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समालोचन

Home » हारुकी मुराकामी: बर्थडे गर्ल: अनुवाद : श्रीविलास सिंह

हारुकी मुराकामी: बर्थडे गर्ल: अनुवाद : श्रीविलास सिंह

विश्व प्रसिद्ध कथाकार हारुकी मुराकामी की कहानियों के अनुवाद आप नियमित रूप से समालोचन पर पढ़ रहें हैं, यहाँ यह मुराकामी की सातवीं अनूदित कहानी है. लेखक-अनुवादक श्रीविलास सिंह द्वारा हारुकी मुराकामी की २००२ में प्रकाशित कहानी ‘बर्थडे गर्ल’ का हिंदी अनुवाद जो जे रुबिन के अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित है, प्रस्तुत है. बीसवें जन्म दिन पर यह लड़की क्या कामना कर सकती थी? अवसर मिलने पर उसने क्या कामना की. की भी कि नहीं. और करती भी तो क्या फर्क पड़ता? मुराकामी चमत्कृत करते हैं. पाठकों को सोचने के लिए अकेले में छोड़ देते हैं. शानदार कहानी.

by arun dev
August 22, 2022
in अनुवाद
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हारुकी मुराकामी: बर्थडे गर्ल: अनुवाद : श्रीविलास सिंह
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बर्थडे गर्ल
हारुकी मुराकामी

हिंदी अनुवाद: श्रीविलास सिंह

अन्य दिनों की भांति उस दिन भी वह परिचारिका का काम कर रही थी, अपने बीसवें जन्मदिन पर. वह हमेशा ही शुक्रवार को काम किया करती थी, लेकिन यदि सब कुछ योजना के अनुसार हुआ होता तो उस विशेष शुक्रवार उसका रात का अवकाश होता. दूसरी अंशकालिक लड़की उसके साथ शिफ्ट बदल लेने हेतु मान गयी थी: ग्राहकों की मेज पर पम्पकिन नोकी (इटली का एक व्यंजन) और सी फ़ूड परोसते हुए नाराज शेफ़ की चीख पुकार सुनना, किसी का बीसवां जन्मदिन मनाने का सामान्य तरीका नहीं हो सकता था. लेकिन ऐन वक्त पर दूसरी लड़की का जुकाम बिगड़ गया और वह अनियंत्रित डायरिया और 104 डिग्री ज्वर के कारण बिस्तर पर पड़ गयी, इसलिए उसे अंततः अल्प सूचना पर काम पर वापस आना पड़ गया.

उसने स्वयं को उस अस्वस्थ लड़की को, जिसने उससे माफ़ी मांगने हेतु फोन किया था, सांत्वना देते हुए पाया. “इसके बारे में चिंता मत करो,”  उसने कहा.  “वैसे भी आज मैं कुछ विशेष नहीं करने जा रही थी, भले ही यह मेरा बीसवां जन्मदिन है.”

और वास्तव में वह उतनी अधिक निराश भी नहीं थी. एक कारण तो यह था कि कुछ दिनों पूर्व उसका अपने पुरुष मित्र से, जिसके उस रात उसके साथ होने की अपेक्षा थी, ज़ोर का झगड़ा हुआ था. वे हाईस्कूल के दिनों से ही साथ थे और उस दिन बहस भी किसी बड़ी बात को लेकर नहीं शुरू हुई थी. लेकिन अनपेक्षित रूप से इसने ग़लत मोड़ ले लिया और अंत में सब कुछ लम्बी चीख चिल्लाहट में बदल गया- जो उसके विचार से, उनके लम्बे समय से चले आ रहे संबंध को सदैव के लिए समाप्त करने के लिए पर्याप्त था. उसके भीतर का कुछ एक कठोर चट्टान में परिवर्तित हो गया था और मर गया था. झगड़े के बाद से ही उसके पुरुष मित्र ने उसे फोन नहीं किया था और वह भी उसे फोन करने वाली नहीं थी.

उसका कार्यस्थल टोक्यो के रोपोंगी जिले का जाना माना इटैलियन रेस्त्रां था. यह इस व्यवसाय में साठ के दशक के आखिरी वर्षों से था और इसके व्यंजन बहुत आधुनिक नहीं थे, लेकिन इसकी उच्च श्रेणी की प्रसिद्धि पूर्णतः न्यायसंगत थी. इसमें दोबारा आने वाले बहुत से ग्राहक थे और वे कभी निराश नहीं होते थे. उसके भोजन कक्ष का वातावरण शांत और आरामदायक था बिना किसी अन्यथा बनावट के. युवा भीड़ की बजाय रेस्त्रां में अपेक्षाकृत अधिक उम्र के ग्राहक आते थे जिनमें कुछ प्रसिद्ध रंगमंच कर्मी और लेखक भी थे.

दो पूर्णकालिक परिचारिकाएँ हफ्ते में छह दिन काम करती थीं. वह और दूसरी अंशकालिक परिचारिका छात्राएं थीं जो बारी-बारी से तीन-तीन दिन काम करती थीं. इसके अतिरिक्त वहाँ एक फ्लोर मैनेजर और रिसेप्शन पर एक दुबली पतली अधेड़ महिला थी जो वहाँ तब से थी जब से वह रेस्त्रां खुला था- शब्दशः एक ही जगह बैठती हुई, लिटिल डोरिट के किसी मनहूस बूढ़े पात्र की भांति. उसके ठीक दो ही काम थे- भुगतान लेना और फोन का जवाब देना. वह तभी बोलती थी जब आवश्यक हो और वह सदैव काले वस्त्र  पहनती थी. उसमें कुछ ठंडा और कठोर था: यदि तुम उसे रात्रि के समुद्र में तैरा देते तो वह स्वयं से टकराने वाली हर नाव को डुबो देती.

फ्लोर मैनेजर संभवतः अपने चालीस के दशक के उत्तरार्ध में था. लम्बा और चौड़े कंधों वाला, उसकी बनावट से पता लगता था कि वह अपनी युवावस्था में खिलाड़ी रहा था किन्तु अब अतिरिक्त वसा उसके पेट और ठुड्डी पर जमनी शुरू हो गयी थी. उसके छोटे और कड़े बाल सिर के आगे के हिस्से से हलके होने लगे थे और उससे एक प्रौढ़ होते अविवाहित की सी महक आती थी जैसे अखबारों को कुछ समय के लिए किसी दराज़ में कफ़ ड्रॉप्स के साथ रख दिया गया हो. उसके एक अविवाहित अंकल थे, वे भी उसी तरह महकते थे.

मैनेजर हमेशा काला सूट, सफ़ेद कमीज और बो टाई पहनता था- लटका लेने वाली बो टाई नहीं बल्कि असली चीज, हाथ से बंधी हुई. यह उसके लिए गर्व का विषय था कि वह इसे बिना शीशे में देखे एकदम ठीक-ठीक बांध सकता था. उसका काम अतिथियों के आगमन और प्रस्थान की जाँच करना, सीट-आरक्षण की स्थिति को याद रखना, नियमित ग्राहकों के नाम याद रखना और उनका मुस्कराहट के साथ स्वागत करना, किसी भी ग्राहक की बात सम्मानपूर्वक सुनना, वाइन के सम्बन्ध में विशेषज्ञ सलाह देना और परिचारक और परिचारिकाओं के काम पर नजर रखना था. वह दिन प्रतिदिन अपना कर्तव्य अत्यंत जिम्मेदारी से निभाता था. उसका एक विशेष काम रेस्त्रां के मालिक के कमरे में खाना पहुंचाना भी था.

