स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ
हिंदी कविता कबीर की तरह खुली आंखों से सबकुछ देखती रहती है, उसे ऐश्वर्य की नींद नहीं चाहिए, वह बेचैन है और उसका अधिकांश वेदना की अभिव्यक्ति है. वरिष्ठ कवि...
हिंदी कविता कबीर की तरह खुली आंखों से सबकुछ देखती रहती है, उसे ऐश्वर्य की नींद नहीं चाहिए, वह बेचैन है और उसका अधिकांश वेदना की अभिव्यक्ति है. वरिष्ठ कवि...
समालोचन पर नये वर्ष की शुरुआत कविताओं से करते हुए प्रस्तुत हैं- सुरेन्द्र प्रजापति. सुरेन्द्र प्रजापति गया जिले के ‘असनी’ गाँव से हैं और मैट्रिक तक इन्होंने पढ़ाई की है....
शिरीष कुमार मौर्य की कविताएँ पढ़ते हुए सृजनात्मकता के विविध रंग और रूप कुछ इस तरह से उद्घाटित होते हैं कि भावक डूब सा जाता है. काव्यत्व जिसे बरसों-बरस कविता...
भाषा की दुनिया अपार अनंत है, नाना तरह की चीजें उसमें घटित होती रहती हैं. साहित्य तो उसका एक हिस्सा है. इस हिस्से में भी सब कहाँ प्रत्यक्ष हो पाता...
किसी भी पत्रिका के लिए किसी युवा को प्रस्तुत करना ख़ास ख़ुशी का अवसर होता है. सहृदय समाज के समक्ष राजस्थान की युवा कवयित्री ममता बारहठ की इन कविताओं को...
‘प्रेम जितना करुणामय रहा/प्रेमी उतना ही निर्मम’. ‘नो नेशन फ़ॉर वुमन’ की लेखिका और बीबीसी की पत्रकार प्रियंका दुबे की रचनात्मकता के कई आयाम हैं, उनका गद्य पिछले दिनों आपने...
पूनम वासम की कविताएँ निर्मला पुतुल की परम्परा का विकास लगती हैं. आदिम संस्कृति की सहज मार्मिकता, छले जाने का बोध, प्रतिकार का साहस और मिथकों की स्मृति से भरी...
रोहिणी अग्रवाल आलोचक हैं, कथा-आलोचना में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं. कहानियों के दो संग्रह भी प्रकाशित हैं. प्रस्तुत कविताओं में उनकी स्त्री-दृष्टि सक्रिय है. ये कविताएँ विवशता, विकलता और असंतोष...
सपना भट्ट की इन कविताओं में एकांत, प्रतीक्षा और स्मृति की छवियां हैं, इनमें गहराई और तीव्रता है. वेदना और पीड़ा का उदास रंग पर मुखर है. कुछ नये सादृश्य...
अमरीकी लेखक और सामाजिक मुद्दों पर जन चेतना के कार्यों में संलग्न रहे हॉर्वर्ड ज़िन के प्रसिद्ध नाटकों में से ‘सोहो में मार्क्स’, ‘वीनस की बेटी’, और ‘एमा’ आदि का...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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