और ज्यादा क्रूर होगी?
आज जबकि डिजिटल दुनिया के आभासीय संसार में जी रहा मनुष्य समाज बीते एक दशक में कितना संवदेनहीन और विचार शून्य हुआ है यह किसी से छिपा नहीं है. ऐसे में एआई कितना और कैसा प्रभाव मनुष्य की चेतना पर डालेगा यह एक गंभीर प्रश्न है. सवाल यह भी उठता है कि क्या एक मनुष्य दूसरे के साथ सद्भावनापूर्ण, प्रेम और करुणा जैसे मूल्यों से शांतिपूर्ण तरीके से आपसी व्यवहार करेगा या फिर वह एक सब्जेक्ट, टास्क और टारगेट बन जाएगा. क्या हमारा राष्ट्र और समाज नैसर्गिक, नैतिक मूल्यों के साथ संवैधानिक मूल्यों को अपनाकर जीवन को खुशहाल बना पाएगा? या फिर हम सब बतौर नागरिक, एक समाज के रूप में एक मोहल्ला, मकान नंबर, पहचान-पत्र, वित्तीय, जातीय, धार्मिक, प्रोफेशनल पहचान से जाने जाएंगे जो एक मशीन में फीड है? या फिर हम किसी मेटा या गूगल जैसी कंपनी के लिए एक वोटर, खाने-पीने, शॉपिंग करने के तौर-तरीकों, रुचियों के रूप में एक उपभोक्ता डेटा में तब्दील होने जा रहे हैं? (कुछ हद तक हो ही चुके हैं) और अब हमारे जीवन के सारे निर्णय इसी आधार पर एक मशीन लेने जा रही है?
आखिर अशिक्षित, असाक्षर, तकनीकी रूप से विपन्न व इंटरनेट साक्षरता के अभाव में जी रही देश की एक बड़ी आबादी के पास एआई किस रूप में प्रभाव डालेगा? एक देश जिसके पास आज भी रोजगार और कुपोषण, भुखमरी जैसे बड़े सवाल सामने हैं आखिर उसके जीवन में एआई क्या करने जा रहा है?
दरअसल, उपरोक्त प्रश्न एआई और भारत के भविष्य के संबंध में बेहद महत्वपूर्ण हैं. आज तकनीकी विकास के चरम की ओर बढ़ रही दुनिया में भारत का नागरिक समाज, और वह स्वयं एक राष्ट्र के रूप में किस दिशा में बढ़ने जा रहा है? यहाँ आज भी व्यवस्थाएं और संस्थाएं व उसकी मशीनरी संवैधानिक प्रदत्त मूल्यों, संस्कारों, चेतना और बुद्धिमता के अभाव में संचालित है, जिसके भीषण प्रभाव सामने हैं. न्यायालयों में करोड़ों केस लंबित हैं, शिक्षा, बेरोजगारी, प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्थाएं, मूलभूत जीवन जीने के संसाधन व अधिकार, पेयजल से लेकर भुखमरी, कुपोषण, गरीबी, अपराध, लैंगिक असमानता, बाल-अपराध, बंधुआ मजदूरी, किसान आत्महत्या, बढ़ती महंगाई, जनसांख्यकीय दबाव, विस्थापन, सांप्रदायिकता, जातिवादी, छुआछूत, महिला उत्पीड़न के लगातार बढ़ते मामले, आखिर ऐसी सामाजिक व्यवस्था जहाँ पहले संवैधानिक मूल्यों और बुद्धिमता के अभाव में धराशायी हैं, तो वहाँ कृत्रिम बुद्धिमता संकट कम करेगी या बढ़ाएगी?
क्या न्याय, समता, स्वतंत्रता, गरिमा, बंधुता जैसे मूल्यों को आधार पर बनाकर विकास कार्यों और जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले लिए जाएंगे? क्या एआई संचालित व्यवस्था से केवल और केवल मुनाफे, शोषण और तर्कों के आधार पर पक्षपाती फैसले लेने का खतरा बढ़ेगा नहीं? क्या मशीनें अदालतों में न्याय करेंगी? यदि हाँ तो फिर न्याय का सम्मान होगा? क्या एआई का उपयोग उस न्याय के प्रति उस गरिमा, संवेदना और समता के मूल्य के प्रति निष्पक्ष होगा?
आज विचारणीय प्रश्न यह है कि जब कृत्रिम बुद्धिमता भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के हर आयाम में प्रभावी होगी जैसा कि डिजिटल और इंटरनेट की दुनिया प्रभावी है तो फिर कल्याणकारी राज्य की स्थापना का उद्देश्य पूरा होगा? निश्चित ही डिजिटल टेक्नॉलॉजी के प्रभाव और हस्तक्षेप ने व्यवस्था के भीतर पारदर्शिता और संचालन में सुचारू स्वरूप दिया है लेकिन उसके दुष्प्रभाव भी कम सामने नहीं हैं. सवाल यह भी है कि क्या संवैधानिक मूल्यों, संस्कारों के अभाव में हम एआई का ठीक से उपयोग कर पाएंगे? या फिर उसके दुरुपयोग की संभावनाएं ज्यादा होंगी? उद्योग, व्यापार, शिक्षा, चिकित्सा, इंफ्रास्ट्रक्चर, अर्थतंत्र, समाजतंत्र, राजनीति, प्रशासनिक मशीनरी में गहरे तक पैठ बनाने की क्षमता रखने वाली आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की क्षमता का मूल्याँकन आखिर होगा कैसे? क्या एआई से होने वाला इलाज, न्याय, सेवा केवल गणनाओं और फॉर्मूला अप्लाय कर होगा या फिर एक मनुष्य की भावना भी उसके पीछे कार्य करेगी? क्या ऐसी कृत्रिम बुद्धिमता मनुष्य के नैसर्गिक मूल्यों, प्रेम, करुणा, संवेदना, सहानुभूति, भावना जैसे मूल्यों को सहेज पाएगी?