 

२.

“जहाँ रेस्त्रां था उसी बिल्डिंग की छठवीं मंजिल पर मालिक का अपना कमरा था,” उसने कहा. “कोई अपार्टमेंट या कार्यालय या कुछ और.”

किसी प्रकार मैं और वो अपने बीसवें जन्मदिन की चर्चा करने लगे थे- हम दोनों के लिए यह किस तरह का दिन रहा था ? अधिकांश लोग जिस दिन बीस के होते हैं उस दिन को याद रखते हैं. उसका यह दिन दस से अधिक वर्ष पूर्व आया था.

“वह कभी भी, रेस्त्रां में अपना चेहरा दिखाने नहीं आया था. एकमात्र व्यक्ति जिसने उसे देखा था, वह मैनेजर था. उसका खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी, बिना किसी अपवाद के, मैनेजर की थी. अन्य कोई कर्मचारी नहीं जानता था कि वह कैसा दिखता था.”

“तो मालिक को उसके अपने ही रेस्त्रां से होम डिलीवरी की सुविधा मिल रही थी.”

“बिलकुल ठीक,” उसने कहा.  “हर रात आठ बजे मैनेजर को मालिक के कमरे में डिनर पहुँचाना होता था. यह रेस्त्रां का सबसे व्यस्त समय होता था, तो ऐसे समय में मैनेजर का गायब हो जाना हम लोगों के लिए सदैव ही समस्या की बात होती थी, लेकिन इसके हल का कोई उपाय नहीं था क्योंकि हमेशा से यह ऐसे ही होता रहा था. वे होटल में रूम-सर्विस के लिए प्रयोग की जाने वाली किसी ट्रॉली में डिनर रखते, मैनेजर अपने चेहरे पर एक सम्मानजनक मुस्कान के साथ उसे धकेल कर लिफ़्ट तक ले जाता और पंद्रह मिनट में वह खाली हाथ लौट आता. फिर एक घंटे के बाद वह फिर ऊपर जाता और ट्राली को खाली प्लेटों और ग्लासों के साथ नीचे ले आता. घड़ी की सुइयों की भांति, प्रतिदिन. जब मैंने इसे पहली बार देखा तो यह वास्तव में मुझे विचित्र लगा. तुम समझ लो, यह किसी धार्मिक कर्मकांड की भांति था. कुछ समय पश्चात मैं इसकी अभ्यस्त हो गयी, यद्यपि मैंने कभी इसके बारे में दूसरे तरीके से नहीं सोचा.”

मालिक को सदैव ही चिकन चाहिए होता था. उसकी पाक विधि और उसमें पड़ी सब्जियां नित्य ही कुछ अलग होती थी किन्तु मुख्य व्यंजन चिकन ही होता था. एक युवा शेफ ने एक बार उसे बताया था कि पूरे एक हफ्ते तक वह एक ही तरह का रोस्टेड चिकन भेजता रहा था, मात्र यह देखने के लिए कि क्या होता है, लेकिन कभी भी कोई शिकायत नहीं आयी. निश्चय ही एक शेफ चीजों को भिन्न-भिन्न तरीके से तैयार करना चाहता है और हर नया शेफ चिकन तैयार करने की हर नयी तकनीक, जिनके बारे में वह सोच सकता था, से स्वयं को चुनौती देना चाहता था. वे शानदार सॉसेज तैयार करते, अलग-अलग आपूर्तिकर्ताओं के चिकेन आजमाते, लेकिन उनकी किसी कोशिश का कोई परिणाम नहीं निकला: मानो वे किसी खाली गुफा में पत्थर फेंक रहे थे. हरेक ने प्रयत्न करना छोड़ दिया और मालिक के लिए प्रतिदिन चिकेन के सामान्य व्यंजन भेजने लगे. उनसे हमेशा इसी की अपेक्षा की गयी थी.

 

3.

उसके जन्मदिन, 17 नवम्बर को काम सामान्य रूप से ही शुरू हुआ. अपराह्न से ही रुक-रुक कर वर्षा हो रही थी जो साँझ से तेज बारिश में बदल गयी थी. पांच बजे मैनेजर ने कर्मचारियों को उस दिन की विशेष चीजों के सम्बन्ध में बताने के लिए इकट्ठा किया. सर्विस करने वालों को उसे शब्दशः याद रखना था और पर्चियों का प्रयोग नहीं करना था: वील मिलानीज, सार्डिन्स की टॉपिंग्स के साथ पास्ता, कैबेज-चेस्टनट मूज (सभी इटैलियन व्यंजन). कभी-कभार मैनेजर ग्राहक बन कर सवाल पूछ कर परीक्षण भी करता  था. फिर कर्मचारियों के खाने का नंबर आता था: इस रेस्त्रां में कर्मचारियों से यह अपेक्षा नहीं की जाती थी कि ग्राहकों से ऑर्डर लेते समय उनके पेट में गड़गड़ाहट उठ रही हो.

रेस्त्रां के द्वार छह बजे खुल गए किन्तु भारी वर्षा के कारण अतिथियों का आना बहुत धीमा था और कई सीट-आरक्षण निरस्त भी हो गए. महिलाएं नहीं चाहती थी कि वर्षा से उनके वस्त्र ख़राब हो जाएँ. मैनेजर चुपचाप इधर उधर घूमता रहा और वेटर नमक और काली मिर्च छिड़कने की शीशियों को चमकाकर अथवा शेफ के साथ खाना पकाने के सम्बन्ध में बातें करके अपना समय बिताते रहे. उसने भोजन कक्ष पर एक नज़र डाली जिसमें एक अकेला जोड़ा बैठा छत में लगे स्पीकरों से बजता संगीत सुन रहा था. शरदऋतु में देर से हो रही बारिश की महक रेस्त्रां में प्रवेश कर गयी थी.

यह साढ़े सात के बाद का समय था जब मैनेजर की तबीयत ख़राब महसूस होने लगी. वह एक कुर्सी पर गिर गया और वहां कुछ देर अपना पेट दबाये बैठा रहा, मानो उसे अभी एकाएक गोली लग गयी हो. तैलीय पसीना उसके माथे पर छलछला आया था.

“मैं सोचता हूँ, मुझे अस्पताल चले जाना चाहिए,” वह बुदबुदाया. उसको स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होना असामान्य घटना थी: दस वर्ष पूर्व, जब से उसने इस होटल में काम शुरू किया था, कभी अनुपस्थित नहीं रहा था. यह भी उसके लिए एक गर्व का विषय था कि वह कभी अस्वस्थता अथवा चोट के कारण अनुपस्थित नहीं रहा लेकिन आज उसके चेहरे के पीड़ा युक्त भाव बता रहे थे कि उसकी स्थिति बहुत ख़राब थी.

वह एक छतरी लिए बाहर आयी और एक टैक्सी रोकी.  एक वेटर ने मैनेजर को सहारा दिया और उसे पास के अस्पताल में ले जाने के लिए कार में चढ़ गया. टैक्सी में बैठने के पूर्व, मैनेजर ने उससे जोर से कहा, “मैं चाहता हूँ कि आज तुम कमरा नंबर 604 में आठ बजे डिनर ले कर जाओ. तुम बस इतना करना कि घंटी बजाना और कहना, ‘आप का डिनर,’ और चली आना.

