असहमति- 2 : कविताएँ
असमति के इस दूसरे अंक में विनोद दास, लीलाधर मंडलोई, नवल शुक्ल, सविता सिंह, पवन करण, प्रभात, केशव तिवारी, प्रभात मिलिंद, निधीश त्यागी, विनय सौरभ, बाबुषा, अपर्णा मनोज, अविनाश मिश्र,...
असमति के इस दूसरे अंक में विनोद दास, लीलाधर मंडलोई, नवल शुक्ल, सविता सिंह, पवन करण, प्रभात, केशव तिवारी, प्रभात मिलिंद, निधीश त्यागी, विनय सौरभ, बाबुषा, अपर्णा मनोज, अविनाश मिश्र,...
समालोचन ‘असहमति की सौ कविताएँ’ के अपने विशेष अंक का यह पहला हिस्सा प्रस्तुत कर रहा है. इसमें सच, साहस और सौन्दर्य है. ये सबसे पहले कविताएँ हैं. इस अंक...
महात्मा गांधी की अनुपस्थिति उनकी स्मृतियों से भरी हुई है. यह बताता है कि वह अभी वैचारिक रूप से ज़िन्दा हैं. अगर सशरीर उपस्थित हो जाते तो क्या होता? ज़ाहिर...
महात्मा गांधी का ‘ब्रह्मचर्य प्रयोग’ गांधीवादियों को भी नहीं जचता था, अधिकतर संशय से देखते थे, कुछ ने बाद में अपनी असहमति भी दर्ज की. आज भी कई पराक्रमी गांधीवादी...
30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की सुनियोजित हत्या कर दी गयी. भारतीय समाज पर पिता की हत्या का यह कलंक कभी मिट नहीं सकता, इस रिसते हुए घाव के...
2022 की श्रेष्ठ पुस्तकें कौन-कौन सी हैं? इससे सार्थक मुझे यह लगा कि 2022 में किन किताबों को पढ़ा गया यह जाना जाए. इसमें अशोक वाजपेयी, अरुण कमल, ममता कालिया,...
गांधी सप्ताह के इस समापन अंक में आप युवा अध्येता रूबल और लेखिका के. मंजरी श्रीवास्तव की गांधी और स्त्री-प्रश्न पर यह बातचीत पढ़ेंगे. गम्भीर है और कुछ नयी बातें...
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन ने स्त्रियों को गहरे प्रभावित किया, जिस समाज में उनकी सार्वजनिक उपस्थिति लगभग नगण्य थी गांधी के आगमन के बाद वे दिखने लगीं. महात्मा गांधी एकमात्र ऐसे...
गांधी जी का हिंदी और साहित्य से गहरा रिश्ता रहा है, उनपर बड़े कवियों ने कविताएँ लिखीं हैं. अभी भी उनपर कविताएँ लिखी जा रहीं हैं. ‘गांधी सप्ताह’ के इस...
सुरेंद्र मनन लेखक के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित फ़िल्मकार हैं. गांधी पर उनकी फ़िल्म ‘गाँधी अलाइव इन साउथ अफ्रीका’ बहुत सराही गयी है. वर्धा के सेवाग्राम में गांधीजी पर...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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