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Home » अविनाश मिश्र की कविताएँ

अविनाश मिश्र की कविताएँ

कविताओं के कथ्य और शिल्प में जब बदलाव सामूहिकता में लक्षित हों तब उसे नये नाम से पुकारने की जरूरत पड़ती है हालाँकि इस सामूहिकता में प्रत्येक कवि की अपनी आवाज़ होती है उसे अलग से भी पहचाना जा सकता है. ‘नयी सदी की हिंदी कविता’ एक ऐसी ही कोशिश है इसमें जिन कवियों के स्वर शामिल हैं उनमें एक प्रमुख नाम अविनाश मिश्र का भी है. उनकी कविताओं को पढ़ते हुए नयी सदी के संकटों को हम देखते हैं जिन्हें व्यक्त करने में उनकी अचूक भाषा सक्षम है. उनकी कुछ कविताएँ देखें.

by arun dev
April 28, 2022
in कविता
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अविनाश मिश्र की कविताएँ
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अविनाश मिश्र की कविताएँ

 

एक सलाह का एकांगीपन

वह चीज़ जिससे आपको पहचान मिलती है
ज़िंदगी भर आपका पीछा नहीं छोड़ती
इसलिए बेहतर है जहाँ तक संभव हो
मौलिक होने की कोशिश की जाए

मौलिक न हो पाने पर
कुछ न हो पाना भी मौलिक है

मत उड़ाओ दूर देश के किसी अपरिचित कवि की पंक्तियाँ
किसी फ़िल्मकार के दृश्य चुराने से बचो

उनके संवाद अलग हैं तुम्हारे संवादों से
उनके तूफ़ान अलग हैं तुम्हारे तूफ़ानों से
उनका वक़्त भी तुम्हारे वक़्त से अलग है
वे जो खाते हैं—रचना में—तुम्हें हज़्म नहीं होगा
भले ही तुम उसका नाम बदल दो
उनका काम अलग है तुम्हारे काम से
यह काम तुरंत करो तुम अपना काम बदल दो

विषय ही विषय हैं पास-पास
उनमें उतरोगे तो उन्हें कह भी लोगे

दूसरों के युद्ध तुम्हारे युद्ध नहीं हैं
तुमने अभी युद्ध देखा ही कहाँ है

निगाह-ए-ग़ैर से मंसूब होने की ज़रूरत क्या है
अपनी आज़ादी को देखो
ठीक से देखो
वह बची भी है या नहीं
क्योंकि जब तक चुनना नहीं पड़े
पता नहीं चलता ज़रूरी क्या है?

 

विवेक

सुंदर की अगर समझ हो
तब संकट में भी
सुंदर का स्मरण जाता नहीं है

व्यथा
विषाद
विलाप में भी
पुकार उठती है
खो चुकी सुंदरता

रहने पर नहीं
न रहने पर याद आता है
रहना

रहते चले जाना ही याद है.

 

ख़राब चीज़ें

ख़राब हुई चीज़ें भी एक रोज़
ख़ुद-ब-ख़ुद ठीक हो जाती हैं

यहाँ-वहाँ सब तरफ़ जितनी भी चीज़ें थीं
सुबह से लेकर रात तक काम आने वाली
मानवीय अस्तित्व और व्यवहार को प्रकाशित करने वाली
वे जब चलते-चलते रुकने को हुईं
और ख़राब लगने लगीं
विस्मृति उन्हें पुकारने लगी
वे ठीक हो गईं

वे उस तरफ़ मुड़तीं जिधर ख़राबियाँ थीं
इससे पहले ही सही दिशा में चलने लगीं

और यह ख़ुद-ब-ख़ुद हुआ
चीज़ों के साथ ही नहीं
व्यक्तियों
संबंधों
स्थानों
और स्थितियों के साथ भी
यही हुआ
कविताओं के साथ भी…

 

आत्म-वक्तव्य

मैं घुसा ही यह सोचकर था
कि कुछ नया करूँगा
पर मैंने पाया :
नए को
सबसे ज़्यादा साफ़ अगर कुछ नज़र आता है—
वह बाहर का रास्ता है.

मुझे खदेड़ा जाएगा यह तय था
इसलिए मेरी सारी तैयारी
—शुरू से ही—
शहादत की थी.

शहादत से पहले
मैंने बहुत कुछ नया किया
जिसके बारे में मुझे शहादत के बाद पता चला
कि उसमें कुछ भी नया नहीं था.

सब कुछ ‘न’ और ‘या’ जितना पुराना था.

इस बीच मैं कभी प्रशंसा से घायल नहीं हुआ
क्योंकि बहुत कुछ मुझे झूठ लगता था.

मैं रह सकता
तब इस तरह नहीं रहता
रहता बोलने की कला जानने वालों की तरह.