“रूम नंबर 604, ठीक ?” उसने कहा.

“ठीक आठ बजे,” उसने दोहराया. “एकदम ठीक समय पर.” उसने फिर मुस्कराने की कोशिश की. वह टैक्सी में चढ़ गया, और टैक्सी उसे दूर ले गयी.

 

4.

मैनेजर के जाने के बाद भी बारिश के बंद होने के कोई चिह्न नहीं थे और ग्राहक लम्बे अंतरालों के पश्चात आ रहे थे. एक समय में एक या दो से अधिक मेजें नहीं भरी थी इसलिए यह समय मैनेजर और एक वेटर के अनुपस्थित रहने के लिए उपयुक्त समय था.  चीजें इतनी अधिक व्यस्त हो सकती थीं कि सारे कर्मचारियों के लिए भी स्थिति से निपटना मुश्किल हो सकता था.

जब आठ बजे मालिक का खाना तैयार हो गया, वह रूम सर्विस वाली गाड़ी को धकेल कर लिफ़्ट तक ले गयी और लिफ़्ट से छठवीं मंजिल के लिए. यह उसके लिए नियमित भोजन था: रेड वाइन की आधी बोतल जिसका कॉर्क ढीला कर दिया गया था, कॉफी को गर्म रखने का एक बर्तन, भाप में पकी सब्जियों के साथ चिकन, डिनर रोल्स और मक्खन. पके हुए चिकन की भारी महक जल्दी ही लिफ़्ट में भर गयी. यह बारिश की गंध के साथ मिल गयी थी. लिफ़्ट  के फर्श पर पानी की बूंदें बिखरी हुई थीं, यह दर्शाती हुई कि कोई एक भीगी हुई छतरी के साथ ऊपर गया था.

उसने गाड़ी को गलियारे में धकेला और उसे ले जा कर उस कमरे के सामने रोक दिया जिस पर ‘604’ लिखा हुआ था. उसने अपनी स्मृति का पुनः परीक्षण किया: 604. यही नंबर था. उसने अपना गला साफ किया और दरवाजे के साथ लगे बटन को दबाया.

कोई उत्तर नहीं आया. वह लगभग बीस सेकेंड्स तक अपनी जगह पर खड़ी रही. जैसे ही वह पुनः घंटी बजाने की सोच रही थी, दरवाजा भीतर की ओर खुला और एक बहुत ही दुबला पतला व्यक्ति प्रगट हुआ. वह कद में उससे भी छोटा था, लगभग चार या पांच इंच. वह गहरे रंग का सूट और टाई पहने हुए था. उसकी सफ़ेद कमीज पर भूरी-पीताभ सूखी पत्तियों जैसे रंग की टाई, बेहतरीन दिख रही थी. उसका प्रभाव बहुत शानदार था, उसके कपड़े त्रुटिहीन तरीके से प्रेस किये हुए थे, सफ़ेद बाल अच्छे से व्यवस्थित थे: वह ऐसा दिख रहा था मानो रात के किसी समारोह में भाग लेने जाने वाला हो. गहरी झुर्रियों ने, जिनसे उसकी भौंहों में बल पड़ गए थे, उसे (लड़की को) आसमान से खींची गयी किसी तस्वीर में दिखते गहरे खड्डों की याद दिला दी.

“आपका डिनर श्रीमान,” उसने थोड़ी खुरदुरी आवाज़ में कहा, फिर धीरे से पुनः अपना गला साफ किया. वह जब भी तनाव में होती थी उसकी आवाज शुष्क हो जाती थी.

“डिनर?”

“जी, श्रीमान. मैनेजर एकाएक बीमार हो गए.  आज मुझे उनकी जगह लेनी पड़ी. आपका खाना, श्रीमान.”

“ओह, मैं समझ गया,” वृद्ध व्यक्ति ने कहा, बिलकुल इस तरह मानो स्वयं से बात कर रहा हो, उसके हाथ अभी भी दरवाजे के हत्थे पर ही थे. “बीमार हो गया, ओह? ऐसा न कहो.”

“उनके पेट में एकाएक तकलीफ होने लगी.  वे अस्पताल गए हैं. वे सोचते हैं, उन्हें अपेंडिक्स की तकलीफ हो सकती है.”

“ओह, यह तो अच्छी बात नहीं है,” वृद्ध व्यक्ति ने अपनी उंगलियां अपने माथे की झुर्रियों पर फिराते हुए कहा. “बिलकुल ठीक नहीं है.”

उसने पुनः अपना गला साफ किया.  “क्या मैं आपका खाना भीतर ले आऊं, श्रीमान ?” उसने पूछा.

“हाँ..हाँ, निश्चित रूप से,” वृद्ध व्यक्ति ने कहा.  “निश्चित रूप से, यदि तुम चाहो.  मेरे लिए यह बेहतर है.”

यदि मैं चाहूँ? उसने सोचा. कहने का क्या विचित्र ढंग है. मुझसे क्या चाहने की अपेक्षा की जाती है ?

वृद्ध व्यक्ति ने पूरा दरवाजा खोल दिया, और वह गाड़ी भीतर धकेल ले गयी. फर्श धूसर रंग के कालीन से ढका हुआ था जहाँ जूते उतारने के लिए कोई जगह नहीं थी. पहला कमरा एक बड़ा सा अध्ययन कक्ष था, मानो वह अपार्टमेंट निवासस्थान की बजाय कार्यस्थल अधिक हो. खिड़की से पास ही स्थित टोक्यो टावर दिखाई पड़ रहा था, रोशनी से रेखांकित सा किया हुआ उसका इस्पात का ढांचा. खिड़की के पास एक बड़ी सी मेज थी और मेज की बगल में एक कॉम्पैक्ट सोफा और एक आराम कुर्सी.  वृद्ध व्यक्ति ने सोफे के सामने रखी एक प्लास्टिक से लैमिनेटेड कॉफी टेबल की ओर संकेत किया. उसने मेज पर खाना लगा दिया, सफ़ेद नैपकिन और चाँदी के बर्तन, कॉफी का बर्तन, प्याला, वाइन और वाइन ग्लास, ब्रेड और मक्खन और चिकन और सब्जियों की प्लेट.

“यदि आप कृपा करके पूर्व की भांति बर्तन हॉल में छोड़ देंगे श्रीमान तो मैं उन्हें ले जाने के लिए एक घंटे में आ जाऊंगी.”

ऐसा लगा मानो उसके शब्द उसे डिनर के सम्बन्ध में प्रशंसात्मक चिंतन से बाहर खींच लाये हों. “ओह, निश्चित रूप से. मैं उन्हें हॉल में रख दूंगा.  गाड़ी पर.  एक घंटे में.  यदि तुम चाहती हो.”

हाँ, उसने आंतरिक रूप से उत्तर दिया, इस क्षण के लिए मैं बिलकुल यही चाहती हूँ. “क्या मैं आपके लिए कुछ और कर सकती हूँ, श्रीमान.”

“नहीं, मैं ऐसा नहीं समझता,” उसने एक क्षण विचार करने के पश्चात कहा. वह काले जूते पहने हुए था जो बहुत चमकदार ढंग से पॉलिश किये गए थे. वे छोटे आकार के और खूबसूरत थे. वह स्टाइलिश तरीके से कपड़े पहनता है, लड़की ने सोचा. और वह अपनी उम्र के हिसाब से एकदम सीधा खड़ा होता है.