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की आहट और दस्तक के बीच बीते एक दशक की यात्रा में विज्ञान, प्रौद्योगिकी के विकास और मोबाइल फोन, डिजिटल डिवाइसों के साथ घटी डिजिटल क्रांति ने जिस तरह से मनुष्य की चेतना और स्वभाव को बदला है वह किसी से छिपा नहीं है. क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या शक्तिशाली और क्या कमजोर, क्या गरीब और क्या अमीर हर व्यक्ति तकनीक के नियंत्रण में है. विश्व के हर कोने की निजता आज इंटरनेट पर सार्वजनिक है. दिन-रात मोबाइल, सोशल मीडिया और कंप्यूटर में धंसा मनुष्य समाज संवेदनहीन, विचारहीन, विचार शून्य और एक तरह से मनोरोगी, निस्तेज, निढाल, बीमार और पस्त हो रहा है.
इस लिहाज से भारत के संदर्भ में एआई को समझना एक महत्वपूर्ण जरूरत है. परिवर्तगामी दौर में इस वक्त भारत एक छोर पर विकास और प्रगति के पीछे आर्थिक महाशक्ति की होड़ में है जबकि दूसरे सिरे पर संवैधानिक बुद्धिमता, संवैधानिक मूल्य, चेतना और संस्कार बोध के अभाव में एक अंधेरे में प्रवेश कर रहा है. आज समाज संवैधानिक मूल्यों के अभाव में दिशाहीन हो रहा है. शोषण, संवेदनहीनता, अमानवीयता, अन्याय, असमानता के साथ सामाजिक विघटन, हिंसा और सांप्रदायिकता हावी है. आर्थिक शोषण, जातीय और धार्मिक हिंसा, वैमनस्यता व नफरत की परिस्थितियाँ विकास और उन्नति के बीच नए स्वरूप में हमारे सामने हैं. तकनीकी रूप से सम्पन्न दौर में जहाँ अपराध बढ़ा है तो उसके तरीके भी बदले हैं. डीप फेक एक बड़ी चुनौती जबकि नागरिक समाज विकटता के बीच ज्यादा संवेदनहीन हुआ है.
आज भारतीय समाज में डिजिटल तकनीक नागरिक चेतना पर हावी है. 24 घंटे डिजिटल मोड पर रहने वाले समाज में पहले अपराध होते थे लेकिन अब लाइव वीडियो का नंगा नाच होता है, चोरी, लूटमारी, डकैती होती थी लेकिन अब बाकायदा एकांउट से बताकर करोड़ों का हेर-फेर हो रहा है, रेप, छेड़छाड़ के वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं. इस संदर्भ में दो बीते दो सालों देश में हुई दो घटनाओं ने पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा है. यह वह अमानवीय त्रासदियाँ थी जिसने हिंदुस्तान की छवि को विश्व पटल भी सबसे ज्यादा धूमिल किया.
-28 जून 2022 को राजस्थान के उदयपुर में एक समुदाय विशेष के व्यक्तियों द्वारा हत्या कर दी गई. हत्या का तरीका दिल दहला देने वाला और मानवता को शर्मसार करने वाला था. दो व्यक्तियों ने दिन में एक टेलर की दुकान पर ग्राहक के रूप में प्रवेश किया और मौका पाते ही टेलर की गर्दन काट दी और उसका लाइव वीडियो बनाकर फरार हो गए. यह वारदात इतनी नृशंस, बर्बर थी कि इस घटना से पूरा देश स्तब्ध रह गया. इसकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई. यह घटना धार्मिक और सांप्रदायिक कट्टरता से उपजी थी.
-इसी तरह साल 2023 में मणिपुर में घाटी-बहुल मैतेई और पहाड़ी-बहुसंख्यक कुकी जनजाति के बीच हिंसा की घटनाएं बढ़ीं. विवाद की वजह एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग थी. मारकाट और भीषण हिंसक घटनाओं का दौर चला जिसमें कई लोगों की मौत हुई. लेकिन इस बीच सबसे त्रासद और पूरे देश को शर्मसार करने वाली घटना यहाँ दर्ज हुई. 18 मई 2023 को दो महिलाओं को भीड़ ने सरेआम नग्न घुमाया, उनका वीडियो बनाया, उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया और उनका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया. दो महिलाओं को नग्न घुमाती भीड़ द्वारा बनाया गया इस वीडियो ने पूरी दुनिया को हिला दिया. देश की छवि धूमिल हुई. सरकार शर्मिदा हुई जबकि समाज पर जो असर हुआ वह तो भयावह ही था. यह दोनों ही हमारे नागरिक समाज की चेतना के रसातल में जाने का सबसे बड़ा प्रमाण है.