मैं बह सकता
तब इस तरह नहीं बहता—
भावनाओं की तरह.

मैं कह सकता
तब इस तरह नहीं कहता.

अविनाश मिश्र के दो कविता संग्रह – ‘अज्ञातवास की कविताएं‘, ‘चौंसठ सूत्र, सोलह अभिमान’ और एक उपन्यास ‘नये शेखर की जीवनी’ प्रकाशित है, सदानीरा  और  हिन्दवी  के संपादन से जुड़े हुए हैं.
darasaldelhi@gmail.com
Tags: 20222022 कविताएँअविनाश मिश्रनयी सदी की हिंदी कविता
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Comments 19

  1. M P Haridev says:
    11 months ago

    एक सलाह का एकांगीपन
    हम ख़ुशनसीब हैं कि दूसरों जैसे नहीं हैं । प्रत्येक व्यक्ति अनूठा है । जैसे हमारी उँगलियों के निशान । हमारा चलना भी दूसरों के चलने से मेल नहीं खाता । यही हमारी सुंदरता है । इसे खोने मत देना । तुम दूसरों की नक़ल करके उन जैसे नहीं बन पाओगे । हम जैसे भी हैं ठीक हैं ।
    मेरी नाक कुछ टेढ़ी है । और एक नथुना (नॉस्ट्रल) भीड़ा है । हमारे परिवार में भी किसी का नहीं है । यह मेरी अद्वितीय बनावट है । मैं अपने युद्ध स्वयं लड़ रहा हूँ । मेरा हर्ष और विषाद मेरा अपना है । आप ख़ुद में ख़ुश 🙂 रहें । मैं बाधा बनने वाला कौन होता हूँ । प्रोफ़ेसर अरुण देव जी; मैंने यह लिखने के लिये नहीं लिखा । मेरी प्राकृतिक बनावट ही ऐसी है ।

    Reply
  2. मोनिका कुमार says:
    11 months ago

    फिर से असद जी की बात याद करनी होगी कि अविनाश की कविता असली धातु की बनी है। अविनाश अपने हर साहित्यिक उपक्रम में दिलेरी और नफ़ासत से अपनी बात कहता है पर अपनी कविता में वह सबसे अधिक मार्मिक होता है।

    Reply
  3. घनश्याम कुमार देवांश says:
    11 months ago

    सुंदर की अगर समझ हो
    तब संकट में भी
    सुंदर का स्मरण जाता नहीं है
    …

    हमारे अपने समय की – सुंदर कविताएं

    Reply
  4. Anonymous says:
    11 months ago

    अविनाश मिश्र की कविताओं में मैं अपना पुनर्जन्म देखता हूँ, जैसे यह
    मैंने ही लिखी हों ।खराब चीज़ें अपने आप ठीक हो रही होंं यहाँ आकर।

    Reply
  5. दिनेश त्रिपाठी says:
    11 months ago

    अच्छी कविताएं । अविनाश गहरे उतर कर रचते हैं ।

    Reply
  6. M P Haridev says:
    11 months ago

    विवेक
    अफ्रीकी देशों में वहाँ के निवासियों के रंग भूरे से लेकर घने काले हैं । बालों की बनावट विशिष्ट है । इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि वे सुंदर नहीं हैं । दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद के चलते यूरोप ने उनसे घृणा की । 1653 में डच व्यक्ति ने दक्षिण अफ़्रीका को अपना ग़ुलाम (दास) बनाया । कदाचित 2 शताब्दियाँ के बाद ब्रिटेन ने । दक्षिण अफ़्रीका 🇿🇦 अपनी आज़ादी के लिये लड़ता रहा था । वहाँ का दंश गांधी ने भी सहा और अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़े ।
    इसी में से नेल्सन मंडेला का उदय हुआ । अंततः देश स्वतंत्र हुआ और मंडेला को शांति का नोबेल पुरस्कार दिये गया ।
    अफ़्रीका के लोग सुंदर हैं । सुंदरता देखने की दृष्टि चाहिये । हमारे आस-पास सुंदरता भरी हुई है । उसे देखें । स्मृतियों को बचाये रखें । ये यादें हमारा जीवन सँवारेंगी । नैरंतर्य प्रदान करेंगी ।
    आओ इन सुखों और दुखों में जियें ।

    Reply
  7. आशुतोष+कुमार says:
    11 months ago

    हर अगली पंक्ति में अविनाश की कविता किसी अलग दिशा में सोच के एक नए सफ़र पर निकल जाती है। ये भावोद्रेक की कविताएं नहीं है। ये पाठक की सोचने और महसूस करने की सलाहियत को चुनौती देती कविताएं हैं। ये कविताएं उसे लगातार अपना ही पुनराविष्कार करने की ओर ले जाती हैं। ऐसी ही कविता आलोचक को नए काम के लिए उपजाऊ जमीन मुहैया कर पाती है। ज़ाहिर है,ऐसी कविता के लंबे सफ़र और लंबी उम्र की दुआ बनी रहती है।

    Reply
  8. M P Haridev says:
    11 months ago

    ख़राब चीजें
    अरे वाह । यह कविता स्वप्न नहीं दिखाती और न हि दिवास्वप्न । यह प्रतिदिन का अनुभव है । ख़राब चीज़ें दुरुस्त हो जाती हैं । यह अलग बात है कि हम हम धैर्य खो देते हैं । प्रकृति से सीखा जा सकता है । पतझड़ के मौसम के बाद वसंत आता है । कोंपलें फूट आती हैं । जीवन लौट आता है । वर्षाकाल में बहुमंज़िला इमारतों की धूल साफ़ हो जाती है ।
    अविनाश मिश्र ने लिखा है ‘मानवीय अस्तित्व और व्यवहार को प्रकाशित करने वाली …वे ठीक हो गयीं । मेरी दृष्टि में यह जीवन की निरंतरता का प्रतीक है । निज को निराश नहीं करना चाहिये । अँधेरे में जुगनू की मद्धम रोशनी हमारी नाव की पतवार बन जाती है । पाल वाली नाव के लिये हवा का काम करती है ।

    Reply
  9. सुजीत कुमार सिंह says:
    11 months ago

    हिन्दी नवजागरणकालीन पत्रिकाओं को अगर आप उलट-पलट रहे हैं तो उसमें ‘हिन्दी साहित्य में डाकेजनी’ या ‘हिन्दी साहित्य में चोरी’ या ‘भावापहरण’ जैसे लेख दिखाई देंगे। अविनाश मिश्र की पहली कविता पढ़ते हुए इन लेखों की याद आती है। आखिर यह कब तक कहा जाएगा कि “चुराने से बचो।”

    ‘एक सलाह का एकांगीपन’ से युवाओं को सीख लेनी चाहिए। कान पकड़कर उठक बैठक करना चाहिए कि हम चोरी नहीं करेंगे। अपने अनुभव को पकाएँगे, तब लिखेंगे।

    Reply
  10. अंचित says:
    11 months ago

    व्यथा
    विषाद
    विलाप में भी
    पुकार उठती है
    खो चुकी सुंदरता

    रहने पर नहीं
    न रहने पर याद आता है
    रहना

    रहते चले जाना ही याद है. ❤️

    Reply
  11. M P Haridev says:
    11 months ago

    आत्म वक्तव्य
    अविनाश मिश्र मेरी मन: स्थिति को किस प्रकार जान पाये । बैंकों में कम्प्यूटरीकरण के बाद सोचा था कि कुछ नया करूँगा । जब मैन्युअल रूप से काम होता था तब का क़िस्सा लिख रहा हूँ । मैं अफ़सर के पद पर अ’फ़िशिएट करता रहता था । एक क्लर्क लेजर की शीट पर किसी खाता धारक की डीटेल को अगली शीट पर नहीं ले जाता था । चेक करते समय मैं डीटेल लिख दिया करता । संबंधित क्लर्क को कहा भी । परंतु वह नहीं मानता था । घरेलू हालात की वजह से मैंने पदोन्नति का त्याग कर दिया । वही क्लर्क अफ़सर बन गया । मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
    फिर कम्प्यूटर का युग आ गया । मेरे कुछ नया कर गुज़रने की चाह ने कई ख़ामियाँ निकाली । इन्फ़ोसिस बैंकिंग नहीं जानता था और बैंक के अफ़सर इन्फ़ोसिस की कार्य प्रणाली को ।
    हमारे ज़िले में एक दिन की कार्यशाला का आयोजन किया गया था । शाखा प्रबंधक ने मुझे भेजा । मैंने ख़ाली वक़्त नहीं बिताया था । हमारे क्षेत्रीय प्रशिक्षण कॉलेज पंचकूला से फ़ैकल्टी मेम्बर मिस्टर आर के बहल सिखाने के लिये आये थे । उन्होंने आरंभिक वक्तव्य देकर प्रश्न पूछने के लिये कहा । मैं संकोची हूँ । जब किसी ने भी हाथ नहीं खड़ा किया तो मैं उठा । पाँच कमियाँ बचत खाते खोलने की और 15 मुश्किलें सावधि जमा योजना के सवाल कर दिये । बहल साहब स्तब्ध रह गये । तब उन्होंने उद्घाटन किया कि मैंने अपने हाथों से दो सौ शाखाओं का कम्प्यूटरीकरण किया है । परंतु इन न्यूनताओं को किसी ने इंगित नहीं किया ।
    बहरहाल, मुद्दे पर चर्चा कर रहा हूँ । नौकरी के आख़िरी 4 वर्ष मुश्किलों में गुज़ारे । काम करने का परहेज़ नहीं था । घमंडी मैनेजर से साबिक: पड़ गया । वह चाहता था कि आधी-अधूरी डीटेल डालकर खाते खोल दिये जायें । मैंने ज़िद की । मैनेजर ने बाहर का रास्ता दिखा दिया । उन दिनों राजकीय प्राथमिक पाठशालाओं के बच्चों के खातों में सरकार सीधे अनुदान की राशि जमा कर देती थी । अवयस्कों के खाते ग़लत तरीक़े से खोले जाते थे । मैं खाता खोलने का फ़ॉर्म अपने घर ले आया । ख़ुद के साथ लड़ा । रात जागते हुए बितायी और हल निकल आया । एक ज़िद्दी और साथ ही चापलूस वृत्ति का हेड क्लर्क खाते खुलवाने के लिये मेरे पास आया । पिछले चार वर्षों से विशेष सहायक के पद पर नियुक्त होने के बाद खातों के सत्यापन की शक्ति मुझे मिल चुकी थी ।
    वह हेड क्लर्क ज़िद करने लगा । मैंने उसे एक खाता खोलने का फ़ॉर्म थमा दिया । समझा भी दिया कि इस प्रकार भरना है । उसने हामी भर दी कि मैंने समझ लिया है । अगले दिन एक बच्चे का फ़ॉर्म भरकर लाया । उसमें ग़लतियाँ थीं । वह मेरे पाँव पड़ गया । उसे अक़्ल लग गयी ।
    मेरा मैनेजर समझता था कि हरिदेव ग़लत नहीं है । फिर भी उसके घमंड ने मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया । मुझे खदेड़ा गया । मेरी रगों में मेरे खुद्दार पिता का लहू बहता है । मैनेजर चाहता था कि हरिदेव मेरे पैर पड़े । मैं उस मिट्टी का बना हुआ नहीं हूँ ।