“फिर ठीक है, श्रीमान, मैं अपने काम पर जाती हूँ.”

“नहीं, एक क्षण ठहरो,” उसने कहा.

“श्रीमान?”

“क्या तुम सोचती हो कि तुम्हारे लिए मुझे अपना पांच मिनट का समय दे पाना संभव होगा, मिस ? कुछ ऐसा है जो मैं तुम से कहना चाहूंगा.”

वह अनुरोध करते समय इतना विनम्र था कि वह लज्जा से लाल हो गयी.  “मैं…. सोचती हूँ कि यह ठीक रहेगा,” उसने कहा.  “मेरा मतलब है यदि यह मात्र पांच मिनट की ही बात है.” आखिर, वह उसका नियोक्ता था. वह उसे घंटे के हिसाब से भुगतान करता था. यह उसके समय देने अथवा उसके (वृद्ध के) समय लेने का प्रश्न नहीं था. और यह वृद्ध व्यक्ति ऐसा नहीं दिखता था जो उसके साथ कुछ बुरा करता.

“वैसे तुम्हारी उम्र कितनी है?” वृद्ध व्यक्ति ने मेज के पास अपनी बांहें मोड़े खड़े हुए सीधे उसकी आँखों में झांकते हुए पूछा.

“मैं अब बीस की हूँ,” उसने बताया.

“अब बीस की,” उसने अपनी आँखें सिकोड़ते हुए दोहराया मानो किसी तरह की दरार में झाँक रहा हो. “बीस की अब. कब, किस समय?”

“मैं बस बीस की हुई ही हूँ,” उसने कहा. एक क्षण की हिचकिचाहट के पश्चात, उसने जोड़ा, “आज मेरा जन्मदिन है, श्रीमान.”

“ओह, मैं समझ गया,” उसने अपनी ठुड्डी रगड़ते हुए कहा मानो इससे बहुत कुछ व्याख्यायित हो गया हो. “यह आज ही है ? आज तुम्हारा बीसवां जन्मदिन है?”

उसने चुपचाप सिर हिलाया.

“तुम्हारा जीवन आज ही के दिन ठीक बीस वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ था.”

“जी हाँ, श्रीमान,” उसने कहा, “यह सच है.”

“मैं समझा, मैं समझा,” उसने कहा.  “यह बहुत अच्छी बात है.  अच्छा, फिर जन्मदिन की शुभकामनाएं.”

“बहुत बहुत धन्यवाद, श्रीमान,” उसने कहा, और फिर उसे ध्यान आया कि यह पहला अवसर है जब आज किसी ने उसे जन्मदिन की शुभकामनाएं दी है. निश्चित रूप से यदि उसके माता-पिता ने फोन किया होगा तो वह जब काम समाप्त करके घर जाएगी तब उसे आंसरिंग मशीन पर सन्देश मिलेगा.

“बढ़िया, बढ़िया, यह तो निश्चित रूप से सेलिब्रेट करने का अवसर है,” उसने कहा.  “एक-एक जाम कैसा रहेगा? हम यह रेड वाइन पी सकते हैं.”

“धन्यवाद, श्रीमान, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती.  अभी मैं काम पर हूँ.”

“ओह, एक घूंट लेने में क्या हानि है ? तुम्हें कोई दोष नहीं देने वाला यदि मैं कहता हूँ कि यह ठीक है. बस सेलिब्रेशन के लिए एक-एक टोकेन ड्रिंक.”

वृद्ध व्यक्ति ने कॉर्क खोला और अपनी ग्लास में उसके लिए थोड़ी सी वाइन उड़ेली.  फिर उसने शीशे के दरवाजे वाले कैबिनेट से एक पानी पीने का सामान्य ग्लास लिया और उसमें अपने लिए थोड़ी वाइन उड़ेली.

“जन्मदिन शुभ हो,” उसने कहा.  तुम एक समृद्ध और परिपूर्ण जीवन जियो और ऐसा कुछ भी न हो जो उस पर अपनी काली छाया डाले.”

उन्होंने ग्लास टकराये.

‘ऐसा कुछ न हो जो उस पर अपनी काली छाया डाले’: उसने अपने बारे में उसके कथन को चुपचाप दोहराया.  उसने उसके जन्मदिन की शुभकामना के लिए ऐसे असामान्य शब्द क्यों चुने?

“तुम्हारा बीसवां जन्मदिन जीवन भर में एक ही बार आता है, मिस. इस दिन का कोई स्थानापन्न नहीं है.”

“जी, श्रीमान, मैं जानती हूँ ,” उसने सावधानी से एक घूँट भरते हुए कहा.

“और यहाँ, अपने इस विशिष्ट दिन, तुमने किसी दयालु परी की भांति मेरे लिए डिनर लाने की जहमत उठाई.”

“मैं बस अपना काम कर रही हूँ, श्रीमान.”

वृद्ध व्यक्ति मेज के पास वाली चमड़े की कुर्सी पर बैठ गया और उसे सोफे की ओर घुमा लिया. वह सोफे के बिलकुल किनारे सिकुड़ी हुई अपने हाथ में वाइन का ग्लास लिए बैठी थी. घुटने सटे हुए थे, उसने अपना स्कर्ट ठीक किया, और पुनः अपना गाला साफ किया. उसने देखा कि वर्षा की बूंदें खिड़की के शीशे पर कतारें बना रहीं थीं. कमरा विचित्र ढंग से शांत था.

“आज ही तुम्हारा बीसवां जन्मदिन है और ऊपर से तुम मेरे लिए यह शानदार गर्म भोजन ले आयी हो,” वृद्ध व्यक्ति ने कहा, मानो स्थिति की पुनः पुष्टि कर रहा हो. फिर उसने अपना ग्लास थोड़ी आवाज़ के साथ मेज पर रख दिया. “इसमें कुछ विशेष तरह का तादात्म्य होना चाहिए , क्या तुम ऐसा नहीं सोचती ?”

बिना पूरी तरह सहमत हुए, उसने बस सिर हिलाया.

“इसी कारण,” उसने अपनी सूखी पत्तियों की डिजाइन वाली टाई की गांठ को छूते हुए कहा, “मैं सोचता हूँ कि मेरे लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि मैं तुम्हें जन्मदिन का कोई उपहार दूँ.  एक विशिष्ट जन्मदिन पर एक विशेष यादगार उपहार होना चाहिए.”

संकोचवश उसने अपना सिर हिलाया और कहा, “नहीं, प्लीज, श्रीमान, इसके बारे में दोबारा न सोचें.  मैंने बस इतना किया है कि मुझे जैसा आदेश हुआ मैं उसी तरह आपका भोजन ले आयी.”

वृद्ध व्यक्ति ने हथेलियां लड़की की ओर किये हुए अपने दोनों हाथ उठाये. “नहीं, मिस, तुम इस सम्बन्ध में दोबारा मत सोचो.  जिस तरह के उपहार के सम्बन्ध में मैंने सोचा है वह कोई भौतिक वस्तु नहीं है, कोई ऐसी वस्तु नहीं जिस पर कीमत लिखी हो.  यदि सामान्य तरीके से कहा जाये तो”- उसने अपने हाथ मेज पर रख दिए और लम्बी, धीमी साँस ली-

“मैं तुम्हारे जैसी प्यारी सी परी के लिए जो करना चाहूंगा वह यह है कि तुम्हारी मनोकामना पूरी हो, तुम्हारी कामना सच हो. कुछ भी, कुछ भी जिसकी तुम अपने लिए कामना करो- यह मानते हुए कि तुम्हें उसकी इच्छा है.”

