मार्खेज़: अगस्त के प्रेत: अनुवाद: सुशांत सुप्रिय
‘अगस्त के प्रेत’ 1992 में प्रकाशित मार्खेज़ के कथा-संग्रह ‘Strange Pilgrims’ में संकलित है. आकार में छोटी इस कहानी में उनकी जादुई यथार्थ की शैली नज़र आती है. इससे पहले...
‘अगस्त के प्रेत’ 1992 में प्रकाशित मार्खेज़ के कथा-संग्रह ‘Strange Pilgrims’ में संकलित है. आकार में छोटी इस कहानी में उनकी जादुई यथार्थ की शैली नज़र आती है. इससे पहले...
एन्नी दवू बर्थलू (Annie Deveaux Berthelot) फ्रांसीसी लेखिका हैं. उनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. उनकी कुछ कविताओं का हिंदी अनुवाद आप पहले भी पढ़ चुके हैं. प्रस्तुत बीस कविताओं...
कवि, उपन्यासकार, निबंधकार और आलोचक अहमद हामदी तानपीनार (Ahmet Hamdi Tanpinar : 23 जून,1901 – 24 जनवरी, 1962) आधुनिक तुर्की साहित्य के अग्रदूत हैं. ओरहान पामुक ने उन्हें बीसवीं सदी...
पाँच तुर्की कवि हिंदी अनुवाद: निशांत कौशिक शुकरु एरबाश आख़िर कैसे आख़िर कैसे, मेरे ख़ुदा? ये सड़कें कैसे सह सकती हैं इतना वज़न, ख़ुदा? भीड़ बहुत है रात बहुत है...
2023 में प्रख्यात कवि गगन गिल के अक्का महादेवी के वचनों का हिंदी अनुवाद ‘तेजस्विनी’ शीर्षक से राजकमल ने प्रकाशित किया था. जिसे उन्होंने भाव रूपांतरण कहा है. इस वर्ष...
नए वर्ष के इस पहले अंक में विश्व प्रसिद्ध कथाकार हारुकी मुराकामी की चर्चित कहानी ‘Yesterday’ का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है. यह कहानी प्रथमत: २०१६ के जून...
पूर्वा भारद्वाज और निधीश त्यागी के संपादन में ‘कविता का काम आँसू पोंछना नहीं’ शीर्षक से कविताओं का एक संकलन जिल्द बुक्स, नई दिल्ली से आज 27 दिसम्बर को लोकार्पित...
चित्तधर ‘हृदय’ (1906-1982) को ‘नेपाल भाषा’ में लिखने के लिए सात साल की क़ैद की सजा मिली थी, आज वह बीसवीं शताब्दी के महान लेखकों में शामिल हैं. उनका जीवन...
अली बाबा (1940 –2016 ) सिंधी भाषा के प्रसिद्ध लेखक हैं. उनकी कहानी ‘गर्भ का तेज’ इसी शीर्षक से 1970 के आसपास प्रकाशित हुई थी. इसका मूल सिंधी से यह...
इक्कीसवीं सदी के बेकेट के रूप में विख्यात यून फ़ुस्से (1959) को 2023 के साहित्य का नोबेल पुरस्कार देते हुए उनके नाटकों की नवोन्मेषी प्रकृति और उसके माध्यम से अनकहे...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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