दोनों ही घटनाएं संवैधानिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ाती हैं. हमारी नागरिक चेतना पहले से ही संवैधानिक मूल्यों को लेकर जागरूक नहीं थी जबकि इन घटनाओं ने इस बात को साबित किया भारत के नागरिक समाज में संवैधानिक मूल्यों के प्रति जागरूकता होती तो राष्ट्र को शर्मिंदा करने वाली ऐसी घटनाएं नहीं होतीं.
सबसे दुखद बात यह है कि आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे भारतीय समाज में बीते एक दशक में हमारी चेतना, बुद्धिमता, संस्कार, मानवीय बोध इतने गर्त में चले गए हैं कि मामूली अपराधों से पीट-पीटकर भरे बाजार हत्याएं हो रही हैं, भीड़ न्याय कर रही है, जातिगत् धार्मिक भेदभाव की शर्मनाक घटनाएं टेक्नॉलॉजी सम्पन्न युग में राष्ट्र की छवि धूमिल कर रही हैं.
मनुष्य इतना क्रूर, संवेदनहीन और निर्दयी हुआ है कि यकीं नहीं होता कि यह उसी भारतीय समाज का में हो रहा है जो सहिष्णु, संवेदनशील और संस्कारी कहा जाता रहा. जो शिक्षित है और तेजी से आगे बढ़ रहा है.
नवंबर 2022 में मुंबई की श्रद्धा नाम की युवती को जो अपने प्रेमी के साथ लिव-इन में रहती थी आपसी झगड़े में प्रेमी ने श्रद्धा के 5 टुकड़े किए और उन्हें दिल्ली में अलग-अलग जगह फेंक दिया. यह घटना दिल दहला देने वाली थी क्योंकि दोनों ही युवा पढ़े-लिखे और शिक्षिति समाज का हिस्सा थे कॉल सेंटर में काम करते थे. ऐसे ही 8 जून 2023 को मुंबई के मीरा रोड इलाके में एक प्रेमी ने अपने से 20 साल छोटी अपनी प्रेमिका को गुस्से में मार डाला और आरी से उसके 20 टुकड़े करके प्रेशर कूकर में उबाल दिया.
जाहिर है लड़कियाँ हों या कट-पिटकर बिखर जाने वाली प्रेमिकाएं, आए दिन मीडिया में, अखबारों में सुर्खियाँ बनती क्रूर, जघन्य और दिल दहला देने वाली घटनाएं यह सब तस्दीक करती हैं कि बतौर समाज संवैधानिक मूल्यों के अभाव में हमारे नागरिकों की चेतना यानी की कॉन्शियसनेस और बुद्धमता यानी की इंटेलिजेंस किस अंधकार में हैं और ऐसे दौर में आर्टिफशल इंटेलिजेंस की दस्तक हमारी चेतना, बोध और संस्कारों को किस दिशा में ले जाएगी? यह हमारी दिशाहीन बुद्धिमता को बदलेगी या उसे और सहायता करेगी बड़े स्तर पर हमें और नुकसान पहुंचाएगी? सबसे ज्यादा गहरे प्रभाव मनोवैज्ञानिक स्तर पर होंगे जो दिखाई देने भी लगे हैं.
सवाल यह उठता है कि एक राष्ट्र और उसके नागरिक समाज की आंखों में आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना भले ही कितनी अंगड़ाई ले, संवैधानिक मूल्यों, संस्कारों और चेतना के अभाव में हमारा चमकता हुआ चेहरा भले ही कितना दमके लेकिन हर तरह की हिंसा की ये घटनाएं, और इस तरह के जानें कितने वीडियो इस बात की तस्दीक करते हैं कि कोई भी राष्ट्र और उसका नागरिक समाज चमचमाती सड़कों, ऊंची गगनचुंबी इमारतों और डिजिटल मीडिया से गढ़ी गई छवि से नहीं चलता है बल्कि वह चलता है प्रेम, करुणा, संवेदना, मनुष्यता जैसे नैसर्गिक मूल्यों से, वह सांसे लेता है अपने संविधान से. संवैधानिक संस्कारों और न्याय, समता, गरिमा, बंधुत्वता जैसे संवैधानिक मूल्यों से.
5.
संवैधानिक बुद्धिमता और कृत्रिम बुद्धिमता का भारतीय समाज में प्रवेश
अपनी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक हिंद स्वराज में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते हैं-
“तकनीक सीखने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके साथ ही हमें बुद्धि का सही उपयोग भी करना आना चाहिए.”
वे कहते हैं कि तकनीक का उपयोग मनुष्य के जीवन को आसान बनाने के लिए किया जाना चाहिए ना कि शोषण और हिंसा के लिए. इसी किताब के “मशीने” संबंधी एक अध्याय में वे एक बेहद महत्वपूर्ण बात कहते हैं जो आज के आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की उपयोगिता के संदर्भ में बेहद सटीक बैठती है-
“ऐसा कोई सीधा सरल रास्ता कुदरत ने बनाया ही नहीं है कि जिस चीज की हमें इच्छा हो वह हमें तुरंत मिल जाए.”