“एक कामना?” उसने पूछा, उसका गला शुष्क था.

“कोई भी चीज जो तुम घटित होते देखना चाहती हो, मिस. यदि तुम्हारी कामना है- एक कामना, मैं उसे सच कर दूंगा. जन्मदिन का इसी तरह का उपहार मैं तुम्हें दे सकता हूँ. लेकिन बेहतर होगा कि तुम इसके सम्बन्ध में सावधानी से सोचो, क्योंकि मैं केवल एक कामना पूरी कर सकता हूँ.” उसने अपनी एक उंगली हवा में उठायी, “ बस एक.  तुम बाद में अपना विचार बदल नहीं सकती और इसे वापस नहीं ले सकती.”

वह निःशब्द हो गयी थी. एक कामना? हवा द्वारा उड़ाए जाने के कारण वर्षा की बूंदें खिड़की के शीशे पर असमान रूप से टकरा रहीं थीं. जितनी देर वह मौन रही, वृद्ध व्यक्ति बिना कुछ कहे, उसकी आँखों में देखता रहा. समय अपनी अनियमित धड़कने उसके कानों में चिन्हित कर रहा था.

“मुझे किसी चीज की कामना करनी है और वह कामना पूरी हो जाएगी?”

उसके प्रश्न का उत्तर देने की बजाय, वृद्ध व्यक्ति, अपने हाथ अभी भी मेज पर पास-पास रखे हुए, बस मंद-मंद मुसकुराता रहा. उसने ऐसा सर्वाधिक स्वाभाविक और मित्रवत तरीके से किया.

“क्या तुम्हारी कोई कामना है, मिस- अथवा नहीं?” उसने विनम्रता से पूछा.

 

5.

“ऐसा वास्तव में हुआ था,” उसने सीधे मेरी ओर देखते हुए कहा.  “मैं कहानी नहीं बना रही हूँ.”

“निश्चय ही मैं ऐसा नहीं सोच रहा,” मैंने कहा. वह उस तरह की नहीं थी जो हवा में से कोई बेसिर पैर की कहानी बनाने लगे.  “तो…… तुमने एक कामना की ?”

वह कुछ क्षण मुझे देखती रही, फिर उसने एक धीमी सी आह भरी.  “मुझे गलत मत समझो,” उसने कहा.

“मैं स्वयं उसे सौ प्रतिशत गंभीरता से नहीं ले रही थी. मेरा मतलब है, बीस की उम्र में आप एकदम परीलोक में नहीं भ्रमण करते रहते. यदि वह उसका मज़ाक करने का तरीका था, मुझे वहीं के वहीं इसको उसे वापस सौंप देना था. वह अपनी आँखों में चमक लिए एक उत्साही वृद्ध था, इसलिए मैंने उसके साथ आगे खेलने का निर्णय लिया. आखिर यह मेरा बीसवां जन्मदिन था और मुझे विचार करना था कि उस दिन मेरे साथ कुछ वैसा साधारण सा न घटित हो. यह विश्वास करने अथवा विश्वास न करने का प्रश्न नहीं था.”

मैंने बिना कुछ कहे बस सिर हिलाया.

“निश्चय ही तुम समझ सकते हो मैंने कैसा महसूस किया था. मेरा बीसवां जन्मदिन बिना कुछ विशिष्ट घटित हुए समाप्त होने जा रहा था, किसी ने मुझे जन्मदिन की शुभकामना तक नहीं दी थी, और मैं बस लोगों की मेज तक ‘एन्कोवी सॉस’ के साथ ‘टोर्टेलिनी’ पहुंचा रही थी.”

मैंने फिर सिर हिलाया.  “चिंता मत करो,” मैंने कहा. “मैं समझता हूँ.”

“तो फिर मैंने एक कामना की.”

वृद्ध व्यक्ति ने बिना कुछ कहे, अपने हाथ अभी भी मेज पर रखे हुए, अपनी दृष्टि उस पर गड़ाए रखी. मेज पर और भी बहुत से मोटे फोल्डर, जो संभवतः लेखा पुस्तकें थीं, लिखने के उपकरण, एक कैलेण्डर और हरे शेड वाला एक लैंप इत्यादि पड़े थे. उनके बीच में पड़े उसके छोटे-छोटे हाथ मेज पर की एक और वस्तु जैसे लग रहे थे. वर्षा अभी भी खिड़की के शीशों से टकरा रही थी और टोक्यो टावर की रोशनियां बिखरती हुई बूंदों से छन रहीं थीं.

वृद्ध व्यक्ति के माथे की झुर्रियां थोड़ी और गहरी हो गयीं.  “तो यह है तुम्हारी कामना?”

“हाँ,” उसने कहा. “यही मेरी कामना है.”

“तुम्हारी उम्र की लड़की के लिए यह थोड़ी असामान्य है,” उसने कहा. “मैं किसी भिन्न चीज की अपेक्षा कर रहा था.”

“यदि यह कुछ अधिक है, तो मैं किसी और चीज के लिए कामना कर लूंगी,” उसने अपना गला साफ करते हुए कहा. “मुझे परवाह नहीं. मैं किसी और चीज के बारे में सोच लूंगी.”

“नहीं, नहीं,” वृद्ध व्यक्ति ने अपने हाथ उठाते और उन्हें किसी झंडे की भांति लहराते हुए कहा.  “इसमें कुछ गलत नहीं है, बिलकुल भी नहीं. यह बस थोड़ा सा आश्चर्यजनक है, मिस.  क्या तुम कुछ और नहीं सोचती? जैसे कि तुम और सुन्दर, और स्मार्ट, या फिर धनी होना चाहती हो? तुम इन चीजों के बारे में कामना न करके ठीक तो हो- जिनके बारे में कोई लड़की सामान्यतः इच्छा करती ?”

उसने सही शब्द खोजने के लिए कुछ क्षण लिए.  वृद्ध व्यक्ति बिना कुछ कहे, पुनः अपने हाथ एक साथ मेज पर रखे, बस प्रतीक्षा करता रहा.

“निश्चय ही मैं अधिक सुंदर, अधिक स्मार्ट या अधिक समृद्ध होना चाहूंगी.  लेकिन मैं वास्तव में कल्पना नहीं कर सकती कि इनमें से कोई चीज यदि सच हो गयी तो मेरे साथ क्या घटित होगा. हो सकता है वे उससे अधिक हों जो मैं संभाल सकूं. मैं अभी भी ठीक से नहीं जानती कि जीवन वास्तव में क्या कुछ है.  मैं नहीं जानती यह आज कैसे क्रियाशील रहता है.”

“मैं समझ गया,” वृद्ध व्यक्ति ने अपनी उंगलियाँ एक दूसरे में पिरोते और फिर उन्हें अलग करते हुए कहा. “मैं समझ गया.”

“तो फिर मेरी कामना ठीक है?”

“निश्चित रूप से,” उसने कहा. “निश्चय ही, मेरे लिए इसमें कोई समस्या बिलकुल नहीं है.”

 

6

वृद्ध व्यक्ति ने एकाएक हवा ने एक बिंदु पर अपनी दृष्टि स्थिर  कर दी. उसके माथे की झुर्रियां और गहरी हो गयीं: जिस प्रकार से वह अपने विचारों में एकाग्रचित्त था उससे लगता था मानो वे उसके मस्तिष्क की ही झुर्रियां हों. वह किसी वस्तु को घूरता सा लग रहा था- संभवतः हवा में तैरती तमाम वस्तुओं में से कुछ अदृश्य चीजें. उसने अपनी बाहें चौड़ाई में फैला दी, अपने को कुर्सी पर से थोड़ा उठाया, और अपनी हथेलियों को एक सूखे कपड़े से पोंछा.  पुनः कुर्सी पर बैठते हुए उसने धीरे से अपनी उंगलियां अपनी भौंहों पर फेरी मानो उन्हें सीधी करना चाह रहा हों, फिर एक विनम्र मुस्कराहट के साथ उसकी ओर मुड़ा.

“हो गया,” उसने कहा.  “तुम्हारी कामना पूरी कर दी गयी.”

“पूरी हो गयी ?”

“हाँ, इसमें कोई परेशानी नहीं थी. तुम्हारी कामना पूरी कर दी गयी, प्यारी मिस. शुभ जन्मदिन. चिंता मत करो, मैं गाड़ी हॉल में पहुंचा दूंगा.”

वह नीचे रेस्त्रां में जाने के लिए लिफ़्ट में सवार हो गयी. खाली हाथ, अब उसने स्वयं को बेचैन कर देने जैसा हल्का महसूस किया, मानो वह किसी प्रकार की रहस्यमय रुई पर चल रही हो.

“सब ठीक तो है? तुम कुछ नशे में जैसी लग रही हो,” एक अपेक्षाकृत युवा वेटर ने उससे कहा.

वह उसकी ओर देख कर भ्रामक तरीके से मुस्करायी और अपना सिर हिलाया. “अच्छा, सच में? नहीं, मैं बिलकुल ठीक हूँ.”

“मुझे मालिक के बारे में बताओ.  वह किस तरह का है ?”

“मैं नहीं जानती, मैंने उसे बहुत अच्छे से नहीं देखा,” उसने बातचीत को बीच में ही समाप्त सा करते हुए कहा.

एक घंटे बाद वह गाड़ी को वापस नीचे ले आयी. वह बाहर हॉल में थी और बर्तन ठीक से रखे हुए थे. उसने ढक्कन उठा कर देखा चिकन और सब्जियां समाप्त हो चुकी थीं. वाइन की बोतल और कॉफी के बर्तन खाली थे. कमरा न. 604 का दरवाजा बंद और भावहीन था. वह उसकी ओर कुछ देर तक ताकती रही, यह महसूस करती हुई कि वह किसी भी क्षण खुल सकता था, किन्तु वह नहीं खुला. वह गाड़ी को लिफ़्ट से नीचे ले आयी और फिर धकेल कर डिश वाशर तक पहुंचा दिया. शेफ ने प्लेट की तरफ देखा, सदैव की भांति खाली, और भावहीन तरीके से सिर हिलाया.

 

7

“मैंने फिर दोबारा कभी मालिक को नहीं देखा,” उसने कहा. “एक बार भी नहीं. मैनेजर को मात्र सामान्य पेट दर्द था और वह मालिक का डिनर ले कर अगले दिन स्वयं गया. मैंने अगले नववर्ष से वह काम छोड़ दिया और फिर कभी उस जगह वापस नहीं गयी. मैं नहीं जानती, पर मैंने उस जगह के आसपास न जाना ही बेहतर महसूस किया, एक प्रकार की पूर्व चेतावनी सी.”

वह, अपने विचारों में डूबी हुई, एक पेपर कोस्टर से खेलती रही. “कई बार मैं सोचती हूँ जो कुछ मेरे साथ मेरे बीसवें जन्मदिन पर घटित हुआ वह किसी प्रकार का भ्रम था. मानो मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ हो जो मुझे ऐसी बात के घटित होने का विश्वास दिला दे जो मेरे साथ वास्तव में घटित ही नहीं हुई थी. किन्तु मैं निश्चित रूप से जानती हूँ कि ऐसा घटित हुआ था. मैं अब भी कमरा न. 604 के एक-एक फर्नीचर को, कमरे की हर छोटी से छोटी चीज को अत्यंत स्पष्टता से याद कर सकती हूँ. वहां मेरे साथ जो हुआ था वह वास्तव में घटित हुआ था और इसका मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण अर्थ भी था.”

हम दोनों कुछ समय के लिए, अपने पेय पीते हुए और अपने भिन्न-भिन्न विचारों में डूबे हुए, मौन रहे.

“तुम अन्यथा तो नहीं लोगी, यदि मैं तुम से एक बात पूछूं ?” मैंने पूछा.  “अथवा ठीक-ठीक कहूं तो दो बातें.”

“बिलकुल पूछो,” उसने कहा. “मैं कल्पना कर सकती हूँ कि तुम पूछने जा रहे हो कि उस दिन मैंने क्या कामना की थी. यह पहली चीज है जो तुम जानना चाहोगे.”

“किन्तु ऐसा प्रतीत होता है जैसे तुम इस सम्बन्ध में बात नहीं करना चाहती.”

“क्या ऐसा लगता है?” उसने सिर हिलाया. उसने कोस्टर नीचे रख दिया, आँखें सिकोड़ ली मानो दूर किसी चीज को देख रही हो. “तुम जानते हो, तुम ने जो कामना की थी उसके सम्बन्ध में किसी को कुछ बताने की तुम से अपेक्षा नहीं की जाती.”

“मैं इसे तुम से उगलवाने का प्रयत्न करने नहीं जा रहा हूँ,” मैंने कहा.  “यद्यपि मैं यह जानना चाहूंगा कि वह सच हुई अथवा नहीं. और यह भी- कामना कुछ भी रही हो- क्या तुम्हें बाद में इस बात का अफसोस हुआ कि तुमने किस चीज को कामना  करने हेतु चुन लिया था, अथवा नहीं. क्या तुम्हें कभी इस बात का दुःख हुआ कि तुम ने कुछ और कामना क्यों नहीं की ?”

“पहने प्रश्न का उत्तर है- हाँ और नहीं भी. संभवतः मुझे अभी काफी जीवन जीना बाकी है. मैंने नहीं देखा है कि अंत में चीजें कैसी रहती हैं.”

“तो यह ऐसी कामना थी जो सच होने में समय लेती है ?”

“तुम ऐसा कह सकते हो. समय एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने जा रहा है.”

“जैसे कुछ व्यंजनों को बनाने में लगता है?”

उसने सिर हिलाया.

मैंने उस सम्बन्ध में कुछ देर सोचा, लेकिन बस एक बात मेरे मस्तिष्क में आयी वह थी एक विशाल पाई (एक व्यंजन) की किसी ओवन में धीमी आंच पर धीरे-धीरे पकती हुई छवि.

‘और मेरे दूसरे प्रश्न का उत्तर ?”

“वह क्या था ?”

“क्या तुम्हें कभी इस बात का दुःख हुआ कि तुम ने कुछ और कामना क्यों नहीं की.”

उसके बाद कुछ क्षण का मौन रहा. उसकी आँखों में, जो उसने मेरी ओर घुमाईं, लग रहा था उनमें कोई गहराई नहीं थी. उसके होंठों के कोने पर एक शुष्क सी मुस्कुराहट उभरी, मुझे चुप रहने का संकेत सा देती हुई.

“अब मैं विवाहित हूँ,” उसने कहा. एक CPA के साथ जो मुझसे तीन वर्ष उम्र में बड़ा है. मेरे दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी. हमारे पास एक आयरिश घर है. मैं ऑडी चलाती हूँ और अपनी सहेलियों के साथ हफ्ते में दो बार टेनिस खेलती हूँ.  यह वह जीवन है जो मैं अभी जी रही हूँ.”

“सुनकर काफी अच्छा लग रहा है,” मैंने कहा.

“भले ही ऑडी के बम्पर में दो डेंट हों?”

“हे, बंपर डेंट के लिए बने ही होते हैं.”

“यह बंपर के स्टीकर के लिए शानदार वाक्य हो सकता है,” उसने कहा. “बंपर डेंट के लिए होते हैं.”

मैं उसके मुंह की ओर देखता रहा जब उसने यह कहा.

“जो मैं तुम से कहने का प्रयत्न कर रही हूँ वह यह है,” उसने अपने कान की लव खुजलाते हुए अधिक कोमलता से कहा.  उसके कान की लवें खूबसूरत आकार की थीं. “कोई फर्क नहीं कि वे किस बात की कामना करते हैं, कोई बात नहीं कि वे कितनी दूर तक जाते हैं, लोग कभी भी और कुछ नहीं हो सकते सिवाय उसके जो कि वे स्वयं हैं. बस यही.”

“एक और अच्छा बम्पर स्टीकर,” मैंने कहा.  “चाहे जितनी दूर भी जाएं, लोग और कुछ नहीं होंगे सिवाय उसके जो वे स्वयं हैं.”

वह जोर से हंसी, जिसमें सचमुच प्रसन्नता की झलक थी, और वह परछाई जा चुकी थी.

उसने अपनी कुहनियां काउंटर पर टिका दी और मेरी ओर देखा. “मुझे बताओ,” उसने कहा, “तुम ने क्या कामना की होती यदि तुम मेरी जगह रहे होते ?”

“तुम्हारा मतलब है, अपने बीसवें जन्मदिन की रात को ?”

“हाँ.”

मैंने इसके बारे में सोचने में थोड़ा समय लिया किन्तु मैं किसी एक कामना पर स्थिर नहीं हो सका.

“मैं किसी चीज के बारे में नहीं सोच पा रहा हूँ,” मैंने स्वीकार किया. “अब मैं अपने बीसवें जन्म दिन से बहुत दूर हूँ.”

“तुम सच में किसी चीज के बारे में नहीं सोच पा रहे?”

मैंने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया.

“एक भी चीज नहीं?”

“एक भी चीज नहीं.”

उसने पुनः मेरी आँखों में देखा- सीधे भीतर की ओर- और कहा, “वह इसलिए कि तुम पहले ही अपनी कामना व्यक्त कर चुके हो.”

श्रीविलास सिंह
०५ फरवरी १९६२
(उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के गाँव गंगापुर में)

दो कविता संग्रह “कविता के बहाने” और ” रोशनी के मुहाने तक” प्रकाशित.
कहानी संग्रह “सन्नाटे का शोर” और अनूदित कहानियों का संग्रह ” आवाज़ों के आर-पार प्रकाशित.
नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवियों की कविताओं का हिंदी अनुवाद “शब्द शब्द आकाश ” शीघ्र प्रकाश्य

8851054620/sbsinghirs@gmail.com

Tags: 20222022 अनुवादबर्थडे गर्लश्रीविलास सिंहहारुकी मुराकामी
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Comments 11

  1. M P Haridev says:
    3 years ago

    कहानी रहस्यमय परिस्थितियों से आरंभ होती है और इन्हीं परिस्थितियों में समाप्त होती है । मैनेजर अपने कार्य के लिये प्रतिबद्ध है । पेंट में दर्द होने के दिन को छोड़कर कभी छुट्टी नहीं ली । जिस दिन दर्द हुआ तब भी वह ड्यूटी पर था । फ़्लोर मैनेजर के पद पर कार्यरत होते हुए भी उसे रेस्तराँ के मालिक के कमरा नंबर 604 में रात्रि में 8 बजे भोजन देकर आना होता था ।
    कहानी का वर्णन बताता है कि मैनेजर द्वारा मालिक के कमरे में ठीक 8 बजे पहुँचने का अभ्यास घड़ी द्वारा अपना टाइम मिलाने के समान होगा । जापान जैसे एशियाई देश की तरह पश्चिमी देशों में भी युवकों और युवतियों को पढ़ने के दौरान कमाने का ज़रिया भी ढूँढना पड़ता है । भारत इसके लिये कम अभ्यस्त है । इसके पीछे का कारण संयुक्त परिवार हो सकता है । हो सकता है इसलिये कि ग़ुरबत भी ऐसा काम कराती है ।
    रेस्तराँ के मालिक की ऐशो-आराम की ज़िंदगी कुछ कुढ़न पैदा करती है । यह भी हो सकता है कि मालिक ने यौवनावस्था में कड़ा संघर्ष और परिश्रम किया हो । 20 वर्ष का जन्मदिन मना रही युवती मालिक के कमरा नंबर 604 में ठीक 8 बजे डिनर पहुँचाने के लिये पहुँच जाती है । दोनों के बीच के संवाद को रचनाकार ने संयत तरीक़े से लिखा है । युवती ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जीना चाहती है । युवावस्था के सभी व्यक्तियों की यही आकांक्षा होती है । मेरी तरह अन्य पाठकों की भी साँसें थम गयी होंगी ।
    युवती ने अपने को संयत होकर रोका । वह मालिक के गरिमापूर्ण व्यवहार से प्रसन्न थी । लेकिन नौकरी छोड़कर घर बसाना था । अपने पति और दो बच्चों के साथ ख़ुश है ।और नौकरी छोड़ चुकी । यह युवती अपने बॉयफ़्रेंड को पहले ही रिजेक्ट कर चुकी थी जिसने अनाधिकार की चेष्टा की थी । वह नहीं फिसली ।
    लेकिन उसकी ऑडी कार के दो डेन्ट संकेत करते हैं कि वैवाहिक जीवन से पहले डेन्ट लग सकते हैं । रचनाकार को साधुवाद तथा श्रीविलास सिंह की मेधा के जादू ने कहानी को रुचिकर रूप से पढ़ने के लिये प्रस्तुत किया । प्रोफ़ेसर अरुण देव की प्रशंसा के लिये श्रीविलास सिंह जी ही शब्द ढूँढ सकते हैं ।

    Reply
    • श्रीविलास सिंह says:
      3 years ago

      M P Haridev कहानी में रेस्टोरेंट के मालिक द्वारा किसी ग़लत नीयत से कुछ करने का संकेत नहीं है। वह एक सदाशयी बुजुर्ग है। बल्कि युवती की एक इच्छा, जो किसी भौतिक वस्तु के लिए नहीं है, की पूर्ति हेतु किसी अलौकिक शक्ति का संकेत है। कहानी के अंत में यद्यपि युवती यह नहीं बताती कि उसने क्या इच्छा की थी किंतु यह महसूस होता है कि जैसे उसने एक सुखी जीवन की कामना की थी। और यह इच्छा पूरी भी हुई। चूँकि जीवन अभी चल रहा है इसलिए वह कहती भी है कि “पहने प्रश्न का उत्तर है हाँ और नहीं भी। संभवतः मुझे अभी काफी जीवन जीना बाकी है। मैंने नहीं देखा है कि अंत में चीजें कैसी रहती हैं।”

