प्रिय शाह, रंग अभी गीले हैं: अनिरुद्ध उमट
कुछ लेखक अधूरे प्रेम की तरह होते हैं, लौट-लौट कर आते हैं. आकर्षण की तीव्रता मंद नहीं पड़ती. ऐसे ही लेखक हैं मलयज. कवि मलयज का एक रूप उनके पत्रों...
कुछ लेखक अधूरे प्रेम की तरह होते हैं, लौट-लौट कर आते हैं. आकर्षण की तीव्रता मंद नहीं पड़ती. ऐसे ही लेखक हैं मलयज. कवि मलयज का एक रूप उनके पत्रों...
अपराधियों के माथे पर दाग़ लगाकर मुगल काल में उन्हें ‘दाग़े-ए-शाही’ (हिमाचल प्रदेश) में सजा काटने के लिए भेज दिया जाता था, बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने अपराधियों...
पल्लव ‘बनास जन’ के संपादक हैं, लेखक हैं, साहित्य के अनेक मोर्चों पर सक्रिय रहते हैं, प्यारे इंसान हैं. उदयपुर के प्रो. नवलकिशोर जी की पल्लव से आत्मीयता थी. यह...
हर अच्छे इंसान का एक घर होता है चाहे वह बे-घर ही क्यों न हो जहाँ से उसे अच्छे बने रहने की शक्ति मिलती है. महबूब टीवी पत्रकार कमाल ख़ान...
जन्मतिथि संकेत है वहीं स्मृति का पृष्ठ भी, जहाँ पिछला सबकुछ लिखा होता है और आगत की उम्मीद का नया पन्ना खुलता है. अशोक वाजपेयी का जीवन हिंदी संस्कृति के...
लखनऊ की संस्कृति में रचे बसे और उसकी बुनावट के गहरे जानकार योगेश प्रवीन पर लिखते हुए संतोष अर्श ने शहर लखनऊ के ख़ास अंदाज़ को मूर्त कर दिया है....
संस्मरण लिख रहें हैं जिनमें से कुछ आपने समालोचन पर ही पढ़े हैं. प्रस्तुत संस्मरण दो पालतू कुत्तों पर हैं जिन्हें विवश होकर घर से बाहर निकालना पड़ा. घर में...
विश्व प्रसिद्ध आलोचक-अनुवादक हरीश त्रिवेदी का हिंदी साहित्य से गहरा नाता रहा है, वह हिंदी में भी लिखते रहें हैं. मंगलेश डबराल पर उनका यह संस्मरण आत्मीय तो है ही...
जेल की यातनाओं और अनुभवों पर प्रचुर मात्रा में देशी विदेशी भाषाओं में साहित्य मिलता है. नेताओं, क्रांतिकारियों, कार्यकर्ताओं और साहित्यकारों आदि को जब-जब जेल में डाला गया उन्होंने अपने...
कथाकार अशोक अग्रवाल की कवि पंकज सिंह से गहरी आत्मीयता थी, वह उनके जीवन और रचनाकर्म दोनों के सहभागी थे. इस संस्मरण में पंकज सिंह के दोनों पक्षों की चर्चा...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum