संस्मरण

चरथ भिक्खवे : दिव्यानन्द

चरथ भिक्खवे : दिव्यानन्द

‘चरथ भिक्खवे’ के अंतर्गत 15 अक्टूबर से 24 अक्टूबर 2024 के बीच बुद्ध से जुड़े स्थलों की यात्रा लेखकों द्वारा सम्पन्न हुई. इसमें शामिल दिव्यानन्द ने इस यात्रा के बहाने...

कोश्का: अरुण खोपकर : अनुवाद: रेखा देशपाण्डे

कोश्का: अरुण खोपकर : अनुवाद: रेखा देशपाण्डे

‘बिल्लियाँ होती हैं अच्छी हर कहीं /ये तमाशा सा है बिल्ली तो नहीं’ (मीर). फ़ारसी, तुर्की, अरबी आदि भाषाओं में बिल्लियों पर लिखने की पुरानी रवायत है. मीर (1723-1810) ने...

प्रियंवदः ओमा शर्मा

प्रियंवदः ओमा शर्मा

प्रियंवद प्रसंग में ओमा शर्मा का यह संस्मरण भी प्रस्तुत है. व्यक्ति, कथाकार, संपादक और साहित्य के कार्यकर्ता के रूप में प्रियंवद की छवियाँ इसमें उभरती हैं. इन छवियों के...

कृष्ण बलदेव वैद : तेजी ग्रोवर

कृष्ण बलदेव वैद : तेजी ग्रोवर

तेजी ग्रोवर हमारे समय की विरल और विशिष्ट रचनाकार हैं. जहाँ उन्होंने नॉर्वीजी, स्वीडी, फ़्रांसीसी, लात्वी आदि भाषाओं के साहित्य का हिंदी में अनुवाद किया है, वहीं उनकी कृतियाँ स्वीडी,...

साथ-साथ: गगन गिल

साथ-साथ: गगन गिल

इस ‘साथ-साथ’ में दिल्ली का करोल बाग है. घर-परिवार, दोस्त और मुलाक़ातें हैं. भीष्म साहनी की शोर करती मोटर साइकिल है. जिन्हें आज हम महत्वपूर्ण लेखक कहते हैं उनके अंखुवाने...

सौमित्र मोहन: अशोक अग्रवाल

सौमित्र मोहन: अशोक अग्रवाल

दस खंडों में विभक्त सौमित्र मोहन की लम्बी कविता ‘लुकमान अली’ ‘कृतिपरिचय’ पत्रिका में 1968 में प्रकाशित हुई थी. इस कविता के प्रकाशन का प्रभाव यह हुआ कि बांदा से...

स्वर्ण नगरी में सोन चिरैया की खोज: कबीर संजय

स्वर्ण नगरी में सोन चिरैया की खोज: कबीर संजय

सोन चिरैया लगभग लुप्त होने को है. उसे बचाने की कोशिशें हो रहीं हैं. कथाकार और ‘जंगलकथा’ के सूत्रधार कबीर संजय इस पक्षी के पीछे-पीछे दूर-दूर तक भटकते रहे. इस...

‘अपने बचपन से आप क्या बदलना चाहेंगी?: रेखा सेठी

‘अपने बचपन से आप क्या बदलना चाहेंगी?: रेखा सेठी

विदेशों में भी हिंदी पठन-पाठन की एक छोटी सी दुनिया है. लेखिका और अनुवादक रेखा सेठी अमेरीका के ड्यूक यूनिवर्सिटी में कुछ दिनों के लिए थीं. यह संस्मरण उस दुनिया...

निर्मल वर्मा: एक लेखक की बरसाती: अशोक अग्रवाल

निर्मल वर्मा: एक लेखक की बरसाती: अशोक अग्रवाल

वरिष्ठ कथाकार अशोक अग्रवाल लम्बी बीमारी के बाद स्वस्थ हुए हैं, इसका प्रमाण यह आत्मीय, दिलचस्प संस्मरण है. निर्मल वर्मा की स्मृतियाँ उनकी कथाओं की तरह ही गहरी होती हैं....

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