      Reply
  2. सुशीला पुरी says:
    3 years ago

    हारुकी मुराकामी की कहानियों की मुरीद हूं। श्री विलास जी ने मुझे अपनी अनुदित किताब भी दी है जिसे अभी पढ़ रही हूं। हारूकी की कहानियों का वितान इतना सघन और अप्रत्याशित होता है कि पढ़ते वक्त सांस अटक सी जाती है। कहानी कला की बेहतरीन प्रस्तुति है यह कहानी। इतने सूक्ष्म और सहज तरीके से कथा विस्तार लेती है कि आखिर तक सस्पेंस बना ही रहता है। बेहतरीन अनुवाद है यह जहां बिल्कुल हिंदी जैसा प्रवाह और व्याकरण की जुगलबंदी है। समालोचन और श्रीविलास सिंह जी को हार्दिक बधाई इस अनुवाद के लिए।🌹

    Reply
  3. दयाशंकर शरण says:
    3 years ago

    कहानी एक रहस्यमय मोड़ पर पाठक को छोड़ आती है।अब सारा चिंतन उसके विवेक पर है। ऐसे पाठक को मुराकामी से गहरी निराशा हो सकती है जो कहानी से ही उत्तर की अपेक्षा रखते हैं।

    Reply
  4. Rohit Prasad Pathik says:
    3 years ago

    इस किताब को अंग्रेजी में पढ़ा हूँ। हिन्दी अनुवाद एक सांस में पढ़ गया।
    बेहतरीन अनुवाद। बधाई!

    Reply
  5. अनिल अविश्रांत says:
    3 years ago

    बहुत सुन्दर कहानी। अनुवाद इतना सरल व प्रवाहमय कि रचना बिल्कुल अपनी भाषा की -सी लगे। यह कहानी उपलब्ध कराने के लिए आपका आभार।

    Reply
  6. Vishakha says:
    3 years ago

    बहुत अच्छी कहानी व शानदार ,सहज अनुवाद

    Reply
  7. कमलाकांत त्रिपाठी says:
    3 years ago

    “लोग कुछ नहीं हो सकते सिवाय उसके जो वे स्वयं हैं।”

    मुराकामी के पास अर्थहीन जीवन को आभासी अर्थ देती कहानी बुनने की जबरदस्त कला है। वह रेस्तरां, उसकी व्यवस्था के एक एक तार, वहां की कार्यशैली, उसके प्रौढ़ ग्राहक। उसके इटेलियन व्यंजन, उनके बनाने की प्रविधि और कला सब अर्थहीन को अर्थ देने के बावजूद पाठक को संलग्न कर लेते हैं। और हमारी बीस वर्षीय नायिका जिसके 19 जन्मदिन यूं ही बिना मनाए बीत चुके हैं। बीसवां खास है। कोई भी जन्मदिन लौटकर नहीं आता किंतु बीसवें के लौटकर न आने का विशेष अर्थ है। बॉय फ्रेंड से गंभीर किस्म की कहासुनी हो चुकी है, इसलिए उसके साथ मनाने का विकल्प भी खो गया है। पार्टटाइम सहकर्मी, जो उसे बीसवां जन्मदिन मनाने के लिए अवकाश देनेवाली थी, संयोग से बीमार पड़ जाती है। नायिका को काम पर आना पड़ा है। बारिश का वह भीगा भीगा दिन जब बहुत कम ग्राहक आए हैं और रेस्तरां में एक अलस मंथरता व्याप्त है। पाठक के भीतर तक उसका मूड गूंज उठता है। फिर दूसरा संयोग कि मैनेजर को पेट के मरोड़ के कारण अस्पताल जाना पड़ जाता है और नायिका को वह अकल्पनीय, कुछ कुछ नाटकीय करने को अचानक मिल जाता है जो कहानी को अस्तित्ववादी कहानी बनाने का उत्स साबित होता है। रेस्तरां के चुस्त दुरुस्त किंतु वृद्ध मालिक से किसी भी कामना की पूर्ति का आश्वासन। जीवन जैसा है, आदमी कौन सी कामना करके उसे वह अर्थ दे सकता है जो अन्यथा उसमें नहीं है ? अस्तित्ववाद के कथात्मक विमर्श का स्पेस बनाते समय कहानी की स्थूलता में डूबे पाठक को मुराकामी यह एहसास नहीं होने देते की उसका इस्तेमाल दर्शन की गुत्थी खोलने के लिए होने जा रहा है। और उसे उस बीस वर्षीया नायिका की कामना की मूर्तता के प्रति उत्सुक, अति उत्सुक बनाकर उसके तिलिस्म के इर्दगिर्द नचाने लगाते हैं।

    अस्तित्ववादी जीवन के अस्तित्व को प्राथमिक और उसके तत्व को द्वितीयक मानते हैं। जीवन का कोई पूर्व निर्धारित लक्ष्य नहीं मानते। पहले जीवन अस्तित्व में आता है, फिर वह अन्यथा अर्थहीन अस्तित्व में अपना अर्थ खोजता है, अर्थ गढ़ता है, अर्थ देता है, अपने जीवन को परिभाषित करता है । उसकी भी सीमा है। लोग कुछ नहीं हो सकते सिवाय उसके जो वे स्वयं हैं। जीवन के अर्थ की खोज और उसे अपनी परिभाषा देने की भी जबरदस्त सीमा है। हर एक का अस्तित्व सीमित संभावना के साथ वजूद में आता है, उससे परे उसको कोई अर्थ नहीं दिया जा सकता। हर मनुष्य का अंतर्निहित ही उसकी पूर्वनिर्धारित परिभाषा है, उसी के भीतर ही उसका अर्थ खोजना और पाना उसकी नियति है। कोई ऐसी असाधारण कामना का कोई अर्थ ही नहीं जो अस्तित्व के सीमांत से परे है।

    Reply
  8. Shamim Zehra says:
    3 years ago

    कहानी प्रारम्भ से ही बेहद बारीकी से रेस्तराँ की एक एक बारीकी को बयान करती हुई वृद्ध मालिक के कमरा नम्बर 306 तक आकर एक रहस्यात्मक माहौल बना देती है। नायिका की यह सोच कि “निश्चय ही मैं अधिक सुंदर, अधिक स्मार्ट या अधिक समृद्ध होना चाहूंगी. लेकिन मैं वास्तव में कल्पना नहीं कर सकती कि इनमें से कोई चीज यदि सच हो गयी तो मेरे साथ क्या घटित होगा. हो सकता है वे उससे अधिक हों जो मैं संभाल सकूं….” स्पष्ट करती है कि व्यक्ति और कुछ नहीं हो सकता बस वही हो सकता है जो वह है। यही उसके लिए सामान्य है।
    बहुत अच्छी कहानी है।
    अनुवाद सदैव की तरह मूल कथा के जैसा ही शानदार है। आपके माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य से परिचय हो रहा है आभार ।

    Reply
  9. Farid Khan says:
    3 years ago

    ……और शानदार अनुवाद. मूल कहानी का आस्वादन है इसमें. श्रीविलास जी और अरुण भाई का आभार एक बेहतरीन कहानी पढ़वाने के लिए.

    Reply
  10. Ravi Kumar says:
    3 years ago

    क्या ही अच्छी गुथी हुई कहानी है !

    Reply

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