गांधी जी हर शिक्षा में नैतिक और आत्मबल, सत्यनिष्ठा के साथ अहिंसा जैसे मूल्यों से बना मनुष्य होना महत्वपूर्ण मानते थे ताकि वह अपने समाज, प्रकृति से जुडकर जीवन जी सके.
वे विज्ञान, मशीनों और यंत्रों के बारे में ही नहीं बल्कि शिक्षा के संबंध में भी सीधी और दो टूक बात यही कहते थे कि शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य मात्र की भलाई हो. जिस शिक्षा में नैतिक मूल्य, आध्यात्मिक विकास नहीं जो मनुष्य के भीतर मनुष्यता के गुण ना बढ़ाती हो वह किसी काम की नहीं है.
आज डिजिटल क्रांति ने जितना हमारे समाज को सहारा दिया है उतना ही हमारे समाज का अवमूल्यन किया है जिसे बताने की आवश्यकता नहीं. बड़ी वैश्विक आतंकी घटनाओं के पीछे इंटरनेट और डिजिटल दुनिया का एक काला संसार सामने आकर खुला है. एक पूरा रैकेट और धंधा साइबर क्राइम का है जिसने एक नागरिक के जीवन, व्यवहार और जिस समय में वह है उसे इतना छिन्न-भिन्न और विघटित किया है कि अनगिनत उदाहरण आश्चर्य में डालने के लिए काफी है. बीते एक दशक में साइबर क्राइम तेजी से बढ़ा है. यह अपराध का ज्यादा शातिराना तरीका है. घिनौना और विभत्स भी जो मनुष्य की निजता और गरिमा को ज्यादा ठेस पहुंचाता है. डिजिटल और इंटरनेट के माध्यम से हुई हिंसा, निजता, गरिमा और सांप्रदायिकता फैलाते व जीवन को नष्ट करते घिनौने वायरल वीडियो बेहद खतरनाक हैं. यह अपराध को फैलाकर हिंसा की आग भड़काने का काम करते हैं.
तकनीकी विकास ने जीवन को जितना सरल बनाया है उतना ही जटिल, संवेदनहीन और मूल्यहीन भी बनाया है. पहले से ही संवैधानिक मूल्यों को लेकर जागरूकता का अभाव, असाक्षर व राजनीतिक चेतना के बिना हमारे समाज में संवैधानिक संस्कार विकसित ही नहीं हो पाए हैं.
6.
भारतीय मूल्य, संस्कार और संवैधानिक जागरूकता बोध और एआई
दुनिया के आभासी संसार में प्रवेश के बाद बीते दो दशक में हमारा समाज और नागरिक जीवन एक अलग आभासीय मन:स्थिति के भीतर प्रवेश कर गया है. डिजिटल युग में स्मार्टफोन, सोशल मीडिया, फिल्में, ओटीटी और हर तरह की डिजिटल डिवाइसेस ने हमारे परिवेश, मन, बुद्धि, बुद्धिमता और यहाँ तक की चेतना तक को गहरे से ना केवल प्रभावित किया है बल्कि उद्वेलित भी किया है. मनोरोग चरम सीमा पर पहुंच रहे हैं. जीवन में अकेलापन और अवसाद घर कर गया है. सुख और दुख दोनों की ही परिभाषा बदली है. दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई से लेकर कई छोटे-बड़े शहरों में एंग्जाइटी, डिप्रेशन के मरीजों की संख्या बढ़ी है.
आज दुनिया में आबादी का बड़ा हिस्सा बीमार है. जिंदगी लाइक्स, शेयर और रील्स के व्यूज के आसपास सिमट गई है. सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स हैप्पीनेस इंडेक्स का नया पैमाना हैं. दुनिया की एक बड़ी आबादी स्क्रीन में समाहित हो रही है. मनोवृत्ति के भीतर एक अवसाद और उस अवसाद के भीतर हिंसा तैर रही है. छल, कपट, छद्म व्यवहार, कुटिलताएं, असत्य के तथ्य, तथ्यों के साथ सत्य को छिपाकर मूल्यहीन सामाजिक व्यवहार ने समाज के भीतर अनैतिक व्यवहार को ना केवल बढ़ाया है बल्कि एक अलग तरह की हिंसा को जन्म दिया है जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों का अवमूल्यन और क्षय हुआ है.
भीड़ की हिंसा और सांप्रदायिकता, जातिवाद, छुआछूत, महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों के खिलाफ हिंसा ना केवल बढ़ी है बल्कि इस हिंसा के स्वरूप में भी बदलाव आया है. वेबसीरीज और ओटीटी फिल्में हिंसा के नये उपकरण और तरीकों के रूप में सामने हैं. बलात्कार, घरेलू हिंसा नये स्वरूप में हैं. अंदाजा लगाइए बीते एक दशक में जहाँ इंटरनेट के प्रभाव और डिजिटल मीडिया के चलते अपराध का स्वरूप बदल गया है वहीं आर्टिफिशल इंटेलिजेंस आखिर हमारे समाज, मूल्यों और संस्कृति पर क्या प्रभाव डालेगा? क्या बाबा साहेब अंबेडकर संवैधानिक मूल्यों, बोध और संस्कारों के जरिए भारत में जिस नागरिक समाज को गढ़ना चाहते थे क्या वह सामने है?