    Reply
  12. शंकरानंद says:
    11 months ago

    अविनाश की बेहतरीन कविताएं।ऐसी ही कविताओं के कारण उनके लिखे का इंतजार रहता है।

    Reply
  13. अरुण चन्द्र रॉय says:
    11 months ago

    अच्छी कविताएं अविनाश जी। ठीक कहा है कि संवाद और तूफान अलग अलग होते हैं लोगों के।

    Reply
  14. सुशील मानव says:
    11 months ago

    प्रस्तावना में इतनी महत्वपूर्ण बात कह दी गई है कि कविता पर अलग से बात करना बेमानी जान पड़ रहा है। कवि मित्र अविनाश मिश्र व समालोचन को हार्दिक बधाई.

    Reply
  15. Anonymous says:
    11 months ago

    कविताओं में ताज़गी व नयापन है । ख़राब चीज़ें कविता मुझे बहुत अच्छी लगी ।

    Reply
  16. Vishakha says:
    11 months ago

    कविताओं में ताज़गी व नयापन है । ख़राब चीज़ें कविता बहुत अच्छी लगी ।

    Reply
  17. Anuradha Singh says:
    11 months ago

    आम जीवन में भी जो बातें उपेक्षा और धूल की परतों में छिप जाती हैं, अविनाश उन्हें अच्छी कविताओं में ढालना जानते हैं। पहले की कविताओं की अपेक्षा ये कुछ सबड्यूड टोन की कविताएँ हैं। मुझे बार- बार अपने कथ्य और शिल्प को नये सिरे से खोजते कवि सुंदर लगते हैं। अपने समय के इन कुछ कवियों को हम ज़माने का हाल जानने के लिए भी पढ़ते हैं।
    कविताएँ संख्या में कुछ अधिक हो सकती थीं।

    Reply
  18. Anonymous says:
    11 months ago

    बहुत बढ़िया।

    Reply
  19. Ritu Dimri Nautiyal says:
    11 months ago

    भाषा का सरल होना हमेशा संप्रेषण को सशक्त करता है | अविनाश जी की कविताएँ , हमारा खुद से निरंतर संवाद है, मुठ्ठी में इकठ्ठी करके, हमारे भीतर की ही बातें अविनाश जी हमारे समक्ष रखते हैं, उलझे हुए धागों को सुलझा कर ऊन का गोला बनाते हैं और फिर बोलते हैं बुनो |
    अभी बहुत सारे धागे सुलझाने हैं आपने अविनाश जी, कोशिश जारी रखिये | बेहतरीन कविताएँ | आपको बहुत बहुत शुभकामनायें 💐💐

    ऋतु डिमरी नौटियाल

    Reply

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