ग्रंथालयों की दुनिया: वीणा गवाणकर: अनुवाद: उषा वैरागकर आठले
हिंदी में पुस्तकों के महत्व पर लेख मिलते हैं पुस्तकालयों की भूमिका पर लगभग नहीं. हिंदी क्षेत्र में पुस्तकालयों को खोलने के जनांदोलन का अभाव भी इसका बड़ा कारण है...
हिंदी में पुस्तकों के महत्व पर लेख मिलते हैं पुस्तकालयों की भूमिका पर लगभग नहीं. हिंदी क्षेत्र में पुस्तकालयों को खोलने के जनांदोलन का अभाव भी इसका बड़ा कारण है...
हसन रूबायत बांग्लादेश के समकालीन चर्चित युवा कवि हैं. उनके आठ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. कवि-अनुवादक अजीत दाश भी बांग्लादेश से हैं. पड़ोसी देश के साहित्यकार भी समालोचन...
अर्जेंटीना के जूलियो कोर्टाज़ार (1914-1984) ‘लैटिन अमेरिकी साहित्य आन्दोलन’ के मुख्य लेखकों में से एक थे और कहानी में नवाचार को लेकर विख्यात भी. उनकी कहानी ‘La Noche Boca Arriba’...
मार्खेज़ की कहानियों के हिंदी अनुवादों की यह बारहवीं क़िस्त है, अधिकतर अनुवाद सुशांत सुप्रिय ने किए हैं जो ख़ुद कवि-कथाकार हैं, उनका संग्रह ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ भावना प्रकाशन से इसी...
अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने कहानी के सन्दर्भ में ‘आइसबर्ग तकनीक’ का ज़िक्र करते हुए कहा था कि उसका आठवां हिस्सा ही नुमाया होना चाहिए, कहानी का बड़ा हिस्सा पाठकों को ख़ुद...
2021 में सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर से कवि रुस्तम (जन्म: 30 अक्तूबर, 1955) की ‘चुनी हुई कविताएँ’ (1985-2022) तथा ‘जो है और जैसा है’ संग्रह प्रकाशित हुए, इनकी चर्चा नहीं...
पंजाबी कविताओं की अपनी अलग तासीर है, मुहावरा है. बाबा फ़रीद, बुल्लेशाह, वारिस शाह, अमृता प्रीतम आदि से होती हुई यह धारा समकालीन कविताओं के खुलेपन और खरेपन के प्रवाह...
पंजाबी भाषा की कविताओं के अनुवाद आप समालोचन पर पढ़ते रहें हैं. कवि रुस्तम ने ‘राजविन्दर मीर’, ‘भूपिंदरप्रीत’, ‘अम्बरीश’, ‘बिपनप्रीत’, ‘गुरप्रीत’ आदि की कविताओं के अनुवाद हिंदी में किये हैं....
विश्व प्रसिद्ध कथाकार हारुकी मुराकामी की कहानियों के अनुवाद आप नियमित रूप से समालोचन पर पढ़ रहें हैं, यहाँ यह मुराकामी की सातवीं अनूदित कहानी है. लेखक-अनुवादक श्रीविलास सिंह द्वारा...
लखनऊ के शायर मीर हसन का एक शेर है- ‘कूचा-ए-यार है और दैर है और काबा है / देखिए इश्क़ हमें आह किधर लावेगा.’ प्रेम से कविता का बहुत ही...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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