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस अभी निरंतर प्रयोग और अनुसंधान प्रक्रिया से गुजर रहा है. प्रश्न यह है कि आने वाले समय में तकनीक के इस नये स्वरूप का मनुष्य जीवन और सभ्यता पर कैसा प्रभाव होगा जबकि इस पर एआई को बनाने वाले खुद भी असमंजस में है. प्रथम दृष्टया संभावना इसके सकारात्मक उपयोग को लेकर सामने आ रही है उतना ही इसके कई नकारात्मक पहलू भी हैं.
रोजगार संकट तो दिखाई देने ही लगा है जबकि साइबर क्राइम का बढ़ना, वैश्विक आंतकवाद (जिसका बदला हुआ विध्वंसकारी स्वरूप) परमाणु हमलों का अंदेशा और नागरिकों की निजता के साथ ही कई तरह के मनोवैज्ञानिक खतरे मुंह बाए सामने होंगे. इन खतरों को लेकर दुनियाभर के बुद्धिजीवी, टेक एक्सपर्ट और राजनेता चिंता जताते रहे हैं. क्या इस बात की संभावना नहीं है कि कृत्रिम बुद्धिमता के कारण वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक समाजों के भीतर नागरिक समाज के अधिकारों और कर्तव्यों की चेतना निष्क्रिय होगी. यह मंद होकर राजनीतिक रूप से गुलामी की ओर बढ़ेगी जो प्रजातांत्रिक राष्ट्रों की नींव को हिला देने वाला प्रभाव होगा.
बात यदि भारत जैसे राष्ट्र की करें तो यहाँ खतरे दूसरे किस्म के हैं. देश में किसी भी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और विकासात्मक प्रक्रिया के भीतर संवैधानिक संस्कारों का होना आज भी चुनौती है. यहाँ पहले से ही संवैधानिक मूल्यों, न्याय, समता, स्वतंत्रता, गरिमा बंधुता की उपेक्षा हो रही है. आजादी के बाद से अब तक संवैधानिक मूल्यों के हिसाब से ना नागरिक चेतना विकसित हुई है ना बुद्धिमता जागृत हुई है. आखिर अनियंत्रित रूप से क्रियाशील होने वाले एआई के प्रभाव भारतीय समाज और लोकतंत्र के लिए कैसे होंगे? क्या एआई का इस्तेमाल गलत तरीके से होने का खतरा नहीं बढ़ेगा? क्या यह शोषण का आधार नहीं बनेगा? क्या यह आपसी वैमनस्य, सांप्रदायिक सद्भाव, स्त्री, पुरुष, बच्चों की गरिमा से छेड़छाड़ के मामलों में इजाफा नहीं करेगा जो पहले से ही डिजिटल युग में आसान तो हुए ही हैं बल्कि बढ़ भी गए हैं? क्या न्याय को लेकर इसकी उपयोगिता संदेहापस्पद नहीं होगी? या फिर जिन भी क्षेत्रों में इसका उपयोग होगा क्या वह ऐसी चेतना, बुद्धि और इरादों से होगा जिसके पास मनुष्यता को देखने की समान दृष्टि ना हो.
एक ओर संवैधानिक मूल्यों और बुद्धिमता का अभाव है तो वहीं कृत्रिम बुद्धिमता के माध्यम से एआई के दुरुपयोग के भी खतरे हैं जो हमें दिखाई देने लगे हैं. भारत जैसे देश में जहाँ पहले से ही साइबर क्राइम ज्यादा है वहाँ एआई यदि बिन संवैधानिक मूल्यों, चेतना के अभाव में किस रूप में काम आएगा?
इधर, एआई के खतरे का यह पहलू वैश्विक है और यही चुनौती भारत के सामने भी है. घोटालों से लेकर ठगी और झांसे तक, सेलिब्रिटी पोर्नोग्राफी, वीडियो के जरिए निजता और गरिमा को ठोस पहुंचाना, चुनाव में हेर-फेर करना, उम्मीदवारों की ओर से आपसी रंजिश के तरह जनता को गुमराह करना, सांप्रदायिक सद्भाव और वैमनस्य, सामाजिक विद्रुपताएं, विभाजन, आर्थिक शोषण, अन्याय, दुष्प्रचार और प्रोपेगैंडा के माध्यम से सांस्कृतिक, सामाजिक हमले करना जैसी घटनाएं एआई के बड़े खतरे हैं.
सवाल यह भी है कि आखिर कृत्रिम बुद्धिमता का इस्तेमाल या तो मनुष्य की नैसर्गिक बुद्धिमता द्वारा ही किया जाएगा और जब सामान्य रूप से बुद्धिमता पहले से ही दीन-हीन है तो क्या वह मशीन के द्वारा जब संचालित होगी तो अपने विवेक का इस्तेमाल करेगी? क्या करुणा, संवदेना जैसे मानवीय मूल्यों को केंद्र में रख पाएगी?
भारत में यदि विकास के केंद्र में तकनीक को प्रधानता दी जा रही है और हर विकास व प्रगति के मध्य डिजिटल प्रक्रिया मध्य में है तो क्या मानवता के कल्याण के लिए केंद्र में रखकर किया जा रहा है? क्या ऐसे विकास में संवैधानिक मूल्य को केंद्र में रखा गया है? समता, गरिमा, आर्थिक न्याय जैसे मूल्यों को विकास की प्रक्रिया में अपनाया गया है? एक राष्ट्र अपने भीतर शांति, सौहार्द्र, न्यायपूर्ण , समतामूलक और गरिमामयी समाज की स्थापना के लिए प्रयासरत रहता है. यह वह मूल्य है जो एक मनुष्य समाज को दूसरे के प्रति न्यायपूर्ण, बंधुत्व की भावना, समता दृष्टि, गरिमापूर्ण तरीके से व्यवहार करने का तरीका सिखाता है. इनसे समाज में शांति की स्थापना होती है, राष्ट्र वास्तव में प्रगति करता है, सद्भावना से स्थिरता और सौहार्द्र की स्थापना होती है, ऐसे में क्या बिना इन मूल्यों के कृत्रिम बुद्धिमता द्वारा संचालित नागरिक चेतना अपने व्यवहार के प्रति जागरूक रहेगी?
संवैधानिक बुद्धिमता, संस्कार, बोध और चेतना के आधार पर नागरिकों का व्यवहार ना केवल एक समाज के भीतर शांति, सद्भाव, आपसी प्रेम और विकास का स्वरूप तय करेगा बल्कि ऐसा नागरिक समाज अपनी जिम्मेदारियों, कर्तव्यनिष्ठा के साथ परस्पर सहयोग की भावना पैदा करेगा.
आर्थिक महाशक्ति के सपनों के शोर के बीच भूख से मृत्युदर के आंकड़े चौंका रहे हैं, कुपोषण, बेरोजगारी, अशिक्षा, भ्रूण हत्याएं, बाल-विवाह, बंधुआ मजदूरी, आत्महत्या, किसान आत्महत्याएं, बच्चों से बलात्कार की बढ़ती घटनाएं, लैंगिक असमानता, भेदभाव जैसे जानें कितनी संवैधानिक मूल्यों को तार-तार करती घटनाएं हमारे आर्थिक व तकनीकी विकास को शर्मसार कर रहे हैं. जबकि साइबर क्राइम की घटनाएं इस श्रृंखला को नये सिरे से परिभाषित कर रही हैं ऐसे सोचिए कृत्रिम बुद्धिमता किस दिशा में क्रियाशील होगी? संविधान और संवैधानिक मूल्यों के प्रति जागरूकता ना होना, वहाँ एआई से संचालित होने वाली बुद्धिमता क्या प्रतिक्रिया देगी?
आज दुनिया के आभासी संसार में प्रवेश के बाद बीते दो दशक में हमारा समाज और नागरिक जीवन एक अलग आभासीय मन:स्थिति के भीतर प्रवेश कर गया है. डिजिटल युग में स्मार्टफोन, सोशल मीडिया, फिल्में, ओटीटी और हर तरह की डिजिटल डिवाइसों ने हमारे परिवेश, मन, बुद्धि, बुद्धिमता और यहाँ तक की चेतना तक को गहरे से ना केवल प्रभावित किया है बल्कि उद्वेलित भी किया है. मनोरोग चरम सीमा पर पहुंच रहे हैं. जीवन में अकेलापन और अवसाद घर कर गया है. सुख और दुख दोनों की ही परिभाषा बदली है. अब लाइक और शेयर और रील्स के व्यूज हैप्पीनेस इंडेक्स का पैमाना बन गए हैं.
अंदाजा लगाइए बीते एक दशक में जहाँ इंटरनेट के प्रभाव और डिजिटल मीडिया के चलते अपराध का स्वरूप बदल गया है वहीं आर्टिफिशल इंटेलिजेंस आखिर हमारे समाज, मूल्यों और संस्कृति पर क्या प्रभाव डालेगा? जबकि हमारा नागरिक समाज संवैधानिक मूल्यों, संस्कारों, बोध और बुद्धिमता के प्रति दूर-दूर तक जागरूक नहीं है.
क्या कृत्रिम बुद्धिमता जिस तकनीक के रूप में हमारे सामने वह हमारी संवैधानिक बुद्धिमता के लिए चुनौती होगी? यह एक विचारणीय प्रश्न होगा तब जबकि एक सूचना क्रांति और डिजिटल दौर से बाहर आ रहे हैं.
सारंग उपाध्याय
पत्रकार और लेखक सारंग उपाध्याय का जन्म 9 जनवरी, 1984 को भुसावल, महाराष्ट्र में हुआ. जड़ें मध्य प्रदेश के हरदा जिले में. इन्दौर यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा मिली. बीते 15 सालों से इन्दौर, मुम्बई, नागपुर, औरंगाबाद, भोपाल और दिल्ली में पत्रकारिता की. वर्तमान में ‘अमर उजाला’ दिल्ली में कार्यरत हैं. सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों के लेखन में लगातार सक्रिय सारंग सिनेमा में विशेष रुचि रखते हैं. डॉ. राममनोहर लोहिया के साथी बालकृष्ण गुप्त के आलेखों पर केन्द्रित उनकी एक किताब ‘हाशिये पर दुनिया’ 2013 में प्रकाशित है. कहानियों के लिए उन्हें 2018 में म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन के ‘पुनर्नवा पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया है. ‘सलाम बॉम्बे व्हाया वर्सोवा डोंगरी’ उनका पहला उपन्यास है. इस उपन्यास पर उन्हें शैलेश मटियानी पुरस्कार भी मिला है. ई-मेल : sonu.upadhyay@gmail.com |
कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर यह आलेख हिंदी भाषा में एक उपलब्धि है। आज के युग में हिंदी के विद्यार्थियों को भी कृत्रिम बुद्धि बुद्धिमता का परिचय होना बहुत आवश्यक है। बताओ और पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग मैंने सनथ को उत्तर कक्षाओं के पाठ्यक्रम में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का समावेश किया है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के खतरे तो हैं जिन्हें कुछ अंग्रेजी फिल्मों में दर्शाया भी गया है उदाहरण के लिए 2023 में मिशन इंपॉसिबल फिल्म में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को खलनायक के रूप में दिखाया गया है। इसका अगला भाग आने वाला है जिसके लिए मेरी भी जिज्ञासा बनी हुई है। बात यह है कि जब तक मनुष्य का कंट्रोल सर्वे के कल्याण के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर बना रहेगा तब तक कोई खतरा नहीं है लेकिन अगर हम अपना कंट्रोल कृत्रिम बुद्धिमत्ता को सौंप देंगे तभी खतरा बन सकता है। इस पर ट्रांसफार्मर सीरीज की भी कई फिल्में बन चुकी हैं। खतरा इस बात का भी है की क्या यदि भविष्य में कोई युद्ध होता है तो उसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा संचालित रोबोट युद्ध में भेजे जाएंगे जो हर कल में सक्षम होंगे तो विश्व के लिए सचमुच यह चिंता का विषय है। हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को लेकर मौलिक लेखन की आवश्यकता है इस पर भी विचार और प्रयास किया जाना चाहिए।
सारंग उपाध्याय का यह लेख “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस” और इसकी चुनौतियों को लेकर बिभिन्न दृष्टिकोणों से बहुत कुछ कहता है। हॉलीवुड में काम करने वाले कई लोगों ने इसके लिए विगत में विरोध प्रदर्शन भी किया था। जहां तकनीक का विकास बहुत तेजी से हो रहा है भारत जैसे जनसंख्या बाहुल देशों के साथ साथ यूरोप में भी नौकरियों पर इसके असर को लेकर चिंता जाहिर की गई है। सारंग का लेख, सोशल मीडिया पर सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक मूल्यों के पतन पर भी सटीक बात करता है जिसके उदाहरण भी सारंग ने दिए है। सारंग का लेख आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के हर अच्छे बुरे पहलू को बखूबी प्रस्तुत करता है। नई तकनीक जब आती है तो अपने साथ कई चुनौतियां लाती है अलग अलग क्षेत्रों में इसके अपने फायदे एवम् नुकसान है, देखने वाली बात यह है की भविष्य में मानव समाज पर इसका कितना अच्छा बुरा प्रभाव पड़ता है। बहरहाल सारंग उपाध्याय का लेख उम्दा है।
यह लेख अत्यंत दिलचस्प है। नैनोबोट्स की जबसे खबर मिली है तबसे मैं तो बहुत ही उत्साहित हूं। आलसी हूं। जाने कितनी कहानियाँ और उपन्यास मस्तिष्क में लिखती रहती हूं और हमेशा लगता था कि यह रिकॉर्ड हो जाएं तो अपना भी रचनात्मक संसार भारत की तरह खूब खूब आबाद हो जाए! यह तो हुआ मजाक।
लेकिन अगर ऐसा हो ही जाए तो हम जीयेंगे कैसे? सबको सबकी खबर हो जाएगी? सपने भी निजी नहीं, विचार भी नहीं ऑरवेल के थॉट क्राइम असलियत में बदल जायेंगे? अभी ही क्या कानून इसे अपराध नहीं मान रहा? तब तो मय सबूत जेल में करोड़ों को ठूंसा जा सकता है।
एसिमोव ने रोबोट के सहारे जिस न्यायपूर्ण व्यवस्था निर्माण की कल्पना की थी उसकी अनुगूंज सिर्फ यान के विचारों में मिलती है। पढूंगी। होमो डियस ने तो परेशान ही कर दिया था।
उपाध्याय जी ने वैज्ञानिक जानकारी तो बहुत दी है। उनका धन्यवाद। जहां तक मुझे मालूम है एआई मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग में ही लागू किया जाएगा। उद्योगपतियों और उद्योगों के लिए ही विज्ञान का विकास हुआ करता है। फिर राजनीतिज्ञों का भी यह उपकरण बन सकता है। इसके कितने खतरे हैं इसपर लेख काफी रोशनी डालता है।
लेखक से बस इतनी शिकायत है कि रह रह कर करुणा, संवेदना आदि को नैसर्गिक मूल्य मानते हैं। गुफाओं में रहने के युग से आज तक ऐसी करुणामय सभ्यता नहीं रही। आज जो मणिपुर में हुआ या अन्यत्र वह तो पहले भी होता ही रहा है। युद्ध कब नहीं हुए और कब ऐसा सब कुछ नहीं घटा? घर की ही बेटी बहु कोई करुणा से जिंदा नहीं जलाता था। इंसान को अछूत मानना संवेदना की देन नहीं थी। अगर यह मूल्य नैसर्गिक होते तो समप्तप्राय होते ही नहीं नैसर्गिक का मतलब ही है की यह प्रकृति प्रदत्त हैं। इसका ठीकड़ा प्रौद्योगिकी के सर न फोड़े तो बेहतर चर्चा हो सकती है। प्रौद्योगिकी का इतना योगदान है कि हम अपनी असलियत देख पा रहे हैं। अगर करुणा नैसर्गिक मूल्य होता तो हम यह करते ही नहीं और थोड़े बहुत लोग जो करते वे वे इसके रिकॉर्ड नहीं रखते। आखिर पहला तीर भी शिकार और हत्या के लिए बना था। एटम बम ने सिर्फ एक झटके में मरने वालों की संख्या बढ़ा दी। मंशा और लक्ष्य सदियों से एक ही रहे। दुश्मन बनाओ और मारो। शायद ए आई इससे मुक्त ही हो! जैसा कि यान ने सोचा है जो मैने अभी पढ़ा नहीं।
अंत में, हम सब इंसान खत्म हो जाएं तो भी क्या यह कोई त्रासदी होगी? हमने लाखों प्रजातियों की एक्सपायरी डेट को बदल डाला, उन्हें समय से पहले खत्म कर दिया । अब खुद को खत्म करने की तैयारी में जुटे हैं। वरना हमें खत्म कौन करेगा?
जॉन मेनार्ड केन्स ने कहा था कि दूरगामी तौर पर सब मर चुके होंगे। अब लगता है अल्पगामी तौर पर ही काम निपट जाएगा!
एक ही सवाल रह रह कर उठता है कि इंसान खत्म हो जाए तो ए आई क्या करेगा? कैसी होगी वह धरती? जानवर और मशीन। सुंदर भी हो सकती है। प्रदूषण मुक्त। जानवरों के लिए खतरा भी कम होगा। ए आई को देखने वाला ही कोई नहीं होगा। कोई बात नहीं, उसे कौनसा अस्तित्व का द्वंद्व होगा!
बढ़िया उपन्यास बन सकता है। लिखूंगी, बस नैनो बोट मिल।जाए!
इस पर मेरा कॉपीराइट है। कोई और चुरा मत लेना!
शुक्रिया अंजली जी। युद्ध और बर्बरता पहले भी हुई है लेकिन ऐसा प्रचार नहीं हुआ कि हर हाथ और आंखों के लिए वह मनोरंजन बन जाए। खतरा वहां से बढ़कर है। इस पर कभी बात हो सकती है। शब्द कम हैं कृपया समझिएगा ज्यादा। इस पर जल्द ही एक लंबा लेख और देने का प्रयास रहेगा।
यह लेख पढ़ कर भरोसा हो गया कि हिन्दी में किसी भी विषय पर चलताऊ अख़बारी भाषा में पॉपूलर भोथरे विचार ही मिलेंगे. एआई पर गंभीरतम दार्शनिक-सामाजिक शोध हो रहे हैं जो कि, लेखक की ही बेढब भाषा में, ‘कम से कम असंख्य’ हैं (मीर पढ़ते ये वाक्य तो दौड़ा लेते). जिन विद्वानों के विचार उल्थे किये गये हैं, उनको समझने की कोशिश कर के ज़रा तार्किक भाषा-शिल्प में लिखा होता तो कुछ बात भी बनती.
और बाक़ी जो कमेंट हैं, उनके लिए भी एआई ही हिसाब करेगा. लिहो लिहो चलता रहे!
नमस्कार, आपका लेख कृत्रिम बुद्धिमत्ता के खतरे पढ़ा, पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।और अंत में जब आपका निवास स्थान भुसावल देखा तो दिल को बहुत खुशी हुई। मैं अपने करियर के आरंभिक दिनों में 2009 से 2013 तक ऑर्डनेंस फैक्ट्री वरणगांव में नियुक्त रहा हूं। यह ईमेल आपको एक धन्यवाद लिखने के लिए है कि आपने इतना अच्छा कार्य किया। दरअसल मैं राष्ट्रीय युवा संसद प्रतियोगिता में के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता के खतरे विषय पर एक “ध्यान आकर्षण प्रस्ताव” बना रहा था और उसके लिए जब पढ़ते – पढ़ते आपके आर्टिकल पर पहुंचा तो मुझे बहुत मदद मिली आपको फिर से एक बार बहुत-बहुत धन्यवाद।